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Misc. Erotica साली की आधी घरवाली
#1
ये कहानी और हॉट होने वाली है तो ज़रा दिल थाम कर पढ़े!

ये कहानी हमारी बहुत जी प्रिय श्रुति जी ने लिखा है मेरी रिक्वेस्ट पर। 

अब आइए कहानी पढ़ते हैं और अपने लंड और चूत को उंगलियों से छेड़ना शुरू कर दें क्यों एक कड़क और एक गीली होने वाली है


ऑफिस से घर आकर मैंने अपने शर्ट पैंट को उतारकर एक घरेलु साड़ी पहन ली थी, और बस एक आम गृहिणी की तरह अपने बिस्तर पर बैठकर गृहशोभा मैगज़ीन पढ़ रही थी. मुझे महिलाओं की मैगज़ीन की कहानियाँ पढने में बड़ा मज़ा आता है. वैसे तो मैं एक क्रॉसड्रेसर पुरुष हूँ पर मेरी किस्मत अच्छी है जो मेरी पत्नी मुझे अपने अन्दर की औरत को भरपूर रूप से जीने का ख़ुशी से मौका देती है.
मैं यूँ ही एक मनोहर कहानी पढने में रमी हुई थी कि तभी मेरी साली गरिमा की आवाज़ आई. “जीजाजी …ओह जीजाजी ज़रा इधर तो आना”. अब पता नहीं क्यों गरिमा मुझे इस तरह बुला रही थी. मेरा तो उसके पास जाने का मन नहीं था पर फिर भी अपनी साड़ी को सँभालते हुए मैं उसके कमरे में गयी. उसके कमरे में पहुचकर मैंने देखा कि उसने एक बहुत सुन्दर लहंगा पहना हुआ था और ऊपर सिर्फ एक ब्रा पहनी हुई थी. उफ़ उसके मखमली बड़े बड़े स्तनों पर उसकी ब्रा बहुत आकर्षक लग रही थी.
फिर मुझे देखकर उसने अपने लहंगे के साथ वाली चोली में अपनी बान्हे डालते हुए मेरी ओर पलट कर बोली, “जीजाजी प्लीज़ मेरी चोली की डोर बाँध दीजिये न. मेरा हाथ पीछे नहीं जा रहा है.”
भले मेरा दिल तो गरिमा के मखमली बदन को छूना चाह रहा था पर अपने दिल पर काबू करते हुए मैंने कहा, “गरिमा.. कितनी बार तुझसे कहा है कि मैं जब साड़ी पहनकर घर में होती हूँ तो मुझे जीजाजी नहीं भाभी कहा कर. और फिर इतनी बेशर्मी से ब्रा पहनकर मेरे सामने मत आया करो.”

