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मेरी भतीजी मेरे लंड की दीवानी (RESTARTED) by asluvu
#1
मेरी भतीजी मेरे लंड की दीवानी (RESTARTED)
writer:- asluvu

19th April 2017
www.xossip.com/showthread.php?t=1484239
 horseride  Cheeta    
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#2
नमस्कार मित्रों,

मेरा नाम आयुष है और अब तक मैं एक silent reader बन कर xossip पर कहानियाँ पढ़ रहा था| दोस्तों जब कोई दिलचस्प कहानी बीच में बंद हो जाती है तो बहुत दुःख होता है| मेरी ही तरह कितने readers होंगे जिन्हें अधूरी कहानियाँ देख कर बहुत निराशा होती है| ये कहानी : मेरी भतीजी मेरे लंड की दीवानी उन्ही कहानियों में से है जिसे लिखा तो गया परन्तु पूरा नहीं किया गया| अब इसके पीछे लेखक महोदय की क्या सोच थी ये तो मैं नहीं जानता हाँ कहानी छोड़ने का कारन मुझे सही नहीं लगा|

मैं कोई लेखक नहीं हूँ पर चूँकि इस कहानी में मेरी बहुत रूचि थी तो इसे पूरा करने का अपराध कर रहा हूँ| इस कहानी में मैं अपने विचार डाल रहा हूँ और आशा करता हूँ की आपको ये पसंद आएगी|

आपका छोटा सा लेखक,
आयुष
 horseride  Cheeta    
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#3
कहानी अब तक ....

मेरा नाम मुन्ना है, पेशे से मैं एक ट्रक ड्राइवर हूँ| मेरे पिताजी का ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार है और मैं भी उसी व्यापार में भागीदार हूँ| जब से होश संभाला है मैं पिताजी के साथ सड़कों पर बहुत घुमा हूँ| फिर चाहे दिल्ली से हिमाचल जाना हो या पंजाब| ग्रेजुएट हूँ बस यही मेरी शैक्षणिक योग्यता (educational qualification) है| आगे पढ़ने को मन नहीं था सो पिताजी के व्यापार में ही मन लगा लिया| वैसे भी जिसे घूमने का चस्का बचपन से लगा हो वो भला एक जगह टिक कर कैसे काम करेगा| पिताजी ने अपनी खून-पसीने की कमाई से गाँव में एक घर बनाया, जिसे उन्होंने मेरे नाम कर दिया| घर की देख-रेख सब मेरे जिम्मे है| एकलौती संतान होने के बहुत फायदे हैं! पिताजी और मैं महीने में कम से कम पंद्रह दिन तो बाहर ही रहते हैं| माँ बेचारी की इसकी आदत है, हाँ कभी-कभार मैं माँ को अपने साथ किसी छोटी ट्रिप पर ले जाता हूँ| अपने ट्रक अशोक 2516 xl पर जब माँ के साथ निकलता हैं तो टशन बाजी करने में बहुत मजा आता है| पर हाँ एक बात जर्रूर बताना चाहूँगा, मैंने आज तक सड़क के किसी भी नियम का उलंघन नहीं किया| ना ही कभी कोई दो नंबर का काम किया| पिताजी के आदर्श और सिद्धांतों का हमेशा पालन किया है| जब भी रात को सफर करना होता है तो माँ एक फ्लास्क भर के चाय दे देती है, ताकि ड्राइव करते समय नींद ना आ जाए और मैं अपनी गाडी हमेशा स्पीड लिमिट में ही चलाता हूँ|
दोस्तों आप सभी को एक बताने में बहुत ख़ुशी हो रही है, हाल फिलहाल ही में पिताजी ने मुझे महिंद्रा TRUXO 202 बुक कर के दिया है| wow !!!! लाल कलर में बहुत ही जानदार लुक देता है| उसकी गर्जन (roar) सुन के रोंगटे खड़े कर दिए| बस अब इन्तेजार नहीं होता ......

चलिए अब कहानी पर आते हैं, वरना आप सब बोर हो जायेंगे|

आज साल भर बाद मैं गाँव आया था| आमतौर पर साल में 10 - 12 चक्कर तो मैं गाँव के लगा ही लेता था पर इस बार बहुत समय लगा गाँव जाने में| अभी घर के दरवाजे की कुण्डी खोल रहा था की उसकी जोरदार चरमराहट सुन के मेरी बड़ी ताई ताऊ आ धमके|

बड़ी ताई: अरे मुन्ना! ना चिट्ठी न पता? कम से कम आने की इतिल्लाह कर देते?
मैं: अम्मा वो अलीगढ की डिलीवरी थी, तो वहां से सीधे यहाँ आ गया|
बड़े ताऊ: अच्छा किया मुन्ना, पर इस बार तुम्हें जल्दी नहीं जाने देंगे|
मैं: नहीं बप्पा...वो एक डिलीवरी......
बड़े ताऊ: इस बार तेरी नहीं चलेगी| मैं तेरे बाप को अभी फ़ोन कर देता हूँ| नीतू की शादी है और घर पर कोई तो चाहये काम-धाम देखने को| तेरा बाप तो गाँव आता नहीं जबतक उसे बुलाया ना जाये| उसका तो जैसे मन ही नहीं करता आने को... हमें देखने को|
मैं: बप्पा दरअसल शहर में काम बहुत ज्यादा है, ये तो दूर-दूर की डिलीवरी मैं देख लेता हूँ इसलिए उन्हें कुछ समय मिल जाता है वरना उन्हें तो खाने तक की फुरसत नहीं| पिताजी ने कहा था की वो अगली 28 को आ जायेंगे|
बड़े ताऊ: अगली 28 को? बताओ... शादी को बस एक महीना बचा है और घर वालों का ये हाल है|
बड़ी ताई: अरे छोडो जी, देवर जी व्यस्त रहते हैं पर समय पर हमेशा आ जाते हैं| और फिर तबतक मुन्ना तो है ही, आगे तो सब इसीको संभालना है|
बड़े ताऊ: तू यहीं रहेगा जब तक ये शादी नहीं निपट जाती, मैं तेरे बाप से बात कर लूँगा|

ये कह कर वो चले गए|

बड़ी ताई: तू इनकी बात का बुरा मत मान बेटा| तू तो जानता ही है की ये तुझसे और तेरे पिताजी से कितना प्यार करते हैं| दिन रात तुझे और तेरे पिताजी को ही याद करते हैं, और कभी-कभी इस कदर झुंझुला जाते हैं|
मैं: अरे नहीं अम्मा... कोई बात नहीं|
बड़ी ताई: तू कपडे बदल और मैं तेरे लिए शरबत भिजवाती हूँ|

मैंने अपना बैग पलंग पर पटका और अपनी टी-शर्ट उतारने लगा| टी-शर्ट अभी गले से निकल ही रही थी की किसी ने मुझे पीछे से आ कर जकड लिया| चूड़ियों की खनखनाहट से मुझे समझते देर न लगी की ये मेरी बड़ी भाभी है|
उनकी उँगलियाँ मेरी छाती की जांच-पड़ताल कर रही थीं| मेरे जिस्म में एक अजीब तरह की सिंहरान दौड़ने लगी थी और रह-रह कर मुझे बीत कल की याद दिल रही थी| वो पल जब मैंने अपना कौमार्य (virginity) को त्यागा था.... मेरी तन्द्रा जब टूटी, जब उन्होंने मुझे पुकारा;

बड़ी भाभी: मुन्ना.... बड़े जालिम हो तुम| एक महीने का कह कर गए थे और एक साल आने को आया|
मैं: (होश में आते हुए, अपने आप को उनके चंगुल से छुड़ाते हुए) मैंने तो कभी नहीं कहा था की मैं एक महीने आऊँगा|
बड़ी भाभी: जानती हूँ नहीं कहा था .... पर हमेशा....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) क्यों इस आवारा से दिल लगा रही हो| मैं तो आपको कुछ पल की खुशियाँ देने आया था| अब आपकी बेटी की शादी है, उसमें मन लगाओ|
बड़ी भाभी: तुम्हारी उन कुछ पलों ने मुझे जीवन भर की खुशियाँ दी हैं और तुम कहते हो की मैं तुम्हें भूल जाऊँ| क्या तुम भूल सकते हो वो पल?
मैं: हाँ (झूठ बोलते हुए)
बड़ी भाभी: (मुस्कुराते हुए) जानती हूँ ...जानती हूँ...

हमारी बात चल ही रही थी की नीतू आ गई, मेरी प्यारी भतीजी और भागती हुई सीधा मेरे गले आ लगी|

बड़ी भाभी: अरे लड़की! चाचा से ना सलाम न दुआ?
नीतू: नमस्ते चाचू|
मैं: चल! ज्यादा तहजीब का नाटक न कर मेरे साथ| ये ले अपनी चॉकलेट...
बड़ी भाभी: सच्ची तुमने इसे सर पर चढ़ा रखा है| दिन पर दिन बदतमीज होती जा रही है| (भाभी ने थोड़ा गुस्से बोला)
मैं: मेरी बेटी जानती है किसके साथ कैसे पेश आना है? वो अपने चाचा का सर कभी झुकने नहीं देगी|
बड़ी भाभी: हाँ ये बात तुमने सही कही| सबसे ज्यादा प्यार इसे तुम से ही मिला है| तुम्हारी जिद्द के कारन इसे पढ़ने को मिला|
मैं: जिद्द नहीं अकलमंदी| मुझे बस इतना करना था की पिताजी की थोड़ी ऊँगली करनी थी और बाकी का काम उन्होंने कर दिया| पर एक गम हमेशा रहेगा की मैं इसे और ज्यादा पढ़ा ना सका| चाह कर भी इसकी शादी नहीं रोक पाया, वरना इस साल नीतू कॉलेज में होती|
बड़ी भाभी: अब सब कुछ तो हमारे बस में नहीं होता ना| खेर, तुम्हें पता है तुम्हारी बेटी ने जिद्द पकड़ ली थी की अगर चाचू नहीं आये तो मैं शादी नहीं करुँगी|
मैं: भला ऐसे कैसे हो सकता है? इसकी शादी और मैं ना आऊँ|
 horseride  Cheeta    
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#4
हमारी इस बात-चीत के दौरान नीतू ने पूरी चॉकलेट साफ़ कर दी थी| सच्ची बहुत ही मासूम थी मेरी भतीजी नीतू पर………….

रात को सबने मिलकर कहना खाया और शादी की तैयारियों पर चर्चा की| चूँकि मैं बहुत घूमता-फिरता था तो मेरा शौक खाने-पीने में ज्यादा था, इसलिए खाने-पीने की व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी मेरी थी|
रात के करीब दस बजे थे और मेरे कारण आज सभी देर तक जगे थे| सब सोने चल दिए थे... अरे ये क्या मैंने तो आपको किसी के बारे में कुछ बताया ही नहीं| मैं भी न....

मेरे पिताजी के दो भाई हैं जिन्हें मैं बड़े बप्पा और मझले बप्पा कहता हूँ| बड़े बप्पा के पांच लड़के और दो लड़कियाँ हैं| सभी की शादी हो चुकी हैं, उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं;
रमाकांत पत्नी शीला (इन्हें मैं बड़े भैया कहता हूँ)
सुरेश पत्नी सुमन
रौशनी
कपिल पत्नी लीलावती
सागर पत्नी उमा
बाबू पत्नी आभा
बरखा

मंझले बप्पा के तीन लड़के और तीन लड़कियाँ हैं और वे भी सभी शादी-शुदा हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं;
भक्ति (बड़ी बेटी)
ईशा
जमुना
अभ्यास पत्नी ज्योति
जया
चन्दर पत्नी तारा
कमल पत्नी रीता
इन सभी के बच्चे भी है परंतु वे सभी अभी अपनी किशोरावस्था में हैं और xossip के नियमों के अनुसार मैं उनका जिक्र नहीं कर सकता और वैसे भी उनका इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है| (Xossip की जय हो!)

सुरेश भैया और सागर भैया अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं| कपिल भैया अपने परिवार के साथ राजस्थान में रहते हैं| ये सभी २-३ दिन में आने वाले थे परंतु छूती न मिलने के कारन 15 दिन बाद आएंगे|
आज रात घर पर बस केवल बड़े बप्पा, बड़ी अम्मा, रमाकांत भैया, शीला भाभी नीतू और मैं ही थे| बप्पा और अम्मा सोने चले गए और नीतू तो पहले ही सो चुकी थी| मैं अपने घर में अकेला लेटा हुआ था की तभी रमाकांत भैया मेरे पास आये| उनके हाथ में एक देसी पउवा था और दो गिलास| मैं समझ गया की उनके क्या इरादे थे? मैं भी दिन भर ट्रक खेंच के लाया था सो मैंने भी सोची की दो पेग मार ही लेता हूँ| भैया और मैं कभी-कभार एक साथ पेग मार लिया करते थे| आज भी उन्होंने बिना कुछ कहे ही सीधा दो पेग बना दिए| मुझे पीने की आदत नहीं थी पर कभी-कभार छुप के टिक लिया करता था और उस दिन अपने ट्रक के केबिन में ही सो जाया करता था| एक पउवे से मेरा कुछ होने वाला नहीं था पर फ्री की शराब को कौन मन करता है? कुछ देर बाद भैया चले गए और मैं दरवाजा बंद कर के सो गया| करीब रात के २ बजे होंगे की मुझे किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज आई| आवाज बहुत धीमी थी, और मैं जान गया था की ये कौन है? शीला भाभी की बुर में आग लगी होगी... ये सोचते हुए मैं उठा और अपने सोये हुए लंड को प्यार से सहलाया की आज तुझे साल भर बाद खुराक मिलने वाली है|

मेरे दरवाजा खोलते ही भाभी धडधडाती हुई अंदर आ गई और खुद ही दरवाजा बंद कर दिया|मैंने अनजान बनते हुए पूछा;
मैं: क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
बड़ी भाभी: आय-हाय! अनजान तो ऐसे बन रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं?
मैं अब भी अपने नाटक पर कायम था| भाभी ने तभी मेरे सोये हुए लंड को अपनी मुट्ठी में भरा और वो ये देख कर हैरान हो गई| उन्हें उम्मीद थी की मेरा लंड खड़ा होगा|
बड़ी भाभी: हाय दैया! लगता है मुझे भूल गए? तुम्हें याद कर-कर के मैंने यहाँ अपनी मुनिया से कितने आँसूं टपकाये और तुम्हारे ये साहबजादे को कोई फर्क ही नहीं|

दोस्तों एक बात यहाँ आपको बताना चाहूँगा; कभी औरत को ये महसूस मत करवाओ की तुम्हें उसकी चूत की जर्रूरत है| जिस दिन उसे ये पता चल गया की तुम्हें अपनी आग बुझाने के लिए उसकी जर्रूरत है वो तुम्हें अपनी उँगलियों पर नचाना शुरू कर देगी| मैं आज तक किसी भी औरत को ये महसूस नहीं होने दिया की मैं उसकी चूत मारने का भूख हूँ, उन सभी को ये लगता है की मैं दीवाना हूँ जिसे मिल जाए तो मार लेता है पर कभी माँगता नहीं!

