Thread Rating:
  • 4 Vote(s) - 4 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Adultery काया की माया
#1
अपडेट -1, काया की माया

दोस्तों बहुत समय तक मै busy रहा, माफ़ी चाहूंगा.
अब आ गया हूँ एक नयी wife storie के साथ उम्मीद करता हूँ आपका प्यार हूँ, आपका प्यार हमेशा की तरह मिलता रहेगा.
बिना वक़्त गवाए चलते है इस सफर पर.

[Image: Picsart-24-03-08-15-27-50-444.jpg] "क्या रोहित तुम्हे यहीं जगह मिली थी क्या?"

"अब क्या करू काया? बैंक वालो ने यहीं ट्रांसफर दिया है "

ये है रोहित और काया, एक सरकारी कार मे बैठे बाहर बीहड़, खेत, गांव को सुनी आँखों से निहार रहे थे.

रोहित एक बैंक कर्मी है जो कि राजस्थान जयपुर का रहने वाला है अभी 2 साल पहले ही नौकरी लगी और उसके कुछ महीनों बाद ही काया जैसी स्त्री से शादी भी हो गई.

हालांकि रोहित का अभी शादी का कोई भी इरादा नहीं था परन्तु जब काया को देखा तो देखता ही रह गया..

जैसा नाम वैसा दर्शन क्या काया थी, एक दम भरा जवान जिस्म, सुडोल स्तन, जो ना जाने किस घमंड मे सर उठाये रहते थे, स्तन के नीचे बलखाती पतली कमर, और असली खूबसूरती यही से शुरू होती थी.

काया के जिस्म का सबसे बहुमल्य कामुक सुन्दर अंग उसकी गांड जो बिल्कुल ऊपर को उठी हुई बाहर को निकली, चलती तो गांड के दोनों हिस्से आपस ने रगड़ कर एक कामुक ध्वनि पैदा करते थे.

क्यूंकि काया को पसीना बहुत आता था, जो उसकी गांड कि दरार मे हमेशा विधमान रहता, जब भी वो चलती एक अजीब सी आवाज़ उत्तपन करती.

हालांकि वो आवाज़ माध्यम होती, कोई ध्यान से सुने तो ही समझ आये.

ऐसी काया ऐसा जिस्म ऐसी जवानी देख मै मना नहीं कर सका, कोई बेवकूफ ही होता जो मना करता.

जिस्म जीतना कामुक था उसके विपरीत चेहरा बिल्कुल सौम्य,कोई कामुकता नहीं,

सिंपल सा, बड़ी आंखे, लाल होंठ भरे हुए गाल.

कुल मिला कर एक बेहतरीन औरत थी काया उम्र मात्र 25 साल लेकीन इतनी सी उम्र मे ऐसा जिस्म नसीब वालो को ही मिलता है.

अब मै कोई इतना बेवकूफ तो हूँ नहीं कि ऐसे नसीब,ऐसी किस्मत को ठुकरा देता.

हुआ भी यहीं.

मैंने शादी के लिए हाँ कर दि, काया को भी मै पसंद आया.

मै अपने बारे मे बता दू मै भी कोई कम स्मार्ट नहीं हूँ.

लम्बा,छरहरा हसमुख मिजाज का व्यक्ति हूँ.

काया को मेरा हसमुख स्वाभाव खूब पसंद आया, पहली मुलाक़ात मे ही हम दोनों मे दोस्ती हो गई.

"देखिये मै शादी के बाद कोई साड़ी नहीं पहनुंगी,मुझे आदत नही है "

काया ने बड़े भी भोलेपन से कहाँ.

मै क्या कहता बस मुस्कुरा कर रह गया.

"वैसे मै सीख रही हूँ साड़ी पहनना,जल्दी सीख जाउंगी लेकीन मुझे लेगी,कुर्ता पहनना ही पसंद है" काया ने मुझे मुस्कुराता पा कर अपने दिल कि बात कह दि.

"अरे बाबा ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा,वैसे भी मेरे मम्मी पापा मॉर्डन ख़्यालात के है उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होंगी " मैंने काया कि सभी शंका को दूर कर दिया..वैसे भी कुर्ते लेगी मे उसकी मांसल जांधे अपने पूर्ण कामुकता का प्रदर्शन करती थी,और मुझे यहीं सबसे ज्यादा पसंद था.

उफ्फ्फ....कयामत थी काया.

देखने दिखाने के बाद 2 महीने मे ही हमारी सगाई शादी हो गई,

मेरा जीवन खुसमय हो चला, अच्छी नौकरी अच्छी बीवी कहीं कोई कमी थी ही नहीं.

हालांकि सुहागरात के दिन मै थोड़ा नर्वस जरूर था, मेरी कभी कोई gf नहीं रही थी, ना ही मैंने कभी सम्भोग सुख का आनंद लिया था.

परन्तु दोस्तों कि सलाह ले मै युद्ध भूमि मे कूद पड़ा था, अब एक नोसीखिया योद्धा क्या करता वही हुआ 2मिनट मे ही मै शहीद हो गया.

काया कि काया देख मेरे सिपाही वैसे ही घायल था.

रही सही कसर युद्ध भूमि रुपी चुत मे उतरते ही खत्म हो गई.

दिल दिमाग़ निराशा से भर उठा, हालांकि काया ने कोई शिकायत नहीं कि, शायद उसे भी sex का कोई अनुभव नहीं रहा होगा.

वैसे भी मैंने अच्छे पति होने के नाते कभी कुछ पूछा भी नहीं.

ऐसे ही समय गुजरा, काया मुझसे ख़ुश थी मै उस से,नौकरी तो बैंक असिस्टेंट मैनेजर कि थी ही.

भगवान को धन्यवाद कहते थकता नहीं था मै.

लेकीन 2 साल बाद एक फरमान सा जारी हुआ.

"Mr.रोहित up मुरादाबाद मे एक नयी ब्रांच खुली है, तुम सबसे काबिल और एक्सपीरियंस कर्मचारी हो तुम्हे वहाँ भेजा जा रहा है, सैलरी 30% बढ़ के मिलेगी, तुम्हे प्रमोट कर मैनेजर बनाया जाता है और सब बैंक ही प्रोवाइड करवाएगा जैसे रहना, यात्रा, हेल्थ इत्यादि."

मीटिंग मे बैठे सभी लोग ताली पीटने लगे.

मेरा सीना भी गर्व से चौड़ा हो चला, मै ख़ुश था आखिर मै जीवन मे तरक्की कर रहा था.

घर पहुंच काया को मैंने खुसखबरी दि,माँ पापा का आशीर्वाद लिया.

लेकीन एक उदासी भी थी कि परिवार से दूर जाना होगा.

"अरे बेटा उदास क्यों होते हो ये तो जीवन का हिस्सा है,बेटे को अलग होना ही होता है कभी ना कभी, और कौनसा दूर है आते रहना.क्यों बहु?"
काया ने भी पापा की बात का समर्थन किया.

पिता जी के आशीर्वाद और बातों से मेरा दिल हल्का हुआ, काया भी ख़ुश थी मेरी तरक्की से.

"Wow रोहित....तुम तो कमाल निकले "

"तुम.ख़ुश हो ना "

"अरे बहुत ख़ुश....लेकीन वो जगह कैसी होंगी?" काया के जहन मे थोड़ी चिंता थी.

"हमें क्या करना है जगह से, नौकरी करेंगे घूमेंगे, फिर कुछ साल बाद वापस जयपुर "

मैंने काया कि चिंता दूर कर दि.

अगले सप्ताह हम लोग मुरादाबाद पहुंच गये.

यानि आज का दिन...

ट्रैन से उतर, स्टेशन के बाहर निकले की सामने से एक लम्बा चौड़ा बंदा चला आया.
"आप रोहित सर ही होंगे लाइये सामान " उस बन्दे ने रोहित के हाथ से सामान ले लिया.
"साब मै मकसूद बैंक का ड्राइवर, आपको लेने भेजा गया है "
"लेकिन तुम्हे कैसे पता चला की मै रोहित ही हूँ?" रोहित का सवाल जायज था.
"साब इस देहात मे सूट बूट पहने और सुन्दर मेमसाब के साथ और कौन आएगा " मकसूद ने आगे चलते चलते बात कही लेकिन लास्ट की बात बोलते वक़्त पीछे मूड काया को देखते हुए दाँत निपोर के कही.

काया ने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया.
मकसूद ने सारा सामान अकेले उठा कार मे ठेल दिया.
रोहित हैरान था जिन चार बेग को उठाने मे काया और रोहित के पसीने छूट रहे थे मकसूद बड़ी आसानी से सभी को उठा के हवा जैसे चला जा रहा था.

सभी कार मै बैठ चुके थे " चले साब "
"चलो मकसूद"

"क्या रोहित ये कैसी जगह है,यहीं जगह मिली थी क्या तुम्हे?" टैक्सी मे सवार काया बाहर देख रही थी

दूर दूर तक खेत, बिहाड़, झोपडीया,

कोई शहरी नामोनिशान नहीं.

"अरे ये तो रास्ता है क़स्बा आगे है" जवाब आगे बैठे मकसूद ने दिया

करीबन स्टेशन से 1.30 घंटे चलने के बाद कार एक कस्बे मे प्रवेश कर गई, आस पास गॉव ही थे.

काया सिर्फ बाहर देखे जा रही थी ना जाने क्या था उन रास्तो मे,या फिर शहर कि चकाचोघ को मिस कर रही थी.

कार चली जा रही थी, क़स्बा भी निकल गया, मै और काया दोनों के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे.

"हम कहाँ जा रहे है?" मैंने मकसूद से पूछा

"साब अभी जो हमने क़स्बा पार किया आपका बैंक वही है, और अब हम जहाँ जा रहे है वहा बैंक के कर्मचारियों के रहने का इंतेज़ाम है " ड्राइवर मकसूद ने शंका दूर करते हुए कहा.

थोड़ी ही देर बाद कार एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के बाहर जा रुकी.

"आइये सर ....आइये स्वागत है आपका " एक नाटा काला सा आदमी भागता हुआ सामने बिल्डिंग के दरवाजे से निकल के आया और दरवाजा खोलते हुए बोला..

"सर मै पांडे बैंक मे चपरासी कम अलराउंडर आपको बताया होगा मेरे बारे मे मल्होत्रा सर ने " पांडे ने डिक्की खोल सूटकेस संभाल लिए.

"ओह..अच्छा...अच्छा....तुम ही हो पांडे, हाँ बताया था कि तुम मिलोगे यहाँ "

रोहित और काया पांडे के पीछे पीछे बिल्डिंग मे दाखिल हो गये.

"ये कैसी जगह है पांडे?" रोहित ने पीछे चलते हुए सवाल किया

"सर बैंक तो गांव मे है, उन देहातियों के बीच रहेंगे क्या आप साब लोग, इसलिए बैंक ने इस बिल्डिंग मे सभी कर्मचारियों को फ्लैट दिए है, यहाँ से दूसरी तरफ हाइवे निकलने वाला है, किसी शहर से कम नहीं होंगी ये जगह देखना आप "

पांडे बोलता चला जा रहा था.

इसके पीछे रोहित काया सर घुमाये जगह का मुआयना कर रहे थे.

"ये कहा आ गए हम " काया खुद से ही बोल रही थी

"अच्छी जगह है मैडम, नई जगह पर थोड़ा टाइम लगता है" पीछे से आई आवाज़ ने काया को चौंक दिया

उसने पीछे मूड देखा, पीछे मकसूद सामान उठाये चला आ रहा था,

"अब आप जैसी शहरी लड़की वहा गांव मे कहा रहती " मकसूद की नजर एक खास जगह ही टिकी हुई थी.

काया पीछे देख वापस आगे को हो गई, उसके पास कोई जवाब नहीं था वैसे भी उसे अजीब लग रहा था ऊपर से मकसूद जो घूर रहा था उसे चाह कर भी काया छुपा नहीं सकती थी,

नतीजा जोर जोर से कदम चलाने लगी...

"मस्सल्लाह...." एक हलकी सी आवाज़ काया के कानो मे पड़ी.

काया समझदार थी वो जानती थी मकसूद की नजर कहा है, उसे ऐसी नजरों का सामना हमेशा ही करना पड़ता था.

उसकी गांड थी ही ऐसी, ऊपर से ये गर्मी पूरा जिस्म पसीने से नाहा रहा था.

पीछे मकसूद शायद पहली बार ऐसा नजारा, ऐसी खूबसुरति देख रहा था.

"आओ साब ये सामान मुझे दो, आप लिफ्ट मे आइये"

बिल्डिंग निर्माणधीन थी निचे पार्किंग बन चुकी थी, बाकि सभी मालो पर काम चल रहा था,

"साब अभी 4th और 5th फ्लोर पर ही दो चार फ्लैट तैयार किये गए है रहने लायक, आपको 5th फ्लोर पर फ्लैट दिया गया है" पांडे समझाता हुआ आगे चला जा रहा था.

बिल्डिंग के साइड मे ही एक लिफ्ट थी, नयी बनी हुई....

सससससस... ररररर...... आइये साब

लिफ्ट का दरवाजा खुलता चला गया.

"काका 5वे फ्लोर पे चलो " पांडे ने लिफ्ट मे बैठे शख्स को कहा.

काका कोई 50,55 के आस पास का आदमी जान पड़ता था, वर्दी पहने जर्दा मसलाता हुआ लिफ्ट मे प्रकट हुआ था "जज्ज....जज.... जी साब चलते है"

थाड... थाड.. थाड.... काका ने तीन ताली मार जर्दा मसल मुँह मे घुसेड़ लिया.

सामने काया ये सब देख निराशा मे डूबती जा रही थी.

"आउच...."तभी काया को छूता हुआ मामसूद सामान लिए लिफ्ट मे दाखिल हो गया.

"आइये साब आइये मैडम " मकसूद ऐसे घुसा जैसे कोई बच्चा हो लिफ्ट छूट जाएगी.

ना जाने क्यों उसकी इस हरकत पे काया के चेहरे पे मुस्कान सी आ गई.

ये पहला मौका था जब उसका ध्यान इन सब से हटा था, उसने कुछ फनी देखा था.

सभी लोग लिफ्ट मे सवार हो गए...

"और ये क्या बदतमीज़ी है दिख नहीं रहा सर मैडम आये है बड़े बाबू है यहाँ के और तुम जर्दा मसल रहे हो" लिफ्ट बंद होते ही पांडे ने तुरंत काका को हड़का दिया.

शायद पांडे ऐसा ही था या फिर रोहित जो की उसका नया बॉस था उसे इम्प्रेस कर रहा था, जैसे बताना चाहता हो की कितनी चलती है मेरी यहाँ.

"उउउफ्फ्फ्फ़.... कितनी गर्मी है " काया दुपट्टे से हवा करते हुए फुसफुसाई

"अभी बन रहा है ना मैडम जी " काका मुँह फट था बोल पड़ा.

वैसे भी काया को पसीना खूब आता था गर्मी सही नहीं जाती थी उससे, काका ने लिफ्ट मे 5नंबर का बटन दबा दिया, लिफ्ट चल पड़ी इधर काया का पसीना चल पड़ा.

सामने चमकती सतह पर अपने पीछे खड़े मकसूद को देख रही थी, उसकी नजरें अभी भी झुकी हुई थी.

शर्म से नहीं.... काया की गांड पर, जो बाहर निकली अपनी शोभा बिखेर रही थी.

ना जाने क्यों काया कुछ नहीं बोली, वो वैसे ही परेशान थी या फिर उसके लिए ये बात आम थी लोग उसकी गांड को ऐसे ही घूरते थे.

थोड़ी ही देर मे लिफ्ट रुकी, सामने गालियारा था,

"आइये सर " पांडे आगे चल पड़ा पीछे रोहित काया और मकसूद

"खुद को बड़ा साब समझता है साला थू...." काका ने जर्दा थूकते हुए पांडे पे गुस्सा निकला लिफ्ट बंद होती चली गई.

गालियारे के लास्ट मे दो फ्लैट थे जो की रहने लायक बने हुए थे बाकि मे कुछ ना कुछ काम चल थी रहा था.

"साब ये 51 नंबर फ्लैट आपका है, और ये सामने वाला 52 दोनों ही तैयार है " पांडे ने चाबी लगा दरवाजा खोल दिया.

"Wow रोहित...." काया के मुँह से खुशी की आवाज़ निकली जब से यहाँ आई है पहली बार.