“ओहो भाभी तुम भी न. अब तुम भाभी हो तो तुम्हारे सामने ब्रा पहनकर आने में मुझे कैसी शर्म? अब एक औरत से मैं क्यों शरमाऊँ भला?”, गरिमा हँसते हुए बोली, “अच्छा… भाभी जी. अब यूँ ही देखती रहोगी या डोरी भी कसोगी मेरी चोली की?”
गरिमा की बात सुनकर मैं शर्म से लाल हो गयी. और फिर उसकी चोली पहनने में मदद करने लगी. सच कह रही हूँ जहाँ एक ओर तो गरिमा की काया मुझे उकसा रही थी पर उससे कहीं ज्यादा उसकी लहंगा चोली मुझे तडपा रही थी. सैटिन का भारी सा लहंगा… मैं तो खुद उसे पहनने के सपने देख रही थी. “अच्छा वैसे इतना सजधज कर कहाँ जा रही है?”, मैंने अपना ध्यान भटकाने के लिए गरिमा से सवाल किया.
“अरे मेरी सहेली है न शिखा. आज उसकी सगाई है. “, गरिमा बोली और फिर कुछ देर सोचते हुए बोली, “.. भाभी तुम भी मेरे साथ चलो न. बड़ा मज़ा आएगा.”
एक सगाई में औरत बनकर जाने में मज़ा तो आएगा. मैं सोचने लगी. इस बहाने भारी साड़ी और ढेरो गहने पहनकर सजने सँवारने के मौका भी मिल जायेगा मुझे.
“और वैसे भी दीदी तो अपने ऑफिस के टूर से २ दिन तक वापस नहीं आने वाली है. तुम घर पर अकेले बोर हो जाओगी.”, गरिमा ने फिर कहा. उसकी बात तो सही थी. इसलिए उसको हाँ करने में मुझे देर न लगी.
मेरी हाँ सुनते ही वो बहुत खुश हो गई और बोली, “भाभी … तुम न वो दीदी की रानी पिंक रंग की सिल्क साड़ी पहनना. तुम पर बहुत अच्छी लगेगी.”
वो साड़ी तो मैं भी कबसे पहनना चाह रही थी. मेरा दिल भी ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा था. बस इसी ख़ुशी में मैं भी जल्दी जल्दी तैयार होने लगी. मेरी भारी सिल्क साड़ी से मैच करती हुई मैंने भारी जेव्लेरी भी पहन ली थी. कानो में भारी झुमके और कलाइयों में दर्जनों चूड़ियों से मेरी नाज़ुक काया उनके वजन को महसूस कर एक सुन्दर स्त्री की भाँती दमक रही थी. और फिर गरिमा तो मेकअप की एक्सपर्ट थी. उसकी मदद से मैं जल्दी ही तैयार हो गयी. और हम दोनों एक कार में उसकी सहेली शिखा की सगाई के लिए चल पड़ी। वैसे ये कहानी उस सगाई के बारे में नहीं है बल्कि उसके आगे क्या हुआ था उसके बारे में है. इसलिए सगाई के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगी. पर ये बात ज़रूर बताना चाहूंगी कि वहां सगाई में गरिमा को उस लहंगे में नाचते हुए देखकर मैं बहुत कामुक रूप से उत्तेजित हो गयी थी. दिल तो चाह रहा था कि उसके लहंगे को खुद पहनकर उस दिन गरिमा को अपनी बना लू. फिर भी मेरी अपनी एक मर्यादा थी. उस रात को मैं गरिमा की भाभी बनकर वहां थी. और उस जगह गरिमा की सहेलियों ने मुझे बहुत ही सम्मान से भाभी के रूप में ट्रीट किया था. वैसे भाभी बनकर रात बिताने का भी अपना मजा था. उस पार्टी में सभी लडकियां बहुत मस्ती कर रही थी और फिर छुप छुप कर शराब भी पी रही थी. गरिमा की एक सहेली ने मुझे भी एक कमरे में चुपके से शराब पिलाई थी. लडकियां भी ये सब करती होगी… और उनके बीच मुझे ये सब करने मिलेगा मैंने कभी सोचा नहीं था.

लेकिन शराब के असर से आगे वो सब होने वाला था जिसका मुझे अंदाज़ा भी नहीं था. सगाई की पार्टी के बाद मैं और गरिमा कार से घर वापस आ रही थी. जब हम घर पहुचे तो गरिमा ने एक अजीब सी मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा और बोली, “क्या बात है मेरी भाभी जी? आज रात तुम मुझे कुछ ज्यादा ही घुर रही थी. बात क्या है डार्लिंग?” और फिर वो जोर से हँसने लगी.

मैं भी शराब के नशे में थी तो बेझिझक उससे बोल पड़ी, “गरिमा… मुझे तुम्हारी लहंगा चोली पहननी है.”

“बस इतनी सी बात? मुझे लगा कि तुम्हारा मुझमे भी इंटरेस्ट होगा. ठीक है. तुम पहन लेना लहंगा चोली.”, वो थोडा उदासी भरा चेहरा बनाते हुए बोली.

“ओह गरिमा डार्लिंग. एक बार मुझे अपनी लहंगा चोली तो दो… फिर मैं तुम्हे भी जैसे चाहो वैसे खुश कर दूँगी.”, न जाने मैंने अपनी साली से ऐसा क्यों कह दी थी. पर नशे में आदमी हो या औरत , कोई भी कुछ भी कह जाता है. लेकिन मेरी बात सुनकर गरिमा की आँखें चमक गयी और उसने मेरे होंठो को चूम लिया. हाय… एक औरत का चुम्बन जब मैं खुद औरत बनी हुई थी… उफ़.. कितना कामुक था वो. पर इससे पहले कि हम कुछ और कार में करते… हम दोनों कार से निकल कर घर आ गयी.

