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Incest मेरी प्यारी दीदी मुझसे चुद गई
#1
मेरी प्यारी दीदी मुझसे चुद गई









:welcome: :heart: :welcome:






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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
थोड़े दिनों पहले मुझे किसी काम से सूरत जाना हुआ. अपना काम खत्म करके मैं वापस आ रहा था कि घर से फोन आया कि अपने चाचा की लड़की को भी साथ में लेते आना.

मेरे चाचा की लड़की, जिसका नाम निशा है.. वह सूरत में अपने पति के साथ रहती है. उसके पति यानी मेरे जीजू को कंपनी के काम से एक महीने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा था, तो वह अकेली रह रही थी. शायद इसी वजह से उसका मेरे साथ आने का मन करने लगा था.

निशा की तीन साल पहले शादी हुई थी. वह अठ्ठाइस साल की बहुत ही सुंदर माल जैसी दिखती है. उसका मादक फिगर 34-28-34 का है. ऊंचाई पांच फीट दो इंच है. उसकी गांड अब ज्यादा बाहर निकल गई है. मुझे वो बहुत ही सेक्सी लगती थी लेकिन चूंकि वो मेरी बहन थी इसलिए मुझे उसके साथ ये सब करने की हिम्मत नहीं होती थी और मौका भी नहीं मिल सका था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
मैंने उसको फोन किया तो वह स्टेशन पर आ गई. उसने पीले कलर का टी-शर्ट और सफेद लंबा स्कर्ट पहना था. वो बहुत ही मस्त दिख रही थी. उसके पास एक बैग था, जो मैंने ले लिया.

हम दोनों भाई बहन बात करते हुए ट्रेन का इन्तजार करने लगे. रात को नौ बजे की ट्रेन थी, पर वह ज्यादा बारिश की वजह से रद्द हो गई थी. दूसरी कोई और ट्रेन भी अब आने वाली नहीं थी. काफी देर तक इन्तजार के बाद हम दोनों ने ये तय किया कि सड़क के रास्ते चला जाए.

सूरत से अहमदाबाद के लिए स्टेशन से बाहर कई साधन मिल जाते थे, तो मैं निशा के साथ बाहर आ गया.

हम लोग स्टेशन से बाहर निकले तो वहाँ भी ऐसी कोई कार वगैरह नहीं थी, जो अहमदाबाद जा रही हो.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
मैं पूछताछ करने लगा तो एक भाई ने बोला कि वह अहमदाबाद जा रहा है. उसकी गाड़ी में बस एक ही सीट खाली बची थी और वहां भी मैं ही बैठ सकता था, क्योंकि नेहा की गांड बहुत बड़ी थी.

आमने सामने की सीट लगी हुई थीं, जिसमें लोग बैठे हुए थे. मैं सीट में बैठ गया और निशा, उस गाड़ी में एक चालीस साल की औरत थी, उसकी गोद में बैठ गई.

पर थोड़ी देर में औरत के पैर दुखने लगे तो निशा खिसक कर थोड़ा बाजू हट गई. अब वह, एक पचास साल का आदमी बैठा था, उसकी जांघों पर बैठ गई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
मुझे ताज्जुब हो रहा था कि निशा किसी आदमी की गोद में कैसे बैठ सकती थी. हालांकि मैं भी उसको अपनी गोद में बिठा सकता था परन्तु मैंने संकोच के चलते ऐसा नहीं कहा. फिर जब वो उस आदमी की गोद में बैठी, तब भी मुझे लगा कि ये भी उम्रदराज आदमी है, कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन मेरे दिमाग में ये भी सवाल आया कि इस आदमी के पैर दुखने लगेंगे तो ये इसके बाद मेरी गोद में आसानी से बैठ जाएगी.. तब इसकी गांड का मजा मिल जाएगा. मतलब अब भी मैंने उसको चोद पाने का नहीं सोच पाया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
खैर.. गाड़ी अपनी रफ्तार पर जा रही थी और लोग सोने लगे थे. निशा ने भी थोड़ा पीछे हटकर मेरी गोद में सर रख दिया और सोने लगी.

पर उसके पीछे खिसकने से अब वह पूरी तरह उस आदमी के लंड पर बैठ गई थी. मैं देख रहा था कि उस आदमी का लंड भी खड़ा हो गया था. वो बार बार अपने पायजामे में अपने लंड को सही कर रहा था.

निशा अब सो चुकी थी, पर वह आदमी मेरी ही ओर देख रहा था. मैंने भी थोड़ी देर के लिए अपनी आंख बंद कर लीं. मैं भी जानना चाहता था कि इस आदमी की सोच किधर तक जाती है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
थोड़ी देर बाद मैंने आंख खोली तो वह आदमी निशा की कमर पकड़ कर धीरे धीरे हिल रहा था. मैंने ध्यान से देखा तो वो तो शायद मेरी बहन निशा की चुदाई जैसा कुछ कर रहा था. हालांकि अँधेरे के कारण कुछ भी साफ़ नजर नहीं आ रहा था तब भी मेरी झांटें सुलग गईं.

