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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#1
Heart 
आह... तनी धीरे से... दुखाता


यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।

Heart


ALL CREDIT GOES TO ORIGINAL WRITER = लवली आनंद
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#2
Heart 
############################

भाग -1

ट्यूबवेल के खंडहरनुमा कमरे में एक खुरदरी चटाई पर बाइस वर्षीय सुंदर सुगना अपनी जांघें फैलाएं चुदवाने के लिए आतुर थी।

वह अभी-अभी ट्यूबवेल के पानी से नहा कर आई थी। पानी की बूंदे उसके गोरे शरीर पर अभी भी चमक रही थीं सरयू सिंह अपनी धोती खोल रहे थे उनका मदमस्त लंड अपनी प्यारी बहू को चोदने के लिए उछल रहा था। कुछ देर पहले ही वह सुगना को ट्यूबवेल के पानी से नहाते हुए देख रहे थे और तब से ही अपने लंड की मसाज कर रहे थे। लंड का सुपाड़ा उत्तेजना के कारण रिस रहे वीर्य से भीग गया था।

सरयू सिंह अपनी लार को अपनी हथेलियों में लेकर अपने लंड पर मल रहे थे उनका काला और मजबूत लंड चमकने लगा था। सुगना की निगाह जब उस लंड पर पड़ती उसके शरीर में एक सिहरन पैदा होती और उसके रोएं खड़े हो जाते। सुगना की चूत सुगना के डर को नजरअंदाज करते हुए पनिया गयी थी। दोनों होठों के बीच से गुलाबी रंग का जादुई छेद उभरकर दिखाई पड़ रहा था. सुगना ने अपनी आंखें बंद किए हुए दोनों हाथों को ऊपर उठा दिया सरयू सिंह के लिए यह खुला आमंत्रण था।

कुछ ही देर में वह फनफनता हुआ लंड सुगना की गोरी चूत में अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना सिहर उठी। उसकी सांसे तेज हो गयीं उसने अपनी दोनों जांघों को अपने हाथों से पूरी ताकत से अलग कर रखा था।

लंड का सुपाड़ा अंदर जाते ही सुगना कराहते हुए बोली

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

सरयू सिंह यह सुनकर बेचैन हो उठे। वह सुगना को बेतहाशा चूमने लगे जैसे जैसे वह चूमते गए उनका लंड भी सुगना की चूत की गहराइयों में उतरता गया। जब तक वह सुगना के गर्भाशय के मुख को चूमता सुगना हाफने लगी थी।

उसकी कोमल चूत उसके बाबूजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती। सरयू सिंह अब अपने मुसल को आगे पीछे करना शुरू कर दिए। सुगना की चूत इस मुसल के आने जाने से फुलने पिचकने लगी। जब मुसल अंदर जाता सुगना की सांस बाहर आती और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड बाहर निकालते सुगना सांस ले लेती। सरयू सिंह ने सुगना की दोनों जाघें अब अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से पकड़ लीं और उसे उसके कंधे से सट्टा दिया। पास पड़ा हुआ पुराना तकिया सुगना के कोमल चूतड़ों के नीचे रखा और अपने काले और मजबूत लंड से सुगना की गोरी और कोमल चूत को चोदना शुरू कर दिया। सुगना आनंद से अभिभूत हो चली थी। वाह आंखें बंद किए इस अद्भुत चुदाई का आनंद ले रही थी। जब उसकी नजरें सरयू सिंह से मिलती दोनों ही शर्म से पानी पानी हो जाते पर सरयू सिंह का लंड उछलने लगता।

उसकी गोरी चूचियां हर धक्के के साथ उछलतीं तथा सरयू सिंह को चूसने के लिए आमंत्रित करतीं। सरयू सिंह ने जैसे ही सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भरा सुगना ने "बाबूजी………"की मादक और धीमी आवाज निकाली और पानी छोड़ना शुरू कर दिया। सरयू सिंह का लंड भी सुगना की उत्तेजक आवाज को और बढ़ाने के लिए उछलने लगा और अपना वीर्य उगलना शुरू कर दिया।

वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर खींचने की कोशिश की पर सुगना ने अपने दोनों पैरों को उनकी कमर पर लपेट लिया और अपनी तरफ खींचें रखी। सरयू सिंह सुगना की गोरी कोमल जांघों की मजबूत पकड़ की वजह से अपने लिंग को बाहर ना निकाल पाए तभी सुगना ने कहा

"बाबूजी --- बाबूजी… आ…..ईई…..हां ऐसे ही….।" सुगना स्खलित हो चूकी थी पर वह आज उसके मन मे कुछ और ही था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी बहू का यह कामुक आग्रह न ठुकरा पाए और अपना वीर्य निकालते निकालते भी लंड को तीन चार बार आगे पीछे किया और अपने वीर्य की अंतिम बूंद को भी गर्भाशय के मुख पर छोड़ दिया. वीर्य सुगना की चूत में भर चुका था। दोनो कुछ देर उसी अवस्था मे रहे।

सरयू सिंह सुगना को मन ही मन उसे घंटों चोदना चाहते थे पर सुगना जैसी सुकुमारी की गोरी चूत का कसाव उनके लंड से तुरंत वीर्य खींच लेता था।

लंड निकल जाने के बाद सुगना ने एक बार फिर अपने हांथों से दोनों जाँघें पकड़कर अपनी चूत को ऊपर उठा लिया। सरयू सिंह का वीर्य उसकी चूत से निकलकर बाहर बहने को तैयार था पर सुगना अपनी दोनों जाँघे उठाए हुए बैलेंस बनाए हुए थी। वह वीर्य की एक भी बूंद को भी बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। उसकी दिये रूपी चूत में तेल रूपी वीर्य लभालभ भरा हुआ था। थोड़ा भी हिलने पर छलक आता जो सुगना को कतई गवारा नहीं था। वह मन ही मन गर्भवती होने का फैसला कर चुकी थी।

उस दिन सुगना ने जो किया था उस का जश्न मनाने वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आई हुई थी। लेबर रूम में तड़पते हुए वह उस दिन की चुदाई का अफसोस भी कर रही थी पर आने वाली खुशी को याद कर वह लेबर पेन को सह भी रही थी।

सरयू सिंह सलेमपुर गांव के पटवारी थे । वह बेहद ही शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। वह दोहरे व्यक्तित्व के धनी थे समाज और बाहरी दुनिया के लिए वह एक आदर्श पुरुष थे पर सुगना और कुछ महिलाओं के लिए कामदेव के अवतार।

उनके पास दो और गांवों का प्रभार था लखनपुर और सीतापुर ।

सरयू सिंह की बहू सुगना सीतापुर की रहने वाली थी उसकी मां एक फौजी की विधवा थी।

बाहर प्राथमिक समुदायिक केंद्र में कई सारे लोग इकट्ठा थे एक नर्स लेबर रूम से बाहर आई और पुराने कपड़े में लिपटे हुए एक नवजात शिशु को सरयू सिंह को सौंप दिया और कहा...

चाचा जी इसका चेहरा आप से हूबहू मिलता है...

सरयू सिंह ने उस बच्चे को बड़ी आत्मीयता से चूम लिया। उनके कलेजे में जो ठंडक पड़ रही थी उसका अंदाजा उन्हें ही था। कहते हैं होठों की मुस्कान और आंखों की चमक आदमी की खुशी को स्पष्ट कर देती हैं वह उन्हें चाह कर भी नहीं छुपा सकता। वही हाल सरयू सिंह का था। कहने को तो आज दादा बने थे पर हकीकत वह और सुगना ही जानती थी। तभी हरिया (उनका पड़ोसी) बोल पड़ा

"भैया, मैं कहता था ना सुगना बिटिया जरूर मां बनेगी आपका वंश आगे चलेगा"

सरयू सिंह खुशी से चहक रहे थे उन्होंने अपनी जेब से दो 50 के नोट निकालें एक उस नर्स को दिया तथा दूसरा हरिया के हाथ में दे कर बोले जा मिठाई ले आ और सबको मिठाई खिला।

सरयू सिंह ने नर्स से सुगना का हाल जानना चाहा उसने बताया बहुरानी ठीक है कुछ घंटों बाद आप उसे घर ले जा सकते हैं।

सरयू सिंह पास पड़ी बेंच पर बैठकर आंखें मूंदे हुए अपनी यादों में खो गए।

मकर संक्रांति का दिन था। सुगना खेतों से सब्जियां तोड़ रही थी उसने हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी जब वह सब्जियां तोड़ने के लिए नीचे झुकती उसकी गोल- गोल चूचियां पीले रंग के ब्लाउज से बाहर झांकने लगती। सरयू सिंह कुछ ही दूर पर क्यारी बना रहे थे। हाथों में फावड़ा लिए वह खेतों में मेहनत कर रहे थे शायद इसी वजह से आज 50 वर्ष की उम्र में भी वह अद्भुत कद काठी के मालिक थे।

(मैं सरयू सिंह)

उस दिन सुगना सब्जियां तोड़ने अकेले ही आई थी। घूंघट से उसका चेहरा ढका हुआ पर उसकी चूचियों की झलक पाकर मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। खिली हुई धूप में सुगना का गोरा बदन चमक रहा था मेरा मन सुगना को चोदने के लिए मचल गया।

चोद तो उसे मैं पहले भी कई बार चुका था पर आज खुले आसमान के नीचे… मजा आ जाएगा मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ देर तक मुझे उसकी चूचियां दिखाई देती रही पर थोड़ी ही देर बाद उसकी मदहोश कर देने वाली गांड भी साड़ी के पीछे से झलकने लगी। मेरा मन अब क्यारी बनाने में मन नहीं लग रहा था मुझे तो सुगना की क्यारी जोतने का मन कर रहा था। मैं फावड़ा रखकर अपने मुसल जैसे ल** को सहलाने लगा सुगना की निगाह मुझ पर पढ़ चुकी थी वह शरमा गई। और उठकर पास चल रहे ट्यूबवेल पर नहाने चली गई।

ट्यूबवेल ठीक बगल में ही था। ट्यूबवेल की धार में नहाना मुझे भी आनंदित करता था और सुगना को भी। सुगना ही क्या उस तीन इंच मोटे पाइप से निकलती हुई पानी की मोटी धार जब शरीर पर पड़ती वह हर स्त्री पुरुष को आनंद से भर देती। सुगना उस मोटी धार के नीचे नहा रही थी। सुगना को आज पहली बार मैं खुले में पानी की मोटी धार के नीचे नहाते हुए देख रहा था।

पानी की धार उसकी चुचियों पर पड़ रही थी वह अपनी चुचियों को उस मोटी धार के नीचे लाती और फिर हटा देती। पानी की धार का प्रहार उसकी कोमल चुचियां ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पातीं। वह अपने छोटे छोटे हाथों से पानी की धार को नियंत्रण में लाने का प्रयास करती। हाथों से टकराकर पानी उसके चेहरे को भिगो देता वाह पानी से खेल रही थी और मैं उसे देख कर उत्तेजित हो रहा था।

अचानक मैंने देखा पानी की वह मोटी धार उसकी दोनों जांघों के बीच गिरने लगी सुगना खड़ी हो गई थी वह अपने चेहरे को पानी से धो रही थी पर मोटी धार उसकी मखमली चूत को भिगो रही थी। कभी वह अपने कूल्हों को पीछे ले जाती कभी आगे ऐसा लग रहा था जैसे वह पानी की धार को अपनी चूत पर नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

उस दिन ट्यूबवेल के कमरे में, मैं और सुगना बहुत जल्दी स्खलित हो गए थे। सुगना के मेरे वीर्य के एक अंश को एक बालक बना दिया था।

मैं उसके साथ एकांत में मिलना चाहता था हमें कई सारी बातें करनी थीं।

"ल भैया मिठाई आ गइल"

हरिया की बातें सुनकर सरयू सिंह अपनी मीठी यादों से वापस बाहर आ गए…



शेष आगे।

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कहानी की नायिका - सुगना
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#3
Heart 
भाग-2

शाम होते होते सुगना अस्पताल से बाहर आ गई। बच्चा जनने के बाद वह घर तक पैदल जा पाने की स्थिति में नहीं थी। सरयू सिंह सुगना का पूरा ख्याल रखते थे उन्होंने चार कहार बुला लिए थे। सुगना चारपाई पर लेट गई और कहार उसे लेकर घर की तरफ चल पड़े।

सरयू सिंह की भौजी कजरी बच्चे को गोद में ली हुई थी. कजरी 42 वर्ष की भरे पूरे शरीर वाली औरत थी। सरयू सिंह और कजरी ने अपनी जवानी में खूब मजे लूटे थे। सुगना के आने के बाद सरयू सिंह का ध्यान कजरी से थोड़ा हट गया था। पर बीच-बीच में वह अपनी कजरी भौजी की बुर चोद कर कजरी के पुराने एहसान चुका देते और अपना आकस्मिक कोटा बनाए रखते। जब सुगना रजस्वला होती कजरी अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार रखती।

कजरी अपनी गोद में अपने नाती को लिए हुए आगे आगे चल रही थी उसके गोल गोल कूल्हे हिल रहे थे सरयू सिंह कजरी के पीछे पीछे चल रहे थे। उनकी निगाहें कूल्हों को चीरती हुई कजरी की बूर को खोज रही थीं। मन ही मन वह कजरी को चोदने की तैयारी करने लगे।

"भैया, तनी तेज चला कहार आगे निकल गइले"

हरिया की आवाज सुनकर सरयू सिंह का ध्यान कजरी के कूल्हों पर से हटा। ध्यान से देखा तो सुगना को लेकर वो काफी दूर निकल गये थे। जाने इन कहारों के पैरों में इतनी ताकत कहां से आती थी। देखने में तो वह पतले दुबले लगते पर चाल जैसे हिरण की। एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा जैसे उनकी सुगना उनकी नजरों से दूर जा रही है। सरयू सिंह ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी और तेजी से सुगना के पास पहुंचने की कोशिश करने लगे।

थोड़ी ही देर की मेहनत के बाद सरयू सिंह सुगना के पास पहुंच गए और कहारों के साथ चलते चलते घर आ गये। सुगना चारपाई से उतर कर खड़ी हो चुकी थी सरयू सिंह सुगना को लेकर घर के अंदर आ गए।

सरयू सिंह और सुगना अकेले थे कजरी को आने में वक्त था। सुगना सरयू सिंह के सीने से सटती चली गई। सरयू सिंह ने उसके कोमल होठों को चूसना शुरू कर दिया। सुगना की चुचियों में दूध भर रहा था। जब उन्होंने सुगना की चुचियों को मीसना चाहा सुगना कराह उठी

"बाबू जी.. तनी धीरे से….. दुखाता"

सुगना की यह मासूम कराह सरयू सिंह के लंड में जबरदस्त ताकत भर देती थी सुगना इस बात को जानती थी। सुगना की निगाहें सरयू सिंह की धोती पर पड़ी सरयू सिंह का खड़ा लंड अपना आकार दिखा रहा था। सुगना ने सरयू सिंह का लंगोट खिसका कर लंड को बाहर निकाल लिया और अपनी कोमल हथेलियों से उसे सहलाने लगी सरयू सिंह आनंद में डूबने लगे।

सुगना ने सरयू सिंह के लंड को एक चपत लगाई और मीठी आवाज में बोली

"इहे हमार पेट फुलेईले रहे"

"एतना सुंदर लइका भी तो देले बा"

सुगना खुश हो गई सच उस लंड ने सुगना का जीवन खुशियों से भर दिया था। सुगना ने पास बड़ी चौकी पर बैठते हुए झुक कर उस लंड को चूम लिया और अपने होठों के बीच लेकर चूसने लगी। उसके होठों पर वीर्य का स्वाद महसूस होने लग। सुगना तेजी से अपने हाथ भी चलाने लगी …

"सुगना मेरी बिटिया….. मेरी रानी…. हां ऐसे ही और जोर से …...आह…..उँ….."

सरयू सिंह भी अपना पानी निकालना चाहते थे पर यह संभव नहीं था कजरी और गांव के कई लोग दरवाजे पर आ चुके थे। खटपट सुनकर सरयू सिंह ने अपना लंड लंगोट में लपेट लिया और मन मसोसकर कर बाहर की तरफ जाने लगे। सुगना ने जाते समय कहा "बाबूजी बाकी रात में…." सरयू सिंह ने सुगना के गाल पर चिकोटि काटी और बाहर आ गए सुगना की बात सुनकर वह खुश हो गए थे।

सरयू सिंह दो भाई थे बड़ा भाई मानसिक रूप से थोड़ा विक्षिप्त था। वह सनकी प्रवृत्ति का था। कजरी लखनपुर गांव की रहने वाली थी सरयू सिंह और कजरी ने कई बार अपनी किशोरावस्था में एक दूसरे को देखा था गांव में ज्यादा प्यार व्यार का चक्कर नहीं था पर शारीरिक आकर्षण जरूर था।

कजरी के पिता जब रिश्ता लेकर सरयू सिंह के पिता के पास आए तो उन्होंने कजरी का विवाह बड़े बेटे से करा दिया। कजरी जब मतदान के योग्य हुई वह सरयू सिंह के घर आ गई। कजरी की चूत का पहला भोग सरयू सिंह के भाई ने ही लगाया पर ज्यादा दिनों तक वह कजरी की मदमस्त जवानी का आनंद नहीं ले पाया । गांव में साधुओं का एक झुंड आया हुआ था। वह उनके साथ गायब हो गया। सभी लोगों का यही मानना था कि वह साधुओं से प्रभावित होकर उनके साथ साथ चला गया। लाख प्रयास करने के बावजूद उसे ढूंढा न जा सका पर जाते-जाते उसने कजरी को गर्भवती कर दिया था।

कजरी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम रतन रखा गया कालांतर में रतन का विवाह सुगना से संपन्न हुआ था।

बाहर दालान में गहमागहमी थी आज खुशी का दिन था मिठाइयां बांट रही थी किसी ने पूछा रतन को सूचना भेज दी गई है

हरिया ने लपक कर कहा "अरे उ कल सवेरे आ जइहें गाड़ी ध लेले बाड़े उनकर चिट्ठी आईल रहे।

रात में खाना खाने के पश्चात कजरी और सुगना अपनी अपनी चारपाई पर लेटे हुए बातें कर रहे थे। सुगना अपने बच्चे को दूध पिला रही थी तभी सरयू सिंह कमरे के अंदर आ गए। सुगना ने तुरंत घुंघट ले लिया पर उसकी गोरी चूचियां वैसे ही रहीं। चुचीं का निप्पल उस छोटे से बच्चे के मुंह में था पर सरयू सिंह की निगाह उन चूचियों पर थी।

सुगना की चुचियों का आकार अचानक ही बढ़ गया था सरयू सिंह मन ही मन खुश हो रहे थे सुगना की सूचियों को बड़ा करने में उन्होंने पिछले दो-तीन सालों में खूब मेहनत की थी पर आज उस मासूम के आगमन ने उनकी मेहनत को और उभार दिया था।

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कजरी ने चादर ठीक की और सरयू सिंह को बैठने के लिए कहा और स्वयं सरयू सिंह के लिए दूध गर्म करने चली गई।

कजरी के जाते ही सुगना ने घूंघट हटा लिया सरयू सिंह उसके गालों को चूमने लगे और उसे प्यार करने लगे। उनके साथ सुगना की पीठ पर से होते हुए नितंबो तक जा पहुंचे वह उसकी जांघों और पैरों को दबा रहे थे। वह यह बात भली-भांति जानते थे की सुगना की चूत अभी छूने योग्य नहीं है।

अचानक उन्होंने सुगना की दूसरी चूची को भी बाहर निकाल लिया उसके निप्पओं को होठों के बीच लेने पर दूध की एक घर उनके जीभ पर पड़ी उसका स्वाद अजीब था पर था तो वह उनकी जान सुगना का। उन्होंने उसे पी लिया जब उन्होंने निप्पल पर होठों का दबाव दोबारा बढ़ाया तो सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा...

"बाबूजी, सासूजी दूध लेवे गईल बाड़ी तनि इंतजार कर लीं"

सरयू सिंह शर्मा गए पर वह उत्तेजना के अधीन थे उन्होंने सुगना की पूरी चूची को मुंह में भरने की कोशिश की। सुगना ने उनके सर के बाल पकड़ लिए पर यह फैसला न कर पाई कि वह उन्हें अपनी चूची चूसने दे या सर को धक्का देकर बाहर हटा दें। वह उनके बाल सहलाने लगी वह खुद भी आनंद लेने लगी।

अचानक छोटा बालक रोने लगा सरयू सिंह ने तुरंत ही सुगना की चूची छोड़ दी उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उस छोटे बालक का हक मार रहे हों। सुगना हँसने लगी।

सुगना ने बच्चे की पीठ थपथपा कर एक बार फिर उसे सुला दिया।

सरयू सिंह अपने कमरे में चले गए। कजरी दूध लेकर उनके कमरे में आ गए कमरे का छोटा दिया जल रहा था। जब तक सरयू सिंह दूध पीते कजरी ने उनके मुसल जैसे लंड को बाहर निकाल लिया। सुगना को सहलाने से वह पहले ही तन कर खड़ा हो गया था। जब तक सरयू सिंह गर्म दूध को पीते रहे तब तक कजरी उनके लंड को चूस कर अपनी बुर के लिए तैयार करती रही।


शेष अगले भाग में...
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#4
Heart 
भाग-3

सरयू सिंह ने दूध का आखरी घूंट एक झटके में पी लिया। नीचे उनका लंड पूरी तरह तन चुका था। दूध का गिलास नीचे रखकर वह उठ खड़े हुए। अचानक उठने से लंड कजरी के मुंह से निकल कर बाहर आ गया और ऊपर नीचे हिलने लगा कजरी इसके लिए तैयार नहीं थी उसका मुंह खुला रह गया मुंह से ढेर सारी लार टपक रही थी जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिसा हुआ वीर्य भी शामिल था।

सरयू सिंह ने अपना कुर्ता उतार दिया लंगोट की डोरी खोलते ही वह पूरी तरह नंगे हो गए

समाज में वह जितने सम्मानित थे इस कमरे में उतने ही नंगे दिखाई पड़ रहे थे सुगना और कजरी दोनों सरयू सिंह की नस नस पहचानते थे। उन्होंने कजरी को ऊपर उठा लिया और उसके गालों को चुमते हुए बोले "अब खुश बाड़ू नु दादी बन गईलू"

कजरी ने लंड को अपनी मुट्ठी में दबाया और बोली "ई जादुई मुसल जउन न कराए कम बा"

अपनी तारीफ सुनकर लंड फड़क उठा कजरी उसे अपने हाथों में रख पाने में नाकाम हो रही थी। वह ऊपर नीचे हिल रहा था। उधर कजरी लंड को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रही थी इधर सरयू सिंह के हाथ कजरी का वस्त्र हरण कर रहे थे। कजरी भी हिलडुल कर उन्हें हटाने में मदद कर रही थी।

कजरी की चुचियां सुगना की दो गुनी थी। दशहरी और लंगड़ा आम का अंतर सरयू सिंह को पता था। उन्होंने गप्प से बड़ा सा मुंह खोला और कजरी की एक चूची को अपने मुंह में भर लिया। निप्पल जाकर उनके गले से टकराया वह गूँ गूँ करके अपना मुंह थोड़ा पीछे ले आए।

कजरी हंसने लगी और बोली

"कुंवर जी ई सुगना बेटी के चूची ना ह"

सरयू सिंह के हाथ कजरी के पेटीकोट के नाड़े से उलझ गए। चुची मुंह में फंसी होने के कारण वह गांठ को देख नहीं पा रहे थे।

जैसे ही उन्होंने चूची छोड़कर पेटीकोट की गांठ देखने की कोशिश की कजरी ने अपनी छाती घुमाई और दूसरी चूची मुंह में पकड़ा दी।

उनके लंड का तनाव ढीला पड़ रहा था। वह अपने हाथ से उसे सहलाने लगे। दोनों चूचियों को चूसने के बाद। वह नीचे आए तब तक कजरी खुद ही पेटिकोट की गांठ को खोलने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह को देरी बर्दाश्त नहीं थी। उन्होंने पेटीकोट उठाया और अपना सिर कजरी की जांघों के बीच घुसेड़ दिया जब तक कजरी गांठ खोलती खोलकर सरयू सिंह की लंबी जीभ कजरी की बुर से चिपचिपा नारियल पानी पीने लगी। उनके हाथ कजरी के चूतड़ों पर थे वह उसे अपनी तरफ खींचे हुए थे ऊपर का रस खत्म होने के बाद उन्होंने अपनी जीभ को नुकीला कर उस मलमली छेद में घुसेड दिया कजरी बेचैन हो गयी। उसने गांठ पर से ध्यान हटा दिया और सरयू सिंह के सर को अपनी जांघों की तरफ खींचने लगी।

तवा गर्म हो चुका था नारियल पानी पीकर लंड और तन कर खड़ा हो गया सरयू सिंह ने अपना सर बाहर निकाला और एक ही झटके में पेटीकोट को फाड़ डाला उसने उन्हें बहुत तंग किया था।

पेटीकोट के फटने की चरर्रर्रर्रर की आवाज तेज थी जो सुगना के कानों तक पहुंची उसने वहीं से आवाज दी "सासू मां ठीक बानी नु"

"हां, सुगना बेटा "

सुगना की कोमल आवाज से सरयू सिंह और जोश में आ गए उन्होंने कजरी को चारपाई पर लिटाया और अपना फनफनाता हुआ लंड एक ही झटके में अपनी कजरी भाभी की चूत में उतार दिया। उनकी कमर तेजी से हिलने लगी कजरी ने भी अपनी टांगे उठा लीं। जैसे-जैसे रफ्तार बढ़ती गई कमरे में आवाज बढ़ती गई।


तभी सुगना के बच्चे की रोने की आवाज आई

" सुगना बेटी….. दूध पिया दा चुप हो जाई" कजरी ने आवाज दी. सरयू सिंह की चुदाई जारी होने से उसकी आवाज लहरा रही थी.

"ठीक बा" सुगना की कोमल आवाज फिर सरयू सिंह के गानों में पड़ी।

सुगना की दूध भरी फूली हुई चुचियों को याद कर उनकी उत्तेजना आसमान पर पहुंच गई जैसे-जैसे सरयू सिंह अपनी चुदाई की रफ्तार बढ़ाते गए चारपाई की आवाज बढ़ती गई जिसकी आवाज सुगना के कानों तक पहुंच रही थी उसे पूरा अंदाज था की सासू मां अपने हिस्से का आनंद भोग रही थीं।

कुछ ही देर में कजरी के पैर सीधे हो गए सरयू सिंह के अंडकोष में भरा हुआ ज्वालामुखी फूट चुका था उनका गाढ़ा वीर्य कजरी की बुर की गहराई में भर रहा था। लंड के बाहर आते ही कजरी की बुर भूलने पिचकने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे वह लावा को ढकेल कर बाहर फेंक रही वैसे भी अब 45 की उम्र में उस लावा का उसके लिए कोई मतलब नहीं था वह मेनोपाज से गुजर रही थी। उसके पैर भारी होने की कोई संभावना नहीं थी। कुछ ही देर में उसने अपने कपड़े पहने और अपनी बहू के पास आ गई।

सरयू सिंह ने नग्न अवस्था में ही चादर ओढ़ ली और पुरानी यादों में खो गए।

कजरी, सरयू सिंह से उम्र में लगभग 5 वर्ष छोटी थी गवना के बाद जब वह घर आई थी तो वह अपने पति से कम शर्माती सरयू सिंह से ज्यादा। सरयू सिंह का गठीला शरीर मन ही मन कजरी को आकर्षित करता वह उन्हें कुंवर जी कहती।

सरयू सिंह का भाई इस योग्य नहीं था कि वह कजरी की जवानी को संभाल पाता कहावत है "अनाड़ी चुदईयां अउर बुर का सत्यानाश"

उसने कजरी की बूर को सूखा ही चोद दिया। उस रात कजरी दर्द से बिलबिला उठी और तेजी से चीख उठी। उसकी आवाज सुनकर सरयू सिंह और उनकी मां कजरी के कोठरी तक पहुंच गए। बाद में सरयू सिंह की मां दर्द का कारण जानकर सरयू सिंह को लेकर वहां से हट गयीं। चुदाई से जब तक कजरी की चूत पनिया रही थी तब तक उसे चोद रहे लंड ने पानी छोड़ दिया कजरी तड़प कर रह गई।

कजरी का यह अवांछित मिलन कुछ दिनों तक होता रहा उसका महीना बंद हो गया और पेट फूलता गया। 18 वर्ष की कमसिन कली बिना एक भी बार चरम सुख पाए मां बनने वाली थी सरयू सिंह अपने सामने एक मदमस्त कामुक लड़की की जवानी को बर्बाद होते हुए देख रहे थे।

इसी दौरान सरयू सिंह के पिता की मृत्यु हो गई। कजरी का पेट पहले ही फूल चुका था उसने और चुदने से साफ मना कर दिया था। सरयू सिंह का भाई थोड़ा विक्षिप्त पहले से ही था उसका परिवार और कजरी से मोह खत्म हो गया। वह गांव में आए साधुओ की टोली के साथ गायब हो गया। परिवार की सारी जिम्मेदारी सरयू सिंह के कंधों पर आ गयी।

कजरी को अपने पति के जाने का कोई गम नहीं था। उसने कजरी के मन पर पुरुषों की गलत छाप छोड़ी थी। कजरी की कोमल बुर उसके अनाड़ी पन की वजह से बिना आनंद लिए ही गर्भवती हो गई थी।

खैर, जो होना था हो चुका था। परिवार में आए इतने कष्टों में एक खुशी की बात भी थी। सरयू सिंह पटवारी पद पर सेलेक्ट हो गए थे।

सरयू सिंह ने परिवार के मुखिया का कार्यभार बखूबी संभाल लिया। कजरी और सरयू सिंह दोनों करीब आ रहे थे कजरी का शारीरिक आकर्षण लगभग खत्म हो चुका था। फूला हुआ पेट चुचियों की खूबसूरती को ढक ले रहा था। चेहरा भी बदरंग हो गया था। वह बड़ी मुश्किल से चल पाती पर सरयू सिंह ने कजरी से मेल मुलाकात जारी रखी। वह दोनों घंटो बातें करते और एक दूसरे को हंसाते रहते। सरयू सिंह माहिर खिलाड़ी थे। उन्हें पता था यदि उन्होंने कजरी को हंसाते हंसाते उसके ऊपर के होंठ खोल दिए तो नीचे चूत की फांकें खोलना भी आसान होगा। देवर भाभी दोस्त बन चुके थे।

कुछ ही दिनों में रजनी ने रतन को जन्म दिया। उस दिन भी कुछ ऐसा ही दृश्य था जैसा कल सुगना के साथ था। सरयू सिंह होठों पर मोहक मुस्कान लिए सो गए।

"ए सरयू भैया कब ले सुतल रहब.. उठा देखा के आईल बा" हरिया की बुलंद आवाज सुनकर सरयू सिंह की नींद खुल गई। उन्होंने अपनी लंगोट बांधी और धोती कुर्ता पहन कर बाहर आ गए।

सुबह-सुबह रतन घर पर आ गया था। रतन मुंबई में कोई नौकरी करता था वहां उसमें किसी महाराष्ट्रीयन लड़की से विवाह कर लिया था। सुगना उसकी पत्नी अवश्य थी पर आज तक सुगना और रतन ने एक दूसरे को छुआ भी नहीं था। हां, वह दोनों बातें जरूर करते थे। सुगना को रतन के दूसरे विवाह के बारे में पूरी जानकारी थी और उसने उसे उसने स्वीकार कर लिया था।

सरयू सिंह और रतन ने आपस में यह सहमति बना ली थी की रतन साल में दो बार गांव अवश्य आएगा ताकि गांव वालों की नजर में सुगना और उसका विवाह जारी रह सके। सरयू सिंह यह कभी नहीं चाहते थे की उन पर यह आरोप लगे कि उनके भतीजे रतन ने सुगना को छोड़ दिया है। वह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे अपने ही घर में हो रहे इस अन्याय को वह सहन नहीं कर पाते। रतन ने उनकी बात मान ली थी उसके एवज में उसे सरयू सिंह से उसे अनाज और पैसों की मदद मिलती।

जिस समय यह समझौता हुआ था सुगना छोटी थी। उसका विवाह तो हो गया था पर गवना होना बाकी था। नियति ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। गवना के बाद सुगना घर में बहू बनकर आई पर रतन और उसके बीच कभी नजदीकियां नहीं बनी। अपितु तीसरे दिन ही रतन वापस मुंबई चला गया।

रतन अपनी महाराष्ट्रीयन पत्नी के प्रति वफादार था वह सुगना के करीब आकर खुद को व्यभिचारी की श्रेणी में नहीं लाना चाहता था।

आज सभी लोग रतन को बधाइयां दे रहे थे वह बधाइयां स्वीकार भी कर रहा था। उसके मन में बार-बार यह प्रश्न आ रहा था की सुगना की मांग पर सिंदूर तो उसके नाम का था पर उसकी क्यारी किसने जोती थी जिसकी सुंदर फसल सुगना की गोद में थी। इस प्रश्न का उत्तर वह सरयू सिंह और अपनी मां से नहीं पूछ सकता था एक दिन बातों ही बातों में उसने सुगना से ही पूछ लिया।

सुगना ने हंसकर कहा

" अरे, ई आपि के बेटा ह, लीं खेलायीं" और अपने पुत्र को रतन को पकड़ा कर काम करने चली गई। रतन बच्चे को गोद में लिए हुए सुगना का मुंह ताकता रह गया। सरयू सिंह के करीब आकर सुगना हाजिर जवाब और समझदार हो गई थी।

रतन घर पर एक हफ्ते तक रहा इस दौरान सुगना भी धीरे-धीरे सामान्य हो गई। तथा घर के कामकाज मैं हाथ बटाने लगी। सुगना को घर के आंगन में इधर उधर घूमते देख सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई।

शेष अगले भाग में।
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#5
Heart 
भाग-4


सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।

सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।

पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा

"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"

"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"

"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।

कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।

अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।

कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।

सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई

सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।

सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
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उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।

सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले

"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"

"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"

सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली

सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।

सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।

दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।

वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा

" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"

सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।

उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।

वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।

सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।

सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।

अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"

सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।

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उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।

सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।

उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।

सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।

सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….