घर में गरिमा के कमरे में गरिमा ने मुझे अपने बिस्तर पर बिठाया और बोली, “भाभी तुम यही रुको मैं बाथरूम से कपडे बदलकर आती हूँ. फिर तुम्हे यह लहंगा चोली पहनाऊँगी.”

“अरे शाम को तो तुम शर्मा नहीं रही थी. अब क्यों बाथरूम जा रही हो?”, मैंने उसकी कलाई को पकड़ कर कहा. और मैं अपनी साड़ी को कंधे से उतारकर गरिमा की ओर देखकर मुस्कुराने लगी.

“ज़रा सा सब्र करो भाभी. इंतज़ार का फल मीठा होगा.”, गरिमा ने कामुक इशारा करते हुए कहा और मुझसे हाथ छुडाकर बाथरूम चली गयी. पर उसके इशारे के बाद मेरे पेटीकोट में मेरा लंड सिहर उठा था. मेरा सिल्क का ब्लाउज भी जैसे उत्तेजना में मेरे तन से कसकर चिपक गया था. मैं तो बेसब्री से गरिमा का इंतज़ार कर रही थी.

उतावली होकर गरिमा का इंतज़ार करते हुए मुझे १०-१५ मिनट हो गए थे. और उसके बाद जब वो बाथरूम से बाहर आई तो उसके हाथ में वो लहंगा चोली थी जिसे पहनने को मैं बहुत बेताब थी. पर गरिमा खुद इस वक़्त के खुबसूरत और सॉफ्ट सी मखमली साड़ी ब्लाउज पहनकर बाहर आई थी. उफ़ उसके तन से चिपकी हुई साड़ी देखकर तो मैं और मचल उठी थी. उसके ब्लाउज को देखकर पता चल रहा था कि उसने ब्रा नहीं पहनी है. और उत्तेजना के मारे उसके स्तन भी फूलकर जैसे ब्लाउज से बाहर आना चाहते थे. उसके बड़े बड़े निप्पल भी उभर कर उसके ब्लाउज और साड़ी पर दिख रहे थे. मैं तो अब लगभग बेकाबू हो चली थी.
गरिमा ने आते ही मेरी साड़ी और पेटीकोट को उतारना शुरु किया और फिर जल्दी ही मेरे ब्लाउज को भी उतार दी. गरिमा के स्पर्श से मेरी नाजुक सी पेंटी अब मेरे लंड के तूफ़ान को संभाल नहीं पा रही थी. गरिमा भी कहाँ कम थी? उसने मेरी पेंटी के उभार को छुआ और अपने मखमली ब्लाउज और अपने स्तनों के बीच उस उभार को छूते हुए मुझे अपना सैटिन का लहंगा पहनाने लगी. शायद नशा, गरिमा के स्पर्श और अपने सपनो के सैटिन लहंगे के स्पर्श का असर था कि मेरा लंड और मचल पड़ा.

और फिर गरिमा ने मेरी पीठ से अपने स्तनों को जोरो से दबाते हुए मुझे चोली कसकर पहना दी. हाय… क्या मीठा दर्द था वो उस कसाव को महसूस करने में भी. आज की रात तो बड़ी बेकाबू हो चली थी.

फिर गरिमा ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और फिर मेरे लहंगे को उठाते हुए मेरी पेंटी पर अपने स्तनों और अपने हाथो से मुझे वहां छूने लगी. और देखते ही देखते उसने मेरी पेंटी उतार दी. मैं तो इस वक़्त शर्म से लाल भी हो रही थी. मेरा लंड जो इतना बड़ा हो गया था. एक औरत के लिए तो यह शर्माने वाली बात ही हुई न? मैं उसे छिपाने के लिए अपना हाथ वहां ले जा रही थी कि गरिमा ने मेरे हाथ को रोक लिया. और खुद मेरे लंड को पकड़ कर बोली, “आज रात तुम इसे हाथ नहीं लगाओगी भाभी”

जहाँ एक तरफ मैं गरिमा के साथ सब कुछ करने को बेताब हो रही थी, वहां शायद मेरा नशा कम हो रहा था जो मुझे याद आया कि गरिमा मेरी साली है… मेरी पत्नी की बहन. मैं उसके साथ ये सब कैसे कर सकती थी. और फिर मैं उससे बोली, “गरिमा प्लीज़ रुक जाओ. हम ये नहीं कर सकते. मेरी तुम्हारी बहन से शादी हुई है. ये गलत होगा.”

