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23-10-2019, 04:36 PM
(This post was last modified: 23-10-2019, 05:48 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.
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)
विपरीत रति
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
Quote:उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
बिहारी सतसई
..........................
कुछ देर तड़पाने के बाद मैंने अपने निप्स नीचे करके उनके लिप्स के पास ,
लेकिन टच जस्ट एक टच , और फिर मैंने ऊपर हटा लिया और उन्हें छेड़ना शुरू कर दिया ,
" हे लोगे , ... "
" हाँ दो न , ... "
बहुत तड़प रहा था बेचारा।
" मैं इसकी नहीं उसकी बात कर रही हूँ , "
अपने हाथों से मैं अपने निप्स फ्लिक करती बोली ,
समझ तो वो गए थे लेकिन शरमा रहे थे , ....
' जिसकी छोटी छोटी है , एलवल में रहती है , ... तुम्ही तो कहते थे की उसकी अभी छोटी है , बोल लेगा न ,... "
वो एकदम शरम से बीर बहूटी ,...
" अच्छा चल ये तो बता दे , किसके बारे में बोल रही हूँ , .. बोल न ,... "
अब मुश्किल से बोल फूटे उनके ,
" गुड्डी की ,... "
"गुड्डी की क्या ,.. "
मैंने और चिढ़ाया
" गुड्डी की ,... "
वो हिचक रहे थे लेकिन जैसे मैं उन्हें देख रही थी , वो समझ गए की रात भर वो तड़पेंगे लेकिन मैं दूंगी नहीं , ... और बूब्स और उभार बोलने से काम नहीं चलेगा
' बोलो न ,.. " मैं फिर बोली और उन्हें बोलना पड़ा ,
"गुड्डी की चूँची "
यही तो मैं चाहती थी , एक बार अपनी ममेरी बहन के बारे में ऐसा बोलना शुरू कर दें , फिर तो सोचना और उसके बाद ,...
बस मारे ख़ुशी के मैंने उन्हें इनाम दे दिया ,
मेरी निप्स सीधे उनके लिप्स के बीच ,
जैसे पहली बार लिक कर रहे हों , ऐसे चाट चूस रहे थे थे , ...
उनका मुंह बंद था लेकिन मेरा तो खुला था , उनके बाल बिगाड़ते , अपने लम्बे नाख़ून उनके गाल पे चुभाते मैं बोली ,
' उफ़ उफ़्फ़ , कैसे चूसते हो , ... ओह्ह ,.. चलो ऐसे ही उसकी कच्ची अमिया भी कुतरवाउंगी , बहुत जल्दी ,.. सच में बहुत मज़ा आएगा मेरे बालम को
ननद के , कच्चे टिकोरों में ,... "
फिर तो जैसे उनके तन बदन में आग लग गयी हो जैसे , खूंटा उनका खड़ा था और मेरी गुलाबो सीधे उसके ऊपर ग्राइंड कर रही थी ,
मैं बहुत तड़पी थी इस मोटे मूसलचंद के लिए , और अब मैं तड़पा रही थी।
मैंने गुलाबो की दोनों फांके थोड़ी अलग की अपनी ऊँगली से और एक बार फिर सीधे खड़े बौराये सुपाड़े पर , बहुत हलका सा अंदर घुसा ,
और था भी वो कितना मोटा , पहाड़ी आलू ऐसा ,
उनका तो पता नहीं लेकिन मैं पागल हो गयी , सुपाड़े के टच से , पर मैंने अपने पर कंट्रोल किया और बस वैसे ही , हलके हलके ,
पागल वो भी हो रहे थे , नीचे से उचक रहे थे , उचका रहे थे ,
पर मैंने कस के अपने दोनों हाथों से उनके कन्धों को दबोच रखा था
और हलके हलके अपनी गुलाबो को उनके आधे घुसे हुए सुपाड़े पर भींच रही थी उसे दबोच रही थी , उन्हें देख कर मुस्करा रही थी ,
और उनकी आँखों में जबरदस्त प्रणय निवेदन था किसी तरह मैं और , पूरा अंदर ,...
