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Fantasy बूढ़े लोगों को सेवा।
#1
यह कहानी है है एक औरत की जिसका नाम अनामिका है। उमर २८ साल। दूध सा गोरा रंग। बहुत ही खूबसूरत। वो वैसे छत्तीसगढ़ के बिलवासा गांव में रहती हैं। वहा वो सरकारी बैंक में काम करती है। वैसे वो दिल्ली शहर की रहनेवाली थी लेकिन समय ने उसे इस आदिवासी गांव में ला खड़ा किया।
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बैंक में वो सिर्फ ४ घंटे का काम करती लेकिन जब भी करती पूरे ध्यान से करती। गांव बहुत ही पीछड़ा और गरीबी से बना था। सरकारी नौकरी होने के कारण अनामिका को बहुत अच्छी और बड़ी रकम की salary थी। यह जगह इतनी पिछड़ा है की जो काम करेगा उसे ज्यादा पैसा मिलेगा। लेकिन बदले में बिजली की सुविधा नहीं और न किसी बड़े घर की। अनामिका अकेले ही बैंक का काम करती और उसके साथ दो गांव उरतें काम करती। पूरा गांव कच्चे घर का बना। सिर्फ २० परिवार ही रहते है।

साल 1976

दोपहर का वक्त था। करीब 1 बजे बैंक का काम पूरा करके वो वहां से निकल जाती। नवंबर का महीना था। ठंडी का मौसम था। दोपहर को हल्का सा धूप था। अनामिका जंगल के रास्ते से अकेले कहीं जा रही थी। पीले रंग की साड़ी और पीले रंग का sleveless ब्लाउस वो काफी सुंदर लग रही थी। चलते चलते वो एक खंडर घर में पहुंची। दरवाजा चंपा नाम की 50 साल की औरत ने खोला।

"कैसी है उनकी तबियत ?" अनामिका ने पूछा।


"अब वो ठीक है। लेकिन आज आपने आने मैं देर क्यों की ?" चंपा ने पूछा।

"आज काम थोड़ा ज्यादा था। चलो मैं भी चलूं।"

अनामिका उस खंडर घर में घुसी। घर टूटा फूटा और अंधेरे से भरा था। वहा उसने एक कमरे का दरवाजा खोला। सामने 82 साल का काला बुड्ढा लेता हुआ था।

कौन है यह बुड्ढा और इससे मिलने अनामिका क्यों आई। इस कहानी को जानने के लिए हम 1 साल पीछे जाना होगा।

अनामिका एक बड़े पुलिस ऑफिसर की बीवी थी। पति का नाम अमन था। अमन दिल्ली का बड़ा पुलिस ऑफिसर था और पैसेवाला भी। लेकिन एक भ्रष्टाचार से भरा हुआ गंदा आदमी। अमर पुलिस इंस्पेक्टर था और दो नंबर का काम करता। एक दिन की बात है। अमर को एक hit and run का कैस मिला। उस कैसे में एक बुजुर्ग बाबा और छोटे बच्चे को एक राइस बाप की बिगड़ी औलाद ने कुचल दिया था। उस कैसे को अमन ने पैसा लेकर रफा दफा कर दिया। दूसरा कैसे लगा जिसमे एक में बिल्डिंग गिरने से 10 बुड्ढे की मौत हुई। वो बिल्डिंग एक सरकारी वृद्धाश्रम था। उसे भी पैसे के जोर में अमन ने रफा दफा कर दिया।

लोगो के आंसू और जज्बात से उसका कोई लेना देना न था। अनामिका के पेट में अमन का बच्चा था। एक दिन वो हॉस्पिटल जा रही थी कि तभी एक बाबा जो सिद्धि तंत्र का ज्ञानी था वो सड़क से गुजर रहा था। चलते चलते वो गिर पड़ा और एक ट्रक सामने से आई। अनामिका ने बिना जान की परवाह किए उसे बचाया। उस सिद्धि ज्ञानी बाबा का नाम सरजू दास था। बाबा अनामिका की बहादुरी से प्रसन्न हुआ और उसे आशीर्वाद दिया।

इसके कुछ दिन बाद अचानक अनामिका को पता चला की उसकी तानिया खराब हो रही है। वो बार बार बीमार पड़ने लगी और इसी में उसे दुखद समाचार मिला। उसके पेट में पल रहा बच्चा मर गया। दुखो का पहाड़ उसपे टूटा। कुछ दिन बात अमन की मौत किसी हादसे में हुई।

अनामिका को कुछ समझ में न आया। वो जैसे अकेले पड़ गई। एक दिन उसे सरजू दास मिला। अनामिका ने उसके पैर छुए और अपनी तकलीफ के बारे में बताया।

"देखो बेटी यह सब मेरे श्राप का नतीजा है। में तुमसे इसीलिए मिलने आया हूं।"

यह सुनकर अनामिका घुसे से पूछी "कैसा श्राप ? आपने एक मासूम से बच्चे को मार डाला ? उसने आपका क्या बिगाड़ा ?"

"बिगाड़ा उन 10 बुगुर्गो ने भी कुछ नहीं था फिर क्यों तेरे पति ने उसे न्याय नहीं दिलाया। उसके परिवार पर क्या बीती है पता है तुझे ? इसके अलावा कई निर्दोष लोगो को तेरे पति ने मारा उन में से एक आदमी के पिता का दर्द मुझसे देखा न गया और इसीलिए मैंने तेरे पति से मिलने गया। उसने फिर मेरा अपमान किया और सभी को मौत पर हसने लगा। में इसीलिए उससे श्राप दिया।"

अनामिका को यह बात सुनकर खुद पर घुसा आया। और वो माफी मांगने लगी।

"देख बेटी तेरे पति के अलावा उसके सभी रिश्तेदार को भी मरने का श्राप दिया है। हर महीने एक एक करके सभी मारे जाएंगे।"

"नही नही ऐसा न करिए आप। मेरे रिश्तेदारों का क्या दोष है ? मेरे ससुराल के लोग बहुत ही शरीफ है। मेरे सास ससुर सब कितने शरीफ है। कुछ करिए ना आप।"

"एक उपाय है। अगर तू कर सकती है तो।"

"क्या करना होगा मुझे ?"

"मुश्किल है। यह सब करना तेरे लिए।"

"आप बोलिए न क्या करना होगा मुझे ?"

"जिस आदमी को तेरे पति ने मारा उसका एक बुड्ढा बेसहारा भाई है। तुझे उसकी सेवा करनी होगी। और साथ ही साथ जो बेसहारा बुड्ढा आदमी तुझे वहां मिले उसकी सेवा करनी होगी तुझे। में तुझे एक आशीर्वाद भी देता हूं। जब जरूरत पड़े तू तेरी आंख बंद करके मेरे दिए हुए मंत्र को पढ़ना। तेरी मदद पूरी हो जाएगी। लेकिन ध्यान रहे इस मंत्र का एक ही बार उपयोग होगा। और तो और अगर वो बुड्ढा आदमी मर गया तो तुझे इस श्राप से कोई नहीं बचा पाएगा।"

"बाबा एक सवाल है। आपने इस मंत्र का आर्शीवाद क्यों दिया मुझे ?"

"क्योंकि तूने एक बार मेरी जान बचाई इसीलिए।"

"फिर भी मुझे ही क्यों यह सब करना क्यों है ?"