पर मेरी बात का गरिमा पर कोई असर नहीं हुआ. बल्कि हँसते हुए मेरे लंड को सहलाते हुए वो बोली, “मेरी दीदी की शादी जीजाजी से हुई है. एक आदमी से. और तुम तो एक औरत हो. ये कहाँ से धोखा हुआ भला?”

इससे पहले मैं कुछ सोचती गरिमा मेरे पुरे तन से लिपट पड़ी और फिर बिस्तर के बगल में लगे ड्रावर से कुछ निकाल कर अपने हाथो में ले लिया.

“ये क्या है गरिमा?”, मैंने थोडा घबराकर गरिमा से पूछा. जबकि मुझे जवाब पता था. “ये तुम्हारे औरत बनने के लिए है डार्लिंग”, गरिमा हंसकर बोली. “हाय.. मगर ये तो बहुत बड़ा है.”, मैंने तो घबरा ही गयी थी इस वक़्त. असल में गरिमा के हाथ में एक स्टील का वाइब्रेटर था. जो सचमुच बहुत बड़ा था. मगर मेरे लंड से तो बड़ा नहीं था.

“अब तुम देखती रहो भाभी तुम्हे कितना मज़ा आएगा.”, गरिमा ने कहा. मैं उसे मना कर पाती उसके पहले ही गरिमा ने एक झटके में उस वाइब्रेटर को मेरी गांड में डाल दिया. और मैं एक दर्द भरी आंह बस भर सकी. और फिर गरिमा ने एक बटन दबाया और वो वाइब्रेटर चालू होकर मेरी गांड में तूफ़ान लाने लगा. हाय… कितना मज़ा आ रहा था. दर्द भी था.. और मीठा सा एहसास भी. अब मेरे चेहरे पे एक मुस्कान थी. मेरा तन अब उत्तेजना के मारे लहरा रहा था. गरिमा भी मेरे लहराते बदन को चूम रही थी. अपनी मखमली साड़ी से मेरे लंड को छूकर और उकसा रही थी. मैं तो उसके अपने पूरे तन पर चुम्बन से लहरा रही थी. मैं खुद अपनी सैटिन की चोली से अपने स्तनों को मसलने लगी थी. मेरे सैटिन के लहंगे का मेरी चिकनी टांगो पे स्पर्श भी मुझे और उत्तेजित कर रहा था… तो गरिमा के मुलायम स्तनों को दबाकर और उसकी मखमली साड़ी को छूकर मैं इस हद तक बेचैन हो रही थी कि मैं बता नहीं सकती. हम दोनों और उत्तेजीत हो ही रही थी कि गरिमा ने एक बार फिर बटन दबाकर वाइब्रेटर को बंद कर दिया और मेरी गांड से वाइब्रेटर को बाहर निकाल दिया.

“ये क्या कर रही हो गरिमा? उसे बंद क्यों कर दिया.. अभी तो मज़ा आ रहा था”, मैं तड़प कर उससे फिर से शुरू करने के लिए भीख मांगने लगी. पर गरिमा हंसकर मेरी ओर देखने लगी.
“औरत बनकर बड़ा मज़ा आ रहा है न भाभी? अब देखो और कितना मज़ा देती हूँ मैं तुम्हे”, गरिमा हंसकर बोली और फिर और फिर अपनी साड़ी और पेटीकोट उठाकर मेरे और पास आई. उसके पेटीकोट के निचे मैंने जो देखा उसे देखकर तो मैं डर ही गयी. गरिमा की साड़ी के निचे उसने एक स्ट्राप-ऑन डिलडो पहना हुआ था. वो रबर का लंड उस वाइब्रेटर और मेरे लंड से भी बहुत बड़ा था.