मन तो मेरा भी यही कर रहा था , और मैंने अपनी पूरी ताकत से अपनी देह को उनके ऊपर दबाया ,
और मुझे अहसास हुआ कितनी ताकत लगती होगी पूरा सुपाड़ा अंदर ठेलने में
और लेकिन अब वो भी साथ दे रही थी , और मैं उन्हें नहीं रोक भी रही थी , दो तीन धक्कों के बाद ,
पूरा सुपाड़ा मेरी रसमलाई ने घोंट लिया।
और अब मैदान उन्होंने सम्हाल लिया था ,
उनके दोनों हाथ मेरी पतली कमर पर कस के पकडे जकड़े , ... मुझे वो अपनी ओर खींच रहे थे
मैं भी उन्हें पकड़ के अपनी पूरी ताकत से अपने को उस मोटे मूसलचंद के ऊपर ,..
सूत सूत कर वो अंदर जा रहा था , ...
था भी तो वो मोटा बांस बहुत लम्बा , पूरे मेरे बित्ते की साइज का ,
मेरी और उनकी दोनों की पूरी ताकत के बाद भी सुपाड़े के बाद मुश्किल से एक डेढ़ इंच घुस पाया होगा ,
आधे से ज्यादा अभी भी बाकी था ,
अब मुझसे नहीं रहा जा था , ...
मेरी आँखों ने उनकी आँखों से बिन बोले कुछ कहा ,
और उनकी आँखे तो शादी के पहले से ही बिन बोले मेरी आँखों की हर बात समझ लेती थीं , बस
अगले ही पल , वो ऊपर , मैं नीचे ,... एक पल के लिए वो रुके ,
सच में देखने में बात करने में वो लड़का जितना भी अनाड़ी लगे , लेकिन था पूरा खिलाड़ी ,...
एक सूत भी जो बाहर सरका हो ,
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बलमा अनाड़ी पक्का खिलाड़ी
अगले ही पल , वो ऊपर , मैं नीचे ,... एक पल के लिए वो रुके ,
सच में देखने में बात करने में वो लड़का जितना भी अनाड़ी लगे , लेकिन था पूरा खिलाड़ी ,... एक सूत भी जो बाहर सरका हो ,
और फिर पूरे बिस्तर पर के तकिये कुशन , मेरे हिप के नीचे ,... मेरी दोनों टाँगे खूब फैली , उस दुष्ट के कंधे पर ,
मैं समझ गयी थी क्या होने वाला है , .... मैंने कस के चादर को दोनों हाथों से पकड़ लिया , आँखे भींच ली , ...
और और और
रोकते रोकते ही मेरी जोर की चीख निकल गयी ,
पहला धक्का ही और सीधे सुपाड़े का करारा धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पर , पूरा का पूरा साढ़े आठ इंच मेरे अंदर ,
जिस तरह रगड़ते दरेरते वो मेरी चूत फाड़ते अंदर घुसा था , जान नहीं निकली थी मेरी बस ,
दर्द से भी , मजे से भी।
कुछ सेकेण्ड के लिए रुके होंगे वो बस , जब तक मैं चीख रही थी , चिल्ला रही थी , और फिर उनके होंठ मेरे पलकों पर ,
समझ गयी बात मैं उनकी , शर्माने की नहीं होती , आँख खोलना ही पड़ा मुझे ,
और उनकी खुश , नाचती गाती मुस्कराती आँखो को देख कर मेरी आँखे एक बार फिर शर्मा कर बंद हो गयीं।
पर उस शैतान लड़के के तरकश में कोई एक ही तीर था क्या , ...
उसके लालची होंठ बाज से कम नहीं थे , सीधे मेरे जोबन पर मेरे झप्पटा मारा ,
और जिस तरह से उसकी जीभ मेरे फ्लिक कर रही थी , मैं एक बार फिर सिसकने लगी ,
मूसल अभी भी पूरा अंदर धंसा घुसा था। और पता नहीं कहाँ से क्या क्या सीखते थे वो , उस मूसल का बेस , मेरी गुलाबो के मुहाने पर ,
बस सीधे मेरे जादू के बटन पर ,
बस मैं जोर जोर से सिसकने लगी , बिना हाथ लगाए उस लड़के ने तिहरा हमला कर दिए , मेरे जोबन और क्लिट के साथ साथ , सीधे मेरी बच्चेदानी पर
मैं कसमसा रही थी , सिसक रही थी हलके हलके अपने छोटे छोटे किशोर चूतड़ उचका रही थी ,
बस धीमे धीमे उन्होंने अपने काम दंड को बाहर निकाला और उस समय भी मेरी त्वचा से रगड़ते , ... क्या कहूं ,...