फ्लैट वाकई बहुत शानदार था, फुल फर्नीश्ड

रोहित काया को ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी इस बीहड़ मे.

"Wow पांडे ये तो वाकई बहुत सुन्दर है " रोहित ने भी प्रशंसा की.

"मैंने पहले ही कहा था साब फ्यूचर मे ये शहर से भी बड़ी जगह होने वाली है"

पांडे काया और रोहित को घर दिखाने लगा.

मक़सूद सामान रख रहा था.

"अच्छा साब चलता हूँ मै अब बैंक, कल मक़सूद आपको लेने आ जायेगा "

पांडे ने इजाजत मांगी

"बहुत बहुत धन्यवाद पांडे तुम्हारा "

"अरे सर ये तो ड्यूटी है मेरी " पांडे और मकसूद बाहर को चल दिए

देखा सामने लिफ्ट बंद थी.

"ये हरामी कहा गया, साला कामचोर है बूढा "

पांडे काका को गाली देता सीढ़ियों से उतरने लगा पीछे पीछे मकसूद.



"Wow रोहित.... Love you " अंदर फ्लैट मे काया रोहित से जा लिपटी.

"अच्छा love you अभी तो मुँह बना रही थी " रोहित ने काया को आपने आगोश मे भर लिया

"वो तो गांव वगैरह देख के मन उदास हो गया था "

"तो अब...?"

"अब ख़ुश हो गया कौनसा मुझे बैंक जाना है, आप जाओ गांव देहात " काया ने चुटकी ली

"अच्छा बताता हूँ अभी...." रोहित ने काया के होंठो को छूना चाहा

"अभी नहीं पूरा पसीना पसीना हो गया है " काया खुद को छुड़ाती बाथरूम की तरफ भाग खड़ी हुई.

बाहर रोहित मुस्कुराता आपने सामान की ओर बढ़ चला.

काया बहुत ख़ुश थी उसे वैसे भी कुछ समय चाहिए था अकेला सिर्फ आपने पति के साथ और उसे ये मौका मिल गया था.

शादी के तुरंत बाद ही रोहित ने बैंक ज्वाइन कर लिया था तो हनीमून पर भी नहीं जा सके थे.

लेकिन ये मौका किस्मत से काया को मिल ही गया था.

अंदर बाथरूम मे काया पूर्ण नग्न शावर के निचे खड़ी आपने जिस्म को सहलाती, सपने संजो रही थी.

सपने मे सिर्फ वो थी उसका पति दुनिया से दूर उनका ये नया आशियाना.

सामने कांच इस खूबसूरत लम्हे का गवाह था, एक मदमस्त भरे जिस्म की औरत की परछाई उसमे दिख रही थी.[Image: dl-big-boobs-shower-001.gif]

सुडोल बड़े आकर के स्तन से होता पानी, पतली कमर से होता चुत रुपी पतली दरार मे समा के निचे फर्श को भिगोता गुजर जा रहा था.

अचानक ना जाने काया को क्या सूझी वो पीछे को पलटी, सामने गजब की मदमस्त तरबूजबके आकर की गांड उजागर हो गई, एक पल को वो खुद शर्मा गई आपने अंगों की खूबसूरती से.

उसके जगह ने मक़सूद की हरकत दौड़ गई, कैसे देख रहा था जैसे खा जायेगा...

हेहेहे.... काया मुस्कुरा उठी.

आखिर थी तो वो खूबसूरत ही.

पानी बंद हो गया, काया नाहा चुकी थी.

तौलिये मे लिपटी काया बाथरूल से बाहर आ गई, सामने ही रोहित सामान सेट कर रहा था.

"मेरे कपडे वाला बेग देना " रोहित काया की आवाज़ सुन पलट गया.

"उउउउफ्फ्फ्फ़..... काया " काया की माया चमक रही थी दिन के उजाले मे पानी की बून्द किसी मोती की तरगम्ह जिस्म से फिसल रहे थे.[Image: images-8.jpg]

अब भला कौन मर्द ऐसा होगा जो ये देख के भी पीछे हट जाये.

रोहित भी मर्द ही था, तुरंत छलांग मार काया कर जिस्म का जा दबोचा,

"आउच... क्या कर रहे हो, लम्बे सफर से थके नहीं?" काया ने चुटकी ली.

"थकान उतरने ही तो आया हूँ "

"छोड़िये ना कितना काम है अभी... गुगुगु.... उउउउम्म्म....

बस इसके आगे काया नहीं बिल सकी रोहित की होंठ काया के होंठ से जा लगे.[Image: make-out-kissing.gif]

काया भी इस काला मे निपुण थी, रोहित के साथ वो भी इस सुखमय सफर मे निकल चली.

अभी कही गड्डे बिस्तर की व्यवस्था तो थी नहीं, रोहित इतना बेकाबू था की काया वो वही फर्श पर लिटा उसके ऊपर चढ़ बैठा...

फच फच.... फच.... उउउम्म्म्म... आअह्ह्ह... रोहित.... आराम से...

आअह्ह्ह.... पच... पच.... काया की चुत तो जैसे पहले से ही गिली थी तुरंत रोहित के लंड को लील लिया.

रोहित किसी बेकाबू सांड की तरह धका धक चालू हो गया.. [Image: 35407.gif]

आअह्ह्ह... रोहित रुको... आराम से भागे नहीं जा रही हूँ... आअह्ह्ह... रोहित.

लेकिन रोहित सुने तब ना, 5मिनट बाद ही.

"आअह्ह्ह... काया.... फच... अफच... आह्हः... मे गया...

रोहित के लंड ने वीर्य की उल्टिया कर दी.

आअह्ह्ह... रोहित कहा था ना आराम से, हटो अब

काया ने शिकायत तो नहीं की लेकिन उसके बोलने से लगा जैसे कुछ कमी रह गई हो.

"वो... वो.... तुम्हे ऐसे देख खुद को रोक नहीं पाया "

रोहित खड़ा होते हुए बोला.

काया ने भी टॉवल वापस लपेट लिया "तुम्हारा ऐसा ही है ना जाने क्या जल्दी रहती है तुम्हे हुँह..." काया बिना रोहित की तरफ देखे आपने बेग की तरफ चल दी और रोहित बाथरूम.

असल मे काया के साथ ये पहली बार नहीं हो रहा था, रोहित हमेशा ही जल्दबाज़ी करता और काया को बीच मझदार मे छोड़ खुद किनारे हो जाता.. हालांकि काया कोई सम्भोग की भूखी नहीं थी परन्तु कही ना कही मन मे मलाल रह ही जाता.

"रोहित थोड़ी देर और रुक जाते " बस सम्भोग के बाद अंतिम शब्द यही होते.

फिर भी उसने कभी कोई शिकायत नहीं की थी ना आज की.

Contd...
[+] 3 users Like Andypndy's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
बेहद कामुक और असाधारण
[+] 1 user Likes Projectmp's post
Like Reply
#3
अदभुत शुरुआत
[+] 3 users Like Blackdick11's post
Like Reply
#4
Achchhi story he pahele kisi ne isi styal me Thoda likh ke chhod diya tha. aap Pura karna. aur kaya ko Ragad ragad ke Chikhe niklva niklva ke Chudvana Roj Rohit Ko bolti he na ki kash thoda aur ruk jate.
[+] 1 user Likes Bhikhumumbai's post
Like Reply
#5
Good start
[+] 1 user Likes sri7869's post
Like Reply
#6
अपडेट -2

[Image: Picsart-24-03-09-14-18-50-175.jpg]

शाम हो चली थी


काया और रोहित खुश थे, अपनी जिंदगी का नया सफर शुरू करने जा रहे थे.

नया घर काया को खूब पसंद आया था, उसकी उम्मीद से कही ज्यादा खूबसूरत था.

मैन गेट खोलते ही एक बड़ा हॉल था जहाँ सोफा और उसके सामने टीवी दिवार पे टंगा हुआ था, मैन सोफे के पीछे दो बड़े बेडरूम थे, साइड वाले सोफे के पीछे किचन था जो की खुला पोर्सन था, सिर्फ एक पर्दा था जिसे सहूलियत के हिसाब से खिंच के किचन को ढका जा सकता था.

बेडरूम मे ही एक अटैक बाथरूम था जो दोनों कमरे के लिए कॉमन था, और एक अलग रसोई के साइड से निकले गालियरे मे अंदर था.

बैडरूम और किचन से बाहर की तरफ बालकनी भी थी.

कुल मिला का 2bhk आलीशान फ्लैट मिला था रोहित को.

काया और रोहित ने दिन भर मेहनत कर कपडे और जरुरी सामान निकाल जमा लिए थे.

"उफ्फ्फ.... कितनी थकान हो गई है " काया ने खाना परोसते हुए कहा, डाइनिंग टेबल किचन से ही अटैच था,

"हम्म्म्म..... रोहित कुछ बोला नहीं

"क्या सोच रहे हो रोहित "

"कक्क... कक्क... कुछ नहीं काया कल से बैंक ज्वाइन करना है वही सोच रहा हूँ "

"उसमे इतना क्या सोचना कोई पहली बार थोड़ी ना जाओगे " काया ने खाना परोस दिया

"जगह नहीं है, स्टेट अलग है, गांव है "

"अरे छोडो भी कल का कल देखना, खाना खाते है बहुत थक गए है " काया ने मुस्करा के कहा

काया की मुस्कान देखते है रोहित पल भर मे सारी चिंता भूल गया.

रात हो चली, सन्नाटा फेल गया था, दूर दूर तक कोई रौशनी का नामोनिशान नहीं था,

बैडरूम की खिड़की से झाकती काया को बस निचे एक कमरे से रौशनी आती दिख रही थी, कच्चा सा कमरा

शायद यहाँ के चौकीदार मजदूरों के लिए होगा.

"कितनी शांति है ना रोहित यहाँ "

"हहहम्म्म्म...." रोहित उनिंदा सा बिस्तर पे पड़ा ऊंघ रहा था

"So जाओ काया थकी नहीं क्या "

"थक तो गई हूँ लेकिन ये शांति कितनी अच्छी है ना, ना भीड़, ना कोई शोर, ना कोई गाड़ी की पो पो... मन शांत सा हो गया "

काया का जिस्म एक महीन गाउन से ढका हुआ था,

उसके मन मे इस माहौल को और भी करीब से महसूस करने की ललक जाग उठी, बैडरूम का दसरवाजा खोल बालकनी मे आ गई.... अंदर डीम लाइट से कमरा उजला सा था, रोहित शायद सो चूका था, काया ने जानने की कोशिश भी नहीं की.

बालकनी ने पहुंचते है काया का रोम रोम खील उठा, बाहर से आती गांव की ठंडी शुद्ध हवा काया कर गाउन को उडाने लगी, गाउन वैसे ही हल्का सा था,

"उउउफ्फ्फ..... ऐसी हवा शहर मे कहा नसीब होती है " काया खुद से ही कह रही थी

काया निचे झाकने लगी, वही जहाँ से निचे कमरे से रौशनी आ रही थी.

होता है वो अंधरे मे एक हलकी सी रौशनी भी आपका ध्यान अपनी तरफ खिंच लेती है.

काया ने भी वही किया उसकी आंखे वही देखने लगी की तभी उस टिनशेड के बने कमरे का दरवाजा खुला, बाहर रौशनी सी फ़ैल गई.

अभी काया कुछ समझती की एक लड़का जैसा बनियान पहना शख्स बाहर निकल आया.

रौशनी मे काला सा शरीर चमक रहा था, काया कोतुहाल से देखने लगी चलो यहाँ हमारे अलावा भी कोई रहता है....

निचे लड़का कुछ कर रहा था, इधर उधर गर्दन घुमा कमरे से आगे चल पजामा खोलने लगा.

साययय..... से काया का जिस्म हिल गया, काया समझ गई की वो क्या करने आया है, काया के कदम पीछे को हो गए उसे नहीं देखना था ये सब " कितना बेशर्म लड़का है "

काया आपने बैडरूम मे जाने को मुड़ी ही थी की दिल मे ना जाने क्या हुक सी जगी, उसका मन किया वापस जा के निचे देखे.

एक नजर उसने अंदर बैडरूम मे देखा रोहित घोड़ा बेच सो रहा था, चोर को हिम्मत आ गई थी.

इसमें बुरा ही क्या है, हर इंसान अकेले मे कुछ ना कुछ खुवाहिस रखता ही है,

काया का दिल एक बार तो धड़का ही था परन्तु उसके कदम फिर बालकनी से जा चिपके, गर्दन नीचे झुक गई.[Image: 72e99e2079dbcd84b0b1e7fb9c455f16.jpg]

नीचे लड़का पजामा नीचे किये सससससररर..... पेशाब की तेज़ धार बहा रहा था,
हलकी रौशनी मे तेज़ पेशाब की धार चमक रही थी,
ये चमक काया की आँखों मे भी देखी जा सकती थी.
हालांकि आज से पहके उसने ऐसा कुछ देखा नहीं था.
ना जाने क्यों आज उसकी नजरे ऐसा कर गई,
[Image: B305-E7-BD-DFE7-45-A7-806-C-BDD42-C10-C4...939871.gif]काया की नजर उस तेज़ धार पर ही थी, जो काफ़ी दूर तक जा रही थी.

"आदमी लोगो का अच्छा है कही भी खड़े हो जाओ, कोई लफड़ा नहीं " काया के मन मे कोई और भाव नहीं था, वैसे भी इतनी ऊपर से क्या ही दीखता, कभी एक लम्बी सी आकृति दिख जाती, काया का जिस्म ठंडी हवा मे भी पसीने छोड़ रहा था.
मन मे और देख लेने की चाहत जन्म ले रही थी.
चोर तभी चोर है जब वो पकड़ा जाये,
आज ये चोर काया के मन मे पैदा हो गया था.
इंसान का सुलभ व्यवहार यही होता है स्त्री या पुरुष वो एक दूसरे के कामुक अंगों को एक पल के लिए देख लेना ही चाहते है.

धार धीरे धीरे सिमटती चली गई, साथ ही काया की नजर भी सिमटती गई और रुकी वहा जहाँ उस धार का स्त्रोत था.

टप टप... टप.... करती दो बून्द और टपकी..

काया की आंखे वही जमीं थी, दिल एक बार को धाड़ धाड़ कर उठा, वो लड़का नीचे पेशाब कर अपने लंड को झटके मार रहा था.

बाहर से आती ठंडी हवा मे भी काया को पसीना सा आ गया था, इतनी ऊपर से भी रौशनी मे चमकता लंड का कुछ हिस्सा जगमगा रहा था,

काम को अंजाम दे वो लड़का वापस कमरे मे समा गया, धाड़.... से दरवाजा बंद होते ही चंद सेकंड मे लाइट भी बंद हो गई, चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा छा गया था.

बस काया के चेहरे पे पसीना, दिल मे अजीब सी कस्माकश सा कुछ चल पड़ा था.

वो वापस क्यों नहीं गई, जबकि उसे पता था उसे यही देखने को मिलेगा.

काया ने कभी दूसरे लंड को देखा भी नहीं था, हाँ कॉलेज मे कभी कभी ऐसी बाते हो जाया करती थी दोस्तों से, लेकिन ये असल मामला था हालांकि इतनी दूर से दिखा या ना दिखा कोई मतलब नहीं था.

लेकिन चोरी तो चोरी ही होती है, काया वापस नहीं गई थी ना जाने क्यों?

जवाब उसके पास भी नहीं था.

उसके कदम बैडरूम की तरफ बढ़ गए, जिस्म बिस्तर मे समा गया.

काया नींद के आगोश मे समा चुकी थी.

Contd...
[+] 1 user Likes Andypndy's post
Like Reply
#7
अपडेट -3[Image: Picsart-24-03-11-11-50-21-589.jpg]

अगले दिन

"रोहित उठो ऑफिस नहीं जाना, नाश्ता टिफ़िन तैयार है "

काया एक आदर्श बीवी की तरह सुबह सब तैयारी कर दी थी.

थोड़ी ही देर मे रोहित तैयार डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था.

समय 9.00am

टिंग टोंग....

"शायद मकसूद होगा, उसने आने को कहा था " रोहित नाश्ता करते हुए बोला

काया दरवाजे की ओर बढ़ चली, वो अभी भी रात वाले गाउन मे ही थी, यहाँ कौन से सांस ससुर थे की सूट साड़ी पहननी है.