“तुमने जीजाजी बनकर मुझे कैसी कैसी नज़रो से देखा है न. और मुझसे कितनी सेवा भी करवाई है. आज उन सबकी भरपाई करना है मेरी भाभी जी.”, गरिमा ने नटखट तरीके से मेरी ओर देखकर बोली और अपने स्तनों को खुद मसलते हुए और अपने ही दांतों से अपने होंठो को कांटते हुए बोली.

“नहीं गरिमा. इतना बड़ा लंड मेरी गांड नहीं ले पाएगी.”, मैं उससे गिडगिडाकर कहने लगी. पर गरिमा कहाँ रुकने वाली थी. उसने मुझे पलटाया और फिर उसे बड़े से रबर के लंड को मेरी गांड में डाल दिया और फिर किसी मर्द की तरह मेरी गांड मारने लगी. और खुद अपने स्तनों मसलने लगी. मैं तो दर्द के मारे चीख रही थी. इतना बड़ा लंड लेने के लिए तो मेरी गांड बनी ही नहीं थी. “मज़ा आ रहा है न भाभी.”, गरिमा जोर से बोली. मुझे पता था कि जब तक मैं हाँ नहीं कहूँगी वो मुझे छोड़ेगी नहीं. मैंने दर्द में हाँ कहा. पर अब तो मुझे भी मज़ा आने लगा था. और गरिमा अपनी मखमली साड़ी में उछलती हुई अपने स्तनों को मसलते हुए उस लंड को तब तक मेरी गांड के अन्दर बाहर करती रही जब तक वो थक कर चूर न हो गयी. मुझे भी अब तक दर्द तो था पर गरिमा ने मुझे जो औरत बनने का आनंद दिया था… वो मुझे कभी नहीं मिला था. उस रात को जो कुछ हुआ उसको तो याद करके मैं आज भी सिहर जाती हूँ.

उस रात के बाद मैं और गरिमा ने ज्यादा बातें नहीं की. २ दिन बाद जब मेरी पत्नी रूपा घर आई तो उस दिन भी मैंने घर में एक साड़ी पहनी हुई थी. रूपा को अच्छा लगता था कि जब वो लम्बे टूर से वापस आये तो मैं उसकी पत्नी बनकर सेवा करू. और एक अच्छी पत्नी की तरह मैं भी रूपा के सूटकेस को खोलकर उसमे का सामान जगह पर रखने लगी. रूपा के कपडे जगह पर रखते वक़्त उस सूटकेस में मुझे कुछ ऐसा दिखा जिसे देख मैं चौंक गई. उस सूटकेस में वैसा ही एक वाइब्रेटर था जैसे गरिमा के पास था. उसे हाथ में पकड़कर मैं सोच में पड़ गयी कि तभी रूपा कमरे में आ गयी. उसने वाइब्रेटर को मेरे हाथ में देखा तो मैं सकपका गयी. और फिर वो मेरे पास आकर बोली, “ओह जानू… मैं ४ दिन घर से बाहर थी. तुम्हारे बगैर भी तो मेरा जिस्म मचलता है न. उसके लिए ही है ये बस.”

रूपा फिर मेरी ओर देखकर हँसने लगी. और फिर मुझे पीछे से गले लगाकर मेरी गांड पर हाथ फेरते हुए बोली, “और अब तुमसे छिपा भी क्या है. मैंने सूना है कि ऐसे ही वाइब्रेटर ने तुम्हे भी सुख दिया है. अब तो तुम भी जानती हो कि एक औरत को ये कितना मज़ा दे सकता है!” तो गरिमा ने आखिर रूपा को उस रात की बात बता ही दी थी. मैं अब अपनी पत्नी के सामने शर्म से लाल होकर खड़ी थी. “अब ज्यादा नाटक मत करो. जल्दी से सामान जगह पर लगाओ. मुझे फिर अपनी पत्नी को ज़रा प्यार भी तो करना है.”, रूपा बिस्तर पर लेटते हुए बोली. उसकी बातो से साफ़ था कि आज मेरे साथ क्या होने वाला था.
समाप्त
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#2
hello friends...kaisi lagi story
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