ऊपर लिखित जानकारी उन लड़कों के लिए नहीं जिन्हें एक भी चूत नहीं मिलती मारने को| ये सुझाव सिर्फ और सिर्फ उनके लिए हैं जो मेरी तरह आशिक मिजाज हैं| तुम्हें तो एक चूत नहीं मिल रही और गलती से मिलने लगे और तुम मेरी तरह भाव खाने लगो तो हाथ आई मुर्गी भी भाग जाएगी|

खेर कहानी पर वापस आते हुए:
मैंने भांप लिया था की भाभी अब नाराज होने का नाटक करेगी, सो यही समय था अपने तुरुक के एक्के की चाल चलने का| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चेहरे को थामा और उनके रसीले होठों को अपने मुँह में कैद कर लिया| मेरी जीभ उनकी मुँह की गहराइयों को नाप रही थी और भाभी मन्त्र मुग्ध से मुझे खुद में समाती जा रही थी| भाभी के हाथों ने मेरी छाती को टटोलना शुरू कर दिया था| धीरे-धीरे उनके हाथ नीचे जाने लगे और मेरी टी-शर्ट के अंदर घुस गए| उनके हाथों का स्पर्श पाते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए| उनकी उँगलियाँ धीरे-धीरे मेरी घुंडियों को ढूंढने लगीं| इधर मैंने उनके नीचले होठ को अपने दाँतों से काटना शुरू कर दिया था|भाभी ने मेरी घुंडियों को अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से दबाना शरू कर दिया था| इधर मैंने अपनी जीभ को उनकी रास भरे मुँह में सरक दिया और उन्होंने भी मेरी जीभ का स्वागत करते हुए अपने दोनों होठों से उसे चूसना शुरू कर दिया|
 horseride  Cheeta    
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#5
अब भाभी का जिस्म और ज्यादा मचलने लगा था और वो मेरी बांहों में पिघलने लगी थी| जब उनकी देह की गर्मी उन्हें झुलसने लगी तो खुदबखुद उनके हाथों ने अपने शिकार को ढूँढना शुरू कर दिया| भाभी ने मेरी जीभ को अपने होठों से आजाद किया और मेरी ओर देखते हुए बोली;
भाभी: मुन्ना...बस ... अह्ह्ह... अब और नहीं सहा जाता|
मैं: ऐसी बात है तो ये लो....

मैंने भाभी को नई-नवेली ढुलान की तरह अपनी गोद में उठाया और अपने पलंग पर ले आया| पलंग पर उन्हें लिटाया ही था की उन्होंने जल्दी दिखाते हुए अपनी साडी खुद-बा-खुद ऊपर उठा ली और अपनी सफाचट बुर के दर्शन करा दिए| भाभी ने पेंटी भी नहीं पहनी थी, सिर्फ साडी और पेटीकोट पहना था| मेरी आँखें उनकी बुर से चिपक गई थीं, मैंने अपने पाजामे का नाद खोल और वो सरक कर नीचे जा गिरा| मेरी नाक उनकी बुर की खुशबु की तरफ मुझे ले जाने लगी, पर इससे पहले की मैं वो अमृत चख पाता भाभी नेमुझे रोक दिया;
बड़ी भाभी: नहीं मुन्ना.... आज नहीं| आज मेरी जलती हुई भट्टी में और तेल ना डालो| इसे जल्दी से अपने लंड से भर दो!

मैंने कुछ नहीं कहा और सीधा उनके ऊपर आ गया, भाभी ने अपनी टांगें तो पहले से ही चौड़ी कर रखी थी| भाभी का उतावलापन इस कदर था की उन्होंने जल्दी से अपना हाथ ले जा कर मेरा लंड अपनी बुर के ऊपर रखो और बड़ी तरसती हुई आँखों से मेरी ओर देखने लगी| उनके चेहरे के इन भाव को देख मुझे उन पर प्यार आने लगा और मैंने अपने लंड का दबाव उनकी बुर पर बढ़ दिया| मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी बुर में समाने लगा| जैसे-जैसे लंड अंदर जा रहा था भाभी के चेहरे के भाव बदल के संतुष्टि का रूप लेने लगे थे|
जब पूरा लंड अंदर समा गया तो भाभी की भट्टी की तपिश मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी और मैं बिना हिले-डुले उनपर पड़ा रहा| इधर भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया| उनकी एड़ी ने जब मेरे कूल्हे पर थपकी मारी तब मुझे होश आया| ये मेरे लिए सिग्नल था, जैसे की घुड़सवार अपने घोड़े को आगे चलने के लिए उसकी कमर या पेट पर अपनी एड़ी से चोट करता है, ठीक उसी तकनीक का उपयोग भाभी ने किया| मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और फिर दो सेकंड का विराम लिया| अपने अंदर खाली-खाली महसूस कर भाभी की आँखें जो आनंद के मारे बंद थी वो खुल गईं और वो बोली;

बड़ी भाभी: सच्ची बहुत जालिम हो तुम!

मैं मुस्कुरा दिया और फिर एक झटके में पूरा लंड अंदर जड़ तक बाढ़ दिया| लंड के उनकी बुर में सरपट घुसते ही भाभी चिहुंक उठी;

बड़ी भाभी: आईईईईई ..... मुन्ना... आअह्ह्ह!
मैं: तुमने ही तो कहा मैं जालिम हूँ! तो अब भुगतो|

ये सुन दोनों की हंसी छूट गई| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दांतों तले दबाया और मुझे उतेजना की और हाँक दिया| अब मैंने उनके ऊपर झुक कर अपनी कमर को लय बद्ध तरीके से लंड को अंदर-बाहर करना जारी किया| मेरे हर धक्के में भाभी की "आह!" निकल रही थी| अपनी उत्तेजना और बढ़ने के लिए भाभी ने अपने भगनासा को छेड़ना शुरू कर दिया| अब भाभी दोहरे आनंद का मज़ा ले रही थी| भाभी के मुँह से अपनी आहें और सिसकारियां निकलने लगी थी| साफ़ था की वो उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी हैं और किसी भी समय अपने रस की धार बहाने वाली है| हैरानी की बात ये थी की भाभी मेरे साथ हमेशा 25 मिनट तक साथ दिया करती थी| पर आज वो 10 मिनुत में ही मेरा साथ छोड़ने जा रही थी| मैंने सोचा नहीं ... ये मेरा वहम होगा.....

पर मेरी सोच सही निकली, अगले ही पल उन्होंने जोरदार धार मारी और निढाल हो के लाश के सामान लेट गई| उनकी साँसों की गति तेज हो चली थी, ब्लाउज में ढकी उनकी छातियाँ धोकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रही थी| उनका ऐसा व्यवहार देख मेरे सारी उत्तेजना काफूर हो गई| मैंने भाभी की चुदाई पर पूरी तरह विराम लगा दिया और अपना लंड बाहर निकाल मैं अपने पंजों पर बैठ गया| मैं अब भी तक-ताकि बांधे भाभी की ओर देख रहा था की वो कुछ बोलेगी.... अब बोलेगी.... अब बोलेगी.... पर नहीं वो कुछ नहीं बोली| दारु का नशा तो कब का उत्तर गया था अब गुस्से का गुबार अंदर बनने लगा था| आखिर पाँच मिनुत बाद वो बोली;
 horseride  Cheeta    
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#6
बड़ी भाभी: मुन्ना.... अब मैं बूढ़ी हो गई हूँ| अब मुझ में वो सहनशीलता (stamina) नहीं रहा| बाहत जल्दी थक जाती हूँ मैं| वैसे भी आज तुम इतने दिनों बाद आये.... तो खुद को संभाल नहीं पाई और जल्दी ही फारिग हो गई|
मैं: और मेरा क्या? अपनी आग तो बुझवा ली मुझसे?
बड़ी भाभी: वो... मैं....
मैं: रहने दो.... निकलो यहाँ से जल्दी, मुझे सोना है|
मैंने बहुत गुस्से भरे स्वर में कहा और जैसे ही मैं दरवाजे की तरफ मुड़ा तो मुझे लगा की कोई छुप के मुझे देख रहा है| मैं दरवाजे के पास वाली खिड़की के पास दौड़ा... पर मुझे वहां कोई नहीं मिला| ,मैं वापस आया तो भाभी मुँह लटकाये बैठी थी;

बड़ी भाभी: मुन्ना... माफ़ कर दो मुझे|
मुन्ना: देखो मेरा गुस्सा और मत भड़काओ, चुप-चाप निकल जाओ यहाँ से|

इतना कह कर मैं दूसरे कमरे में गया और वहाँ अपने बैग से अध्धी निकाली और २-३ घूँट मारे| भाभी पीछे खड़ी ये सब देख रही थी| जब मैं बाहर आया तो दर के मारे भाभी वहाँ से चली गई|

आग बाबुल हो मैं तहमद लपेट, मैं बाहर बरामदे में आ गया और एक कोने से दूसरे कोने में तेजी से चलने लगा| खड़े लंड पर धोका कैसा होता है ये बहुत कुछ लोग ही जानते होंगे| मेरी हालात उस समय ऐसी थी की कोई भी औरत अगर सामने आ जाती तो उसे पेल देता| पर रात के तीन बजे न औरत न कोई रंडी थी वहाँ| गुस्सा इस कदर था की मन कर रहा था की शीला की गांड की सील अपने लड़ से चीर दूँ! पर इधर मेरा लंड खड़े-खड़े दुखने लगा था| जब कुछ नहीं मिला तो मैंने अपने हाथ की ओर देखा और बुदबुदाया; "आज कुछ नहीं तो कम से कम तू तो मेरे साथ है ना|" मैंने अपने हाथ पर थोड़ा थूक लिया और अपने लंड को उससे चुपड़ दिया| आँख बंद किये मैं अपने लंड की खाल को ऊपर-नीचे करने लगा| थूक की गर्माहट के कारन मेरा दिमाग ये सोच रहा था की मेरा लंड किसी चूत के भीतर है| जैसे-जैसे हाथों की गति बढ़ रही थी वैसे-वैसे मैं चरम की ओर बढ़ रहा था| अंत में मैंने एक जोर दर धार मारी जो जाके सीधे दिवार पर गिरी| अपने लंड से आखरी बूँद तक वीर्य बहाने तक मैं नहीं रूक और फिर निढाल हो कर वहीँ बैठा रहा| फिर मैं उठा और अंदर जाकर अपना तहमद लपेट लिया और फिर बहार आकर कुर्सी पर बैठ गया|

सिगरेट सुलगाई और पी ही रहा था की तभी नीतू आ गई| मैं थोड़ा हैरान हुआ उसे यहाँ देख के, और उसकी आँखों में मैंने कुछ उधेड़-बुन देखि| वो मुझसे करीब ८-९ फुट की दूरी पर खड़ी थी...

मैं: सोये नहीं?

नीयू: नींद नहीं आ रही चाचू|

मैं: मैं जब घर आया था तब तो आप सो रहे थे?

नीतू: .....

मैं: अच्छा कोई भयानक सपना देखा होगा?

नीतू: हाँ....हाँ....

मैं: क्या देखा सपने में?

नीतू: (कुछ सोचते हुए) यही की आप मुझे छोड़ के चले गए|

मैं: अरे पगली! तू मेरी सबसे प्यारी भतीजी है, भला मैं तुझे छोड़के कहाँ जाऊँगा|

नीतू ये सुन कर मुस्कुराई, क्योंकि वो जानती थी की मैं उसे सबसे ज्यादा प्यार करता था| मेरा प्यार उसके जिस्म को पाने के लिए कतई नहीं था, बल्कि मैं तो उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करता था|

नीतू: चाचू ... वो कल मैं ... अपने स्कूल जाना चाहती हूँ| आप ले चलोगे मुझे?

मैं: स्कूल? पर क्यों?

नीतू: वो ......मैं एक आखरी बार अपना स्कूल ... क्लास देखना चाहती हूँ|
ये बात नीतू ने बहुत कुछ सोच-विचार करने के बाद बोली थी जिसने मुझे अचम्भे में डाल दिया था|

मैं: ठीक है| अब तुम जाके सो जाओ.... रात काफी हो गई है और किसी ने देख लिया तो......
मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी ... मुझे पता था नीतू समझदार है और मेरी बात समझेगी| खेर नीतू ने और कुछ नहीं कहा और मुस्कुरा कर चली गई, मैं भी अंदर आकर दरवाजा बंद करके अपने पलंग पर सो गया|
 horseride  Cheeta    
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#7
UPDATE 1

अगले दिन मैं थोड़ा लेट उठा और नहा-धो कर तैयार हो गया और चाय पीने पहुँचा| रसोई में सिर्फ अम्मा और शीला भाभी ही थी| बाकी सब कुछ न कुछ काम से चले गए थे| नीतू ने मुझे चाय ला कर दी और स्कूल जाने की बात याद दिलाते हुए इशारा किया| इधर मैं इस फिराक में था की कैसे नेहा को स्कूल ले जाने की बात शुरू करूँ| चाय की पहली चुस्की लेते ही मुझे एक उपाय सूझ गया;

“अम्मा... वो स्कूल के मास्टर साहब को न्योता पहुँच गया क्या?" मैंने बात शुरू की| "नहीं बेटा...तेरा और तेरा पिताजी का इंतजार कर-कर के इतनी देर हो गई की आज से सब जगह न्योता जाना शुरू हुआ है| तेरे बप्पा और भैया सुबह जल्दी निकले हैं न्योता देने|" मैं थोड़ा सोचने का नाटक करने लगे और फिर चाय की अगली चुस्की भरते हुए बोलै; "अम्मा.. तो मैं दे आऊँ उन्हें न्योता?" अम्मा बोली; "ठीक है... तू दे आ|" अब मेरी बारी थी नीतू को साथ ले जाने की बात करने की| "अम्मा नीतू को साथ ले जाऊँ?" मैंने सवाल तो छोड़ दिया था और जानता था की जवाब में भी एक और सवाल पूछा जायेगा| "ये वहाँ क्या करेगी? शादी-व्याह का घर है और ऐसे में लड़की जात का यूँ बाहर घूमना ठीक नहीं|" अम्मा के सवाल का जवाब मैं देना जानता था; "अम्मा मास्टर साहब मुझे जानते नहीं हैं और ऐसे में अगर नीतू साथ हुई तो आसानी होगी| और फिर हम दोनों को आने जाने में पोना घंटा ही लगेगा| जल्दी आ जायेंगे|" अम्मा के हाव-भाव देख कर लग रहा था की उन्होंने ना ही करनी है की तभी शीला भाभी बोल पड़ी; "जाने दो ना अम्मा| अपने चाचा के साथ ही तो जा रही है और फिर स्कूल कौनसा दूर है? ये तो रहा ... घर से दिख जाता है|" ये सुन कर आखिर कर अम्मा ने जाने की अनुमति दे दी| (हमारे घर से स्कूल साफ़ नजर आता था|)

नीतू जाने की बात सुन कर बहुत खुश हुई और हम दोनों घर से स्कूल की ओर चल पड़े| स्कूल का रास्ता खेतों में से हो कर जाता था और आधे रास्ते में वहाँ एक छोटा सा बाग़ भी था जहाँ आम के २-४ पेड़ लगे थे| गर्मी से राहत पाने के लिए लोग कई बार यहाँ रूक के साँस लेते थे| उस बाग़ को देख नीतू बोली; "चाचू... याद है उस पेड़ पर आप चढ़ कर आम तोडा करते थे?" ये सुन मुझे वो दिन याद आने लगे और हम दोनों उसी पेड़ के नीचे खड़े हो कर बातें याद करने लगे| 5 मिनट बाद हम वहाँ से चल दिए और स्कूल पहुँचे, वहाँ जो मैंने देखा उसे देख मैं हैरान रह गया| कक्षा के बाहर लड़के खड़े हो कर सिगरेट फूँक रहे थे| एक कक्षा के अंदर कोई भी नहीं था बस कोने में एक युगल जोड़ा जो की लगभग नीतू की उम्र के होंगे एक दूसरे से चिपटे हुए चुम्मा-चाटी कर रहे थे| ये सब देख मैंने नीतू की तरफ देखा तो वो मेरी तरफ ही देख रही थी पर मैं समझ नहीं पा रहा था की उसके मन में क्या चल रहा है? मैं थोड़ा जल्दी चलने लगा क्योंकि ये सब देख मेरे लंड में कुछ होने लगा था और मैं नहीं चाहता की वो अकड़ जाए और नीतू के सामने मुझे शर्म आये| हम जल्दी से मास्टर साहब के कमरे में पहुँचे और उन्हें न्योता दिया और तुरंत ही वहाँ से निकल पड़े| स्कूल से थोड़ा दूर आने पर मैंने नीतू से पूछा; "ये सब होता है तुम्हारे स्कूल में?" मेरा सवाल सुन नीतू का सर झुक गया| "कहीं तुम भी तो?" मैंने पूरी बात नहीं बोली पर नजाने नीतू को क्या ठेस लगी वो एक दम से बोली; "कभी नहीं चाचू.... मैं तो आपको...." बस इतना बोल कर वो चुप हो गई, पर मेरे लिए अब ये बात जानना आवश्यक हो गया था| "आपको...मतलब?" नीतू सर झुका कर कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "चाचू ...आपको इतना मानती हूँ की मैं इन चक्करों में कभी नहीं पड़ी| आपने इतनी मुश्किल से मेरा स्कूल में दाखिला कराया और मैं इन चक्करों में पढ़ कर आपके सपनों को ख़राब नहीं करना चाहती थी|" ये सुन मुझे विश्वास हो गया की मेरी भतीजी बहुत समझदार है| हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....
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#8
UPDATE 2


कहानी अब तक:

हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....