"तू ही है जो अपने पति के पाप के बारे में जानती है लेकिन कभी किसी की मदद न की। इसीलिए तुझे ही करना होगा। सोच ले तेरी चुप्पी ने कइयों की जान ली और अब तेरे रिश्तेदारों की बारी।

इसके बाद अनामिका दिल्ली से ट्रांसफर लेकर झारखंड पहुंची और वहां अपने काम में लगी। वहां us बुड्ढे आदमी से मिली जिसका नाम मेवा है उसकी तबीयत बहुत खराब थी। हड्डी शरीर से गलने लगी। अनामिका ने उसकी सेवा की लेकिन कोई फर्क न पड़ा। डॉक्टर ने कहा की अगर खाना न पहुंचा तो हफ्ते के अंदर कर सकते है। खाना जैसे दूध या कुछ भी। दूध पूरा पौष्टिक हो। लेकिन इस गांव में असंभव हैं।"

अनामिका को कुछ समझ न आया और उसने मंत्र पढ़ लिया जो बाबा से दिया था। मंत्र पढ़ते ही अनामिका के स्तन में पीड़ा हुई। दर्द बढ़ने लगा। स्तन में दूध भर गया। अनामिका समझ ली कि यही बाबा के मंत्र का आशीर्वाद है। बस इसी के बाद अनामिका मेवा को अपने स्तन का दूध पिलाने लगी। शुरुआत में मेवा ने माना किया लेकिन जिंदा रहने के लिए उपयोग किया। इस बात को एक महीना हुआ। अनामिका उस बुड्ढे की सेवा करती और अपना पश्चाताप भी पूरा करती।





Dosto kaisi laagi kahani please jaroor bataiye. Yeh ek serious kahani hai. Aage bhi update aayega.

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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
wow....
great concept....
take it slow......and close to reality.....
like she take some medication..... consult with doctors etc.....to induce lactation......
and then help....
waiting for next....
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#3
(18-11-2023, 11:27 PM)abcturbine Wrote: wow....
great concept....
take it slow......and close to reality.....
like she take some medication..... consult with doctors etc.....to induce lactation......
and then help....
waiting for next....

Thank you so much brother. But yeh kahani bahut jyada alag hogi. Isme kai old age character honge jinka ek important role hoga. Aap please mera saath dete rahe.
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#4
Keep rocking........
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#5
Next update please...
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#6
Next update please
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#7
दोस्तो आज दोपहर को अपडेट आएगा। दोपहर २ बजे।
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#8
UPDATE 2


अब आते से असल कहानी मैं।


अनामिका जब कमरे पहुंची तो सामने ८२ साल का बुड्ढा था। वही बुड्ढा मेवा था। मेवा ने जब अनामिका को देखा तो मुस्कुराते हुए बोला "आ गई तुम ? इतने देर बाद ?"

अनामिका अपने ब्लाउज का हुक खोलते हुए bra में बुड्ढे के बगल लेटी। बूढ़े की तरफ करवट बदली और उसे अपने बाहों में भरते हुए बोला "अब आराम से अपना पेट भरो। वैसे भी काफी भूख लगी होगी ना ?"

"हां बहुत भूख लगी है।" मेवा स्तनपान करने लगा।

अनामिका नींद में सो गई और मेवा दूध पीकर सीधा लेट गया। कुछ देर बाद उड़ी तो अनामिका ने साड़ी ठीक किया और मेवा के बगल सो गई। देखते देखते शाम के 5 बजे और अंधेरा होने लगा। ठंडी का मौसम था। चंपा ने दरवाजा खोला और अनामिका को उठाकर बोली "चलिए चाय पी लेते है।"

अनामिका अंगड़ाई लेते हुए बाहर आई और ठंडी का लुफ्त उठाते हुए बाहर गरम चाय के साथ चंपा से बात कर रही थी।

"तो अनामिका तुम खाना अपने घर खाओगी या यहां पर ?"

"अरे हां बातो बातो में भूल गई। आज रात मैं यहां रहूंगी। और कल से २ दिन की छुट्टी है।"

"ठीक है तो फिर आप कहां सोएंगी ?"

"में मेवा के साथ सोनेवाली हूं। रात को दूध भी पी लेगा।"

"काफी थकी हुई लग रही है आप।" चंपा ने कहा।

"हां। चलो चंपा मैं थोड़ी देर मेवा के साथ वक्त बिता लूं। अकेले अंधेरे में लेटे होंगे।"

"ठीक है मैं लालटेन लेकर आती हूं।"

अनामिका साड़ी के पल्लू को अलग किया। ब्लाउस पेटीकोट में वो भरी ठंडी में मेवा के साथ रजाई में घुसी। मेवा को पीछे से जकड़ते हुए अनामिका बोली "उठो भी। बहुत सो लिए। चलो उठो।"

"हम्म्म सोने दो ना। तुम बोल तो ऐसे रही हो जैसे आज रात यहां रूकनेवाली हो।"

"उठो न। दिल्ली में पूरे दो दिन यहां रहनेवाली हूं।"

यह सुनकर मेवा खुश हुआ और तुरंत अनामिका की तरफ पलट गया और बोला "फिर तो अच्छा हुआ। वैसे भी ऊब जाता हूं अकेले रहकर।"

"हां हां। लेकिन सुनो मेवा आज पता नही मुझे सोने का मन कर रहा है।"

"चंपा कहा है। अरे सुन चंपा इधर आ।"

वैसे आपको बता दूं चंपा मेवा की बेटी है। चंपा लालटेन लेकर कमरे में आई और पूछी "क्या हुआ बाबूजी ?"

"चंपा तुम आज जल्दी सो जाओ। अब मैं भी सोनेवाला हूं।"

अनामिका बोली "हां लेकिन पहले दूध पी लो। आओ मेरे पास।"

अनामिका ने मेवा को बाहों में भर लिया और दूध पिलाने लगी। अनामिका की आंखे बंद और चेहरे पे मुस्कान थी। एक बुड्ढे बेसहारा और अपना बहुत कुछ खो देनेवाले बुड्ढे आदमी की सेवा करने में उसे आनंद आ रहा था। फिर आंखे खोलते हुए खुद के सीने से चिपक हुए स्तनपान कर रहे बुड्ढे के सिर पर हाथ से घूमते हुए बोली खुद से बोली " इतनी राहत कभी न मिली मुझे।"

मेवा दूध पीने के बाद बोला "क्या मैं तुम्हारे स्तन के साथ खेलूं ?"

अनामिका बोली "ये कोई पूछनेवाली बात है ? मेरे राजा बच्चे खेलो। लेकिन इससे पहले तुम्हारे पैर दबा दूं।"

अनामिका मेवा का पैर दबाने लगी। उसकी नंगे स्तन को देखते हुए मेवा बोला "इस दूध ने ही मुझे जिंदा रखा है। अनामिका क्या तुम्हे बूरा नहीं लगता कि एक बदसूरत बुड्ढा रोज तुम्हारे स्तन को चूसता है और बजाने बहकाव में आकर तुम्हारे स्तन से खेलता है ?" मेवा ने उदास होकर पूछा।

अनामिका ना मैं सिर हिलाया और पैर दबाने लगी। मेवा ने फिर आगे कहा "जवाब दो ना अनामिका।"

कुछ देर तक चुप रहने के बाद जब अनामिका ने पैर दबाया उसके बाद मेवा के बगल लेटकर कहा "किस बात का मुझे बुरा लगेगा ? मेरा दूध मेरी मर्जी जिसे पिलाऊं। मुझे अच्छा लगता है जब तुम दूध पीते हो और इसके मिठास की तारीफ करते हो और रोज कहते हो अनामिका आज पेट भर गया। फिर रही बात खेलने को मेरे स्तन के साथ तो क्या बुराई है इसमें। तुम्हे इसके साथ खेलता देख तुम्हे क्या पता किस्त अच्छा लगता है।"

"क्या तुम सच बोल रही हों ?"