मुझे बहुत गुस्सा आया तो मैंने निशा को बोला- दीदी, उस भाई के पैर अकड़ जाएंगे. आप मेरे पैरों पे बैठ जाओ.
पर निशा ने नींद में बोलते हुए मना कर दिया- अरे चार-पांच घंटे की बात है. कुछ नहीं होगा.

मैंने उसको खींचते हुए दोबारा बोला, तो वह मान गई. अब वो मेरी गोद में बैठ गई और बैठते ही सो गई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
मैंने देखा कि उस आदमी ने अपना लंड बाहर निकाला हुआ था और उसका लंड बाहर से आती हुई रोशनी में थोड़ा चमक रहा था. पर मेरे देखते ही उसने अपना लंड पायजामे में कर लिया. इसी के साथ उसने मुझे कुछ हाथ में पकड़ा दिया.. और वो आंख बंद करके सो गया.

मैंने देखा तो वह पेंटी थी, वह भी पूरी गीली. मुझे विचार आया कि साला बूढा सच में निशा की चुत में लंड घुसा कर चोद रहा था.. तो उसने विरोध क्यों नहीं किया. इसका मतलब ये हुआ कि निशा उसके लंड को अपनी चुत में लेकर लंड की सवारी गाँठ रही थी. उसको इस बुड्डे के लंड से चुदने में मजा आ रहा था. मुझे हैरानी इस बात की भी थी कि उसने मेरी बहन की पैंटी कैसे उतार दी!

अब मैंने ये सोचा, तो मुझे भी कुछ होने लगा. इधर निशा के गोद में बैठने से अब मेरा लंड खड़ा होके झटके मार रहा था. उसके चूतड़ बहुत ही मुलायम थे, जो मेरी जांघों पे टच कर रहे थे.
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#9
मुझे लगा कि अब सब लोग सो गए हैं. मैंने धीरे से निशा की स्कर्ट उठानी शुरू की. पर उसके बैठने की वजह से गांड के नीचे दबी होने से पूरी नहीं उठ पाई. मैंने थोड़ा जोर लगा कर खींचा, तो निशा थोड़ा ऊपर हुई और स्कर्ट पूरी उठ गई.

मैंने निशा को फिर थोड़ा उठा के अपना लंड पेंट से बाहर निकाल लिया. उसके बैठते ही उसकी गर्म चुत का अहसास लंड पे हुआ. चूत पानी से पूरी भीगी गई थी.. पर उसके बैठने की वजह से लंड फिर से दब गया.

मैंने उसको थोड़ा झुकाया तो निशा उस आदमी की गोद में सर रखके सो गई.. जिससे उसकी गांड थोड़ी ऊपर उठ गई और चुत मेरे सामने आ गई. मैंने चुत पे हाथ लगाया तो वह खुली हुई थी और फड़क रही थी.
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#10
मैंने लंड के टोपे पे थूक लगाया और चुत के छेद पर रख दिया. एक हाथ से लंड पकड़े रखा और दूसरे से निशा की कमर को थोड़ा पीछे खींचा. चुत पे दबाव बनाया तो छेद फैलने लगा और टोपा अन्दर घुस गया. उधर शायद निशा ने भी अपनी चुत को लंड पर अडजस्ट सा किया था.




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#11
अब मैंने दोनों हाथों से कमर को पकड़ लिया और निशा को जोर से लंड पे खींचा तो चिकनाई की वजह से पूरा लंड चुत में उतर गया. उसको शायद चुत में दर्द हुआ तो वह पूरा लंड घुसते ही बैठके खड़ी सी हो गई.. और फिर लंड को चूत में लेकर सो गई.


[Image: 19437736.gif]
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#12
मैंने आधा लंड बाहर निकाल कर फिर अन्दर पेल दिया. अब मुझको बहुत मज़ा आ रहा था तो मैं उसकी चुत को गपागप चोदने लगा.
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#13
कुछ देर बाद मैंने झटके तेज कर दिए तो कोहनी लगने से बाजू में बैठा हुआ एक आदमी जग गया. पर मेरा अभी पानी निकलने वाला था तो मैंने चोदना चालू रखा.

थोड़ी देर बाद निशा की चुत ने पानी छोड़ दिया, जिसने मेरे लंड को भिगो दिया. बाजू वाला आदमी मेरी और देखके मुस्कुराया और अपना लंड मसलते हुए निशा की गांड पे हाथ फेरने लगा.
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#14
दस-पंद्रह धक्के मारके मैंने भी अपना पानी चुत में छोड़ दिया. मैंने उसका स्कर्ट सही किया और अपना लंड पैन्ट में अन्दर कर लिया और अपनी बहन निशा को फिर सही से गोद में बिठा लिया.