अब आगे:

ये सीटी थी नीतू के मूतने की| मुझे लगा वो दूर जा कर मूत रही होगी पर वो मेरे से करीब दस कदम दूर ही झाडी में बैठी मूत रही थी| आवाज सुन में समझ तो गया ही था की ये किसकी आवाज है पर मैं पलट नहीं सकता था| 2 मिनट बाद जब नीतू लौटी तो मैंने उसे थोड़ा गुस्से में बोला; "मैंने आपको उधर दूर झाडी के पास बोला था ना? फिर मेरे इतने नजदीक काने में शर्म नहीं आई?" मेरा गुस्सा देख नीतू ठिठक गई और सर झुका कर बोली; "चाचू... वो .... वहाँ किसी ने हग (टट्टी) रखा था... इसलिए...." ये सुन मैं थोड़ा शांत हुआ और कहा; "तो बेटा कहीं और दूर चले जाते|" अब नीतू सामान्य हो बोली; "पर चाचू आप से कैसी शर्म? आपने तो बचपन में मुझे देखा है ना?" "बदमाश... तब आप छोटे थे| अब आप बड़े हो गए हो.. शादी हो रही है आपकी| चलो छोडो ... और दुबारा ऐसी गलती मत करना|" इतना कह हम दोनों घर लौट आये|

घर पहुँच के मुझे शीला भाभी कुऍं से पानी भरती नजर आई| मेरी ओर देख उन्होंने कटीली मुस्कान दी पर मेरे मन में रात गुस्सा अभी भी था तो मैंने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी| मैं और नीतू ने सीधे अम्मा के पास जा कर हाज़री लगाईं; "अरे, तुम दोनों इतनी जल्दी लौट आये?" अम्मा ने उत्सुकता वश पूछा| "हाँ अम्मा..." मैं आगे कुछ कहने ही वाला था की अम्मा बोल पड़ी; "अच्छा मुनना सुन, अपनी भाभी को दवाखाने ले जा|" ये सुन कर मैं अचंभित हो गया क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने देखा था| "पर उन्हें क्या हुआ? अच्छी-भली तो हैं|" मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि मुझे लगा ये भाभी का कोई नया ड्रामा होगा| "वो तुझे नहीं बता सकते| तू इसे बस बाजार ले जा ये अपने आप बात कर लेगी|" अम्मा तो थोड़ा झेंपते हुए बोला| पर भाभी ने बोल पड़ी; "अम्मा कोई बात नहीं आज नहीं तो कल मुनना को भी ये सब पता ही चल जायेगा| आखिर उसकी भी तो शादी होगी!" ये बात भाभी ने एक अलग अंदाज में कही, जैसे की वो मुझे चिढ़ा रही हो| "हम्म्म... ये तो सही है कहा तूने| बेटा तेरी भाभी को सफ़ेद पानी की शिकायत है|" ये सब बड़की अम्मा के मुख से सुन बुरी तरह झेंप गया और मुझे अब भाभी का चिढ़ाने का अंदाज समझा आया| पर ये सब सुन कर मैं भी चिंतित हो गया, क्योंकि भले ही उनसे नाराज रहता था पर उनकी सेहत की परवाह भी सब से ज्यादा करता था| मैंने गंभीर आवाज में भाभी से कहा; "चलो भाभी... आप तैयार हो जाओ| मैं जाके साइकल निकालता हूँ|" साडी बदल भाभी आ गेन और मैं उन्हें सायकल पर पीछे बिठा कर चल दिया| मेरे चेहरे पर अब भी गंभीरता थी और अंदर ही अंदर मैं उनके लिए परेशान भी था| गाँव से थोड़ा दूर पहुँच कर भाभी बोली; "क्या बात है मुनना सुबह तो इतना गुस्सा थे और अब देखो मेरी चिंता में आधे हुए जा रहे हो? अब भी कहोगे की मुझसे प्यार नहीं करते?"

"चिंता करने का मतलब ये तो नहीं की आपसे प्यार करता हूँ... हाँ परवाह करता हूँ आपकी| गुस्सा होता हूँ पर सबसे ज्यादा चिंता भी आप की ही करता हूँ|" मैंने जवाब दिया|
"देखो इतनी चिंता करने वाले को भी मैं खुश नहीं कर पाती| धिक्कार है मुझ पर!" भाभी ने अपने को कोसते हुए कहा| "जो हुआ उसमें आपकी गलती नहीं थी.... अब बुढ़ापा होता ही ऐसा है!" मैंने ये बात कह कर थोड़ी चुटकी ली| "अच्छा ? मैं बूढी हो गई हूँ?" भाभी ने थोड़ा चिढ कर कहा| "कल रात आप ही ने तो कहा था!" मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिए थोड़ी और आग लगा दी| "अच्छा? आज बताती हूँ की कितनी बूढी हो गई हूँ! आज तुम्हारा तेल ना निकाल दिया तो कहना!" भाभी ने बिदक के कहा| "अरे भाभी मैं तो मजाक कर रहा था, आप खामखा गुस्सा हो गए| अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है, पहले ठीक हो जाओ फिर चाहे मुझे जिन्दा खा जाना| पर जब तक पूरी तरह ठीक नहीं होते तब तक शांत रहो|" ये सुनकर भाभी थोड़ी शांत हुई और हम हंसी-मजाक करते हुए शहर पहुँचे| दवाखाने के सामने पहुँच भाभी ने मुझे वहीँ रुकने को कहा और खुद अंदर चली गई| दवाखाने के बाहर औरतों के इलाज की अलग लाइन थी और मर्दों की दूसरी तरफ थी| मैंने देखा भाभी लाइन में नहीं लगीं बल्कि सीधा अंदर चली गईं| मुझे लगा भाभी बड़ी दबंग हैं! 5 मिनट में ही वो बहार आ गईं और उनके हाथ में कुछ भी नहीं दिख रहा था, न दवाई न कोई परचा! मैं सोच में पद गया की ये यहाँ करने क्या आई थीं? तभी वो मेरे पास आईं और बोलीं, "मुनना एक बोतल पानी ला दो|" मैंने सायकल स्टैंड पर कड़ी की और जा के पानी की बोतल खरीद लाया| तभी भाभी ने अपने ब्लाउज के अंदर हाथ डाला और मैंने अपनी आँखें फेर लीं| ये देख भाभी हँस दी और बोली; "आँखें क्यों फेर ली?" "तो क्या घुस जाऊँ उधर?" मैंने झूठा गुस्सा दिखते हुए कहा| ये सुन भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी और आने जाने वालों की नजर हम पर टिक गई|

खेर भाभी ने अपने ब्लाउज में से अपना बटुआ निकाला और उसमें एक दवाई का पत्ता था जिसकी एक गोली उन्होंने मेरे सामने पानी से खा ली| मुझे लगा की डॉक्टर ने दवाई दी होगी| दवाई खा कर भाभी ने मुझे घर जाने के लिए कच्चा रास्ता लेने को कहा, जब मैंने वजह जननी चाही तो वो बोलीं की उन्हें किसी से मिल कर शादी का न्योता देना है| मैंने भाभी की बात मान ली और हम कच्चे रस्ते के लिए मुख्य सड़क से उतर आये| दोपहर के दो बजे होंगे और धुप में मैं और भाभी हँसते-मुस्कुराते हुए बात किये जा रहे थे की तभी अचानक भाभी बोली; "मुनना... सायकल रोक!" भाभी की आवाज में कुछ अजीब था और मेरा ध्यान उनकी आवाज समझने में लग गया की तभी भाभी फिर बोली; "रोक....रोक ना|" मैंने सायकल रोक दी और उतर के पीछे मुड़ा; "क्या हुआ भाभी? सब ठीक तो है?" भाभी के चेहरे पर अजब सी मुस्कराहट फ़ैल गई और वो बोली; "मेरे साथ चल|" और मेरा हाथ खींच के रास्ते के किनारे एक बाग़ की तरफ जाने लगी| "अरे पर ले कर कहाँ जा रही हो ?" मैंने फिर से पूछा पर वो कुछ नहीं बोली| ये देख मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे| मैं समझ गया था की ये जर्रूर कल रात का अधूरा काम ख़तम करने मुझे ले जा रही हूँ और मन ही मन मैं ठान चूका था की इनकी बीमारी के चलते मैं इन्हें छूने वाला भी नहीं हूँ| बाग़ के अंदर एक तरफ एक आधा कटा हुआ पेड़ था और झाड़ियाँ भी थी, वहाँ पहुँच कर शीला भाभी रूक गई और अपनी बढ़ी हुई साँसों को थामते हुए बोली; "कल रात मैंने अपने सजना को बहुत आहात किया था|" मैंने भाभी की बात वहीँ काट दी; "ठीक है... पर इस सब की कोई जर्रूरत नहीं है| अभी आप बीमार हो, पहले ठीक हो जाओ फिर ...|" मैंने बात पूरी नहीं की पर ये सुन कर भाभी हंसने लगी| उनकी हंसी देख मुझे समझते देर नहीं लगी की ये बिमारी-वीमारी कुछ नहीं बल्कि ढोंग था उनका| मैंने अपने माथे पर हाथ मरते हुए बोला; "तो ये सब आपने ड्रामा खेला था?" मेरी बात सुन उनका सर झुक गया था और मेरा पारा चढ़ने लगा था| "यहाँ मैं खुद को मन ही मन गालियाँ दे रहा था की मैंने आपके साथ कल रात इतना बुरा व्यवहार किया और आप यहाँ ...." मैंने बात अधूरी छोड़ दी और भाभी की तरफ देखना बंद कर दिया था और उनसे नजरें फेरे खड़ा था| तभी भाभी बोली; "मैंने ये सब तुम्हारे लिए किया| कल रात मैंने तुम्हें अतृप्त छोड़ दिया था और तब से मैं खुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी| सुबह जब तुमने मेरी तरफ देखना भी ठीक नहीं समझा तो मैंने सोच लिया की मुझे क्या करना है| मैंने दवाखाने से दवाई ली और ....." दवाई का नाम सुन मेरे कान खड़े हगो गए थे| "कैसी दवाई?" मैंने पूछा तो जवाब में वो बोली; "जोश बढ़ने वाली| आज मैंनेतुम्हेँ छका न दिया तो कहना?" मैं मन ही मन सोच में पढ़ गया की ऐसी दवाइयाँ तो मर्दों के लिए होती हैं, भला औरतों को इसकी क्या जर्रूरत? इधर भाभी के तपते जिस्म ने उनकी हरकतों को मजबूर कर दिया था| भाभी ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और पैंट के ऊपर से दबाने लगी| "ये क्या कर रही हो? पागल हो क्या? यहाँ खुले में? कोई देख लेगा तो?" मैंने उनके हाथों की पकड़ से अपने लंड को आजाद करते हुए कहा| एक बात मैंने गौर की वो ये की भाभी की सांसें भारी हो चली थीं और ये साफ़ था की भाभी के ऊपर दवाई का असर दिखने लगा था| भाभी ने गुस्से से मेरी कमीज के कालर पकड़ते हुए बोली; "डर गए.. की कहीं आज तुम्हारी सिटी-पित्ती गुल्ल हो गई तो? कहीं आज तुम्हारा ये औजार कमजोर पड़ गया तो?"
ये शब्द सुन कर तो नामर्द के लंड में भी अकड़न आ जाए मैं तो फिर भी मर्द था! म आईने भाभी की कमर में हाथ डाला और उन्हें अपने नजदीक खींच लिया और उनके थिरकते होटों पर अपने होंठ रख दिए| उनके नीचे वाले होंठ को मैंने अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| इधर भाभी ने भी अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के पीछे बालों में चलना शुरू कर दिया था| उनकी नाखून मेरे सिर में एक अजीब सा एहसास करा रहे थे| मैंने नीचले होंठ को छोड़ के उनके ऊपरी होंठ को अपने मुँह में दबोच लिया और चूसने लगा|भाभी की उत्तेजना अब उफान मारने लगी थी, शायद ये दवाई का असर था|उनके हाथों ने मेरे लंड पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी, उँगलियाँ मेरी पैंट की ज़िप पर घूमने लगी और उन्होंने जल्द ही मेरी पैंट की कैद से मेरे लंड को आजाद कर दिया| जी भर के भाभी के होंठों का रसपान करने के बाद जब मैंने उन्हें आजाद किया तो देखा की भाभी की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मुझे समझते देर न लगी की भाभी की कामाग्नि उन्हें जला रही है| मैंने आस-पास देखने लगा की लेटने का कुछ जुगाड़ हो सके| तभी भाभी ने उस आधे कटे हुए पेड़ की तरफ इशारा किया| मैंने अपनी पैंट उतारी और मैं उस कटे हुए पेड़ के तने के ऊपर लेट गया| मेरी सिर्फ कमर और थोड़ी सी पीठ ही उस तने पर थी बाकी का शरीर हवा में था जो मेरी टांगों के सहारे था| भाभी ने अपनी साडी और पेटीकोट ऊपर किया और मेरी कमर के ऊपर आ गईं और लंड को अपनी पनियाई हुई बुर के ऊपर सेट किया और धीरे-धीरे लंड पर बैठने लगीं| उनकी बुर अंदर से बुरी तरह गीली थी| लंड पूरा अंदर जा चूका था और भाभी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलकने लगे थे| भाभी ने ऊपर-नीचे होना शुरू किया और मैंने महसूस किया की जब भाभी ऊपर उठती तो उनकी बुर अंदर से मेरे लंड को जकड़ने लगती, जैसे की मेरे लंड को निचोड़ना चाहती हो| भाभी की गति बहुत बढ़ चुकी थी और उनके मुख से आनंदमई सुर आने लगे थे; "सससस....उम्मम्मम.... आआह......आनमममम" इधर मुझे भी बहुत आननद आ रहा था| मेरी नजरें भाभी के ब्लाउज में कैद चुचों को आनंद लेने में व्यस्त थीं जो भाभी की रफ़्तार से लय बांधने लगे थे और ऊपर-नीचे हिलने लगे थे| पर जब भाभी लंड पर नीचे आती तो मेरी कमर में पेड़ की लकड़ी चुभने लगती| मैंने भाभी को रोकना चाहा पर तभी भाभी जोर से झड़ने लगीं और उनके बुर का सारा रस मेरे लंड के साथ बहता बहता बाहर आने लगा पर भाभी थी की रुकने का नाम नहीं ले रही थी| जबतक उनके अंदर रस की सारी धार बाहर नहीं बाह गई वो ऊपर-नीचे कूदती रही| आखिर कार थक कर वो रुकीं और मेरे ऊपर से हट गईं| भाभी की सांसें बहुत तेजी से चल रही थी और उनकी प्यास आँखों से बयान हो रखी थी| मैंने उनको एक पेड़ के पास खड़ा किया उनकी दायीं टांग को उठाया और पीछे से अपना लंड अंदर पेल दिया| लंड फिसलता हुआ अंदर घुस गया| अब मेरे अंदर के ट्रक ने पूरी हार्सपावर से काम करना शुरू कर दिया था| मैंने बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिया था और गति कुछ इस कदर बढ़ चुकी थी कली भाभी को खुद को गिरणसे से सँभालने के लिए पेड़ का सहारा लेना पड़ा| उनके मुख से लगातार चींखें निकलने लगी थी; आआह.....न्नन्न....ममममम.....ससससस.....हाय...ह्ह्हम्मम्मम्म ....मममममम ...." ये तो शुक्र था की बाग़ के आस पास कोई गाँव-घर नहीं था वर्ण आज वहां जमावड़ा लग जाता| मेरी रगों में जोश बढ़ने लगा था और मेरी चुदाई की रफ़्तार पूरे चरम पर थी| ३-४ धक्के और भाभी फिर से झड़ गईं और हाफने लगीं| भाभी की बुर का रास उनकी बुर से निकल कर थाई से होता हुआ नीचे बहने लगा| पर मैं अब भी संतुष्ट नहीं था, इतने समय बात छूट मिली थी की क्या बताऊँ!