पल भर मे ही दरवाजा खुल गया

"नमस्ते ममम... म.. मैड... मैडम जी " दरवाजा खुलते से ही मकसूद का मुँह भी खुला ही रह गया[Image: de46aa5f64830463bf8fc3352a5662ee.jpg]

काया के लिए ये सामान्य बात होंगी लेकिन गांव देहात के मकसूद के लिए ये सामन्य नहीं थस, उसे लगा शायद जन्नत का दरवाजा खोल कोई हर उसे अंदर बुला रही है.

"नमस्ते... नमस्ते मकसूद जी आईये" लेकिन मकसूद के कान पे जु भी ना रेंगी वो मुँह बाये कभी काया को देखता तो कभी अगल बगल झाकता

सामने गया हलके सफ़ेद गाउन मे खड़ी किसी अप्सरा से काम नहीं लग रही थी, एक एक अंग साफ नुमाया हो रहा था,

मकसूद की मनोदशा को भाम्प काया भी झेम्प गई, और दरवाजे से साइड हो गई.

"मै यही इंतज़ार कर लेता हूँ " मकसूद से और कुछ कहते नहीं बना,

"आ गए मकसूद, चलो चले"इतनी देर मे ही रोहित आपने बेग के साथ दरवाजे पर आ गया था.

रोहित मकसूद बाहर को निकलिए गए.

धाड़ से दरवाजा बंद कर काया उस से सट गई...

उफ्फ्फ्फ़.... मै भी क्या करती हूँ, मुझे ध्यान रखना चाहिए ये गांव देहात है.

काया आपने कामों मे व्यस्त हो गई,

बाहर कार मे

"हेलो हाँ मल्होत्रा सर, जी आज से ज्वाइन कर रहा हूँ, यस सर पहुंचने वाला हूँ " रोहित कार मे बैठा मल्होत्रा साहब से बात कर रहा था.

मल्होत्रा बैंक के हेड है, दिल्ली ब्रांच मे ही बैठते है,

इन्होने ही ख़ास रोहित के टैलेंट को पहचाना था.

दूसरी तरफ फ़ोन पर " देखो रोहित मन लगा के काम करना, सुमित मिलेगा वहा वो सब समझा देगा "

"ओके सर " पिक

फ़ोन कट हो गया

रोहित अपनी तरक्की से बेहद ख़ुश था.

लगभग 20 मिनट मे कार बैंक के सामने खड़ी थी.

बैंक गांव के बाहर ही स्थित था,

उसके बाजु मे सरकारी स्कूल, फिर पंचायत ऑफिस फिर बड़ा सा गांव मोहब्बतपुर.

"नाम तो बड़ा अच्छा है मकसूद गांव का "

"जी साब लोग भी अच्छे ही है " मकसूद मे कार का गेट खोल रोहित का बेग थाम लिया.

आइये आइये सर.... एक पतला सा सामान्य कद काठी का आदमी तुरंत भागता हुआ आया और फूलो की मला रोहित के गले मे डाल दी.

सर मै सुमित अभी तक मै ही ब्रांच को देख रहा था, अब आप आ गए है मै धन्य हुआ hehehehe.... सुमित थोड़ा मजाकिया लगा.

रोहित ने भी हाथ मिलाया.

सभी ब्रांच मे दाखिल हो चले.

बैंक मे कुल 4 लोगो का ही स्टाफ था, पाँचवा खुद रोहित.

चौकीदार रमेश तोमर जो की सेना मे सिपाही था, रिटायर होने के बाद बैंक मे चौकीदार है, कद काठी मे लबा चौड़ा, घनी मुछे रोबदार चेहरा,हेड केशियार कम अस्सिटेंट मैनेजर सुमित, चपरासी पांडे, और एक महिला क्लर्क आरती जो की विधवा थी और अपने पति के स्थान पर ही नौकरी पाई हुई थी.

आरती 40साल की महिला, पति बच्चा पैदा करने से पहले चल बसा, दिखने मे कोई खास नहीं, सवाली हष्ट पुष्ठ महिला, शरीर बिलकुल भरा हुआ, आम तौर पर साड़ी मे ही रहना पसंद करती थी.[Image: 8b9e72c026fa3d9011a2cc65ca8119ce.jpg]



सभी ने रोहित का स्वागत किया और रोहित ने अभिवादन स्वीकार भी किया.

कुछ हूँ देर मे सभी मैनेजर रूम मे बैठे चाय की चुस्की ले रहे थे.

"सर ये लीजिये पेपर सिग्नेचर कर दीजिये और मुझे मुक्त कीजिये इस भार से " सुमित ने एक फ़ाइल आगे बड़ा दी जिसमे रोहित की जोइनिंग, बैंक और उसकी सम्पति का ब्यौरा लिखा था

"बड़ी जल्दी है भाई सुमित तुम्हे, रोहित ने हलके लहजे मे कहा और सिग्नेचर कर दिए.

तुरंत ही सुमित ने फाइल्स का एक पुलिंदा आगे बड़ा दिया

"ये क्या है?"

"यही तो समस्या है "

"क्या मतलब?" रोहित हैरान था

"मल्होत्रा साहब ने बताया होगा ना आपको "

"नहीं, उन्होंने कहा था सुमित बता देगा "

"अच्छा...." सुमित सर खुजाने लगा.

"बोलो... क्या बात है" रोहित फ़ाइल खोल के देखने लगा.

"लोन डिफाल्टीर्स " फ़ाइल के पहले पन्ने भी ही कोई 10, 15 नाम लिखें थे.

"सर यही समस्या है, हमारी ये ब्रांच लोन डिफाल्टर्स से परेशान है, कोई 60,70 लाख का लोन पिछले 3 सालो मे बाट दिया गया है, लेकिन एक नया पैसा वापस नहीं आया है.

रोहित फ़ाइल के पन्ने पलटे जा रहा था, सुमित हर पन्ने को समझाये जा रहा था.

सुमित के चेहरे पे सुकून बढ़ता जा रहा था वही रोहित के माथे पर परशानियों की लकीरें बनती जा रही थी.

कुल मिला सुमित ने अपने कंधे का सारा बोझ रोहित के सर पर लाद दिया था.

"उउउफ्फ्फ्फ़...... पहले ही दिन रोहित के दिमाग़ के फ्यूज उड़ गए थे.

ट्रिंग... ट्रिंग....तभी फ़ोन की घंटी बज उठी

"हेलो.... हेलो.... हर मल्होत्रा सर "

"उम्मीद है तुमने ब्रांच का कार्यभार सुमित से ले लिए होगा " फ़ोन पर मल्होत्रा

"जज... ज.. जी सर ले लिया लल... लेकिन?"

"क्या हुआ रोहित सब ठीक तो है ना?"

"सर यहाँ तो सब कुछ क्रेडिट पर चल रहा है, बैंक तो डूबने की हालत मे है " रोहित ने जैसे शिकायत की हो.

"तुमसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी रोहित, तुम्हे प्रमोशन क्यों दिया गया? तुम्हारी सैलरी क्यों बड़ाई गई? काम मे तो चुनौती आती ही है समझो यही वो चुनौती है, वहा जयपुर मे तुम्हारा 100% लोन रिकवरी का रिकॉर्ड था इसलिए ही तो तुम्हे प्रमोट किया गया है. क्या बैठने की तनख्वाव्हा लोगे?

80% ही कवर कर दो वही बहुत है बैंक के लिए, और ना हो सके तो बता देना मुझे, ठाक से मल्होत्रा ने लम्बा चौड़ा भाषण दे कर फ़ोन काट दिया.

रोहित सोच मे था, गहरी सोच मे जयपुर उसका इलाका था वहा वो सबको जनता था, सभ्य समाज था, यहाँ तो कुछ नहीं पता? कैसे करे? क्या करे?

"सर क्या हुआ? सर... सर..." सुमित की आवाज़ से रोहित थोड़ा सा हड़बड़या

"हा.. हाँ.... कुछ नहीं "

एक बात बताओ सुमित इतने दिन तक तुम क्या कर रहे थे? तुमने क्या किया? " रोहित थोड़ा कड़क हो चला

अक्सर ऐसा ही होता है बॉस अपने से नीचे के इंसान पे ऐसे ही रोब झाड़ता है जैसे अभी मल्होत्रा ने रोहित को हड़काया था.

"सर... वो... वो... मुझे भी तो 5 महीने ही हुए है यहाँ आये, जो पहले के मैनेजर और केशियर थे ये उनकी करास्तानी है, साले खुद लोन बाट कर रिटायर हो गए बोझ हम पर डाल गए " सुमित ने बेचारा सा मुँह बना लिया.

रोहित भी समझ चूका था यहाँ किसी की गलती नहीं है.

"सुमित तुम यहाँ बैठो बाकि लोग अपना काम करे "

सुमित रोहित घंटो फाइल्स मे उलझे रहे.

दिन के 12 बज चुके थे.

वहा घर पर काया घर के सभी काम निपटा कपडे बालकनी मे सूखने को डाल रही थी, अकस्मात ही उसकी नजर उसी कमरे पर जा पड़ी जहाँ कल रात वो लड़का निकला था, काया के दिमाग़ मे कोतुहाल सा मचने लगा, अँधेरी रात मे पेशाब की वो धार दिमाग़ मे जगमगाने लगी, काया ने उस धार का पीछा किया तो उसके स्त्रोत तक जा पहुंची... काला सा कुछ लम्बा सा था जहाँ से वो सफ़ेद चमकती धार निकल रही थी...

उफ्फ्फ.... क्या सोचने लगी मै, काया ने अपने दिमाग़ को झटक दिया,

"सब्जी... सब्जी.... ऐ सब्जी..." तभी काया के कान मे एक आवाज़ पड़ी सर उठा के देखा तो पाया बिल्डिंग के गेट के बाहर सब्जी के ठेला लिया आदमी खड़ा था.

"आज रात के लिए तो कुछ सब्जी लेनी पड़ेगी, अभी तो कोई बजार वगैरह भी पता नहीं कहा है?"

काया झट से बाहर की ओर दौड़ पड़ी कही वो चला ना जाये, नयी जगह है अब कहा मिलेगी कोई सब्जी,

काया ने नाहा धो कर एक टाइट लेगी और सूट पहना हुआ था, सोफे पे पड़ा दुपट्टा उठाया और बाहर को चल दी, बाल अभी भी भीगे हुए थे, बालो से पानी किसी मोटी की तरह रिस कर सूट को भिगो दे रहा था.



तुरंत ही काया गैलरी मे थी, लिफ्ट तक गई "ओफ़्फ़्फ़... हो... ये लिफ्ट तो बंद है, क्या yaar क्या जगह है" काया ने तेज़ कदमो से बाजु की सीढ़ी उतरना शुरू कर दिया.

लगभग 3मिनिट मे वो बिल्डिंग के गेट पे खड़ी थी

"अरे कहा गया, अभी तो यही था सब्जी वाला " काया जब तक पहुंची सब्जिवाला जा चूका था.

आस पास कही कोई नहीं था, सिर्फ कुछ मजदूर जो की यहाँ वहा काम मर रहे थे.

"क्या हुआ मैडम जी "

पीछे से आई आवाज़ से काया चौंक सी गई.

पीछे मूड देखा तो पीछे से एक औसत कद काठी का लड़का उसी तरफ बढ़ा चला आ रहा था.

"कककक.... कुछ नहीं "

"आप तो वही मैडम है ना जो कल ही यहाँ आई है " वो लड़का पास आ चूका था.

"आआ... आ. हाँ... कल ही आये है हम लोग "

"मै बाबू हूँ मैडम जी मतलब मेरा नाम बाबू है, यही इसी कमरे मे रहता हूँ, " बाबू ने उस कमरे की ओर इशारा कर दिया
बाबू दिखने मे छोटा सा, दुबला पतला, मासूम, गेहूए रंगत का लड़का था,
[Image: Pf9-FXst-W-400x400.jpg]
काया उसके इशारे को देख थोड़ा सकते मे आ गई " यानि यही वो लड़का है रात वाला " चिंता की एक लकीर सी काया के माथे पर रेंग गई.

"क्या हुआ मैडम कुछ परेशान सी लग रही है आप? कोई काम है तो बताइये "

बाबू सहज़ लहजे मे ही बोला लेकिन चोर तो काया के मन मे था ना इसलिए वो हकला रही थी भले चोर सफाई से चोरी कर ले लेकिन डर हमेशा होता है किसी ने देखा तो नहीं ना, बस यही चोर काया के मन मे था कही बाबू ने उसे नीचे झाकते देखा तो नहीं ना?

"ससस.... सब्जी वो.. सब्जी लेने आई थी मै " काया ने जल्दी से जबाब दे दिया.

"लो इसमें इतना क्या मैडम जी बताइये क्या लाना है अभी ले आता हूँ, सब्जी वाला यही बाजु ही रहता है "

बाबू के सहज़ व्यवहार से काया का दिल दिमाग़ कुछ शांत हुआ. उसे यकीन हो चला कल रात बाबू ने उसे नहीं देखा था.



"आलू भिंडी, बेंगन, टमाटर.... बला.. बला... ले आना " काया ने फट से बैग से पैसे निकाल बाबू को थमा दिए.

"अभी आया मैडम जी यही रुकना "

बाबू हवा की तरह फुर्र हो गया.

"कितना अच्छा लड़का है " काया मंद मंद मुस्कुरा दी.

लें दोपहर की चिलचिलाती धुप काया को परेशान कर रही थी, इधर उधर देखने पर उसे कमरे की शेड की छाव दिखी, काया ने वही इंतज़ार करना भला समझा.

टाइट लेगी कुर्ती पसीने से सराबोर हो चली थी, काया को पसीना ही इतना आता था, "उफ्फ्फ.... ये गर्मी " काया ने दुपट्टा हटा चेहरा और गार्डन पोछ दुपट्टा कंधे पर एक तरफ लटका लिया,

गर्मी से राहत मिली या नहीं ये तो लता नहीं लेकिन काया की खूबसूरत मादक स्तन की दरार जरूर चमक उठी.

लगभग पांच मिनट हुए ही होंगे की "ये लीजिये मैडम आपकी सब्जी " बाबू सामने एक दम से प्रकट हो गया.

बाबू सामने खड़ी काया को देखता ही रह गया, पसीने से भीग कर कपडे जिस्म से लगभग चिपक ही गए थे, ऊपर से काया चुस्त कपडे ही पहनना पसंद करती थी.[Image: 9c9822ce1c79f61cd516dd05e5b02bf3.jpg]

बाबू का सब्जी वाला हाथ आगे बढ़ गया लेकिन नजरें किसी खास जगह पर टिकी हुई थी,

काया ने देखा बभु के हाथ मे कोई 5 थेलिया था जिसमे अलग अलग सब्जियाँ थी, काया ने आगे हाथ बढ़ा के सब्जी लेनी चाही लेकिन बाबू सब्जी छोड़े तो सही.

काया ने बाबू की नजर का पीछा किया तो सकपका के रह गई, बाबू की नजर काया के सीने पे बानी कामुक दरार पर थी,

उसके पसीने ज़े भीगे स्तन सूट से बाहर झाँक रहे थे, दुप्पटा साइड मे कही अलग दुनिया मे था.

"बाबू... बाबू... लाओ सब्जी दो " काया ने तुरंत दुप्पटा ठीक कर लिया.

"हहह... आए..... हाँ... ये लो सब्जी मैडम जी " बाबू का मुँह ऐसे बना जैसे किसी बच्चे से उसकी लॉलीपॉप छीन ली हो.

ना जाने क्यों काया के चेहरे पे उसकी मासूमियत देख हसीं आ गई.

"चलिए मैडम मै सब्जी पंहुचा देता हूँ, इतना सारा आप कैसे ले जाएगी? " काया ने सहर्ष ऑफर स्वीकार कर लिया

ना जाने क्यों उसे बाबू अच्छा लगा था, मासूम, छोटा सा लड़का.

वैसे भी काया को अकेलापन सा लग रहा था, बाबू से मिल के उसे अच्छा लगा.

"दिखने मे तो छोटे से हो तुम, यहाँ नौकरी करने आ गए " काया ने चलते हुए पूछा

"का करे मैडम जी चाचा हमारे यही काम करते थे तो आ गए हम भी मज़बूरी देख के "

" अच्छा क्या उम्र है तुम्हारी अभी "

"18 का हो गए है मैडम जी, बस हाईट थोड़ा छोटा रह गया " बाबू ऐसे बोला जैसे खुद को बड़ा साबित करना चाह रहा हो.