थोड़ी देर बाद अहमदाबाद आ गया और हम उतर गए.
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#15
निशा ने एक अंगड़ाई ली और बोली- बड़े शरारती हो, ठीक से सोने भी नहीं देते.
“अब घर चल कर ठीक से सुला दूँगा.”
निशा ने मेरे लंड को पकड़ कर हिलाया और कहा- अब तो ठीक से लूँगी इसको अपने अन्दर.. दोगे न?

मैंने सुनसान देख कर उसको अपनी बांहों में भर लिया और पूछा- उस आदमी से मजा नहीं आया था क्या?
“अरे उसने तो पेला ही था कि तुमने अपने लंड पर बिठा लिया था.”
मैं हंस पड़ा.

उसके बाद मैंने उसको कई बार चोदा है.
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#16
बात उन दिनों की है जब मैंने अपनी स्नातिकी पूरी की थी। उस वक़्त मेरी उम्र २१ थी। मैं अपने मम्मी-पापा और अपनी बड़ी बहन के साथ कोलकाता में एक किराये के मकान में रहता था। मेरे पापा उस वक़्त सरकारी जॉब में थे। माँ घर पर ही रहती थीं और हम भाई-बहन अपनी अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे। मेरी और मेरी बहन की उम्र में बस एक साल का फर्क है। इसलिए हम दोस्त की तरह रहते थे। हम दोनों अपनी सारी बातें एक दूसरे से कर लेते थे, चाहे वो किसी भी विषय में हो।
मैं बचपन से ही थोड़ा ज्यादा सेक्सी था और सेक्स की किताबों में मेरा मन कुछ ज्यादा लगता था। पर मैं अपनी पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहता था इसलिए मुझसे सारे लोग काफी खुश रहते थे।
हम जिस किराये के मकान में रहते थे उसमें दो हिस्से थे, एक में हम और दूसरे में एक अन्य परिवार रहता था, जिसमें एक पति-पत्नी और उनके दो बच्चे रहते थे। दोनों काफी अच्छे स्वभाव के थे और हमारे घर-परिवार में मिलजुल कर रहते थे। मेरी माँ उन्हें बहुत प्यार करती थीं। मैं भी उन्हें अपनी बड़ी बहन की तरह ही मानता था और उनके पति को जीजा कहता था। उनके बच्चे मुझे मामा मामा कहते थे।
सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था। अचानक मेरे पापा की तबीयत कुछ ज्यादा ही ख़राब हो गई और उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा। हम लोग तो काफी घबरा गए थे पर हमारे पड़ोसी यानि कि मेरे मुँहबोले जीजाजी ने सब कुछ सम्हाल लिया। हम सब लोग अस्पताल में थे और डॉक्टर से मिलने के लिए बेताब थे। डॉक्टर ने पापा को चेक किया और कहा की उनके रीढ़ की हड्डी में कुछ परेशानी है और उन्हें ऑपरेशन की जरूरत है। हम लोग फ़िर से घबरा गए और रोने लगे। जीजाजी ने हम लोगों को सम्हाला और कहा कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है सब ठीक हो जायेगा। उन्होंने डॉक्टर से सारी बात कर ली और हम सब को घर जाने के लिए कहा। पहले तो हम कोई भी घर जाने को तैयार नहीं थे पर बहुत कहने पर मैं, मेरी बहन और अनीता दीदी मान गए, अनीता मेरी मुँहबोली बहन का नाम था।
हम तीनों लोग घर वापस आ गए। रात जैसे तैसे बीत गई और सुबह मैं अस्पताल पहुँच गया। वहां सब कुछ ठीक था। मैंने डॉक्टर से बात की और जीजा जी से भी मिला। उन लोगों ने बताया कि पापा की शूगर थोड़ी बढ़ी हुई है इसलिए हमें थोड़े दिन रुकना पड़ेगा, उसके बाद ही उनकी सर्जरी की जायेगी। बाकी कोई घबराने वाली बात नहीं थी। मैंने माँ को घर भेज दिया और उनसे कहा कि अस्पताल में रुकने के लिए जरूरी चीजें शाम को लेते आयें। माँ घर चली गईं और मैं अस्पताल में ही रुक गया। जीजा जी भी अपने ऑफिस चले गए।
जैसे-तैसे शाम हुई और माँ सारी चीजें लेकर वापस अस्पताल आ गईं। हमने पापा को एक निजी कमरे में रखा था जहाँ एक और बिस्तर था परिचारक के लिए। माँ ने मुझसे घर जाने को कहा। मैं अस्पताल से निकला और टैक्सी स्टैंड पहुँच गया। मैंने वहाँ एक सिगरेट ली और पीने लग। तभी मेरी नज़र वहीं पास में एक बुक-स्टाल पर चली गई। मैंने पहले ही बताया था कि मुझे सेक्सी किताबें, खासकर मस्त राम की किताबों का बहुत शौक है। मैं उस बुक-स्टाल पर चला गया और कुछ किताबें खरीदी और अपने घर के लिए टैक्सी लेकर निकल पड़ा।
घर पहुंचा तो मेरी बहन ने जल्दी से आकर मुझसे पापा के बारे में पूछा और तभी अनीता दीदी भी अपने घर से बाहर आ गईं और पापा की खबर पूछी। मैंने सब बताया और बाथरूम में चला गया। सारा दिन अस्पताल में रहने के बाद मुझे फ्रेश होने की बहुत जल्दी पड़ी थी। मैं सीधा बाथरूम में जाकर नहाने लगा। बाथरूम में जाने से पहले मैंने मस्तराम की किताबों को फ़्रिज पर यूँ ही रख दिया। हम दोनों भाई बहन ही तो थे केवल इस वक़्त घर पर, और उसे पता था मेरी इस आदत के बारे में। इसलिए मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