भाभी मेरी तरफ पलटीं और मेरे मन में ख्याल आया की ये जर्रूर अब बोलेंगी की मैं थक गई हूँ| पर हुआ उससे उलट! "सससस....मु...नननन...अअअ.... खड़े-खड़े मैं थक गईं हूँ अब मुझे लेटने दे| मैं थोड़ा हैरान हुआ पर चुदाई का भूत सर पर सवार था तो ज्यादा ध्यान नहीं गया| अब भाभी उस कटे हुए पेड़ के तने पर पीठ के बल लेट गईं और मैंने उनकी दोनों टांगें खोलीं और बीच में आ गया| एक झटके में लैंड अंदर पेल दिया और थोड़ी बेरहमी दिखते हुए उन्हें चोदने लगा| जैसे ही मैं लंड अंदर पेलता भाभी के चुचे ऊपर को उछाल जाते और जब बाहर निकालता तो वो नीचे को वापस आ जाते| मुझसे उनके ये छलते हुए चुचों को ब्लाउज में कैद देखना मुश्किल हो रहा था सो मैंने भाभी के ब्लाउज का हुक खोल दिया और पाया की भाभी ने ब्रा नहीं पहनी थी| यानी आज भाभी पूरी तैयारी कर के आई थी चुदाई की| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चुचों को थामा और दबाना शुरू किया| मैंने उन पर इस कदर पकड़ बना ली थी की वो अब मेरे धक्कों के प्रभाव से उछाल नहीं पा रहे थे| इधर भाभी के मुंह से सिर्फ सिसकारियां ही फुट रही थीं| १५ मिनट की म्हणत और की, कि तभी भाभी को मेरे चेहरे पर संतुष्ट होने के भाव नजर आने लगे| मतलब की मैं झड़ने वाला था और भाभी जानती थी की मैं हमेशा अपना वीर्य बाहर निकालता था| पर इससे पहले की मैं लंड बाहर निकालता भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द कास लिया और बोलीं; "अंदर छोड़ दो... मैंने गर्भ निरोधक गोली खरीदी है|" ये सुन कर मैंने अपना लंड बाहर नहीं खींचा और ४-५ धक्के मारता हुआ उनके भीतर ही झड़ गया| मेरे रस के साथ-साथ भाभी ने फिर से अपना रस छोड़ दिया और वो भी संतुष्ट हो कर मुझसे लिपट गईं|


to be continued
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#9
UPDATE 3

कहानी अब तक......

१५ मिनट की म्हणत और की, कि तभी भाभी को मेरे चेहरे पर संतुष्ट होने के भाव नजर आने लगे| मतलब की मैं झड़ने वाला था और भाभी जानती थी की मैं हमेशा अपना वीर्य बाहर निकालता था| पर इससे पहले की मैं लंड बाहर निकालता भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द कास लिया और बोलीं; "अंदर छोड़ दो... मैंने गर्भ निरोधक गोली खरीदी है|" ये सुन कर मैंने अपना लंड बाहर नहीं खींचा और ४-५ धक्के मारता हुआ उनके भीतर ही झड़ गया| मेरे रस के साथ-साथ भाभी ने फिर से अपना रस छोड़ दिया और वो भी संतुष्ट हो कर मुझसे लिपट गईं|


अब आगे....

जब दिलों में उमड़ रहा तूफ़ान थमा तो हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए| दिलों की गति सामान्य हो छुकि थी और सांसें मद्धम| मैं भाभी के ऊपर से उठा और मेरा लंड फिसलता हुआ उनकी बुर से बाहर आ गया| साथ ही उनकी बुर से मेरे वीर्य की एक धार भी बाह निकली जिसे उनकी बुर पी न पाई थी| मैं खड़ा हो के अपनी पैंट उठाने लगा तो भाभी ने मुझे रोक लिया और मेरा हाथ पकड़ के अपने पास बुलाया| फिर मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और उसकी ऊपरी चमड़ी को पीछे खिसका कर सुपाडे को मुंह में भर कर जीभ से साफ़ करने लगी|पूरा लंड अच्छे से साफ़ करने के बाद उन्होंने मेरे लंड को आजाद कर दिया| मैंने अपनी पेंट पहनी और कमीज ठीक करने लगा| इधर भाभी ने भी अपनी साडी ठीक की, ब्लाउज के हुक लगते समय मुझे दिखते हुए बोली; "तुम सच्ची बहुत बेरहम हो! देखो कितना दर्द कर रहे हैं ये!" मैं मुस्कुरा दिया और जैसे ही बाग़ से बहार आने के लिए मुदा की भाभी ने मुझे रोक लिया और आकर मेरे सीने से लग गईं और बोलीं; "मुझे माफ़ कर दो|" "भाभी जो आपने अभी मेरे लिए किया उसके बाद माफ़ी की कोई गुंजाइश नहीं है| आपने मेरी महीनों की प्यास बुझा दी अब इसके बाद माफ़ी-वाफी की कोई जर्रूरत नहीं|" इसके बाद हम दोनों अलग हुए और साथ ही बाग़ से बाहर आये और मैं पहले साईकल पर बैठ गया और फिर भाभी बैठ गईं| भाभी बोली; "मुनना तुम्हारी पूरी कमीज भीग गई है!" "अब क्या करूँ... इतनी मेहनत जो करवाती हो तुम|" मैंने हँसते हुए जवाब दिया| अच्छा भाभी एक बात बताओ, इस गोली ने तो सच में आप के भीतर इतना जोश भर दिया था जैसा मैंने कभी नहीं देखा| इतना जोश तो आपके अंदर पहले भी नहीं था! अगर पुरूषों के लिए ऐसी गोली होती तो....." भाभी ये सुनकर एक दम से बोल पड़ी: "न बाबा ना... तुम गलती से भी मत खाना ये गोली| बिना गोली खाये तो तुमने मेरा तेल निकाल दिया अगर गोली खा ली तो मेरी बुर के साथ-साथ पड़ोसन भी फाड़ के रख दोगे|" ये सुन मैं ठहाके लगा के हंस पड़ा और हम हँसते बात करते हुए हम घर लौट आये| घर पर नीतू खाना बना चुकी थी और सब लोग खा भी चुके थे केवल हम ही बचे थे| खाना खा कर मैं भाभी और नीतू मेरे घर पर आ गए और वहां अलग-अलग चारपाइयों पर लेट गए और बातें शुरू हो गईं| नीतू बोली; "माँ आप चाचू से बहुत प्यार करती हो ना?" नीतू के सवाल ने तो मेरे होश उड़ा दिया पर भाभी ने इसका जवाब यूँ दिया; "हाँ बहुत प्यार करती हूँ मैं तेरे चाचू से! और क्यों न करूँ... तेरे पैदा होने के बाद तेरे चाचू ने मेरा इतना ख़याल रखा| सिर्फ एक ये थे जो मेरे बीमार होने पर मेरी इतनी तीमारदारी करते थे| तू जब बीमार होती थी तो अपनी पढ़ाई तक छोड़ के आ जाते थे|" ये सुन कर मैं कुछ नहीं बोलै बस आँखें बंद किये चुप-चाप लेटा रहा और ऐसे जाहिर किया जैसे मैं सो रहा हूँ| पर तभी नीतू ने मुझ पर सवाल दागा; "चाचू आप भी माँ को प्यार करते हो?" ये सुन कर मैंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा; "नीतू... आप बहुत बड़ी-बड़ी बातें करने लगे हो!" अब भाभी चुटकी लेते हुए बोली; "अरे तो गलत क्या है? बड़ी हो गई है नीतू और शादी होने जा रही है इसकी!" "पर इसका मतलब ये नहीं की ये भूल जाए की ये किस्से बात कर रही है? आप इसकी माँ हो और मैं चाचा! इसे पता होना चाहिए की अपनों से बड़ों से इस प्रकार बात नहीं करते|" मैंने ये बात थोड़ा डांटते हुए कही| पर भाभी आज बहुत चुटकी लेने के मूड में थी सो नीतू का बचाव करते हुए बोलीं; "रहने दे नीतू... तेरे चाचू थके हुए हैं.....बहुत मेहनत की है इन्होने|" ये बोलने के बाद वो 1 सेकंड के लिए चुप हो गई और फिर बोलीं; "मुझे साईकिल पर बिठा के ले गए थे और फिर वापस लाये हैं| थकना तो लाजमी है!" मैं समझ गया था की उनका मतलब क्या है पर फिर भी शांत रहा| करीब आधा घंटा आँख लगी होगी की मुझे चारपाई की चरमराहट सुनाई दी| उठ कर देखा तो नीतू मेरी तरफ देख रही थी और मुस्कुरा रही थी| उसकी ये मुस्कराहट मुझे अजीब लगी पर मैंने कुछ कहा नहीं और उठ कर बाहर चला गया| बाहर आ कर देखा तो रमाकांत भैया मेरी ही तरफ आ रहे थे| वो मुझे बड़े बप्पा के पास ले गए हम सब बैठ कर शादी की तैयारियों की बातें कर रहे थे| मुझे अगले दिन कुछ लोगों को न्योता और कैटरिंग वालों से मिलने जाना था| तो मैंने अगले दिन की साड़ी प्लानिंग कर ली की कितने बजे निकलना है, कहाँ पहले जाना है आदि| शाम को सबने बैठ कर चाय पी और बातें चलने लगी| बड़े बप्पा पिताजी को बहुत याद कर रहे थे, तो मैंने उनकी बात पिताजी से करा दी| रात को खाना खा कर मैं अपने घर लौट आया और दरवाजा बंद कर मैं लेट गया| मैं जानता था की आज भाभी नहीं आने वाली हैं पर भाभी की बुर की प्यास इतनी जल्दी कहाँ बुझने वाली थी|

डेढ़ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मेरी आँख खुल गई| मैं समझ चूका था की हो न हो ये भाभी ही होगी| मैंने दरवाजा खोला तो भाभी ही थी और मुझे धक्का दे कर अंदर घुस गई| मैंने दरवाज़ा बंद किया और भाभी के पास आ कर बोला; "आपको चैन नहीं? आज जी भरके बुझा ो दी थी आपकी प्यास!" "हाय...इतनी जल्दी कहाँ बुझती है प्यास? साल-साल भर तुम अपनी शकल नहीं दिखाते और जब आये हो तो मुझे जी भर के प्यार करने नहीं देते!"


to be continued
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#10
UPDATE 4


कहानी अब तक:

रात को खाना खा कर मैं अपने घर लौट आया और दरवाजा बंद कर मैं लेट गया| मैं जानता था की आज भाभी नहीं आने वाली हैं पर भाभी की बुर की प्यास इतनी जल्दी कहाँ बुझने वाली थी|

डेढ़ बजे दरवाजे पर दस्तक हुई और मेरी आँख खुल गई| मैं समझ चूका था की हो न हो ये भाभी ही होगी| मैंने दरवाजा खोला तो भाभी ही थी और मुझे धक्का दे कर अंदर घुस गई| मैंने दरवाज़ा बंद किया और भाभी के पास आ कर बोला; "आपको चैन नहीं? आज जी भरके बुझा ो दी थी आपकी प्यास!" "हाय...इतनी जल्दी कहाँ बुझती है प्यास? साल-साल भर तुम अपनी शकल नहीं दिखाते और जब आये हो तो मुझे जी भर के प्यार करने नहीं देते!"


अब आगे:

"भाभी बात को समझा करो! किसी ने अगर देख लिया तो आपकी बहुत बदनामी होगी|" "वो सब मुझे नहीं पता.... बस मेरी तन की आग बुझा दो!" "आप ने फिर से गोली तो नहीं खा ली?" मैंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा| "नहीं ... ले कर आई हूँ, सोचा यहीं खा लुंगी|" "आप पागल हो क्या? एक दिन में दो बार गोलियाँ खा लीं!" "हाय! इससे कोई बिमारी हो जाती है?" भाभी ने उत्सुकता दिखते हुआ पूछा| तभी मेरे मन में ख्याल आया की क्यों ना मैं भी थोड़ी चुटकी ले लूँ| "और क्या! ओवरडोज़ से बीमारियां होती हैं जैसे बुर में से पानी बहना, बुर में जलन, धड़कन की तेज गति और तो और स्वप्न बुर झाड़न|" अंतिम वाला नाम मैंने अपने आप ही बना लिया था| ये सब सुन कर भाभी निराश हो गई और सोच में पड़ गई| भाभी को इस तरह उदास देख मैंने सोचा की अब और ज्यादा इन्हें तंग नहीं करूँगा| सो मैंने उनसे कहा; "भाभी परेशान मत हो| आपको मेरा प्यार चाहिए ना? तो उसके लिए आपको हमेशा गोली खाने की जर्रूरत नहीं|" "पर मैं तुम्हारा साथ कैसे दे पाउंगी .... मैं तुम्हें आधे रास्ते में तड़पता नहीं छोड़ सकती!" "आप उसकी चिंता मत करो ... मेरे पास एक उपाय है|" "वो क्या" भाभी ने उत्सुकतावश पूछा| "वो सब आपको बताना मुश्किल है आप बस वो करो जो मैं कहता हूँ और हम दोनों संतुष्ट हो जायेंगे|" ये सुन कर भाभी के मुख पर आशा की किरण जाग उठी| फिर मैंने भाभी को उनके तमाम कपडे उतारने को कहा और खुद भी सारे कपडे उतार कर उनके समुख खड़ा हो गया| मेरा लंड तन्नाया हुआ था और जिस पर भाभी की नजरें तिकी हुई थीं| मेरे कुछ करने से पहले ही भाभी ने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ लिया और अपनी बुर के पास ले जाने लगीं| इससे पता चलता है की उनके अंदर मेरे प्रति कितनी भूख थी! मैंने उन्हें ऐसा करने से रोका और उनके होठों को चूमा| मुझे इस बात का ख़ास ध्यान रखना था की मैं भाभी को ज्यादा उत्तेजित न करूँ वरना वो जल्दी ही झड़ जाएँगी| मैंने उनके हाथ से अपना लंड छुड़ाया और उन्हें चारपाई की ओर चलने को कहा| वहां पहुँच कर मैं चारपाई पर लेट गया और उन्हें अपने ऊपर आने का मूक इशारा किया| भाभी अंदर से इतनी उत्सुक थीं की वो सीधे मेरे लंड के ऊपर अपनी बुर को ले आईं और उस पर बैठने ही वाली थीं की मैंने उन्हें कंधे से दबा कर नीचे जाने को कहा और मेरे लंड को अपने मुंह में ले कर चूसने का आदेश दिया| भाभी अब समझ गई थीं की खेल क्या है सो उन्होंने सबसे पहले मेरे लंड को चूमा और उसकी खुशबु को अपने नथुनों में भरने लगी| मेरे लंड के सुपाडे को वो अपने नथुनबों में ठूसने लगी और मैं इधर देख रहा थी की उनके अंदर की प्यास बढ़ने लगी है| मैंने उनके गालों पर हाथ फेरा और उन्हें मूक इशारे से चूसने को कहा| भाभी ने अपने निचले होंठ को मेरे सुपडे पर ऊपर से नीचे रगड़ना शुरू कर दिया| अगला हमला उनकी जीभ का था जिसने मेरे सुपाडे के छेड़ को कुरेदा| भाभी ने अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे लंड को ऊपर से नीचे की तरफ और नीचे से ऊपर की तरफ चाटने लगीं| भाभी की खुरदरी जीभ और उनकी लार मेरे लंड को गीला कर रही थी और मेरे अंदर की वासना को हवा दे रही थी| दो मिनट की इस चटाई ने मेरी वासना को पूरी तरह से जागृत कर दिया था और मेरा हाथ स्वथा ही उनके सर पर पहुँच गया था| मैंने उनके सर पर दबाव डाला की वो मेरे लंड को अपने रसीले होठों की गिरफ्त में ले लें और उन्होंने ऐसा ही किया| मेरे लंड को अपने मुंह में भर कर भाभी स्थिर हो गईं| दस सेकंड तक भाभी ने मेरे लंड को अपने मुंह में कैद रखा| ना तो वो उसे अपनी जीभ से छेड़ रही थीं न ही कुछ और कर रही थीं| शायद वो मुझे तंग कर रहीं थीं.....