"हाहाहाहा.... क्या बाबू तुम भी "काया उसकी मासूमियत पे हस पड़

तब तक लिफ्ट आ गई थी.

"आइये मैडम लिफ्ट से चलते है " बाबू लिफ्ट की तरफ बढ़ा

"लिफ्ट नहीं चल रही है, मै सीढ़ियों से ही नीचे आई थी " काया ने भी जानबूझ के मुँह बनाते हुए कहा.

असलम मे इंसान सामने वाले के हिसाब से ही बाट करता है, काया ने भी बाबू की मासूमियत के हिसाब से बात की.

"आई हो दादा.... मतलब आप सीढ़ी चढ़ के आई, आप जैसी शहरी मैडम सीढ़ी से आई " बाबू हैरान था

"इतना भी मत बोलो बाबू... ये शहरी क्या होता है इंसान ही हूँ मै, दूसरी दुनिया से नहीं हूँ, आओ सीढ़ी से चलते है "

"का मैडम... आप दूसरी दुनिया से ही तो हो, हमने तो आप जैसे सुंदर गोर मैडम आजतक नहीं देखी " बाबू मासूमियत मे बोल गया

काया सामने सीढ़ी चढ़ने लगी, पीछे बाबू हाथ मे सब्जी थामे

काया का सीढ़ी चढ़ना था की बाबू की सांसे भी चढ़ने लगी, सामने जन्नता का दरवाजा आपस मे रगड़ खा रहा था.[Image: 6556d2baf137f92296ec8c0e6432e562.jpg]

काया की बड़ी सुन्दर गांड आपस मे लड़ झगड़ के सीढिया चढ़ रही थी, जैसे काया एक पैर उठती उसकी गांड का एक हिस्सा निकल के बाहर आ जाता, फिर दूसरा

उउउफ्फ्फ.... बाबू ने ये नजारा सपने मे भी नहीं सोचा होगा.

काया इन सब से बेफिक्र चढ़ी जा रही थी.

"और क्या नहीं देखा?" काया फ्लो मे बोल गई

बाबू का कोई जवाब नहीं.

"बताओ ना और क्या नहीं देखा आजतक?" काया स्त्री सुलभ व्यवहार के नाते अपनी और तारीफ सुनना चाहती थी शायद, तारीफ कोई भी करे कैसी भी करे स्त्री को पसंद आता ही है.



पीछे से जवाब ना पर कर काया ने पीछे मूड देखा बाबू मुँह बाये चला आ रहा था, लगता था सुनने समझने की क्षमता खो बैठा है.
[Image: 5a715e97338df23dadcca40d07e6ab80.jpg]
उसकी नजर गया की मदमस्त कर देने वाली गांड पर टिकी हुई थी.

"बाबू... बाबू...." काया ने जोर से कहा

"कक्क.... कक्क..क्या मैडम जी " बाबू चौंक गया, काया के चेहरे पे गुस्सा था

बाबू काया के बराबर आ चूका था,

"कहा ध्यान है तुम्हारा?" काया ने जानबूझ के ये सवाल किया जैसे कुछ जानना चाहती हो, ना जाने क्यों बाबू को परेशानी मे देख उसे अच्छा लग रहा था.

"कक्क... कही तो नहीं " बाबू ने सीधा सा जवाब दिया.

"अच्छा तो मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दिया "

"क्या... कक्क... क्या पूछा आपने "

"जाने दो... चलो अब... गर्मी बहुत है " काया अगर बढ़ गई

बाबू वैसे ही उसकी गांड निहारता पीछे पीछे चल पड़ा.

काया जानती थी वो क्या देख रहा है, जानते हुए बहुत उसकी चाल ने एक मादकता आ गई थी.

किसी के मजे ले लेने मे क्या दिक्कत है, वैसे भी काया जानती थी हर मर्द उसकी गांड ही देखता है लेकिन उसे पता नहीं था बाबू जैसे छोटे उम्र के लड़को का भी यही हाल होगा.

खेर... कुछ ही देर मे काया का घर आ गया था.

दरवाजा खुला....

"Wow मैडम जी आपका घर कितना अच्छा है, और एक हम है टुटा फूटा सा झोपडी जैसा कमरा मिला है " बाबू सरल स्वाभाव का था कहा क्या बोलना है पता नहीं बस दिल की बात बोल गया.

शायद काया को यही सरल सुलभ व्यवहार पसंद आया था बाबू का.

"ऐसा नहीं बोलते बाबू, मेहनत से सब मिलता है तुम भी करना"

"सब्जी कहा रख दू मैडम जी "

"वहा किचन मे "

तब तक काया दो glass पानी ले आई, "लो बाबू पी लो "

बाबू एकटक काया को देखे जा रहा था

"क्या देख रहे हो पियो, प्यास नहीं लगी है " काया मुस्कुरा दी

"आप कितनी अच्छी है मैडम जी, वरना हम जैसे को कौन पूछता है, नीचे आरती मैडम रहती है वो तो हमेशा डांट देती है, गुटूक गुटूक गुटूक... बाबू एक सांस मे पानी पी गया.

कौन आरती?

"नीचे वाले फ्लोर पर रहती है, काली मोटी "

"ऐसा नहीं बोलते किसी के लिए बाबू "

काया को जानकारी हुई की ओर भी लोग रहते हे यहाँ

"अच्छा मैडम चलता हुआ मै, ये आपके बाकि पैसे " बाबू ने सब्जी मे से बचे पैसे काया की तरफ बढ़ा दिए.

"रख लो बाबू काम आएंगे " काया मे एक सादगी थी, एक अपनापन था जिस से मिलती वो उसका दीवाना हो जाता उसका व्यवहार ही ऐसा था

बाबू भी प्रभावित था.

"थन्कु मैडम जी "

बाबू चल दिया ...

काया मन ही मन मुस्कुरा उठी, बाबू उसे भला लड़का लगा.



वही दूसरी ओर बैंक मे रोहित और सुमित घंटो फाइल्स मे सर खापा के उठे, 4,5 कप चाय के खाली हो चुके थे.

"सुमित ये तो बहुत बहुत बढ़ा अमाउंट है पुरे 50 लाख रिकवर करने होंगे हमें "

"जी सर "

"और ये कय्यूम खान कौन है बैंक ने अकेले इसे 30लाख दिए है, ये मोटा बकरा है इसे ही पकड़ के पैसे निकाल ले तो काम हो जायेगा "

"सर यही तो मैन समस्या है, कय्यूम खान इस गांव का रसूखदार व्यपारी है, व्यापार के नाम पर 15, 10,5 लाख कर ले लोन उठाया था, अब बोलता है धंधा डूब गया, पैसे देने को राज़ी नहीं है "

सुमित ने तुरंत दुखड़ा रो दिया

"ऐसे कैसे चलेगा सुमित, एक बार बात करनी पड़ेगी ना "

टंग... टंग.... टंग.... मकसूद...

रोहित ने ऑफिस की बेल बजा मकसूद को बुलावा भेजा

"जी... साब..." मकसूद फ़ौरन हाजिर

"तुम तो यहाँ के लोकल आदमी हो, ये कय्यूम को जानते हो?"

"साब कय्यूम नहीं कय्यूम दादा बोलिये "

"ओह शटअप मकसूद, ये दादा क्या होता है?" रोहित ने अफसरगिरी दिखाते हुए तुरंत मकसूद को झाड़ दिया.

"साब इस गांव के दूसरी तरफ कय्यूम खान का ठीकाना है, "

"क्या धंधा करता है वो"

"साब... वो... वो..."

"बोलो भी... दिन भर का समय नहीं है मेरे पास "

"साब वो बुचड़खाना चलता है, मांस का धंधा करता है, बकरा मुर्गा काटने और बेचने का धंधा है उसका "

"हम्म्म्म..... रोहित सोच मे पड़ गया, अब ओखल मे सर दे दिया है तो मुसल से क्या डरना, वैसे भी उसने ऐसे टेड़े आदमियों को हैंडल किया ही था.

"चलो सुमित बात कर के आते है, मकसूद गाड़ी निकालो "

"मममम.... मै... मै... कैसे... मै कैसे जा सकता हूँ " सुमित कुर्सी पर पीछे की ओर जा बैठा जैसे की रोहित ना हो कोई भूत हो.

"क्यों तुम बैंक के कर्मचारी नहीं हो? तुम सैलरी नहीं लेते? तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है?"

"हहह.... है... है... सर लेकिन वो कय्यूम खान का बुचड़ खान बदबू और खून से भरा रहता है, मै शुद्ध शाकाहारी आदमी हूँ सर, एक बार गया था उल्टिया करता वापस आया हूँ"

सुमित ने साफ तौर पर असमर्थता जाता दी.

अब मरता क्या ना करता " चलो मकसूद " रोहित अकेला ही चल पड़ा.

20मिनट मे ही कार कय्यूम के बुचड़खाने के सामने खड़ी थी.

रोहित आस पास के लोगो के कोतुहाल का विषय बना हुआ था, सफ़ेद साफ सुथरे कपडे, टाई पहना शहरी बाबू....

"कय्यूम दादा अंदर है क्या?" मकसूद ने गेट पर खड़े आदमी से पूछा.

"बोलो क्या काम है " गेट लार खड़ा काला भद्दा सा आदमी ने कड़की से सवाल दागा

"बोलो बैंक से नये बड़े साब आये है "

तुरंत ही आदेश का पालन हुआ, गेट खोल दिया गया.

गेट से चल कर कोई 100 मीटर की दुरी पर एक घर नुमा आकृति बनी हुई थी,

पुरे रास्ते बकरे, मुर्गीयो के दबडे, कीचड़ भरा पड़ा था.

मकसूद और रोहित को पैदल ही वहा तक जाना पड़ा. इमारट की दहलीज पर दोनों के पैर थिठक गए.

" आप मकसूद आओ.... कौन बड़े साब आये है इस बार? "

एक भारी कड़क रोबदार आवाज़ ने रोहित के पैर वही थाम लिए.

सामने एक 6फीट का काला बिलकुल काला, भद्दा सा मोटा आदमी खड़ा मुस्कुरा रहा था.

गंदी सी लुंगी पहने, मैली बनियान शायद सफ़ेद बनियान रही होंगी कभी आज खून और मेल से लाल काली हुई पड़ी थी.

काले पसीने से तर गले मे भारी सी सोने की चैन लटक रही थी, उसके नीचे गंदे से, पसीने से भरे बालो का गुच्छा बनियान से बाहर झाँक रहा था.

पसीने की इतनी बदबू गंध ना जाने कब से नहीं नहाया था कय्यूम.

"तुम ही ही कय्यूम खान " रोहित ने हिम्मत दीखते हुए सवाल तलब किया.

"हाँ साब मै ही हूँ कय्यूम दादा" रोबदार भारी आवाज़ गूंज उठी.[Image: Picsart-24-03-11-14-36-49-844.jpg]



पति पत्नी दोनी के पहले दिन मे अंतर था, दोनों ही किसी अनजान शख्स से मिले थे.

अनजान इंसान से मिल के काया के चेहरे पे मुस्कान थी तो वही रोहित के माथे पर पसीना और दिल मे खौफ ने जगह बन ली थी.

क्या रोहित लोन रिकवर कर पायेगा?

रोहित और काया का जीवन जल्द ही बदलने वाला है शायद.

बने रहिये कथा जारी है....
Like Reply
#8
अपडेट -4, [Image: Picsart-24-03-14-14-15-23-178.jpg]काया की माया

"हाँ मै कय्यूम दादा बताइये, कैसे आना हुआ " एक भारी मर्दाना आवाज़ गूंज उठी.

रोहित के सामने एक राक्षसनुमा इंसान खड़ा था, भीमकाय, लम्बा चौड़ा, काला गच इंसान,

"मै... मममम... मै.... रोहित हूँ बैंक का नया मैनेजर " रोहित ने खुद मे आत्मविश्वास पैदा करते हुए कहा.

हालांकि कय्यूम को देख लेने के बाद ये शब्द रोहित के हलक से निकल पाए बहुत बड़ी बात थी.

"आइये आइये साहब अंदर आइये, इस गरीब की कुटिया मे आइये " कय्यूम तुरंत हाथ जोड़ झुक गया

जैसा दीखता था शायद वैसा नहीं था कय्यूम

या फिर रोहित के बड़े साहब होने की इज़्ज़त बक्श रहा था.

रोहित नाक भो सिकोड़ता कमरे मे दाखिल हो गया

"साब अब धंधा ऐसा है ना क्या करे, आप शहरी बाबू है ये गांव ये बीहड़ यहाँ के धंधे आपको कहा समझ आएंगे " कय्यूम ने एक कुर्सी आगे कर दी और खुद सामने पलंग पर जा धसा.

रोहित ने देखा बाहर के मुक़ाबले अंदर का कमरा ज्यादा अच्छा था, साफ सुथरा सजाया हुआ.

एक बढ़ा सा गद्देदार पलंग था जिस पर कय्यूम फसा हुआ सा बैठा था, सामने गद्देदार सोफा जिस पर रोहित बैठा था.

"बताइये साब क्या सेवा करे आपकी "

जवाब मे रोहित ने फ़ाइल आगे टेबल पर दे मारी " ये क्या है कय्यूम? "

रोहित ने बिना किसी प्रस्तावना के बिना इज़्ज़त के उसका नाम ले लिया था, कोई इज़्ज़त नहीं.

"साब... साब.... " मकसूद ने पीछे से टोकना चाहा.

" जाने दे मकसूद हम गरीब लोग कर्जदार है साब के " कय्यूम ने हाथ के इशारे से महसूद को रोक दिया.

रोहित को अफसरगिरी झाड़नी ही थी, सो झाड ही दी.

"हाँ तो कय्यूम सीधा मुद्दे पे आते है, ये इतने रुपये का क्या किया तुमने?" रोहित सीधा बात करने के मूड मे था.

पीछे मकसूद का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था,

"रोहित साब ये क्या बोल रहे है?"

"मकसूद साब के लिए ठंडा पकड़ ला जरा " कय्यूम ने जैसे ऑर्डर मारा हो.

मकसूद बैंक का मुलाजिम था लेकिन कय्यूम के एक ऑर्डर पर "जी दादा अभी... अभी लाया"
लेकिन मकसूद वहा से गया नहीं, ना जाने क्या डर सताए जा रहा था उसे.

"हाँ तो साब आप क्या कह रहे थे " कय्यूम बड़ा ही सबर से भरा इंसान मालूम होता था.

शांत दिल और मुस्कुराहट के साथ उसने रोहित से पूछा.

"क्या किया इतने रुपये का?, कोई हिसाब है? " रोहित वैसे ही अकड़पन मे कय्यूम पर धौंस जमाये जा रहा था.

"साब वो धंधा करने के लिए पैसा लिया था "

"तो पैसे भी तो वापस देने होते है?"

"कहाँ से दू?"

"अरे बड़े अजीब आदमी हो, मै देख रहा हूँ इतना बड़ा घर है, जमीन है, बकरी मुर्गीया है फिर भी कहते हो कहाँ से दू पैसा?" रोहित कुर्सी पर आगे को सरक गया.

"साब मै तो दिवालिया हूँ, ये सब तो मेरी बीवी के पैसे से है, चाहे तो आप चेक कर ले " कय्यूम वैसे ही प्यार और इज़्ज़त से ही बोल रहा था.

रोहित ने कभी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा था, वो उस से इतना बेरुखी से पेश आ रहा था और कय्यूम सफाई पे सफाई दिए जा रहा था, जैसा मकसूद ने कहाँ था वैसा तो नहीं ये आदमी?

"लेकिन पैसा लिया है तो चुकाना तो होगा ना " रोहित ने फ़ाइल खोल उसका नाम और उसके नाम पर दिए गए लोन का पन्ना आगे कर दिया.

"साब कागज़ का क्या है, अब पैसा नहीं है तो क्या करू? "

"बेच के चूका दो "

"क्या बेच दू अपनी औरत को बेच दू, तौबा तौबा साब कैसी बात करते हो " कय्यूम पलंग से उठ खड़ा हुआ

"ममम.. मममम.... मेरा वो मतलब नहीं था "

"तो क्या मतलब था साब?" कय्यूम बात का पतंगड़ बना रहा था.