मैंने कस के उन्हें अपनी बाँहों में भींच लिया मेरे नाखून उनके कन्धों में धस गए ,
मैं खुद अपने उभार उनके सीने में रगड़ने लगी ,
बस फिर तूफ़ान आ गया , हर दूसरा धक्का , पहले वाले से और जोर से , हर बार आलमोस्ट सुपाड़े तक निकाल के वो कस कस के ठेल रहे थे , पेल रहे थे
दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी , पर मेरी देह अब मेरी थी क्या , ....
मैं हर धक्के पर उनका साथ दे रही थी , उन्हें अपनी ओर खींच कर भींच कर ,
अपनी देह उनकी देह से रगड़ते हुए ,
और अब हम दोनों के होठ एकदम लॉक्ड थे ,कभी मेरी जीभ उनके मुंह में तो कभी उनकी जीभ मेरे मुंह में ,
जो लोग कहते हैं , लड़कों के पास सिर्फ एक सेक्सुअल पार्ट होता है , वो एकदम गलतहोते हैं ,
उनकी उँगलियाँ , जीभ , होंठ और सबसे बढ़कर आँख , ...
और इस समय उस काम के रूप ने , पुष्प धन्वा ने अपने सारे तीर एक साथ , और वही हुआ जो होना था
आठ दस मिनट के बाद ,
मेरी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह काँप रही थी , मैं एकदम उनकी देह से चिपकी
डिस्चार्ज हो रही थी , झड़ रही थी , एक बार नहीं बार बार, बार बार
उन्होंने अपने धक्के रोक दिया , पर उँगलियाँ होंठ उसी तरह ,
कुछ चुम्बनों का असर ,
कुछ मेरी कोमल कोमल चूँची की कस कस के हो रही रगड़ाई मसलाई का असर , मैं बस दो चार मिनट में एक बार फिर से ,...
और अबकी उन्होंने मुझे दुहरा कर दिया , एक बार अपना मूसल बाहर निकाल के फिर सेट कर दिया ,
पहली बार वाला तो कुछ नहीं था ,
अबकी जो धक्के उन्होंने मारे , मेरी चीख की वो कोई परवाह नहीं कर रहे थे ,
वो जानते थे थोड़ी देर में मेरी चीखे सिसकियों में बदल जाएंगी , और हुआ वही।
मैं एक बार फिर उनका साथ दे रही थी , और अबकी मैं झड़ी तो मेरे साथ वो भी ,
कटोरी भर थक्केदार मलाई ,
मेरी गुलाबी कटोरी भर कर छलक गयी ,
मलाई मेरी जांघों पर छलक गयी ,
पर न उन्हें फरक पड़ रहा था न मुझे ,
मुझे मालूम था हजार किलोमीटर से भी ज्यादा चल कर ये लड़का इसी लिए तो आया था।
और अब तक न मैंने पूछा न उसने बताया की कैसे बंगलौर से वो आया ,
उस समय तो बस एक तूफ़ान मचा था , और अब तूफ़ान थमा तो मैं उनके चौड़े सीने पर रखे ,
थोड़ी देर तक तो मैं उन्हें देखती रही और वो मुझे , फिर मुझे अचानक ख्याल आया
" हे आये कैसे , ... "
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23-10-2019, 06:23 PM
(This post was last modified: 23-10-2019, 06:39 PM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
....एकदम पागल
फिर मुझे अचानक ख्याल आया
" हे आये कैसे , ... "
वो बस मुस्करा दिए , ... और मेरा गाल सहलाने लगे।
" बोल न यार ,... "
मैंने बहुत जोर दिया और तब उन्होंने पूरा किस्सा सुनाया।
शनिवार को हाफ डे होता है तो उन्होंने एक फ्लाइट बुक की थी , बनारस की डायरेक्ट फ्लाइट थी बैंगलोर से शाम चार बजे की , ...
साढ़े छह तक वो बनारस पहुँच जाते पर १२ बजे मालूम हुआ की वो फ्लाइट कैंसल हो गयी।
और साढ़े बारह से पहले कैम्पस से निकल भी नहीं सकते थे ,... लेकिन चार बजे की उन्हें दिल्ली की फ्लाइट मिल गयी बस , ...