जब मैं नहा कर बाहर आया तो मेरी बहन को देखा कि वो किताबें देख रही है। उसने मुझे देखा और थोड़ा सा मुस्कुराई। मैंने भी हल्की सी मुस्कान दी और मैं अपने कमरे में चला गया। मैं काफी थक गया था इसलिए बिस्तर पर लेटते ही मेरी आँख लग गई।
रात के करीब ११ बजे मुझे मेरी बहन ने उठाया और कहा- खाना खा लो !
मैं उठा और हाथ मुँह धोकर खाने के लिए मेज़ पर गया, वहां अनीता दीदी भी बैठी थी। असल में आज खाना अनीता दीदी ने ही बनाया था। मैंने खाना खाना शुरू किया और साथ ही साथ टीवी चला दिया। हम इधर उधर की बातें करने लगे और खाना खा कर टीवी देखने लगे।
हम तीनों एक ही सोफे पर बैठे थे, मैं बीच में और दोनों लड़कियाँ मेरे आजू-बाजू । काफी देर बात चीत और टीवी देखने के बाद हम लोग सोने की तैयारी करने लगे। मैं उठा और सीधे फ़्रिज की तरफ गया क्यूंकि मुझे अचानक अपने किताबों की याद आई। मुझे वहां पर बस एक ही किताब मिली जबकि मैं तीन किताबें लेकर आया था। सामने ही अनीता दीदी बैठी थी इसलिए कुछ पूछ भी नहीं सकता था अपनी बहन से। खैर मैंने सोचा कि जब अनीता दीदी अपने घर में चली जाएँगी तो मैं अपनी बहन से पूछूंगा।
थोड़ी देर तक तो मैं अपने कमरे में ही रहा, फिर उठ कर बाहर हॉल में आया तो देखा मेरी बहन अपने कमरे में सोने जा रही थी, मैंने उसे आवाज़ लगाई," नेहा, मैंने यहाँ तीन किताबें रखी थीं, एक तो मुझे मिल गई लेकिन बाकी दो और कहाँ हैं ?"
"मेरे पास हैं, पढ़कर लौटा दूंगी मेरे भैया !" और उसने बड़ी ही सेक्सी सी मुस्कान दी।
मैंने कहा," लेकिन तुम्हें दो दो किताबों की क्या जरुरत है? एक रखो और दूसरी लौटा दो, मुझे पढ़नी है।"
उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बस कहा कि आज नहीं कल दोनों ले लेना।
मैं अपना मन मारकर अपने कमरे में गया और किताब पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते मैंने अपना लण्ड अपनी पैन्ट से बाहर निकला और मुठ मारने लगा। काफी देर तक मुठ मारने के बाद मैं झड़ गया और अपने लण्ड को साफ़ करके सो गया।
रात को अचानक मेरी आँख खुली तो मैं पानी लेने के लिए हॉल में फ़्रिज के पास पहुंचा। जैसे ही मैंने फ़्रिज खोला कि मुझे बगल के कमरे से किसी के हंसने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने ध्यान दिया तो पता लगा कि मेरी बहन के कमरे से उसकी और किसी और लड़की की आवाज़ आ रही थी। नेहा का कमरा हॉल के पास ही है। मैं उसके कमरे के पास गया और अपने कान लगा दिए ताकि मैं यह जान सकूँ कि अन्दर कौन है और क्या बातें हो रही हैं।
जैसे ही मैंने अपने कान लगाये मुझे नेहा के साथ वो दूसरी आवाज़ भी सुनाई दी। गौर से सुना तो वो अनीता दीदी थी। वो दोनों कुछ बातें कर रहे थे। मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की, और जो सुना तो मेरे कान ही खड़े हो गए।
अनीता दीदी नेहा से पूछ रही थी," हाय नेहा, ये कहाँ से मिली तुझे? ऐसी किताबें तो तेरे जीजा जी लाते थे पहले, जब हमारी नई-नई शादी हुई थी !"
"अच्छा तो आप पहले भी इस तरह की किताबें पढ़ चुकी हैं ?"
"हाँ, मुझे तो बहुत मज़ा आता है। लेकिन अब तेरे जीजू ने लाना बंद कर दिया है। और तुझे तो पता है कि मैं थोड़ी शर्मीली हूँ इसलिए उन्हें फिर से लाने को नहीं कह सकती, और वो हैं कि कुछ समझते ही नहीं।"
"कोई बात नहीं दीदी, जब भी आपको पढ़ने का मन करे तो मुझसे कहना, मैं आपको दे दूंगी।"
"लेकिन तेरे पास ये आई कहाँ से ?"
"अब छोड़ो भी न दीदी, तुम बस आम खाओ, पेड़ मत गिनो।"
"पर मुझे बता तो सही !"
"लगता है तुम नहीं मानोगी !"
"मैं कितनी जिद्दी हूँ, तुझे पता है न। चल जल्दी से बता !"
"तुम पहले वादा करो कि तुम किसी को भी नहीं बताओगी !"
"अरे बाबा, मुझ पर भरोसा रखो, मैं किसी को भी नहीं बताउंगी।"
"ये किताबें सोनू लेकर आता है।'
" हे भगवान् .." अनीता दीदी के मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई," तू सच कह रही है ? सोनू लेकर आता है ?"
नेहा उनकी शकल देख रही थी,"तुम इतना चौंक क्यूँ रही हो दीदी ?"
अनीता दीदी ने एक लम्बी साँस ली और कहा," यार, मैं तो सोनू को बिलकुल सीधा-साधा और शरीफ समझती थी। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि वो ऐसी किताबें भी पढ़ता है।"
" इसमें कौन सी बुराइ है दीदी, आखिर वो भी मर्द है, उसका भी मन करता होगा !"
" हाँ यह तो सही बात है !" दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा," लेकिन एक बात बता, ये किताब पढ़कर तो सारे बदन में हलचल मच जाती है, फिर तुम लोग क्या करते हो ? कहीं तुम दोनों आपस में ही तो.......??"