"देखो कय्यूम, तुमने बैंक का पैसा लिया है वापस तो करना पड़ेगा, 5 साल होने को आये एक नया पैसा ब्याज भी नहीं दिया, मजबूरन बैंक को तुम्हारी सम्पत्ति नीलाम करनी पड़ेगी " रोहित ने आधिकारिक बात कह सुनाई.

"लेकिन ये सब मेरा नहीं है, मै तो दिवालिया हूँ ये सब मेरे बाप और बीवी के नाम पर है मेरा कुछ नहीं साब "

रोहित का दिमाग़ अब गरम हो चला था.

"कय्यूम तुम जैसो को मै अच्छे से जनता हु,  बैंक का पैसा खा कर बहाने करते हो, पाई पाई निकलवा लूंगा तुमसे "

"आप कही धमकी तो नहीं दे रहे मुझे " कय्यूम का चेहरा अब बिगड़ने लगा था.

मकसूद ठंडा नहीं लाया अभी तक, जा जल्दी ला शहरी बाबू गर्म हो रहे है.

मकसूद अभी भी वही खड़ा था,

"साब.... साब..... आज के लिए बहुत है चलते है " मकसूद ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए रोहित का हाथ पकड़ उसे कुर्सी से उठा दिया.

"मकसूद क्या कर रहे हो...."

"साब.... आप नये है, मै समझा दूंगा, माफ़ी कय्यूम दादा, साब नये आये है " मकसूद लगभग रोहित को घसीटाता बाहर ले गया.

आनन फानन मे मकसूद ने रोहित को कार मे बैठा दिया, कार गॉव के बाहर दौड़ा दी.

"मकसूद गाड़ी रोको.... रोको.. गाड़ी.... रोहित चिल्लाया "

चररररररर....करती गांव के कच्चे रास्ते पर जा रुकी.

"ये क्या हरकत थी मकसूद मै बात कर रहा था ना?"

"साब आप समझ नहीं रहे है, वो कय्यूम, दादा है यहाँ का, मै उसी मोहल्ले मे रहता हूँ मै खूब जानता हूँ उसे, मुझे ताज्जुम है की आपकी बदतमीज़ी के बाद भी हम सही सलामत बाहर आ गए "

"क्या बकते हो, तुम मुझे डरा रहे हो "

"डरा नहीं रहा साब जानकारी दे रहा हूँ, आज तक कय्यूम ने इतनी तमीज़ से किसी से बात नहीं की, उसके सामने ऊँची आवाज़ मे कोई बोल भी नहीं सकता "

"तुम मुझे डरपोक समझते हो?"

"कौन कहता है आप डरपोक है, ये आपका काम है साब लेकिन समझदारी भी कोई चीज होती है ना "

मकसूद की बाते कुछ कुछ समझ आ रही थी रोहित को.

"आपको आये अभी 2 दिन भी नहीं हुआ और आप सीधा शेर की मांद मे घुस गए थे, कय्यूम की बहुत इज़्ज़त है यहाँ, बहुत रसूख वाला इंसान है"

मकसूद श्री कृष्ण की तरह सारथी बना रोहित रुपी अर्जुन को ज्ञान दे रहा था.

"पुलिस वगैरह सब उसी के पैसो पे पलते है, आपको लगता है वो बैंक के पैसे लोटायेगा?"

रोहित मूड कर सडक के साइड खेतो की तरफ चल पड़ा, दिमाग़ सांय सांय कर रहा था, अब उसके दिल मे हल्का हल्का खौफ जगने लगा था, उसके सामने कय्यूम का भयानक चेहरा मोहरा छाने लगा था.

"तालाब मे रह के मगरमछ से बैर नहीं लेती साब, और तरीका सोचिये "

मकसूद की बाते रोहित के दिल दिमाग़ मे अच्छे से बैठ गई थी, ये जयपुर नहीं था की 5,10 लाख का लोन रिकवर कर लिया बन गए शेर. पुलिस और नीलामी की धमकी दी और काम बन गया.

"हाँ.... हम्म्म्म.... मकसूद तुम ठीक कहते हो मुझे ठन्डे दिमाग़ से काम लेना होगा,.

रोहित कार मे जा बैठा, पीछे पीछे मकसूद भी,

"बैंक चले साब?"

रोहित ने घड़ी देखी, 5 बज गए थे " घर ही ले लो बैंक मे क्या काम अब "

कार कच्चे रास्ते पर दौड़ चली.

5मिनट बाद ही " मकसूद.... रोको... रोको.... जरा "

"क्या हुआ साब?"

"वो सामने से एक बोत्तल ले आओ " रोहित ने एक दुकान की तरफ इशारा कर दिया

सामने रोड के किनारे दुकान थी " देसी वो अंग्रेजी शराब की दुकान "

"ये लो पैसे, और ballantine ले आना " रोहित ने पैसे मकसूद को थमा दिया

"सा....साब ये कौनसी चीज है "

"दारू है yaar उसका नाम है "

"ये तो कोई विलायती जान पड़ती है, यहाँ नहीं मिलेगी " माकसूद ने 3000rs देख अंदाजा लगा लिया था रोहित कोई महंगी दारू मंगा रहा है.

"तो क्या मिलेगा?"

"700 रूपए तक मे मिल जाएगी कोई अंग्रेजी"

"ठीक है वही ले आ " रोहित आमतौर पे नहीं पिता था बस कभी कभी ज्यादा वर्क लोड होने पर पी लेता था, आज वैसे ही उसके दिमाग़ का दही हो ही चूका था पहले दिन ही नाकामी हाथ लगी थी.

मकसूद जाने लगा.

"अच्छा सुनो अपने लिए भी कुछ ले लेना "

"जनन.... जी... जी... साब " मकसूद का चेहरा खील उठा पहली बार किसी साब मे उसे दारू को पूछा था.

थोड़ी ही देर मे, मकसूद एक विदेशी और एक देसी दारू के साथ कार मे मौजूद था.

रोहित ने बोत्तल को देखा, एक ठंडी सांस भरी " चलो मकसूद घर छोड़ दो आज सर भारी है थोड़ा "

चररररर...... सससससरर..... कार धूल उड़ाती दौड़ पड़ी.

शाम 6. 00pm

टिंग टोंग

फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.

काया दौड़ती हुई सामने प्रकट थी.

"कैसा रहा रोहित आपका पहला दिन?" काया ने रोहित का बेग और हाथ मे थमी थैली सँभालते हुए कहाँ.

"क्या खाक दिन काया, बहुत चैलेंज है मेरे लिए यहाँ, पूरा बैंक डूबा हुआ है " रोहित धम्म से वही सोफे पर बैठ गया.

"क्या हुआ रोहित बहुत परेशान लग रहे हो " काया पानी का glass ले आई थी,

रोहित एक सांस मे गटागट पानी पी गया "हम्म्म्म काया नौकरी ऐसे ही होती है तरक्की के साथ जिम्मेदारी भी आ जाती है "

काया कुछ नहीं बोली, सीधा किचन मे चली गई.

बाहर रोहित फ्रेश हो सोफे पर धसा पेग बना चूका था,

काया साइड किचन मे खाना बना रही थी,

रोहित एक के बाद एक पेग पिए जा रहा था, सामने टीवी चल रही थी लेकिन उसका ध्यान उधर कतई नहीं था.

"क्या हुआ रोहित इतना क्यों पी रहे हो " याकायाक सामने काया खड़ी थी खूबसूरत white गाउन पहने, पीछे से आती रौशनी मे काया का जिस्म साफ नुमाया हो रहा था.
काया का जिस्म इतना भरा था की गाउन उसके जिस्म से चिपका बदन का एक एक हिस्सा उजागर कर रहा था, काया आम तौर पे घर पे ब्रा पहनना सही नहीं समझती थी.
नतीजा boobs की खूसूरती उभर के रोहित को ललचा रही थी, गाऊन के कपडे से झाकते निप्पल रोहित को बुला रहे थे.
[Image: images-2.jpg]
ना जाने रोहित को क्या हुआ, सीधा उठ खड़ा हुआ काया को अपने आगोश मे भर लिया.

"क्या कर रहे हो रोहित, छोडो, बहुत काम है अभी " काया ने खुद को छुड़ाना चाहा.

तब तक देर हो चुकी थी, रोहित के होंठ काया के होंठ से जा मिले थे,

शायद दारू का शुरूर था, ऊपर से काया का मादक मदमस्त जिस्म.

रोहित लगातार काया के होंठो को चूसे जा रहा था.

गूगगग.... गु.... गु.... रोहित रुको.. "

लेकिन रोहित कहाँ सुनने वाला था.

रोहित हमेशा जल्दी मे होता रहा लेकिन जैसे आज उसके जल्दीपने मे गुस्सा भी घुला हुआ था.

काया साफ महसूस कर सकती थी,

रोहित किसी जानवर की तरह काया के होंठ चबा रहा था, काया दर्द से परेशान थी, इस चुम्बन मे प्यार तो कतई नहीं था बिलकुल भी नहीं.

"रोहित..... रोहित.... क्या हो गया है तुम्हे " काया ने खुद को छुड़ाते हुए कहाँ

"तुम बहुत सुन्दर ही मेरी जान " रोहित ने काया को धकेलते हुए वही सोफे पर लेटा दिया,

काया कुछ समझ पाती की रोहित का पजामा नीचे धरती चाट रहा था, तुरंत ही काया के पैर फैला रोहित जंग-ऐ -मैदान मे कूद पड़ा.

काया ने लाल कलर की पैंटी पहनी थी, एक पतली सी पट्टी काया की खूबसूरत फूली हुई चुत को ढके हुए थी जिसे रोहित ने ऊँगली से साइड कर अपना औसत लम्बाई का लंड अंदर ठेल दिया.

"आआहहहह.... रोहित.... उउउफ्फ्फ...." काया बिलकुल भी उत्तेजित नहीं थी, बस समझ नहीं पा रही थी रोहित कर क्या रहा है.

रोहित को कहाँ परवाह थी, वो कभी सम्भोग मे कोई भूमिका नहीं निभाता था, बस सीधा लंड को चुत मे डाल देने को ही sex समझता था.

आज भी यही किया.. धच धच.... फच.... करता लंड ठेलने लगा, [Image: 38195891.gif]दारू के नशे से लंड मे वो कठोरता भी नहीं जान पडती थी.

पहले सम्भोग मे प्यार था, उतावलापन हुआ करता था, हालांकि आज भी जल्दी मे था रोहित लेकिन प्यार कही नहीं था, रोहित का चेहरा ऐसा था जैसे गुस्से मे हो.

"काया आजी छोडूंगा नहीं तुम्हे , ले और ले..... फच... फच.....
देखो मै किसी से नहीं डरता, पाई पाई वसूल कर लूंगा.
रोहित नशे और गुस्से मे ना जाने क्या बड़बड़ा रहा था काया अनजान थी.
रोहित पूरी ताकत से धक्के मार रहा था, जो की काया की चुत से रगड़ खाता सा लग रहा था.

उउउफ्फ्फ..... रोहित.... काया भी हथियार डाल चुकी थी, रोहित की मर्ज़ी ही उसकी मर्ज़ी हुआ करती थी, उसने भी अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया.

काया का जिस्म रिस्पांस करने लगा था.

परन्तु रोहित पहले से बहुत तेज़ हो चूका था.

"आअह्ह्ह..... रोहित आराम से धीरे.... आअह्ह्ह...."

काया के मुँह से ये शब्द निकले ही थे की फच... फच... फचक.... करता रोहित झड़ गया, रोहित sex के वक़्त थोड़ी समझदारी ये दिखता था की वीर्य निकलने से पहले लंड बाहर निकाल लेता था, आज भी वही किया, रोहित के लंड ने 2बून्द वीर्य काया के गाउन पर टपका दिया.

जयपुर मे रोहित कंडोम का इस्तेमाल करता था, लेकिन अभी तक उसे ऐसा मौका नहीं मिला था वो अभी बच्चा नहीं चाहते थे.

" हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.... Hummffff.... काया " रोहित पूरी तरह निढाल साइड मे बैठ गया, उसके चेहरे पे अब शांति थी, गुस्से का नामोनिशान नहीं था.

काया भी एक अच्छी बीवी की तरह उठ बैठी, "क्या हुआ है रोहित आज "

काया ने प्यार से रोहित के सर पर हाथ फेर पूछा.

रोहित कितना लकी था जो उसे ऐसी बीवी मिली थी, ना कोई शिकायत, ना कोई गुस्सा बस प्यार, पति की मर्ज़ी ही खुद की मर्ज़ी मान लेती थी.

"कुछ नहीं काया वो... वो... बैंक मे आज...." रोहित ने कय्यूम के साथ का किस्सा कह सुनाया.

"लो इतनी सी बात पर ऐसे गुस्से मे बैठे थे, हो जायेगा रोहित " काया की आवाज़ मे जादू सा था बोलती ही इतना मीठा थी.

डिनर खत्म कर दोनों बिस्तर के हवाले हो गए.

रात के 11 बज गए थे.

रोहित खर्राटे भर रहा था तो वही काया की आँखों से नींद ओझल थी.

शाम को हुए वाक्य से उसका ध्यान ही नहीं हट रहा था, प्यार की एक कमी सी खल रही थी जैसे.

रोहित का ये रूप आज से पहले उसने कभी नहीं देखा था, गुस्से मे उसका लंड अंदर बाहर करना बर्दाश्त के बाहर था.

काया के जिस्म मे झुरझुरी सी चल रही थी, आधे अधूरे सम्भोग से उसका जिस्म जल रहा था, करवटे बदलती काया को अपनी जांघो के बीच कुछ चुभता सा महसूस हो रहा था.

काया ने जाँचना चाहा तो पाया की पैंटी का बीच का हिस्सा कड़क, और आस पास गिलापन है. काया की ऊँगली पैंटी के बीच उभरी गीली लकीर पे जा लगी, जैसे कुछ टटोल रही हो, आअह्ह्ह.... ऊँगली उस नाजुक अंग पे छूते ही काया के मुँह से कामुक आह फुट पड़ी, काया को कुछ सुकून सा अहसास हुआ, आज से पहले उसने कभी ऐसा नहीं किया था, गिलापन काया को परेशान कर रहा था उसने पैंटी को साइड किया तो पाया चुत से एक पतली तार नुमा लकीर पैंटी के साथ खींचती चली गई,

उउउफ्फ्फ..... ये क्या? काया खुद हैरान थी, उसकी उंगलियां जैसे उसके काबू मे नहीं थी, नंगी फूली हुई चिकनी चुत लार से भीगी ऊँगली कुरेदने लगी, आआहहहह..... कमाल का अहसास था, जो बर्दाश्त भी नहीं हो रहा था काया की जाँघे आपस मे चिपक गई, या फिर काया खुद से शर्मा गई थी.

काया को अच्छा तो लगा था, लेकिन शायद मन गवाह नहीं दे रहा  था, नींद आँखों से पूरी तरह ओझल थी [Image: cannibal6-luukk-309769.gif]

कैसे नींद आती भला, काया उठ के बालकनी मे चली आई, ठंडी हवा के थपेड़े सुकून दे रहे थे फिर भी चुभन और गिलापन बारकरारा था, काया ने गाउन हल्का सा ऊपर कर हाथ अंदर डाल पैंटी को नीचे सरकाते हुए खोल दिया.[Image: taking-off-her-4509.gif]

लाल रंग की पैंटी पसीने और चुत रस से सरोबर थी.

"उउउफ्फ्फ..... ये पसीना " काया कभी कभी अपने इस पसीने से परेशान सी हो जाया करती थी.

हालांकि अब ठंडी हवा जांघो के बीच सुकून दे रही थी, लेकिन जिस्म मे सुकून नहीं था.

काया खुद मे खोई हुई थी की अचानक उसके हाथ से पैंटी छूट कर बालकनी से नीचे जा गिरी...

"ओह... गॉड... ये... ये क्या हुआ " काया हक्की बक्की खड़ी नीचे देख ही रही थी की नीचे कमरे का गेट खुल गया, लाइट की रौशनी से कमरे के आगे का हिस्सा जगमगा गया.

कल रात भी इसी टाइम पर बाबू बाहर आया था, तो क्या.. आज... आज... भी काया का दिल धाड धाड़ कर बज रहा था, अब तक उसकी लाल पैंटी जमीन चाट चुकी थी.