वो फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आये और साढ़े छह बजे वहां से बनारस की एक फ्लाइट दौड़ते भागते उन्होंने पकड़ी।
सवा आठ बजे बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचे , वहां से टैक्सी पकड़ कर ,
लेकिन रस्ते में एक दो जगह बहुत जाम था , तो सवा ग्यारह बजे आज़मगढ़।
ये लड़का भी न एकदम पागल है , ...
मैं बस यही सोच रही थी ,
तभी वो मुस्कराने लगे , और मैंने जोर से चिकोटी काटी तब असली बात बताई उन्होंने।
बंगलौर एयर पोर्ट पांच किलोमीटर रह गया था और उनकी टैक्सी ख़राब हो गयी थी ,
बोर्डिंग बंद होने में बस बीस मिनट रह गए थे , डेढ़ किलोमीटर तो वो पैदल दौड़ते हुए ,
फिर एक बाइक वाले से लिफ्ट मिली। जब ऐयरपॉर्ट पहंचे तो बस ४५ मिनट बचे थे। बोर्डिंग बंद हो रही थी।
तुम भी न , एकदम पागल हो।
मैं उनसे लिपट गयी और चूमते बोली।
पर वो भी न , बदमाशी का मौका मिल जाए , कस के चूम के बोले ,
" और पागल बनाया किसने " .
मैं छुड़ाते बड़े इतरा के बोली , ...
' वो तो है। "
और तभी मुझे कुछ याद आया , ...
"कैम्पस से कब निकले थे , "मैंने पूछा।
साढ़े बारह बजे , ... जैसे क्लास क्लोज हुआ। तुम्हे मालूम है एयरपोर्ट कितना दूर है , चार की फ्लाइट थी तो ढाई बजे पहुंचना था , और दो घंटा कम से कम लगता है वहां से , ऊपर से टैक्सी खराब हो गयी , लेकिन सवा तीन बजे ,... पहुँच गए।
उन्होंने कबूला।
"और खाना , ... साढ़े बारह बजे तो खाना मिलता नहीं होगा?"
मैंने फिर पूछा।
" यार ब्रेकफास्ट जम के किया था न , ... खाने के चक्कर में पड़ता तो फ्लाइट छूट जाती। " वो हँसते हुए बोले। \
"और मुझे मालूम है न तुमने फ्लाइट में कुछ खाया होगा न ,... "
पर मेरी बात काटते वो बोले ,
" बोला तो ब्रेकफास्ट कस के किया था , और फ़्लाइट सब सिर्फ पानी वाली थीं , फिर ये डर लग रहा था की कहीं कनेक्टिंग फ्लाइट छूट न जाए , ... और बाबतपुर में उतर के बस दौड़ते भागते ,... एक ही दो टैक्सी रहती हैं वहां , ... लेकिन देखो बारह बजे के पहले पहुँच गया। "
उन्होंने कबूल किया और जैसे अपनी सफलता का ऐलान किया ,
लेकिन मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।
ये भी कोई बात हुयी , सुबह आठ साढ़े बजे के बाद , एक दाना पेट में नहीं ,...
ब्रेकफास्ट के बाद न लंच न डिनर न शाम को कुछ ,... और भागते दौड़ते ,...
वो समझ गए , मुझे पुचकारते , चूमते बोले ,
" तुम भी न बेकार परेशान हो रही हो , ... देख अभी तो जबरदस्त दावत हो गयी न। "
ये लड़का न इससे तो गुस्सा होना भी मुश्किल , और उनकी आंखे , जिस तरह से वो देखते थे , ...
मैं मुस्करा पड़ी , लेकिन बोली ,
" ठीक है दावत हो गयी लेकिन अभी इसका, भी कुछ इंतजाम करती हूँ मैं ,... "
और उनके पेट को चूम कर के मैं उठ गयी।लेकिन इतने आसानी से वो लड़का छोड़ने वाला नहीं था ,
उन्होंने कस के हाथ पकड़ के अपनी ओर मुझे खींच लिया।
मैं समझ रही थी , मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था , लेकिन सुबह से ये बेचारा एकदम भूखा , ...