"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।

सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।

यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।

सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।

सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।

सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
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थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था। 


वह अपनी यादों में खोते चले गए…..


शेष अगले भाग में
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#6
Heart 
भाग-5


सरयू सिंह सुगना की यादों में खोए हुए थे. कैसे सुगना उनकी जान से ज्यादा प्यारी ही गयी थी। जो एक समय पर उनसे बात तक न करती थी आज अपनी चूत चुदवाने के बाद पंखा झलते हुए उन्हें प्यार से खाना खिला रही थी। यह सफर रोमांचक था...

सुगना के गवना का दिन निर्धारित हो गया था। वह कुछ दिनों पहले हुए मुखिया के चुनाव में मतदान कर चुकी थी और शाशकीय तौर पर चुदने के लिए पूरी तरह तैयार थी। सरयू सिंह ने रतन को बुला लिया था। वह मन मसोसकर गांव आ गया पर उसकी सुगना में कोई रुचि नहीं थी। आपसी समझौते के तहत उसे गांव आना था सो आ गया था।

कजरी को अभी भी उम्मीद थी की सुगना की जवानी रतन को सुगना की जाँघों के बीच खींच लाएगी। कजरी सुगना से मिल आई थी। उसमें सुगना की कद काठी पे टंगी उसकी चूचियों और सुडौल कूल्हों के पीछे छुपी कुवांरी चूत को अंदाज लिया था। वह उसकी खूबसूरती से बेहद प्रभावित थी।

सरयू सिंह स्वयं खूबसूरती के जौहरी थे। उन्होंने जिन जिन महिलाओं को हाथ लगाया था वह सब एक से बढ़कर एक थीं। कजरी स्वयं उनमें से एक थी। सरयू सिंह ने अपने अनुभव के आधार पर ही सुगना को रतन के लिए पसंद कर लिया था। उन्हें पता था सुगना की मां पदमा जब इतनी खूबसूरत थी तो उसकी लड़की सुगना निश्चय ही खूबसूरत ही होगी।

सुगना की मां पदमा सरयू सिंह के ननिहाल की लड़की थी। अपनी जवानी में सरयू सिंह ने पदमा की जवानी का रस लूटा था। ज्यादा तो नहीं पर कभी-कभी। उस गाँव मे वही उनका सहारा थी। उस दिन पदमा की आंखों में आंसू देख कर उनका दिल पिघल गया था और उन्होंने एक ही झटके में सुगना को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया था।

आखिर वह दिन आ ही गया जब सरयू सिंह की प्यारी बहू उनके घर आ गई। पूरे गांव में भोज हुआ सरयू सिंह मन ही मन डरे हुए थे की रतन और सुगना का मिलन होगा या नहीं। यह प्रश्न उन्हें खाए जा रहा था। वह कजरी की बातों से आश्वस्त थे पर रतन का व्यवहार उन्हें आशंकित किए हुए था। गवना के पूरे कार्यक्रम में वह बिना मन के उपस्थित रहा था।

कजरी ने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर कोठरी में नई चादर बिछाई थी। सुगना अपनी सुहागरात की सेज देखकर मन ही मन शर्मा रही थी।
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सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे पर अपनी पारखी निगाहों से यह अवश्य जान चुके थे कि उसे सुहाग की सेज पर देखना किसी मर्द के लिए एक स्वप्न जैसा ही था।

सचमुच् वह अपनी मां से बढ़कर कामुक थी। एक पल के लिए उन्हें लगा की रतन उसके प्रेम पास में निश्चय ही आ जाएगा पर हुआ उसके विपरीत।

रात में सुगना की कोठरी से चीखने की आवाज आने लगी। सरयू सिंह और कजरी उनकी बातें सुनने लगे सुगना ने लगभग चीखते हुए कहा

"जब राउर मन ना रहे तो ब्याह काहे कइनी?"

"जाके चाचा से पूछा"

"हमरा मांग में सिंदूर तू भरले बाड़ा कि तहार चाचा" सुगना की आवाज में तल्खी आ रही थी।

"जब हमारा के आपन बहिन बनावे के रहे त गवना करावे कौना मुंह से आइल रहला हा?"

रतन निरुत्तर था.

कुछ ही देर में वाह दरवाजा खोल कर कमरे से बाहर चला गया. सरयू सिंह अपनी चादर के अंदर विदके हुए अपने फैसले पर पछता रहे थे। कामाग्नि में चल रही सुगना का यह व्यवहार सर्वथा उचित था।

कजरी सुगना के कमरे में जाकर उसे समझा रही थी। जब क्रोध की परिणीति अनुकूल परिणाम में तब्दील न हुयी तो सुगना का क्रोध क्रंदन में बदल गया वह रो रही थी । कजरी उसकी पीठ सहलाती रही पर सुगना की सिसकियां कम ना हुई।

दो दिन बाद रतन वापस मुंबई चला गया और सुगना अपनी जवानी लिए हुए बिस्तर पर तड़पती रह गयी। घर में मनहूसियत का माहौल था। सरयू सिंह और कजरी दोनों ही दुखी थे। सुगना सरयू सिंह से कोई बात नहीं करती थी। वह उनकी आहट से तुरंत ही दूर हो जाती। उसकी यह आदत कभी सरयू सिंह को सम्मानजनक लगती कभी नफरत भरी।

जब कभी सुगना घर में अकेले रहती, यदि सरयू सिंह खाना पानी मांगते तो सुगना उन्हें खाना तो दे देती पर एक लफ्ज़ न बोलती। सरयू सिंह बार-बार उसे सुगना बेटा सुगना बेटा कहते पर सुगना ने उनसे कोई बात नहीं की। कजरी सुगना को समझाती पर उसका दिल खट्टा हो चुका था।

सुगना को आए एक महीना बीत चुका था। कजरी की चूत कभी-कभी पनियाती उसका मन भी चुदवाने का करता। सुगना अपनी चूत का भविष्य सोच कर दुखी हो जाती। क्या वह कुवांरी ही रहेगी? सुगना जवान थी उसका हक था कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस अद्भुत सुख को भोगती पर सब बिखर गया था।

सुगना को अपनी सास से भी हमदर्दी थी आखिर उन्होंने भी अपनी जवानी बिना अपने पति के गुजारी थी. सुगना अपनी दुखियारी सास से करीब होती होती गई. उसने अपनी फूटी किस्मत के लिए उन्हें उत्तरदाई नहीं ठहराया पर सरयू सिंह को वह माफ न कर पा रही थी।

सरयू सिंह की उत्तेजना भी धूल चाट गई थी। जब भी वह प्यारी सुगना को देखते वह दुखी हो जाते। उनकी प्यारी बहू मानसिक कष्ट से गुजर रही थी वह उसे खुश करने का जी भर प्रयास करते पर सब व्यर्थ था। सुगना दिन पर दिन उदास रहने लगी। सरयू सिंह इस एक महीने में सुगना का चेहरा तक न देख पाए थे।

इन दिनों सुगना यदि किसी के साथ खुश होती तो वह थी लाली। वह हरिया की बड़ी लड़की जिसका विवाह हो चुका था और कुछ ही दिनों में गवना होने वाला था। लाली दोपहर में सुगना के पास आती और बार-बार सुगना से उसकी सुहागरात का अनुभव पूछती। यह जले पर नमक छिड़कने जैसा था पर सुगना जानती थी की इसमें लाली की कोई गलती नहीं थी।

हर लड़की का यह स्वाभाविक कौतूहल होता है। सुगना उसे उत्तेजक भाषा में समझाने का प्रयास करती पर वह वैसा ही होता जैसे कोई गांव का व्यक्ति स्विट्जरलैंड की खूबसूरती का वर्णन कर रहा हो।



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आखिरकार होली के दिन घर में खुशियों ने दस्तक दी। कजरी और सरयू सिंह ने हमेशा से होली के त्यौहार को आनंद पूर्वक मनाया था। वैसे भी वह दोनों देवर भौजाई थे।

सुबह सुबह का वक्त था। सुगना अपने कमरे में सो रही थी। कजरी अभी-अभी मुंह हाथ धोकर आंगन में आई थी। सरयू सिंह ने कजरी को देखा और अपने हाथों में रंग लेकर कजरी पर कूद पड़े। हमेशा से पहले रंग लगाने की उन दोनों में होड़ लगी रहती थी। सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी की चुचियों को रंग रहे थे। घर के आंगन में कजरी खिलखिला कर हंस रही थी। एक पल के लिए वह भूल गई थी कि सुगना घर में ही है।

कहते हैं उत्तेजना में इंसान बहक जाता है। कई दिनों बाद अपनी चूचियों पर सरयू सिंह के हाथ पाकर उसकी बुर पनिया गई। वह उसकी चुचियों को मीसते रहे
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तथा उनके होंठ कजरी के कानों और गालों पर अपने चुंबन बरसाते रहे। सरयू सिंह ने उसका पेटीकोट उठाना शुरू कर दिया। हाथों में लाल रंग लगा हुआ था। कजरी के गोरे शरीर पर सरयू सिंह के पंजों के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ने लगे। सरयू सिंह ने नितंबों को भी नहीं छोड़ा। हथेलियों का पानी सूख चुका था पर उनकी उंगलियों ने कजरी की पनियायी बुर से पानी चुरा लिया। कजरी के गाल शर्म से और चूतड़ रंग से लाल हो गए।

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कजरी के खिलखिलाकर हँसने की वजह से सुगना जाग गयी थी। वह शांति पूर्वक दरवाजे की सुराग से आगन का दृश्य देखने लगी। कुदरत ने अनूठा संयोग बना दिया था।

सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी सास कजरी के जांघों पर देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। जितना आश्चर्य आंखों में था उतनी ही उत्तेजना उसके मन में जन्म ले रही थी। सरयू सिंह कजरी की बुर सहला रहे थे।

आंगन में चल रही ठंडी ठंडी बयार ने जब कजरी की पनियायी चूत को छुआ उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। कजरी से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी कोठरी की तरफ जाने लगी। सरयू सिंह चुंबक की तरह उसके पीछे हो लिए। वहअपने लंड को लगातार उसके कूल्हों से सटे हुए थे।

सुगना के पैर कांप रहे थे। आज जो उसने देखा था उसने उसे हिला कर रख दिया था। कजरी और सरयू सिंह के कमरे में जाने के बाद वह चोरी छुपे आंगन में आ गयी।

कमरे के अंदर अंधेरा था पर इतना भी नहीं। सूर्य का प्रकाश स्वतः ही गांव के कमरों में प्रवेश कर जाता है आप चाह कर भी उसे नहीं रोक सकते। जिस तरह सूर्य का प्रकाश अंदर जा रहा था सुगना की निगाहें भी दरवाजे के पतले छेद से अंदर चली गयीं।

सुगना ने आज वह दृश्य देख लिया जिस दृश्य कि कभी वह कल्पना करती थी। कजरी और सरयू सिंह पूरी तरह नंगे हो चुके थे। सरयू सिंह का बलिष्ठ शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। चौड़ी छाती बड़ी बड़ी भुजाएं पतली कमर और मांसल जाँघे सुगना की आंखें बंद हो गयी। वह थरथर कांप रही थी।

सरयू सिंह का मजबूत और काला लंड सुगना की निगाहों के ठीक सामने था पर सुगना अपनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कुछ सांसे और लेकर उसने अपनी आंखें खोल दीं। सरयू सिंह अपने मजबूत और काले लंड को हथेलियों में लेकर सहला रहे थे। सुगना की आंखें अब उस पर अटक गई बाप रे बाप इतना बड़ा उसने आज के पहले पुरुष लिंग सिर्फ मासूम बच्चों का देखा था इतने विशाल लिंग की उसने कल्पना भी नहीं की थी।

होली और वासना में रंगे हुए सरयू सिंह और कजरी एक दूसरे के आलिंगन में लिपटे हुए एक दूसरे के होंठ चूसे जा रहे थे। सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने कजरी को अपनी गोद में उठा लिया। कजरी उनके आलिंगन में आ गई और अपनी दोनों जांघों को सरयू सिंह की कमर में लपेट लिया। सरयू सिंह की दोनों हथेलियों ने कजरी को नितंबों से पकड़ा हुआ था।

उनका लंड कभी कजरी की गांड पर कभी चूत पर छू रहा था। वह लगातार उसे चुम्मे जा रहे थे। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही कजरी की चिपचिपी चूत पर महसूस किया उन्होंने कजरी के चूतड़ों को दिया हुआ अपनी हथेलियों का सहारा हटा दिया।
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कजरी अपने भार को नियंत्रित न कर पायी और नीचे आती गई। सरयू सिंह का मूसल अपनी ओखली में प्रवेश कर गया था। सुगना की सांसे तेज चल रही थी उसे अपनी जांघों के बीच की कुछ अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी। चूचियों में मरोड़ हो रही थी।

वाह अपनी साड़ी के ऊपर से ही उसे छूने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह अब उसकी सासू मां को कस कर चोद रहे थे वह उन दोनों की चुदाई और न देख पायी और भागते हुए अपने कमरे में आ गयी।

वह अपनी किस्मत को कोस रही थी जिसने उसकी जवानी बर्बाद कर दी थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने कजरी को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी दोनों जाँघे फैलाकर उसे गचागच चोदने लगे। चारपाई के चर चर आवाज सुनाई दे रही थी। पर वह दोनों बेशर्मों की तरह चुदाई में लिप्त थे उस समय उन दोनों को अपनी बहू का ख्याल नहीं आया जिसे वो ब्याह कर तो ले आया था पर उसे उसकी किस्मत के भरोसे छोड़ दिया था।

उधर सुगना का कलेजा मुंह को आ रहा था पर कुवारी चूत बह रही थी। उसने अपना एक पैर चारपाई के नीचे कर लिया और चारपाई के बास को अपनी दोनों जाँघों के बीच ले लिया। बॉस पर रस्सियों की लिपटन ने उसे खुदरा बना दिया था।
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सुगना की चूत और उस बॉस के बीच सिर्फ उसका पेटीकोट और साड़ी थी। उसने अपनी चूत को उस बास पर रगड़ना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों में उसकी जांघें तनने लगीं। सुगना अपनी ससुराल में आज पहली बार स्खलित हुई थी। वह हाफ रही थी। पर आज पहली बार उसके चेहरे पर सुकून और कुछ खुशी दिखाई दे रही थी। नियति मुस्कुरा रही थी ……

सुगना की होली हैप्पी होली हो चुकी थी।


शेष अगले भाग में
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#7
Heart 
भाग-6

सरयू सिंह को पंखा झलते झलते सुगना के कोमल हाथ दुखने लगे थे सरयू सिंह भी अपने सोच में डूबे खाना खाए जा रहे थे अचानक सुगना ने कहा

"बाऊजी का सोचा तानी"

"कुछु ना, तोहरा गवना के बाद के पहिलकी होली याद आ गईल रहे"

सुगना शर्म से लाल हो गई उसे इतनी शर्म तो तब भी नहीं आई थी जब वह कुछ देर पहले अपने ससुर से चूँची मीसवाकर दूध निकलवा रही थी।

सरयू सिंह थाली में हाथ धो रहे थे। सुगना ने अब और देर ना की उसने घुंघट और नीचे कर लिया था वह थाली लेकर आंगन में चली गई। बाहर हरिया की आवाज आ रही थी

"भैया घर ही रहब की चलब खेत ओरे"

"तू जा हम थाकल बानी"

सरयू सिंह सुगना का कोमल खेत अभी-अभी जोत कर ही उठे थे वह पूरी तरह थके हुए थे। ऊपर से सुगना के हाथों मीठा भोजन कर वह नींद की आगोश में चले गए पर उनके दिमाग से सुगना छायी हुयी थी। वह फिर सुगना की पहली होली की यादों में डूब गए।

जब परिवार खुशहाल रहता है तो वयस्क पुरुषों और महिलाओं में कामुकता स्वयं जन्म लेती है। सुगना के चेहरे पर उस दिन चमक थी। होली का दिन था ही उसे सुबह सुबह खुशियां मिल चुकी थीं। वह उठकर तैयार हुई भगवान को गुलाल चढ़ाने के पश्चात उसने सासू मां के पैर छुए और हाथ में अबीर लिए पहली बार सरयू सिंह के पास आयी।

उसने सरयू सिंह के भी पैर छुए। उसकी कोमल और गोरी बाहें सरयू सिंह की निगाहों में आ गयीं। बहु के कोमल उंगलियों के स्पर्श अपने पैरों पर महसूस करते वह भाव विभोर हो गए। आज कई दिनों बाद सुगना उनके करीब आई थी और उनके पैर छूये थे।

उन्होंने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया.. "हमेशा खुश रहा, दूधो नहाओ पूतो फलो. भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे"

उन्होनें आदर्श ससुर की तरह आशीर्वाद दे तो दिया पर उन्हें तुरंत ही वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। उन्होंने अपनी नजरें झुका कर फिर कहा

"हो सके तो हमरा के माफ कर दिहा"

सरयू सिंह ने आखरी वाक्य कहकर सुगना की दुखती रग पर हाथ रख दिया. वह कुछ बोल नहीं पाई पर उसे एक बार फिर उसके दिल में दर्द का एहसास हुआ। वह वहां से चली गई । सुगना ने उनके करीब आकर अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। सरयू सिंह को भगवान ने होली का उपहार सुगना की खुशी के रूप में दे दिया था।

सरयू सिंह सुगना से दिल से प्यार करते थे उस समय उनके मन मे वासना कतई नहीं थी। वह कल रात ही उसकी पसंद की मिठाई और कपड़े ले आए थे। उन्हें पता था सुगना उसे स्वीकार नहीं करेगी पर आज सुगना ने उनके चरण छुए थे उन्हें कुछ उम्मीद जगी थी। वह भागकर कजरी के पास गए और लाए हुए उपहार लेकर सुगना को पुकारा। सुगना चहकती हुई बाहर आ गयी।

"सुगना बेटा इ ला होली में तोहरा खातिर ले आइल बानी" सुगना ने हाथ बढ़ाकर सहर्ष उपहार स्वीकार कर लिया। सरयू सिंह बहुत खुश थे। सुगना अपनी पसंद की मिठाई और कपडे देखकर खुश हो गई। सरयू सिंह द्वारा लाई गई लहंगा चोली बेहद खूबसूरत थी। सुगना ने एक बार फिर सरयू सिंह के पैर छुए और बोली

"बाबूजी, हमरा के माफ कर द" सरयू सिंह की छाती चौड़ी हो गई उन्होंने कहा

"सुगना बाबू, बहू और बेटी एक जैसन होवेले, हम तोहरा के हमेशा खुश राखब। जौन तू चहबू उहे ई घर मे होई. हमार गलती के माफ कर दिह"

सुगना स्वतः ही सरयू सिंह से सटती चली गई। उसके कंधे सरयू सिंह के सीने से सट गई पर उसने अपनी चुची सरयू सिंह से दूर ही रखी। वह परिस्थितिजन्य बाबूजी थे यह बात वह जानती थी और अब से कुछ देर पहले कि वह उनका अद्भुत और कामुक रूप देख चुकी थी।

होली के 2 दिनों बाद हरिया की बड़ी बेटी लाली का गवना था। पड़ोस में त्यौहार जैसा माहौल था। सुनना के उजड़े जीवन में यह खुशी का मौका था। वह सज सवरकर नई बहू की तरह हरिया के घर जाती और लाली के गवना की तैयारी में मदद करती। लाली भी बेहद सुंदर थी पर सुगना तो सुगना थी।

गांव की सभी महिलाएं सुगना को छेड़ती। वह उनके सामने शर्माती पर अंदर ही अंदर दुखी हो जाति। उसके मन की वेदना बाहर वाले क्या समझते . इतनी खूबसूरत और जवानी से भरपूर सुगना की जांघों के बीच उसकी कोमल और रिस रही चूत मायूस पड़ी हुयीं अपने उद्धारकर्ता की तलाश कर रही थी।

सुगना की कद काठी देखकर आस-पड़ोस के लड़के जो रिश्ते में उसके देवर थे उसके आसपास मंडराते जरूर थे, वे अपनी आंखें भी सेंकते पर उसके करीब जा पाने की हिम्मत किसी में नहीं थी आखिर सरयू सिंह का साया सुगना के सर पर था वो उनके घर की बहू थी।

गाँव के बाहर पशु मेला लगा हुआ था। सरयू सिंह ने वहां से एक सुंदर सी बछिया खरीद लाई उनकी गाय अब बूढ़ी हो चली थी।

सुगना बछिया देखकर खुश हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में चमक देख कर बड़े प्यार से कहा

"सुगना बेटा ई तहरे खातिर आइल बिया"

बछिया बहुत सुंदर थी. वह कुछ ही दिनों में बच्चा जनने योग्य हो जाती. बछिया और सुगना की दोस्ती हो चली थी. दालान में बाँधी हुई बछिया के पास जब सुगना जाती बछिया खुश हो जाती। सुगना अपने हाथों से उसे घास और चारा खिलाती और वह बछिया खुशी-खुशी मुह बा कर चारा सुगना के कोमल हाथों ले लेती। सुगना खुशी से उछलने लगती।

कजरी और सरयू सिंह दालान में बैठे हुए यह दृश्य देखकर मन ही मन प्रसन्न होते।

आज से कुछ दिनों पहले तक सुगना के चेहरे पर जो उदासी छाई थी अब वह दूर हो रही थी। सरयू और कजरी दोनों इस खुशी के माहौल में आराम से चुदाई करते। पर एक कसक अभी भी थी। आखिर सुगना का होगा क्या? क्या वह ऐसे ही अविवाहिताओं की तरह पूरा जीवन बिता देगी। रतन क्या उसे अपनाएगा? या हमें सुगना का दूसरा विवाह करना चाहिए?

यह बात सरयू सिंह बोल तो गए थे पर उन्हें पता था गांव के परिवेश में यह संभव नहीं था। सरयू सिंह का मन बेचैन हो उठा था अपनी यादों में हुई इस बेचैनी की वजह से उनकी नींद खुल गई और वह उठ कर बैठ गए।


पुरानी यादों से दूर आज उनका दिन बहुत अच्छा गया था। अपनी प्यारी बहू सुगना की चूत चोदने के बाद आज नींद भी अच्छी आई थी। आंगन से हँसने खिलखिलाने की आवाज आ रही थी। कजरी और सुगना का हंस हंस कर बात करना यह साबित कर रहा था कि सूरज के दूध न पीने की समस्या का अंत हो चुका है।

सुगना स्वयं भी अपनी चूची से दूध निकालने में महारत हासिल कर चुकी थी और उसकी मदद के लिए सरयू सिंह सदैव एक पैर पर तैयार थे।

बच्चे को जन्म देने के बाद सुगना को तेल की मसाज देने के लिए एक नाउन आया करती थी। वह सुगना के पूरे शरीर की तेलमालिश करती और उसके शरीर का कसाव वापस लाने का प्रयास करती। उसका विशेष ध्यान चूचियों, पेट ,पेड़ू और जाँघों तथा उनके जोड़ पर नियति द्वारा बनाई गई अद्भुत कलाकृति पर रहता जो बच्चे के जन्म से सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी।

उस दिन वह नाउन नही आई थी। कजरी पर आज दोहरा भार आ गया था छोटे बच्चे सूरज को तो वह हमेशा से तेल लगाती थी पर आज उसे कजरी को भी तेल लगाना था।

कजरी सुगना को बहुत प्यार करती थी। सुगना उसकी बहू थी पर वह दोनों कभी सास बहू की तरह रहती कभी मां बेटी की तरह और कभी एक दूसरे की सहेली की तरह. वह दोनों एक दूसरे को समझने लगी थीं । सरयू सिंह को लेकर इन दोनों में कोई मतभेद या जलन नहीं थी अपितु वह दोनों एक दूसरे को सरयू सिंह के करीब आने का ज्यादा से ज्यादा मौका देतीं।

अपनी मालिश करने के बाद छोटा सूरज सो गया। कजरी बड़ी कटोरी में तेल दोबारा गर्म कर कर ले आई। सुगना ने अपनी साड़ी उतार दी थी। अब वह पेटीकोट और ब्लाउज में बेहद सुंदर दिखाई पढ़ रही थी.
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कजरी की निगाहों ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा. नाउन की मेहनत से सुगना का बदन वापस पहले जैसा हो गया था पर बच्चा जनने के बाद उसकी जांघें और चूचियां गदरा गई थी। कोमल बछिया अब गाय बन चुकी थी। पेट का हिस्सा भी पिचक गया था पर बच्चा जनने के बाद और पहले का अंतर अभी भी थोड़ा नजर आ रहा था। नियति ने पेट पर पतली लकीरों के रूप में अपना निशान छोड़ दिया था जो सुगना को हमेशा मां होने का एहसास दिलाता रहता.

सुगना की ब्लाउज और पेटीकोट अपेक्षाकृत नए थे। कजरी ने कहा

"बाबू सुगना एहू के उतार द नया बा नु तेल लाग जाई" कजरी ने सुगना के ब्लाउज और पेटीकोट की तरफ इशारा किया। सुगना हिचकिचा रही थी। पर उसकी आंखें कजरी से मिलने के बाद उसने बिना तर्क किए अपनी पीठ कजरी की तरफ कर दी। कजरी की उंगलियां उसके ब्लाउज के हुक से खेलने लगी और इसी दौरान सुगना का पेटीकोट जमीन पर आ गया निश्चय ही यह सुगना की उंगलियों का ही कमाल था। सुगना का मादक जिस्म कजरी की निगाहों के ठीक सामने था। कजरी ने सुगना को इसके पहले सिर्फ एक बार ही पूरा नंगा देखा था। उसने सुगना को माथे पर चूम लिया और कहा..

"कुंवर जी के हाथ लगला से हमार बहू, रानी के नियन लाग तारी। भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे" सुगना के प्रति सरयू सिंह की आसक्ति का कारण अब कजरी जान चुकी थी। सुगना सच बेहद खूबसूरत लग रही थी सीने पर बड़ी-बड़ी तनी हुयी चूचियां और गदराई हुई जांघों के जोड़ पर हल्के हल्के बाल और उसके पीछे झांक रही उसकी प्यारी बुर…. ओह…. कजरी सुगना की खूबसूरती में खो गई थी।

कजरी अपने बेटे रतन को कोस रही थी। जिसके भाग्य में इतनी सुंदर कली भगवान ने दी थी पर वह उसकी कदर न कर पाया था…..

कजरी ने सुगना को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ को सहलाते हुए उसने सुगना के कान में कहा..

"अब हम जान गईनी तोहर बाबूजी दिन भर काहें तोहरा आगे पीछे घुमेले" इतना कहकर कजरी में सुगना के कोमल नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया सुगना ने कजरी के गालों को चुम लिया और बोली

"सब आपेके कइल धइल हा"

कजरी ने सुगना को चौकी पर लेट जाने का इशारा किया सुगना पेट के बल लेट गई और कजरी ने मालिश शुरू कर दी।
पैरों और पीठ की मालिश करने के बाद कजरी उसके कोमल नितंबों की मालिश करने लगी। वह अपने दोनों हाथों से सुगना के चूतड़ों को फैलाती और छोड़ देती वह दोनों वापस अपनी जगह पर आते पर कुछ देर तक हिलते रहते। कजरी ने कटोरी का गर्म तेल सुगना की दोनों चूतड़ों के बीच डाल दिया जो बीच की दरार से होता है सुगना की गदरायी गांड तक पहुंच गया। उसकी कोमल चमड़ी पर उस गर्म तेल के स्पर्श से सुगना चिहुँक उठी। उसने कहा

" माँ पोछ ढेर गरम बा"

कजरी ने अपनी उंगलियों से उसे पोछने की कोशिश की पर आज वह शरारत के मूड में थी उसने सुगना की गांड में अपनी तर्जनी उंगली कुछ ज्यादा ही अंदर तक कर दी तेल लगे होने की वजह से तर्जनी का ऊपरी भाग सुगना की गांड में घुस गया वह ज्यादा अंदर तक तो नहीं गया पर निश्चय ही मांसल भाग के आखिरी किनारे तक पहुंच गया था। इसके पश्चात जाना कजरी की उंगलियों को गंदा कर सकता था। कजरी की सधी हुई उंगलियां अपनी मर्यादा में रहते हुए वापस आ गयीं पर उसकी इस क्रिया ने सुगना के मन में एक अजीब सी संवेदना पैदा कर दी। उंगलियां हटने के बाद भी ऊपर से आता हुआ तेल सुगना की गांड के अंदर जाने का प्रयास करने लगा एक बार फिर कजरी ने अपनी उंगलियां कुछ दूर अंदर तक ले जाकर उसे पोछने का प्रयास किया पर यह क्रिया तेल पोछने की कम सुगना को उत्तेजित करने की ज्यादा लग रही थी। कजरी की उंगलियों ने सुगना की गांड का फूलना पिचकना महसूस कर लिया था। सुगना की सांसे अब तेज चल रही थीं।

वह कुछ बोल नहीं रही थी पर उसकी सासू मां कजरी अपनी बहू को जानती थी। एक बार फिर कटोरी का गर्म तेल सुगना के चूतड़ों पर गिर रहा था कुछ देर सुगना की गांड को सहलाने के बाद कजरी की उंगलियां स्वता ही नीचे चली गई सुगना की बुर से रिस आया मदन रस कजरी की उंगलियों में चासनी की भांति लग गया। कजरी ने अपने अंगूठे और तर्जनी से सुगना के प्रेम रस की सांद्रता को नापना चाहा। दोनों उंगलियों के बीच सुगना का प्रेम रस चासनी की बात सटा हुआ था उसका चिपचिपा पन निश्चय ही कुंवर जी के लंड को अपने भीतर समाहित करने के लिए आवश्यक था। कजरी मन ही मन उत्तेजित हो रही थी उसने कहा.

"लागा ता तू अपना बाबूजी के याद कर तारू" सुगना शर्मा गई उसने अपनी गांड को पूरी तरह से सिकोड़ लिया और जांघों को आपस में सटा लिया एक पल के लिए कजरी की उंगलियां उन कोमल दरारों के फसी गई।

सुगना अब पीठ के बल आ चुकी थी। सुगना की गोरी और मखमली चूत अब कजरी के ठीक सामने थी और प्रेम रस से पूरी तरह भीग कर चमक रही थी।
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जिस तरह गुलाब की पंखुड़ियों पर ओस की बूंदे दिखाई पड़ती है उसी तरह सुगना की चूत के होंठो पर पर प्रेम रस की छोटी-छोटी बूंदे दिखाई पड़ रही थी। दिए रूपी बुर के निचले भाग से मदन रस चूने को तैयार था। उत्तेजनावश बुर की फांके फुल कर अलग हो गई थी और छोटे बालक सूरज का जन्म स्थान दिखाई पड़ने लगा था।

सुगना के उस सुनहरे छेद को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था की उसने कुछ दिनों पहले उसी छेद से एक बच्चे को जन्म दिया हुआ था। आज सुगना की वही चूत कजरी की उंगली के लिए भी दबाव बनाये हुए थी।

सुगना के लिए अब अपनी उत्तेजना छुप पाना कठिन हो रहा था। कजरी की हथेलियां अब सुगना की जांघों की मसाज कर रही थी। जैसे ही उसकी उंगलियां सुगना की चूत से सटती सुगना की सांसे तेज हो जाती। वह कजरी के हाथ पकड़ने की कोशिश करती। कजरी अब मूड में आ चुकी थी। उसने उसकी नाभि के आसपास भी तेल लगाया और अब सीधा उसकी चुचियों पर आ गई।

हाथों से उसकी चुचियों को मीसते हुए उसने सुगना से पूछा

"अब दूध त भरपूर होला ना?"

" हां मां"

" तब बाप बेटा बेटा दोनों पियत होइहें?"

"सुगना मुस्कुरा रही थी"

उसने फिर पूछा

"अच्छा के ढेर पीयेला"

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी उसने अपने हाथ से सरयू सिंह का लंड बनाने की कोशिश की. अपनी दाहिने हाथ की हथेलियों को मुट्ठी का रूप दिया और बाएं हाथ की हथेली से अपनी कोहनी के ऊपर का भाग पकड़ लिया और कजरी को दिखाते हुए कहा

" इहे ढेर पीएले …राउर.. कुँवर जी"

कजरी भी हंस पड़ी तभी सरयू सिंह की आवाज आई…

"अरे उ मुखिया के यहां जाए के रहे नु. जा ना तुही परसादी लेले आव।"

"हम रहुआ बाबू के तेल लगाव तानी"

सुगना आश्चर्य से कजरी की तरफ देख रही थी कजरी ने सुगना को बाबू कह कर पुकारा था।

सरयू सिंह ने कहा

"तू चल जा बाबू के तेल हम लगा देब ओसहूं हम नहाए जा तानी"

"ठीक बा हम जा तानी।. जल्दी आयी ना त राउर बाबू के ठंडा मार दी कपड़ा नइखे पहिनले।


इतना कहकर कजरी ने सोते हुए सूरज को अपनी गोद में उठाया और पड़ोस में मुखिया के घर प्रसाद लेने चली गई। सुगना मुस्कुरा रही थी उसकी सासू मां कजरी ने मन ही मन कुछ और सोच रखा था जो अब सुगना को तो समझ आ चुका था । सुगना ने अपने ऊपर चादर डाल ली और अपने बाबूजी का इंतजार करने लगी…
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#8
Heart 
भाग-7

Chapter 7

चौकी पर लेटी हुई नंगी सुगना की सांसे तेज चल रहीं थीं। कजरी ने उसके शरीर की मालिश करते हुए उसे उत्तेजित कर दिया था। बस अंदरूनी मालिश बच गई थी जो सरयू सिंह के अद्भुत और मजबूत लंड से ही होनी थी. सुगना अपनी कोमल बुर में प्रेम रस भरे हुए अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…

अपनी उत्तेजना को कायम रखने के लिए अपनी कोमल बुर को सहलाते हुए अपनी पुरानी यादों मे खो गयी….