जब मेरी बेचैनी बढ़ने लगी तो मैंने भाभी के गाल पर एक प्यार भरी चपत लगाईं| भाभी समझ गई और उन्होंने अपनी जीभ को मेरे लंड के सुपडे पर चलाना शुरू कर दिया| उनकी पूरी तरह से गीली जीभ ने मेरे लंड को उनके मुँह के रसों से सरोबोर कर दिया| अब भाभी ने मेरे लंड को अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया| मेरे पूरा लंड उनके थूक से गीला हो चूका था और चुदाई के लिए तैयार था पर न भाभी रूक रही थी और न ही मैं उन्हें रोक रहा था| डा मिनट की ताबड़तोड़ चुसाई के बाद अब मैं अपने चरम पर पहुँचने वाला था तो मैंने भाभी को रुकने का इशारा किया पर भाभी थी की मेरा लंड छोड़ ही नहीं रही थी| मुझे उनके मुँह से अपना लंड बाहर निकालना पड़ा और मैंने उनसे कहा; "इतना क्या मोहित हो इस (मेरे लड़) पर की छोड़ती ही नहीं?" जवाब में भाभी बोली; "मेरा बस चले तो इसे अपनी बुर में जिंदगी भर डाले रहूँ!" ये सुन कर उनकी प्यास कितनी बढ़ चुकी है ये मैं समझ गया था| मैंने भाभी को अपने नीचे लिटाया और उनकी दोनों टांगों को खोल उनके बीच में आगया और उनके थूक से चुपड़े लंड को भाभी की छूट में ठेल दिया और पूरा का पूरा लंड अंदर जड़ तक पेल कर मैं उनपर सारा वजन डालकर पड़ गया|" अब भाभी को तड़पाने की बारी मेरी थी....

भाभी की बुर में अपना लंड डाले मैं उनपर पड़ा रहा| दो सेकंड नहीं हुए होंगे और भाभी का शरीर कसमसाने लगा| उनका शरीर कामवासना से भरने लगा था और भाभी के मुँह से एक घुटी से आवाज आई; "उम्म्म...ससस... करो ... ना..." मैंने भाभी के मुंख पर देखा और उन्हें याद दिलाया की उन्होंने मुझे कितनी यातना दी थी! खेर मैं भी उनपर जुल्म करने के मूड में नहीं था तो मैंने उनकी धक्कापेल चुदाई शुरू कर दी| मेरे हर धक्के में भाभी के चुके ऊपर-नीचे होने लगे थे और मुझसे उनकी ये थिरकन बर्दाश्त नहीं हो रही थी सो मैंने उनके दाहिने चुके पर अपने दाँत गड़ा दिए! इस हमले से भाभी की कराह निकल गई पर उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा बस मेरे बालों में हाथ फिराने लगी| 10 मिनट की चुदाई में ही भाभी और मैं अपने चार्म पर पहुँचने लगे| एक और ठस्सा और मेरे अंदर का जवाला मुखी फुट पड़ा और सारा लावा भाभी की बुर में भरने लगा| लावे की गर्माहट से भाभी भी अपने चार्म पर पहुँच गई और अपना रस बहा कर निढाल हो कर रह गईं| मैं भी उनके ऊपर पड़ा रहा की तभी दरवाजे पर दस्तक हुई जिसे सुन हम दोनों के प्राण निकल गए!
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#11
UPDATE 5


कहानी अब तक:

मैंने उनकी धक्कापेल चुदाई शुरू कर दी| मेरे हर धक्के में भाभी के चुके ऊपर-नीचे होने लगे थे और मुझसे उनकी ये थिरकन बर्दाश्त नहीं हो रही थी सो मैंने उनके दाहिने चुके पर अपने दाँत गड़ा दिए! इस हमले से भाभी की कराह निकल गई पर उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा बस मेरे बालों में हाथ फिराने लगी| 10 मिनट की चुदाई में ही भाभी और मैं अपने चार्म पर पहुँचने लगे| एक और ठस्सा और मेरे अंदर का जवाला मुखी फुट पड़ा और सारा लावा भाभी की बुर में भरने लगा| लावे की गर्माहट से भाभी भी अपने चार्म पर पहुँच गई और अपना रस बहा कर निढाल हो कर रह गईं| मैं भी उनके ऊपर पड़ा रहा की तभी दरवाजे पर दस्तक हुई जिसे सुन हम दोनों के प्राण निकल गए!



अब आगे :

दस्तक सुन मैं और भाभी दोनों हड़बड़ा गए! हम दोनों की धड़कनें तेज थी और दिमाग के तोते उड़े हुए थे| बहार न जाने कौन होगा? अम्मा, बप्पा या भैया? जर्रूर भाभी को बिस्ता पर ना पाकर वो सब भाभी को ढूढ़ने निकले होंगे! इन्हीं ख्यालों ने मेरा दिमाग सनन कर रखा था की दुबारा दस्तक हुई और मैंने जल्दी से अपनी बनियान पहनी और तहमद लपेटा| भाभी को मैंने कहा की वो अंदर वाले कमरे में जा कर छुपे| मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा और अपनी साँसों को नियंत्रण में किया और सोचा की ऐसे जताऊँगा जैसे नींद से उठा हूँ| दरवाजे तक पहुँचने तक एक बार और दस्तक हुई; "आ रहा हूँ!" मैंने ऐसे कहा जैसे मेरी नींद अब खुली हो| दरवाजा खोला तो बाहर नीतू खड़ी थी; "क्या हुआ इतनी रात गए?" मैंने अंगड़ाई लेते हुए कहा| "चाचू वो...." इतना कह कर वो चुप हो गई और फिर कुछ सूंघने लगी| मैं सोच में पड़ गया की ये क्या सूंघ रही है? दारु या सिगेरट तो मैंने पी नहीं| मैं अभी अपनी सोच में डूबा था की वो बोली; "चाचू आप मुझसे नाराज तो नहीं? मैंने दोपहर मैं आपसे....." इतना कह कर वो रुक गई और उसकी नजर मेरे तहमद पर गई जिसमें गीले निशान पड़ गए थे| जब नीतू की नजरों का पीछा करते हुए मेरी नजर मेरे तहमद पर गई तो मुझे समझ आया की नीतू क्या देख रही थी| ये निशान दरअसल मेरे और भाभी की कामरस से भीगे लंड से आये थे| "नीतू आप पगला गए हो क्या? इतनी रात गए ये पूछने आये हो?" मैंने अपने तहमद से अपने लंड को ढकते हुए गुस्से में कहा| नीतू समझ गई थी की मैंने उसकी चोर निगाहों को पकड़ लिया है तो उसने अपनी आँखें नीचे कर लीं| उसका उदास चेहरा देख मैं भी थोड़ा पिघल गया और उससे समझते हुआ कहा; "मैं आपसे नाराज नहीं हूँ बस अपनी हद्द में रह कर बात किया करो| मेरे लिए आप अभी भी बच्चे हो और मैं आपका चाचा, हमेशा इस रिश्ते का लिहाज किया करो| अब जाओ और सो जाओ रात बहुत हो गई है, किसी ने देख लिया तो खामखा बवाल हो जायेगा| आईन्दा जो भी बात करनी हो दिन में किया करो|" इतना सुन नीतू ने हाँ में सर हिलाया और चली गई| मुझे उसके चेहरे पर ख़ुशी नहीं दिखी और मन ही मन मैं भी थोड़ा दुखी था क्योंकि वो तो बच्ची है और गलत काम तो मैं और भाभी कर रहे थे| मैंने दरवाजा बंद किया और वापस भाभी के पास पहुँचा| इससे पहले की भाभी पूछती मैंने स्वयं ही उन्हें बता दिया; "नीतू थी|" ये सुन कर उन्होंने थोड़ा चैन की साँस ली| "लेकिन कल से रात में आप यहाँ मत आना किसी ने देख लिया तो आफत हो जाएगी|" ये सुन कर भाभी का दिल टूट गया पर मैं उस समय कर भी क्या सकता था? भाभी बाहर जाने लगी तो उनका दिल रखने के लिए मैंने उन्हें पीछे से थामा| मेरी बाहें उनकी कमर से लिपट गई थीं और मैं उनकी गर्दन पर अपने होठ गड़ाए खड़ा था| मेरे इस अंदाज से भाभी पिघलने लगीं और जल्द ही उनके मुँह से सिसकारियां फूटने लगीं| बात आगे बढ़ पाती इससे पहले ही मैंने खुद को रोक लिया और मैं उनके कान में खुसफुसाया; "शुभ रात्रि!!" ये सुनकर भाभी के चेहरे पर मुस्कान लौट आई और वो ख़ुशी-ख़ुशी चली गईं|

अगली सुबह चूँकि मुझे कुछ न्योते बाँटने जल्दी निकलना था सो चाय भाभी ले कर आईं और जब वो आईं तो उनके चेहरे के रंग उड़े हुए थे| "क्या हुआ? चेहरा फीका क्यों है?" मैंने गंभीरता से पूछा| "वो....रात को.... मुझे यहाँ से जाते हुए नीतू ने देख लिया|" भाभी ने काँपते हुए स्वर में कहा| ये सुन कर मैं भी हैरान रह गया और मैंने भाभी को एक समाधान बताया| समाधान क्या ये तो कुर्बानी थी! "मेरी बात ध्यान से सुनो| अगर किसी ने कुछ पूछा तो कह देना की मैंने आपको रात में बुलाया था| सारे आरोप मुझ पर अलग देना, कहना मैं जबरदस्ती कर रहा था!" ये सुन कर भाभी स्तब्ध रह गईं; "पर ... मैं.....नहीं ... मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगी| फिर जो होना है वो हो जाए|" "जरा दिमाग लगा कर सोचो, अगर खुद पर आरोप लोगी तो सब आपको कुलटा कहेंगे! और नीतू का क्या? उसका ब्याह है, ये बात फ़ैल गई तो उससे कोई शादी नहीं करेगा! मेरा क्या है मैं घर-बार छोड़ दूँगा, किसी दूसरी जगह... दूसरे शहर गुजरा कर लूंगा| आप मेरी चिंता मत करो और नीतू के भविष्य के बारे में सोचो|" ये कह कर मैंने कपडे पहने और तभी अम्मा आ गईं और मुझे एक थैला दे कर घर लौटते समय कुछ सामना लेन को भी कहा| थैला ले कर मैं बप्पा और भैया से मिला और घर से निकल पड़ा| सब कुछ शांत था क्योंकि नीतू अभी तक सो रही थी पर मेरा दिल ये कह रहा था की आज घर लौट कर मुझे तूफ़ान का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा|


to be continued
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#12
UPDATE 6


कहानी अब तक:

मैं ऐसा कुछ नहीं कहूँगी| फिर जो होना है वो हो जाए|" "जरा दिमाग लगा कर सोचो, अगर खुद पर आरोप लोगी तो सब आपको कुलटा कहेंगे! और नीतू का क्या? उसका ब्याह है, ये बात फ़ैल गई तो उससे कोई शादी नहीं करेगा! मेरा क्या है मैं घर-बार छोड़ दूँगा, किसी दूसरी जगह... दूसरे शहर गुजरा कर लूंगा| आप मेरी चिंता मत करो और नीतू के भविष्य के बारे में सोचो|" ये कह कर मैंने कपडे पहने और तभी अम्मा आ गईं और मुझे एक थैला दे कर घर लौटते समय कुछ सामना लेन को भी कहा| थैला ले कर मैं बप्पा और भैया से मिला और घर से निकल पड़ा| सब कुछ शांत था क्योंकि नीतू अभी तक सो रही थी पर मेरा दिल ये कह रहा था की आज घर लौट कर मुझे तूफ़ान का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा|


अब आगे...