अनामिका ने मेवा से कहा "मेरे सीने पे हाथ रखो।"

मेवा सीने पे हाथ रखा।

अनामिका पूछी "कुछ महसूस हुआ ?"

"हां।" मेवा ने कहा।

"अब जरा मेरे सीने पे सिर रखकर अंदर को धड़कन को सुनो।"

मेवा ने का चेहरा अनामिका के स्तनों के बीचों बीच पड़ा।

अनामिका पूछी "कैसी आवाज आ रही है ?"

"बहुत मधुर आवाज आ रही है।"

"तो समझा लो मेवा इसका मतलब में तुम्हे अपना दूध पिलाकर और तुम्हारी सेवा करके बहुत खुश हूं।"

मेवा रोने लगा। रोते हुए बोला "तुम महान हो अनामिका।"

अनामिका ने आंसू पोंछे हुए कहा "अब रोना बंद करो वरना चली जाऊंगी।"

"नही नही कहीं मत जाना।" मेवा उठकर बैठ गया।

अनामिका पूछी "एक स्तन का दूध बाकी है। पियोगे ?"

"हां लेकिन एक तुम मुझे अपनी गोदी में सुलोगी और मुझे दूध पीने देगी।"

अनामिका उठकर बैठी और मेवा को गोदी में सुलाकर बोली "पियो मेरे बच्चे जी भरके दूध पियो।"

"लेकिन दूध पीने के बाद आज इसके साथ (स्तन के साथ)खेलूंगा।"

"हां हां खेलना। पर चलो अब जल्दी से मेरे प्यारे बच्चे दूध पियो।"
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#9
hmmmmmm
great writing......
amazing....
take it slow....
keep rocking.....
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#10
Mast story hai.. Pls post long update.
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#11
Please update more
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#12
Waiting for continuation dear.....
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#13
UPDATE 3

रात भर दोनो ने बड़ी अच्छी नींद ली। अनामिका और मेवा के बीच एक अच्छा और निस्वार्थ रिश्ता बन चुका था। मेवा की तबियत अच्छी होने लगी तो इस बात से चंपा खुश रहती।

सुबह को अनामिका की आंखे खुली तो देखा कि मेवा किसी बच्चे को तरह उसके शरीर से लिपटकर सो रहा था। अनामिका हल्के पाओ बिस्तर से उठी और खुद को ठीक किया। कुछ देर बाद चंपा आई और पूछा "अगर आपको सोना है तो मेरे कमरे में आ जाइए।पूरी रात नींद नहीं आई होगी आपको।"

"नही चंपा ऐसा बिलकुल भी नहीं। आज बहुत अच्छे से सोई। एक काम करो चंपा जल्दी से मेरे लिए दूसरी साड़ी लाओ मेरे नहाने का वक्त हो रहा है। और हां मैं मेवा को उठा देती हूं। आज हम दोनो नदी में नहाएंगे।"

"अगर आप कहें तो अंदर नहाने का इंतजाम करूं। बाहर ठंडी बहुत है।"

"ठीक है तो कमरे के अंदर आंगन में मैं नहा लूंगी। मैं और मेवा साथ में नहाएंगे।"

चंपा हल्के से मजाकिया अंदाज में बोली "पहले आपके आलसी मेवा उठे तो सही।"

"हां हां उठा दूंगी। आज मेरे साथ नहाने के नाम पर उठ जाएगा।"

अनामिका बिस्तर पर पड़े मेवा को उठाया। दोनो साथ में नहाने गए। अनामिका ने ब्लाउज पेटीकोट पहना हुआ था और मेवा सिर्फ चोटी चढ़ी में था। मेवा को नहलाने का काम शुरू हुआ। अनामिका गरम पानी से नहलाने लागी। अच्छे से नहलाने के बाद खुद भी नहाई। दोनो ठीक से तैयार हुए। फिर अनामिका ने नाश्ता किया और आज वैसे भी पूरा दिन खाली जानेवाला है। मेवा नहा धोकर अपने कमरे में लेता था। अनामिका का भी टाइम हो गया दूध पिलाने का।

"अनामिका भूख लगी है। जल्दी करो।" मेवा ने कहा।

"आ रही हूं। मेरे राजा को भूख लगी है।" अनामिका ने मेवा को गोदी में सुलाया और अपना ब्लाउज का हुक खोलकर ब्रा को नीचे करके दूध पिलाना शुरू किया।

कमरे का दरवाजा खुला था और चंपा दवाई देने आई। चंपा को इशारे में अनामिका ने बुलाया। चंपा आई और अनामिका ने उसे कान में कहा "आज मैं और मेवा जंगल वाली झोपड़ी में रहेंगे। वहां आज रात भी रहेंगे। हमारी रजाई वहां तक पहुंचाओ।"

मेवा दूध पीते हुए बोला "सुन चंपा मैं और अनामिका कल भी पूरे दिन रहेंगे।"

अनामिका हल्के से मुस्कुराई और इशारे में चंपा को जाने को कहा।

"क्या बात है बुड्ढे मेवा आजकल मेरे बिना रह नहीं पाते।"

"अगर तू नही होगी तो दूध कौन पिलाएगा। वहा दो दिन रहेंगे और मजे से छुट्टी बिताएंगे।"

"हम्म दो दिन मजा बहुत आएगा।"

अगले घंटे अनामिका और मेवा जंगल में गए। वहां मेवा का झोपड़ी था जो नदी से बिलकुल सटा हुआ था। पानी बहुत साफ और अच्छा था। अनामिका और मेवा दो दिन वहां रहेंगे और थोड़ा अकेले में वक्त बिताएंगे। दोपहर के एक बजे थे। अनामिका नदी के पास पड़े खटिया पर लेटकर कुछ पढ़ रही थी। मेवा को तो जैसे ठंडी में भी मजा आ रहा था। वो अनामिका की खूबसूरती को निहार रहा था। वो गया और अपने कपड़े उतारकर नदी में नहाने लगा।

"मेवा क्या कर रहे हो ? ठंडी के मौसम में नहा रहे हो ? सर्दी हो गई तो ?"

"कुछ नही होगा अनामिका। मुझे नहाने दो।" मेवा काफी देर तक नहाया और फिर वहां से मछली लेकर आया। अनामिका को मछली बहुत पसंद है। मछली देख अनामिका को भूख लगी और मछली बनाकर खाने लागी।

दोनो साथ में बैठकर थोड़ी बाते करने लगे। जंगल सुनसान और काफी घना था।

"अनामिका मछली कैसी बनी ?"

"बहुत अच्छी बनी। काफी दिनों बाद खाने को मजा आया।"

"तुम अगले हफ्ते आओ मुर्गी तैयार रहेगी।"

अनामिका मुस्कुराते हुए बोली "नही नही। ज्यादा खाऊंगी तो वजन बढ़ जाएगा।" यह कहकर वो अपने जगह से उठकर थोड़े देर घने चली गई।

जंगल के सुनसान रास्ते में वो ठंडी हवा ले रही थी। वो किसी का इंतजार कर रही थी। थोड़ी देर बाद देखा तो पेड़ के पास काले कपड़े में एक बुड्ढा आदमी था। वो बुड्ढा आदमी और कोई नही बल्कि बाबा ही था। अनामिका गई और बाबा के पैर छूई।

"जीती रहो।" बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा।

"बताइए बाबा यहां क्यों आना हुआ ? कोई समाचार ?"