अनीता दीदी की आवाज़ में एक अजीब सा उतावलापन था। उन्हें शायद ऐसा लग रहा था कि हम भाई-बहन आपस में ही चुदाई का खेल न खेलते हों।
इधर उन दोनों की बातें सुनकर मेरी आँखों की नींद ही गायब हो गई। मैंने अब हौले से अन्दर झांका और उन्हें देखने लगा। वो दोनों बिस्तर पर एक दूसरे के साथ लेटी हुई थी और दोनों पेट के बल लेट कर एक साथ किताब को देख रही थीं।
तभी दीदी ने फिर पूछा," बोल न नेहा, क्या करते हो तुम दोनों ?" अनीता दीदी ने नेहा की बड़ी बड़ी चूचियों को अपने हाथो से मसल डाला।
" ऊंह, दीदी....क्या कर रही हो ? दर्द होता है.." नेहा ने अपने उरोजों को अपने हाथों से सहलाया और अनीता दीदी की तरफ देख कर मुस्कारने लगी।
अनीता दीदी की आँखों में एक शरारत भरी चमक थी और एक सवाल था.... नेहा ने उनकी तरफ देखा और कहा," आप जैसा सोच रही हैं वैसा नहीं है दीदी। हम भाई-बहन चाहे जितने भी खुले विचार के हों, पर हमने आज तक अपनी मर्यादा को नहीं लांघा है। हमारा रिश्ता आज भी वैसे ही पवित्र है जैसे एक भा बहन का होता है।"
यह सच भी है, हम भाई-बहन ने कभी भी अपनी सीमा को लांघने की कोशिश नहीं की थी। खैर, अनीता दीदी ने नेहा के गलों पर एक चुम्बन लिया और कहा," मैं जानती हूँ नेहा, तुम दोनों कभी भी ऐसी हरकत नहीं करोगे।"
"अच्छा नेहा एक बात बता, जब तू यह किताब पढ़ती है तो तुझे मन नहीं करता कि कोई तेरे साथ कुछ करे और तेरी चूत को चोद-चोद कर शांत करे, उसकी गर्मी निकाले ?" अनीता दीदी के चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे जो मैंने कभी भी नहीं देखा था। उनकी आँखे लाल हो गई थीं।
"हाय दीदी, क्या पूछ लिया तुमने, मैं तो पागल ही हो जाती हूँ। ऐसा लगता है जैसे कहीं से भी कोई लंड मिल जाये और मैं उसे अपनी चूत में डाल कर सारी रात चुदवाती रहूँ !"
"फिर क्या करती हो तुम ?"
नेहा ने एक गहरी सांस ली और कहा," बस दीदी, कभी कभी ऊँगली या मोमबत्ती से काम चला लेती हूँ !"
दीदी ने नेहा को अपने पास खींच लिया और उसके होठों पर एक चुम्मा धर दिया। नेहा को भी अच्छा लगा। दोनों ने एक दूसरे को पकड़ लिया और सहलाना शुरू कर दिया।
यहाँ बाहर मेरी हालत ऐसी हो रही थी जैसे मैं तेज़ धूप में खडा हूँ, मैं पसीने पसीने हो गया था और मेरे लंड की तो बात ही मत करो एक दम खड़ा होकर सलामी दे रहा था। मैंने फिर उनकी बातें सुननी शुरू कर दी।
तभी अचानक मैंने देखा कि अनीता दीदी ने नेहा की टी-शर्ट के अन्दर अपना हाथ डाल दिया और उसकी चूचियों को पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। नेहा को बहुत मज़ा आ रहा था। उसके मुँह से प्यार भरी सिस्कारियां निकल रही थी।
"ऊफ दीदी....मुझे कुछ हो रहा है......आपकी उँगलियों में तो जादू है।"
फिर अनीता दीदी ने पूछा," अच्छा नेहा एक बात बता, तूने कभी किसी लण्ड से अपनी चूत की चुदाई करवाई है क्या ?"
"नहीं दीदी, आज तक तो मौका नहीं मिला है। आगे भगवान् जाने कौन सा लण्ड लिखा है मेरे चूत की किस्मत में।" नेहा अपनी आँखें बंद करके बाते किये जा रही थी," दीदी, तुमने तो खूब चुदाई करवाई होगी अपनी, बहुत मज़े लिए होंगे जीजाजी के साथ.... बताओ न दीदी कैसा मज़ा आता है जब सचमुच का लण्ड अन्दर जाता है तो ....?"
"यह तो तुझे खुद ही महसूस करना पड़ेगा मेरी बन्नो रानी.... इस एहसास को शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है..."