सारा काम निपटा कर घर लौटते-लौटते मुझे शाम के सात बज गए थे| घर लौटते समय मैं बस मन ही मन खुद को आने वाले सवालों के लिए तैयार कर रहा था| मैंने सोच लिया था की आज रात ही मैं घर छोड़के चला जाऊँगा और फिर कभी वापस नहीं आऊँगा| बस एक ही बात का गम था की मैं अपनी प्यारी हतिजी जिसे मैं अपनी बेटी की तरह चाहता था उसकी नजरों में गिर जाऊँगा और फिर कभी उससे मिल नहीं पाउँगा| पर इसमें सब मेरी ही गलती थी... अगर मैं भाभी को बहने से पहले ही रोक लेता तो आज मेरा ये छोटा सा आशियाँ बाढ़ में बह ना जाता| भारी-भारी क़दमों से मैं अपने घर पहुँचा और सीधा अम्मा के पास पहुँचा और उन्हें थैला दिया| पर अम्मा ने मुझे प्यार से बिठाया और पानी और गुड़ दिया| बप्पा और भैया भी आ गए और सब बड़े आराम से बातें कर रहे थे| मैंने ये सब देख अचंभित था और मेरी नजरें भाभी को ढूंढने लगीं| कुछ देर बाद अंदर से भाभी निकलीं और वो भी बहुत शांत थी और मुस्कुरा रही थी| इसका मतलब नीतू ने किसी से कुछ भी नहीं कहा था| मैं उठा और नीतू को ढूंढने लगा ताकि उससे बात करके उसे झूठ बता सकूँ की ये सब उसकी माँ की नहीं बल्कि मेरी गलती है| पर वो मुझे कहीं नहीं मिली, मेरे पूछने पर भैया ने बताया की वो सो चुकी है| मैं घर के आँगन में पहुँचा तो देखा नीतू वहां लेटी हुई थी मैं उसके पास पहुँच कर मैंने नीतू को आवाज लगाईं पर वो कुछ नहीं बोली और चुप चाप लेटी रही| मेरा मन किया की मेंमैंने नीतू के सर पर हाथ फेरने को हाथ बढ़ाया पर फिर खुद को रोक लिया| मेरा मन अंदर से कचोट ने लगा और मैं आत्मग्लानि की आग में जलने लगा| मेरे अंतर मन ने मुझे नीतू को छूने भी नहीं दिया| मैं ने अपनी जेब में हाथ डाला और नीतू के लिए लाइ हुई चॉकलेट निकाल कर उसके पास छोड़ के वापस मुड़ा| पीछे देखा तो भाभी खड़ी सब कुछ देख रही थी| मैंने भाभी से कुछ नहीं कहा और अपने घर लौट आया और कपडे बदलने लगा| तभी अम्मा और भाब ही खाना खाने को बुलाने आये तो मैंने उन्हें ये कहकर मना कर दिया की मैंने बाहर खाना खा लिया था सो मैं अभी खाना न यहीं खाऊँगा| अम्मा तो मेरा झूठ मान गई पर भाभी जान चुकी थी की मैं झूठ बोल रहा हूँ| अम्मा के जाने के बाद भाभी बोली; "क्यों झूठ बोल रहे हो?.... तुम नहीं खाओगे तो मैं भी खाना नहीं खाउंगी!" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और सर झुकाये बैठ गया| मेरा सर झुका हुआ देख भाभी बोली; "मैंने अभी देखा .... तुम.....बहुत चाहते हो नीतू को और मेरे कारन वो.... तुमसे बात भी नहीं कर रही|" ये बोलते हुए भाभी की आँखें छलक आईं| "हम्म्म...पर आज नहीं तो कल....उसने अपने ससुराल चले जाना था| फिर तो क्या ही .... मैं उससे मिलता..." इतना कह कर मैं चुप होगया और खुद को सँभालने लगा की मैं रो न पडूँ| "नहीं.... ये सब मेरे कारण हुआ है|" भाभी ने रोते हुए कहा| "नहीं.... गलती मेरी थी! मुझे आपको शुरू में ही ये सब करने से पहले रोक देना चाहिए था| खेर छोडो जो होगया उसे तो मैं बदल नहीं सकता आप बस चुप रहना और नीतू से कुछ मत कहना| अगर उसने पूछा तो वही कहना जो मैंने कहा था| सारा इल्जाम मुझ पर लगा देना और कहना मैंने आपको बरगलाया था| आप उसकी माँ हो और मैं नहीं चाहता की उसकी नजरों में कभी आपकी इज्जत कम हो| रही मेरी बात तो मैं था ही कौन? उसका चाचा... मेरे ना होने से उसे इतना दुःख नहीं होगा जितना अपने माँ के नहोने से होगा!" मैंने भाभी के आँसूं पोछते हुए कहा| मैंने आगे उन्हें कुछ कहने नहीं दिया और उन्हें अपनी कसम से बाँध कर चुप करा कर घर भेज दिया|

भाभी के जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया और पलंग पर लेट गया पर नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी| सारी रात मैंने जाग कर काटी और नीतू के बचपन की यादों को याद करता रहा| सुबह होते ही मैं नाहा-धो कर तैयार हुआ और बप्पा के पास आ कर बैठ गया| मुझे इतनी जल्दी उठा देख कर बप्पा खुश हुए और हम खेत की तरफ निकल गए| उस समय कोई नहीं उठा था सो मैं और बप्पा एक सैर पर चल दिए| जब हम वापस आये तो मुझे और बप्पा को साथ देख सब हैरान रह गए| सिर्फ नीतू अभी तक उठी नहीं थी, बाकी सब उठ चुके थे| सबने साथ बैठ कर चाय पी और फिर अम्मा और बप्पा दूसरे गाँव पूजा में चले गए और भैया भी किसी काम से चले गए| मुझे घर रह कर आराम करने का काम दिया गया था क्योंकि की कल मैंने बहुत सारा काम किया था! मैं अपने घर लौट आया और सीढ़ी पर बैठा किताब में हिसाब लिखने लगा| करीब एक घंटे बाद भाभी और नीतू आये| भाभी ने नीतू का हाथ जोर से पकड़ रखा था और दोनों बहुत तेजी से मेरी तरफ आ रहे थे| मेरे पास पहुँच कर भाभी ने नीतू को मेरी ओर धकेल दिया|
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#13
Quote:asluvu

मेरे नए पाठकों का स्वागत !!!!

दोस्तों इतने कमैंट्स देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है| आशा करता हूँ की आगे भी आप इसी प्रकार अपने प्रेम की वर्षा मुझ पर करते रहेंगे| अगली अपडेट का कार्य प्रारम्भ कर रहा हूँ!

P.S. मैं सभी को करना चाहता हूँ पर xossip के किसे नियम के कारण नहीं कर पा रहा हूँ| यदि आप में से कोई मुझे समझा सके तो अपार कृपा होगी|
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#14
UPDATE 6a


कहानी अब तक :

मैं अपने घर लौट आया और सीढ़ी पर बैठा किताब में हिसाब लिखने लगा| करीब एक घंटे बाद भाभी और नीतू आये| भाभी ने नीतू का हाथ जोर से पकड़ रखा था और दोनों बहुत तेजी से मेरी तरफ आ रहे थे| मेरे पास पहुँच कर भाभी ने नीतू को मेरी ओर धकेल दिया|



अब आगे:

ये सब देख कर मैं हैरान रह गया| कुछ समझ नहीं आया की भाभी ने नीतू को इस तरह क्यों मेरी ओर धकेला? मैंने नीतू की तरफ देखा तो वो रो रही थी और भाभी का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था|
मैं ने नीतू को संभाला और वो आकर सीधा मेरे गले से लग गयी| ये देख भाभी और गुस्से से मेरी तरफ आई और नीतू को मेरे जिस्म से अलग कर दूर कर दिया| उनके भीतर गुस्सा इतना था की नीतू धम से जा गिरी| मैं तुरंत उसे उठाने के लिए बढ़ा तो भाभी बीच में आ गई और बोली; "पड़ी रहने दो इसे!" मैंने भाभी को साइड किया और नीतू को उठाके खड़ा किया| नीतू पुनः मुझसे लिपट के रोने लगी और ये देख भाभी गुस्से में बोली; "जानते हो क्यों टेसुए बहा रही है ये? महारानी जी कह रही हैं की ये शादी नहीं करना चाहती|" "भाभी शांत हो जाओ, शादी से पहले लड़कियों को इस तरह की घभराहट होती है| एक नई जगह, नया परिवार...." मेरे आगे कुछ बोलने से भाभी चिल्ला कर बोली; "जी नहीं! कहती है तुमसे प्यार करती है और तुम ही से शादी करेगी!" ये सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए! मैंने नीतू को खुद से अलग किया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा; "बेटा ये आप क्या बोल रहे हो? ये सब.... " मैं आगे कुछ बोल नहीं पाया ... शायद शब्दों का अकाल पड़ गया था! मैंने नीतू को खुद से अलग किया और वापस आ कर सीढ़ी पर बैठ गया| करीब-करीब दस मिनट तक सबकुछ शांत था या फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरे कान के पास आकर कोई बेम फोड़ दिया और उस धमाके से मेरे कानों में बस 'सननन' की आवाज ही आ रही थी! दिमाग सुनन पड़ चूका था!

दस मिनट बाद नीतू मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर कुछ बोलने वाली थी की भाभी फिर से बीच में आई और मेरा हाथ छुड़ा कर बोली; "दूर से बात कर! ज्यादा नगिचे जाने की जर्रूरत नहीं है|" मैंने भाभी का ऐसा रूप कभी नहीं देखा था, वो मुझे इस तरह बचा रही थी जैसे की कोई मादा अपने नवजात बच्चे की रक्षा खूंखार जानवरों से करती है| नीतू ने अपने आंसूं खुद पोछे और बोली; "चाचू ... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ! आपको अपना पति मान चुकी हूँ| मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे ही शादी करुँगी वरना अपनी जान दे दूँगी|" नीतू ने जैसे रटी-रटाई बातें बोल दीं| शायद इन लीनों को वो बहुत दिनों से अभ्यास कर रही थी| मैं कुछ बोलता उससे पहले ही भाभी बोल पड़ी; "छिनाल! तुझे सिर्फ ....." इतना खा कर वो तेजी से नीतू की ओर लपकी और मैंने फुर्ती दिखते हुए उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया और उन्हें चुप कर दिया| "नीतू... बेटा मुझे नहीं पता की ये बात आपके मन में कैसे आई या क्यों आप मेरे बारे में ऐसा सोचते हो? मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की जो आप कह रहे हो वो मेरे लिए पाप है! मैंने आपको हमेशा अपनी बेटी की तरह चाहा है, कभी आपके बाजरे में कुछ गलत नहीं सोचा| क्यों आप मेरे प्यार को इस दिशा की ओर ले जा रहे हो? ये विचार लाना पाप है! प्लीज मुझे इस पाप का भागी मत बनाओ!" "आप और माँ जो करते हैं वो भी तो पाप है! फिर मेरे साथ शादी करने में आपको क्या परेशानी है? मैं अपने अरमानों का गाला घोंट दूँ और किसी और से शादी कर लूँ क्या ये पाप नहीं है?" नीतू की बात सुन भाभी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंची और वो नीतू की ओर लपकी और मेरे कुछ करने से पहले ही उन्होंने नीतू के गाल पर एक जोरदार झापड़ जड़ दिया|

"तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कुछ बोलने की? तुझे पता है की पाप क्या होता है? शादी के बाद तेरा बाप मुझे रोज मारता था, जबरदस्ती मुझे चोदता था, शराब पी कर मेरे जिस्म पर पिघलती हुई मोमबत्ती गिराता था, जलती हुई लकड़ी से मेरे जिस्म को सुलगाता था और जब डर के मैं अपने मायके जाती तो वहाँ आकर मेरे सामने आस-पड़ोस की रंडियों को बुला कर मेरे सामने चोदता था! तेरे चाचू मुझे बचाते थे मेरी रक्षा करते थे| तुझे तो पता भी नहीं की तेरे पैदा होने के बाद इन्होने किस तरह से मुझे और तुझे संभाला है| तेरे बाप की गन्दी नजर से बचा कर रखा तुझे वरना वरना वो तुझे कबका भोग चूका होता और तुझे माँ भी बना चूका होता! बदले में आज तक इन्होने कभी मुझसे कुछ नहीं माँगा और मांगते तो भी इनका ये क़र्ज़ नहीं उतार सकती थी| मेरी हर ख़ुशी का ख़याल रखते थे, वो इनका सम्मान था मेरे लिए| तेरे चाचू ने कभी कोई पहल नहीं की, ये तो मैं थी जिसने शुरुरात की थी क्योंकि मैं भी तेरी तरह इनके सम्मान को प्यार का नाम दे बैठी और इनसे दिल लगा लिया| कल जब तूने मुझे यहाँ से जाते हुए देखा तब मैं बहुत डर गई थी और जब मैंने कल इन्हें बात बताई तो जानती है क्या बोले ये? मुझसे बोले की नीतू से कहना की ये सब मैंने किया है! मैंने ही तुम्हें अपनी बातों से बरगलाया है! सारे आरोप मुझ पर लगा देना और कहना मैंने तुम्हारे साथ जबरदस्तीकी थी| अब बता कौन है पापी? मैं या ये?" इतना सब कुछ भाभी एक ही साँस में बोल गई और ये सुन कर नीतू का सर शर्म से झुक गया| ये मौका सही था उसे समझाने के लिए; “नीतू बेटा प्लीज मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ, प्लीज इस शादी से इंकार मत कर|" मैंने नीतू के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| जवाब में नीतू ने मेरे हाथों को अपने हाथों में थामा और कहा; "ठीक है चाचू|" और फिर वहाँ से चली गई|


to be continued
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#15
UPDATE 7


कहानी अब तक:
ये सुन कर नीतू का सर शर्म से झुक गया| ये मौका सही था उसे समझाने के लिए; “नीतू बेटा प्लीज मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ, प्लीज इस शादी से इंकार मत कर|" मैंने नीतू के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा| जवाब में नीतू ने मेरे हाथों को अपने हाथों में थामा और कहा; "ठीक है चाचू|" और फिर वहाँ से चली गई|



अब आगे:

नीतू के जाने के बाद मैं चारपाई पर सर नीचे झुका कर बैठ गया| पांच मिनट तक शान्ति छाई रही और फिर तभी भाभी शान्ति भंग करते हुए बोली; "इस लड़की को और कोई नहीं मिला? दिल भी आया तो आप पर जिस पर मेरा हक़ है!" ये सुन कर मेरे अंदर गुस्सा भड़कने लगा और मैंने गुस्से में कहा; "बस भाभी! थोड़ी देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दो!" मेरे गुस्से डर के मारे भाभी वहां से चली गईं| मैं चारपाई पर पीठ के बल लेट कर छत की ओर देखने लगा ओर सोचने लगा| मुझे लगता है की मेरा औरतों के सामने भाव खाना कारन है की वो मुझसे चुदना चाहती हैं जबकि ये उनका मेरे प्रति खिंचाव था! कितना गलत सोच रहा था! खेर सारी रात न सोने के कारण आँखें बोझिल हो गई और मैं सो गया| मेरी नींद तब खुली जब बप्पा ने आ कर मुझे खाना खाने के लिए जगाया| अम्मा होती तो उन्हें खाने के लिए मना कर देता पर बप्पा को मना नहीं कर सकता था| सो मैं, बप्पा ओर भैया खाना खाने बैठ गए| मैंने खाना बहुत कम परोसवाया ये कह की कल बाहर से खाने के कारण पेट ख़राब है| खाना खाने के समय बस मैं, बप्पा, अम्मा और भैया ही बोल रहे थे| ना तो नीतू कुछ बोल रही थी और ना ही भाभी कुछ बोल रही थी| मैं बप्पा को हिसाब दे रहा था और तम्बू कनाट वालों की बातें हो रही थी की तभी नीतू (जिसने खाना बनाया था) वो रसोई से उठ के चली गई| हमारे यहाँ रिवाज है की जब तक सब खाना नहीं खा लेते रसोइया रसोई से बाहर नहीं जाता| नीतू को जाता देख अम्मा ने गुस्से से नीतू को बैठे रहने को कहा तो नीतू वापस जा कर बैठ गई| आज से पहले नीतू ने कभी ऐसा नहीं किया था! खाना खाने के बाद मैं बहाना बना कर वहां से निकल आया| अगले दो दिन तक यूँ ही चलता रहा, मैं सिर्फ खाना खाने दिखता था| बाकी समय मैं किसी न किसी काम से बहार ही रहता था| ना तो मैं भाभी से कुछ बात कर रहा था और ना ही नीतू से!