सरयू सिंह द्वारा लाई गई बछिया के साथ खेलते खेलते सुगना अपने दर्द भूल गयी थी। उसका दिन बछिया के सहारे बीत जाता और रात को वह कजरी और सरयू सिंह का मिलन याद कर उत्तेजित हो जाती और अपनी बूर को चारपाई के बांस पर रगड़ कर वह स्खलित हो जाती।

पर जब भी वह सरयू सिंह के जादुई लंड को याद करती वह सिहर उठती। जैसे जैसे वो उत्तेजित होती वह लंड उसे अपने बेहद करीब महसूस होता। कभी वह अपने ख्यालों में उसे छूती कभी अपने कूल्हों और जाँघों से सटा हुआ महसूस करती। सुगना उस समय एक अधखिली कली की तरह थी जो शासकीय तौर पर जवान हो चुकी थी पर इतनी भी नही के सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और कामुक मर्द की उत्तेजना झेल सके।
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वह सरयू सिंह के लंड के बारे में सोच कर अपनी बुर की प्यास तो वो मिटा लेती पर मन ही मन खुद को कोसती. वो आखिर उसकी पिता के उम्र के थे.

यह गलत है….. यह गलत है….. उसकी अंतरात्मा चीख चीख कर यह बात उसको समझाती पर उसकी चूत की मनोदशा ठीक उलट थी जो इन सब रिश्तों से दूर अब चुदने के लिए बेचैन हो रही थी।

एक दिन सुगना और कजरी दालान में बैठकर मटर छील रही थीं। सरयू सिंह अपनी गाय को नहला रहे थे। बाल्टी और मग्गे से उन्होंने गाय के पूरे शरीर को धोया वो एक साबुन की बट्टी भी ले आये थे। गर्म धूप में गाय को वह स्नान अच्छा लग रहा था। बछिया भी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी।

सुगना उत्साहित थी जैसे ही गाय का नहाना खत्म हुआ उसने कहा

"बाबूजी हमरो बछिया के"

सरयू सिंह हंसने लगे और एक बाल्टी पानी लेकर वापस उस बछिया के पास आ गए। सुगना खुश हो गई। वह उस बछिया को धोने लगे। अचानक उनके हाथ बछिया के पेट पर चले गए वह उसके पेट की सफाई करते करते उस बछिया के स्तनों को भी साफ करने लगे। सुगना सिहर उठी। घूंघट के अंदर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया।

वह सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों को उस बछिया की चूचियों को धुलते देखकर स्वयं गनगना गई थी। उसे एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के हाथ उसकी ही चूचियों पर हैं। वाह भाव विभोर होकर वह दृश्य देख रही थी।

कजरी ने कहा "बेटी जल्दी-जल्दी छील" सुगना की उंगलियां फिर चलने लगी पर उसकी कजरारी आंखें अभी भी सरयू सिंह की हथेलियों पर थीं। सरयू सिंह ने बछिया के स्तनों पर लगे छोटे-छोटे कीड़ों को हटाना शुरू किया। ( गांव में अक्सर मवेशियों के स्तनों में छोटे-छोटे कीड़े चिपक जाते हैं) सरयू सिंह अपने हाथों से वह निकालने लगे बीच-बीच में वह बछिया के स्तनों को सहला देते। उसकी चूचियों पर हाथ पढ़ते ही सुगना से बर्दाश्त ना होता उसे अब उसे अपनी जांघों के बीच गजब गीलापन महसूस हो रहा था।

बछिया को धोते समय सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा ताकि वह उसकी प्रतिक्रिया देख सकें पर सुगना ने शर्म से अपना सर झुका लिया।

कजरी की उपस्थिति में वह अपनी बुर को छू भी नहीं सकती थी और न ही अपनी चूचियों को सहला सकती थी। वह उत्तेजना से भर चुकी थी और जल्द से जल्द वहां से हटना चाहती थी। उसने कजरी से अनुमति मांगी और भागकर गुसलखाने में चली गई।

जब वह मूतने के लिए नीचे बैठी, उसकी बुर से रिस रही चिपचिपी लार जमीन पर छू गयी।
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सुगना की उंगलियां अपनी बुर के दाने पर चली गयीं। उत्तेजना में मूत पाना उसके लिए संभव नहीं हो रहा था।

उसने अपने दाने को मसलना शुरू किया। सुगना की जाँघें तन गयीं। वह कभी अपनी जांघों को आपस में सटाती कभी दूर करती, कभी अपने कोमल नितंबों को ऊपर करती। वह तड़प रही थी उसकी कुवांरी चूत पानी छोड़ने लगी उत्तेजना धीमी पड़ते ही मूत्र की तेज धार भी बाहर आ गई। सुगना तृप्त हो गई थी। आज उसकी कामुकता में एक नया अनुभव जुड़ गया था।

सुगना के कोमल मन में सरयू सिंह की छवि धीरे-धीरे बदल रही थी। वह उनके प्रति आकर्षित हो रही थी। उसे भी यह बात पता थी कि सरयू सिंह उसके पिता तुल्य थे और ससुर थे। पर वह एक बलिष्ठ और दमदार मर्द थे इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता था। सुगना को वह पसंद आने लगे थे। पर क्या वह अपने शरीर को उन्हें छूने देगी? जब वह सोचती वह शर्म से पानी पानी हो जाती पर जब एक बार उसके मन में यह विचार आ गया तो वह इस बारे में बार-बार सोचने लगी. जितना ही वह सोचती उतना ही वह उनके प्रति आसक्त होती. यह अद्भुत अनुभव था।

अपने ससुर को अपनी कल्पना में रख उसने कई बार अपनी चूत को सहलाया और मन ही मन उनके उस विशालकाय लंड को छूने और अपनी चूत पर रगड़ने के लिए खुद को तैयार किया। उसे अपनी चूत के अंदर ले पाना अभी भी उसकी कल्पना से परे था। सरयू सिंह का मूसल खलबट्टे के लायक था और सुगना की चूत अभी अदरख कूटने वाली ओखली के जैसे छोटी थी। इन सब के बावजूद सुगना अपनी कल्पनाओं में धीरे-धीरे सरयू सिंह के नजदीक आ रही थी।

सुगना को इस घर मे आये कई दिन बीत चुके थे पर सरयू सिंह अब तक सुगना का चेहरा नहीं देख पाए थे। घूंघट होने की वजह से चेहरा देखना संभव नहीं था न ही उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास किया था । वैसे भी सरयू सिंह के मन में उस समय तक सुगना के प्रति कोई कामुक भावनाएं नहीं थी। वह अपनी आत्मग्लानि से उबर रहे थे और सुगना को भरसक खुश करने का प्रयास कर रहे थे।

समय तेजी से बीत रहा था।उधर नियति उन्हें करीब लाने की साजिश रच रही थी। उस दिन बड़ी वाली गाय रंभा रही थी। उसकी योनि से चिकना द्रव्य बह रहा था। कजरी और सरयू सिंह बाहर टहल रहे थे। कजरी ने कहा

"लागा ता टाइम हो गइल बा जाइं ना भुवरा के बोल दी सांडवा के लेले आयी।" भूवरा पास के गांव का ही एक व्यक्ति था जिसने एक बलशाली सांड पाला हुआ था वही आसपास की सभी गायों को गर्भवती करने के काम आता था।

शाम तक भूवरा सांड लेकर दरवाजे पर आ चुका था। कजरी, सरयू सिंह और हरिया बाहर ही थे बाहर की गहमागहमी देखकर सुगना भी अपनी कोठरी से खिड़की खोल कर बाहर के दृश्य देखने लगी।

सांड निश्चय ही बेहद बलिष्ठ और मजबूत था। कुछ ही देर में सांड को गाय के पास लाया गया। बगल में बछिया भी टुकुर टुकुर देख रही थी। उसकी जवानी फूटने में ज्यादा वक्त नहीं था बस कुछ ही दिनों की बात थी ।

वह सांड बार-बार बछिया की तरफ ही आकर्षित हो रहा था। हरिया और सरयू सिंह उसे खींचकर गाय की तरफ लाते पर वह अपनी ताकत से वापस बछिया की तरफ चला जाता। सांड बार बार अपना चेहरा बछिया के पिछले भाग की तरफ ले जाता और उसे सूंघने का प्रयास करता।

कजरी यह देख कर मुस्कुरा रही थी। वह शर्माकर वहां से हट गई और दालान में आकर बैठ गयी। उधर कोठरी के अंदर सुगना सिहर रही थी। वह यह दृश्य अपने बचपन मे भी देख चुकी थी पर आज अलग बात थी। आज वह बलिष्ठ सांड उसकी बछिया के साथ मिलन का प्रयास कर रहा था। सुगना की खुद की चूत संभोग के लिए आतुर थी। उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया था। उसकी कल्पना में सांड की जगह सरयू सिंह दिखाई पड़ने लगे और उस गाय की जगह उसकी अपनी सास कजरी।

सुगना अपनी सोच पर मुस्कुराई पर उसकी मुस्कुराहट पर उसकी उत्तेजना भारी थी। वह सांसे रोक कर यह दृश्य देख रही थी पर उसकी धड़कन तेज थी। उसने अपनी जाँघे आपस में सटाई हुई थी जैसे वह अपनी चूत से बह रहे मदन रस को वही रोके रखना चाहती हो।

सरयू सिंह सांड को खींच कर गाय की तरफ ले जाते पर वह बार-बार बछिया के पीछे जा रहा था और उछलकर उस पर चढ़ने का प्रयास करता। हरिया के कहा

"सार, इनको के नइकी माल चाहीं"

सरयू सिंह मुस्कुरा दिये। उधर सुगना अपनी जाँघों के बीच बहते मदन रस को अपने पेटीकोट से पोछ रही थी। उसे यह तो पता था की जानवरों में भी संभोग उसी प्रकार होता है जैसा मनुष्यों में पर क्या भावनाएं भी उसी प्रकार होंगी। क्या बाउजी भी उसके बारे में ऐसा सोचते होंगे?

उसे अपनी सोच पर शर्म आयी पर चूत तो विद्रोही हो चुकी थी। वह इस सोच पर सिहरने लगी। सुगना अपनी कोमल हथेलियों से अपनी बुर को मुट्ठी में भरकर अपनी उत्तेजना को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

हरिया ने बछिया को वहां से हटा दिया। सांड के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था। वह कुछ देर इधर-उधर देखता रहा और फिर गाय के ऊपर चढ़ गया। सुगना एक पल के लिए उस सांड के लिंग को देख पायी। सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह एक बार फिर कजरी को ही चोद रहे थे सुगना और उसकी बछिया को को शायद अभी और इंतजार करना था….

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परन्तु आज सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था सरयू सिंह के कदमों की आहट सुगना सुन पा रही थी। जैसे-जैसे उनके कदम करीब आ रहे थे सुगना की सांसे रुक रही थी पर उसकी कोमल चूत मुस्कुराने लगी थी

दरअसल सरयू सिंह नहाने ही जा रहे थे तब तक उन्हें मुखिया के घर हो रही पूजा का ध्यान आ गया था। वह अपनी लंगोट उतार चुके थे कजरी के कहने पर वह अपने सूरज बाबू को तेल लगाने के लिए उन्हीने वापस अपनी कमर में धोती लपेटी और सुगना के रूम में प्रवेश कर गए। चौकी पर सुगना लेटी हुई थी और चारपाई खाली थी छोटा बाबू हमेशा चारपाई पर ही सोता था उन्होंने पुकारा….

"सुगना बेटा…."

सुगना ने कोई उत्तर नहीं दिया.

"सुगना बेटा…." इस बार आवाज और भी मीठी थी पर सुगना ने फिर भी कोई उत्तर न दिया परंतु उसके होठों पर मुस्कान आ चुकी थी।

वो सुगना की चादर धीरे-धीरे खींचने लगे। जैसे-जैसे चादर हटती गयी सुगना का तेल से भीगा हुआ कोमल और सुंदर शरीर सरयू सिंह की निगाहों के सामने आता गया एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह खजुराहो की किसी मूर्ति का अनावरण कर रहे हों।

अपनी नग्न चूत का एहसास जब सुगना को हुआ उसने अपनी जाँघे एक दूसरे पर चढ़ा लीं और अपनी अध खुली आंखों से अपने बाबू जी को देखने लगी। उन आखों ने आज सरयू सिंह की धोती को उठते हुए देख लिया। धोती के अंदर छुपी हुई अनुपम कलाकृति अपना आकार बड़ा रही थी।

अपनी जान से प्यारी बहू को इस अवस्था में देखकर सरयू सिंह अपनी उत्तेजना को काबू में ना रख पाए और लंगोट न पहने होने की वजह से उनका लंड खुलकर सामने आ गया.

सरयू सिंह सुगना की आंखों में वासना देख चुके थे उनकी खुद की आंखें अब लाल हो चुकी थी सूरज कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा था। सुगना को इस हाल में देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न था। वह खुशी को काबू में नहीं रख पा रहे थे फिर भी उन्होंने सुगना से पूछा

"भवजी कहत रहली बाबू के तेल लगावे के, कहां बा? लाव लगा दी."

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी. उसने इतराते हुए कहा

"उ का तेल धइल बा लगा दीं?"

"लेकिन बाबू कहां बा?"

"हम राउर बाबू ना हईं? सासू मां हमरे के तेल लगावत रहली हा रउआ उनका के भेज देनी हां. उ सूरज के लेके पूजा में चल गइली"

सुगना ने यह बात बड़ी मासूमियत से कह दी पर उसकी मासूमियत ने सरयू सिंह के लंड को उछलने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था वह चौकी पर आ गए। धोती जाने कब उनके शरीर से अलग हो चुकी थी।

पास पड़ी हुई तेल की कटोरी में रखा हुआ तेल अब ठंडा हो चुका था उन्होंने सुगना से पूछा

"बाबू तेलवा गर्म कर दीं?"

"जइसन राउर मन" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा। शरीर सिंह तेल की कटोरी लेकर रसोई घर की तरफ गए अपनी खुशी में वह इतने उत्तेजित हो गए थे धोती पहनना भूल गए। सुगना चलते समय उनके हिलते हुए लंड को देख रही थी। वह मन ही मन मुस्कुरा रही थी। वह यह बात जानती थी कि उसे नंगा देखने के पश्चात सरयू सिंह के शरीर का सारा लहूं उनके लंड में समा जाता था और दिमाग सुस्त हो जाता था. कुछ ही देर में सरयू सिंह गर्म तेल लेकर सुगना के पास आ चुके थे।

वह अपने विशाल मर्दाना शरीर को लेकर चौकी पर पालथी मारकर पद्मासन में बैठ गए और पदमा की पुत्री सुगना को अपनी गोद में आने का न्योता दे दिया। उनका खड़ा लंड ऊपर की ओर मुह करके अपनी प्यारी बुर इंतजार कर रहा था।

सुगना के पास आते ही उन्होंने सुगना को अपनी गोद में बैठा लिया ठीक उसी तरह जैसे होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाया हुआ था पर यहां परिस्थितियां उल्टी थीं सरयू सिंह के विशाल शरीर के बीच में छोटी सुगना भी उनकी गोद मे पालथी मारकर बैठ चुकी थी। सुगना ने बड़ी ही खूबसूरती से सरयू सिंह के काले और मजबूत लंड को अपनी दोनों गोरी जांघों के बीच से बाहर निकाल लिया था। सरयू सिंह ने सुगना का वजन अपनी जांघों पर लिया हुआ था।

सरयू सिंह ने पास पड़ी कटोरी से तेल अपनी हथेलियों में लिया और सुगना की पेट पर मलने लगे। सुगना की नाभि को तेल से सराबोर कर उन्होंने अपनी उंगली से उसे गुदगुदाया एक पल के लिए उन्हें नाभि का वह छेद सुगना की कोमल गांड के जैसा महसूस हुआ। जाने सरजू सिंह के लंड में इतनी संवेदना कहां कहां से आती थी वह उस सोच से तुरंत ही उछल गया जिसका एहसास सुगना और उसकी चूत को बखूबी हुआ जो खड़े लंड से सटी हुई थी।

उनकी एक हथेली ऊपर की तरफ बढ़ती गई और दूसरी नीचे की तरफ। सरयू सिंह की दाहिनी हथेली ने सुगना की चूची को पकड़ लिया पर अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चली थी। सरयू सिंह को उसे अपनी हथेलियों में भरने में मशक्कत करनी पड़ रही थी। वह अपनी उंगलियों से उसे काबू में करने की कोशिश करते पर वह छलक कर दूसरी तरफ निकल जाती। कजरी द्वारा चुचीयों पर लगाया हुआ तेल उनकी परेशानी और बढ़ा रहा था। सुगना मुस्कुरा रही थी। सरयू सिंह उसका चेहरा नहीं देख पा रहे थे पर वह सुगना के शरीर की सिहरन को महसूस जरूर कर पा रहे थे। उनकी बायीं हथेली अब सुगना की जांघों के बीच में उसकी बूर को छूने का प्रयास कर रही थी। सुगना अपनी जांघों को सिकोड नहीं पा रही थी पर अपनी बुर को स्वयं अपनी हथेलियों से और अपने बाबूजी के लंड के सहारे ढकी हुई थी। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल हाथों को हटाने का प्रयास कर रही थीं पर सुगना अभी अपने बाबू जी को वह सुख नहीं देना चाह रही थी।

सरयू सिंह ने जिद नहीं की और वह उसकी जांघों का मसाज करने लगे। कुछ देर जाँघों से खेलने के बाद उन्होंने अपने दोनों हाथ सुगना की चूचियों पर ले आये। अपने दोनों हाथों के प्रयोग से उन्होंने सुगना की चुचियों पर काबू पा लिया और वह प्यार से मीसने लगे

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सुगना की मादकता भरी कराह सुनायी दे गयी।

"बाबूजी तनि धीरे से…...दुखाता" उसकी बात खत्म होने से पहले ही चुचियों से धार फूट पड़ी।
खुशियों से निकली हुई दूध की धार जांघों पर गिर रही थी सरयू सिंह ने सुगना का दूध बर्बाद करना उचित नहीं समझा उन्होंने चुचियों को मीसना छोड़ उन्हें सहलाना शुरु कर दिया।

इधर सुगना के हाथ अपनी चूत को छोड़ सरयू सिंह के लंड पर आ गए। वह उसकी जांघों के बीच से निकल कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। हाथों में लगा हुआ तेल और सुगना की बुर से रिसा हुआ चिपचिपा प्रेम रस दोनों का प्रयोग कर सुगना ने लंड के सुपारे को मसल दिया। जितनी कोमलता से उसके बाबूजी उसकी चूचियां सहला रहे थे उसी कोमलता से सुगना उनके लंड को सहलाने लगी।

सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। उन्होंने एक बार फिर ना चाहते हुए भी सुगना की चूचियां मसल दीं। सुगना जैसे-जैसे उनके लंड को सहलाये जा रही थी वो मदहोश हुए जा रहे थे। वह सुगना को लगातार गर्दन और कानों पर चूमे जा रहे थे। उनकी धड़कन तेज हो चुकी थीं। सुगना स्वयं भी पूरी तरह चुदने के लिए तैयार थी।

अचानक सुगना ने उनकी गोद से उठकर अपनी अवस्था बदल ली। अब वह अपने बाबूजी की तरफ चेहरा करके एक बार फिर वापस गोद में बैठ गयी। उसने अपने दोनों घुटने सरयू सिंह की कमर के दोनो तरफ कर लिए। नीचे बैठते समय एक पल के लिए उसे लगा कि लंड सीधा उसके बुर में प्रवेश कर जाएगा पर उसने अपने हाथों का प्रयोग कर लंड को अपने और अपने बाबूजी के पेट के बीच में व्यवस्थित कर दिया और उनकी मजबूत जांघों पर बैठ गई।

उसकी चूचियां अब सरयू सिंह के सीने में समा जाने को आतुर थीं सरयू सिंह उसे अपने आलिंगन में ले चुके थे और अपनी तरफ तेजी से खींचे हुए थे। सुगना की चुची बड़ी पावरोटी की तरह हो गई थी। पर निप्पल सरयू सिंह के सीने में अपनी उपस्थिति और प्रतिरोध दोनों दर्ज करा रहे थे।

ससुर और बहू की आंखें मिलते ही दोनों ने एक दूसरे की मनोदशा पढ़ ली। होंठ स्वतः ही मिलते चले गए। अब शर्म की गुंजाइश न थी। सरयू सिंह की बड़ी हथेलियां सुगना के चूतड़ों को सहलाने लगीं। वह उनसे सुगना को सहारा भी दिए हुए थे।

सरयू सिंह की मूछें सुगना के कोमल होठों में चुभ रही थीं। वह ज्यादा देर तक उन्हें न चूम पाई पर उसने बाबूजी को खुश करने की ठान ली थी वह बोली

"लायीं, आपोके तेल लगा दीं"

बिना उत्तर का इंतजार किए शुगना ने कटोरी से ढेर सारा तेरे हाथों में लिया और अपने बाबूजी की पीठ पर मलने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी विशाल प्रदेश पर छोटी-छोटी हथेलियां घूम रही हों। जैसे-जैसे वो उनकी पीठ पर अपनी हथेलियां फिराती उसे सरयू सिंह की दमदार मर्दानगी का एहसास होता। वह उनके बलिष्ठ शरीर की कायल शुरू से रही थी और आज अपने कोमल हाथों से उनकी मालिश कर वह भाव विभोर हो गयी। वह अपने दोनों घुटनों का सहारा लेकर थोड़ा ऊपर उठ गयी और अपने सिर को उनके कंधे के पीछे ले जाकर उनकी पीठ को मालिश करने लगी।

इस दौरान उसकी एक चुचीं सरयू सिंह के होंठों के ठीक सामने थी। उन्होंने बिना देर किए उसे मुह में ले लिया और चूसने लगे
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उसके गोल और कोमल चूतड़ ऊपर उठ गए थे। सुगना की फूली और रिस रही चूत सरयू सिंह की नाभि तक आ चुकी थी। सरयू सिंह का लंड कभी उससे छू जाता कभी उससे दूर हो जाता। सरयू सिंह ने एक बार फिर अपनी हथेलियां तेल में डूबा लीं और सुगना बाबू के चूतड़ों को सहलाने लगे। उनकी उंगलियों ने सुगना की दरार में अपनी पसंदीदा जगह खोज ली तेल में डूबे होने की वजह से वो सुगना की गांड में उतनी ही दूर तक सफर कर पाई जितना रास्ता उसकी सास कजरी ने बनाया था। तेल की मात्रा अभी भी सुगना की गांड के अंदरूनी भाग पर उपलब्ध था। सरयू सिंह की मोटी तर्जनी सुगना की गांड के छेद को सहला रही थी। सुगना अपनी गांड को कभी सिकोडती कभी फैलाती वह आनंद में डूब चुकी थी उत्तेजना चरम पर थी। सरयू सिंह आज खुद आश्चर्यचकित थे। आज सुगना ने उनकी उंगलियों को हट जाने का न तो इशारा किया था न हीं अपनी तिरछी निगाहों से आपत्ति दर्ज की थी।

सरयू सिंह का लंड ससुर बहू के उत्तेजक क्रियाकलापों से परेशान हो चुका था उसे तो सिर्फ सुगना के बुर की रजाई ओढ़ कर उछल कूद करनी थी पर उसकी बारी आ ही नहीं रही थी। वह उछल उछल कर सुगना के बुर को चूमने का प्रयास जरूर कर रहा था

कहते हैं उत्तेजना में शरीर के अंग दिमाग का साथ न देकर कामुक अंगो का ही साथ देते हैं। सुगना की गांड से खेलते खेलते सरयू सिंह की उंगलियां कुछ ज्यादा अंदर तक प्रवेश कर गयीं। सुगना चिहुँक गयी और बोली

" बाबूजी तनी धीरे से ……….दुखाता"

सुगना अनियंत्रित हो गई और उसने वापस उनकी गोद में बैठने का प्रयास किया पर सुगना से एक गलती हो गई वो लंड को अपने और अपने बाबूजी के पेट में के बीच करना भूल गई। जैसे ही वह उनकी गोद में बैठी लंड गप्पपप्पप्प से उसकी बुर के अंदर प्रवेश कर गया। जब तक वह संभल पाती तब तक आधे से ज्यादा लंड भीतर हो चुका था। जब तक सुगना आगे की गतिविधि के बारे में सोचती सरयू सिंह में उसे और नीचे खींच लिया। लंड सुगना के गर्भाशय से टकरा रहा था पर फिर भी अभी गुंजाइश बाकी थी।

सरयू सिंह जब अपनी जांघें ऊपर उठाते सुगना ऊपर की तरफ आती और लंड बाहर निकल आता पर उसका मुखड़ा चुत से सटा रहता और जैसे ही वह अपनी जाँघे फैलाते सुगना नीचे आती और लंड गप्पपपप से एक बार फिर सुगना की गर्भाशय को चूमने लगता। सरयू सिंह का लंड अब खुश हो गया था उसका खेल चालू हो गया था सुगना की चूत भी मुस्कुरा रही थी।

सरयू सिंह अभी भी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे थे उनकी उंगलियां अभी भी सुगना की गांड से खेल रही थी पर अब सुगना को कोई आपत्ति नहीं थी वह उस का आनंद ले रही थी उसी दौरान सुगना की निगाह अपने बाबू जी से टकरा गयी उनकी उंगली सुगना की गांड में फंसी हुई थी सुगना ने उनके होंठ चूम लिये जैसे वह उनकी इस गतिविधि को सहर्ष स्वीकार कर रही हो सरयू सिंह खुश हो गए। सुगना के इशारे पर वह चौकी पर पीठ के बल लेट गए।

सुगना अभी भी उनके लंड पर बैठी हुई थी उनके पैर सीधे हो गए अब प्रेमरथ को खींचने की सारी जिम्मेदारी सुगना के ऊपर आ चुकी थी। वह अपनी कमर को तेजी से हिलाने लगी। उसकी चूचियां सरयू सिंह की आंखों के ठीक सामने थीं। जिन सूचियों को शरीर सिंह ने अपने हाथों से बड़ा किया था वह चलकर उन्हें ललचा रही थी। सरयू सिंह इतनी मादक अवस्था में सुगना को देखकर अपना होश खो बैठे उन्होंने अपनी गर्दन उठाई और सुगना की दाहिनी चूँची को लेकर लगभग पीने लगे। दूध की धार फूट पड़ी पर वह लगातार उसे पीते रहे।
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सुगना भी इतनी उत्तेजना बर्दाश्त न कर पायी उसकी चूत कांपने लगी। उसके चेहरे पर तरह-तरह के भाव आ रहे थे तभी वह अपने होठों को दांतों से काटती कभी आंखें बड़ी कर लेती कभी सिकोड लेती... सरयू सिंह ने उसी अवस्था में उसकी कमर पर अपनी हथेलियां रखते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगे। सुगना की थरथराहट और बढ़ती गई बाबूजी……. बाबूजी…….आ……..ईईईई………..बा…..बु……..अअअअअअअ…... हहहहहह…..सुगना मादक कराह निकालते हुए वह स्खलित हो गयी। ससुर जी ने अभी भी अपनी रफ्तार कम न की और अपने लंड को उसके गर्भाशय के मुख तक पहुचा कर अपनी वीर्य धारा छोड़ दी।

सुगना अपने अंदर हो रही इस वर्षा को महसूस किया लंड का फूलना पिचकना उसकी बुर बड़े अच्छे से समझने लगी थी। सुगना अपने बाबुजी के पेट पर लेटी हुई एक छोटे बच्चे की भांति प्रतीत हो रही थी सरयू सिंह प्यार से कभी उसकी पीठ सहलाते कभी नितम्ब।

बाहर से कजरी के आने की आवाज आई कजरी ने आंगन से ही आवाज दी थी

"लगा लेनी अपना सुगना बाबू के तेल" सरयू सिंह शरमा गए और सुगना भी। सुगना उनके शरीर से उठकर जमीन पर खड़ी होने लगी। सरयू सिंह ने आनन-फानन में अपनी धोती पहनी और बोले

"हां हां लगा देनी तोहरा बतावे के रहे हम ही पूजा में चल जईति"

कजरी मुस्कुरा रही थी उसने अपने कुँवर जी को फिर छेड़ा

"चारों ओर लगा देनी है नु बहरी भीतरी"

सरयू सिंह ने कोई जवाब न दिया वह अपनी कजरी भाभी की छेड़खानी समझ रहे थे. उन्होंने धोती पहन ली और हैंड पंप के पास आकर नहाने की तैयारी करने लगे। कजरी ने सूरज को सुगना के हवाले किया और सरयू सिंह को नहलाने के लिए हैंडपंप से बाल्टी में पानी निकालने लगी।

सुगना बेहद खुश थी। और वह अपनी कोठरी से अपने बाबूजी को नहाते हुए देखने लगी और मंद मंद मुस्कुराने लगी। उसके जीवन में अब खुशियां ही खुशियां थीं

सुगना सरयू सिंह के मन में छुपी कामुक इच्छाओं को भलीभांति जानती थी और समय के साथ उसे पूरा करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ भी थी……. फिलहाल वो अपने बाबूजी के बलिष्ठ शरीर को नंगा देखकर उस सांड को याद करने लगी...

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#9
Heart 
भाग-8




सुगना ने जब से सांड को बछिया की तरफ आकर्षित होते हुए देखा था तब से ही वह यह बात सोचती कि क्या संभोग के लिए उम्र का कोई अंतर नहीं है? वह सांड जब गाय और बछिया दोनों को चोदने की सोच सकता है तो क्या बाबूजी के मन में भी ख्याल आता होगा? जितना ही वह सोचती उतना ही उत्तेजित होती। वैसे भी सरयू सिंह सुगना के ससुर नहीं थे । हां एक रिश्ता जरूर बन गया था जो उनके और कजरी के बीच बने नाजायज रिश्ते की वजह से था।

सुगना ने अपने बाबूजी का मन टटोलने का फैसला कर लिया। वह अपनी बछिया की तरह नंगी तो नही घूम सकती थी पर उसने मन ही मन कुछ सोच लिया था।

सरयू सिंह और कजरी सुगना की मनोदशा से अनभिज्ञ थे। वह अभी भी उन्हें मासूम सी दिखाई पड़ती जिसके साथ उन्होंने न चाहते हुए भी अन्याय कर दिया था। अभी भी उन्हें ऊपर वाले पर भरोसा था पर सुगना अब और इंतजार करने की इच्छुक नहीं थी।

सुबह-सुबह आंगन में लगे हैंडपंप पर उकड़ू बैठ कर सुगना बर्तन धो रही थी सरयू सिंह दालान से आंगन में आ गए। सुगना ने अपनी सास कजरी का ब्लाउज पहना हुआ था जो उसकी मझोली चूचियों पर फिट नहीं आ रहा था। ब्लाउज थोड़ा नीचे लटका हुआ था और चुचियों का उभार साफ साफ दिखाई पड़ रहा था। काम करने की वजह से उसने अपने पल्लू पर ध्यान न दिया। वह उसके चेहरे को तो ढक रहा था पर चूचियों का ऊपरी भाग खुली हवा में सांस ले रहा था। ब्लाउज सुगना के निप्पलों का सहारा लेकर लटका हुआ प्रतीत हो रहा था।
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सरयू सिंह सुगना की चुचियों को देख कर अवाक रह गए। वह गोरी गोरी चूचियों के आकर्षण में खोए हुए कुछ देर तक उसी अवस्था में खड़े रहे। एक पल के लिए वह यह भूल गए कि वह अपनी मासूम बहू सुगना की चूँची पर ध्यान गड़ाए हुए हैं। सुगना उनकी कामुक दृष्टि को अपनी चुचियों पर महसूस जरूर कर रही थी। उसे घूंघट का फायदा मिल रहा था वो सरयू सिंह की निगाहों को पढ़ रही थी।

सुगना ने अनजान बनते हुए कहा

" बाबूजी कुछु चाहीं का?"

" ना बेटा एक लोटा पानी दे द दतुअन कर लीं" उन्होंने बेटा कह कर अपनी कामुक निगाहों के पाप को धोने की कोशिश की। पर उनके मन मस्तिष्क पर बहु की चुचीं का रंग चढ़ चुका था। आज उन्होंने जो देखा था उसने उन्हें हिला दिया था वह वापस दालान में आ गए और अपने तनाव में आ रहे लंड को ध्यान भटका कर शांत करने की कोशिश की। यह पाप है….. यह पाप है उन्होंने मन ही अपने दिमाग को समझाया और वापस अपने कार्य में लग गए.