"हां अनामिका। अब वक्त आ गया है एक और बुड्ढे मरीज की सेवा करने का।"

अनामिका हाथ जोड़ते हुए आज्ञा का पालन करते हुए पूछी "वो कब मिलेगा ?"

"बहुत जल्द। वो एक कुबड़ा है। उसकी उमर 70 साल है। अपने समय स्कूल में साफ सफाई करता था। दिल्ली का ही था। लेकिन इसकी तरह कई लोगो के पेंशन को हजम कर गई सरकार। उन में से तुम्हारा पति भी हिस्सा खाता था। अब वक्त आ गया है उसकी सेवा करने का और तो और जरूरत पड़ी तो सेवा से भी अधिक उसके लिए करना पड़े तो करो।"

"जी बाबा। लेकिन वो रहता कहा है ?"

"इसी गांव मैं। जल्द ही अब तुम उससे मिलेगी। मौत उसके करीब है। अब उसे जिंदगी देने का काम तुम्हारा।"

फिर अचानक से बाबा गायब हो गया। अनामिका तैयार हो गई उस कुबड़े के लिए। अब जल्द से जल्द सारे पाप धोकर वो सुकून से रहना चाहती है। अनामिका वापिस झोपड़ी के पास पहुंची। दूर से मेवा को देखा तो चेहरे पे मुस्कान आई। अंदर झोपड़ी में घुसकर मेवा को अंदर बुलाया। मेवा को थोड़ी सी सर्दी हो रही थी। आखिर इतनी ठंडी में नदी में नहाया था। रात हो चुकी थी। झोपड़ी में अनामिका ने थोड़ी आग लगाई ताकि गर्मी बढ़े। दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। खटिया पे लेते अनामिका मेवा को देख रही थी। मेवा उस वक्त आग ले रहा था। अनामिका अपने साड़ी को उतारकर ब्लाउज पेटीकोट में आ गई। खुद को गरम रजाई में डालते हुए मेवा को बुलाते हुए कहा "मेवा आ जाओ। दूध पीने का टाइम हो गया।"

मेवा तुरंत लपककर रजाई में घुसा और मुस्कुराते हुए बोला "इसका ही तो इंतजार था।" फिर अचानक से खासने लगा।

"हम्मम कहा था ना। बाहर नहाने की जरूरत नहीं। हो गई न सर्दी।"

मेवा अनामिका के ब्लाउस का बटन खोलते हुए कहा "अब मुझे डाटा मत करो। जल्दी से मुझे मीठा दूध पीने दो।"

अनामिका मेवा को बाहों में भरते हुए दूध पिलाते हुए कहा "पागल में तुम्हारी तबियत का खयाल रख रही हूं। मेरा मेवा बीमार पड़ गया तो ?"

"जब तक तुम हो तब तक मैं बीमार नहीं पडूंगा।"

"वैसे भी तुम्हारी जिम्मेदारी जो मैने ली है।" अनामिका मेवा के शरीर को छूते हुए बोली "अच्छे से लेट जाओ। वरना ठंडी लगेगी।"

मेवा आगे बोला "सच कहूं अनामिका आज मुझे ठीक से नींद नहीं आएगी। तुम साड़ी के बिना सो जाओ ताकि तुम्हारे स्तन के साथ खेलकर थोड़ा नींद लूं और अगर भूख लगी तो दूध भी पी सकूं। आज सो जाओ ना बिना साड़ी के।" मेवा मिन्नत करने लगा।

"हां ठीक है बिना साड़ी के सो जाऊंगी। तुम्हे जो करना है करो। लेकिन हां आज रात रजाई से उतरना मत।"

"हम दोनो छोटे से बिस्तर पर है करवट बदलने से नींद तो खराब नही होगी ना तुम्हारी ?"

"मेरे राजा तुम्हे जैसे नींद आए वैसे करो। मुझे परेशानी नहीं होगी। मेरे एक राजा तुम ही तो हो।"

"पता है तुम्हारे दूध पीने से मेरा पेट भरता है और स्तन के साथ खेलने में बहुत मजा आता है।"

"अच्छा मेरे राजा। मुझे भी अच्छा लगता है। जैसे कोई बच्चा मेरे साथ खेल रहा हो।"

"लेकिन मैं बच्चा नहीं हूं।"

"अच्छा ? क्या हो तुम ?"

"तुम्हारा राजा। अब चलो मुझे दूध पीने दो।"

अनामिका बड़े प्यार से मेवा के सिर को हाथो से निहार रही थी। अपने गोरे गोरे बदन पर मेवा का कोयल जिस्म और बुड्ढा शरीर देख हंसने लगी। खुद से बातें करते हुए कहने लगी "इस पुण्य काम में कितना अच्छा लग रहा है। मेवा के साथ कोई रिश्ता न था मेरा लेकिन आज एक रिश्ता बन चुका है। देखो कैसे बच्चे की तरह दूध पीता है और मेरे स्तन के साथ खेलता है। जब मुझे मेवा प्यार से कहता है भूख लगी है दूध पिलाओ मुझे जैसे अच्छा लगता है। इसे दूध पिलाते पिलाते वक्त का पता ही नही चलता। मेवा है तो यह खूबसूरत लम्हा भी है। अब बस अगले आदमी की सेवा करने का वक्त आनेवाला है। कौन है यह कुबड़ा और बुड्ढा आदमी ? अब तो मेवा के साथ उस बुड्ढे के साथ भी वक्त बिताना है।"

रात अपने सन्नाटे के साथ और गहरा हुआ। लालटेन की रोशनी में झोपड़ी के अंदर सो रही अनामिका के बदन में साड़ी न था। वो पेटीकोट में ही थी। बगल में लेटा मेवा की आंखों में नींद नही। अनामिका के मासूम चेहरे को देख रजाई में घुसा और उसके मुलायल स्तन को चूमा। उस स्तन के साथ खेलता और अपनी उंगली से navel पे हाथ घूमता। भीनी भीनी खुशबू से महक रहे अनामिका के बदन को मेवा सूंघ रहा था। अनामिका की भी नींद थोड़ी सी बिगड़ी। हल्के से आंखे खोल मेवा की तरफ देखा तो मुस्कुरा दी। मेवा अनामिका के बदन से खेल रहा था।

"मेरे राजा क्या हुआ नींद नही आ रही ?" अनामिका ने मेवा को बाहों में भर लिया।

"नही बिलकुल भी नहीं। स्तन से खेल रहा हूं।"

"हम्म खेलो लेकिन हां जरा लालटेन बुझा दूं।"

"नही नही अनामिका बिलकुल नहीं।"

"क्यों ?"