नीचे बाबू कमरे के बाहर तक आ चूका था, काया के जहन मे कल रात की घटना दौड़ गई, कल अनजाने मे हुआ था आज काया को वापस चले जाना चाहिए था,

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, काया का जिस्म पहले से गर्म था अब उस पल के इंतज़ार मे सुलगने सा लगा था.

जिस बात का इंतज़ार था हुआ भी वही, बाबू कुछ दुरी पर जा कर पजामा नीचे कर खड़ा हो गया,

आज ऐसे खड़ा था की रौशनी मे लंड जगमगा रहा था, [Image: images-9.jpg]आज उसका आकर प्रकार साफ नजर आ रहा था. काया उस अंग को देख हैरान थी, बाबू मासूम सा नजर आता था, छोटा बच्चा दीखता था लेकिन, उसका ये.... ये.... तो कुछ बड़ा सा लग रहा है.

हालांकि इतनी ऊपर से साइज का अंदाजा लगा पाना मुश्किल ही था, पर क्या करे काम की इच्छा पाले इंसान को कामुक अंग साफ नजर आते है, काया की नजर बरबस बाबू के लंड पर ठीठक गई की तभी.....

ससससससरररर....... पप्पापिस्स्स...... तेज़ धार फुट पड़ी दूर तक, काया धार का पीछा करती गई तो पाया की जिस जगह बाबू का पेशाब गिर रहा है उससे कुछ दुरी पर ही उसकी लाल पसीने से भीगी पैंटी पेशाब के छिंटो का आनन्द उठा रही है.

बाबू मस्ती मे मस्त खुली हवा मे लंड निकाले मूत रहा था,

ऊपर काया जैसे बूत बनी हुई थी कभी अपनी पैंटी को देखती तो कभी बाबू के लंड को.

सुंदर चिकना, लम्बा सा बड़ा ही मनमोहक प्रतीत होता था.

काया अभी अभी नाकाम सम्भोग से गुजरी थी, ये पल किसी भी काम पिपशु स्त्री के लिए सुख देने वाला ही था.

काया भी उस दृश्य को देखती रही ना जाने क्या उत्तेजना थी इसमें.

कुछ ही पलो मे बाबू ने काम खत्म कर पजामा उठाना चाहा की, उसकी नजर सामने पड़ी, सामने कुछ तो था नीचे जमीन पे पड़ा हुआ.

बाबू पजामा कस नजदीक जाने लगा.

"ओह... गॉड.... उफ्फ्फ.... नहीं... बाबू plz नहीं " काया मन ही मन भगवान से खेर मना रही थी.

लेकिन भगवान तो खुद मजे लेने के मूड मे बैठा था, बाबू दो कदम चल उस कपडे को उठा लिया.

काया ये सब होते देख रही थी, एक बाबू ही तो था जिस से वो घुली मिली थी, क्या सोचेगा मेरे बारे मे उफ्फ्फ्फ़....

बाबू ने पैंटी उठा ली, आस पास देखा, कोई नहीं था अलट पलट देखा, ना जाने क्या देख रहा था.

ना जाने  बाबू को क्या सूझी पैंटी को अपनी नाक के नजदीक ले गया सससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस खिंच फिर इधर उधर देखा.

"छी... ईई..... ये बाबू क्या कर रहा है " काया के लिए ये घृणा से भरा था, उसके पति ने भी आजतक ऐसा नहीं किया था,

काया को याद आया शादी के बाद रोहित ने एक दो बार उसकी चुत चाटने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन कभी कर ना सका, उसका कहना था काया तुम्हे पसीना बहुत आता है, स्मेल आती है तुम्हारी उस से.

उसके बाद काया ने भी कभी इच्छा नहीं की वो जानती भी नहीं थी की सम्भोग मे ऐसा भी होता है.

खेर बाबू की हरकत से काया का मन घिन्न तो हुआ लेकिन एक अजीब से लहर भी नाभि से जांघो के बीच दौड़ पड़ी, जैसे किसी ने नंगा तार छुवा दिया हो.

नीचे बाबू झट से पैंटी को जेब मे रख उल्टे पैर भाग खड़ा हुआ "bhaddakkkk" से कमरे का दरवाजा बंद हो गया.

सांय... साय..... सी हवा काया के जिस्म को पार कर जा रही थी, माथे पर पसीना था.

"हे भगवान अब क्या होगा, बाबू से कभी मिलना हुआ तो कैसे आंख मिलाएगी "

काया बैडरूम की ओर बढ़ चली, पैर और जांघो का ऊपरी हिस्सा भारी था.

"बाबू को कैसे मालूम पड़ेगा की किसकी है? बहुत लोग काम करते है, नीचे के फ्लोर पर भी कोई रहता ही होगा,. मै बेवजह ही चिंता कर रही हूँ " काया ने खुद की चिंता को अपने तर्क से समाप्त कर लिया था.

बेचैन दिल और जलता जिस्म लिए काया बिस्तर मे समा गई.

हर भारतीय नारी की यही कहानी है, सम्भोग मे संतुष्टि किस्मत से ही मिलती है,

नाकाम सम्भोग ही हर नारी के जीवन का हिस्सा है, तो शिकायत कैसी?

Contd...
[+] 3 users Like Andypndy's post
Like Reply
#9
(01-04-2024, 01:45 PM)Projectmp Wrote: बेहद कामुक और असाधारण

थैंक्स bro....
Enjoy
Like Reply
#10
(02-04-2024, 05:55 PM)Bhikhumumbai Wrote: Achchhi story he pahele kisi ne isi styal me Thoda likh ke chhod diya tha. aap Pura karna. aur kaya ko Ragad ragad ke Chikhe niklva niklva ke Chudvana Roj Rohit Ko bolti he na ki kash thoda aur ruk jate.

बिलकुल पूरी होंगी ये कहानी.
[+] 1 user Likes Andypndy's post
Like Reply
#11
Very good work.Pl post next part. Waiting
Like Reply
#12
Very good start. maza aa gaya. Update pls
Like Reply
#13
waiting for update
Like Reply
#14
perfect story make husband cuckhold and pimp woman
Like Reply
#15
blackmail husband too
Like Reply
#16
next update please hot and kinky with pics

[Image: E2-AUy-Sv-VUAMCCCh.jpg]
[Image: Picsart-23-02-17-22-47-27-475.png]
Like Reply
#17
Excellent story  yourock
Like Reply
#18
अपडेट -5

Day -3[Image: Picsart-24-03-15-10-57-53-258.jpg]

सुबह शांत थी, रोहित नाश्ता कर चूका था.

"काया मै चलता हूँ "

"रोहित ये टिफ़िन " काया ने रोहित को टिफ़िन थमा दिया.

रोहित चलने को ही था " सुनो ना रोहित आज लंच मे आ जाओगे क्या, घर के लिए जरुरी सामान लेना है "

"कैसी बात करती हो काया आज दूसरा ही दिन है मेरा बैंक मे "

काया का चेहरा उतर सा गया.

"ऐसा करता हूँ मकसूद को भेज दूंगा दिन मे, वो बाजार जनता भी यहाँ का जो इच्छा हो ले लेना"

रोहित बाहर को चल पड़ा.

"ररर.... रो... रोहित " लेकिन रोहित रुका नहीं.

काया के मन मे दुविधा थी, मकसूद उसे कुछ अजीब नजरों से देखता था.

खेर काया शहरी लड़की थी हैंडल कर सकती थी ये सब.

काया घर के कामों मे व्यस्त हो गई...

अभी मकसूद को आने मे वक़्त है" काया बाथरूम की ओर बड़ी ही थी की

"टिंग टोंग...." अभी कौन आया?

शायद रोहित ही होंगे कुछ भूल तो नहीं गए?

काया रात वाले गाउन मे ही थी, जिस्म पर टाइट गाउन कसा हुआ था, ब्रा पहनती ही नहीं थी, और पैंटी कल रात बालकनी से नीचे जा गिरी थी,

घर के काम काज मे काया को इस बात का इल्म भी ना हुआ

साद्ददाककककम.... से दरवाजा खोल दिया.

"बाबू तत त त.... तुम "

"हाँ मैडम आपका कपड़ा कल नीचे गिर गया था वही लौटने आया हूँ "

काया का तो खून सफ़ेद पड़ गया था, कल रात का दृश्य उसके सामने दौड़ पड़ा, मतलब अब.... अभी उसने गाउन के नीचे कुछ नहीं पहना है?

सामने बाबू की भी वही हालत थी, पीछे खिड़की से आती रौशनी काया के गाउन मे छुपी उसकी जवानी को बयान कर रही थी, मादक जिस्म का एक एक कटव साफ झलक रहा था.[Image: images-1.jpg]

"ममम.... मैडम.... वो.... वो आपकी ये कच्छी "

बाबू ने हाथ आगे बड़ा दिया, उसकी अवस्था भी कुछ ठीक नहीं थी.

उसके हाथ मे तुड़ी मुड़ी लाल कलर की पैंटी थी.

काया क्या बोलती? कैसे बोलती.... मममम.... मेरी..मेरी कैसे?

काया आज अपनी पैंटी को अपनाने से मना कर रही थी,

"आपकी ही तो है मैडम जी " बाबू ने हथेली खोल काया के सामने लहरा दी...

काया ने झट से हाथ आगे बढ़ा पैंटी को अपने कब्जे मे ले लिया.

उसकी इस हरकत से साबित हो गया था की ये पैंटी उसी की है.

"मैंने कहाँ था ना आपकी ही है" बाबू ने जैसे जीत प्राप्त कर ली हो.

"वो... वो.... कल गिर गई होगी शायद सूखने को डाली थी.

आओ अंदर बाबू.... काया ने खुद को संभाल लिया था,

दरवाजा बंद हो चला.

"तुम्हे कैसे पता की मेरी है? काया जानना चाहती थी बाबू इतने विश्वास के साथ कैसे बोल रहा है.

"अब ऐसी डिजाइनर कच्छी भला इस गांव मे कौन पहनेगा, महंगी लगती है, मुझे लगा आपकी ही होगी "

काया बाबू का सामना ना कर सकी.

"रुको मै पानी लाती हूँ गड़ब " काया किचन मे जा glass भर खुद पानी पी गई.

पीछे बाबू की हालत ज्यादा ख़राब थी, वो किस्मत वालो मे से था जो काया की गांड को पतले से गाउन मे हिलते, हिचकोले खाते देख रहा था.[Image: images-2.jpg]

"ये लो बाबू " काया कब पानी ले आई पता नहीं चला. पैंटी वही किचन मे रख आई थी

गटक गटक... गटक.... बाबू का भी गला सुख आया था.

दोनों की एक जैसी हालत थी,

काया शर्म से और बाबू उत्तेजना मे.

"वैसे.... मैडम.... छोटी... छोटी...." बाबू कुछ बोलना चाहता था लेकिन अटक रहा था.

"क्या बोलो "

"इतनी छोटी कच्छी मे कैसे ढकता होगा सब "

ससससननननन.... बाबू के सवाल से काया सकते मे आ गई.

काया को गुस्सा होना चाहिए था, लेकिन बाबू ने सवाल ही इतनी मासूमियत से पूछा था की काया को हसीं आ गई.

हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, सब आ जाता है.

"भगवान जाने मैंने तो जिंदगी मे पहली बार ऐसी कच्छी देखी है "

"अच्छा इतनी कितनी जिंदगी जी ली तुमने " काया को मजा आ रहा था बाबू की मासूमियत पर.

"यहाँ गांव मे बाजार मे भी नहीं दिखती कभी ऐसी " बाबू हैरान था सर खुजा रहा था.

" अच्छा अब ज्यादा दिमाग़ मत लगाओ, सब आ जाती है इतने मे ही "

"लल्ल... लेकिन आपकी कैसे आ जाती है?"

"क्या मतलब "

"वो... वो.... जाने दीजिये, मै चलता हूँ " बाबू को शायद गलती का अहसास हो गया था.

"बोलो भी मेरी से क्या मतलब " काया को कुछ कुछ अंदाजा तो हो गया था बाबू क्या कहना चाहता है लेकिन उसके मुँह से सुनना चाहती थी.

"वो... वो... वो.... आपकी गांड बड़ी है ना "

ससससस.... सससन्नन्न.... काया का दिमाग़ सन्न पड़ गया उसे इन शब्दों की उम्मीद नहीं थी.

"छी.... बत्तमीज़ कैसी भाषा बोलते हो " काया ने बाबू को झड़क दिया.

हालांकि उसे भाषा से दिक्कत मालूम पड़ती थी, बाकि बात से नहीं.

"अब हमारे यहाँ तो यही कहते है" बाबू ने वापस मासूमियत से जवाब दिया.

"अच्छा बाबा.... जो तुम कहो, सबकी ऐसी ही होती है ना "

"ना मैडम जी... मैंने तो आपसे बड़ी किसी की नहीं देखी "

"सच... कितनो की देख चुके...?"

बारी अब बाबू की थी, काया के सवाल का कोई जवाब नहीं था.

"बच्चू अभी ठीक से जवान भी नहीं हुए और बाते देखो"

बाबू झेम्प के रह गया.

हालांकि बाबू के मुँह से बचकानी तारीफ काया को गदगद कर रही थी.

"मुझे ऐसी ही पसंद है, छोटी.." काया छोटी शब्द पर जोर दे कर मुस्कुरा दी.

काया के मुस्कुराने से बाबू शर्माहत से बाहर आया.

काया को अच्छा टाइम पास मिल गया था.

अच्छा बाबू चाय पिओगे?

"ममम.... मै..... अभी लाता हूँ " बाबू उठने लगा

"बुद्धू मै बना देती हूँ ना साथ मे पीते है " काया उठ के किचन मे जा खड़ी हुई.

बाबू फिर से जन्नत के दरवाजे को देख रहा था, काया के सोफे पे बैठ के उठने से गाउन का कपड़ा गांड की दरार मे जा धसा था.

बाबू नया ताज़ा जवान हुआ लड़का था, ये दृश्य भी खूब था उसके लिए.

पाजामे मे तम्बू बनने लगा था.

"अच्छा बाबू तुम्हारी फैमली मे कौन कौन है?"

काया ने वैसे ही खड़े रह के सवाल पूछा.

"जज्ज..... जी मैडम 5 बहने पापा मम्मी और मै "

"ककककयययय.... क्या? 5 बहने?" काया पलट गई,[Image: 469d4154aff9cf594d2208b877efe955.jpg]

"हाँ मैडम क्या करे.... इसलिए ही गांव से यहाँ चले आये कुछ पैसा कमाने ताकि पापा की हेल्प हो सके " बाबू ने मज़बूरी कह सुनाई.

काया के लिए बहुत ताज्जुब की बात थी " आज जे ज़माने मे इतने बच्चे कौन करता है "

"वो.. पापा मम्मी से बहुत प्यार करते है ना "

"हाहाहाबा.... बुद्धू " काया बाबू का जवान सुन जोरदार हस पड़ी.

बाबू को समझ नहीं आया काया क्यों हसीं " हमारे गांव के काका है,उन्ही के साथ यहाँ चला आया, वो जो लिफ्ट चलाते है ना वो "

बाबू ने पूरी रामायण कह सुनाई थी.

"अच्छा ये लो चाय पीओ " काया ने चाय की ट्रे आगे बढ़ा दी

"थैंक you मैडम आप बहुत अच्छी है, मै ही सबको चाय पिलाता हूँ, आज आपने पिलाई "

"ओह... बाबू... थैंक यू की क्या बात है तुमने मेरी वो भी तो ला कर दी ना " काया ने चुस्की लेते हुए कहाँ.

"क्या वो.... कच्छी?"

"हाँ वही कच्छी " काया ने आज पहली बार पैंटी को कच्छी कहाँ था, एक अलग सा फील था इसमें काया ने साफ महसूस किया.

"महंगी है ना मैडम जी देने तो आना हूँ था वैसे उसमे से खुसबू भी आती है पता नहीं था की महंगी कच्छी मे खुसबू भी होती है " बाबू चाय पिता पानी मस्ती मे बोले जा रहा था.

"कककक.... क्या खुसबू " काया को कल रात का दृश्य याद आ गया जब बाबू ने उसे उठा कर सुंघा था.

"छी.... मतलब तुमने उसे सुंघा था?" काया ने आंखे निकाल बाबू को घुरा.