सुगना बर्तन धो कर गिलास में दूध लेकर सरयू सिंह के पास आयी। उसने सरयू सिंह को दोहरा झटका दे दिया। उसका घूंघट उठा हुआ था.
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सुगना का बेहद सुंदर चेहरा, कोमल गुलाबी होंठ और कजरारी आंखें सब कुछ एक साथ …… बेहद खूबसूरत … सरयू सिंह सुगना की खूबसूरती में खो गए। सुगना ने घूंघट जरूर लिया था पर उसने सिर्फ अपने माथे को ढका हुआ था। सरयू सिंह उसे एकटक देखते रह गए। वह अपनी मां पदमा की प्रतिमूर्ति थी। सरयू सिंह एक बार फिर जड़ हो गए।

"बाउजी दूध ले लीं" सुगना की मधुर आवाज ने उनकी तंद्रा तोड़ी। सरयू सिंह ने कांपते हाथों से दूध ले जिया। आज सरयू सिंह जैसे मजबूत और बलिष्ठ आदमी के हाँथ अपनी सुंदर बहु के हांथों दूध लेने में कांप रहे थे। यह कंपन निश्चय ही उनके मन मे आयी गलत भावना की वजह से था।

सरयू सिंह का अंतर्मन हिला हुआ था। वह खुद को समझा भी नहीं पा रहे थे। वह पद्मा को याद करते हुए दूध पीने लगे।

पदमा सरयू सिंह के जीवन में आई दूसरी महिला थी सरयू सिंह उस समय अपनी जवानी के चरम पर थे 25 - 26 वर्ष की आयु कसरती शरीर चेहरे पर चमक और अपनी कजरी भाभी से मिले नारी शरीर का अनुभव और कामकला के ज्ञान ने उन्हें एक आदर्श पुरुष की श्रेणी में ला दिया था। सफेद धोती कुर्ता और अंग वस्त्र में वह एकदम संभ्रांत पुरुष दिखाई पड़ते। ऊपर से पटवारी का पद वह पूर्णतयः वर योग्य पुरुष थे पर उन्होंने विवाह न किया था। वैसे भी उनकी शारीरिक जरूरतें कजरी से पूरी हो ही जा रही थी।

सरयू सिंह की ननिहाल बेलापुर में उनके मामा की लड़की की शादी थी। सरयू सिंह ने वहां जाने के लिए पूरी तैयारी की और सज धज कर बेलापुर के लिए निकल पड़े।

गांव लगभग 10- 15 किलोमीटर दूर था उन्होंने पैदल ही जाने का फैसला किया उन्हें साइकिल से चलना अच्छा नहीं लगता था. अपने लंबे लंबे कदमों से उन्होंने वह दूरी डेढ़ -दो घंटे में तय कर ली. वह बेलापुर गांव के तालाब के पास आ चुके थे. यह तालाब बेहद मनोरम था यूं कहिए तो वह बेलापुर की शान था. वहां पर दो अलग- अलग घाट थे एक महिलाओं के लिए और दूसरा पुरुषों के लिए। सौभाग्य की बात थी बेलापुर जाते समय महिलाओं वाला घाट रास्ते में ही पड़ता था।

सरयू सिंह की नारी शरीर से विशेष आसक्ति थी वह ना चाहते हुए भी एक बार तालाब में नहा रही महिलाओं को नजरें बचाकर देख लेते थे। छोटी बड़ी सब प्रकार की महिलाएं उनके नजरों से एक बार जरूर गुजरतीं। आज भी तालाब के करीब आते ही उनके दिल में हलचल होने लगी।

सुबह 9-10 बजे का वक्त था कई सारी जवान युवतियां और लड़कियां तालाब में नहा रहीं थी। सरयू सिंह ने अपनी निगाहों से तालाब में नहा रही जवानीयों को अपनी निगाहों में कैद करना चाहा। वह चलते-चलते बीच-बीच में एक झलक उन्हें जरूर देख लेते। धीरे धीरे उनके नैनसुख का वक्त खत्म हो रहा था तालाब का दूसरा किनारा करीब आ चुका था तभी कुछ लड़कियों के चिल्लाने की आवाज आई

"बचाव….बचाव…..उ डूब जाइ केहू बचा ले…"

ढेर सारी लड़कियों के चीखने की आवाज आ रही थी। सरयू सिंह के कदम रुक गए उन्होंने पीछे मुड़कर देखा सारी लड़कियां उन्हें ही पुकार रही थीं। वाह भागकर तालाब तक गए। उन्होंने कंधे में टंगा हुआ बैग और लाठी जमीन पर रखी और कुर्ता खोल कर तालाब में कूद पड़े। उन्होंने अपनी धोती नहीं खोली उन्हें उन लड़कियों के सामने इस तरह नंगा होना अच्छा नहीं लगा।

वह तालाब के अंदर तैरते हुए उस जगह तक पहुंच गए जहां एक लड़की पानी में अपनी जान बचाने के लिए हाथ पैर मार रही थी।
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वह कभी वह पानी के भीतर चली जाती, कभी उसका सर बाहर दिखाई पड़ता। सरयु सिंह उसके करीब पहुंच गए वह पदमा थी उन्होंने उसे अपनी मजबूत भुजाओं से पकड़ लिया। पद्मा अमरबेल की तरह उनसे लिपट गई। पर यह क्या पदमा ऊपर से पूरी तरह नग्न थी। उसकी चूचियां सरयू सिंह के कंधे पर थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से पदमा के नितंबों को सहारा दिया और बाये हाथ से पानी को हटाते हुए किनारे की तरफ आ गए।

उनके बलिष्ठ शरीर पर पदमा जैसी सुंदर और गोरी युवती का अर्धनग्न शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। यदि वहां पर कैमरा होता तो निश्चय ही किसी हिंदी फिल्म का सीन बन सकता था।

किनारे पर खड़ी सारी लड़कियां बेहद खुश थी सिर्फ एक लड़की डरी हुई खड़ी थी वह पदमा की सहेली थी।

दरअसल पदमा और उस लड़की ने तालाब के अंदर ही एक दूसरे से छेड़खानी शुरू कर दी थी उन्होंने अपने ब्लाउज उतार कर एक दूसरे की चूचियों का आकार नापना और खेलना शुरू कर दिया था। इसी दौरान पदमा का पैर फिसल गया था और वह गहरे पानी में चली गई थी। सभी लड़कियां उस बेचारी लड़की को कोस रहीं थीं।

सरयू सिंह किनारे पर आ चुके थे
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उन्होंने पदमा को जमीन पर लिटा दिया और वहां से हटकर अपना कुर्ता पहनने लगे। पदमा अभी भी बेसुध थी लड़कियों ने फिर चिल्लाया

"भैया ई सांस नइखे लेत तनि देखीं ना। ए पद्मा उठ …...उठ ना…"

सरयू सिंह एक बार फिर पदमा के पास आ गए वह पीठ के बल लेटी हुई थी एक पल के लिए वो उसकी पतली कमर और चौड़ा सीना तथा उस पर दो मझौली आकार की चुचियां ( जिन पर अब किसी लड़की का झीना लाल दुपट्टा पड़ा हुआ था ) देखकर वह उसकी खूबसूरती में खो गए।

पद्मा का मुख मंडल बेहद खूबसूरत पर शांत पड़ा हुआ था सरयू सिंह नीचे झुके उन्हें आज की आरपीआर तकनीकी आती थी उन्होंने पदमा के पेट को दबाया पानी की एक धार पदमा के मुंह से निकलकर बगलमें गिर पड़ी। यही क्रिया दो-तीन बार कर उन्होंने पदमा के पेट में जमा हो गया पानी बाहर निकाल दिया। पदमा अभी भी होश में नहीं थी उन्होंने अपने दोनों हाथ उसकी चुचियों के ठीक नीचे रखें और उसके सीने को दबाने लगे पदमा के कोमल होठों को खोल कर उन्होंने उसे मुंह से सांस देने की भी कोशिश की।

उनकी यह कोशिश रंग लाई और पदमा ने अपनी आंखें खोल दें उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ तो उसने अपनी दोनों गोरी बाहें अपनी चुचियों पर ले गयी।

सरयू सिंह खुश हो गए उनकी मेहनत रंग लाई थी। सारी लड़कियां खुशी से चहकने लगींऔर सरयू सिंह मुस्कुराते हुए वापस अपनी लाठी के पास आ गए।

वह तालाब से बाहर आ गए लड़कियां उन्हें लगातार देखे जा रही थीं उन्होंने हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया और अपने मामा के घर चल पड़े। उनके दिमाग में पदमा की सुंदर और कमनीय काया घूमने लगी विशेषकर मासूम सा कोमल चेहरा, उसका कटि प्रदेश और मदमस्त चूचियाँ।

सरयू सिंह पदमा को पहले से भी जानते थे। वह उनके मामा के ठीक बगल में अपने मां-बाप के साथ रहती थी। बचपन में भी जब वह मामा के घर आया करते दोपहर में सारे बच्चे एक साथ खेलते जिसमें एक पदमा भी थी। पर आज पदमा पूरी तरह जवान थी उसका विवाह कुछ समय पहले हुई हुआ था और गवना भी हो चुका था। शायद वह भी सरयू सिंह के मामा की लड़की की शादी में ही आई हुई थी। पदमा को यौन संभोग का सुख मिल चुका था।

सरयू सिंह जब भी अपने मामा के घर आंगन में जाते आसपास की लड़कियां और युवा औरतें उन्हें घेर लेतीं। ऐसा नहीं था कि वह सब की सब उनसे चुदने के लिए आतुर रहती थीं अपितु यह एक सामान्य प्रक्रिया होती। लड़कियां उनसे बातें करतीं। वैसे भी वह गांव के ऐसे व्यक्ति थे जो नौकरी कर रहे थे और प्रतिष्ठित भी थे। इस छोटी सी उम्र में जो उपलब्धियां उन्होंने हासिल की थी वह उन्हें उस उम्र के पुरुषों से अलग खड़ा करती थीं।

शाम को एक बार फिर सरयू सिंह अपने मामा के आंगन में चारपाई पर बैठे हुए थे और महिलाओं से गिरे हुए थे उन लड़कियों में पदमा भी थी।

एक लड़की ने कहा

"ए पदमा देख सरयू भैया आईल बाड़े जो तनि सेवा वेवा कर"

कुछ लड़कियों ने पदमा को ढकेल कर सरयू सिंह के सामने कर दिया। पदमा शर्मा रही थी। उसने एक सुंदर लहंगा और चोली पहना हुआ था। चोली के अंदर उसकी गोल गोल चूचियाँ झांक रही थी पर सरयू सिंह को वह बिना कपड़ों के ही दिखाई पड़ रही थी उनकी आंखों में सुबह की नग्न छवि कैद हो गयी थी।

सरयू सिंह ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर पदमा इतनी गहराई में कैसे चली गई थी पीछे से लड़कियों की खुश फुसाहट सुनाई पड़ी..

"जवानी फुटल बा नु चूँची लड़ावतली हा लोग"

पदमा एक बार फिर लड़कियों के पीछे छुप गयी।

पद्मा ने हिम्मत जुटाकर सरयू सिंह से कहा "चली हमरा घरे, अपना हाथ से हलवा खिलाईब" तभी उसकी सहेली ने कहा

"हां भैया जाइं बहुत बढ़िया हलवा बनावेले तनी हमरो के भेज दिहे"

सरयू सिंह हंसने लगे पर पद्मा ने कहा

"हम जा तानी घरे आइब जरूर"

इतना कहकर पदमा अपने घर की तरफ चली गई। सरयू सिंह कुछ देर तक अपनी मामी से बात करते रहे और फिर वापस घर के बाहर आकर पुरुष समाज में शामिल हो गए पर उनके दिमाग में अब भी पदमा घूम रही थी। कभी वस्त्रों में कभी बिना वस्त्रों के। वह पदमा की चुचियों की तुलना कजरी से तुलना कर रहे थे। निश्चय ही पदमा की चूचियां कजरी से ज्यादा खूबसूरत और तनी हुयीं थी। कजरी की चूचियां तो उन्होंने तब देखी थी जब वह मां बन चुकी थी।

सरयू सिंह के मामा उनका परिचय गांव के और लोगों से करा रहे थे उन्हें सरयू सिंह पर हमेशा से गर्व था।

पदमा शादीशुदा थी और यौन सुख भोग चुकी पर फिर भी आज जब सरयू सिंह उसे बचा रहे थे उसे उनके बलिष्ठ शरीर का अंदाजा हो गया था वह उनके प्रति आसक्त हो रही थी। नई-नई विवाहताओं में सम्भोग को लेकर बड़ी उत्तेजना होती है। मनपसंद पुरुष का संसर्ग पाकर उनकी चूत तुरंत चुदने के लिए आतुर हो जाती है बशर्ते उस पुरुष से उन्हें प्यार हो और चुदने में मानसिक ग्लानि और प्रतिरोध ना हो। पदमा के केस में दोनो ही बातें अनुकूल थीं। अभी कल ही वह अपने पति से शुरू कर आई थी परंतु आज फिर गरमा चुकी थी

वह सरयू सिंह से बचपन से ही प्रभावित थी पर आज तो उसके मन में सरयू सिंह के प्रति प्रेम आदर और समर्पण तीनों ही भाव चरम पर थे उसकी स्वयं की उत्तेजना भी जागृत थी। सात दिनों तक मायके में अकेले रहने के बाद उसकी नई नई चुदी हुई बुर अपना साथी खोज रही थी। पद्मा ने सरयू सिंह से चुदने का मन बना लिया वह हलवा बनाते हुए अपने सरयू भैया का इंतजार करने लगी।

सरयू सिंह के मन में भी पदमा के प्रति कामुकता जाग चुकी थी। आग और फूस दोनों तैयार खड़े थे। बस उन्हें करीब लाने की देर थी।


इधर सरयू सिंह के गिलास का दूध खत्म हो गया था। आखरी घूंट में जब उन्होंने हवा निगली तो वह अपनी सोच से बाहर आ गए और मन ही मन मुस्कुराने लगे।

पदमा और पदमा की पुत्री सुगना, उन दोनों ने उनकी यादों और वर्तमान पर कब्जा जमा लिया था। वह आंखें खोल कर सुगना को ढूंढने लगे। उन्होंने सुगना का नाम एक दो बार पुकारा उत्तर ना आने पर वह आंगन में चले गए। उन्होंने एक बार फिर कोमल स्वर में सुगना का नाम पुकारा तभी कोठरी के अंदर से सुगना की मधुर आवाज आई

" बाबूजी आवतानी तनिक कपड़ा बदल लीं"

एक पल के लिए सरयू सिंह ने अपने विचारों में सुगना को कपड़े बदलते हुए सोच लिया। एक अजीब सी सनसनी उनके लंड तक पहुँच गयी। अभी उनके दिमाग में पद्मा छायी हुयी थी। एक पल के लिए उन्हें लगा कि वह कोठरी की खिड़की से सुगना को देख लें पर अभी उनका जमीर इतना भी नहीं गिरा था। वह उनकी प्यारी बहू थी और अभी भी बेटी स्वरूप थी।

तभी दरवाजे पर आवाज आई

"सरयू भैया, सरयू भैया' सुधीरवा साला केस कईले बा।

"रुक आवतानी ओकर बेटी चोदो इतना हिम्मत भईल बा"

सरयू सिंह की मर्दाना आवाज गरज उठी जिसे अंदर कपड़े बदल रही सुगना ने सुन लिया। उसने सिर्फ अपने काम की बात ही सुना "बेटी चोद"। वह भी तो किसी की बेटी थी क्या सरयू सिंह उसे चोदने के बारे में सोच सकते हैं पेटीकोट का नाड़ा बांधते सुगना के हाथ कांप रहे थे उसकी कोमल बुर सुगना की मनोदशा पढ़ रही थी।

सुधीर पास के गांव का ही एक 30 32 वर्षीय लड़का था जिसने हाल ही में वकालत की पढ़ाई एन केन प्रकारेण पूरी की थी। सरयू सिंह से उसका विवाद जमीन को लेकर था। सरयू सिंह स्वयं पटवारी थे और वह वकील दोनों एक दूसरे को हमेशा कमजोर ही आंकते थे। कद काठी में सुधीर सरयू सिंह से निश्चय ही कमजोर था पर वकालत पड़े होने की वजह से वह कागजी कार्यवाही में उनसे आगे था।

खेत विवाद का उचित समाधान न मिलने की वजह से उसने शहर में केस कर दिया था। सरयू सिंह उसकी इस हरकत से आगबबूला थे और घर के बाहर आकर अपने साथी के साथ मिलकर आगे की रणनीति बनाने लगे।

सारा दिन उस केस की बारीकियां समझने में भी बीत गया। सूरज ढल रहा था। जब वह घर पहुंचे वो पूरी तरह थके हुए थे। कजरी ने थाली में पानी लेकर उनके पैर धोए। तब तक सुगना हलवा बनाकर ले आयी। यह हलवा खाते उन्हें पद्मा का वह आमंत्रण याद आ गया जब पद्मा ने उन्हें अपने घर हलुआ खाने के लिए बुलाया था…


वह पद्मा के साथ बितायी उस कामुक शाम की यादों में खो गए…
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#10
Heart 
भाग-9




अपनी बहू सुगना (पदमा पुत्री) के हाथों बना मुलायम हलवा खाते खाते सरयू सिंह फिर पदमा की यादों में खो गए।

 मामा के आँगन में बैठे हुए सरयू सिंह को पद्मा ने अपने घर हलवा खाने का निमंत्रण दे दिया था वह मन ही मन पदमा के नजदीक आने की सोचने लगे।

वैसे भी अपने मामा के आंगन में इतनी देर तक लड़कियों और औरतों के बीच में बैठकर सरयू सिंह अब बोर हो चले थे ऊपर से पद्मा ने अपने घर हलवा खाने बुलाकर एक उम्मीद जगा दी थी वह घर से बाहर आकर दालान में मर्दो के बीच बैठ गए पर उनके दिलो-दिमाग में पदमा की गोरी चूचियां ही छाई रहीं ।

शाम हो चली थी चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ रही थी सरयू सिंह अपने मामा के घर के सामने टहल रहे थे। वह कभी-कभी टहलते हुए पदमा के घर के तरफ भी आ जाते अचानक अपने घर के बाहर पदमा खड़ी हुई दिखाई पड़ी सरयू सिंह से नजर मिलते ही उसने उन्हें अंदर आने का इशारा किया सरयू सिंह धीरे धीरे पदमा के घर की तरफ बढ़ चले
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आगन के दरवाजे को खोलकर सरयू सिंह पदमा के आंगन में आ चुके थे उन्होंने पदमा की मां के चरण छुए और पास पड़ी चारपाई पर बैठ गए। पदमा अपनी मां को आज सुबह तालाब में हुआ वाकिया बताने लगी पदमा की मां बेहद खुश थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार भी। उन्होंने कहा

"बबुआ तू पदमा के बचा लेला हा तू सच में हमनी खातिर भगवान हवा"

सरयू सिंह अपनी तारीफ सुनकर फूले नहीं समा रहे थे. पद्मा भागकर हलवा ले आई सरयू सिंह अपनी उंगलियों से हलवा खाने लगे तभी भागती हुई एक छोटी सी लड़की आई और बोली

"चाची चला सबकेहु तोहरा के बुलावत बा" सरयू सिंह के मामा के यहां विवाह से संबंधित कोई कार्यक्रम था जिसके लिए वह लड़की पदमा की मां को बुलाने आई थी। पदमा की मां धीरे-धीरे उठ कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह के मामा के घर जाने लगीं। उन्होंने पदमा से कहा

"तू ताला बंद करके आ जाइह"

अपनी मां के जाने के बाद पदमा और चंचल हो गयी उसने सरयू सिंह से

"पूछा हलवा मुलायम बानू"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उन्होंने पदमा को छेड़ दिया

"ताहरा से कम बा"

पदमा शर्म से लाल हो गई. उसने कहा

"रउआ कइसे मालूम"

" सबरे के बात भुला गइलू"

"ओह त रहुआ हमरा के ओ घरी छुवत रहनी हां"

अब बारी सरयू सिंह की थी उनकी कटोरी में हलवा खत्म हो चुका था उन्होंने कहा "पदमा सच में तू बहुत सुंदर बाड़ू हम इतना सुंदर लईकी पहली बार देख ले रहनी हा"

"का"

"तहरा जइसन लईकी"

"साँच साँच बताई हमारा के देखत रहनी की हमार ……" उसने अपनी निगाह अपनी चुचियों की तरफ कर दी थी।

सरयू सिंह ने कहा

"तू और तहर ई दोनो बहुत सुंदर बा"

पद्मा शर्म से लाल हो गयी। वह हलवा की कटोरी उठाने के लिए झुकी और एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहें उसकी चूची ऊपर चली गयीं। उन्होंने कहा

"देखा केतना सुंदर बा"

पदमा को उसकी खुद की चुचियां झाकतीं हुई दिखाई दे गई। वह शर्म से अपने गाल लाल किए हुए सरयू सिंह के सामने खड़ी हो गयी। सरयू सिंह ने अंतिम दांव खेल दिया

" ए पदमा, एक बार फेर दिखा द ना"

" हेने आयीं"

पद्मा ने सरयू सिंह को आंगन के कोने में बुलाया और इधर उधर देख कर अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया। लाल रंग की ब्लाउज से पद्मा की दोनों चूचियां आजाद होकर सरयू सिंह के सामने हिल रही थीं और उन्हें खुला आमंत्रण दे रही थीं। पदमा की निगाहें झुकी हुई थीं वह अपने दोनों हाथ से ब्लाउज को पकड़े हुए थी।
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सरयू सिंह ने बिना कुछ कहे उसे अपने आलिंगन में ले लिया। पदमा की नंगी चूचियां उनके सीने से छूने लगीं। पदमा के हाथ नीचे आ गए वह सावधान मुद्रा में खड़ी थी पर सरयु सिंह ने आगे बढ़कर उसके गालों को चूम लिया। पदमा शांत थी पर सरयू सिंह ने कोई ढिलाई नहीं बरती वह उसके होठों को चूमने लगे। पदमा अपनी जगह पर कसमसा रही थी पर उनका सहयोग नहीं कर रही थी। वह मन ही मन इस हो रही घटना पर विचार कर रही थी क्या यह ठीक है? वह अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर सरयू सिंह की हथेलियां उसकी चुचियों का आकार नापने लगीं। जब सरयू सिंह की उंगलियों ने उसकी चुचियों के निप्पल को दबाया तब पदमा अपनी सोच से बाहर आयी। उसका मन और तन अब पूरी तरह मिलन के लिए तैयार था। उसकी हथेलियां सरयू सिंह की पीठ पर आ चुकी थीं। दोनों एक दूसरे में समा जाने के लिए तत्पर थे। पदमा की नई-नई चुदी हुयी बुर अपने होठों पर प्रेम रस लेकर अपने नए साथी का इंतजार कर रही थी।

सरयू सिंह के हाथ उसके नितंबों को छूने के लिए जैसे ही नीचे बढ़े एक बच्चे के आने की आहट सुनाई थी। पद्मा ने झट से अपना ब्लाउज नीचे कर लिया और सरयू सिंह से दूर हट गई। सरयू सिंह की धोती में खड़ा लंड उसने महसूस कर लिया था। आग लग चुकी थी बस उसमें पदमा और सरयू सिंह का जलना बाकी रह गया था...


सरयू सिंह के प्रति नियति शुरू से मेहरबान थी। वह अविवाहित जरूर थे पर नियति ने उन्हें उनकी कजरी भाभी से मिला दिया था जो उनका एक पत्नी की भांति ख्याल रखती थी। आज उन्हें एक और स्त्री के नजदीक आने का मौका मिल रहा था जो उनकी सुंदरता की पराकाष्ठा पर पूरी तरह खरी उतर रही थी। पदमा निश्चय ही कजरी से ज्यादा खूबसूरत और सुंदर और जवान थी।

अगले दिन सरयू सिंह के मामा की लड़की का तिलक जाना था। गांव के अधिकतर पुरुष उस तिलक में शामिल होने थे उन्हें लड़के वालों के घर जाना था।

सरयू सिंह को भी उस तिलक में जाना था पर आज सवेरे से ही उनके पेट में दर्द था। निकलने का वक्त हो चला था पर सरयु सिंह अपने पेट दर्द से परेशान थे।आखिरकार उनके मामा ने कहा

"जाए द तू एहिजे रहा" वैसे भी कुछ मर्दों को घर में रहना भी जरूरी होता था. सरयू सिंह अपने घर में रुक गए। पदमा के घर में उसकी मां और पिता ही रहते थे। पदमा का कोई भाई नहीं था। पड़ोसी होने की वजह से पदमा के पिता भी तिलक में शामिल होने चले गए। पदमा के घर और उनके मामा के घर में सिर्फ सरयू सिंह और उनके मामा का छोटा लड़का ही दो मर्द बचे थे बाकी सभी महिलाएं थीं।

शाम होते होते यह तय होने लगा की क्या आज बाहर सोना जरूरी है? सरयू सिंह की मामी ने कहा

"अरे दोनों जन भीतरे सुत रहा "

दरअसल सरयू सिंह के मामा के यहां तो विवाह में आए कई महिलाएं थीं परंतु पदमा के यहां पदमा और उसकी मा ही थीं। अंततः यह फैसला हुआ कि सरयू सिंह पदमा की दालान में सो जाएंगे और उनके मामा का लड़का घर में ही सो जाएगा। यह बात उचित भी थी और सभी को स्वीकार्य भी। सरयू सिंह मन ही मन खुश हो गए उधर पद्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ चुकी थी कुछ धमाल होने वाला था। नियति की साजिश कामयाब हो रही थी।

खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह जब पद्मा के घर पहुंचे बाहर दालान में चारपाई पर मुलायम बिस्तर लगा हुआ था। उनके लिए विशेष रूप से नई चादर बिछाई गई थी। हल्की ठंड होने की वजह से ओढ़ने के लिए एक सुंदर लिहाफ भी रखा हुआ था जिसे अभी-अभी दीवान से निकाला गया लगता था। उसमें कुछ अजीब सी खुशबू आ रही थी।

पदमा उनका इंतजार ही कर रही थी। लालटेन की रोशनी में दोनों की नजरें मिलते ही आंखों ही आंखों में सारा कार्यक्रम तय हो गया। फिर भी सरयू सिंह ने पदमा को छेड़ ही दिया

"अकेले ही सुते के बा नु"

पदमा शर्मा गई और बोली

"थोड़ा देर अकेले ही सुत लीं"

यह कहकर वह अंदर चली गई उसकी मां की खासने की आवाज बाहर तक आ रही थी.

सरयू सिंह अपनी चारपाई पर लेटे हुए पदमा का ही इंतजार कर रहे थे। धोती के अंदर सरयू सिंह का लंड उन दोनों की बातचीत सुन चुका था और वह भी पदमा का इंतजार कर रहा था। सरयू सिंह के हाथों ने उसके इंतजार को और कठिन बना दिया था. वो उसे सहलाये जा रहे थे। वह पूरी उत्तेजना में तना हुआ अपनी बुर रूपी रजाई का इंतजार करने लगा जिसके अंदर वह हमेशा खुशहाल और मगन रहता था।

पदमा के कदमों की आहट सुनते सरयू सिंह सतर्क हो गए. पदमा अपने हाथ में दिया लिए हुए दालान में आ चुकी थी। दीए की रोशनी में उसका चेहरा दमक रहा था। उसने अपनी नजरें झुकायी हुई थीं। सरयू सिंह के करीब आते ही उसने अपने हाथ से दिया बुझा दिया और उसे जमीन पर रख दिया। काली अंधियारी रात में अब वह सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रही थी। वह चुपचाप आकर सरयू सिंह के बगल में लेट गई।

सरयू सिंह ने करवट लेकर उसके लिए जगह बना दी। पदमा की पीठ सरयू सिंह के सीने से हट गई थी। बातचीत करने का समय खत्म हो चुका था। सरयू सिंह ने अपना बायां हाथ पदमा के सिर के नीचे से ले जाकर उसके सर को सहारा दे दिया और इस सहारे के एवज में उसकी दाईं चूची पर अपना कब्जा जमा लिया।

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा पद्मा ने ब्लाउज नहीं पहना था। उसकी नंगी चूँची पर हाथ फेर कर सरयू सिंह आनंद में खो गये। वह पदमा के प्रति कृतज्ञ थे जिसने ब्लाउज न पहनकर उनकी परेशानी कम कर दी थी अन्यथा इस अंधेरी रात में ब्लाउज के हुक खोलना समय बर्बाद करने जैसा ही था। अपनी चूँची के सहलाने पर पद्मा ने कोई आपत्ति न की अपितु अपनी बढ़ती हुई धड़कनों से अपनी रजामंदी अवश्य जाहिर कर दी। सरयू सिंह की दाहिनी हथेली ने बायीं चुची पर अपना कब्जा जमा लिया। वह अपनी दोनों हथेलियों से पदमा की दोनों चूचियों को सहलाने लगे और उसके गर्दन और कानों पर लगातार चुंबन करने लगे।

पदमा के रोएं खड़े हो गए। वह सिहर उठी। सरयू सिंह का मर्दाना स्पर्श बिल्कुल अलग था। वह उसके पति की तुलना में ज्यादा सख्त और मजबूत था। पदमा आनंद में डूबने लगी। सरयू सिंह ने अपनी बाई हथेली को चुचियों की सेवा में छोड़कर दाहिनी हथेली को नीचे ले आए पद्मा की बुर कब से उसका इंतजार कर रही थी। नितंबों को छु पाना अभी कठिन हो रहा था। सरयू सिंह के मजबूत हाथ सुगना के पेट और नाभि को सहलाते हुए नीचे आने लगे। पदमा के पेटीकोट में उनके हाथों को नीचे जाने से रोक लिया। वह पदमा को पूरी तरह नग्न करने के इच्छुक नहीं थे। बाहर दालान में यह खतरनाक हो सकता था। उन्होंने पेटीकोट से अपनी रंजिस खत्म कर दी और अपने हाथों को पदमा की जांघों पर लेकर चले गए। वह जांघों को सहलाते सहलाते उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ खींचने लगे।

कुछ ही देर में साड़ी और पेटीकोट पदमा के पेट तक आ चुके थे और पदमा के पेट के चारों तरफ एक घेरा बनाकर इकट्ठा हो गए। यह निश्चय ही पदमा को आरामदायक नहीं लग रहा होगा पर यह मजबूरी थी वैसे भी पदमा इतनी उत्तेजित थी कि उसे इन कपड़ों का आभास भी नहीं हो रहा था।

पदमा के कोमल नितम्ब और जाँघे पूरी तरह नग्न थीं सरयू सिंह की हथेलियां जांघों से होते हुए उसके जोड़ तक पहुंच गयीं।

घुंघराले घास के बीच से बहता हुआ चिपचिपा पानी का झरना उनकी उंगलियों से छू गया। वह पदमा की मादक बुर थी। पदमा की कोमल बुर को छूते ही पद्मा ने अपनी दोनों जाँघेंऊपर की तरफ उठायीं जैसे वह सरयू सिंह से हाथों को रोकना चाहती हो।

सरयू सिंह ने जैसे ही अपनी उंगलियां हटाई पद्मा ने अपनी जाँघे फिर फिर खोल दीं। उंगलियों और पदमा की कोमल बुर् का यह मेलजोल कुछ देर यूँ ही चलता रहा
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इधर लंड धोती सरका कर बाहर आ चुका था। सरयू सिंह ने अपनी कमर जैसे ही पदमा से सटाई उनका लंड पदमा की जांघों से टकराने लगा। पद्मा ने सरयू सिंह के अद्भुत लंड का आकार और तनाव महसूस कर लिया। उसकी सिहरन बढ़ गई। वह उसे छूने के लिए अपने हाथ उस पर ले गई पर वह अपनी हथेलियों से उसे पूरा न पकड़ पायी। पदमा की धड़कनें तेज थी सरयू सिंह की उंगलियां पदमा की बुर से प्रेम रस चुरा रही थीं जिसे वह उसकी बुर पर फैला रहे थे तथा उसकी गाड़ को भी सहला रहे थे। उन्हें गांड का छेद सहलाना बेहद उत्तेजक लगता था।

लंड अपनी जगह तलाश रहा था पद्मा भी बेचैन हो रही थी। वह अपने चूतड़ हिलाकर लंड को बुर के समीप लाना चाह रही थी। निशाना मिलने पर सरयू सिंह ने अपने लंड को अंदर दबाने की कोशिश पदमा चिहूक गयी। सरयू सिंह को एक बार ऐसा लगा जैसे उन्होंने गलत छेद में अपना लंड डाल दिया है। उन्होंने तुरंत उसे बाहर निकाला और एक बार फिर अपना दबाव बढ़ा दिया। खेल उल्टा हो गया था इस बार उनका लंड पदमा की गांड में जा रहा था। पदमा लगभग कराह उठी। उसने कहा

"सरयू भैया पहिल के में, ई दोसर छेद ह" सरयू सिंह को अफसोस हो गया. वह काम कला के पारखी थे पर आज पदमा जैसी सुंदरी के सामने अनाड़ी बन गए थे। दर असल पदमा की कोमल बुर ने आज उन्हें उतना ही प्रतिरोध दिखाया था जितना कजरी की गांड दिखाया करती थी।

उन्होंने एक बार फिर अपने लंड का निशाना पदमा की कोमल बुर पर किया और अपनी उंगलियों से अपने लंड और पदमा के बुर् के दाने को छूकर इस बात की तस्दीक भी कर ली कि उनका निशाना सही जगह पर है। पदमा मुस्कुरा रही थी। सरयू सिंह ने उसे चूमते हुए कहा

"पदमा हमरा के माफ कर दीह" इतना कहते हुए उन्होंने पद्मा के मुंह पर अपना हाथ रख लिया और लंड का दबाव बढ़ा दिया वह पदमा की बूर को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर गया। पदमा दर्द से बिलबिला उठी। उसकी आंखों में आंसू आ गए जो सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रहे थे पर हां पदमा के दांत सरयू सिंह की उंगलियों को काट रहे थे। पदमा हाफ रही थी। लंड का अभी आधा भाग ही अंदर गया था।

सरयू सिंह ने कुछ देर खुद को इसी अवस्था में रखा। वह पदमा को वापस सहलाने लगे। उसके जांघों और नितंबों को सहलाने से पदमा को दर्द से कुछ राहत मिली और वह सामान्य होने लगी। सरयू सिंह ने अपने हाथ उसके मुंह से हटा कर वापस उसकी चुचियों को सहलाना शुरु कर दिया। पद्मा ने लगभग कराते हुए कहा

"सरयू भैया तनी धीरे धीरे …..दुखाता" सरयू सिंह ने उसके कानों को चुम लिया और बोले

"थोड़ा इंतजार कर ल तहरा ई हमेशा याद रही" कुछ देर बाद सरयू सिंह ने अपने लिंग को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पदमा सातवें आसमान पर पहुंच गई. उसकी चूत ने इतना तनाव कभी महसूस नहीं किया था। वह लगातार प्रेम रस छोड़े जा रही थी। पदमा अपनी जांघों को कभी ऊपर करती कभी नीचे। सरयू सिंह अपने लंड को बार-बार आगे पीछे कर रहे थे। हर बार जब वह अंदर जाता वह सुगना की चूत में धीरे-धीरे आगे बढ़ जाता।
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कुछ ही देर की चुदाई में वह उसके गर्भाशय को छूने लगा। पद्मा से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह सरयू सिंह की उंगलियों को चूमे जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी थरथराहट बढ़ गई। उसकी जांघें तनने लगीं।

वह कराह रही थी… सरयूऊऊऊ ….भैया…आईईईई अंम्म्म्ममम्म और वह हांफते हांफते स्खलित हो गई। सरयू सिंह उसे और चोदना चाह रहे थे पर यह संभव नहीं था। उसने अपनी कमर हटा ली और सरयू सिंह का लंड फक्क….की आवाज के साथ उसकी चूत से बाहर आ गया।