"अगर बंद कर दिया तो आपका सुंदर सा चेहरा कैसे देखूंगा और आपके स्तन से कैसे खेलूंगा ? कैसे आपके मखमली सा बदन देखूंगा ? नही मुझे इसे देखना है। ये देखना है कि को औरत दिल से सुंदर है उसका बदन भी वैसा ही सुंदर है। अनामिका आज मुझे अच्छे से देखने दो।"

दोनो चुप चाप कुछ देर तक एक दूसरे को देखने लगे। अनामिका अंदर ही अंदर खुद से बात करते हुए बोली "मेवा के दिल में मेरे लिए कितनी अच्छी बातें है और एक मैं उसके लिए इतना नही कर सकती ? इस सेवा में मेरे लिए अलग सा अनुभव छुपा है।"

वहीं दूसरी तरफ मेवा मन ही मन खुद से कहने लगा "क्यों न देखूं इस खुबसूरत अप्सरा को। ये यहां मेरे लिए ही तो आई है। अब तो बस बाकी की सारी जिंदगी ऐसे ही इसके साथ बिताऊंगा।"

अनामिका ने दोनो हाथ मेवा के गर्दन पर फैलाए और खुद के ऊपर उसे लेटा दिया। मेवा का पूरा बदन अनामिका के ऊपर आ गया। अनामिका एक बड़ी सी मुस्कान के साथ बोली "देखो मेवा। तुम जो चाहो में वो करूंगी। लेकिन कभी भी मुझसे घबराना मत। तुम्हारे लिए हमेशा में हूं। मेरे लिए तुम किसी अनमोल इंसान से कम नहीं। तुम्हे हमेशा अपनी आंखो के सामने देखना चाहती हूं।"

मेवा हल्के से अनामिका के गाल को चूमते हुए कहा "जब तक मेवा है तब तक अनामिका।"

"तो फिर जरा मेरी दिल की धड़कन सुनो।"

मेवा अपने काम को अनामिका के सीने पे रखा और सुनने लगा।

"धड़कन के रही है कि तुम मेरे सबसे प्रिय इंसान हो। मेरे मेवा तुम्हारी सेवा ही मेरा धर्म है।" अनामिका ने कहा।


दोनो एक दूसरे की बाहों में सो गए।
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#14
Aag laga di.....
Sensational....
Aab aayega maza.... Dhire... Dhire....
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#15
Great update ?
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#16
(22-11-2023, 05:11 PM)abcturbine Wrote: Aag laga di.....
Sensational....
Aab aayega maza.... Dhire... Dhire....

Thank you so much bro.
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#17
Achchhi story He. par Thoda domininent lavo Budhdhe anamika pe Hukm chlaye. aur khali udh pilne se kam nahi chlega bhgvanne anamika ko 3 hol diye he papo ka prayschit karne ko. un 3no ka istemal karvao.
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#18
(23-11-2023, 06:09 PM)Bhikhumumbai Wrote: Achchhi story He. par Thoda domininent lavo Budhdhe anamika pe Hukm chlaye. aur khali udh pilne se kam nahi chlega bhgvanne anamika ko 3 hol diye he papo ka prayschit karne ko. un 3no ka istemal karvao.

Bro actually yeh story different hai. Yeh ek universe banane wali hai. Aapko aage chalkar maja jaroor aayega.
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#19
UPDATE 4

छुट्टियां खत्म हुई और काम का वक्त शुरू। अनामिका और मेवा ने एक साथ अच्छे वक्त बिताए। सुबह सुबह तैयार होकर मेवा को दूध पिलाकर ठीक 9 बजे अनामिका चली गई बैंक में काम करने। वैसे बैंक में अनामिका को 4 घंटे ही काम करना होता है बाकी के दिन वो फ्री रहती है। बैंक में सिर्फ बैठना और बाकी का काम दो औरतें कर लेती। यूं कहे तो अनामिका को अच्छी खासी salary में सिर्फ बैठने का काम करना है और हिसाब किताब की जांच ही करनी है।

वैसे आज का दिन बहुत जरूरी दिन था। आज अनामिका के जिंदगी में एक और शक्ष आएगा। जब अनामिका काम कर रही थी कि एक पत्र उसकी ऑफिस में आ पहुंचा। पत्र में लिखा था

"अनामिका मैं हूं बाबा। आज दोपहर काम पूरा होते ही जंगल से बाहर एक पुराने किल्ले में मुझे मिलो। याद रहे जल्दी पहुंचो।"

इस पत्र को पढ़कर अनामिका ने जरा सी भी देरी नहीं की और बैंक का काम खत्म होते ही अकेले निकल पड़ी जंगल के रास्ते एक किल्ले की तरफ। वो किल्ला करीब 150 साल पुराना है। कोई वहां सालो से नहीं आया। इतना वीरान की शायद ही कोई आए जाए। उस किल्ले में पिछले 45 सालो से कोई है आया। अनामिका की इस बात की परवाह नहीं थी। वो जानती थी कि बाबा के छत्र छाया में वो सुरक्षित रहेगी। किल्ला बहुत ही बड़ा था। यूं कहो तो 900 बीघा का बना किल्ला। उस किल्ले के अंदर तक अभी जाना था।

अनामिका किल्ले के छत में जा पहुंची। वहां एक बड़ा सा खंडर कमरा था। उस अंधेरे में वो चली गई। अंधेरे में बाबा अकेले खड़े थे।

"प्रणाम बाबा। कैसे है आप ?" अनामिका ने बाबा का पैर छुआ।"

बाबा मुस्कुराके बोले "जीती रहो। अनामिका तुमने सच में मेवा की बहुत सेवा की। बहुत जल्द तुम्हे इसका वरदान मिलेगा।"

"अब यही मेरी जिंदगी है बाबा। बताइए किसलिए बुलाया ?"

"मेरे साथ आओ अंदर। तुमसे अकेले में बात करनी है।" बाबा अनामिका को अंदर ले गया। अब इस किल्ले में बाबा ही रहता हैं। बाबा अनामिका को अपने कमरे ले गया। अनामिका ने देखा तो कमरा बहुत ही पुराना था। वहा वो खटिया पे बैठी।

बाबा अनामिका से कहा "अब वक्त आ गया है एक और बेसहारा की सेवा करने का। देखो अनामिका वो एक कुबड़ा है। बुड्ढा है। कई सालो पहले उसका एक छोटा सा परिवार था। लेकिन एक दंगे में उसने अपना पोता खो दिया। वो पोता उसके सगे भाई का था। उस कुबडे ने कभी भी मान सम्मान की जिंदगी नही जी। अब से वो तुम्हारी जिम्मेदारी।"

"बाबा मैं उसका खयाल रखूंगी। बताइए कहा है वो।"
"बुलाता हूं। लेकिन याद रहे। तुम्हे उसके साथ अब रहना होगा। उसका खयाल रखना होगा। बदले में वो तुम्हारा खयाल रखेगा। उसका कोई घर नहीं न कोई रिश्तेदार। अब तुम्हे उसे अपने घर रखना होगा।"


बाबा ने आवाज दिया। अनामिका अपने जगह से उठ खड़ी हुई। उसने देखा की एक काले रंग का कुबड़ा जिसका चेहरा थोड़ा थोड़ा सा जला हुआ था। करीब 15% चेहरा जला था। उमर 75 साल की और नाम मणि था। उसे देख अनामिका दंग रह गई। अनामिका को नहाने मणि के चेहरे में घबराहट दिख रही थीं। अनामिका को उसपर तरस आ गया। अब अनामिका को इसकी भी सेवा करनी है।

"जाओ अनामिका। अब हम अगले हफ्ते मिलेंगे इसी जगह पर। अगले हफ्ते मेरा यज्ञ शुरू हो रहा है। तुम पूजा खतम होने के बाद आओगी मुझसे प्रसाद लेने। "

"जी बाबा।" अनामिका बाबा के पैर छूकर मणि के साथ चल दी। पूरे रास्ते मणि कुछ न बोला बस सिर झुकाए आगे चला। अनामिका ने सोचा की अब उसके पश्चाताप के रास्ते में अनेक अच्छे काम होंगे। अब उसका लक्ष्य था अपने मन को शांति। सेवा करके उसके मन को शांति मिलती। मणि को लेकर अपने घर पहुंची। उसे घर में रखकर जल्दी से मेवा के घर गई और उसे दूध पिलाया। दूध पिलाकर कुछ देर उसके साथ रही और रात को वापिस आई।

घर आकर देखा को मणि बाहर बैठा था। अनामिका आकर बोली "आप अभी भी बाहर ही है ? घर के अंदर क्यों नहीं गए ?"