"वो तो सामने पड़ी दिखी तो मन मे आ गया, उस समय पता नहीं था ना आपकी है, गांव मे बड़े लड़के लड़कियों की कच्छी को ऐसे ही सूंघते थे "

काया सन सनाये जा रही थी बाबू की बातो से.

उसे बाबू जैसा कच्चा जवान लड़का अभूतपूर्व बाते बता रहा था.

"तो मैंने भी सूंघ के देखा, बहुत अच्छी और तेज़ खुसबू थी "

काया हैरान थी, आज तक रोहित जिसे पसीने की बदबू कहता था, उसी को ये लड़का खुसबू कह रहा है.

"सच मे खुसबू थी?" काया बाबू की बातो से उत्तेजना महसूस कर रही थी, उसे कुछ नया सा अहसास हो रहा था.

"सच्ची मैडम जी...., मन किया सूंघते रहु "

"हट बदमाश ऐसा कही होता है क्या " काया ने खुद को सँभालते हुए कहाँ.

"पैंटी गंदी होती है, ऐसा नहीं करते " काया ने समझाया.

"ठीक है मैडम जी...." चाय खत्म हो गई थी, बाबू खड़ा हुआ तो पाजामे के आगे का हिस्सा तना हुआ था, हिल रहा था.

काया उसके आकर प्रकार को देख हैरान थी.

"चलता हूँ मैडम जी " काया कुछ नहीं बोली बस एकटक उसी उभार को देखे जा रही थी.

बाबू पलट के चलते को हुआ, तब काया का ध्यान भंग हुआ.

"बबब.... बाबू... वो... कचरा कहाँ फेंकते है?"

"लाइए मै फेंक देता हूँ ना"

"नहीं मै फेंक आउंगी तुम क्यों तकलीफ करते हो " काया अपने सरल स्वाभाव मे बोली.

"मै नीचे ही जा रहा हूँ, बाहर गेट के पास ही कचरा पेटी है वही फेंकते है "

काया ने कुछ ना बोलते हुए, कचरे की थैली बाबू को पकड़ा दी.

बाबू चला गया लेकिन काया के जिस्म मे एक बेचैनी सी छोड़ गया,

वो कभी बंद दरवाजे को देखती तो कभी किचन के मार्बल पे रखी अपनी लाल कलर की पैंटी को, जो गुड़ी मुड़ी खिड़की से आती रौशनी मे चमक रही थी.

"इसे लड़के सूंघते क्यों है? क्या मजा आता होगा " काया के जहाँ मे सवाल कोंध रहा था जिसका जवाब उसे ही हासिल करना था.

काया ने पल भर की देरी भी ना करते हुए, पैंटी उठाई और बाथरूम का रुख अपना लिया.

बाथरूम की तेज़ रौशनी मे काया का जिस्म चमक रहा था.

"आपकी बड़ी गांड कैसे इस छोटी सी कच्छी मे आ जाती है?" बाबू का मासूम सवाल अकेले मे उसके जिस्म को कुरेद रहा था.

"क्या वाकई मेरी वो इतनी बड़ी है "

प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवशयकता, काया के जिस्म से गाउन एक पल मे अलग हो गया.

असल मायनो मे आज इस बाथरूम की शोभा बड़ी थी, काया का मादक गद्दाराया जिस्म सामने कांच मे दमक रहा था, काया के हाथ मे पैंटी थमी हुई थी,

आज तक उसने इस तरीके से सोचा ही नहीं था, ना जाने क्यों काया का जिस्म थोड़ा सा घूम गया, सामने कांच मे काया की मदमस्त बड़ी बाहर को निकलती गांड का एक हिस्सा चमक उठा.[Image: unnamed.gif]

"बाबू सही तो कहता है " काया मुस्कुरा दी....

बेचारी पैंटी पे बड़ा जुल्म हुआ, काया ने कभी अपनी पैंटी को इतना कामुक नहीं पाया था, आजतक वो सिर्फ एक वस्त्र थी जिसे वो बाकि कपड़ो के अंदर पहनती थी.

परन्तु आज ये एक सादहरण सी पैंटी उसके जिस्म मे मस्ती घोल रही थी.[Image: 59901904.gif]

काया ने एक बार फिर से घूम के अपने जिस्म को आईने मे अच्छे से देखा, कही बाबू की बात झूठ तो नहीं थी?

आज काया पहली बार खुद के जिस्म को देख, उत्तेजित हो रही थी.

"हमारे गांव के बड़े लड़के इसे सूंघते है " बाबू की कही बात उस बाथरूम मे गूंज रही थी.

"नहीं... छी... ऐसा कौन करता है, रोहित तो नहीं बोले कभी ऐसा " काया अब बाबू की बात को नकार रही थी.

ना जाने किस आवेश मे काया के पैंटी थामे हाथ, उसकी नाक तक चले गए शनिफ्फफ्फ्फ़...... हहहहममममम... A. आआहहहह.... काया ने जी भर के एक लम्बी सांस खिंच ली.

एक मादक कैसेली सी गंध से उसका जिस्म नहा गया, काया अपनी स्मेल पहचानती थी लेकिन इस स्मेल मे कुछ घुला सा था, एक अजीब सी गंध जो सीधा काया की नाक से होती उसकी चुत तक जा पहुंची.

काया कामवासना के पहले पन्ने को पलट चुकी थी, उसने जाना इसमें कुछ खास है.

एक लम्बी सांस और खिंच ली.... ऊफ्फफ्फ्फ़..... काया के रोगटे खड़े हो गए, झुरझुरी सी चल पड़ी पुरे जिस्म मे.

आंख खोल सामने देखा, काया पूर्णतया नंगी खुद की पैंटी को सूंघ रही थी.

सामने का दृश्य देखना था की वो तुरंत हकीकत मे आ गई " छी... ये क्या कर रही हूँ मै "

लेकिन उसका जिस्म बार बार वो गंध महसूस करना चाहता था,

अक्सर मर्द और औरत कामुक अंगों की स्मेल को पसंद करते है, काया के लिए ये नया अनुभव था, उसे देख के लगता था ज़ये शानदार अनुभव है.

काया को अपनी जांघो के बीच कुछ रिसता सा महसूस हुआ, काया हैरान थी, उसके नाभि के नीचे खलबली सी मची हुई थी,

काया की एक उंगकी उस खाई मे जा लगी, हाथ दूर किया तो एक पतली सी लकीर साथ चल पड़ी.

काया की चुत रिस रही थी.

"ये... ये.... क्या हो रहा है, मेरी पैंटी मे ये अजीब सी गंध कैसी है, काया हैरान थी उसने पास पड़े अपने गाउन को तुरंत उठा के सुंघा उसने सिर्फ माया के जिस्म की महक थी, फिर पैंटी को सुंघा इसमें कुछ अलग सा था क्या था पता नहीं बस उसका जिस्म उस गंध को बार बार महसूस करना चाहता था.

"उउउफ्फ्फ...... ये क्या हो रहा है " काया ने खुद को सँभालते हुए पैंटी और गाउन वही जमीन पर पटक दिया, और शावर चालू कर दिया.. ठन्डे पानी के साथ माया के जिस्म की गर्मी भी घुलने लगी.

काया का दिमाग़ शांत ही चला.

1 बजने को थे, मकसूद के आने का वक़्त था.

काया लिस्ट बना चुकी थी.

टिंग टोंग.....

तभी बेल बज उठी.

"जरूर मकसूद ही होगा, काया ड्रेसिंग टेबल के समनी लिपस्टिक लगा रही थी, सुर्ख लाल.

काया ने लाल रंग की चमकदार सारी पहनी थी, गांव के लिए साड़ी ही उसे उचित परिधान लगा.

साड़ी काया के जिस्म को और मादक बना रही थी, जिस्म से चिपकी एक एक कटव को दिखा रही थी, गले मे मंगल सूत्र, माथे पर लाल बिंदी, सिंदूर और हाथो मे चूड़ी से सजी काया वाकई अपनी माया मे थी.
हालांकि काया साड़ी से पूरी तरह ढंकी हुई थी, फिर भी उसके जिस्म के कटाव को छुपा पाने मे असमर्थ थी.
साड़ी के बाहर से भी उसके बड़े स्तन और मादक गांड अपनी पहचान करवा ही रही थी.
[Image: 56a0e2f194739520c39d9eee22e839ba.jpg]
"आती हूँ....." काया ने दरवाजा खोल दिया

सामने मकसूद ही था,

" अभी आई रुको " काया ने मकसूद को बिना भाव दिए पलट अंदर को चल दी

उसने देखा ही नहीं मकसूद मुँह बाये खड़ा है, वो जब भी यहाँ आता था लगता था जैसे जन्नत का दरवाजा खुद अप्सरा उसके लिए खोलती है..

आज भी काया दरवाजा खोल अंदर चल दी, मकसूद तो उस हुस्नपरी की मटकती गांड को ही देखता रह गया.

पल भर मै ही काया वापस मौजूद थी " चले मकसूद मियां "

काया ने मुस्कुरा के कहा, आज काया का दिल दिमाग़ मस्ती से भरा हुआ था, वो जानती थी मकसूद की हालत को.

"च च... चले मैडम जी " मकसूद झेम्प सा गया, तुरंत थैला काया के हाथ सेऐ आगे चल पड़ा.

गनीमत थी आज लिफ्ट चालू थी.

पल भर मे ही कार सडक पे दौड़े जा रही थी, "मैडम कौनसे बाजार चलाना है " मकसूद सामने के शीशे पर देख माया को पूछ रहा था, काया का दमकता चेहरा शीशे मे उजागर था.

" रोहित ने तो कहाँ था तुम बाजार जानते हो " काया और मकसूद की आंखे उस शीशे पे जा मिली.

मकसूद अक्सर आँखों मे सुरमा लगता था.

काया और मकसूद की कजरारी आंखे एक दूसरे को देख रही थी.

"मतलब लेना क्या है मैडम, उस हिसाब से पूछ रहा हूँ?"

"बर्तन और कुछ किचन का सामान, बेडशीट वगैरह "

"फिर ती बड़े बाजार जाना होगा मैडम जी"

"तो चलो फिर " काया मुस्कुरा दी

काया की मुस्कुराहट से उसके सफ़ेद दाँत झलक पड़ते थे, लाल होंठो की मुस्कान मकसूद का ध्यान सामने जाने ही नहीं दे रहु थी.

"30 km दूर है मैडम बड़ा मार्किट "

काया ने घड़ी देखी 1.30 ही बजे थे " कोई बात नहीं बहुत टाइम है, चलते है "

काया की हामी थी की मकसूद ने एक कच्चे रास्ते पर कार को घुमा दिया "

"ये रास्ता तो कच्चा है?" काया ने बाहर देखते हुए कहा

"शॉर्टकट है मैडम, समय बचेगा 6बजे से पहले बैंक भी तो जाना है " मकसूद ने सफाई दी.

काया बाहर के नज़ारे को देखे जा रही थी, दूर दूर तक खेत खलियान, साफ आसमान, कोई शोर शराबा नहीं, साफ शुद्ध प्राकृतिक नजारा.

काया इस माहौल मे खो सी गई थी.

"आपको हमारा इलाका कैसा लगा मैडम जी "

"कककक.... क्या?" काया जैसे नींद से जागी हो.

"आपको यहाँ आ कर कैसा लगा मैडम जी?" मकसूद ने सवाल दोहरा दिया

"अच्छा.... बहुत अच्छा है मकसूद मियां, शहर मे ये सब महा देखने को मिलता है"

काया के मुँह से मियां सुन कर मकसूद के जिस्म मे हज़ारो चीटिया रेंग जाती, काया मुस्कुरा के उसे मकसूद मियां कहती.

"आप मुझे मियां क्यों कह रही है?" मकसूद ने जिज्ञासावंश पूछ ही लिया

काया ने सुना देखा था अक्सर लोग ,., को मियां ही कहते थे, " बस वहा शहर मे लोग कहते है तो मैंने भी कह दिया, भाई ही होता है ना मियां का मतलब? "

काया हैरानी के साथ बोली, कही कोई भेद तो नहीं?

"Hehehehe.... मकसूद हस पड़ा, आप शहरी मैडम है लगता है आपको सही मतलब नहीं पता "

"क्या मतलब होता है?"

" मियां औरते अपने पति को कहती है " मकसूद हस्ते हुए बोल पड़ा.

"ककम्म..... क्या.... ओह्ह्ह....... सॉरी "

काया झेम्प गई, उसने अनजाने मे ही गलती कर दी थी.

"सॉरी... मकसूद मि... मतलब मकसूद जी मुझे पता नहीं था " काया बगले झाकने लगी.

सामने कांच ने मकसूद काया का शर्माता देख रहा था, काया के लाल होंठ उसके दांतो तले दब गए थे.

"परेशान ना हो मैडम जी, ये तो पुरानी बात है दोस्त को या प्यार से जिसकी आप इज़्ज़त करते है उसे भी मियां कह सकते है "

मकसूद ने चुटकी ली.

"सच?"

"सच्ची मैडम, आपके मुँह से अच्छा लगता है "

मकसूद जल्दी घुल मिल जाता था किसी से भी, और काया भी जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, हलकी हसीं मज़ाक चलता जा रहा था....

की तभी..... चरररररर...... जोरदार ब्रेक के साथ मकसूद ने गाड़ी रोक दी, मकसूद का सारा ध्यान माया को ताड़ने मे ही था सामने एक कार कब आ खड़ी हुई उसे पता ही नहीं चला..

मकसूद की कार सामने की कार से ठुकते हुए बची.. "आउच..... क्या हुआ... मकसूद " काया सामने की सीट पर जा चिपकी.



"कौन है बे दीखता नहीं क्या तुझे " एक आदमी दौड़ता हुआ पास आ गया.

"अबे फारुख तू.... इधर " मकसूद शायद उस बाहर खड़े आदमी को पहचानता था.

" हाँ बे दादा की कार ख़राब हो गई थी, बड़े मार्किट जाते वक़्त "

"मममम... मममम..... मतलब कय्यूम दादा कार मे बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ आई.

काया की आंखे चौड़ी हो चली, कल ही उसने रोहित के मुँह से कय्यूम का नाम सुना था.



आखिर अनजाने ही कय्यूम दादा और काया का आमना सामना होने जा रहा था.

कय्यूम की गाड़ी ख़राब है, उसे भी बड़ा बाजार जाना है और काया को भी?

तो क्या ये ही है उनकी पहली मुलाक़ात? ये मुलाक़ात क्या रंग दिखाएगी?

देखते है, बने रहिये... बड़ा बाजार आने वाला है.
Like Reply
#19
अपडेट -6[Image: Picsart-24-03-16-14-26-01-531.jpg]

चिलचिलाती गर्मी मे मकसूद ने कार को जबरजस्त ब्रेक मारा था,


सामने एक सफ़ेद ambassador खड़ी थी,

ब्रेक की आवाज़ से सामने की कार से एक आदमी निकल बाहर आया,

"क्यों बे दिखता नहीं क्या?" आदमी मकसूद के पास आ खड़ा हुआ.

"अबे....फारुख तू?" मकसूद बाहर खड़े आदमी से मुख़ातिब हुआ,

दोनों एक दूसरे को जानते थे.

"अबे मकसूद तू इधर कहा जा रहा है?" सवाल के जवाब मे फारुख ने सवाल ही किया.

"वो.... नये बाबू आये है ना, उनकी ही बेग़म है, मैडम को बाजार ले जा रहा था"

"ननन... नमस्ते मैडम जी " बाहर खडे फारुख ने काया का अभिवादन किया

"नमस्ते " काया ने भी मुस्कुराहट के साथ अभिवादन स्वीकार किया.

फारूक काया की मुस्कुराहट, उसके नैन नक्श, सुंदरता से प्रभावित सा दिखा.

"मकसूद तेरी कार मे extra टायर है क्या, दादा को बाजार ले के जा रहा था साला टायर पंचर हो गया, दादा गुस्से मे बैठे है"

फारूक बोल मकसूद को रहा था लेकिन क्या जैसे स्त्री का यौवन ताड़ने से बाज़ भी नहीं आ रहा था.

"कक्क.... क्या... क्या ? ममम... मतलब कय्यूम दादा कार मे ही बैठे है " मकसूद के चेहरे पे हवाइया उड़ गई, कल रोहित की बदतमीज़ी के बाद से मकसूद के दिल मे एक डर सा बैठ गया था.