सरयू सिंह अभी भी अपना लंड उसकी बुर में रखना चाहते थे। पर पदमा की बुर संवेदनशील हो चुकी थी। पद्मा ने करवट ले ली और सरयू सिंह की तरफ हो गई। उसने सरयू सिंह को होठों पर चूम लिया और बोली

"सरयू भैया साँच में हमरा ई हमेशा याद रही"

सरयू ने कहा

"त हमरो यादगार बना द"

वह उन्हें चूमती रही और बोली

" तनी इंतजार कर लीं" वह अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी। लंड के आकार को महसूस कर वह आश्चर्यचकित थी और गनगना रही थी।

तभी अचानक पदमा के मां की खासने की आवाज आई। वह बड़ी जल्दी से चारपाई से उठी और अंधेरे में ही आंगन की तरफ भागी। जब तक सरयू सिंह अपनी टार्च जलाकर उसे जाने का रास्ता दिखाते पदमा नजरों से ओझल हो गई…

सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े पड़े पदमा का इंतजार कर रहे थे पर उनका इंतजार लंबा हो रहा था। आधे घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका था उनका तना हुआ लंड भी उदास होकर वापस अपने सामान्य आकार में आ चुका था। उसकी उम्मीद टूट चुकी थी। पद्मा की चूत का रस लंड पर सूख चुका था

सरयू सिंह की आंखें भी भारी हो रही थीं। पदमा के साथ कुछ देर पहले उन्होंने जो सुखद पल बिताए थे उसे याद करते हुए उनकी आंखें अब नींद के आगोश में आ रही थी। तभी बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ी। इन महीनों में सामान्यता बारिश नहीं होती है परंतु आज अकस्मात ही बादलों की गड़गड़ाहट हो रही थी। कुछ ही देर में बिजली भी चमकने लगी। यह अजीब सा संयोग था। उनकी नींद एक बार फिर खुल गई। बाहर बह रही ठंडी हवा उन्हें अच्छी लग रही थी। देखते ही देखते बारिश शुरू हो गई। दालान में हवा के साथ साथ पानी के छींटे भी आ रहे थे।

सरयू सिंह अपनी चारपाई से उठ गए उन्होंने अपनी धोती ठीक की और चारपाई को खींच कर कोने में ले गए जिससे वह पानी के छीटों से बच सकें। अजीब मुसीबत थी। उनकी रात खराब हो रही थी। तभी अचानक आगन का दरवाजा खुला और पदमा एक बार फिर बाहर आ गई। पदमा को देखकर सरयू सिंह की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई। उन्हें यह उम्मीद कतई नहीं थी कि इस भरी बरसात में पदमा इस तरह बाहर आ जाएगी। पदमा थोड़ा भीग भी गई थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च से उसे रास्ता दिखाया और वह उनके बिल्कुल समीप आ गई।

सरयू सिंह ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिया उसके शरीर पर पानी की बूंदे थी जो ठंडक का एहसास दिला रही थी। पद्मा ने कहा

"भैया भूसा वाला कमरा में चली वहां पुआल लागल बा"

सरयू सिंह उस कमरे की तरफ बढ़ चले पद्मा ने चारपाई पर पड़ी हुई चादर खींच ली. और उनके साथ कमरे में आ गयी। सरयू सिंह ने टॉर्च मारकर कमरे का मुआयना किया। कमरे में एक तरफ भूसा रखा हुआ था और नीचे कुछ पुआल बिछा हुआ था जिस पर चादर डालकर आराम से सोया जा सकता था। कमरे में एक खिड़की थी जिससे कभी-कभी बिजली की रोशनी आ रही थी। जब जब बिजली कड़कती कमरा रोशन हो जाता। अंदर आने के बाद पद्मा ने दरवाजा बंद कर दिया और सरयू सिंह के आलिंगन में आ गयी। उसके शरीर पर पानी की बूंदे देखकर सरयू सिंह ने उसे पोंछने की कोशिश की। उन्होंने अपनी धोती खोल ली और पदमा के चेहरे और कंधों को पोंछने लगे।

सरयू सिंह ने पदमा की साड़ी जो थोड़ा भीग गया थी उसे हटाने की कोशिश की। पद्मा ने कोई आपत्ति नहीं की और कुछ ही देर में पदमा कमर के ऊपर नग्न खड़ी थी। सरयू सिंह ने साड़ी को और भी खोलना चाहा कमर की गांठ खुलते ही साड़ी एक ही झटके में नीचे आ गयी। पद्मा ने पेटीकोट नहीं पहना था उसने साड़ी को सीधा ही कमर में बांध लिया था। साड़ी के हटते ही पदमा पूरी तरह नग्न हो गई।

सरयू सिंह को यह यकीन ही नहीं हुआ। अचानक बिजली कड़की और पदमा का नग्न शरीर उनकी आंखों के सामने आ गया। एक पल के लिए उन्हें लगा जैसे वह सपना देख रहे हैं। गोरी चिट्टी पदमा अपने सीने पर दो मझौली आकार की चूँचियां लिए उनके सामने खड़ी थी। सपाट पेट उस पर छोटी सी नाभि कमर का उभार और सुडौल जाँघे आह…. पदमा एक आदर्श कामुक नारी की तरह लग रही थी। जांघों के जोड़ पर काले बालों के पीछे फूली हुई हुई बूर बेजड़ आकर्षक लग रही थी।

सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मदहोश हो गए। उन्हें यह अहसास नहीं था कि वह स्वयं पदमा के सामने नग्न खड़े थे। बिजली की रोशनी जितनी पदमा के शरीर पर पड़ रही थी उतनी ही रोशनी उनके शरीर पर भी पड़ रही थी। पदमा सरयू सिंह के बलिष्ठ शरीर और उनके अद्भुत लंड को देख कर सिहर भी रही थी और मन ही मन उनकी मर्दानगी की कायल भी हो रही थी।

प्रकृति के बनाए दो अद्भुत नगीने एक दूसरे के सामने खड़े थे बिजली की गड़गड़ाहट से वह करीब आ गए और एक दूसरे से सट गए। सरयू सिंह का लंड एक बार फिर पदमा की नाभि से छूने लगा।

पदमा की चुचियां उनके सीने में समा जाने को बेताब थीं। सरयू सिंह पहली बार पदमा के नितंबों को पूरे मन से सहला रहे थे। नितंबों के बीच पदमा की गदरायी गांड पर

उनकी उंगलियां घूम रही थी उसकी गोरी पीठ भी सरयू सिंह की हथेलियों का इंतजार कर रही थी। एक दूसरे के आगोश में लिपटे हुए सरयू सिंह और पदमा के होंठ आपस में मिल गए।

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पदमा ने खुद को सरयू सिंह से अलग किया और पुवाल पर बिछी चादर पर आकर पीठ के बल लेट गई। पुवाल पर लेटी हुई नग्न सुंदरी की कल्पना मात्र से सरयू सिंह का लंड गनगना गया। उन्होंने पदमा की चूचियों पर टॉर्च मारी। श्वेत धवल चूचियाँ सांची के स्तूप की तरह तनी हुई थी। उस पर भूरा निप्पल स्तूप ले मीनार की भांति दिखाई पड़ रहा था। पद्मा ने तुरंत ही अपनी हथेलियां अपनी चुचियों पर ले जाकर उन्हें ढक लिया। सरयू सिंह ने टॉर्च का मुह बालों के पीछे छुपी बुर पर कर दिया। पद्मा के बुर की खूबसूरती बयां करने योग्य शब्द मेरे पास नहीं है वह अद्भुत थी। दो गोरी जांघों के बीच छोटे छोटे काले काले बालों के बीच पदमा की मखमली गुलाबी बुर शर्माते हुए झांक रही थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह सरयू सिंह के खड़े लंड को खुला आमंत्रण दे रही हो।पद्मा ने सिर्फ फिर एक बार अपनी हथेलियों से अपने बुर को ढक लिया।

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। एक सुंदर नवयौवना अपने अनमोल खजाने को छुपाने का प्रयास कर रही थी। उन्होंने अब अपनी टॉर्च का मुह पद्मा ने सुंदर चेहरे पर कर दिया। सुंदर काले बाल बिखरे हुए थे और उन बालों की बीच से पदमा का खूबसूरत चेहरा सरयू सिंह की आंखों में बस गया। टॉर्च की रोशनी चेहरे पर पढ़ते ही पद्मा ने अपनी दोनों हथेलियां अपनी आंखों पर रख लीं वह टार्च की रोशनी को सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी। पर वह यह भूल गई रोशनी में उसका बाकी बदन भी चमक रहा है।

सरयू सिंह ने कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाली कहावत चरितार्थ कर दी थी। उन्होंने टॉर्च का निशाना चेहरे की तरह किया था और पदमा के हाथों को मजबूर कर दिया था कि वह उसके चेहरे को ही ढके रहे परंतु इस दौरान पदमा की सुंदर चुची और कोमल बुर पूरी तरह खुले थे। पदमा को यह एहसास भी नहीं था कि सरयू सिंह उसके अनमोल खजाने को आंखों से ही लूट रहे हैं।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। नियति ने आज जो संयोग बनाया था वह मिलन के लिए आदर्श था।
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पदमा की कोमल बुर जो अब से कुछ देर पहले एक अद्भुत चुदाई का आनंद ले चुकी थी एक बार फिर पनिया चुकी थी। सरयू सिंह ने और देर न की। पदमा पुआल पर लेट कर अपनी जांघें फैलाकर सरयू सिंह का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च बगल में रखी और पदमा की जांघों के बीच में आ गए।

अपना लंड पदमा की कोमल बुर् के मुहाने पर रख दिया। उन्होंने अपनी टार्च जलाई और पदमा के मुंह की तरफ देखते हुए अपने लंड का दबाव बढ़ाते गए। पदमा का मुंह खुलता गया आंखें बड़ी हो गई पर उसने सरयू सिंह के लंड को अपनी बुर में बड़े प्रेम से समाहित कर लिया।

लंड पूरा जाने के बाद पद्मा ने अपनी आंखें खोली और चेहरे पर मुस्कुराहट लायी। सरयू सिंह ने उसे चूम लिया। पद्मा ने कहा

"सरयू भैया, अब मैं भर चो……...लीं" पदमा में उत्तेजना में जिस शब्द का पहला भाग बोल दिया था वह सरयू सिंह के कानों में किसी कामुक पुकार की तरह सुनाई दिया। वह अत्यधिक उत्तेजित हो गए।

उन्होंने अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह पदमा को चोदना शुरू कर चुके थे। जैसे जैसे बिजली कड़कती वह दोनों एक हो जाते उनके सीने आपस में सट बजाते पर सरयू सिंह की कमर नहीं रुकती वह पदमा को लगातार चोदे जा रहे थे।

बीच-बीच में वह टॉर्च जलाकर पदमा का चेहरा जरूर देख लेते जो अब आहें भर रही थी। कुछ ही देर में पदमा की जाघें फिर तनने लगीं। सरयू सिंह ने इस बार कोई ढिलाई देना उचित नहीं समझा वह बिना पदमा का इंतजार किए अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगे। पदमा थरथरा रही थी और अपनी जाघें सीधी कर रही थी पर सरयू सिंह लगातार उसे चोद रहे थे।

तभी पदमा की मां की आवाज एक बार फिर सुनाई पड़ी वह पदमा... पदमा... पुकार रही पद्मा ने भी चुदवाते हुए ही आवाज दी..

" मां रुक जा सरयू भैया के चादर बदल के आवतानी भीग गईल बा" पर बोलते समय उसकी आवाज कांप रही थी। सरयू सिंह इस दौरान भी चुदाई जारी रखे हुए थे। पदमा की कामुक कराह कमरे में गूंजने लगी।

सरयू सिंह स्वयं पदमा….पदमा... पुकार रहे थे पर उसे लगातार चोद रहे थे. कुछ ही देर में उन्होंने अपने लंड को उस कोमल बूर में जड़ तक डाल दिया। ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी नाभि में छेद को छूना चाहते हों।

परन्तु गर्भाशय के मुहाने पर जाकर उनके लंड ने दम तोड़ दिया वह अपना वीर्य स्खलित करने लगा। पदमा की चूत के अंदर लंड का फुलना पिचकना जारी था। पदमा हाफ रही थी पर सरयू भैया को चूमे जा रही थी। उसके गर्भाशय पर सरयू सिंह की मलाई बरस रही थी। पदमा तृप्त हो रही थी। उसी दौरान पुवाल के अंदर छिपे एक अनजान कीड़े ने शरीर सिंह के अंडकोष के ठीक बगल में जांघों पर काट लिया। सरयू सिंह दर्द से तड़प उठे। वह उस समय स्खलित हो रहे थे।

उत्तेजना और दर्द का यह मिलन अनोखा था। सरयू सिंह उस दर्द को भूल कर पदमा की मलाईदार चूत में अपनी मलाई भरते रहे। उन्होंने हाथ लगाकर उस कीड़े को हटाया। जब तक वह टॉर्च उठाकर उस कीड़े को देख पाते वह पुवाल में गायब हो गया पर जाते-जाते वह अपना निशान छोड़ गया। शरीर सिंह का ध्यान भटकते ही पद्मा ने पूछा

" भैया का भइल?"

" कुछो ना, लगाता तोहरा घर के निशानी मिल गईल"

सरयू सिंह का उफान ठंडा पड़ते ही उन्होंने पदमा को फिर चूम लिया और कहा "पदमा ई रात हमेशा याद रही"

" हमरो" पद्मा ने कहा। वह अपने कपड़े समेटने के लिए नीचे झुकी और सरयू सिंह के हाथ में रखी टॉर्च और दिमाग की टॉर्च एक साथ जल गयी। पद्मा के गोरे और गोल नितंबों के बीच से उसकी गुदांज गांड दिखाई पड़ गई। उन्होंने पद्मा के कूल्हों को चूम लिया।

पदमा उठ खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली "सबर करीं"

पदमा मुस्कुराते हुए आंगन में चली गई पर आज सरयू सिंह के जीवन में नई बहार आ गई थी….

सुगना द्वारा लाया गया हलवा खत्म हो चुका था..
सुगना की मधुर आवाज आयी
"बाबूजी का सोचा तानी?"

सरयू सिंह ने उत्तर देना उचित न समझा पर सुगना को देख मुस्कुराने लगे....
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#11
Heart 
भाग-10


उस दिन सुगना ने सरयू सिंह को दो - दो झटके दे दिए थे। सुबह हैंड पंप पर उसने अपनी चुचियों का ऊपरी भाग सरयू सिंह की नजरों के सामने परोस दिया था और कुछ ही देर बाद अपना सुंदर मुखड़ा अपने बाबूजी को दिखाकर उन्हें जड़ कर दिया था। और तो और शाम को हलवा खिला कर उसने स्वयं सरयू सिंह के मन मे अपनी माँ पद्मा की यादें ताजा कर दीं थी।
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सरयू सिंह भी सुगना में पदमा का रूप देखने लगे थे। उनका दिमाग अभी भी सुगना को अपनी बहू के रूप में ही देख रहा था पर उनकी कामुकता सुगना को पदमा के रूप में देख रही थी। सरयू सिंह के लंगोट में हलचल होने लगी थी। शाम को जब सुगना ने अपने हाथों से बनाकर उन्हें हलवा खिलाया था तब एक बार फिर सरयू सिंह मन ही मन सोच रहे थे कि काश रात में पद्मा की तरह सुगना भी उनकी चारपाई पर आ जाती वह अपनी कामुक सोच पर मन ही मन मुस्कुरा दिए उन्हें पता था यह एक कोरी कल्पना थी।

अगले कुछ दिन सरयू सिंह सुबह-सुबह हैंडपंप पर सुगना का इंतजार करते थे सुगना भी अपने बाबूजी की अंदरूनी इच्छा को पहचान चुकी थी। उसने उन्हें निराश न किया। सुबह-सुबह वह उनका दिन शुभ कर देती उसकी चुचियों का आकार दिन पर दिन ज्यादा दिखाई पड़ने लगा। सरयू सिंह की धोती का उभार भी उसी अनुपात में बढ़ रहा था। कामुकता का तापमान दोनों तरफ बढ़ रहा था। सुगना ज्यादा से ज्यादा समय अपने बाबू जी के करीब रहती और यही हाल सरयू सिंह का था। वह दोनों ढेर सारी बातें करते। कजरी को यह एहसास बिल्कुल भी नहीं था की सुगना और सरयू सिंह के बीच में इस प्रकार की नजदीकियां बढ़ रही हैं। वह सिर्फ इस बात से ही खुश थी की उसकी बहू सुगना अब खुश रहती थी।

सरयू सिंह और कजरी दोनों रात में जमकर चुदाई करते। सुगना कमरे से आ रही चारपाई की आवाज सुनकर यह तो समझ जाती की उसकी सास कजरी के जांघों के बीच काला नाग आगे पीछे हो रहा है परंतु वह न उसे चुदते हुए देख पा रही थी और न हीं सरयू सिंह के विशाल जादुई लंड के दर्शन कर पा रही थी।

होली के दिन उसने जो वासना का खेल देखा था वह उसके दिलो-दिमाग पर छाया जरूर था पर उसकी यादें अब कमजोर पड़ रही थी। वह उन दोनों को एक बार फिर देखना चाहती थी पर यह संभव नहीं हो रहा था। वह दोनों रात में दीया बुझा घर ही चुदाई किया करते थे.

इसी बीच एक दिन सुगना हैंड पंप पर लगी काई की वजह से फिसल गई। उसने अपनी हथेलियों से अपने शरीर का भार रोकना चाहा पर उसकी कोमल कलाई उसका भार न सह पाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी कलाई की हड्डी टूट गई थी। वह दर्द से कराह रही थी। कजरी भाग कर आई और उसके हाथों को आराम देने की कोशिश करने लगी। कुछ ही देर में सुगना के हाथों पर हल्दी चूना और प्याज लगाया गया पर यह आराम तभी तक था जब तक कि उसकी कलाई हिल नही रही थी।

जैसे ही उसकी कलाई हिलती सुगना दर्द से बिलख उठती। सरयू सिंह तक खबर चली गई। वह चौपाल से उठकर भागते हुए घर आ गए। अपनी बहू सुगना को कष्ट में देखकर उनके दिल में टीस सी उठ रही थी। उन्होंने आकर सुगना की कोमल हथेलियों को अपने हाथों में ले लिया और एक अर्ध कुशल डॉक्टर की भांति उसके दर्द का पता लगाने की कोशिश करने लगे।

जैसे ही सुगना की कोमल हथेलियां उनके हाथों में आई उनके शरीर में एक सनसनी फैल गई। कितनी कोमल थी सुगना अपनी मां पदमा से भी ज्यादा। वह सुगना की हथेलियों की कोमलता महसूस करते हुए खो से गए। तभी सुगना की मधुर आवाज आई …

"बाबू जी तनी धीरे से …….दुखाता" सुगना की यह मासूम सी मीठी आवाज उनके दिलोदिमाग पर छा गयी।

"अरे मोरा सुगना बाबू…मत रोआ ठीक हो जायी""

सुगना का कोमल और मासूम चेहरा देख सरयू सिंह में पनप रही कामुकता प्यार में बदल गई.

सरयू सिंह ने आज पहली बार सुगना को छुआ था. उनके स्पर्श में प्यार छुपा हुआ था जो कामुक न था पर सुगना के प्रति संवेदना को स्पष्ट जरूर करता था. उधर सुगना अपने बाबू जी से प्रभावित हो रही थी। वह मन ही मन उनके करीब आ रही थी उसका तन तो नजदीक आने के लिए तड़प ही रहा था.

बाहर रामू डाकिया दरवाजे पर खड़ा "सरयू भैया ….सरयू भैया.." पुकार रहा था.

सरयू सिंह बाहर आए और रामू से हालचाल लेने के बाद अपना सरकारी खत प्राप्त किया। पर यह क्या? यह तो कोर्ट में हाजिर होने का नोटिस था वह भी 2 दिनों बाद का। वकील सुधीर ने अपनी चाल चल दी थी। सरयू सिंह को कोर्ट में उपस्थित होना था जो उनके गांव से दूर शहर में था। उन्होंने सुधीर को कई गालियां दी परंतु उसकी चाल से बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।

अंततः कोई रास्ता ना देख सरयू सिंह शहर जाने के लिए तैयार हो गए। सुगना को दर्द से कराहते हुए देखकर कजरी ने सरयू सिंह से कहा

"सुगना के भी ले ले जइतीं एकर हथवा के डॉक्टर से देखा देतीं, दिन भर रोवत रहेले"

सरयू सिंह ने कहा

"ठीक बा तब तू हूँ चला"

"हम परसो ना जा पाइब हरिया के यहां कथा बा" कजरी ने कहा।

"पतोह (बहु) के लेके घुमब त लोग का कही?"

तभी सुगना की कराह एक बार फिर सुनाई दी। वह उनकी बातें सुन रही थी और वह भी मन ही मन अपने बाबुजी के साथ शहर जाना चाहती थी।

अंततः सरयू सिंह तैयार हो गए।

शहर गांव से 40- 50 किलोमीटर दूर था जहां जाने के लिए मुख्य साधन ट्रेन थी। सरयू सिंह ने अपनी प्यारी सुगना के लिए पालकी बुला दी और चल पड़े रेलवे स्टेशन की तरफ।

कहार तेज कदमों से सुगना की पालकी लिए चले जा रहे थे और सरयू सिंह अपने तेज कदमों से उनका साथ देते हुए सुगना के पीछे चल रहे थे। एक पल के लिए उनके मन में यह ख्याल आया जैसे वह अपनी बीवी को ससुराल से विदा करा कर ला रहे हो। उधर पालकी के अंदर सुगना मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।
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आज दिन भर उसे अपने बाबूजी के साथ रहना था अब उसे सरयू सिंह का साथ अच्छा लगने लगा था। वह जितना उनके करीब रहती उतना ही प्रफुल्लित रहती। कामुकता के अलावा वह उनसे मन ही मन प्यार करने लगी थी कभी सच में बाबू जी की तरह और कभी अपने प्रेमी की तरह उसके दिमाग पर सरयू सिंह छा गए थे। वह सरयू सिंह की मर्दानगी और उसके प्रति प्यार की कायल हो गई थी जो सुख उसे पुरुष रूप में अपने पति से प्राप्त होना था वह सुखवा सरयू सिंह में ढूंढने लगी। सुगना जब भी सरयू सिंह को एक मर्द के रूप में याद करती उसकी कोमल बुर मुस्कुराने लगती और उसके अंदर उठ रही हलचल के अंश उसकी कोमल बुर के होठों पर छलक आते।

कुछ समय बाद सुगना की पालकी स्टेशन पर उतर रही थी। सुगना प्लेटफार्म पर बने सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गई उसने अपनी गठरी अपने बगल में रख ली जिसमें उसने रास्ते में खाने के लिए कुछ सामग्री रखी हुई थी। सरयू सिंह भी बेहद उत्साहित थे परंतु थोड़ा शर्मा भी रहे थे। प्लेटफॉर्म पर गांव के कई सारे लोग थे वह इस बात से चिंतित थे कि यदि गांव का कोई आदमी है पूछेगा कि सुगना को अकेले क्यों ले जा रहे हैं तो वह इसका क्या उत्तर देंगे। उनके मन में सुगना के प्रति पनप रही कामुकता ने उन्हें इस प्रश्न की दुविधा में डाल दिया था अन्यथा उनके पास सुगना की दुखती कलाई एक स्पष्ट उत्तर था।

ट्रेन आ चुकी थी। प्लेटफार्म पर दिख रहे लोग एकाएक जनरल डिब्बे की तरह दौड़े और पूरे गेट को लगभग घेर लिया। ट्रेन ज्यादा देर तक नहीं रुकती थी सरयू सिंह ने भी सुगना को ऊपर चढ़ाने की कोशिश की पर सुगना की एक हथेली पहले से घायल थी। सुगना को दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के डंडे पकड़ने में दिक्कत हो रही थी। भीड़ लगातार उन्हें न सिर्फ जल्दी करने की जिद कर रही थी अपितु धकेल रही थी। अंततः सरयू सिंह ने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और अंदर धकेला सुगना दरवाजे के अंदर प्रविष्ट हो गयी पर मन ही मन सिहर उठी। सरयू सिंह के मर्दाना हाथ आज उसके कोमल और चिकने पेट को छू गए थे। पेट ही क्या जब वह दरवाजे पर पहुंच गई तो एक पल के लिए ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह ने अपनी हथेलियों से उसके नितंबों को धक्का दिया था जिससे वह दरवाजे के अंदर पूरी तरह आ जाए।

सुगना के पीछे पीछे सरयू सिंह भी ट्रेन के अंदर आ गए। पीछे आ रही भीड़ सरयू सिंह पर लगातार दबाव बनाए हुए थी और वह ना चाहते हुए भी सुगना से सटे जा रहे थे। अंदर पहुंच कर उन्होंने बैठे हुए यात्रियों से सुगना के लिए जगह की याचना की और उसे एक महिला के बगल में बैठा दिया।

भाप से चलने वाला इंजन छुऊऊक...छुऊऊऊऊक……. करके बढ़ने लगा। धीरे-धीरे उसकी रफ्तार बढ़ती गई और ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया। सुगना खिड़की की सीट पर तो नहीं बैठी थी पर उसका ध्यान खिड़की से दिख रहे दृश्यों पर ही लगा रहा शायद वह कई वर्षों बाद ट्रेन में बैठी थी। वह अपने कलाई का दर्द भूल चुकी थी और खिड़की से दिख रहे दृश्यों को देखकर मंत्रमुग्ध थी।

अगले स्टेशन पर खिड़की के पास बैठी हुई महिला उतर गई। सुगना खिड़की की तरफ खिसक गई और अपने बाबू जी को बगल में बैठने का इशारा कर दिया। उस कंपार्टमेंट में सरयू सिंह के गांव का कोई व्यक्ति नहीं दिखाई दे रहा था वह उस लकड़ी की सीट पर सुगना के बगल में बैठे गए। उनका दो तिहाई पिछवाड़ा सीट पर था और कुछ भाग बाहर ही रह गया था पर फिर भी वह येन केन प्रकारेण अपना वजन सीट पर रख पा रहे थे। उनकी जाँघे सुगना की जांघों से छूने लगीं। वह एहसास सरयू सिंह के लिए भी उतना ही उत्तेजक था जितना सुगना के लिए। एक तरफ सरयू सिंह सुगना की जांघों की कोमलता महसूस कर रहे थे दूसरी तरफ सुगना उन मर्दाना जांघों की मांस पेशियों को। सुगना की आंखें अभी भी बाहर की तरफ देख रही थी पर दिल तेजी से धड़क रहा था वह सरयू सिंह की मर्दानगी को बड़े करीब से महसूस कर रही थी। उसकी कोमल बुर चैतन्य हो चुकी थी।

डेढ़ घंटे के सफर के बाद शहर आ गया ट्रेन से उतरते वक्त एक बार फिर सरयू सिंह को सुगना को उठाना पड़ा। उन्होंने सुगना को उसकी कमर से पकड़ा और सहारा देकर नीचे उतार दिया। इस दौरान सुगना की कोमल चूचियां उनके सीने से टकरा गयीं। सुगना की चूचियों की कोमलता महसूस कर शरीर सिंह का लंड में लहू का प्रवाह बढ़ गया जिससे सरयू सिंह थोड़ा असहज हो गए सुगना ने भी इस उनकी असहजता महसूस कर लिया था।

दोपहर तक सरयू सिंह कोर्ट कचहरी का काम करते रहे उन्होंने सुगना हो अपने वकील के स्टाल पर बैठा दिया था। सुगना ने घुंघट लेकर अपना चेहरा तो छुपा लिया था पर उसकी रमणीय और उत्तेजक काया छुपने योग्य नहीं थी। साड़ी सुगना की चूचियां और कोमल नितंबों का आकार छुपाने में असमर्थ थी। वह आसपास के लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही।

कचहरी का काम निपटाने के बाद सरयू सिंह सुगना को लेकर एक मंदिर में आ गए जहां बैठकर दोनों ने खाना खाया घर से लाई गई रोटियां सूख चुकी थी जो सुगना के बाएं हाथ से टूट नहीं रही थी। सुगना का दाहिना हाथ किसी काम का ना रहा था। सरयू सिंह ने अपने हाथों से सुगना को खाना खिलाया। सुगना मन ही मन सरयू सिंह का यह प्यार देखकर उन पर मोहित होती रही।
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सरयू सिंह अब उसके लिए आदर्श पुरुष हो चले थे वह उनकी हो जाना चाहते थी पर वह उसके लिए बहु से प्रेमिका तक की दूरी अभी भी चंद्रमा और पृथ्वी जितनी थी। जो एक दूसरे के समीप तो कई बार आते हैं पर उनका मिलन प्रश्नचिन्ह के दायरे में था।

डॉक्टर के यहां सुगना का हाथ दिखाने और उस पर प्लास्टर चढ़ाने मैं काफी देर हो गई . सरयू सिंह ने भागते भागते दवाई ली और रिक्शा पर बैठकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े। रास्ते में टेंपो पलट जाने की वजह से जाम जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी.

सरयू सिंह बार-बार अपनी घड़ी देख रहे थे. रिक्शा में बैठे हुए सरयू सिंह बेचैन हो रहे थे. वापसी के लिए यही एकमात्र यही ट्रेन थी जिसे वह किसी भी हालत में छोड़ना नही चाहते थे. उधर सुगना इन सब समस्याओं से दूर शहर की चकाचौंध में खोई हुई थी. सड़क के किनारे कितनी सुंदर सुंदर दुकानें थी. कई सारी चीजें तो ऐसी थी जो उसने पहली बार देखी थी. एक से एक सुंदर कपड़े दुकानों के बाहर टंगे हुए थे. वह मन ही मन खुद को उन कपड़ों में सोचती और खुश हो जाती.

किसी फूहड़ फिल्म का पोस्टर दीवार पर देखकर सुगना की आंखें ठहर गयीं. फिल्म की हीरोइन में उत्तेजक कपड़े पहन रखे थे उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी और चुचियों का उभार भी. हीरोइन की उत्तेजक अवस्था को देख सुगना मन ही मन सोच रही थी यह कैसी औरत है जिसने अर्धनग्न होकर इस तरह की तस्वीरें खिंचवाई हैं. सुगना शहर की निराली दुनिया में खोई हुई थी तभी रिक्शा चल पड़ा अचानक चलने की वजह से सुगना का संतुलन बिगड़ गया. उसने अपने आप को गिरने से बचाने के लिए सरयू सिह की जांघों को पकड़ने की कोशिश की पर उसका हाथ जांघों के बीच आ गया. एक पल के लिए सुगना ने गलती से अपने बाबूजी का सोया हुआ नाग छू लिया था जो अब तक उनके लंगोट में कुंडली मार कर बैठा हुआ था.

उसने अपना हाथ तुरंत हटाया और संभल कर बैठ गई पर सरयू सिंह का लंड जाग चुका था। स्टेशन पर पहुंचते ही सरयू सिंह ने सुगना को रिक्शे से उतारा और भागते हुए प्लेटफार्म तक पहुंचे। सुगना भी लगभग दौड़ते हुए प्लेटफार्म तक आ गयी। पर दुर्भाग्य ….ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। ट्रेन के डिब्बे से हाथ हिलाता हुआ उन्हीं के गांव का बिरजू उन्हें दिखाई पड़ा सरयू सिंह ने कहां

"भौजी के बता दिह हम कॉल आइब"

"ठीक बा"

सुगना हाफ रही थी। आज उसने कई दिनों बाद दौड़ लगाई थी। सरयू सिंह के पास आते ही उसने कहा

"बाबू जी अब का होई गाड़ी त छूट गईल उसकी आवाज में दुख स्पष्ट था"

सरयू सिंह स्वयं परेशान हो गए थे। उन्होंने स्टेशन का नजारा देखा कई सारे लोग अगली ट्रेन का इंतजार करते हुए चादर बिछाकर प्लेटफार्म पर बैठे हुए थे पर सरयू सिंह का यह इंतजार लंबा था उन्हें पूरी रात गुजारनी थी उनकी ट्रेन अब सुबह ही मिलनी थी।

आज सुगना पहली बार उनके साथ बाहर आई थी और उसे सरयू सिंह किसी हाल में कोई कष्ट नहीं देना चाहते थे। वह उनकी जान थी और वह उसके आदर्श पुरुष। पर वह करे तो क्या करें प्रश्न बहुत कठिन था। आज के पहले सरयू सिंह एक दो बार होटल में रुके थे पर आज सुगना उनके साथ थी क्या उसे लेकर वह होटल में रह सकते है…

उनके मन में आई इस दुविधा ने यह स्पष्ट कर दिया था की सुगना उनकी बेटी तो कतई नहीं थी.. सरयू सिंह अपनी सोच में डूबे हुए थे सुगना अपनी जांघों के बीच सिहरन लिए अपने बाबूजी के अगले कदम का इंतजार करने लगी…..


यह तो तय था कि वह सुगना को लेकर प्लेटफार्म पर नहीं रह सकते थे। उन्होंने सुगना से कहा

"आवा चला रहे के ठेकाना देखल जाऊ"

सुगना निरापद थी उसे यह अंदाजा कतई भी नहीं था की उसकी रात कैसे गुजरेगी और कहां पर गुजरेगी वह अपने बाबू जी पर पूरा भरोसा करते हुए उनके पीछे पीछे चल दी.

स्टेशन के बाहर कुछ छोटे होटल थे शहर इतना बड़ा नहीं था. दूर गांव से आने वाले धनाढ्य लोग जब ट्रेन पकड़ने के लिए आते थे तो ट्रेन लेट होने पर कभी-कभी इन होटलों में कुछ समय के लिए रूक जाया करते थे। सरयू सिंह के लिए भी यह पहला अनुभव था उन्होंने अपनी जेब टटोली और मन ही मन होटल में रहने का निर्णय कर लिया.