"हाय दीदी मुझे तो सच में जानना है कि कैसा मज़ा आता है इस चूत की चुदाई में .... तुमने तो बहुत मज़े किये है जीजाजी के साथ, बोलो न कैसे करते हो आप लोग? क्या जीजा जी आपको रोज़ चोदते हैं?"
तभी अनीता दीदी थोड़ा सा उदास हो गई और नेहा की तरफ देख कर कहा,"अब तुझे क्या बताऊँ, तेरे जीजा जी तो पहले बहुत रोमांटिक थे । मुझे एक मिनट भी अकेला नहीं छोड़ते थे। जब भी मन किया मुझे जहाँ मर्ज़ी वहा पटक कर मेरी चूत में अपना लंड डाल देते थे और मेरी जमकर धुनाई करते थे।"
"क्या अब नहीं करते ?" नेहा ने पूछा।
"अब वो पहले वाली बात नहीं रही, अब तो तेरे जिज्जाजी को टाइम ही नहीं मिलता और मैं भी अपने बच्चों में खोई रहती हूँ। आज कल तेरे जिज्जाजी मुझे बस हफ़्ते एक या दो बार ही चोदते हैं वो भी जल्दी जल्दी से, मेरी नाइटी उठा कर अपना लंड मेरी चूत में डाल कर बस १० मिनट में ही लंड का माल चूत में झाड़ देते हैं।"
यह बात सुनकर मेरा दिमाग ठनका। मैंने पहले कभी भी अनीता दीदी को सेक्स की नज़रों से नहीं देखा था। अब मेरे दिमाग में कुछ शैतानी घूमने लगी। मैं मन ही मन उनके बारे में सोचने लगा....। ऐसा सोचने से ही मेरा लंड अब बिल्कुल स्टील की रॉड की तरह खड़ा हो गया।
अनीता दीदी को उदास देख कर नेहा ने उनके गालों पर एक चुम्मा लिया और कहा," उदास न हो दीदी, अगर मैं कुछ मदद कर सकूँ तो बोलो। मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी, मेरा वादा है तुमसे।"
दीदी हल्के से मुस्कुराई और कहा," मेरी प्यारी बन्नो, जब जरूरत होगी तो तुझसे ही तो कहूँगी, फिलहाल अगर तू मेरी मदद करना चाहती है तो बोल !"
"हाँ हाँ दीदी, तुम बोलो मैं क्या कर सकती हूँ ?"
"चल आज हम एक दूसरे को खुश करते हैं और एक दूसरे का मज़ा लेते हैं...." नेहा थोड़ा सा मुस्कुराई और अनीता दीदी को चूम लिया।
अनीता दीदी ने नेहा को बिस्तर से उठने के लिए कहा और खुद भी उठ गई। दोनों बिस्तर पर खड़े होकर एक दूसरे के कपड़े उतारने लगी। नेहा की पीठ मेरी तरफ थी और अनीता दीदी का चेहरा मेरी तरफ। नेहा ने अनीता दीदी की नाईटी उतार दी और दीदी ने उसकी टी-शर्ट।
हे भगवान् ! मेरे मुँह से तो सिसकारी ही निकल गई, आज से पहले मैंने अनीता दीदी को इतना खूबसूरत नहीं समझा था। वो बिस्तर पर सिर्फ अपनी ब्रा और पैंटी में खड़ी थी। दूधिया बदन , सुराहीदार गर्दन, बड़ी बड़ी आँखें, खुले हुए बाल और गोरे गोरे जिस्म पर काली ब्रा जिसमे उनके 36 साइज़ के दो बड़े बड़े उरोज ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने दो सफेद कबूतरों को जबरदस्त कैद कर दिया हो। उनकी चूचियां बाहर निकलने के लिए तड़प रही थीं। चूचियों से नीचे उनका सपाट पेट और उसके थोड़ा सा नीचे गहरी नाभि, ऐसा लग रहा था जैसे कोई गहरा कुँआ हो। उनकी कमर २६ से ज्यादा किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती। बिल्कुल ऐसी जैसे दोनों पंजो में समां जाये। कमर के नीचे का भाग देखते ही मेरे तो होंठ और गला सूख गया। उनकी गांड का साइज़ ३६-३७ के लगभग था। बिल्कुल गोल और इतना ख़ूबसूरत कि उन्हें तुंरत जाकर पकड़ लेने का मन हो रहा था। कुल मिलाकर वो पूरी सेक्स की देवी लग रही थीं.....
हे भगवान् मैंने आज से पहले उनके बारे में कभी भी नहीं सोचा था।
इधर नेहा के कपड़े भी उतार चुकी थी और वो भी ब्रा और पैंटी में आ चुकी थी। उसका बदन भी कम सेक्सी नहीं था। 32 / 26/ 34...वो भी ऐसी थी किसी भी मर्द के लंड को खड़े खड़े ही झाड़ दे।