मणि कुछ न बोला बस चुप चाप सुन रहा था। अनामिका बोली "देखिए अब से आप यहां मेरे साथ रहेंगे। अगर साथ में रहना है तो एक दूसरे से बात चीत करनी पड़ेगी। ऐसे अजनबी को तरह पेश आयेंगे तो कैसे चलेगा ? चलिए अंदर। आपके लिए खाना बना देती हूं।

अनामिका अंदर रसोई में गई और खाना बनाने लागी। मणि शरम के मारे अंदर आया। अनामिका जिस तरह से मणि से बात कर रही थी ऐसे अच्छी तरह से किसी ने नहीं किया। मणि को लोगो ने धूतकर और गृणा की नजर से देखा। अनामिका बड़े इज्जत से पेश आ रही थी।

अनामिका खाना बनाकर मणि को खिलाया। मणि जैसे पहली बार खाना देखा हो वैसे खा रहा था। काफी दिनों बाद खाना मिला। वो जल्दी जल्दी खा लिया। अनामिका को जैसे तरस आ गया उस पर। मणि को खाना खिलाकर उसे कमरे में ले गई। वैसे अनामिका का तीन कमरे का घर था। घर करीब 70 साल पुराना था। घर के आगे एक बड़ा सा बगीचा था और पीछे जंगल। वैसे देखा जाए तो गांव जंगल के ईद गिर्द ही था।

मणि को उसके कमरे में सुलाकर अनामिका बगीचे में घूम रही थी। ठंडी का महीना और चारो तरफ कोहरा ही कोहरा था। अनामिका हल्के से ठंडी को महसूस कर रही थी। अनामिका घर की तरफ चली की पीछे से बगीचे का दरवाजा खुला। सामने देखा तो मेवा आया। अनामिका हंसने लगी। मेवा पास आते ही बोला "अनामिका में आ गाय ।"

"इधर क्यों आए हो ? मेरी याद आ रही थी क्या ?"

मेवा अनामिका से गले लगते हुए कहा "हां। चलो अब मुझे सोना है। चलो न।" मेवा हाथ पकड़े अंदर ले गया अनामिका के कमरे में।

अनामिका साड़ी उतारते हुए बोली "इतनी रात को आ गौर अकेले पागल बुड्ढे।"

"मेवा बिस्तर पे लेट गया और ऊपर का कपड़ा उतारकर रजाई में घुसा। अनामिका ने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर रजाई में घुसी।

"मुझे दूध पीना है।" मेवा स्तन को जोर जोर से चूसने लगा।

"इतनी रात को आए अकेले। पागल हो तुम।"

मेवा दूध पीने लगा। रही बात अनामिका की तो पूरे दिन को थकान के बाद मेवा को अपने पास देख अच्छा लगा और वो सो गई। मेवा का दूध से पेट तो भरा लेकिन मन नही। इसीलिए वो अनामिका के पेट नाभि और स्तन के साथ खेलते खेलते सो गया।

अगले दिन सुबह ६ बजे मेवा उठा और कपड़ा पहनकर घर चला गया। अनामिका सुबह ७ बजे उठी। मेवा को बाजू में न पाकर वो समझ गई को मेवा अपने घर चला गया। फिर वो उठी और नहाने चली गई। करीब ८ बजे वो तैयार हुई। अभी भी बैंक जाने में २ घंटा बाकी था। जल्दी से नाश्ता बनाने रसोईघर चली गई। रसोईघर की खिड़की से देखा तो बगीचे की हालत बहुत खराब थी। एकदम उजड़ा और पेड़ तो बिलकुल भी नहीं। बातो बातो में सोचती कि अगर उसे पेड़ पौधे लगाना आता तो बगीचे को खूब अच्छे से सजाती।

अनामिका नाश्ता बनाकर गई मणि के कमरे। मणि उधर नही था। बाहर अनामिका देखी तो वो अकेला बैठा बगीचे के जमीन को घूर रहा था। अनामिका ने उसे नाश्ते के लिए बुलाया। दोनो ने साथ में नाश्ता किया। मणि की अगर बात करे तो उसके सामने अनामिका का गोरा बदन और sleveless साड़ी उसे मोहित नही कर पा रहा था। वोनीचेh चुपचाप नीचे नजर करके बैठा था।

"सुनो मणि मैं बैंक जा रही हू । आज शाम ४ बजे वापिस आऊंगी। तब तक अपना खयाल रखना।"

मणि हां में सिर हिलाया। अनामिका के जाने के बाद वो वापिस बगीचे में आया और बंजर बगीचे को कुछ देर तक देखता रहा। आखिर मणि से रहा नही गया। फोरन आस पास की जगह को देखने लगा। वहां उसे फावड़ा कुल्हाड़ी और पाइप मिला। तुरंत पाइप को नल से लगाया और पानी की बौछार बगीचा के चारो तरफ करने लगा। मणि बगीचे के काम में लग गया। वहीं बैंक में कुछ न काम होने की वजह से आज अनामिका 11 बजे ही बैंक से छुट्टी ले ली। अनामिका खुशी खुशी से मेवा के घर गई।
अनामिका को देख चंपा मुस्कुराई और बोली "आज आप जल्दी आ जाए।"

अनामिका चंपा का गाल खींचते हुए बोली "हां चंपा।" चंपा को रुपए देते हुए कहा "जा बाहर घूमकर आ।"

"वह अनामिका आज बड़ी खुश हो।"

"हां। कहां है मेरा मेवा ?"

"अंदर सो रहा है।"

"ठीक है तुम जाओ।"

हल्के से दबा पाव के सहारे अनामिका मेवा के कमरे गई। उसे suprise देने। अपनी साड़ी उतारी और सिर्फ पेटीकोट में थी। ऊपर से वो निर्वस्त्र थी। मेवा रजाई में सो रहा था। हल्के से रजाई तो ऊपर कर मेवा के बगल लेट गई। मेवा के गाल को हल्के से चूमते हुए उठाया। मेवा पीछे मुंडा तो अनामिका को पाया। खुशी से मेवा ने उसके स्तन को हाथ में लिया और गाल चूमते हुए बोला "मेरी अनामिका तुम यहां ?"

"हां मेरे राजा। आज जल्दी छुट्टी ले ली। तो बताओ मुझे देखकर कैसा लगा ?"

मेवा अनामिका के गले को चूमता हुआ बोला "बहुत खुश हूं मैं। मेरी अनामिका" फिर अनामिका के स्तन को हाथो से मसलने लगा।

"देख रही हूं को आज कल बड़े उतावले और बदमाश होते जा रहे हो।" अनामिका ने छेड़ते हुए कहा।
"चलो अब बदमाश ही सही लेकिन रजाई में तुम्हारे साथ चिपककर लेते रहने में मजा आ रहा है।"


"दूध पियोगे?"

"अभी नही। दूध पीने वैसे भी रात को आऊंगा। अभी कुछ और करना है।"

"क्या ?"