मनोरमा लाज के दरवाजे पर पहुंच कर वह उसकी सीढ़ियां चढ़ने लगे काउंटर पर बैठा व्यक्ति सरयू सिंह की दमदार कद काठी और पीछे आ रही सुगना की कमनीय काया देख कर वह प्रभावित हो गया उसने कहा

"प्रणाम चाचा... गाड़ी पकडब का" उसने चाचा संबंध स्वयं जोड़ लिया था. वह सरयू सिंह को पहचानता नहीं था पर उम्र के अनुसार उसने स्वयं रिश्ता बना लिया था. वह सुगना को लेकर अभी भी सशंकित था होटल का रजिस्टर खोलकर उसने सरयू सिंह से पूछा

"चाचा का नाम लिखीं" सरयू सिंह ने दमदार आवाज में अपना नाम बताया उस व्यक्ति ने फिर पूछा

"और ईहां के"

"पदमा"

सुगना आश्चर्यचकित थी. बाबू जी ने उसकी जगह उसकी मां का नाम क्यों लिखवाया. उस व्यक्ति ने कहां

"आई चाचा" सरयू सिंह उसके पीछे चल पड़े और और उनके पीछे सुगना। एक कमरे का दरवाजा खोला गया जिसमें एक डबल बेड लगा हुआ था सरयू सिंह ने उससे कहा

"दुगो अलग-अलग बिस्तर वाला दीजिए"

"ठीक बा चाचा"

उसने दूसरा कमरा दिखाएं जिसमें दो अलग-अलग बिस्तर लगे हुए थे

"हां, ई ठीक बा"

"ठीक बा चाचा, कोनो जरूरत होई त आवाज दे देब"

सुगना इस कमरे की खूबसूरती देखकर खुश हो गई थी पर उसे तो वह डबल बेड वाला कमरा ज्यादा पसंद आया था। कुछ ही देर में उसने अपने को सरयू सिंह के बगल में सोता हुआ देख लिया था एक पल के लिए वह सिहर उठी थी। उसके मन में कामुकता फूट पड़ी थी पर सरयू सिंह ने उसकी सोच पर पानी डाल दिया था। वह दोनों दूसरे कमरे में आ चुके थे।

उस व्यक्ति के जाने के बाद सरयू सिंह ने दरवाजा सटा दिया सरयू सिंह ने बाथरूम का मुआयना किया होटल एक औसत दर्जे का था पर सरयू सिंह के लिए वह उम्मीद से ज्यादा था। और सुगना के लिए तो वह स्वर्ग समान था।

सुगना बाथरूम में गई उसने आज पहली बार वाशबेसिन देखा था सरयू सिंह ने उसे उसका प्रयोग समझाया। बाथरूम के नल इत्यादि के बारे में भी अपनी जानकारी सुगना को बताइ पर बाथरूम मैं लगे झरने के बारे में उन्हें खुद भी ज्ञान न था। सुगना को समझाते समझाते उन्होंने वह नल खोल दिया जिससे झरने में पानी जाता था।

झरने से निकले पानी ने सुगना और शरीर सिंह दोनों को भिगो दिया दिया। सुगना जोर से हंस पड़ी सरयू सिंह थोड़ा शर्मा गए पर उन्होंने स्थिति संभाल ली उन्होंने कहा

"ई त नहाए खातिर बढ़िया बा "

सुगना अपना मुंह हाथ धुल कर कमरे में आ गई सरयू सिंह और सुगना दोनों के पास एकमात्र वही कपड़ा था जो वह पहन कर आए थे. वह दोनों आराम करने लगे अपनी बहू को अपने इतना करीब पाकर सरयू सिंह में रह-रहकर उत्तेजना जन्म लेती पर सुगना का कोमल चेहरा देखते हैं उनकी उत्तेजना शांत पड़ जाती वह उन्हें एक कोमल नवायैवना जैसी दिखाई पड़ती जो उनके बेटी की उम्र की थी उससे संभोग करना उनके दिमाग को स्वीकार न था।

दिनभर की भागदौड़ से सुगना थक गई थी होटल के बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गई सरयू सिंह भी अपने बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे। वह सोती हुई सुगना को देख रहे थे और सुगना से बदल रहे अपने रिश्तो के बारे में सोच रहे थे। एक तरफ तो वह उनकी बहू थी दूसरी तरफ पदमा जैसी अद्भुत खूबसूरती लिए हुए छोड़ने योग्य आदर्श स्त्री जिसने अब तक संभोग सुख न प्राप्त किया था और न हीं प्राप्त होने की कोई संभावना थी।

प्रकृति द्वारा दिये इस शरीर मैं काम भावना स्वता ही जन्म लेती है वह सुगना में भी ली होगी पर क्या वह कुवारी रह जाएगी? सरयू सिंह कई प्रकार की बातें सोचते पर किसी भी प्रकार वह अपने दिमाग को उससे संभोग करने के लिए राजी न कर पाते। उनका मन और लंड दोनों एक तरफ हो गए थे और दिमाग और जमीर से सुगना को चोदने की इजाजत मांग रहे थे पर अभी उनकी बात दिमाग द्वारा अनसुनी कर दी जा रही थी।

कुछ देर बाद सरयू सिंह की आंख खुली उन्होंने देखा सुगना उठ चुकी थी और सरयू सिंह की तरफ पीठ कर अपनी साड़ी ठीक करने का प्रयास कर रही थी। उसकी कलाई में चढ़े प्लास्टर की वजह से एक हाथ से साड़ी को पेटीकोट के अंदर करना संभव नहीं हो रहा था। सुगना परेशान हो गई थी ब्लाउज के नीचे और पेटीकोट के ऊपर सुगना की पीठ स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बेहद चिकनी और गोरी पीठ अत्यंत सुंदर लग रही थी। सपना के कोमल चूतड़ दो छोटे फुटबॉल के जैसे दिखाई पड़ रहे थे। सरयू सिंह के मन और दिमाग में एक बार फिर युद्ध शुरू हो चुका था तभी सुगना पलटी और

"बोली बाबूजी तनी सड़ियां फसा दीं"
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सरयू सिंह का अपने बिस्तर से उठकर खड़े हो गए और सुगना के पास जाकर बोले "बताव का करे के बा"

" तनी साड़ियां भीतर करके फसा दीं "

सरयू सिंह सुगना के बिस्तर पर बैठ गए। सुगना सामने खड़ी थी। उन्होंने साड़ी की चुन्नट बनाई और सुगना की नाभि के नीचे बंधे पेटीकोट में उस चुन्नट को फसाने लगे। उनकी उंगलियां सुनना के पेट से छू रही थीं उनकी आंखों के ठीक सामने ब्लाउज में कैद सुगना की चुचियां आमंत्रित कर रही थीं। सुगना की चुची और उनके चेहरे के बीच चार अंगुल से कम का फैसला था पर वहां तक पहुचना चार योजन जितना दूर था।

सुगना जैसी सुंदर और कुंवारी स्त्री की चुची तक पहुंचना सच में कई इतना आसान न था। यह अलग बात थी कि सुनना स्वयं अपनी चूचियां अपने बाबूजी को परोसने के लिए तत्पर थी पर यह भावना सुनना के मन में थी हरकतों में नहीं। उसकी हरकतें अभी भी एक बहू बेटी जैसे ही थीं।

शरीर सिंह की नाक सुगना के बदन की खुशबू को महसूस कर रही थी। उनका मन बार-बार पर कर रहा था की वह अपने चेहरे को थोड़ा आगे कर सुनना की कोमल चुचियों को अपने मुंह में ले ले। उंगलियां पेटिकोट में और नीचे जाने के लिए लालायित थीं।

पर सरयू सिंह इतने गिरे हुए इंसान न थे। वह वासना के अधीन जरूर थे पर उन्होंने अपना दिमाग नहीं खोया था।

उधर सुगना अपने बाबूजी को इतना करीब पाकर सुगना की वासना जागृत हो गयी। उसकी जांघों के जोड़ पर कोमल बुर खुश हो गई थी और अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा में थी ठीक उसी प्रकार जैसे विवाह में आया कोई दूरदराज का व्यक्ति स्टेज पर जाने की अपनी प्रतीक्षा करता है।

सुगना की बुर का इंतजार लंबा था। सुगना की साड़ी ठीक कर सरयू सिंह उठ खड़े हुए सुगना ने अपना पल्लू ठीक किया और बाबू जी से बोली

" रहुआ बहुत बढ़िया बानी"

अपनी बहू से तारीफ पाकर सरयू सिंह खुश हो गए उन्होंने कहा

"चला बाहरी घूमा दीं"

वह सुगना को लेकर बगल के बाजार में आ गए। उन्होंने सुगना और कजरी के लिए कपड़े खरीदे इसी दौरान बगल की दुकान में बाहर ब्रा और पेंटी टंगी हुई थी सुगना बहुत ध्यान से उसे देख रही थी और मन ही मन उन कपड़ों को अपने शरीर पर महसूस कर रही थी। उसने आज तक ब्रा और पेंटी का उपयोग न किया था पर दीवार पर लगे पोस्टर में ब्रा और पेंटी को उस मॉडल की चुचियों और बुर को ढके दिखाया हुआ था जिससे सुगना को उसकी उपयोगिता समझ आ चुकी थी। एक बार उसके मन में आया कि वह अपने बाबू जी से उसे खरीदने के लिए कहे पर वह हिम्मत न जुटा पायी।

कपड़े खरीदने के बाद सरयू सिंह ने पास के ठेले से सुगना को उसकी पसंद की चटपटी चीजें खिलायीं और अपनी बहू को लेकर फिर एक बार कमरे में आ गए।

होटल के गलियारे में जाते समय 3- 4 मनचले लड़के उन्हें देख रहे थे. वह सुगना की जवानी से बेहद प्रभावित हुए थे। साड़ी के अंदर सुगना का फसा हुआ सुडौल शरीर सभी के आकर्षण का केंद्र बन जाता उसकी कद काठी बेहद खूबसूरत थी। साड़ी में उसकी कमर और नितंबों का आकार खुलकर दिखाई पड़ता और सुगना की चुचियां तो अद्भुत थी।

सरयू सिंह और सुगना कमरे में जा चुके थे तभी बाहर से उन मनचले लड़कों की आवाज आने लगी

"चाचा तो बढ़िया माल ले आइल बाड़े"

"हां, ओकर चुची देखला हा"
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" बुझाता चाचा अपनहि मीस मीस के बड़ कइले बाड़े"

" लगता आज चाचा ओकर बुर चोदबे करिहें तबे चाट खियावतले हा" उन लड़कों के हंसने की आवाज आने लगी

उनमें से एक शरीफ लड़के की आवाज आई "इसन मत कह सो का जाने ओकर बहु बेटी होखे तब?"

" ए भाई अइसन हमार पतोहियो रही त हम ना छोड़ब" एक बार फिर वह हंसने लगे

सरयू सिंह इन सब बातों को सुनकर क्रोधित हो गए थे और मन ही मन उन्हें मारने की सोच रहे थे अचानक वह उठे और बाहर की तरफ जाने लगे। सुगना ने अपने कोमल हाथों से उनकी मजबूत कलाई पकड़ ली और बोली

"बाबूजी रहे दीं उ सब लफुआ हवे सो काहे झगड़ा करता करब" यह एक संयोग ही था कि वलड़के कॉरिडोर से जा रहे थे उनकी आवाज धीमी पड़ रही थी।

उन लड़कों की बातों का सबसे ज्यादा आनंद किसी ने लिया था तो वह सुगना की बुर। उन बातों में सबसे ज्यादा उसका ही जिक्र हो रहा था कोई तो ऐसा था जो उसका नाम ले रहा था और उसके बारे में सोच रहा था। यहां तो सुगना और उसके बाबूजी दोनों ही अपनी अपनी भावनाओं पर काबू किए उसे अकेला छोड़ दिए थे। सुगना की मूमल बुर तो उन लड़कों की ही शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसकी खोज खबर ली थी वह खुशी से पनिया गई थी। उसके कोमल होठों पर मदन रस तैरने लगा था। काश सुगाना के बाबूजी उसकी खुशी देख पाते।

सरयू सिंह का लंड भी विद्रोह पर उतारू हो चुका था इन बातों से उसमें भी हरकत हुई थी पर उतनी नहीं जितनी सुगना के बुर में हो रही थी। जितनी वासना सुगना के मन में सरयू सिंह के प्रति जागृत थी शायद उतनी वासना अभी सरयू सिंह के मन में नहीं थी पर भी जरूर।

सुगना निश्चय ही अब उनकी बेटी नहीं रही थी अब वह सिर्फ एक बहू के रूप में आ चुकी थी। भावनाएं बदल रही थी समय भी बदल रहा था नियति अपनी साजिश रच रही थी और कुछ हद तक कामयाब भी हो रही थी। …..

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पर अभी सुगना की बुर का इंतजार कायम था....
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#12
भाग-11


"मैं सुगना"

दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गई थी। शहर के उस अनजान होटल के कमरे में लेटते ही मैं सो गई। बाबुजी दूसरे बिस्तर पर सो रहे थे.

रात में एक अनजान शख्स मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ उठा रहा था. पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपने घुटने मोड़ लिए। मेरा पेटीकोट मेरी जांघो को तक आ चुका था। पंखे की हवा मेरे जांघों के अंदरूनी भाग को छू रही थी और मुझे शीतलता का एहसास करा रही थी। उस आदमी ने मेरी पेटीकोट को मेरे नितंबों तक ला दिया था। उसे और ऊपर उठाने के मैने स्वयं अपने नितंबों को ऊपर उठा दिया। उस आदमी के सामने मुझे नंगा होने में पता नहीं क्यों शर्म नही आ रही थी। मैं उत्तेजित हो चली थी।

पेटिकोट और साड़ी इकट्ठा होकर मेरी कमर के नीचे आ गए। घुंघराले बालों के नीचे छुपी मेरी बूर उस आदमी की निगाहों के सामने आ गयी।
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उस आदमी का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर उसकी कद काठी बाबूजी के जैसी ही थी। वह आदमी मेरी जाँघों को छू रहा था। उसकी बड़ी बड़ी खुरदुरी हथेलियां मेरे जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर तक पहुंचती पर उसे छू नही रही थीं।

मैं चाहती थी कि वह उन्हें छुए पर ऐसा नहीं हो रहा था। मेरी बुर के होठों पर चिपचिपा प्रेमरस छलक आया था। अंततः उसकी तर्जनी उंगली ने मेरी बुर से रिस रहे लार को छू लिया। उसकी उंगली जब बुर से दूर हो रही थी तो प्रेमरस एक पतले धागे के रूप में उंगली और बूर के बीच आ गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी बुर उस उंगली को अपने पास खींचे रखना चाहती थी।

उंगली के दूर होते ही वह पतली कमजोर लार टूट गयी जिस का आधा भाग वापस मेरी बूर पर आया और आधा उसकी उंगली से सट गया। उस आदमी ने अपनी उंगली को ध्यान से देखा और अपने नाक के करीब लाकर उसकी खुशबू लेने की कोशिश की। और अंततः अपनी जीभ से उसे चाट लिया। मेरी बुर उस जीभ का इंतजार कर रही थी पर उस अभागी का कोई पुछनहार न था। मैं अपनी कमर हिला रही थी मेरी जाघें पूरी तरह फैल चुकी थी ।

अचानक वह व्यक्ति उठकर मेरी चूँचियों के पास आ गया। मेरी ब्लाउज का हुक खुद ब खुद खुलता जा रहा था। तीन चार हुक खुलने के पश्चात चूचियां उछलकर ब्लाउज से बाहर आ गयीं। उस व्यक्ति ने मेरी चूचियों को चूम लिया। एक पल के लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया पर फिर अंधेरा हो गया। वह मेरी चुचियों को चूमे जा रहा था। उसकी हथेलियां भी मेरी चुचियों पर घूम रही थी। आज पहली बार किसी पुरुष का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई। मेरी बुर फड़फड़ा रही थी। मैंने स्वयं अपनी उंगलियां को अपने बुर के होठों पर ले जाकर सहलाने लगी। मेरी बुर खुश हो रही थी और उसकी खुशी उसके होठों से बह रहे प्रेम रस के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक मेरी चूचि का निप्पल उस आदमी के मुह में जाता महसूस हुआ। वह मेरे निप्पलों को चुभला रहा था। मैं कापने लगी। मैने इतनी उत्तेजना आज तक महसूस नहीं की थी।

कुछ देर बाद मैंने उस आदमी को अपनी धोती उतारते देखा। उसका लंड मेरी आंखों के ठीक सामने आ गया यह। लंड तो बाबुजी से ठीक मिलता-जुलता था मैं अपने हाथ बढ़ाकर उसे छूना चाह रही थी। वह मेरे पास था पर मैं उसे पकड़ नहीं पा रही थी। मेरी कोमल हथेलियां ठीक उसके पास तक पहुंचती पर उसे छु पाने में नाकाम हो रही थी।

मैं चाह कर भी उस आदमी को अपने पास नहीं बुला पा रही थी पर उसके लंड को देखकर मेरी बुर चुदवाने के लिए बेचैन हो चली थी। मैं अपनी जांघों को कभी फैलाती और कभी सिकोड़ रही थी।

वह आदमी मेरी उत्तेजना समझ रहा था कुछ ही देर में वह बिस्तर पर आ गया और मेरी जांघों के बीच बैठकर अपनी गर्दन झुका दिया वह अपने होठों से मेरी नाभि को चूम रहा था और हथेलियों से चूचियों को सहला रहा था। मैं स्वयं अपनी हथेलियों से उसके सर को धकेल कर अपनी बुर पर लाना चाहती थी पर जाने यह यह क्यों संभव नहीं हो पा रहा था । मेरी हथेलियां उसके सर तक पहुंचती पर मैं उसे छू नहीं पा रही थी।

अचानक मुझे मेरी जाँघे फैलती हुई महसूस हुयीं। लंड का स्पर्श मेरी बुर पर हो रहा था बुर से निकल रहा चिपचिपा रस रिश्ते हुए मेरी कोमल गांड तक जा पहुंचा था। मैं उत्तेजना से हाफ रही थी तभी लंड मेरी बुर में घुसता हुआ महसूस हुआ।

मैं चीख पड़ी

"बाबूजी……"

मेरी नींद खुल गई पर बाबूजी जाग चुके थे। उन्होंने कहा

"का भईल सुगना बेटी"

भगवान का शुक्र था। लाइट गयी हुयी थी। मेरी दोनों जाँघें पूरी तरह फैली हुई थी और कोमल बुर खुली हवा में सांस ले रही थी। वह पूरी तरह चिपचिपी हो चली थी मेरी उंगलियां उस प्रेम रस से सन चुकी थी। मैंने सपने में अपनी बुर को कुछ ज्यादा ही सहला दिया था। मेरी चूचियां भी ब्लाउज से बाहर थी।
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मैंने बाबूजी की आवाज सुनकर तुरंत ही अपनी साड़ी नीचे कर दी।

मुझे चुचियों का ध्यान नहीं आया। बाबूजी की टॉर्च जल चुकी थी उसकी रोशनी सीधा मेरी चुचियों पर ही पड़ी। प्रकाश का अहसास होते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू खींच लिया पर बाबूजी का कैमरा क्लिक हो चुका था। मेरी चुचियों का नग्न दर्शन उन्होंने अवश्य ही कर लिया था। साड़ी के अंदर चुचियां फूलने पिचकने लगीं।

मेरी सांसे अभी भी तेज थीं। बाबू जी ने टॉर्च बंद कर दी शायद वह अपनी बहू की चूँचियों पर टार्च मारकर शर्मा गए थे। उन्होंने फिर पूछा

" सुगना बेटी कोनो सपना देखलू हा का?" उनकी बात सच थी। मैंने सपना ही देखा था पर उसे बता पाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा

"हां बाबू जी"

"चिंता मत कर….नया जगह पर नींद ठीक से ना आवेला"

" हा, आप सूत रहीं"

मैंने करवट लेकर अपनी चुचियों को बाबूजी से दूर कर लिया और मन ही मन मुस्कुराते हुए सोने लगी। डर वश मेरी बुर पर रिस आया प्रेमरस सूख गया था। मेरा बहुप्रतीक्षित लंड बगल में सो रहा था पर वह मेरी पहुंच से अभी दूर था मुझे इंतजार करना था पर कब तक?

सुगना तो करवट लेकर सो गई पर उसने अपने बाबू जी की आंखों की निंदिया हर ली. सुगना की चुचियों को साक्षात देखने के बाद उनके दिमाग पर उनके मन में काबू कर लिया. अब उन्हें सुगना उनकी प्यारी बहू बेटी जैसी न लगकर साक्षात पदमा के रूप में दिखाई देने लगी जो सिर्फ और सिर्फ कामवासना का प्रतीक थी। पदमा को सरयू सिंह ने जब जब भी और जिस जिस भी तरह से चोदा था उसने हर चुदाई का अद्भुत आनंद लिया था और हर बार सरयू सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की थी।

वह सरयू सिंह से चुद कर हर बार उनकी कायल हो जाती। आज सुगना भी उन्हें उसी रूप में दिखाई पड़ रही थी सुगना की चुचियों के बारे में सोचते हुए उनके हाथ लंड पर चले गए। नींद की खुमारी उनकी आंखों में ही नहीं दिमाग पर भी थी।

वह मन ही मन सुगना को नग्न करने लगे जब जब उनका दिमाग सुगना की मासूम चेहरे को उन्हें याद दिलाता वह अपना ध्यान वापस उसकी चुचियों पर ले आते और अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगते। अपने मन में सुगना की चूँचियों से जी भर खेलने के बाद वह उसकी नाभि और कमर को चूमने लगे पर उसके आगे वह उसे नग्न न कर पाए। एक बार फिर उनका दिमाग हावी होने लगा वह उन्हें अपनी बहू सुगना की कोमल बुर की परिकल्पना करने से रोक रहा था। आखिर उन्होंने उसे बेटी कह कर पुकारा था। सरयू सिंह गजब दुविधा में थे।

लंड से वीर्य निकलने को बेताब था। एक बार फिर उन्होंने सुगना की जगह पदमा की बुर को याद किया। लंड ने अपनी पुरानी रजाई को याद किया और वीर्य की धार फूट पड़ी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी पर शायद वह यह अंदाज नहीं लगा पाई थी कि उसके बाबूजी उसकी चुचियों को याद कर अपना हस्तमैथुन कर रहे थे।

सरयू सिंह का उफान थम चुका था। उनकी उत्तेजना शांत हो चुकी थी। पर अब वह आत्मग्लानि से भर चुके थे। उन्होंने अपनी सुगना बहू को मन ही मन नग्न कर हस्तमैथुन किया था जो सर्वथा अनुचित था। पर उन्हें यह नहीं पता था की वह एक निमित्त मात्र थे। नियति सरयू सिंह और सुगना पास लाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी और अपनी योजना अनुसार साजिश भी रच रही थी।

सुगना बिना स्खलित हुए ही सो गई थी।

अगली सुबह खुशनुमा थी। सुगना और सरयू सिंह लगभग एक साथ ही उठे उनकी नजरें मिली और दोनों मुस्कुरा दिए। सुगना ने पूछा

"बाबूजी नींद आयल ह नु हम राती के जगा देनी रहली"

सरयू सिंह ने कहा

"हां तू ठीक बाड़ू नु"

"का सपना देखले रहलु"

सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना अपने सपने की भनक भी उन्हें नहीं लगने देना चाहती थी। तभी सुगना का ध्यान सरयू सिंह की धोती पर गया। सरयू सिंह के वीर्य की कुछ बूंदे उनकी धोती पर भी लग गई थी सफेद चमकदार धोती पर वीर्य का अंश स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

सुगना ने वह दाग देख लिया और बोली " बाबूजी धोती पर ई का गिरल बा"

सरयू सिंह निरुत्तर थे. अभी कुछ देर पहले उन्होंने सुगना से प्रश्न पूछकर उसे निरुत्तर कर दिया था और अब स्वयं उसी अवस्था में आ गए थे।

कुछ ही देर में ससुर और बहू वापस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे। सरयू सिंह की की उंगलियों ने एक बार फिर सुगना को साड़ी पहनाने में मदद की और इसके एवज में उन्हें सुगना की कोमल कमर और पीठ को छूने का अवसर प्राप्त हो गया जिसका आनंद सरयू सिंह ने जी भर कर लिया। अब सुगना उनकी बेटी न रही थी।

साड़ी पहनाते समय सुगना की चूचियां फिर उनकी आंखों के सामने आकर उन्हें ललचा रही थी और उनका लंड एक बार फिर तनाव में आ रहा था। सुगना भी मन ही मन चुदने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसे यह उम्मीद हो चली थी कि कभी न कभी सरयू सिंह उसके और करीब आ जाएंगे।

दोपहर में घर पहुचने पर कजरी उन दोनों का इंतजार कर रहे थी। सरयू सिंह द्वारा लाई गई साड़ी कजरी को बहुत पसंद आयी। सुगना के लिए यह शहर यात्रा यादगार थी ….

हरिया भागता हुआ सरयू सिंह के दरवाजे पर आया और बोला

" सरयू भैया उ सुधीरवा हॉस्पिटल में भर्ती बा काल शहर में ओकरा के कुछ लोग ढेर मार मरले बा. लाग ता बाची ना….

सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के साथ एक सुखद रात बिता कर आए थे और उसी रात उन पर केस करने वाले वकील सुधीर की कुटाई हो गई थी जो अब मरणासन्न स्थिति में पड़ा हुआ था. सरयू सिंह के लिए यह एक नई मुसीबत थी उन्हें अचानक यह डर उत्पन्न हो गया कि कहीं उसकी पिटाई में सरयू सिंह का नाम ना जोड़ दिया जाए वह थोड़ा परेशान हो गए….

कजरी ने उनके आवभगत में कोई कमी नहीं रखी वैसे भी उसे चुदे हुए आज 2 दिन हो चुके थे। सामान्यतः कजरी सरयू सिंह के करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसे सरयू सिंह से चुदने में बेहद आनंद आता था। यह सच भी था सरयू सिंह का हथियार अनोखा था जिन जिन स्त्रियों ने उसे अपनी जांघों के बीच पनाह दी थी वह सभी उनकी मुरीद थीं।

सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित थे। शहर के कुछ समय जो उन्होंने सुगना के साथ बिताए थे उसने उनके शरीर मे इतनी उत्तेजना भर दी थी जो सिर्फ और सिर्फ कजरी ही शांत कर सकते थी।

सरयू सिंह और कजरी शाम को छेड़खानी कर रहे थे। वह रात रंगीन करने के मूड में आ चुके थे सुगना ने यह भांप लिया था। कजरी ने शाम को खाना जल्दी बनाया और सुगना अपने बाबू जी को खाना खिलाने दालान में आ गयी। सरयू सिंह खाना खाते रहे और अपने ही हाथों सुगना को भी खाना खिलाते गए। वैसे भी उसके हाथ में प्लास्टर बधा हुआ था। यह कजरी के लिए एक मदद ही थी अन्यथा यही काम कजरी को करना पड़ता।

सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी।उसने आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।

उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन रख दी थी। जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।

सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।

कजरी ने कहा

"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"

कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।

सुगना बेसब्री से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।

कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….

शेष अगले भाग में..
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#13
Heart 
भाग-12


शहर से आने के बाद सुगना बेहद खुश थी। खाना खिलाते हुए वह लापरवाही से अपनी चुचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा रही थी। खाना खाने के पश्चात सुगना ने अपनी दवाइयां खाई और सोने चली गई पर उसकी आंखों में नींद कहां थी। आज उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में वह अपनी सास कजरी की चुदाई जरूर देखेगी।

उसने जानबूझकर आज कजरी की कोठरी में लालटेन उचाई पर रख दी थी जिसे बुझाने के लिए चारपाई से उठकर थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। सुगना के कमरे का दिया बंद होते ही कजरी और सरयू सिंह खुस हो गए। थोड़ी देर इंतजार करने के बाद कजरी अपने कमरे में आ गई ।

सरयू सिंह ने भी अपना लंगोट खोला और कजरी के पीछे पीछे कमरे में आ गए।

कजरी ने कहा...

"कुंवर जी लाई रहुआ के तेल लगा दीं दिन भर चल ले बानी थक गइल होखब"

कजरी सचमुच कुंवर जी का ख्याल रखती थी वह उनके पैरों में तेल लगाने लगी।

सुगना बेसब्र मन से झरोखे से अपनी सास और उनके कुँवर जी कर रास लीला देख रही थी।

कजरी के हाँथ धीरे धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे….

कजरी के हाथ सरयू सिंह के लंड तक पहुंच गए । कजरी ने उनकी जांघों पर लंगोट न पाकर पूछा

"पहिलही तैयारी कर के आइल बानी"

वह मुस्कुराने लगे उनका लंड अब तनाव में आ चुका था। कजरी ने उनके लंड को बाहर निकाल लिया और अपने हाथों में तेल लेकर उसे सहलाने लगी। जैसे जैसे कजरी के हाथ उस पर चल रहे थे लंड का तनाव बढ़ता जा रहा था। कुछ ही देर में वह अपने पूर्ण आकार में आ गया। काला लंड तेल लग जाने से चमक रहा था। उसका मुखड़ा चुकंदर के जैसा लाल था।

सुगना अपने झरोखे से वह दृश्य देख रही थी उसका बहुप्रतिक्षित जादुई यंत्र उसके आंखों के सामने था जिस पर उसकी सास ने अधिकार जमा रखा था। कजरी के गोरे हाथों में उस काले लंड को देखकर वह सिहर उठी। कितना सुंदर था वह लंड । वह उसे छूना चाहती थी उसे महसूस करना चाहते थी। उसके सुपारे पर बना हुआ छोटा छेद सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। यही वह द्वार था जहां से प्रेम रस आता होगा वह लंड की कल्पना में खोई हुई थी उधर उसकी हथेलियां अपने बुर तक पहुंच गयीं।

वह कभी उसे सहलाती कभी थपथपाती कभी उसे पकड़ने की कोशिश करती। बुर ने प्रेम रस छोड़ना शुरू कर दिया था जो उसकी हथेलियों को भिगो रहा था।

उधर कजरी ने लंड को तेजी से आगे पीछे करना शुरू कर दिया। सरयू सिंह की आंखें बंद हो रही थी। सरयू सिंह के हाँथ हरकत में आ गए उन्होंने कजरी की साड़ी खींचना शुरू कर दी। कजरी भी उनका साथ दे रही थी। कुछ ही देर में कजरी सिर्फ पेटीकोट में चारपाई पर थी।

सरयू सिंह ने कहा

"एकरो के खोल द"

"पहले तेल त लगा दी"

" हमु लगाइब"

कजरी खुश हो गई वह चारपाई से नीचे उतरी और अगले ही पल उसका पेटीकोट जमीन पर आ गया। लालटेन की रोशनी में सुगना के बाबूजी और उसकी सास जन्मजात नग्न अवस्था में आ गए थे।

कजरी ने कहा

"लालटेनवा त बुता (बंद) दीं"

"जरे द तहर बुर देखले ढेर दिन हो गइल बा"

सरयू सिंह के इस उदगार वाक्य में आलस और उत्तेजना दोनो का ही अंश था।

सुगना, कजरी की सुंदरता देख कर आश्चर्यचकित थी। इस उम्र में भी उसके बदन खासकर चूँचियों और नितंबों का आकार और कसाव कायम था।

कजरी अब सरयू सिंह के पेट पर बैठ चुकी थी। उसका चेहरा उनके पैरों की तरफ और सुगना की कोठरी कि तरफ था। उसकी बुर ठीक सरयू सिंह की नाभि पर थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की नाभि कजरी की बुर से रिस रहे लार को इकठ्ठा करना चाह रही हो।

सुगना अपनी सास का चेहरा देख पा रही थी जो अब वासना से ओतप्रोत था। अब सरयू सिंह का चेहरा देखना उसके लिए संभव नहीं था फिर भी सुगना को सरयू सिंह के जिस अंग से सबसे ज्यादा प्यार था वह उसकी आंखों के ठीक सामने था।

कजरी फिर अपने हाथ एक बार उस लंड पर लायी और उसे सहला दिया। वह आगे बढ़कर उनके पैरों की मालिश करने लगी।

कजरी मालिश करने के लिए जैसे ही उनके पैरों तक पहुंचती उसकी चूचियां सरयू सिंह के लंड से टकरा जाती। सरयू सिंह का लंड भी उन मुलायम चूँचियों के स्पर्श से उछल जाता। लंड की उछाल सुगना अपनी आंखों से देख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कजरी की चूचियाँ सरयू सिंह के काले नाग को छेड़ रही हैं वह बार-बार उछलकर चुचियों के निप्पल से टकराने की कोशिश करता तब तक कजरी आगे बढ़ जाती।

उधर सरयू सिंह कजरी की फूली हुई बुर् का दीदार कर रहे थे। जब कजरी उनके पैरों तक पहुंचती कजरी की बुर थोड़ा सिकुड़ जाती पर वापस आते समय उसका बुर के होठों में छुपा पनियाया गुलाबी मुख सरयू सिंह की आंखों के सामने आ जाता। सरयू सिंह को वह गुलाबी गुफा बेहद प्यारी थी।

आखिर में कजरी की बुर सरयू सिंह की नाभि पर आकर टिक जाती। कजरी की बुर से बह रहा चिपचिपा रस सरयू सिंह की नाभि में भर चुका था।
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जब कजरी आगे बढ़ती एक पतली चिपचिपी लार नाभि और बुर के बीच में बन जाती सरयू सिंह को स्त्री उत्तेजना का यह प्रतीक बेहद आकर्षक लगता जितना ज्यादा रस बुर से निकलता सरयू सिंह उतना ही खुश होते ।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपनी हथेलियों में तेल लिया और कजरी की पीठ पर लगाने लगे कुछ ही समय में हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया और वो कजरी की चुचियों को मीसने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह मैदे की दो बड़ी-बड़ी गोलाइयों को अपने हाथों से गूंथ रहे थे।
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सुगना सिहर उठी उनकी मजबूत हथेलियों में अपनी सास कजरी की चूँची को देखकर वह वासना से भर गई। वह अपने हाथों से ही अपनी चूचियां दबाने लगी। सुगना की चूचियां पूरी तरह तनी हुई और कड़ी थी वह चाह कर भी अपनी चुचियों को उतनी तेजी से नहीं दबा पा रही थी जितनी तेजी से सरयू सिंह कजरी की खुशियों को मसल रहे थे। सुगना के कोमल हाथ उसकी चूचियों को वह सुख दे पाने में नाकाम थे जो सरयू सिंह की हथेलियां कजरी को दे रही थी।