मैंने छुड़ाते हुए नीचे देखा , ... वो मूसलचंद , एक बार फिर थोड़ा सोया , थोड़ा जागा ,... एक बार फिर कुनमुना रहा था।
बस मैंने उसे ही पकड़ा , और सीधे खुले सुपाड़े पर एक पुच्ची लेते उसे समझाया ,
" बस आ रही हूँ , अरे यार बिना पेट्रोल डीजल के गाडी नहीं चलती , बस एक बार टंकी फुल कर दूँ , इस लड़के की , ... फिर मैं कहीं नहीं जाने वाली। "
जवाब उन्होंने दिया , एकदम बेताब बेकरार , ...
" जल्दी आना , ... " वो बोले।
फर्श पर उनके कपडे फैले थे , उसे समेटते बोली , ...
" बस दस मिनट "
" नहीं नहीं , पांच मिनट बस ,... मुझे एकदम भूख नहीं है "
वो लड़का बोला।
मुझे अच्छी तरह मालुम था जनाब को किस चीज की भूख है।
उनके कपडे उठा के मैंने बाथरूम में रखे , और अपनी नाइटी बस फर्श से उठा कर देह पर टांग लिया ,
और उनकी ओर मुड़ के बोली ,
ठीक बस पांच मिनट , अभी गयी , अभी आयी। और मुझे मालूम है तुझे किस चीज़ की भूख है , बस गयी आयी ,
उनके कपडे तो मैंने सब टांग दिए थे बस एक चादर पतली सी उन्हें उढ़ा दी , और दरवाजा उठँगा कर सीधे सीढ़ी से नीचे ,
लेकिन किचेन में पहुँचते ही मुझे अंदाज हो गया ,... कुछ नहीं मिलने वाला।
असल में सासू जी का व्रत था ,...
बस मैंने और जेठानी जी ने एक पिज्जा मंगा कर खा लिया था। सुबह का भी कुछ नहीं था। फ्रिज मैंने अच्छी तरह खोल कर देख लिया।
,..
और उस लड़के ने पांच मिनट की शर्त भी लगा दी थी , कुछ बनाने का टाइम नहीं था ,
ऊपर से मैं एकदम दबे पाँव ,... ज्यादा खड़खड़ होती तो सासू जी , जेठानी के जग जाने का खतरा , और फिर पूछ ताछ ,...
और अगर मैं कह देती की वो आये हैं , तो सासू जी अपने बेटे से मिलने कही ऊपर चली जातीं तो,
किचेन की मैंने लाइट भी नहीं जलाई , बस फ्रिज खोल के उसी की लाइट में किचेन में , ...
दूध था थोड़ा सा बस उसे मैंने औटाने के लिए चढ़ा दिया , वो गर्म हो गया तो कुछ केसर उसमें डाल दी। पर आधे ग्लास दूध से क्या होना था
सच में एकदम पागल लड़का , ... सुबह से कुछ नहीं खाया जनाब ने ,...
कुछ समझ में नहीं आ रहा था , तभी याद आया सासू जी का व्रत था ,
उन के लिए रबड़ी आयी थी , व्रत तोड़ने के लिए , शाम को उन्होंने खायी थी। बाकी काफी रबड़ी बची हुयी रखी थी ,
लेकिन एक और प्रॉब्लम ,
रबड़ी उनको पसंद नहीं थी।
सिर्फ नापंसद नहीं थी , बल्कि सख्त नापसंद , मैंने देखा था रिसेप्शन वाले दिन , उनकी इमरती की प्लेट में किसी ने जरा सा एक आधी चमच रबड़ी डाल दी ,
बस प्लेट उन्होंने जस की तस छोड़ दी।
मैं फ्रिज के सामने खड़ी देख रही थी ,
एक बड़े से बाउल में रबड़ी रखी थी , एकपाव से ज्यादा ही थी। पांच सौ ग्राम आयी थी , सासू जी ने थोड़ी सी ही खायी थी बाकी सब बची थी।
क्या करूँ , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर मैंने तय कर लिए , कोमल अब ये लड़का क्या पसंद करता है क्या नापसंद , उसको नहीं तय करना है , ये कोमल तय करेगी।
मैं मुस्करायी , उनकी नो नो वाली पूरी लिस्ट मेरे दिमाग में घूम गयी।
बस मैंने ड्राई फ्रूट वाले डिब्बे खोले , और कतरे हुए काजू , बादाम , पिस्ता, केसर ,...