"हाय नेहा, तू तो बड़ी खूबसूरत है रे, आज तक किसी ने भी तुझे चोदा कैसे नहीं। अगर मैं लड़का होती तो तुझे जबरदस्ती पटक कर तुझे चोद देती।"
"ओह दीदी, आप के सामने तो मैं कुछ भी नहीं, पता नहीं जिज्जाजी आपको क्यूँ नहीं चोदते .."
"उनकी बातें छोडो, वो तो हैं ही बेवकूफ !" अनीता दीदी ने नेहा की ब्रा खोल दी और नेहा ने भी हाथ बढ़ा कर दीदी की ब्रा का हुक खोल दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
मेरी तो सांस ही रुक गई, इतने सुन्दर और प्यारे उरोज मैंने आज तक नहीं देखे थे। अनीता दीदी के दो बच्चे थे पर कहीं से भी उन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता था कि दो-दो बच्चों ने उनकी चूचियों से दूध पिया होगा....
खैर, अब नेहा की बारी थी तो दीदी ने उसकी ब्रा का हुक भी खोल दिया और साथ ही साथ उसकी पैंटी को भी उसके बदन से नीचे खिसकाने लगी। दीदी का उतावलापन देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें कई जन्मों की प्यास हो।
नेहा ने भी वैसी ही फुर्ती दिखाई और अनीता दीदी के पैंटी को हाथों से निकालने के लिए खींच दिया।
संगेमरमर जैसी चिकनी जांघों के बीच में फूले हुए पावरोटी के जैसे बिल्कुल चिकनी और गोरी चूत को देखते ही मेरे लंड ने अपना माल छोड़ दिया........
मेरे होठों से एक सेक्सी सिसकारी निकली आर मैंने दरवाज़े पर ही अपना सारा माल गिरा दिया.......मेरेमुँह से निकली सिसकारी थोड़ी तेज़ थी । शायद उन लोगों ने सुन ली थी, मैं जल्दी से आकर अपने कमरे में लेट गया और सोने का नाटक करने लगा। कमरे की लाइट बंद थी और दरवाज़ा थोड़ा सा खुला ही था। बाहर हॉल में हल्की सी लाइट जल रही थी जिसमें मैंने एक साया देखा। मैं पहचान गया। यह नेहा थी जो अपने बदन पर चादर डाल कर मेरे कमरे की तरफ ये देखने आई थी कि मैं क्या कर रहा हूँ और वो सिसकारी किसकी थी।
थोड़ी देर वहीं खड़े रहने के बाद नेहा अपने कमरे में चली गई और उसके कमरे का दरवाजा बंद हो गया, जिसकी आवाज़ मुझे अपने कमरे तक सुनाई दी। शायद जोर से बंद किया गया था। मुझे कुछ अजीब सा लगा, क्यूंकि आमतौर पर ऐसे काम करते वक़्त लोग सारे काम धीरे धीरे और शांति से करते हैं। लेकिन यह ऐसा था जैसे जानबूझ कर दरवाजे को जोर से बंद किया गया था। खैर जो भी हो, उस वक़्त मेरा दिमाग ज्यादा चल नहीं पा रहा था। मेरे दिमाग में तो बस अनीता दीदी की मस्त चिकनी चूत ही घूम रही थी।
थोड़ी देर के बाद मैं धीरे से उठा और वापस उनके दरवाज़े के पास गया, और जैसे ही मैंने अन्दर झाँका .
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#18
मैं राएबरेली की रहने वाली हूँ. मैंने इस समय १९ साल की हूँ. मेरे मम्मे अभी जल्दी ही उभर आये है. मैं इस समय बी कॉम फ़ाइनल में हूँ. मेरा छोटा भाई कौशल इस समय १४ साल का है. वो इस बार हाई स्कूल का एग्जाम देगा. दोस्तों मुझे कुछ दिन पहले ही चूत और लंड के खेल में बारे में पता चला. मेरी एक सहेली ने मुझे मोबाइल पर एक जबरदस्त चुदाई वाली फिल्म दिखाई, उसके बाद ही मुझे चूत और लंड के रिश्ते के बारे में पता चला. मेरा चुदने का मन करने लगा, चूत में लंड खाने का मन करने लगा. पर कोई भी लड़का मुझे नही मिला जो मुझे चोद देता. फिर कुछ दिनों बाद मेरे खुराफाती दिमाग में एक नया प्लान आया. क्यूँ न मैं अपने छोटे भाई से ही चुदवा लूँ.
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#19
छोटू!! तुजसे एक जरुरी बात करनी है!’ मैंने कहा