सरयू सिंह कजरी की चूचियों को तेजी से मसल रहे थे। कजरी ने कहा

"कुंवर जी तनी धीरे से ……..दुखाता"

सरयु सिंह ने कजरी को और पीछे खींच लिया. अब कजरी के गदराये नितंब उनके चेहरे के पास आ चुके थे। कजरी जैसे ही तेल लगाने के लिए आगे की तरफ झुकी उसने अपनी कमर पीछे कर दी। उसकी बुर सरयू सिंह के होठों पर बिल्कुल करीब आ गयी। सिंह ने देर न की और अपने होंठ अपनी भौजी कजरी के बुर् के होठों से सटा दिए।

कजरी चिहुँक उठी उसने सरयू सिंह की तरफ देखा। पर वह तो अपना चेहरा उसके नितंबों में छुपाए हुए थे। होंठ कजरी की बुर चूस रहे थे और नाक कजरी की गांड से छू रही थी।

सुगना अपने बाबू जी का चेहरा तो नहीं देख पा रही थी पर कजरी की कमर में हो रही हलचल से वह अंदाज जरूर लगा पा रही थी। तभी एक पल के लिए कजरी ऊपर उठी। सुगना को सरयू सिंह की ठुड्डी दिखाई पड़ गई। कजरी की भग्नासा सरयू सिंह की ठुड्डी से टकरा रही थी। कजरी की बुर् सरयू सिंह के होठों से सटी हुयी थी। सरयू सिंह बुर के होठों को चूसे जा रहे थे बीच-बीच में उनकी लंबी जीभ दिखाई पड़ती जो कजरी की बुर में न जाने कहां गुम हो जा रही थी।

सुगना तड़प उठी एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे सरयू सिंह के होंठ उसकी अपनी ही बुर पर आ गए हों. बुर के अंदर एक मरोड़ सी उठी। उसने अपनी जांघों को तेजी से सिकोड लिया बुर को सहला रही उसकी हथेलियां स्वतः ही सिकुड़ गई और छटक कर बाहर आ गयीं.
सरयु सिंह की जीभ अपना कमाल दिखाने लगी और कजरी की कमर तेजी से हिलने लगी। वह स्वयं अपनी बुर को अपने कुंवर जी के चेहरे पर रगड़ने लगी। कजरी ने अपने होंठ खोलें और अपने कुंवर जी के मोटे लंड को अपने होंठों के बीच ले लिया।
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सुगना से अब और बर्दाश्त ना हो रहा था। सुगना को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी सासु मां ने उसका लॉलीपॉप छीन लिया हो। बात सही थी चुदने की उम्र सुगना की थी और चुद कजरी रही थी। नियति का यह खेल निराला था। सुगना के लॉलीपॉप पर उसकी सास ने कब्जा कर रखा था।

सुगना अपनी चिपचिपी बुर को अपनी उंगलियों से फैला रही थी वह अपनी उंगली को बुर के अंदर प्रवेश कराना चाहती थी पर उसकी कौमार्य झिल्ली उसे रोक रही थी। वह जैसे ही अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाती एक दर्द की लहर उसकी बुर में उठती। अपनी उंगलियों को हटा लेती। इस खुशी के मौके पर वह दर्द सहने के मूड में नहीं थी। उसने अपना ध्यान बुर् की भग्नासा पर लगा दिया। उसे सहलाने में उसे अद्भुत आनंद मिलता था।

उधर कजरी सरयू सिंह के लंड को तेजी से चूसने लगी। कजरी के मुंह में उनके लंड का एक चौथाई भाग ही जा पाता इससे ज्यादा जाना संभव भी नहीं था। कजरी के मुख से लार बहने लगा था जिसमें सरयू सिंह के लंड से रिस रहा वीर्य भी शामिल था। कजरी की हथेलियां उसे लंड पर बराबरी से लगा रही थी। वह उनके अंडकोशो को भी सहला रही थी जो लंड के साथ सहबाला ( विवाह के समय दूल्हे के साथ जाने वाला छोटा बच्चा जो सामान्यतः छोटा भाई या रिश्तेदार होता है ) की तरह सटे हुए थे।

कुछ देर सरयु सिंह का लंड चूसने के बाद अचानक कजरी सरयू सिंह के ऊपर से उठ गयी। यह दृश्य देख रही सुगना अचानक हुए दृश्य परिवर्तन से हड़बड़ा गयी। वह जिस डिब्बे पर खड़ी होकर यह दृश्य देख रही थी असंतुलित होकर उसके पैरों से हट गया एक टनाक………. की आवाज आई कजरी और सरयू सिंह सचेत हो गए. आवाज सुगना के कमरे से आई थी।

कजरी ने कहा

"जाकर देखी ना का भईल बा"

"तू ही चल जा"

"हमरा कपड़ा पहिने कें परि आप धोती लपेट के चल जायीं।"

सरयू सिंह का लंड पूरी तरह तना हुआ था वह कजरी की बुर का इंतजार कर रहा था पर अचानक आई इस आवाज ने उनकी उत्तेजना में विघ्न डाल दिया था।

सुगना को देखना जरूरी था। उसके हाथ में प्लास्टर पहले से लगा हुआ था वह किसी अप्रत्याशित घटना को सोचकर घबरा गए।

तभी कजरी ने वहीं से आवाज दी

"सुगना….., सुगना……"

सुगना अपनी सास की आवाज सुन रही थी पर उसने कोई जवाब न दिया वह अपने जगे होने का प्रमाण नहीं देना चाह रही थी कजरी ने फिर कहा

"एक हाली जाके देख आयीं"

उन्होंने अपनी धोती कमर में लपेटी पर वह अपने लंड को धोती से नहीं छुपा पाये। उसे अपने हाथों से अपने पेट से सटाए हुए अपनी टॉर्च लेकर आगन में आ गए और सुगना के दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने टॉर्च जला दी। अंदर का दृश्य देखकर वह सन्न रह गए।

सुगना अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी। उसकी ब्लाउज सामने से पूरी तरह खुली हुई थी दोनों चूचियां खुली हवा में सांस ले रहीं थीं। टॉर्च की रोशनी से सुगना ने आंखे मीच ली थीं जिसे सरयू सिंह ने देख लिया। कमर के नीचे सुगना के शरीर पर सिर्फ पेटीकोट था जो उसकी कमर और जाँघों को ढका हुआ था। सुगना की चूचियां उसकी सांसों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी वह अपनी सांसों को सामान्य रखने की कोशिश कर रही थी पर यह संभव नहीं था उत्तेजना अपना अंश छोड़ चुकी थी।

कजरी के कमरे से आ रही लालटेन की रोशनी सरयू सिंह की आंखो को नजर आ गई उस झरोखे के ठीक नीचे टीन का डिब्बा लुढ़का हुआ पड़ा था।

सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया वह यह जान चुके थे कि सुगना उनके और कजरी के बीच में चल रही रासलीला को देख रही थी और उत्तेजित होकर अपनी चुचियों और हो सकता है जांघों के बीच छुपी कोमल बुर् का मर्दन कर रही थी।

शायद इसी दौरान असंतुलित होकर वह डिब्बे से फिसल गई और अपनी लज्जा बचाने के लिए वह तुरंत ही चारपाई पर लेट गई थी।

सरयू सिंह अपनी बहू की इच्छा जान चुके थे वह हमेशा उसे खुश करना चाहते थे आज उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया और चुपचाप कजरी के कमरे में वापस आ गए।

उनके लंड ने उछल कर उनके फैसले पर मुहर लगाई और वह तन कर कजरी की बुर में जाने के लिए तैयार हो गया।

सरयू सिंह मन ही मन मुस्कुरा रहे थे कजरी अपनी जांघें फैलाए लेटी हुई थी। सरयू सिंह को देखते ही उसने पूछा

"सुगना ठीक बिया नु?"

"हां आराम से सुतल बिया एगो टीन के डिब्बा बिलरिया गिरा देले रहे" सरयू सिंह ने अपना उत्तर कुछ तेज आवाज में ही दिया था। सुगना ने भी सरयू सिंह का वह उत्तर सुन लिया और अपनी चोरी न पकड़े जाने से वह खुश हो गयी। खुशी ने उसकी उत्तेजना को फिर जागृत कर दिया और वह एक बार फिर टिन के डब्बे पर चढ़कर अपनी सास की चुदाई देखने आ गयी।

सुगना की चूचियों को देखने के बाद सरयू सिंह सिंह की उत्तेजना नए आयाम पर जा पहुंची थी। उनके दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी।
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कजरी अचानक उन्हें सुगना दिखाई पड़ने लगी। कजरी की दोनों जाँघों के बीच उस फूली हुई चूत में वह सुगना की बुर ढूंढने लगे। उनके मन से सुगना के प्रति बहू और पुत्री का भाव बिल्कुल खत्म हो चुका था। वह उन्हें कामोत्तेजना से भरी एक युवा नारी के रूप में दिखाई पड़ने लगी जो अब से कुछ देर पहले उनकी और कजरी की रासलीला देख रही थी।

सरयू सिंह ने जब सुगना की मां पदमा को चोदा था तब उसकी उम्र भी सुगना के लगभग बराबर थी। सुगना की कामुकता और मादकता ने सरयू सिंह के मन में सुगना को एक भोगने योग्य नारी के रूप में प्रस्तुत कर दिया था। रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर जब सुगना स्वयं ही उनके करीब आना चाहती थी तो उनका यह कर्तव्य बनता था कि वह कामोत्तेजना से भरी उस सुंदरी की इच्छा पूरी करें।

उधर कजरी और सरयू सिंह के बीच हुआ वार्तालाप सुगना ने सुन लिया था उसने अपने न पकड़े जाने पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और एक बार फिर उसी टीन के डिब्बे पर चढ़कर कजरी और सरयू सिंह की रास लीला देखने लगी।

सरयू सिंह का दिमाग लंड के आधीन हो चुका था। उन्होंने मन ही मन यह सोच लिया की उनकी बहू सुगना एक बार फिर झरोखे से उनकी चुदाई देख रही होगी इस ख्याल मात्र से ही उनकी उत्तेजना भड़क उठी वह अपनी सुगना बहू को अद्भुत नजारा दिखाने के लिए बेताब हो उठे। उन्होंने झुककर कजरी की बुर को चूम लिया।


उन्होंने कजरी की जांघों को फैला कर उसके बुर को सुगना की निगाहों के ठीक सामने कर दिया। वह अपनी उंगलियों से कजरी की बुर फैलाने लगे। सुगना सिहर रही थी। सरयू सिंह कजरी के बगल में थे उन्होंने अपनी जीभ कजरी के भगनासे पर रगड़ना शुरू कर दिया।
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कजरी अपनी जाँघें कभी फैला रही थी और कभी सिकोड रही थी।

सरयू सिंह अपनी एक हथेली से अपने लंड को सहला रहे थे वह बार बार उस झरोखे को देख रही थे। सुगना वह दृश्य देख रही थी कभी-कभी उसे लगता जैसे आज कुछ नया हो रहा है। कभी-कभी वह सोचती कहीं उसके बाबूजी को उसकी इस चोरी का पता तो नहीं चल गया? परंतु उसकी उत्तेजना इस संभावना को नजरअंदाज कर उसे झरोखे पर बनाए रखती।

उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसके बाबू जी उसकी इस चोरी को पकड़ चुके थे। उधर कजरी अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी उसने कहा

"कुंवर जी अब तड़पाई मत आ जायीं"

सरयू सिंह ने कहा

"का जाने काहें आज तहरा के खूब चोदे के मन करता"

" का बात बा शहर में कोनो नया छोकरी पसंद आई गइल हा का?"

सुगना को अचानक ही उस होटल में हुयी रात की घटना याद आ गई जब उसके बाबूजी ने उसकी चुचियों पर टॉर्च मारा था और आज एक बार फिर उसकी चूचियां उसकी बाबूजी के टॉर्च से प्रकाशमान हो गई थीं। सरयू सिंह ने कजरी की चारपाई को खींचकर इस तरह व्यवस्थित कर दिया जिससे सुगना को चुदाई स्पस्ट दिखाई पड़े।

कजरी सरयू सिंह के उत्साह को देखकर आश्चर्यचकित हो गयी उसने पूछा

" चारपाई काहे खींच तानी" उन्होंने उत्तर दिया

"आज शुभ दिन भर पूरब ओरे मुंह करके चोदला पर ढेर मजा मिली"

कजरी और सुगना दोनों को यह बात कतई समझ ना आई पर सुगना मुस्कुरा रही थी अब कजरी की बुर उसे और अच्छे से दिखाई देने लगी थी।

सरयू सिंह ने अपना लंड अपनी कजरी भौजी की चूत में डालना शुरू कर दिया। कजरी की आंखें बड़ी होती चली गई। दस पंद्रह साल चुदने के बाद भी जब सरयू सिंह का मूसल कजरी की ओखली में प्रवेश करता उसकी आंखें फैल जाती। वह आज भी एक नवयौवना की तरह चुदने का आनंद लेती सरयू सिंह भी अपनी कजरी भौजी की चूत के मुरीद थे।

सुगना इस बात से घबरा रही थी कि जब उसकी सास की फूली हुई चुदी चुदाई बुर सरयू सिंह के लंड को आसानी से नहीं ले पा रही थी तो वह अपनी छोटी सी कोमल बुर में यह मोटा मुसल कैसे ले पाएगी। वह सिहर रही थी। उसकी उत्तेजना ने उसके डर को नजरअंदाज कर दिया था। वह उसकी आंखों के सामने हो रही इस चुदाई से अभिभूत थी। सरयू सिंह ने अपना लंड आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह कजरी की चूचियों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगे।

कमरे में घपा... घप ….घपा….घप... की आवाजें गूंजने लगी. कजरी के कहा…

"कुंवर जी तनी धीरे धीरे……"

सरयू सिंह उसे लगातार चोद रहे थे। बीच-बीच में वह अपनी निगाह झरोखे के तरफ ले जाते जैसे वह सुगना से पूछना चाहते हों

"सुगना बाबू ठीक लगा ता नु"

जब भी सुगना उन्हें अपनी तरफ देखते हुए पाती वह सिहर उठती। उसके मन में एक बार फिर डर आ जाता कि कहीं बाबूजी उसकी असलियत जान तो नहीं रहे हैं। जितना ही वह सोचती उतना ही वह सिहर उठती पर उत्तेजना ने उसे अब बेशर्म बना दिया था। सुगना अपनी बुर को तेजी से सहलाए जा रही थी। वह इस अद्भुत चुदाई को देखकर सुध बुध खो बैठी थी। एक हाथ से कभी वह अपनी चूची सहलाती कभी बुर। दूसरा हाँथ प्लास्टर लगे होने के कारण अपनी उपयोगिता खो चुका था।

कजरी की जाँघे तनने लगीं। वह " कुंवर जी….. कुंवर जी… आह…..ईईईई।।।।आ।।ई…..हुऊऊऊ हम्म्म्म। की आवाजें निकालते हुए स्खलन के लिए तैयार हो गयी। सरयू सिंह ने आज अपने मन में अपनी बहू सुगना को कमर के नीचे भी नग्न कर लिया था। वह उसकी कोमल बुर के आकार की कल्पना तो नहीं कर पा रहे थे और उन्होंने मन ही मन उसकी खूबसूरती को जरूर सोच लिया था। कजरी की बुर चोदते समय उनके दिमाग में कभी सुगना की मां पदमा आ रही थी कभी स्वयं सुनना ।

सरयू सिंह सुगना को अपने जहन में रखकर कजरी की बुर चोद रहे थे इसी कारण अब वह उस झरोखे की तरफ देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। आज उन्होंने कजरी के साथ साथ अपनी बहू सुगना को भी अपनी वासना के दायरे में ले लिया था।

कजरी की हिलती हुई चूचियां उन्हें सुगना की चूचियां प्रतीत होने लगी। सरयू सिंह से अब बर्दाश्त ना हुआ। उन्होंने झुक कर सुगना ( कजरी) की चुचियों को मुंह में भर लिया उनकी आत्मग्लानि एक पल के लिए गायब हो गयी। कजरी की चुचियों को चूसते हुए उन्हें सुगना की चूचियां ही याद आती रहीं। वह मन ही मन सुगना की चूचियों को चूसते रहें और अपने ख्वाबों में अपनी बहू सुगना की बुर चोदते रहे। कुछ पलों के लिए वासना पूरी तरह उनके दिमाग पर हावी हो चली थी।

कजरी सरयू सिंह के इस उत्तेजक व्यवहार से आश्चर्यचकित थी । सरयू सिंह की अद्भुत चुदाई और चूची पीने के अंदाज से वह अद्भुत तरीके से झड़ने लगी। वह कभी अपनी जांघों को फैलाती कभी सिकोडती कभी उनकी कमर पर लपेट लेती।

वह हांफ रही थी और उनकी पीठ पर नाखून गड़ा रही थी। वह सरयू सिंह के विशाल शरीर में समा जाना चाहती थी। कजरी के शरीर की हलचल कम होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया। लंड से वीर्य की धार फूट पड़ी। कजरी के गोरे शरीर पर लंड से निकल रहा सफेद वीर्य गिर रहा था। कभी वह कजरी के चेहरे पर जाता कभी गर्दन पर कभी चुचियों पर। सरयू सिंह अपने हाथों से अपने लंड को पकड़ कर अपनी भाभी के हर अंग को सींच रहे थे।
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उत्तेजना से भरे उनके मन में एक बार आया कि वह वीर्य की एक धार अपनी बहू सुगना के लिए झरोखे की तरफ भी उछाल दें पर वह ऐसा नहीं कर पाए।

उत्तेजना का खेल खत्म हो रहा था वीर्य की आखिरी बूंद निकल चुकी थी तना हुआ लंड सरयू सिंह अपनी कजरी भाभी के भग्नासे पर अभी भी पटक रहे थे। कजरी अपनी हथेलियों से अपनी बुर को ढक कर उस प्रहार से बचना चाह रही थी। उसकी बुर अब संवेदनशील हो चली थी।

उधर सुगना आज अपनी उंगलियों से ही स्खलित हो गई थी। आज देखे गए दृश्य उसके जेहन पर छा गए थे। सरयू सिंह अब उसकी ख्वाबों के शहजादे बन गए थे। उसने मन ही मन सरयू सिंह से चुदने के लिए ठान लिया था। वह उसके आदर्श और अपेक्षित पुरुष बन गए थे। रिश्ते नाते त्याग कर सुगना अपनी जांघें फैलाकर अपने बाबू जी का स्वागत करने को तैयार हो रही थी। वह सरयू सिंह से मिलन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह ससुर और बहू को मिलाने का प्रण कर चुकी थी।

शेष अगले भाग में......
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#14
भाग-13

सुबह सुबह दालान में बैठे हुए सरयू सिंह धूप सेंक रहे थे। कजरी ने जो तेल कल रात उनके शरीर पर लगाया उसका अंश अब भी उनके शरीर पर था। वह अपने घर की बदली हुई परिस्थितियों के बारे में सोच रहे थे।

सुगना को ससुराल आए को चार-पांच महीने बीत चुके थे। सुगना जब इस घर में आई थी उन्होंने उसे एक बहू और पुत्री के रूप में ही माना था। उसके प्रति उनके मन में कामुकता कतई न थी। ऐसा नहीं था की सुगना की कद काठी उन्हें दिखाई नहीं पड़ती थी। वह तो नारी शरीर के पारखी थे पर जब मन में भाव गलत ना हो तो यह आवश्यक नहीं कि सुंदरता हमेशा उत्तेजना को जन्म दे।

परन्तु पिछले एक दो महीनों में सुगना के व्यवहार में परिवर्तन आया था। वो उस परिवर्तन के बारे में खो गए। कैसे उन्होंने हैण्डपम्प पर बर्तन धोते समय उसकी चूँचियों का उपरी भाग देखा वो भी एक बार नहीं की कई बार। क्या सुगना उन्हें वह दिखाना चाहती थी? क्या वह अकस्मात हुआ था ? पर कई बार? यह महज संयोग था या सुगना उन्हें उकसा रही थी? प्रश्न कई थे और उत्तर सरयू सिंह के विवेकाधीन था। उत्तेजना और पारिवारिक संबंध दो अलग-अलग पलड़ों पर थे तराजू की डंडी सरयू सिंह के हाथ में थी। दिमाग पारिवारिक संबंधों का साथ दे रहा था पर लंड उत्तेजना की तरफ झुक रहा था। नियति समय-समय पर उत्तेजना का पलड़ा भारी कर रही थी। उनके और सुगना के बीच दूरियां तेजी से कम हो रही थीं।

विशेषकर होटल में बितायी गयी उस रात जब उन्होंने सुगना की चूँचियों को नग्न देखा था उनकी उत्तेजना ने सुगना से पुत्री का दर्जा छीन लिया। और कल की रात …. वो उत्तेजना की पराकाष्ठा थी… सारे संबंध कामुकता की भेंट चढ़ गए थे।

कैसे वह अपनी भौजी कजरी को चोद रहे थे वह भी सुगना को दिखा दिखा कर और तो और उत्तेजना के उत्कर्ष पर वह अपने मन मे अपनी पुत्री समान बहु को चोदने लगे थे।

उन्हें एक बार फिर आत्मग्लानि होने लगी। सुगना जवान थी उसे सम्भोग सुख प्राप्त नहीं हो रहा था इसके कारण भी वही थे जिन्होंने बिना रतन की सहमति से उसका विवाह सुगना से कर दिया था। ऐसी युवती यदि किसी जोड़े को सम्भोग करते हुए यदि देखती भी हो तो उसमें क्या बुराई थी? क्या इस देखने मात्र से वह उनकी बहू बेटी न रहेगी?

सरयू सिंह की दुविधा कायम थी। तभी सुगना की पायल की आवाज आई वो पास आ रही थी…

"बाबुजी दूध ले लीं" सुगना ने अपनी नजरें झुकाई हुई थी कल रात के दृश्य के बाद वह अभी उनसे बात कर पाने की स्थिति में नहीं थी।

सरयू सिंह ने दूध ले लिया। सुगना वापस जा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें उसकी गोरी और बेदाग पीठ से चिपक गयीं जब तक वो निगाहें फिसलते हुए नितंबो तक पहुंचतीं सुगना निगाहों से ओझल हो गयी।

सुगना जिस आत्मीयता से उन्हें बाबूजी कहती थी वह भाव सरयू सिंह के विचारों पर तुरंत लगाम लगा देता। सरयू सिंह की कामुक सोच तुरंत ठंडी पड़ जाती। उन्हें यह प्रतीत होने लगता कि सुगना उनके बारे में कभी कामुक तरीके से नहीं सोच सकती। वह कभी-कभी दुखी भी हो जाते। परंतु मन के किसी कोने में उनकी कामुकता ने सुगना को अपनी मलिका का दर्जा दे दिया था।

कुछ ही दिनों बाद दशहरा आने वाला था. सुगना का पति रतन सुगना के आने के कुछ दिनों बाद मुंबई चला गया था जो अभी तक नहीं लौटा था वह साल में दो बार आया करता एक बार दशहरा या दिवाली पर दूसरी बार होली के अवसर पर।

शहर में उसकी महाराष्ट्रीयन पत्नी बबीता एक होटल की रिसेप्शनिस्ट थी वह अनुपम सुंदरी थी और शहर की आधुनिकता में ढली हुई थी।

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होटल के रिसेप्शन पर रहने के कारण उसे हमेशा टिपटॉप रहना पड़ता था। रतन से उसकी मुलाकात भी उसी होटल में हुई थी जब वह अपने बॉस के साथ उस होटल में किसी कार्य के लिए गया हुआ था। रतन एक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। वह सरयू सिंह का भतीजा था और सरयू सिंह के परिवार का अंश था। उसमें सरयू सिंह जैसी मर्दानगी तो नहीं थी पर कम अभी नहीं थी।

बबीता और रतन करीब आते गए । बबीता की गोरी चिकनी चूत में अपना लंड डालकर रतन सारी दुनिया भूल गया था। उसे एक पल के लिए भी सुगना का ख्याल नहीं आया था। जब एक बार बबीता की मलाईदार चूत का चस्का रतन को लग गया वह दिन प्रतिदिन उसके करीब आता गया। गांव के भोले भाले रतन को दुनिया का अनोखा सुख प्राप्त हो चला था। उसका भोलापन बबीता ने हर लिया और उसे एक शहर का इंसान बना दिया चतुर और चालाक।

बबीता ने रतन पर विवाह करने का दबाव बढ़ाया तब जाकर रतन को सुगना का ख्याल आया। रतन दुविधा में फंस गया अंत में वह बबीता का आग्रह न ठुकरा पाया और सरयू सिंह और कजरी से अनुमति लिए बिना विवाह कर लिया। उसने मन ही मन अपने और सुगना के बीच हुए बाल विवाह को नकार दिया था।

बबीता सच में सुंदर थी छोटी-छोटी मझौली चूचियां और छोटे चिकने गोलनितंब लिए हुए वह शहर की एक सुंदर लड़की थी। रतन उसकी खूबसूरती में पूरी तरह खो गया था यही कारण था कि जब वह गवना के बाद अपनी पत्नी सुगना को देखा तो ग्रामीण और शहरी लड़की का जो अंतर स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है उसमें बबीता सुगना से कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ी। रतन वैसे भी व्यभिचारी नहीं था। उसने सुगना को हाथ तक नहीं लगाया और वह उसे सुहाग की सेज पर अकेला छोड़कर वापस चला गया.

कजरी के मन में अभी भी उम्मीद कायम थी कि शायद इस बार रतन और सुगना के बीच कुछ नजदीकियां बढें और सुगना को पत्नी सुख की प्राप्ति हो जिसके लिए वह अब अधीर हो चली थी।

कजरी को इस बात की भनक न थी की सुगना और सरयू सिंह इस तरह करीब आ रहे हैं। वह उन्हें घुल मिलकर बात करते हुए देखती और सुगना की खुशी देखकर वह बेहद प्रसन्न हो जाती पर इन नज़दीकियों में उसे कामुकता की उम्मीद कतई न थी। उसे यह भी ज्ञात नहीं था कि कल रात नियति ने उसे भी अपनी साजिश का एक हिस्सा बना लिया था।

सुगना के हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था कजरी ने उसे पूरा आराम करने के लिए कहा. वैसे भी एक हाथ से कोई काम होना संभव न था. वह सरयू सिंह के पास ज्यादा समय व्यतीत करती. सरयू सिंह को भी उसका साथ अच्छा लगता था। वह उनकी नई नई प्रेमिका बन रही थी। सरयू सिंह ने अब उसे पदमा के रुप में देखना शुरू कर दिया था। वह एक विवाहिता थी जो उनके भतीजे की पत्नी थी। यह नियति का खेल था कि वह अब तक कुंवारी थी अन्यथा यह वही अवस्था थी जब पद्मा ने उनके साथ पहली बार संभोग किया था। सरयू सिंह का हृदय परिवर्तन हो रहा था। अभी दो-चार दिन पहले ही उन्होंने कजरी को सुगना बनाकर अपनी वासना शांत की थी और सुगना ने अपनी सास को उन्हें चोदते हुए देखा था.

घर के पिछवाड़े में अमरूद के पेड़ पर फल आये हुए थे। सुबह-सुबह सुगना नहा कर लहंगा और चोली पहने टहल रही थी।

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लहंगे का कपड़ा बेहद मुलायम था। सुगना को कभी-कभी यह एहसास होता जैसे वह नग्न ही घूम रही हो हाथ मे लगे प्लास्टर को छोड़कर उसका कमनीय शरीर बेहद आकर्षक लग रहा था। सरयू सिंह अचानक घूमते हुए सुगना के पास आ गए। सुगना चहक उठी। उसकी निगाह एक अमरुद पर टिकी थी जो लगभग पक चुका था। उसने सरयू सिंह से कहा

"बाबूजी उ अमरुदवा तूर दी"

सरयू सिंह ने उसे अपने हाथों से तोड़ने की कोशिश की पर उसकी ऊंचाई कुछ ज्यादा थी. वह अगल-बगल किसी उचित लकड़ी की तलाश करने लगे। तभी सुगना ने कहा "बाबू जी हमरा के उठायीं हम तूर लेब"

सरयू सिंह को एक पल के लिए यह अजीब लगा अपनी जवान बहु को उपर उठाने का मतलब उसके शरीर को बेहद करीब से छूना पड़ता।

सुगना अपने दोनों हाथ ऊपर कर अमरूद की डाली को पकड़ने की कोशिश करने लगी। वह सरयू सिंह को उसे उठाने के लिए आमंत्रित कर रही थी। सरयू सिंह ने कोई रास्ता न देख सुगना को पीछे जाकर उसकी जांघों को पकड़ लिया और ऊपर उठाने लगे। सुगना आगे की तरफ गिरने लगी। सुगना ने फिर कहा

"बाबूजी आगे से पकड़ीं ना त हम गिर जाइब"

अब तक सरयू सिंह में पिस्टन में लहू भरना प्रारंभ हो चुका था। कामुकता जाग चुकी थी।

सरयू सिंह ने सुगना को सामने से पकड़ लिया। उनकी मजबूत बांहों ने सुगना के नितंबों के नीचे अपना घेरा बना लिया और सरयू सिंह सुगना को लेकर खड़े हो गए। सुगना के मुलायम और कोमल नितंब उनकी मजबूत भुजाओ पर टिक गए। लहंगे का मुलायम कपड़ा सरयू सिंह और सुगना के नितंबों के बीच कोई अवरोध उत्पन्न नहीं कर पा रहा था सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा एहसास हुआ जैसे उन्होंने नंगी सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हूं उनका लंड थिरक उठा।

सरयू सिंह का चेहरा सुगना की नंगी नाभि से टकरा रहा था। सरयू सिंह को एक साथ सुगना के कई अंगों का स्पर्श मिल रहा था। एक तरफ सुगना के कोमल नितम्ब उनकी भुजाओं से छूकर एक सुखद एहसास दे रहे थे वहीं वह अपने गालों और चेहरे से सुगना ने चिकने और नग्न पेट को महसूस कर रहे थे।

अचानक उन्होंने अपने होंठ उसकी नाभि से सटा दिए। सुगना सिहर उठी। उसने अपने हाथ अपने बाबूजी के सर पर रख दिए। वह इस दुविधा में थी कि अपने बाबूजी के सर को अपने पेट की तरफ खींचे या बाहर की धकेले। दरअसल सरयू सिंह के नाक के नीचे खुजली हुयी थी जिसे उन्होंने सुगना के पेट से रगड़ कर शांत करने की कोशिश की थी। सुगना तो अब सरयू सिंह की हर हरकत से ही उत्तेजित जो जाती थी चाहे वह अकस्मात ही क्यों न हुआ हो।

सुगना ने कहा

"बाबू जी थोड़ा और ऊपर उठायीं"

सरयू सिंह ने अपनी भुजाएं और ऊपर कर दी. सुगना और ऊपर उठ गई। सरयू सिंह का चेहरा सुगना की जाँघों के जोड़ पर आ गया। सरयू सिंह के होंठ अब ठीक सुगना की बूर के उपर थे यदि लहंगा न होता तो सरयू सिंह अपनी बहू की पवित्र गुफा का न सिर्फ स्पर्श महसूस कर लेते अपितु उस पर आए मदन रस का स्वाद भी ले लेते।

सुगना की वह अद्भुत दरार गीली हो चुकी थी। उसकी खुसबू सरयू सिंह के नथुनों से टकरा रही थी। चुदी हुयी चूत की खुश्बू सरयू सिंह बखूबी पहचानते थे पर सुगना वह तो पाक साफ और पवित्र थी।

वो सुगना की बुर पर ध्यान लगा कर आंनद लेने लगे। उनकी उत्तेजना जागृत हो चली थी। धोती के नीचे लंड लंगोट फाड़कर बाहर आने को तैयार था। सुगना सरयू सिंह की गर्म सांसे अपनी बुर पर महसूस कर रही थी।

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वह जान बूझ कर अमरूद तोड़ते हुए अपनी जांघो के जोड़ को अपने बाबुजी चेहरे पर रगड़ रही थी।

नियति यह प्रेमालाप देख रही थी। सरयू सिंह इस अद्भुत पल का आनंद ले रहे थे तभी सुगना ने वह अमरुद पकड़ लिया। उधर सुगना ने अमरुद पकड़ा और उधर सुगना की बुर का भग्नासा सरयू सिंह की नाक से टकरा गया। ससुर और बहू दोनों इस छुअन से सिहर उठे।

सुगना खिलखिला कर हंसी और बोली "बाबूजी अमरूद मिल गईल अब उतार दीं"

सरयू सिंह ने सुगना को धीरे-धीरे नीचे करते गए. नीचे उतरते उतरते एक बार सुगना की चूँचियां उनके चेहरे से छूती हुई नीचे चली गई। उनकी हथेलियों में भी सुगना के नितंबों का स्पर्श महसूस कर लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के मुलायम नितंबों को दबाना चाहा पर सरयू सिंह ने दिमाग ने रोक लिया।

यह उत्तेजना सरयु सिंह के लिए बिल्कुल नयी थी। वह बेहद खुश थे। जब सुगना नीचे उतर रही थी वह भी पूरी तरह सचेत थी सरयू सिंह के लंड में आया उभार सुगना ने भी महसूस कर लिया था। ससुर और बहू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति मुस्कुरा रही थी उसकी साजिश कामयाब होने वाली थी.

इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..


शेष अगले भाग में।
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#15
Heart 
भाग-14


इधर सरयू सिंह सुगना से अंतरंग हो रहे थे उधर उनका दुश्मन सुधीर वकील जिंदगी की जंग लड़ रहा था……..

हरिया बाहर दरवाजे पर खड़ा सरयू भैया... सरयु भैया... पुकार रहा था।

"का भईल हो."