और तभी मुझे एक और डिब्बा दिख गया बड़ा छोटा सा और मेरे चेहरे पर हंसी दौड़ गयी , मंझली ननद ने उस डिब्बे का राज बताया था ,
जो रोज रात को सुहाग रात के पहले दिन से हमारे कमरे में दूध रखा जाता था , उसमें ये ,... पता नहीं क्या क्या हर्ब्स थीं , ... शिलाजीत , अस्तावर , ... मंझली ननद ने बताया तो हम दोनों हँसते हुए लोट पोट हो गए
' शक्तिवर्धक , वीर्यवर्धक , कामोत्तेजक , मदन चूर्ण '
मैंने एक मिटटी का बड़ा सा सकोरा उठाया और पहले सबसे नीचे वही उसी डिब्बे से , ढेर सारी ,
और फिर बाउल से रबड़ी , और उसके ऊपर कतरे काजू बादाम , केसर , पिस्ता और फिर उसी हर्ब वाले डिब्बे से और ढेर सारा छिड़क दिया , ...
मैंने बस एक सावधानी बरती , एक अल्युमिनियम फ्वायल से उसे कवर कर लिया ,
फिर वो दूध वाला ग्लास और मिटटी का रबड़ी से भरा सकोरा लेकर दबे पांव ऊपर कमरे में ,...
कमरे में घुसते ही पहले मैंने ट्रे अंदर मेज पर रखा और दरवाजा बंद कर लिया।
बेताब , बेसबरा , उनका चेहरा एकदम , .... भुकरा बोले ,
पूरे आठ मिनट हो गए हैं।
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कोई बात नहीं । सैंया जी को बोलिए कि एकदम आपकी तरह चिकना हाईवे बन रहा है बनारस टू आजमगढ़ । अब ज्यादा टाइम नहीं लगेगा ।
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विपरीत रति
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
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कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
Quote:
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
[Image: WOT-DZUY1-GZX4-AAdo-p.jpg]
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
इस तरह की quote सिर्फ आप ही दे सकती है।
धन्यवाद आपका, हमारे ज्ञान वर्धन के लिए।
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pyas to kis chij ki hoti hai bhuk kis chij ki hoti hai yeh tumse accha kaunjansakega komal ji bahto acceh se aj rahi ho ekdam hame pagal kar ke chodegi apa us ladke ki tarah
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tarrannum agar kahani mein dekhna ho to bas tum hi ho tum hi ho :love:
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(24-10-2019, 11:01 AM)anwar.shaikh Wrote: pyas to kis chij ki hoti hai bhuk kis chij ki hoti hai yeh tumse accha kaunjansakega komal ji bahto acceh se aj rahi ho ekdam hame pagal kar ke chodegi apa us ladke ki tarah
thanks so much
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(23-10-2019, 08:39 PM)roxanne_lara Wrote: कोई बात नहीं । सैंया जी को बोलिए कि एकदम आपकी तरह चिकना हाईवे बन रहा है बनारस टू आजमगढ़ । अब ज्यादा टाइम नहीं लगेगा ।
अच्छी खबर सुनाई आपने
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(24-10-2019, 08:45 PM)rajeshsarhadi Wrote: tarrannum agar kahani mein dekhna ho to bas tum hi ho tum hi ho :love:
aap gayab kahan ho gaye the pahale ye batatiye
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27-10-2019, 08:04 AM