तीसरे दिन बप्पा ने मेरी ड्यूटी घर पर रह कर अनाज की डिलीवरी और शादी के कुछ सामान को घर रखवाने लगा दी| अम्मा, बप्पा और भैया तीनों जेवर लेने के लिए चले गए| मैं अपने घर पर चारपाई पर लेटा मोबाइल में गेम खेल रहा था की तभी भाभी भागी-भागी मेरे पास आईं और हाँफते हुए बोली; "मुनना.... नीतू दरवाजा नहीं खोल रही है!" इतना सुन्ना था की मैं तुरंत हरकत में आया और उसके कमरे की तरफ भागा और देखा की दरवाजा अंदर से बंद है| मैंने बाहर खड़े हो कर बहुत आवाज लगाईं पर वो कुछ नहीं बोली| ये देख कर मेरी बोखलाहट बढ़ गई और मैंने तीन-चार बार दरवाजे को लात मारी पर दरवाजा नहीं खुला| मैंने अपने कंधे के दरवाजे को धकेलना शुरू किया और दस मिनट तक मशक्कत करने के बाद दरवाजा जा गिरा| मैं तुरंत अंदर घुसा तो देखा नीतू स्टूल पर खड़ी रस्सी के फंदे को गले में डाल रही थी| मैंने तुरंत नीतू के पाँव पकड़ के उसे ऊपर उठा लिया और भाभी ने चारपाई आगे खींच कर उस पर चढ़ गई और नीतू के गले से रस्सी निकाल दी| मैंने नीतू को नीचे उतारा और उसे स्टूल पर बिठा दिया| उसका चेहरा पूरी तरह फीका पद चूका था, न तो वो रो रही थी न गुस्से में दिख रही थी| ऐसा लग रहा था मनो उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं थे| मैंने कई बार नीतू-नीतू पुकारा पर वो कुछ नहीं बोली बस एक टक बांधे सामने दिवार को देखती रही| इतने में भाभी ने पीछे से उसके गाल पर चमाट दे मारी, पर नीतू फिर भी कुछ नहीं बोली| भाभी बोली; "ये ऐसे कुछ नहीं बोलेगी! लातों के भूत बातों से नहीं मानते|" और इतना कहते हुए नीतू के दोनों गाल पर एक-एक चमाट और धर दिया| इससे पहले की भाभी उसे और मारती या कुछ बोलती मैंने भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और बोलै; "बस! आप बाहर जाओ और मुझे नीतू से बात करने दो|" पर भाभी मान नहीं रही थी और नीतू को मारना चाहती थी| मैंने भाभी को आँखें दिखा कर डराया और जबरदस्ती बाहर जाने को कहा|

भाभी के जाते ही नीतू फफक कर रो पड़ी और आ कर मेरे गले से लग गई और मेरी छाती को अपने अश्रुओं से भिगोने लगी| कहीं न कहीं मैं उसके प्यार को समझ पा रहा था| खुद को उसकी जगह रख कर उसके दुःख को समझने की कोशिश कर रहा था| मैंने नीतू को पुचकारा और उसे समझने की कोशिश करने लगा; "बेटा ये आप क्या करने जा रहे थे? आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता!" नीतू ने अपने आँसूं पोछे और सुबकते हुए बोली; "चाचू... मैंने बहुत कोशिश की.... पर नहीं हो पा रहा .... मैं..... आपको नहीं...... शादी नहीं ......" नीतू से बोल पाना बहुत मुश्किल था वो बस सुबके जा रही थी| मैं उसकी बात तो समझ ही गया था तो उसे समझाने लगा; "बेटा, आपको ये सब भूल कर आगे बढ़ना होगा| शादी करके अपना घर बसाना होगा! आपके शादी ना करने से घर में बवाल हो जाएगा! जिंदगी इतनी आसान नहीं होती जितना दिखती है| मैं मानता हूँ की मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं है|” अब तक नीतू ने सुबकना बंद कर दिया था; "चाचू ... अगर आप चाहते हो की मैं ये शादी करूँ तो क्या आप मेरी एक इच्छा पूरी करोगे?" "हाँ-हाँ बोल!" मैंने फटैक से बोल दिया|

"मुझे आपका प्यार चाहिए, शादी से पहले भी और शादी के बाद भी! अगर आप मुझे ये वचन दो तो मैं आपसे वादा करती हूँ की मैं ये शादी करुँगी और दुनिया की नजर में इसे निभाऊंगी भी! पर मेरा पहला और आखरी प्यार आप ही होंगे| मेरे जिस्म पर मेरे दिल पर सिर्फ आप ही का हक़ होगा|" नीतू ये सब एक सांस पर बोल गई और उसकी आवाज में मैंने एक अजीब से गौरव महसूस किया|

नीतू की बात के जवाब में मैंने नीतू के बाएं गाल पर एक जोरदार थप्पड़ रसीद किया| मेरा हाथ इतना जोरदार था की नीतू के नीचले होंठ से खून निकल आया| "नीतू! आज तुने सारी हदें पार कर दीं! मैंने तुझे क्या समझा था और तू क्या निकली? मुझे लग रहा था की ये तेरा सच्चा प्यार है पर ये तो तेरे अंदर की वासना है जो अब बाहर आ रही है| तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है! मैं तेरा चाचा हूँ तुझे से आठ साल बड़ा हूँ और जब मैंने तुझे साफ़-साफ बोल दिया की मैं तुझसे प्यार नहीं करता तो तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है?"

"प्यार तो आप माँ से भी नहीं करते पर फिर भी उनकी ख़ुशी के लिए आप उन्हें प्यार तो 'देते' हो न, और उम्र में तो माँ भी आपसे बड़ी हैं फिर उनके साथ आपको .... 'करने' में कोई दुःख नहीं!" नीतू के शब्दों में उसका क्रोध साफ़ दिख रहा था पर उसके जवाब ने मेरे अंदर की क्रोध की ज्वाला को और भड़का दिया था| मैंने खींच के एक और झापड़ उसे रसीद किया; "बहुत जुबान लड़ाने लग गई है तू! शादी तो तेरे अच्छे भी करेंगे और अगर तू ने ना नुकुर की तो मैं ये सब बातें अम्मा-बप्पा के सामने रख दूँगा! ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मुझे घर से निकाल देंगे, पर तेरी शादी तो तय है क्योंकि उन्हें अपनी 'नाक' ज्यादा प्यारी है| और मेरा क्या है मैं किसी दूसरे शहर चला जाऊँगा, नई जिंदगी शुरू करूँगा ..... और हो सकता है की तेरी माँ मेरे साथ भाग आये! फिर तो हम दोनों एक साथ रह भी सकते हैं, और तू सड़ती रहना अपने ससुराल में!" इतना कह कर मैं बाहर निकला तो भाभी दरवाजे पर टकटकी बांधें खड़ी थी|



to be continued
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#16
Quote:Originally Posted by viki2919 View Post
Bhai nitu ki shadi mat karao
Uski shadi uske chacha se kra do
Jb vo itna pyaar krti he hai to

asluvu
आपका स्वागत है!


मित्रों आप सब के कमैंट्स पढ़ कर बहुत अच्छा लगा| आपके कमैंट्स ही हैं जो मुझे आगे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं|
 horseride  Cheeta    
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#17
UPDATE 8


कहानी अब तक:

"प्यार तो आप माँ से भी नहीं करते पर फिर भी उनकी ख़ुशी के लिए आप उन्हें प्यार तो 'देते' हो न, और उम्र में तो माँ भी आपसे बड़ी हैं फिर उनके साथ आपको .... 'करने' में कोई दुःख नहीं!" नीतू के शब्दों में उसका क्रोध साफ़ दिख रहा था पर उसके जवाब ने मेरे अंदर की क्रोध की ज्वाला को और भड़का दिया था| मैंने खींच के एक और झापड़ उसे रसीद किया; "बहुत जुबान लड़ाने लग गई है तू! शादी तो तेरे अच्छे भी करेंगे और अगर तू ने ना नुकुर की तो मैं ये सब बातें अम्मा-बप्पा के सामने रख दूँगा! ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मुझे घर से निकाल देंगे, पर तेरी शादी तो तय है क्योंकि उन्हें अपनी 'नाक' ज्यादा प्यारी है| और मेरा क्या है मैं किसी दूसरे शहर चला जाऊँगा, नई जिंदगी शुरू करूँगा ..... और हो सकता है की तेरी माँ मेरे साथ भाग आये! फिर तो हम दोनों एक साथ रह भी सकते हैं, और तू सड़ती रहना अपने ससुराल में!" इतना कह कर मैं बाहर निकला तो भाभी दरवाजे पर टकटकी बांधें खड़ी थी|



अब आगे....

मैंने भाभी से कुछ नहीं कहा और सीधा अपने घर की ओर चल दिया| भाभी ने पीछे से मुझे कई बार पुकारा पर मैं कुछ नहीं बोला| जैसे ही मैंने अपने घर में घुसा भाभी पीछे से आगे ओर बोली; "कुछ तो बताओ?" मैंने उनसे नीतू की कही हुई बात छुपाई क्योंकि जानता था की ये सुन कर वो नीतू की चमड़ी उधेड़ देंगी| "मैंने उसे समझा दिया है! आगे से वो ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी|" ये सब मैंने इतने यकीन से इसलिए कहा क्योंकि मैं समझ चूका था की मेरी गीदड़ भबकी से नीतू बुरी तरह डर गई है| मेरी बात सुन कर भाभी को दिलासा हो गया था की सब कुछ ठीक हो जायेगा| "पर तुम मुझसे इतना उखड़े-उखड़े क्यों रहते हो?" मैंने भाभी की बात का कोई जवाब नहीं दिया ओर आकर सीढ़ी पर बैठ गया| भाभी मेरे और नजदीक आई, मेरा दिमाग पहले ही बहुत गर्म था और भाभी के सवाल ने तो मेरी क्रोधाग्नि को और भड़का दिया; "माँ-बेटी मिल कर मेरे दो टुकड़े कर लो! एक आप रख लो और एक उसे दे दो!" ये सुन कर एक पल के लिए भाभी दहल गई थी| ये ही नहीं उनके पीछे नीतू भी मेरी आवाज सुन कर सहम गई और वापस चली गई| मेरी नजर नीतू पर देर से पड़ी थी सो मैं ने उसे जोर से आवाज लगा कर पुकारा| नीतू डर के मारे दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और सर झुका कर खड़ी हो गई और और नीचे झुकाये हुए बोली; "चाचू मुझे माफ़ कर दो! मैं दुबारा ऐसी कोई हरकत नहीं करुँगी|" ये सुन कर भाभी भी हैरान रह गई की मेरा इतना खौफ है? मैंने आगे कुछ नहीं खा बस नीतू के सर पर हाथ रख कर उसे माफ़ कर दिया| इससे ज्यादा मैं उसे क्या कहता? मेरे लिए इतना ही काफी था की नीतू को अकाल आ गई है!

नीतू आगे कुछ नहीं बोली और जाने लगी, तभी मैंने उसे पुकारा और कहा; "बेटा आज भरता खाने का मन है|" "जी चाचू" उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर खाना बनाने की तैयारी करने चली गई| ये सब मैंने चेक करने के लिए किया था की कहीं वो मेरे सामने ड्रामा तो नहीं कर रही अच्छा बनने का| मुझे तसल्ली हो गई थी की अब सब कुछ ठीक है| इधर जब मेरी नजर भाभी पर पड़ी तो वो ऐसे घूर रही थी जैसे कह रही हो उससे तो प्यार से बात करते हो पर मुझे घास तक नहीं डालते| मैं उनके मन के विचारों को भांप चूका था पर मेरे अंदर थोड़ा गुस्सा उनके प्रति भी था| खेर भाभी ने मुझे कुछ नहीं कहा और मुँह टेढ़ा करके चली गई| थोड़ी देर बाद घर पर प्रधान की बहु आई, उसके साथ चार आदमी भी थे जो ट्रेक्टर में हमारे घर का सामान ले कर आये थे| वे लोग गलती से उनके घर पहुँच गए थे और प्रधान की बहु उन्हें मेरे पास ले आई थी| सारा सामान उतार कर मैंने उन लोगों को पैसे दिए और वे लोग चले गए| अब मैं और प्रधान की बहु रह गए थे| “कब आये शहर से बताया भी नहीं?" उसने पूछा| "मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ, फिर भला आपको क्यों बताऊँ?" "है हमहीं से सब लेना देना और हमें ही नहीं बताओगे!" वो बुदबुदाते हुए बोली| "क्या?" मैंने पूछा तो वो बात पलटते हुए बोली; "हम कह रहे थे की, हम बहुत सुने हैं आपके बारे में!" उसने छेड़खानी भरे अंदाज में कहा| "मेरे बारे में? अच्छा...किस्से?" मैंने पूछा| "उमा से!" ये सुनते ही मैं समझ गया की इसने क्या सुना होगा| "क्या-क्या सुना मेरे बारे में" मैंने भी उसी के अंदाज में पूछा| ".............." वो आगे कुछ बोल पाती की तभी भाभी आ गई और मुझे ऐसे घूर रही थी जैसे मेरी चोरी पकड़ ली हो! "अच्छा तुम आई हो! तभी मैं कहूं ...." भाभी को वहां देख तो प्रधान की बहु के प्राण सूख गए और वो अच्छा चलती हूँ बोल कर निकल गई|

भाभी मेरी ओर गुस्से से देखने लगी और बुदबुदाते हुए बोली; "मुझमें क्या काटें लगे हैं|" मैंने ये सुन लिया और थोड़ा जोर से बोला; "और क्या" ये सुन कर भाभी और गुस्सा हो गई और पैर पटक कर वहां से चली गई| दोपहर को खाने के समय घर पर मैं, भाभी और नीतू ही थे| अम्मा, बप्पा और भैया शाम को आने वाले थे| मैंने नीतू और भाभी को भी साथ खाने के लिए कहा क्योंकि बहुत दिन से हम तीनों के बीच दिवार सी खड़ी हो गई थी| खाना खाने के समय मैं ही बातों का सञ्चालन कर रहा था और कोशिश कर रहा था की नीतू अपनी माँ से पुनः बात करना शुरू कर दे और भाभी भी नीतू से बात करना शुरू कर दें| हमने काफी देर तक इधर-उधर की बातें की और तभी मुझे भैया का फ़ोन आया और मुझे काम बताया गया जिसके लिए मुझे घर से थोड़ा दूर जाना था| मुझे ये भी बताय गाया की जेवर अभी तक पूरे नहीं बने हैं सो वे सभी शहर चले गए है और उन्हें आने में रात हो जाएगी| मैंने उन्हें रात को जेवर घर नहीं लाने की सलाह दी और उन्होंने मान भी ली| मैं पैसे ले कर घर से निकला और फटा-फट पेडल मारते हुए अपनी साईकिल दौड़ा दी| आधे घंटे का रास्ता २० मिनट में पूरा किया और वहां पहुँच कर भैया के बताये हुए आदमी से उनकी बात कराई और उसे पैसे दिए| मैं लौटने लगा तो नीतू का फ़ोन आया और उसने चॉकलेट लाने की फरमाइश की और भाभी ने घर जल्दी आने की फरमाइश! मैंने चॉकलेट खरीदी और वापस आ रहा था की तभी भाभी का फोन आया और वो मुझसे बतियाने लगी| जो बात मुझे अटपटी सी लगी वो ये की वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी की मैं कहाँ तक पहुँचा| जब मैं घर से करीब दस मिनट दूर था तभी वो बोली की मैं हमारे खेत वाले रस्ते से आऊं और खेत से गन्ना तोड़ लाऊँ क्योंकि नीतू गन्ना खाना चाहती है| सो मैंने अपनी साईकिल दूसरी तरफ घुमा ली और सायकिल खेत के बरा-बर खड़ी कर अंदर घुस गया | जैसे ही मैं खेत के बीचों बीच पहुँचा तो देखा…….


to be continued......

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#18
UPDATE 9


कहानी अब तक:

मैंने चॉकलेट खरीदी और वापस आ रहा था की तभी भाभी का फोन आया और वो मुझसे बतियाने लगी| जो बात मुझे अटपटी सी लगी वो ये की वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी की मैं कहाँ तक पहुँचा| जब मैं घर से करीब दस मिनट दूर था तभी वो बोली की मैं हमारे खेत वाले रस्ते से आऊं और खेत से गन्ना तोड़ लाऊँ क्योंकि नीतू गन्ना खाना चाहती है| सो मैंने अपनी साईकिल दूसरी तरफ घुमा ली और सायकिल खेत के बरा-बर खड़ी कर अंदर घुस गया | जैसे ही मैं खेत के बीचों बीच पहुँचा तो देखा…….