"आज तुम्हारे पेट और स्तन से खेलूंगा। बहुत खेलूंगा।"

"खेलो खेलो लेकिन हां मुझे शाम को वापिस जाना है।"

"हां चली जाना लेकिन रात को में आऊंगा फिर दूध पियूंगा।"

"हां हां पी लेना। रात को घर की चाबी बाहर चटाई पे रख दूंगी। चुपचाप मेरे कमरे में आ जाना।"

"लेकिन हां अभी की तरह पहले से रात को कपड़े उतारे रखना वरना उतारने में मेहना लगेगी।"

"क्या ?बदमाश बुड्ढे।" अनामिका शर्मा गई। मेवा अनामिका के स्तन को बहुत गहराई से चूम रहा था। थोड़ी थोड़ी देर में गले को चूमता तो नीचे सरककर नाभि को चूमता और चिकने पेट को चाटकर अनामिका को गुदगुदाता।

"मेवा तुम अपना खेल जारी रखो। मैं चली सोने।" अनामिका अंगड़ाई ली। इसमें उसका बगल (armpit) दिखाई दिया जो बहुत ही मुलायम और साफ था। उसे देख मेवा ने दोनो हाथ अनामिका के ऊपर किया और बगल को चाटने लगा। अनामिका को बहुत हंसी आई और सो गई। करीब 1 घंटे तक की भरके अनामिका के ऊपरी बदन से खेला। फिर स्तन पे मुंह लगाकर दूध पीने लगा।" दूध पीते पीते अनामिका के बदन पर लेटकर सो गया।
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#20
(23-11-2023, 10:12 PM)Basic Wrote: UPDATE 4

छुट्टियां खत्म हुई और काम का वक्त शुरू। अनामिका और मेवा ने एक साथ अच्छे वक्त बिताए। सुबह सुबह तैयार होकर मेवा को दूध पिलाकर ठीक 9 बजे अनामिका चली गई बैंक में काम करने। वैसे बैंक में अनामिका को 4 घंटे ही काम करना होता है बाकी के दिन वो फ्री रहती है। बैंक में सिर्फ बैठना और बाकी का काम दो औरतें कर लेती। यूं कहे तो अनामिका को अच्छी खासी salary में सिर्फ बैठने का काम करना है और हिसाब किताब की जांच ही करनी है।

वैसे आज का दिन बहुत जरूरी दिन था। आज अनामिका के जिंदगी में एक और शक्ष आएगा। जब अनामिका काम कर रही थी कि एक पत्र उसकी ऑफिस में आ पहुंचा। पत्र में लिखा था

"अनामिका मैं हूं बाबा। आज दोपहर काम पूरा होते ही जंगल से बाहर एक पुराने किल्ले में मुझे मिलो। याद रहे जल्दी पहुंचो।"

इस पत्र को पढ़कर अनामिका ने जरा सी भी देरी नहीं की और बैंक का काम खत्म होते ही अकेले निकल पड़ी जंगल के रास्ते एक किल्ले की तरफ। वो किल्ला करीब 150 साल पुराना है। कोई वहां सालो से नहीं आया। इतना वीरान की शायद ही कोई आए जाए। उस किल्ले में पिछले 45 सालो से कोई है आया। अनामिका की इस बात की परवाह नहीं थी। वो जानती थी कि बाबा के छत्र छाया में वो सुरक्षित रहेगी। किल्ला बहुत ही बड़ा था। यूं कहो तो 900 बीघा का बना किल्ला। उस किल्ले के अंदर तक अभी जाना था।

अनामिका किल्ले के छत में जा पहुंची। वहां एक बड़ा सा खंडर कमरा था। उस अंधेरे में वो चली गई। अंधेरे में बाबा अकेले खड़े थे।

"प्रणाम बाबा। कैसे है आप ?" अनामिका ने बाबा का पैर छुआ।"

बाबा मुस्कुराके बोले "जीती रहो। अनामिका तुमने सच में मेवा की बहुत सेवा की। बहुत जल्द तुम्हे इसका वरदान मिलेगा।"

"अब यही मेरी जिंदगी है बाबा। बताइए किसलिए बुलाया ?"

"मेरे साथ आओ अंदर। तुमसे अकेले में बात करनी है।" बाबा अनामिका को अंदर ले गया। अब इस किल्ले में बाबा ही रहता हैं। बाबा अनामिका को अपने कमरे ले गया। अनामिका ने देखा तो कमरा बहुत ही पुराना था। वहा वो खटिया पे बैठी।

बाबा अनामिका से कहा "अब वक्त आ गया है एक और बेसहारा की सेवा करने का। देखो अनामिका वो एक कुबड़ा है। बुड्ढा है। कई सालो पहले उसका एक छोटा सा परिवार था। लेकिन एक दंगे में उसने अपना पोता खो दिया। वो पोता उसके सगे भाई का था। उस कुबडे ने कभी भी मान सम्मान की जिंदगी नही जी। अब से वो तुम्हारी जिम्मेदारी।"

"बाबा मैं उसका खयाल रखूंगी। बताइए कहा है वो।"
"बुलाता हूं। लेकिन याद रहे। तुम्हे उसके साथ अब रहना होगा। उसका खयाल रखना होगा। बदले में वो तुम्हारा खयाल रखेगा। उसका कोई घर नहीं न कोई रिश्तेदार। अब तुम्हे उसे अपने घर रखना होगा।"


बाबा ने आवाज दिया। अनामिका अपने जगह से उठ खड़ी हुई। उसने देखा की एक काले रंग का कुबड़ा जिसका चेहरा थोड़ा थोड़ा सा जला हुआ था। करीब 15% चेहरा जला था। उमर 75 साल की और नाम मणि था। उसे देख अनामिका दंग रह गई। अनामिका को नहाने मणि के चेहरे में घबराहट दिख रही थीं। अनामिका को उसपर तरस आ गया। अब अनामिका को इसकी भी सेवा करनी है।

"जाओ अनामिका। अब हम अगले हफ्ते मिलेंगे इसी जगह पर। अगले हफ्ते मेरा यज्ञ शुरू हो रहा है। तुम पूजा खतम होने के बाद आओगी मुझसे प्रसाद लेने। "

"जी बाबा।" अनामिका बाबा के पैर छूकर मणि के साथ चल दी। पूरे रास्ते मणि कुछ न बोला बस सिर झुकाए आगे चला। अनामिका ने सोचा की अब उसके पश्चाताप के रास्ते में अनेक अच्छे काम होंगे। अब उसका लक्ष्य था अपने मन को शांति। सेवा करके उसके मन को शांति मिलती। मणि को लेकर अपने घर पहुंची। उसे घर में रखकर जल्दी से मेवा के घर गई और उसे दूध पिलाया। दूध पिलाकर कुछ देर उसके साथ रही और रात को वापिस आई।

घर आकर देखा को मणि बाहर बैठा था। अनामिका आकर बोली "आप अभी भी बाहर ही है ? घर के अंदर क्यों नहीं गए ?"