(This post was last modified: 27-10-2019, 08:06 AM by Black Horse. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
ॐ गणेशाय नमः ||लक्ष्मीजी और गणेशजी की कृपा से आपको कामयाबी, सुख, शान्ति और समृद्धि प्रदान हो।
शुभ दीपावली
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(27-10-2019, 08:04 AM)Black Horse Wrote: ॐ गणेशाय नमः ||लक्ष्मीजी और गणेशजी की कृपा से आपको कामयाबी, सुख, शान्ति और समृद्धि प्रदान हो।
शुभ दीपावली
पर्व र्है पुरुषार्थ का,
दीप के दिव्यार्थ का।
देहरी पर दीप एक जलता रहे,
अंधकार से युद्ध यह चलता रहे।
हारेगी हर बार अंधियारे की घोर-कालिमा,
जीतेगी जगमग उजियारे की स्वर्ण-लालिमा।
दीप ही ज्योति का प्रथम तीर्थ है,
कायम रहे इसका अर्थ, वरना व्यर्थ है।
आशीषों की मधुर छांव इसे दे दीजिए,
प्रार्थना-शुभकामना हमारी ले लीजिए।
झिलमिल रोशनी में निवेदित अविरल शुभकामना,
आस्था के आलोक में आदरयुक्त मंगल भावना।
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(27-10-2019, 08:57 AM)komaalrani Wrote:
ऐसे पटाखे चलाने के लिए तो मैं हर वक़्त तैैैयार हूँ।।
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(27-10-2019, 12:35 PM)Rocksanna999 Wrote: ऐसे पटाखे चलाने के लिए तो मैं हर वक़्त तैैैयार हूँ।।
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(27-10-2019, 12:35 PM)Rocksanna999 Wrote: ऐसे पटाखे चलाने के लिए तो मैं हर वक़्त तैैैयार हूँ।।
Come let us celebrate together
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(24-10-2019, 10:58 AM)Black Horse Wrote: विपरीत रति
स्मर-समरोचित-विरचित-वेशा।
गलित-कुसुम-वर-विलुलित-केशा
शोभित है युवती री कोई।
हरि से विलस रही जो खोई॥
[Image: WOT-Lunge-Sex-Position-Illustration.png]
कोई सुन्दर रमणी काम-संग्राम के अनुकूल वेश धारण कर मधुरिपु के साथ विलास कर रही है। रतिक्रीड़ा में उसके केशपाश ढीले होकर इधर-उधर लहरा रहे हैं, उसमें से ग्रंथित पुष्प भी झर गये हैं।
स्मरसमर-रतिकेलि को स्मर-समर कहा गया है। रतिक्रीड़ा में रति-विमर्दन आदि क्रिया होती है, जिससे नायिका का कबरी बन्धन खुल जाता है, उसमें सन्निहित पुष्प झर जाते हैं, विशृंखलित हो जाते हैं।
........
समरति में स्त्री वीर्य धारण कर गर्भवती होती है। विपरीत रति में पुरुष उर्ध्वरेता हो ब्रह्मपद प्राप्त करता है। आसन के अर्थ में विपरीत रति कामशास्त्रियों की सूझ होगी। उसके सौंदर्य पक्ष को स्वीकार करते हुए भी कवियों ने विपरीत रति के आध्यात्मिक संकेत ही दिए हैं।
Quote:
उरसि मुरारे उपहितहारे धन इव तरल बलाके
तडिदिवपीते रतिविपरीते राजसि सुकृत विपाके।।
[Image: WOT-DZUY1-GZX4-AAdo-p.jpg]
बिनती रति बिपरीत को करो परसि पिय पाइ।
हँसि अनबोलैं ही दियौ ऊतरु दियौ बुताइ॥341॥
परसि = स्पर्श कर, छूकर। प्रिय = प्रीतम। पाइ = पैर। अनबोलैं ही = बिना कुछ कहे ही। ऊतरु दियो = जवाब दिया। दियौ बुताइ = दीपक बुझाकर।
प्रीतम ने (नायिका के) पैर छूकर विपरीत रति के लिए विनती की। (इस पर नायिका ने) बिना कुछ मुँह से बोले ही (केवल) हँसकर दीपक बुझाकर उत्तर दे दिया (कि मैं तैयार हूँ, लीजिए-चिराग भी गुल हुआ!)