‘क्या है दीदी?? कहो?’ वो बोला

‘भाई क्या तू मुझे चोदेगा?? तुझको बहुत मजा आएगा!’ मैंने कहा

छोटू चुप हो गया. मुझे सही सही नही पता है की उसको चुदाई के बारे में मालूम है की नही. फिर मैंने उसको अपने फोन में चुदाई पिक्चर दीकाई. जो उसे बहुत पसंद आई. हम भाई बहन में गुप्त सेटिंग हो गयी. हमदोनो पढाई वाले कमरे में शाम के समय चुदाई करेंगे, मैंने प्लान बना लिया. शाम को जब मम्मी पापा कही घुमने गये हुए थे, मैं चालू हो गयी. छोटू की पैंट उतार दी. फिर उसका कच्छा उतार दिया. छोटू का लंड बहुत ही सुंदर, बहुत ही क्यूट था. मैंने पहली बार भाई का लंड हाथ में लिया और हाथ से हिलाने लगी.
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#20
‘भाई कुछ हुआ??? कुछ झनझनी हुई???’ मैंने पूछा

‘नही दीदी….कुछ नही हुआ’ छोटू बोला

मैंने उसके लंड को हाथ से पकडके सहलाती रही. फिर हाथ से फेटने लगी. धीरे धीरे छोटू को कुछ कुछ होने लगा.


‘मुमताज दीदी!! मेरे लंड में कुछ हो रहा है. कुछ लग रहा है’ छोटू बोला.

मैं खुश हो गयी और अपने हाथों से जोर जोर से छोटू का लंड फेटने लगी. कुछ देर बाद दोस्तों छोटू का लंड बिलकुल से सीधा खड़ा हो गया. छोटू परेशान था.

‘दीदी ये मेरे लंड में क्या हुआ??? कहीं कोई बीमारी तो नही हो गयी??” छोटू परेशान होकर बोला

‘अरे नही पगले! तेरा लंड तो खड़ा हो गया है. इसे लंड खड़ा कहना कहते है. अब तू मुझे चोद पाएगा’’ मैंने कहा और मैं नंगी ही गयी. मैं घर में स्कर्ट पहनती थी. मैंने अपनी स्कर्ट और पजामी उतार दी. मैंने अपनी चड्ढी भी उतार दी. मेरा प्यारा छोटा भाई छोटू मेरे मस्त मस्त मम्मे सहलाने लगा. मैंने उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी. मेरे होठ बहुत ही सुंदर थे. इससे ही मैं भाई के लौड़े को चूस रही थी. छोटू जमीन पर खड़ा हुआ था. जबकि मैं घुटनों के बल फर्श पर बैठी थी. फिर दोस्तों मैं छोटू के लंड को हाथ में ले लिया और मल मलकर चूसने लगी. आज १४ साल का मेरा भाई मुझे चोदने वाला था. मैं भगवान से मनाने लगी की सब कुछ ठीक हो. भाई मुझे अच्छे से चोद पाए. क्यूंकि आज मेरा और उसका दोनों का पहला चांस था. मैं सर को आगे पीछे कर रही थी और छोटू का खूबसूरत लंड चूस रही थी. फिर जब उसका लंड टपकने लगा और माल छोड़ने लगा तो मैं जान गयी की अब वो मुझे चोद देगा.

‘भाई!! आजा, अब मेरी चुचि पी!!’ मैंने छोटू से कहा

‘दीदी !! क्या हर लड़का किसी जवान चुदासी लकड़ी की चुचि पीता है??” छोटू ने पूछा
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