मणि कुछ न बोला बस चुप चाप सुन रहा था। अनामिका बोली "देखिए अब से आप यहां मेरे साथ रहेंगे। अगर साथ में रहना है तो एक दूसरे से बात चीत करनी पड़ेगी। ऐसे अजनबी को तरह पेश आयेंगे तो कैसे चलेगा ? चलिए अंदर। आपके लिए खाना बना देती हूं।

अनामिका अंदर रसोई में गई और खाना बनाने लागी। मणि शरम के मारे अंदर आया। अनामिका जिस तरह से मणि से बात कर रही थी ऐसे अच्छी तरह से किसी ने नहीं किया। मणि को लोगो ने धूतकर और गृणा की नजर से देखा। अनामिका बड़े इज्जत से पेश आ रही थी।

अनामिका खाना बनाकर मणि को खिलाया। मणि जैसे पहली बार खाना देखा हो वैसे खा रहा था। काफी दिनों बाद खाना मिला। वो जल्दी जल्दी खा लिया। अनामिका को जैसे तरस आ गया उस पर। मणि को खाना खिलाकर उसे कमरे में ले गई। वैसे अनामिका का तीन कमरे का घर था। घर करीब 70 साल पुराना था। घर के आगे एक बड़ा सा बगीचा था और पीछे जंगल। वैसे देखा जाए तो गांव जंगल के ईद गिर्द ही था।

मणि को उसके कमरे में सुलाकर अनामिका बगीचे में घूम रही थी। ठंडी का महीना और चारो तरफ कोहरा ही कोहरा था। अनामिका हल्के से ठंडी को महसूस कर रही थी। अनामिका घर की तरफ चली की पीछे से बगीचे का दरवाजा खुला। सामने देखा तो मेवा आया। अनामिका हंसने लगी। मेवा पास आते ही बोला "अनामिका में आ गाय ।"

"इधर क्यों आए हो ? मेरी याद आ रही थी क्या ?"

मेवा अनामिका से गले लगते हुए कहा "हां। चलो अब मुझे सोना है। चलो न।" मेवा हाथ पकड़े अंदर ले गया अनामिका के कमरे में।

अनामिका साड़ी उतारते हुए बोली "इतनी रात को आ गौर अकेले पागल बुड्ढे।"

"मेवा बिस्तर पे लेट गया और ऊपर का कपड़ा उतारकर रजाई में घुसा। अनामिका ने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर रजाई में घुसी।

"मुझे दूध पीना है।" मेवा स्तन को जोर जोर से चूसने लगा।

"इतनी रात को आए अकेले। पागल हो तुम।"

मेवा दूध पीने लगा। रही बात अनामिका की तो पूरे दिन को थकान के बाद मेवा को अपने पास देख अच्छा लगा और वो सो गई। मेवा का दूध से पेट तो भरा लेकिन मन नही। इसीलिए वो अनामिका के पेट नाभि और स्तन के साथ खेलते खेलते सो गया।

अगले दिन सुबह ६ बजे मेवा उठा और कपड़ा पहनकर घर चला गया। अनामिका सुबह ७ बजे उठी। मेवा को बाजू में न पाकर वो समझ गई को मेवा अपने घर चला गया। फिर वो उठी और नहाने चली गई। करीब ८ बजे वो तैयार हुई। अभी भी बैंक जाने में २ घंटा बाकी था। जल्दी से नाश्ता बनाने रसोईघर चली गई। रसोईघर की खिड़की से देखा तो बगीचे की हालत बहुत खराब थी। एकदम उजड़ा और पेड़ तो बिलकुल भी नहीं। बातो बातो में सोचती कि अगर उसे पेड़ पौधे लगाना आता तो बगीचे को खूब अच्छे से सजाती।

अनामिका नाश्ता बनाकर गई मणि के कमरे। मणि उधर नही था। बाहर अनामिका देखी तो वो अकेला बैठा बगीचे के जमीन को घूर रहा था। अनामिका ने उसे नाश्ते के लिए बुलाया। दोनो ने साथ में नाश्ता किया। मणि की अगर बात करे तो उसके सामने अनामिका का गोरा बदन और sleveless साड़ी उसे मोहित नही कर पा रहा था। वोनीचेh चुपचाप नीचे नजर करके बैठा था।

"सुनो मणि मैं बैंक जा रही हू । आज शाम ४ बजे वापिस आऊंगी। तब तक अपना खयाल रखना।"

मणि हां में सिर हिलाया। अनामिका के जाने के बाद वो वापिस बगीचे में आया और बंजर बगीचे को कुछ देर तक देखता रहा। आखिर मणि से रहा नही गया। फोरन आस पास की जगह को देखने लगा। वहां उसे फावड़ा कुल्हाड़ी और पाइप मिला। तुरंत पाइप को नल से लगाया और पानी की बौछार बगीचा के चारो तरफ करने लगा। मणि बगीचे के काम में लग गया। वहीं बैंक में कुछ न काम होने की वजह से आज अनामिका 11 बजे ही बैंक से छुट्टी ले ली। अनामिका खुशी खुशी से मेवा के घर गई।
अनामिका को देख चंपा मुस्कुराई और बोली "आज आप जल्दी आ जाए।"

अनामिका चंपा का गाल खींचते हुए बोली "हां चंपा।" चंपा को रुपए देते हुए कहा "जा बाहर घूमकर आ।"

"वह अनामिका आज बड़ी खुश हो।"

"हां। कहां है मेरा मेवा ?"

"अंदर सो रहा है।"

"ठीक है तुम जाओ।"

हल्के से दबा पाव के सहारे अनामिका मेवा के कमरे गई। उसे suprise देने। अपनी साड़ी उतारी और सिर्फ पेटीकोट में थी। ऊपर से वो निर्वस्त्र थी। मेवा रजाई में सो रहा था। हल्के से रजाई तो ऊपर कर मेवा के बगल लेट गई। मेवा के गाल को हल्के से चूमते हुए उठाया। मेवा पीछे मुंडा तो अनामिका को पाया। खुशी से मेवा ने उसके स्तन को हाथ में लिया और गाल चूमते हुए बोला "मेरी अनामिका तुम यहां ?"

"हां मेरे राजा। आज जल्दी छुट्टी ले ली। तो बताओ मुझे देखकर कैसा लगा ?"

मेवा अनामिका के गले को चूमता हुआ बोला "बहुत खुश हूं मैं। मेरी अनामिका" फिर अनामिका के स्तन को हाथो से मसलने लगा।

"देख रही हूं को आज कल बड़े उतावले और बदमाश होते जा रहे हो।" अनामिका ने छेड़ते हुए कहा।
"चलो अब बदमाश ही सही लेकिन रजाई में तुम्हारे साथ चिपककर लेते रहने में मजा आ रहा है।"


"दूध पियोगे?"

"अभी नही। दूध पीने वैसे भी रात को आऊंगा। अभी कुछ और करना है।"

"क्या ?"

"आज तुम्हारे पेट और स्तन से खेलूंगा। बहुत खेलूंगा।"

"खेलो खेलो लेकिन हां मुझे शाम को वापिस जाना है।"

"हां चली जाना लेकिन रात को में आऊंगा फिर दूध पियूंगा।"

"हां हां पी लेना। रात को घर की चाबी बाहर चटाई पे रख दूंगी। चुपचाप मेरे कमरे में आ जाना।"

"लेकिन हां अभी की तरह पहले से रात को कपड़े उतारे रखना वरना उतारने में मेहना लगेगी।"

"क्या ?बदमाश बुड्ढे।" अनामिका शर्मा गई। मेवा अनामिका के स्तन को बहुत गहराई से चूम रहा था। थोड़ी थोड़ी देर में गले को चूमता तो नीचे सरककर नाभि को चूमता और चिकने पेट को चाटकर अनामिका को गुदगुदाता।

"मेवा तुम अपना खेल जारी रखो। मैं चली सोने।" अनामिका अंगड़ाई ली। इसमें उसका बगल (armpit) दिखाई दिया जो बहुत ही मुलायम और साफ था। उसे देख मेवा ने दोनो हाथ अनामिका के ऊपर किया और बगल को चाटने लगा। अनामिका को बहुत हंसी आई और सो गई। करीब 1 घंटे तक की भरके अनामिका के ऊपरी बदन से खेला। फिर स्तन पे मुंह लगाकर दूध पीने लगा।" दूध पीते पीते अनामिका के बदन पर लेटकर सो गया।
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