मेरे बूझत बात तूँ कत बहरावति वाल।
जग जानी बिपरीत रति लखि बिंदुली पिय भाल॥342॥
कत = क्यों। बहरावति = बहलाती है, चकमा देती है। जग जानी = दुनिया जान गई। बिंदुली = टिकुली, चमकी या सितारा।
मेरे पूछने पर अरी बाला! तू क्यों चकमा देती है? प्रीतम के ललाट में (तेरी) टिकुली देखकर संसार जान गया कि (तुम दोनों ने) विपरीत रति की है।
नोट - विपरीत रति में ऊपर रहने के कारण नायिका की टिकुली गिरकर नीचे पड़े हुए नायक के ललाट पर सट गई।
परयो जोर विपरीत रति , सूरत करत रणधीर।
बाजत कटि की किन्कडि , मौन रहत मंजीर।
इस तरह की quote सिर्फ आप ही दे सकती है।
धन्यवाद आपका, हमारे ज्ञान वर्धन के लिए।
Thanks so much aur is tarah ka appreciation aap jaise birle hi de sakte hain
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हमें अदाएँ दिवाली की ज़ोर भाती हैं ।
कि लाखों झमकें हरएक घर में जगमगाती हैं ।।
चिराग जलते हैं और लौएँ झिलमिलाती हैं ।
मकां-मकां में बहारें ही झमझमाती हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।1।।
गुलाबी बर्फ़ियों के मु‘ँह चमकते-फिरते हैं ।
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं ।।
हर एक दाँत से पेड़े अटकते-फिरते हैं ।
इमरती उछले हैं लड्डू ढुलकते-फिरते हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।2।।
मिठाइयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं ।
तो उन पै क्या ही ख़रीदारों के झपट्टे हैं ।।
नबात[1], सेव, शकरकन्द, मिश्री गट्टे हैं ।
तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे-बट्टे हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।3।।
जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं ।
तो लौंज खजले यही मसनद लगाते बैठे हैं ।।
इलायची दाने भी मोती लगाए बैठे हैं ।
तिल अपनी रेबड़ी में ही समाए बैठे हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।4।।
उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग ।
यह लेने वाले को देते हैं दम में सौ-सौ भोग ।।
मगध का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग ।
दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।5।।
दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है ।
तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है ।।
कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है ।
कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।6।।
कोई खिलौनों की सूरत को देख हँसता है ।
कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है ।।
बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है ।
तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।7।।
और चिरागों की दुहरी बँध रही कतारें हैं ।
और हरसू कुमकुमे कन्दीले रंग मारे हैं ।।
हुजूम, भीड़ झमक, शोरोगुल पुकारे हैं ।
अजब मज़ा है, अजब सैर है अजब बहारें हैं ।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।8।।
अटारी, छज्जे दरो बाम पर बहाली है ।
दिबाल एक नहीं लीपने से खाली है ।।
जिधर को देखो उधर रोशनी उजाली है ।
गरज़ में क्या कहूँ ईंट-ईंट पर दिवाली है ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।9।।
जो गुलाबरू हैं सो हैं उनके हाथ में छड़ियाँ ।
निगाहें आशिकों की हार हो गले पड़ियाँ ।।
झमक-झमक की दिखावट से अँखड़ियाँ लड़ियाँ ।
इधर चिराग उधर छूटती हैं फुलझड़ियाँ ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।10।।
क़लम कुम्हार की क्या-क्या हुनर जताती है ।
कि हर तरह के खिलौने नए दिखाती है ।।
चूहा अटेरे है चर्खा चूही चलाती है ।
गिलहरी तो नव रुई पोइयाँ बनाती हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।11।।
कबूतरों को देखो तो गुट गुटाते हैं ।
टटीरी बोले है और हँस मोती खाते हैं ।।
हिरन उछले हैं, चीते लपक दिखाते हैं ।
भड़कते हाथी हैं और घोड़े हिनहिनाते हैं ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।2।।
किसी के कान्धे ऊपर गुजरियों का जोड़ा है ।
किसी के हाथ में हाथी बग़ल में घोड़ा है ।।
किसी ने शेर की गर्दन को धर मरोड़ा है ।
अजब दिवाली ने यारो यह लटका जोड़ा है ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।13।।
धरे हैं तोते अजब रंग के दुकान-दुकान ।
गोया दरख़्त से ही उड़कर हैं बैठे आन ।।
मुसलमां कहते हैं ‘‘हक़ अल्लाह’’ बोलो मिट्ठू जान ।
हनूद कहते हैं पढ़ें जी श्री भगवान ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।14।।
कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनख़नाहट है ।
कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है ।।
कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है ।
अजब मज़े की चखावट है और खिलावट है ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।15।।
‘नज़ीर’ इतनी जो अब सैर है अहा हा हा ।
फ़क़त दिवाली की सब सैर है अहा हा ! हा ।।
निषात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा ।
जिधर को देखो अज़ब सैर है अहा हा हा ।।
खिलौने नाचें हैं तस्वीरें गत बजाती हैं ।
बताशे हँसते हैं और खीलें खिलखिलाती हैं ।।16।।
दिवाली / नज़ीर अकबराबादी
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(27-10-2019, 01:01 PM)komaalrani Wrote: Come let us celebrate together
Deewali night with my gf... Wo bhi aap ki trh khule vicharon ki hai..
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