अब आगे:

खेत के बीचों बीच एक चादर बिछी हुई थी, जिसे देख कर मैं सतर्क हो गया और मुझे लगा कहीं ये नीतू की चाल तो नहीं! मैं तुरंत पीछे मुड़ा और देखा भाभी पीछे ल्हाडी है| भाभी वहां छुपी पहले ही से मेरा इंतजार कर रही थी|
मैं इससे पहले कुछ बोल पाटा उन्होंने जोर से मेरी कमीज के कॉलर को पकड़ लिया और दाँत पीसते हुए बोली; "बहुत हुआ मुझे तड़पाना! ख़बरदार जो चूं-चपड़ की तो! चुप-चाप जो कह रही हूँ वो करो वरना..." "वरना क्या कर लोगे?" मैंने उनकी आँखों में घूर के देखते हुए कहा| "कभी सुना है की किसी मर्द का बलात्कार किया हो?" भाभी ने गुस्से से घूर के देखते हुए कहा| ये सुन कर मैं थोड़ा हैरान हो गया की ऐसा कभी हो सकता है क्या? मेरा ये सोचना ही मुझ पर भारी पड़ा क्योंकि भाभी ने इसका फायदा उठाया और मुझे इस कदर धकेला की मैं सीधा चादर पर जा गिरा| मैं संभल पाता इससे पहले ही भाभी मेरे सीने पर सवार हो गई और अपने दोनों हाथों से मेरी कमीजों को इस कदर फाड़ा की सारे बटन टूट गए| "ये.....ये.....क्या......." मैं इतना ही बोल पाया था की भाभी ने अपने होंठ मेरे होठों पर धर दिए और मेरे होठों को अपने मुँह में भर चूसने लगी! मेरी छाती में उन्होंने अपने नाखून गड़ा दिए थे और ऐसा लग रहा था मानों किसी जंगली जानवर ने अपने शिकार को दबोच लिया हो| उस समय मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी और थोड़ी बहुत सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी थी| भाभी की हैवानियत देख कर मैं हैरान था, मैंने कभी नहीं सोचा था की भाभी अपनी छूट की आग से वशीभूत हो कर इस कदर हैवान बन सकती है| अचानक भाभी ने जोश में आ कर मेरा निचला होंठ दांतों से काट लिया और उसमें से खून निकलने लगा| मैं दर्द के मारे करहाना चाहता था पर उनके होंठ मेरी आवाज को बाहर जाने ही नहीं दे रहे थे| मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वो उन्हें मेरे होंठ से निकल रहे खून को पीने में बहुत मज़ा आ रहा है| अभी तक तो मैं इस लिहाज से खुद को काबू करके बैठा था की ये औरत मेरी भाभी है पर अब मेरे सब्र का बाँध टूटने लगा था|
मैं अपने दोनों हाथों से उनको मुझसे दूर करने लगा तो मेरे हाथों में उनके दूध आ गए और मैंने गुस्से में आ कर उन्हें बहुत जोर से दबा दिया! मेरे इस हमले से भाभी को असहनीय दर्द का एहसास हुआ और वो बिल-बिला कर चीखी और मेरी गर्दन पर अपने नाखूनों से खरोंच दिया जिसमें से खून निकल आया था|! मैंने उन्हें अपने ऊपर से धक्का दिया और वो दूसरी करवट लिए अपने दूध को अपने हाथों से थामे दर्द से कराहने लगी| मैंने जबअपनी छाती की ओर देखा तो मेरी छाती पर उनके नाखूनों से नोचने के निशान थे और कुछ जगह से खून की कुछ बूँदें भी निकल आई थी| मैंने उठ कर खड़े होने की कोशिश की तो मेरे दाहिने कूल्हे में दर्द होने लगा, क्योंकि भाभी ने जब मुझे धक्का दिया था तो मैं धम से सीधा अपने कूल्हों के बल ही गिरा था| जैसे-तैसे मैं उठ कर खड़ा हुआ और देखा तो भाभी की आँखें भरी हुई थी और वो मुझे दर्द से तड़पता हुआ देख रही थी| मैं लंगड़ाते हुए खेत से बाहर निकला और साइकिल को खींच कर अपने घर तक लाया| मेरे कूल्हे के दर्द ने मुझे साईकिल पर सवार तक नहीं होने दिया| मुझे दर लग रहा था की कहीं मेरा कुल्हा तो नहीं टूट गया!

बड़ी मुश्किल से मैं घर पहुँचा ओर टाला खोला| घर के अंदर तो मैं जैसे-तैसे घुस गया पर चारपाई को देख कर मुझे नानी याद आ गई! क्योंकि दर्द इतना था की चारपाई पर बैठने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी| मैं वहीँ खड़े-खड़े भाभी को मन ही मन कोस रहा था| दस मिनट तक मैं अपने कूल्हे पर हाथ रखे खड़ा रहा और सोचता रहा की कैसे बैठूं? मैंने एक बार तरय करने का खतरा उठाना ठीक समझा पर चारपाई तक दस कदम चला ना जाए! मैं पैर घसीट के चलने लगा और चारपाई तक पहुँचते-पहुँचते अपने कमीज उतार के अपने जिस्म पर खून की बूँदें साफ़ कर कोने में फेंक दी| जैसे ही बैठने के लिए झुका की मेरा कुल्हा चमक गया और मैं गिरने को हुआ की तभी नीतू ने आकर मुझे संभाल लिया| मेरे नंगे बदन पर उसके स्पर्श से ही मैं सिंहर उठा और नीतू के देख के थोड़ा इत्मीनान आया| "चाचू क्या हुआ? आप इस तरह...." नीतू ने बहुत चिंतित होते हुए पुछा! "आह...बेटा कुछ नहीं.... तू मेरा एक काम कर गाँव के किसी मालिश करने वाले को बुला कर ले आ| मुझे बहुत दर्द हो रहा है|" "पर चाचू...." नीतू ने आगे कुछ बोलना चाहा पर मैंने उसकी बात काट दी; "प्लीज बेटा जो कह रहा हूँ वो कर दे|" नीतू ये सुन तुरंत वहाँ से ममालिश वाले को बुलाने भाग गई| दर्द के मारे मेरे दिमाग में भाभी के लिए गुस्सा ही गुस्सा भरने लगा था| मन तो कर रहा था की अभी जाके भाभी की गांड तोड़ दूँ ताकि उन्हें पता चले की दर्द क्या होता है| पाँच मिनट में नीतू भागी-भागी वापस आई और बोली; "चाचू... दीनू काका तो शहर गए हैं, तीन दिन बाद आएंगे|" ये सुन कर तो मेरी कराह निकल गई| नीतू मेरे और पास आई और बोली; "चाचू मुझे तो बताओ की हुआ क्या है?" "कुछ नहीं बेटा मैं साईकिल से आ रहा था और सामने से एक पागल कुतिया आ गई और मैं साईकिल संभाल नहीं पाया और गिर पड़ा| इसलिए मेरे कूल्हे में बहुत दर्द हो रहा है|" ये सुन कर नीतू बहुत परेशान हुई पर फिर उसकी नज़र मेरी लहू-लुहान छाती पर गई; "चाचू पर ये आपकी छाती से इतना खून क्यों निकल रहा है?" "ये भी उस कुतिया के करना हुआ| जब मैं साईकिल से गिरा तो उसने मुझे काटने की कोशिश की, उसका मुँह तो मैंने पकड़ लिया पर उसके नाख़ूनी पंजों ने.... मेरा ये हाल किया|" ये सब मैंने आपने दाँत पीसते हुए कहा| ये सब सुन नीतू बहुत दुखी हुई और तुरंत रुई और डेटोल ले आई| "शुक्र है चाचू उसने काटा नहीं|” ये कहते हुए उसकी भर आईं| मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और उसने डेटोल लगा कर मलहम लगा दिया| "चलो चाचू मुझे बताओ कहाँ दर्द है मैं उसपर ये आयुर्वेदिक तेल लगा देती हूँ|" "नहीं बेटा रहने दे... मैं ब्रूफेन की गोली खा लूंगा उससे ठीक हो जायेगा|" "मैं आपकी एक नहीं सुनने वाली| चुप-चाप बताओ नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करुँगी|" नीतू ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा|


to be continued

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#19
Quote:Quote:
Originally Posted by samrocker
Mast mast suspence me rok diya ab kya hoga ganne ki khet me

Quote:Quote:
Originally Posted by duttluka
......dekha ki bhabhi to ganna khane ko bechain baithi hai.....

Quote:Quote:
Originally Posted by jonny khan
Nyc update bro
Quote:Quote:
Originally Posted by anant142
Mast update bro
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नमस्कार मित्रों!

सबसे पहले तो क्षमा चाहूंगा क्योंकि कल मैं आप सभी को अपडेट नहीं दे पाया| कुछ कारणों के कारन मैं अपडेट पूरी नहीं कर पाया था सो लेट हो गया|

मैं जानता हूँ की मेरे द्वारा दी गई अपडेट छोटी होती है परन्तु विश्वास करें मैं अपनी क्षमता के अनुसार ही लिख रहा हूँ| कहानी में नए ट्विस्ट डालने के लिए सोचना पड़ता है और इसे कितना रोचक बनाऊं इसके लिए भी सोचना पड़ता है| मैं पूरी कोशिश करूँगा की आपको ज्यादा से ज्यादा बड़ी अपडेट दूँ| बस मेरे साथ बने रहिये|
 horseride  Cheeta    
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#20
UPDATE 10


कहानी अब तक:

  ये सब मैंने आपने दाँत पीसते हुए कहा| ये सब सुन नीतू बहुत दुखी हुई और तुरंत रुई और डेटोल ले आई| "शुक्र है चाचू उसने काटा नहीं|” ये कहते हुए उसकी भर आईं| मैंने उसके सर पर हाथ फेरा और उसने डेटोल लगा कर मलहम लगा दिया| "चलो चाचू मुझे बताओ कहाँ दर्द है मैं उसपर ये आयुर्वेदिक तेल लगा देती हूँ|" "नहीं बेटा रहने दे... मैं ब्रूफेन की गोली खा लूंगा उससे ठीक हो जायेगा|" "मैं आपकी एक नहीं सुनने वाली| चुप-चाप बताओ नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करुँगी|" नीतू ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा|



अब आगे....

मैंने उसे एक बार समझाने की कोशिश की; "बेटा मुझे कूल्हे पर दर्द है और तुम्हारे सामने कैसे......"
"आप उसकी चिंता मत करो| मैं अपनी आँखें बंद कर लुंगी| मैं मन ही मन सोचने लगा की बेटा आँखें बंद करने से थोड़े ही कुछ होता है| खेर मरता क्या ना करता नीतू को नाराज नहीं करना चाहता था क्योंकि शादी के बाद फिर कहाँ मुलाकात होती| मैंने नीतू से कहा की अंदर बैग से वोलिनी ले कार आये| इसका फायदा ये था की नीतू को इसकी ज्यादा मालिश नहीं करनी पड़ती और मुझे कम से कम देर के लिए उसे अपने 'चूतड़' दिखाने थे| अब मेरे लिए चुनौती ये थी की मैं दवाई कैसे लगवाऊँ? यदि खड़े-खड़े लगवाता हूँ तो अगर पैंट और कच्छा नीचे गिर गया तो? पर लेट भी तो नहीं सकता था क्योंकि कूल्हे मुझे ज्यादा हिलने नहीं दे रहे थे| जब नीतू दवाई ले कर आई तो मुझे सोच में देख वो बोली; "चाचू आप चारपाई पर औंधे मुंह लेट जाओ और मैं आँख बंद करके दवाई लगा दूंगी|" "बेटा वही तो मुसीबत है की मुझसे हिला भी नहीं जा रहा|"

"रुको मैं आपको सहारा देती हूँ|" नेहा ने मेरे एक हाथ को अपने कंधे पर रख कर मुझे सहारा दिया और मैं जैसे-तैसे करहाता हुआ औंधे मुँह लेट गया| मैंने अपनी पैंट के हुक खोल दिए और नीतू ने उसे नीचे कर दिया| अब बारी थी मेरे कच्छे की| नीतू ने जैसे ही कच्छे की इलास्टिक को हाथ लगाया मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी छूटी और लंड महाराज तननाने लगे| इधर नीतू ने कच्छे को नीचे सरका कर मेरे चूतड़ और गांड को खुली हवा का अनुभव कराया| मुझे बहुत शर्म आने लगी थी; "आँखें बंद हैं ना?" मैंने नीतू से पूछा तो उसने "हम्म्म" में जवाब दिया| अब मुझे नहीं पता की उसकी आँखें बंद थी या नहीं| अब नीतू ने अपने हाथ से मेरे कूल्हे को छुआ तो एक सेकंड के लिए मैं चुप रहा| "चाचू? बताओ कहाँ दर्द है?" मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो आंखें बंद किये अपने हाथ को मेरे चूतड़ों पर चला रही है| फिर मैंने उसका हाथ पकड़ कर lower back में जगह बताई| नीतू ने आँख जर्रूर खोल ली थी क्योंकि उसने बड़े आराम से सही जगह दवाई लगाईं| नीतू की उँगलियाँ दवाई लगा रही थी पर मुझे बहुत अजीब लग रहा था की मैं अपनी भतीजी के सामने चूतड़ निकाले लेटा हुआ हूँ| दवाई लगाते-लगाते यका-यक ही उसकी एक ऊँगली मेरे गांड के छेद तक जाप हुन्ची और उसकी ऊँगली का नाखून मेरी गांड के छेद पर जा लगा और मैं जोर से चिहुंका; "आह!" मेरी चिहुंक सुन नीतू डर गई और बोली; 'sorry चाचू! आँखें बंद हैं ना इसलिए………" आगे वो कुछ नहीं बोली और मैं ये सोच के जाने दिया की ये उसने गलती से किया होगा| दो मिनट बाद मैंने उसे रुकने को कहा और अपनी पैंट ठीक कर ली| नीतू ने फिर से मुझे सहारा दे कर सीधा लिटा दिया था और वो हाथ धोने चली गई| हाथ धो कर नीतू मेरे लिए नीम्बू का शरबत बना कर लाइ और मैंने एक गोली ब्रूफेन ली ताकि दर्द कम हो जाए| वो मेरे पास ही बैठ गई ताकि मुझे कोई तकलीफ न हो| मैं नीतू को अलग-अलग शहर के किस्से सुनाता रहा और वो भी मुझसे अपने स्कूल के दिनों की बातें कर रही थी| अँधेरा होने को आया था और अम्मा, बप्पा और भैया घर लौट आये थे| मेरे एक्सीडेंट की बात सुन तीनों मेरे पास भागे-भागे आये और हाल पूछने लगे| इतने में पीछे से भाभी भी आ गई और मैंने उन्हें 'सुनाने' के लिए कुतिया वाली बात दोहराई! ये सुन कर भाभी के चेहरे पर गुस्सा साफ़ झलक रहा था, आखिर मैंने उन्हें कुतिया जो कहा था!

ये सुन कर अम्मा ने भाभी को डाँट लगाईं; "तूने मुनना का ख़याल क्यों नहीं रखा| मुनना को कुछ भी काम कहो फ़ौरन दौड़ कर देता है, और इसे चोट लगी और तू इधर झाँकने भी नहीं आई! ऐसा क्या काम कर रही थी?" भाभी क्यों नहीं जानती थी ये तो मैं जानता था, डर के मारे फटी जो हुई थी उनकी! खेर अम्मा ने रात को उन्हें के पास घर में सोने को कहा ताकि वहां मेरी देख भाल की जा सके| बप्पा के सामने म ऐन उनका विरोध कर नहीं सकता था सो मैंने उनकी बात मान ली| रात को खाना खाने के बाद मेरा बिस्तर नीतू ने अपने बिस्तर से करीब २० कदम दूर लगाया ताकि वो रात में उसकी नजर मुझ पर रहे| आमतौर पर हमारे गाँव में मर्द और औरतें अलग-अलग सोते हैं| (जब तक की उनका कोई चुदाई प्रोग्राम ना हो!) पर चूँकि मेरी हालत ऐसी थी मुझे ये ख़ास treatment मिल रहा था| अम्मा और भाभी का बिस्तर नीतू के बगल में था और बप्पा और भैया का बिस्तर दूर पेड़ के पास था|



to be continued

 horseride  Cheeta    
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