"पीछे काया भी कय्यूम का नाम सुन चौंक पड़ी, अभी कल ही उसने रोहित के मुँह से उसका नाम सुना था "

फारूक और मकसूद कोई हल निकालते उससे पहले ही.

"कहा मर गया साले हरामी मदरचोद, किसकी गाड़ी है पीछे? " वातावरण मे एक भयानक भारी आवाज़ गूंज उठी.

सामने कार का गेट खुला, कार एक तरफ से झुकी फिर सीधी हो गई, एक राक्षसनुमा आदमी बाहर निकल आया था.

काया इस नज़ारे को देख रही थी,

सफ़ेद शर्ट, सफ़ेद पैंट, सफ़ेद जूता पहने भालू जैसा आदमी नजदीक चला आ रहा था.

"मकसूद फ़ौरन कार से उतर गया "

"ससस.... सससलाम... कय्यूम दादा " मकसूद की घिघी बंध गई थी.



कय्यूम खान बिना कोई जवाब दिए नजदीक आ गया था, कार मे झाँक के देखा साड़ी मे लिपटी काया उसे ही देख रही थी, नजरों मे हैरानी थी.

कय्यूम भी काया के खूबसूरत चेहरे को देख हैरान था,

कय्यूम इस गांव आस पास कस्बे की ना जाने कितनी लड़कियों, औरतों को अपने बिस्तर पे ला चूका था, उस चुद जाने वाली औरत उसकी दीवानी हो जाती थी, लेकिन इस गांव मे ये कौन है? जैसे कोई स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.

"अबे हरामी मकसूद ये माल कौन है? " कय्यूम की भयानक आवाज़ काया तक भी पहुंची थी शायद काया का दिल किसी अनजाने डर से धाड़ धाड़ बज रहा था, काया खुद को समेटने लगी.

कय्यूम पीछे विंडो के सामने आ खड़ा हुआ था,

"ददद... दादा... कय्यूम दादा, मैडम है, वो नये बाबू आये है ना उनकी बेग़म है " मकसूद तुरंत भागता हुआ सा आया

"कौन जो कल आया था पैसे लेने " कय्यूम ऊपर ज़े नीचे काया को घूरे जा रहा था, जैसे खा जायेगा.

जैसे जैसे उसकी नजर काया के जिस्म मे धसती गई, वैसे वैसे कय्यूम के चेहरे का गुस्सा हवा हो गया, आवाज़ मे एक शालीनता सी आ गई..

"नमस्ते मैडम... माफ़ करना मैंने पहचाना नहीं, अब इस गांव बीहड़ मे आप जैसी खूबसूरत औरत कहा देखने को मिलती है " कय्यूम ने हाथ जोड़ नमस्ते किया

फारूक और मामसूद दोनों कय्यूम के बर्ताव से हैरान थे.

"मैडम जी ये कय्यूम खान है, यहाँ के बड़े व्यापारी है " मकसूद बीच मे बोल पड़ा.

"जी नमस्ते...." काया ने नजरें नीची कर वैसे ही नमस्ते बोल दिया.

काया कय्यूम के रंगरूप से भयभीत थी.

"मैडम एक अहसान कर दे, मै भी बड़ा बाजार ही जा रहा हूँ, आपकी इज़ाज़त हो तो?"

कय्यूम जैसा भयानक इंसान ऐसी बोली भी बोल सकता था ये तो किसी ने सोचा भी ना होगा.

"जज.... जी... जी.... चलिए " काया ने हामी भर दी

और क्या करती उसकी हालत तो वैसे ही भीगी बिल्ली जैसी हो चली थी.

"फारुख कार का पंचर बनवा के बड़ा बाजार ही मिलना, चल मकसूद " कय्यूम ने जैसे आर्डर दिया

काया के दूसरी तरफ का गेट खुला, और कय्यूम ड्राइवर सीट के पीछे जा बैठा, कार एक साइड से थोड़ी सी झुक गई.
[Image: images-1.jpg]
"उउउफ्फ्फ..... सॉरी...." काया का कन्धा कय्यूम के कंधे से जा टकराया, काया के तरफ से कार ऊँची हो गई थी.

"मै... मै.. सॉरी मैडम जी वजन ज्यादा है ना hehehehe...." कय्यूम ने दाँत निपोर दिए.

काया ने जैसे तैसे खुद को समेट साड़ी ठीक की, कय्यूम के हसने से काया की नजरें उस से टकरा गई,

वाकई बहुत काला था कय्यूम, सफ़ेद शर्ट जी तीन बटन खुली हुई, उसने से झाँकते पसीने से सने काले बाल, गले की शोभा बढ़ाती एक मोटी सोने की चैन.

कय्यूम कोई 150 kg का भारी भरकम इंसान था, hight भी 6फ़ीट, उम्र यही कोई 50 के पड़ाव पर होंगी.

"कक्क.... कोई बात नहीं " काया ने एक फीकी सी मुस्कान दे दी.

लाल होंठो से झाँकते मोटी जैसे सुन्दर दाँत कय्यूम कर दिल पर छुरिया चला रहे थे.

"चल बे मकसूद लेट हो रहा है " कय्यूम ने हड़का दिया.

मकसूद के पैर एक्सीलेटर पर दबते चले गए.

कार ने शांति सी छाई हुई थी, अब मकसूद सामने देख रहा था उसकी हिम्मत नहीं थी की कांच मे पीछे की तरफ देख सके.

कार कय्यूम की तरफ से झुकी हुई चल रही थी, सडक पे कोई गड्डा या ब्रेकर आता तो काया सरकती हुई कय्यूम के नजदीक आ जाती, फिर खुद को दूसरी तरफ धकेलती.

"कल आये थे साब " कय्यूम ने उस शांति को भंग करना चाहा.

"कक्क.... कौन....?

"कौन क्या आपके शोहर, अच्छे इंसान है, बस गुस्सा जल्दी करते है "

"हहमममम.... वो... वो काम से ऐसा हो जाते है " काया ने सफाई दी.

"लेकिन किसी काम मे जल्दी करने से काम ख़राब भी तो होता है ना "

"हहहहमममम..... आप सही कह रहे है दादा " काया सहज़ ही बोली जो सुना था.

"धत.... कौन दादा?"

"आप.... और कौन " काया का आत्मविश्वास जल्द ही वापस आ गया था.

"हाहाहां.... मै तो व्यपारी हूँ, बाकि लोग तो बस इज़्ज़त के लिए बोल देते है " कय्यूम की आवाज़ मे शहद था.

"अब अल्लाह ने ये हुस्न दिया तो क्यां करे मैडम जी " कय्यूम बड़े ही बनावटी लहजे मे बोला.

"हाहाहाहा.... हुस्न " काया एकाएक खिलखिला के हस पड़ी, कय्यूम अपनी शक्ल को हुस्न बोल रहा था.

कय्यूम तो बस उस हुस्नपरी को देखता ही रह गया,

जीवन के 50 बरस बीतने को आये, ऐसी खूबसूरत, ऐसा जिस्म, ऐसी मनमोहक सुंदरी ना देख पाया कभी.

की तभी कार एक झटका सा लगा.

"आउच..... आअह्ह्ह......" काया झटके से सरकती हुई कय्यूम से जा चिपकी, इतनी की काया के बड़े कठोर स्तन कय्यूम की बाह मे दबते चले गए.

"कय्यूम का बदन 440वोल्ट के कर्रेंट से नहा गया.

झटका इतना तेज़ था की, काया का मुँह कय्यूम की गर्दन से जा लगा.

उसके होंठो की छाप, कय्यूम के पसीने से भीगे गले पर छाप छोड़ती चली गई, नाक पसीने से सराबोर हो गई.

काया का जिस्म एक मर्दानी महक से भर गया.

"आआआह्हः..... मकसूद..." काया तुरंत ही सम्भली.

"ये किस रास्ते से ले आये?" काया के चेहरे पे गुस्सा था

कय्यूम तो जैसे दूसरी दुनिया मे खोया हुआ था. कभी काया के चेहरे पे हसीं होती तो कभी गुस्सा.

"वो... वो.... मैडम गांव की सड़के " मकसूद सफाई दे दी.

अभी जो भी हुआ वो कुछ पल के लिए ही था.

ये 2पल ही दोनों के जिस्म मे एक अलग सी उत्तेजना घोल गए थे.

काया नजर नहीं मिला पा रही थी, कय्यूम उसे ही देखे जा रहा था, काया बाहर देख रही थी.

झटके से काया की साड़ी कंधे से सरक चुकी थी, काया के कठोर स्तन ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतारू थे, दोनों स्तन टाइट ब्लाउज मे एक मादक घाटी को जन्म दे रहे थे.
[Image: images-2.jpg]
जिसर कय्यूम टकटकी लगाए देखे जा रहा था, उसका एक हाथ अपनी पैंट के अगले हिस्से को कुरेदने लगा.

एक नशीली सी गंध काया की नाक से होती जिस्म मे जा रही थी, होंठो पे कुछ नमकीन सा लगा हुआ था,

"ययय... ये क्या " कोतुहाल मे काया ने जबान बाहर निकाल होंठ चाट लिए, एक कैसेली, नमकीन युक्त लेकिन बेहद ही अजीब सा स्वाद था, ये स्वाद उसके जिस्म मे एक गुदगुदी सी मचा रहा था.

"ऊऊह्ह्ह्ह.... नहीं... ये नहीं " काया के मन मे अभी थोड़ी देर पहले हुई घटना चल पड़ी उसे किसी बात का अंदेशा सताने लगा.

काया ने धीरे से गर्दन घुमा, कय्यूम की ओर देखा.

कय्यूम की नजर उस पर ही टिकी थी, लेकिन वो उसे नहीं देख रहा था उसकी नजर झुकी हुई थी, काया ने गर्दन झुका कर देखा, उसे बड़े मादक स्तन लगभग ब्लाउज से बाहर थे,

काया ने झट से पल्लू सही किया, उसका जिस्म सकपाकहट मे  पसीने से नहा गया.

"ओह..... No...." काया ने तुरंत मुँह फेर लिया
[Image: images-3.jpg]
"क्या हुआ मैडम जी " कय्यूम हैरान था काया ने उसे देख वापस क्यों मुँह फेर लिया.

"उफ्फ्फ... ये कैसे हो गया" काया मन ही मन बुदबूदाये जा रही थी.

"सब ठीक तो है ना मैडम जी " कय्यूम ने बात दोहराई

"वो... वो.... वहा " काया ने ऊँगली से कय्यूम की गर्दन पे इशारा कर दिया.

"क्या लगा है, कुछ भी तो नहीं " कय्यूम हैरानी से गर्दन पर हाथ फेर उंगलियां देखने लगा.

"ओफ़्फ़्फ़... वहा नहीं वहा " काया के चेहरे पे ना जाने क्यों इस खेल मे स्माइल आ गई थी.

कय्यूम ने मोबाइल निकाल फ्रंट कैमरा ऑन कर लिया, कय्यूम की गर्दन मे लाल होंठ छपे हुए थे.

" ये आपने क्या किया? " कय्यूम बनावटी गुस्से से बोला.

"सॉरी.... वो गलती से हो गया, गांव की सडक " काया ने भी जवाब उसी बनावटी गुस्से मे दे दिया.

दोनों के बीच बड़ी ही अच्छी छन रही थी. काया खुले विचार की लड़की थी, ज्यादा ओवर रियेक्ट नहीं करती थी.

"ये लीजिये साफ कर लीजिये " काया ने पर्स से टिश्यू पेपर निकाल दे दिया.

रहने दीजिये ऐसा हादसा नसीब वालो के साथ ही होता है"

"बाते बड़ी बना लेते है आप "

"सच ही तो बोल रहा हूँ, आप जैसी अप्सरा से ऐसा इनाम मिलना कोई आम बात है "

"कोई इनाम नहीं है गलती से हुआ"

साब कहाँ उतारू बड़ा बाजार आ गया, मकसूद की आवाज़ ने दोनों की चूहेलबाज़ी मे विघ्न डाल दिया.

कय्यूम को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन पी गया " यही शुरू मे उतार दे पेमंट लेनी है बाजार से "

"अच्छा मैडम जी.... कोई काम हो तो याद कीजियेगा " कय्यूम कार से उतरा कार झटके से ऊपर हो गई.

"बेचारी कार को सांस आई अब " काया मुस्कुरा दी.

"कुछ कहाँ मैडम जी आपने "

"नहीं... नहीं तो " काया मुस्कुरा दी.

बाहर कय्यूम पैंट के आगे हिस्से को एडजस्ट कर रहा था, सफ़ेद पैंट मे एक मोटी लम्बी आकृति बनी हुई दिख रही थी.

काया की सारी मुस्कुराहट तुरंत गायब हो गई, आंखे चौड़ी हो गई.

दिमाग़ मे सांय सांय हवा चल पड़ी, जब से बाबू का उभार देखा था तभी से ना चाहते हुए उसकी नजर मर्दो की जांघो के बीच चल जाया करती थी, लेकिन ये जो था इसके सामने बाबू का उभार तो कुछ नहीं था.

"नहीं... नहीं.... ये क्या सोचने लगी मै " काया ने तुरंत वो ख्याल दीमाग से झटक दिया.

कय्यूम काया की निशानी लिए बाजार मे एक तरफ चल दिया.

"मैडम पहले क्या लेना है?" मकसूद की आवाज़ से काया हक़ीक़त मे आई.

उसे अपनी सोच पर हैरानी हो रही थी, कैसे वो ये सब सोचने लगी.

काम की मारी स्त्री और क्या करे.

खेर मकसूद और काया कार से उतर मार्किट चल पड़े.

काया बताती गई, मकसूद झोला थैला उठाये पीछे पीछे काया की गांड की थिरकन देखते हुए चलता गया.



शाम 6बजे

मकसूद काया को वापस घर छोड़ आ चूका था.

"साब चले "

"हाँ मकसूद चलो "

"क्या बात है साब बड़े ख़ुश दिख रहे है "

"हाँ मकसूद आज बैंक का प्रॉफिट हुआ ना "

मकसूद को क्या पता बैंक क्या करता है, कैसा प्रॉफिट उसने कार दौड़ा दी.

थोड़ी ही देर मे

"मकसूद रुकना जरा, मै अभी आया "

रोहित कार से उतर सामने मेडिकल स्टोर पर चला गया, कुछ माँगा और जेब मे रख लिया.

"चलो मकसूद "

7pm

टिंग टोंग फ्लैट नंबर 51 की डोर बेल बज उठी.

काया के दरवाजा खोलते ही, काया... ओह काया रोहित काया से गले जा लगा.

"क्या बात है आके बहुत ख़ुश दिख रहे है "

"हाँ बात ही ऐसी है, रोहित सोफे पर जा बैठा.

"क्यों क्या हुआ?"

"वो कय्यूम के बारे मे बताया था ना मैंने "

"कौन कय्यूम दादा " काया के चेहरे पे भी मुस्कान आ गई, शायद आज दिन की नौक झोंक याद आ गई हो.

"काये का दादा कल धमका के आया था ना, आज पुरे 5लाख रूपए जमा कर गया " रोहित ऐसे बोला जैसे कोई जंग जीत के आया हो.

"ककककक..... क्या...." काया के चेहरे से मुस्कान काफूर थी उसकी जगह हैरानी ने ले ली थी.

वो खुद भी आज दिन मे कय्यूम से अचानक मिलने वाली बात बताना चाहती थी, लेकिन रूपए लौटने की बात ने उसे रोक लिया.

"ऐसे कैसे लौटा दिए "

"क्यों... कल गया तो था उसके पास, समझा के आया था "

काया हैरान थी, जो शक्ल जो हैसियत वो देख के आई थी उसके हिसाब से तो कय्यूम पैसे लौटने से रहा, फिर क्यों? कही... कही..... नहीं... ऐसा क्यों करेगा, मेरी वजह से? नहीं... नहीं....

काया दुविधा मे थी.

"क्या हुआ काया तुम ख़ुश नहीं हो?"

"नहीं... वो.. वो मतलब ख़ुश हूँ ना, मै पानी लाती हूँ " काया आपने ख्यालो मे चलती चली गई.

तो क्या कय्यूम वाकई अच्छा इंसान है या फिर इस लोन से भी बड़ा फायदा देख लिया उसने?
बने रहिये
Contd....
Like Reply
#20
Behad romanchak story chl rhi hai . Dekhte hai kon Kaya ko phle payega
Like Reply




Users browsing this thread: 6 Guest(s)