"हम शहर जा तानी। तू हूँ चलके.. सुघीरवा के देख आवा। ओकरा होश आ गईल बा का जाने पुलिस ले तोहरा के मत फसा दे"

बात सच थी। सुधीर वकील था जितना चतुर उतना ही हरामी। संयोग से उस दिन सरयू सिंह भी शहर में थे जिस दिन सुधीर की कुटाई हुई थी। यदि वह पुलिस के सामने उनका नाम ले लेता तो सरयू सिंह के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाती। उन्होंने हरिया का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

"ठीक बा हम तैयार हो के आवतानी"

वह आगन में आ गए और कजरी और सुगना को शहर जाने की सूचना दी। वह दोनों झटपट उनके लिये नाश्ते की तैयारी में लग गयीं। उन्हीने कजरी और सुगना से पूछा

"शहर से कुछ ले आवे के बा?"

सुगना चाहती तो बहुत कुछ पर उसने कहा "कब ले आइब"

सुगना के मुंह से यह शब्द सुनकर सरयू सिंह खुश हो गए. उनकी प्यारी सुगना अब उनका इंतजार किया करती है यह बात इनके दिल को छू गई.

कजरी ने कहा

"देखीं सुगना बेटी राउर केतना ख्याल राखे ले"

यह कह कर कजरी ने किए धरे पर पानी फेर दिया। सुगना की कुवारी बुर सूंघने के बाद सरयू सिंह ने सुगना से बेटी का दर्जा छीन लिया था।

रास्ते भर वो सुगना के साथ अपनी रेल यात्रा के दौरान उसके स्पर्श को याद करते रहे। धोती के अंदर लंड परेशांन होकर उन्हें गरिया रहा था। लेना एक नया देना दो, वो बेचारा खामखां परेशान हो रहा था।

दोपहर तक सरयू सिंह हरिया के साथ अस्पताल पहुंच चुके थे। उन्हें अस्पताल दुनिया की सबसे गंदी जगह लगती थी जहां सिर्फ और सिर्फ दर्द था। यहां भी वह अपना दर्द लेकर ही आए थे पर यह दर्द उनके डर के कारण जन्मा था और उन्हें मजबूरन सुधीर से मिलने आना पड़ा था।

हॉस्पिटल के बेड पर लेटा हुआ सुधीर अपनी आंखें खोल कर टुकुर-टुकुर देख रहा था। उसने सरयू सिंह और हरिया को पहचान लिया। सरयू सिंह ने पूछा

"कैसे हो गईल हो?"

तभी सुधीर की पत्नी ने घुंघट के अंदर से कहा

"इहे चारों ओर केस करत चलेले। रामपुर के तीन चार गो लड़का मरले रहले हा सो"

सरयू सिंह को यह जानकर हर्ष हुआ की सुधीर को मारने वाले लोग पहचान लिए गए थे और उनका इस केस से कोई संबंध नहीं था। सुधीर की आंखों में भी नफरत कम दिखाई पड़ रही थी। सरयू सिंह का हॉस्पिटल आना लगभग सफल हो गया था।

वह कुछ देर सुधीर के साथ रहे साथ में लाया हुआ फल उन्होंने सुधीर की पत्नी को पकड़ाया और बोले

"भगवान इनका के जल्दी ठीक करो फेर केस भी त लड़े के बा।"

उन्होंने सुधीर को हंसाने की कोशिश की थी। सुधीर की नफरत निश्चय ही घट चुकी थी वह मुस्कुराने लगा। घुंघट के अंदर से सुधीर की पत्नी की हंसी सुनाई दी।

सरयू सिंह खुश हो गए और हरिया के साथ हॉस्पिटल से बाहर आ गए। आज का दिन शुभ हो गया था। उन्होंने खेती किसानी से संबंधित शहर के कुछ और कार्य निपटाए और वापसी में स्टेशन जाने के लिए निकल पड़े। रिक्शे पर आज सुगना की जगह हरिया बैठा हुआ था।

एक वह दिन था जब उत्तेजना चरम पर थी और एक आज का दिन था। वह रास्ते में फिर सुगना की यादों में खो गए। उन्हें वह होटल दिखाई दे गया जिसमें उन्होंने सुगना के साथ रात गुजारी थी और उसकी मदमस्त चूचियों के दर्शन किए थे। होटल से कुछ ही दूर पर वह कपड़े की दुकान भी दिखाई पड़ी। उस दुकान के बगल में लटके हुए औरतों के अंग वस्त्र देखकर सरयू सिंह का मन ललच गया। वह मॉडल उन्हें सुगना दिखाई देने लगी। उनके मन में आया कि वह रिक्शा रोककर अपनी सुगना के लिए वह अंतर्वस्त्र ले लें और उसे मॉडल की तरह सजा कर …...आगे वह स्वयं शर्मा गए। उनकी सोच पर दिमाग का नियंत्रण कायम था परंतु उनकी लंगोट में हलचल होने लगी लगी। लंड का तनाव बढ़ रहा था उन्हें दर्द का एहसास होने लगा।

हरिया ने कहा

"कहां भुलाईल बाड़ा भैया"

सरयू सिंह चाह कर भी हरिया को हकीकत नहीं बता सकते थे. जहां उनका सुखचैन खोया था वह उनकी अपनी बहू सुगना की बुर थी। उन्होंने बात टाल दी।

स्टेशन पर उतरने के बाद उन्होंने सुगना और कजरी के लिए उनकी पसंद की मिठाइयां लीं और वापस ट्रेन पकड़ने के लिए चल पड़े.

उधर सुधीर की पत्नी रानी ने कहा

"सरयू जी.. केतना अच्छा आदमी हवे आपके देखे आईल रहले हा"

सुधीर ने रानी की बात से सहमति जताई उसे अब सच में अफसोस हो रहा था कि उसने सरयू सिंह पर बिना मतलब केस कर दिया था। उस विवाद का समाधान बैठकर भी निकाला जा सकता था जिसमें हर व्यक्ति को अपना अपना रुख थोड़ा नरम करना था। रानी सरयू सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गई थी। मजबूत कद काठी के सरयू सिंह वैसे भी स्त्रियों के पसंदीदा थे।

जिस तरह सुंदर स्त्री हर वर्ग के पुरुषों को पसंद आती है वही हाल सरयू सिंह का था जिस स्त्री के योनि से प्रेम रस बहता हो वह सरयू सिंह को देख कर एक बार जरूर उनकी कद काठी की तारीफ करती होगी। उनसे अंतरंग होना या ना होना वह स्त्री की मानसिकता पर निर्भर था पर शरीर सिंह का व्यक्तित्व स्त्रियों को प्रभावित करने में सक्षम था.

घर पहुंच कर सुगना थाली में पानी लेकर अपने बाबुजी के पैर धोने लगी। उसकी कोमल हथेलियां उनके पैरों को पानी से धुलते हुए मालिश भी कर रहीं थीं।

सरयू सिंह की निगाह उसकी चूचियों पर टिकी थी। सुगना का ध्यान पैर धोने पर लगा हुआ था और उसका आंचल छाती से हट गया था चूँचियों की झलक सरयू सिंह के मन में उत्तेजना पैदा कर रही थी उधर सुगना की निगाह बीच बीच मे सरयू सिंह के लंगोट पर जा रही थी उसके अंदर छुपा जीव अपना आकार बढ़ा रहा था। सुगना अब समझदार हो चली थी। उसने अपनी चूचियों पर नजर डाली और आँचल खींच लिया।

कजरी गुड़ और पानी लेकर आ गयी थी। सरयू सिंह के झोले में सिर्फ मिठाई देखकर सुगना थोड़ा मायूस हो गई। अपने मन के किसी कोने में उसने कल्पना की थी कि उसके बाबुजी उसके लिए वह अंतर्वस्त्र खरीद लाएंगे पर यह सिर्फ और सिर्फ उसकी कोरी कल्पना थी। उसे पता था यह संभव नहीं होगा फिर भी मन तो मन होता है खुद ही बेतुकी चीजें सोचता है और उनके पूरा न होने पर स्वयं दुखी हो जाता है।

नियति ने सुगना को निराश न किया। आज सुगना का जन्मदिन था. उसने आज सुबह सुबह ही घर के सारे काम निपटाये और स्नान करके अपनी वही खूबसूरत लहंगा चोली पहन ली जो सरयू सिंह ने उसे होली के दिन उपहार स्वरूप दिया था। जब भी सुगना सुंदर कपड़े पहनती वह खुद को उस मॉडल के रूप में देखती पर उसके पास अंतर्वस्त्र नहीं थे लहंगे के नीचे उसे अपनी नग्नता का एहसास होता वह सिहर उठती और मन ही मन आनंदित होती। कपड़े पहन कर वह घर के पिछवाड़े में बाल सुखाने लगी।

सरयू सिंह सब्जियों की क्यारी में कार्य कर रहे थे। कजरी रसोई में सुगना के लिए मालपुआ बना रही थी। आज घर में खुशी का माहौल था। सरयू सिंह सुगना को मुस्कुरा कर देख रहे थे वह आज बहुत सुंदर लग रही थी। ससुर और बहू में कुछ नजदीकियां तो आ ही चुकी थीं दोनों मन ही मन एक दूसरे के प्रति कामुकता लिए हुए थे।

नियति ने तरह-तरह की परिस्थितियां बनाकर उन दोनों को इतना करीब ला दिया था और आज फिर नियत ने अपनी एक चाल चल दी थी। एक उड़ने वाला कीड़ा सुगना के लहंगे में घुस गया। फर्रर्रर... फुर्ररर….की आवाजें आने लगी सुगना परेशान हो रही थी। आवाज उसके बिल्कुल करीब से आ रही थी पर वह जीव उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था तभी वह उसकी नग्न जांघों से छू गया। वह कीड़ा स्वयं एक अनजाने घेरे में आ चुका था। वह कभी सुगना के घुटने को तो कभी उसके कोमल जाँघों को छू रहा था।

सुगना अपने हाथों से उसे पकड़ना चाहती पर वह अपनी जगह लगातार बदल रहा था। सुगना ने उसे पकड़ने का प्रयास किया पर असफल रही वह बेचैन थी। वो अपने हाथ इधर-उधर कर रही थी तभी सरयू सिंह की निगाह उस पर पड़ गई उन्होंने पूछा

"का भईल सुगना "

उसने कहा

"लागा ता कोनो कीड़ा घुस गईल बा"

सरयू सिंह क्यारी छोड़कर सुनना के पास आ गये और उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। सुगना ने अपने हाथों से अपने लहंगे को घुटनों तक उठा लिया था उसके कोमल पैर सरयू सिंह की आंखों के सामने थे। इस प्रक्रिया में उनके हाथ सुगना के पैरों से छूने लगे। वह कभी उसकी जांघों को छूते कभी घुटनों को। सुगना परेशान तो थी अब उत्तेजित भी हो चली थी। उसे मन ही मन यह डर भी था कि कहीं वह कीड़ा उसे काट ना ले अंततः सुगना ने स्वयं ही वह कीड़ा पकड़ लिया। वह उसकी दाहिनी जांघ के ठीक ऊपर था जिसे सुगना ने अपनी उंगलियों में पकड़ रखा था।

कीड़े और सुगना के उंगलियों के बीच सुगना का खूबसूरत लहंगा था । अब मुश्किल यह थी कि उस कीडे को बाहर कैसे निकाला जाए। उसके हाथ में प्लास्टर बधे होने की वजह से वह अपने दूसरे हाथ का प्रयोग नहीं कर पा रही थी. उसने कहा

"बाऊजी हम पकड़ ले ले बानी इकरा के निकाल दी" सरयू सिंह उत्साहित हो गए वह पास आकर सुगना का लहंगा ऊपर उठाने लगे. सुगना की निगाह अपने लहंगे की तरफ जाते वह सिहर उठी सरयू सिंह जमीन पर उकड़ू बैठे हुए थे और सुगना का लहंगा घुटनों के ठीक ऊपर आ चुका था। सरयू सिंह इसी पसोपेश में थे कि वह लहंगे को और ऊपर उठाएं या नहीं पर कीड़ा पकड़ने के लिए उन्हें अपने हाथ तो अंदर ले ही जाने थे।

सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और सुगना ने अपनी आंखें शर्म से बंद कर लीं। अब तक नैनों की भाषा सरयू सिंह और सुगना समझने लगे थे ।

सरयू सिंह ने लहंगा और ऊपर उठा दिया उनकी निगाहें पहले तो कीड़े को देख रहीं थीं पर उन्हें सुगना की जांघों के बीच का जोड़ दिखाई पड़ गया। वह कीड़े को एक पल के लिए भूल ही गए सुगना की हल्की रोयेंदार कमसीन बुर को देखकर को वह मदहोश हो गए। उनका ध्यान कीड़े पर से हट गया।

बाहर बहती हुई हवा ने जब सुगना की कोमल बुर को छुआ सुगना भी सिहर उठी। उसे अपनी नग्नता का एहसास हो गया उसने यह महसूस कर लिया कि उसके बाबूजी उसकी कोमल बुर को देख रहे हैं यह सोचकर वह थरथर कांपने लगी।

उसके हाथों की पकड़ ढीली हो रही थी. सरयू सिंह उस कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे। उन्होंने अपनी उंगलियां कीड़े को पकड़ने के लिए लहंगे के अंदर की उसी समय उनकी हथेलियों का पिछला भाग सुगना की जांघों के ऊपरी भाग से छू गया। आज पहली बार किसी मर्द ने सुगना की जांघों को छुआ था। सुगना सिहर गई उसके हाथ से वह कीड़ा छूट गया और लहंगा भी।

एक बार फिर वह कीड़ा सुगना के लहंगे में गुम हो गया और सुगना का लहंगा उसके बाबूजी के हाथों पर टिक गया। फुर्ररर…फर्रर्रर ….. की आवाजें आने लगी. सरयू सिंह और सुगना दोनों कीड़े को पकड़ने का प्रयास करने लगे. अंततः सरयू सिंह ने सुगना के लहंगे को स्वयं ही ऊपर उठा दिया जांघों तक आते-आते उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई.

सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर को निहार रहे थे उसी समय कीड़ा सुगना की जांघों के बीच से निकलकर उनके माथे को छूता हुआ उड़ गया पर जाते-जाते उनके माथे पर अपना दंश दे गया। सरयू सिंह के माथे पर लाल निशान दिखने लगा उन्हें अपनी कुंवारी बहू की कोमल चूत देखने का नियति ने अवसर भी दिया था और दंड भी।

परन्तु सरयू सिंह का लंड इस दंश के दंड को भूल कर उदंड बालक की तरह घमंड में तन कर खड़ा था आखिर उसके एक सुकुमारी की कोमल बुर में प्रवेश होने की संभावना योगबल ही रही थी।

सरयू सिंह ने लहंगा छोड़ दिया। सुगना अपने बाबूजी का माथा सहलाये जा रही थी। सुगना झुक कर उस जगह पर फूंक मारने लगी जहां कीड़े ने काटा था।

उसकी इस गतिविधि ने उसकी कोमल चूचियों को एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने ला दिया जो चोली में से झांकते हुए उन्हें ललचा रही थीं।

सरयू सिंह कीड़े का दर्द भूल चुके थे वह सुगना के प्यार में खो गए थे। आज सरयू सिंह ने सुगना का खजाना देख लिया था। और वह मन ही मन प्रसन्न थे।

सुगना भी मन ही मन प्रसन्न थी उसकी कोमल बुर उत्तेजना से पनिया गई थी पर उस पर लहंगे का आवरण आ चुका था उसके बाबूजी ने उसकी कुंवारी बुर तो देख तो ली थी पर वह उसकी उत्तेजना न देख पाए थे। सुगना ऊपर वाले को धन्यवाद दे रही थी।

आंगन में आने के बाद मालपुआ खाते समय कजरी ने सरयू सिंह से पूछा

ई माथा प का काट लेलस हा?"

सुगना भी अब हाजिर जवाब को चली थी. सुगना ने हंसते हुए बोला..

"बाबूजी मालपुआ में भुलाईल रहले हा तबे कीड़ा काट लेलस हा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. वह सच में आज अपनी बहू सुगना की कोमल बुर में खोए हुए थे। सुगना की बूर मालपुए से किसी भी तरह कम न थी वह उतनी ही मीठी, उतनी ही रसीली और मुलायम थी। सरयू सिंह की जीभ मालपुए में छेद करने के लिए लप-लपाने लगी।

कजरी भी मालपुए का नाम सुनकर शर्मा गयी। उसके कुँवर जी उसकी बुर को भी कभी कभी मालपुआ बुलाया करते थे।

सुगना ने अनजाने में सरयू सिंह के तार छेड़ दिए थे...

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#16
Heart 
भाग-15


अपने जन्मदिन के दिन सुगना ने अनजाने में ही अपनी कोमल और रसीली बुर सरयू सिंह को दिखा दी थी
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सुगना का मालपुआ

जिसका एहसास सुगना को भी था। सरयू सिंह तो पूरी तरह उस मालपुए में मगन हो गए थे। सुगना का नशा आंखों और दिमाग पर चढ़ चुका था। सुगना उन्हें अब हर जगह दिखाई पड़ने लगी। उनके सपनों पर अब सुगना का एकाधिकार हो चला था।
सरयू सिंह कि अब वह उम्र न थी जब उन्हें कामोत्तेजक सपने आते पर उनके सपनों में मचलती हुई सुगना अवश्य आती। कभी उसकी चूचियां झलक जाती कभी सुगना की कोमल बूर। वह आज भी सपनों में सुगना को पूरा नग्न नहीं देख पाए थे। पर अब वह सुगना को अपनी खुली आंखों से नग्न कर पाने में सक्षम थे।
सुगना के शरीर का लगभग हर भाग उन्होंने देख लिया था पर एक भाग अभी भी बाकी था वह थी सुगना के नितंब और उनके बीच छुपा सुगना का वह अपवित्र द्वार।
इन दो जादुई अंगों के अलावा सुगना का खजाना सरयू सिंह देख चुके थे। उस खजाने को छू पाने की अभी न अनुमति थी न हीं सुगना की तरफ से कोई निमंत्रण। नियति दोनों तरफ आग सुलगा कर तमाशा देख रही थी। जैसे ही आग धीमी पड़ती नियति अपना खेल कर देती…
सुगना के हाथ में चढ़ा हुआ प्लास्टर कटने का समय आ गया था। एक बार फिर सुगना अपने बाबुजी के साथ शहर जाने को तैयार थी। सरयू सिंह ने जाने की तारीख मुकर्रर कर दी पर इस बार दाव उल्टा पड़ गया था।
पिछली बार उन्होंने कजरी को चलने का न्योता सामने से दिया था पर इस बार कजरी ने स्वयं शहर चलने की इच्छा जाहिर कर दी। सरयू सिंह पसोपेश में थे पिछले दो-तीन दिनों से वह बस सुगना के साथ शहर घूमने का मन बनाए हुए थे और उसे हर तरीके से खुश करना चाहते थे. खैर कजरी उनकी दुश्मन नहीं थी उन्होंने और कजरी ने जीवन के कई सुखद वर्ष एक साथ गुजारे थे सरयू सिंह कजरी और सुगना को लेकर शहर के लिए निकल पड़े। इस बार भी ट्रेन पर चढ़ते उतरते समय उन्हें सुगना को छूने का अवसर मिला पर कजरी की मदद से सुगना आसानी से चढ़ गई।
सरयू सिंह ने पिछले दो-तीन दिनों में जिन परिस्थितियों की कल्पना कर सुगना को छूने का मन बनाया था वह सब धरी की धरी रह गयीं।
सुगना अपने बाबूजी का मर्म समझ रही थी। उसे इतना तो ज्ञात हो ही चुका था की सरयू सिंह की उत्तेजना में उसका स्थान आ चुका था। सुगना ने उनकी उदासी दूर करने की सोच ली थी। जैसे ही साईकिल रिक्शा पर बैठने का वक्त आया सुगना जानबूझकर सरयू सिंह और कजरी के बीच बैठ गयी। सुगना की कोमल जाँघें सरयू सिंह की मांसल जांघों से सट गई। जैसे-जैसे रिक्शा उछलता गया उनकी जांघों के बीच घर्षण बढ़ता गया। सुगना बीच-बीच मैं उनकी जांघों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखती। सरयू सिंह के लिए तो सुगना का यह स्पर्श वियाग्रा की गोली के समान था। उसके स्पर्श मात्र से उनके लंड में तनाव आ जाता था और इस समय तो सुगना अपने बाबूजी पर लगभग लदी हुई थी। कजरी ने कहा
" ए सुगना ठीक से बैठ बाबूजी के दिक्कत होत होइ"
सरयू सिंह का बस चलता तो वह सुगना को अपनी गोद में ही बैठा लेते. उन्हें सुगना के किसी भी कार्यकलाप से दिक्कत होना असंभव था। वह उनकी करिश्माई बहु थी जो अब प्रेमिका बन रही थी। सुगना थोड़ा संभल कर बैठ गयी पर उसने अपने बाबूजी को निराश ना किया वह अपनी जाँघे अभी भी सटाए हुए थी। जब कभी सुगना अपना हाँथ इधर उधर हटाती सरयू सिंह की कोहनी सुगना की चूँचि से सट जाती। उन्हें लगता जैसे उन्होंने किसी गर्म मक्खन को छू लिया हो। कितनी कोमलता थी सुनना की चूचियों में। सरयू सिंह उसकी कोमलता में खो गए…
" बाबुजी अस्पताल आ गइल" सुगना ने सरयू सिंह की जांघों को पकड़कर हिलाया उसने अनजाने में उसकी उंगलियों ने लंगोट में छुपे पालतू नाग को छू लिया जो संयोग से जगा हुआ था। सुगना भी सिहर उठी….
हॉस्पिटल पहुंचकर सुगना का प्लास्टर काट दिया गया। उसके कोमल हाथ एक बार फिर आजाद हो गए। सुगना ने अपने हाथ और कलाइयां हिलाई। सरयू सिंह की प्रसनन्ता की सीमा न रही उन्होंने सुगना के हाथों को चूम लिया। आखिर इन्ही हांथों में सरयू सिंह के लंड को खेलना था।
कजरी भी बेहद खुश थी डॉक्टर ने एक क्रीम दी और कहा इसे हर 10 - 15 मिनट पर लगाते रहिएगा. सरयू सिंह कजरी और सुगना को लेकर मंदिर गए फिर उन्होंने कजरी के लिए उसकी जरूरत की चीजें खरीदी और एक बार फिर रिक्शे पर बैठकर वापस आने लगे.
सुगना उस होटल को देखकर तुरंत पहचान गई उसने खुशी से कजरी को बताया
"हमनी के येही होटल में ठहरल रहनी जा।"
"ह तहरा नींद ना लागल, रात भर सपनात रहलु"
सरयू सिंह ने सुगना को छेड़ दिया।
सुगना शर्म से पानी पानी हो गयी उसने अपनी कोमल मुठ्ठीयों से सरयू सिंह की जांघ पर प्रहार कर अपनी नाराजगी जतायी साथ ही साथ वह अपना स्वप्न याद करने लगी।
उसके सपनों का मर्द उसके ठीक बगल में बैठा अपनी जाँघे उसकी कोमल जांघों से रगड़ रहा था। कजरी ने सुगना का पक्ष लिया और कहा
"हां नया जगह में सुते में सपना अइबे करेला"
सुगना पिछली बार जिस दुकान पर अपने बाबुजी के साथ जाने की हिम्मत न जुटा पाई थी उसने इस बार उस दुकान में जाने की ठान ली थी। वह मन ही मन अपनी सुंदर काया की तुलना उस मॉडल से करने लगी थी जिसने सिर्फ और सिर्फ अंग वस्त्र ही पहने हुए थे। ब्रा और पेंटी में वह मॉडल बेहद खूबसूरत थी पर सुगना उससे कतई कम न थी।
आज कजरी उसके साथ थी दुकान सामने दिखाई देते ही सुगना ने कजरी के पैर दबा कर इशारा कर दिया। कजरी ने कहा
" ए रेक्सा एहिजे रुका हमनी के कुछ सामान खरीद कर आवतानी जा"
कजरी और सुगना दुकान की तरफ पर बढ़ चले। पहले तो सुगना और कजरी उसी दुकान में गए जहां से सरयुसिंह ने पिछली बार साड़ी खरीदी थी।
फिर कुछ ही देर बाद दोनों सास बहू बगल वाली दुकान में चली गयीं जहां पर ब्रा और पेंटी टंगी हुई थी। सरयू सिंह सुगना को उस दुकान में जाते हुए देख रहे थे वह मन ही मन सुगना को उस मॉडल की जगह रख कर देखने लगे। काश वह सुगना के लिए अपनी पसंद के कपड़े खरीद पाते।
उधर दुकानदार एक 28 - 30 वर्ष का युवक था जो इन 2 सुंदरियों को देखकर प्रसन्न हो गया उसने कहा
"दीदी का दिखाएं"
सुगना और कजरी ने आज तक अंतर्वस्त्र नहीं खरीदे थे. उन्हें ब्रा और पेंटी के बारे में बिल्कुल भी जानकारी न थी। गांव में वैसे भी यह सब कौन पहनता है। यह तो सुगना थी जिसने वह खरीदने की जिद कर ली थी और कजरी को लेकर यहां तक आ गई थी।
कजरी ने खुद को समझदार दिखाते हुए उस मॉडल की चूचियों की तरफ इशारा किया. दुकानदार कजरी की शर्म को समझ गया और उसने नमूने के तौर पर कुछ ब्रा बाहर निकाल दीं। सुगना की आंख तो उसी मॉडल पर गड़ी हुई थी उसने कहा
"वइसन ही दिखायीं ना"
"ठीक बा दीदी निकाला तानी"
दुकानदार ने पूछा
"कउन साइज पहिने नी"
यह प्रश्न बेहद कठिन था. उत्तर न मिलने पर दुकानदार ने कजरी और सुगना की असलियत पहचान ली पर उसने उन्हें शर्मसार न किया और अपनी आंखें सुगना की छाती पर गड़ा दीं। साड़ी के भीतर से वह सूचियों का आकार नापने लगा अपने अनुमान से उसने 34 साइज की वही ब्रा निकाल दी जो मॉडल ने पहनी हुई थी उसने कहा
"दीदी ई बिल्कुल ठीक आई। छोट बड़ होइ त बदल देब।"
सुगना ने कहा वह
"नीचे वाला भी दिखायीं" दुकानदार समझ चुका था साइज पूछने का कोई मतलब ना था. उसने सुगना की कमर पर निगाह डाली और 30 साइज की पैंटी निकाल कर रख दी यह ठीक वही पेंटी थी जो मॉडल ने पहनी हुई थी ब्रा और पेंटी दोनों ही जालीदार नेट से बनी हुई थी और बेहद खूबसूरत थी.
कजरी मन ही मन सुगना की मनोदशा के बारे में सोच रही थी उस बेचारी के भाग्य में पति का सुख न था और वह एक कामुक युवती की भांति अपने अंतर्वस्त्र खरीद रही थी। कजरी को क्या पता था एक सुकुमारी अपने नए प्रेमी उसके बाबुजी के लिए तैयार हो रही थी।
दुकानदार ने कजरी से कहा
"दीदी आप भी कुछ ले लीं"
दुकानदार ने कजरी के मन की बात कह दी. कजरी तो आज भी सरयू सिंह के दिल की रानी थी। उसकी जांघों के बीच खिला गुलाब सरयू सिंह कभी सूंघते, कभी चूमते कभी उस की गहराइयों में अपनी उंगलियां फिराते कभी अपना जादुई लंड।
सुगना ने दुकानदार की बात का समर्थन किया और एक बार फिर कजरी का नाप होने लगा। दुकानदार ने 36 साइज की ब्रा और 32 साइज की पेंटिंग निकाल कर बाहर कर दीं। सुगना सोच रही थी यह व्यक्ति चूँचियों और कमर का कितना बड़ा ज्ञानी है। इसने कैसे हमारे मन की बात समझ ली और उचित साइज की ब्रा निकालकर दे दी।
कजरी और सुगना ने सामान लिया और पैसे देकर बाहर आ गए दुकानदार पीछे पीछे कुछ और पैसे मांगते रह गया पर कजरी ने उसे समझाते हुए कहा
"भैया हम लोग हमेशा ले जानी, इतना में ही मिलेला'
कजरी में अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दे दिया पर दुकानदार असलियत जान रहा था. वह मन ही मन उन दोनों युवतियों के बारे में सोचने लगा उसके अनुसार निश्चय ही दोनों की रात गुलजार होने वाली थी पर उसे क्या पता था नियत ने तो कजरी के भाग्य में तो सरयू सिंह का लंड रखा था पर प्यारी सुगना के भाग्य में इंतजार का दंड.
घर आने के बाद कजरी और सुगना ने अपने नए नए अंतर्वस्त्र को पहन कर देखना चाहा। पहल कजरी ने ही की थी वह सुगना को नग्न देखना चाहती थी। वह भी सुगना की खूबसूरती की कायल हो रही थी।
उधर सुगना कजरी की कद काठी से बेहद प्रभावित थी उस उम्र में जब औरतें में बेढंगी हो जाती हैं कजरी अभी भी अपनी काया को गठीला बनाए हुए थी। चूचियाँ और चूतड़ गदरा गए थे पर आकार में थे। सुगना ने मन ही मन प्रार्थना की कि हे भगवान! बढ़ती उम्र के साथ मेरा भी शरीर कजरी माँ जैसा बनाए रखिएगा। कुछ ही देर में दोनों सास बहू अपने नए अंतरवस्त्रों में आ चुकी थीं।
कजरी ने काले रंग की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी और सुगना ने लाल। उन दोनो अद्भुत सुंदरियों को देखकर नियति ने मन ही मन कुछ अच्छा सोच लिया। दोनों सास बहू आज अपने इस नए अवतार पर प्रसन्न होकर एक दूसरे के गले लग गयीं। कजरी की बड़ी-बड़ी चूचियां सुगना की चुचियों से सट गयीं। दोनों के सपाट पेट एक दूसरे से के मिलने की कोशिश कर रहे थे पर चूचियाँ उन्हें रोक रही थीं।
सुगना की कोमल पर कठोर चूचियाँ कजरी महसूस कर रही थी। अनजाने में सास और बहू कुछ देर तक आलिंगन में बंधे रहे जब सुगना की अपनी बुर के गीला होने का एहसास हुआ उसके हाथ ढीले पड़ने लगे। सूगना ने सोचा यह कौन सा नया आकर्षण था? जो उसके और कजरी के बीच पैदा हो रहा था।
बाहर सरयू सिंह की आवाज सुनाई दी। कजरी और सुगना सचेत हो गए। उन्होंने फटाफट अपने वस्त्र पहने। जब नई पेंटी उतर रही थी दोनों सास बहू एक दूसरे को देख रहे थे। आह ….एक अधखिली गुलाब की कली और एक खिला हुआ गुलाब दोनो अद्भुत सुंदर।
कली फूल बनना चाहती थी और फूल कली। नियति मुस्कुरा रही थी सुगना को कली से फूल बनने का वक्त आ रहा था।
सरयू सिंह ने कहा
"दोनों सास बहू का कर तारू" खाना पीना मिली।
कजरी ने भी अनजाने में सरयु सिंह के तार छेड़ दिए उसने कहा
"जो कपड़वा कीन के ले आईल रहनी हां उहे पहन के देखा तानी जा"

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सुगना और कजरी

कजरी को यह बात पता न थी कि सरयू सिंह यह बात जानते थे कि आज इन दोनों ने ब्रा और पेंटी भी खरीदी थी। वह अपनी सुगना को उस सुंदर मॉडल की तरह याद करने लगे.
सरयू सिंह ने कजरी से कहा
"तनी पहीन के हमरो के दिखावा लोग"
कोठरी के अंदर कजरी और सुगना दोनों सिहर गयीं। वह दोनों अपने यह वस्त्र लाई तो उन्हीं के लिए थीं पर ये पहन कर उन्हें दिखाना…. सुगना ने कजरी से कहा…
"जायीं राउर कुँवर जी बुलावतारे"
सुगना ने कजरी को छेड़ दिया था।
कजरी ने सरयू सिंह से ऊंची आवाज में कहा
"अभी देर होता बाद में दिखाएब"
सुगना अपनी सास से धीरे-धीरे खुल रही थी उसने कहा
"जाई ना अपना कुंवर जी के दिखा दीं"
" हट पगली, कुछो बोलले"
सुगना और कजरी कपड़े पहन चुकी थी। कजरी उत्तेजित हो चली थी उसकी बहु सुगना ने माहौल को कामुक बना दिया था।
सुगना ने अपने बाबूजी की जांघों पर अपनी जाएंगे रगड़ कर उन्हें जो सुख दिया था उसने उनके लंगोट में आग लगा दी थी। सुगना की लगाई आग को बुझाना कजरी को ही था।
रात होते-होते सरयू सिंह पूरी तरह तैयार हो गए वह कजरी के आगे पीछे घूमने लगे। सुगना अपने बाबूजी को कजरी के पीछे घूमते हुए देखकर सारा माजरा समझ गई। सुगना आज होने वाले घटनाक्रम के लिए खुद को तैयार कर रही थी। उसने खाना खाया और आंगन में जम्हाई लेते हुए बोली "हम त ढेर थाके गईल बानी जा तानी सुते" और अपने कमरे में चली गई कुछ ही देर में उसके कमरे में जल रहा दिया बुझ गया।
कजरी ने अपने कमरे में जाकर अपने कुंवर जी के लिए तैयार होना शुरु कर दिया। काली पैंटी और ब्रा पहनते समय वह स्वयं उत्तेजित हो चली थी। कजरी की बुर् के घुंघराले बाल पेंटी के किनारों से झांक रहे थे। कजरी ने बड़ी मुश्किल से उन्हें पेंटी के अंदर किया उसकी बुर पर बालों का गुच्छा इकट्ठा हो गया। पेंटी ने सारे बालों को जकड़ कर उसकी बुर पर सजा दिया था। उसने अपनी बुर को छूकर बालों के गद्देदार आवरण को महसूस किया।
उसने अपनी आजाद चूँचियों को भी उस खूबसूरत ब्रा में कैद किया। कजरी की ढीली पड़ चुकी चूचियां ने भी ब्रा के अंदर आकर और भी गोल हो गयीं। ब्रा और पेंटी में कजरी ने अपनी उम्र 4- 5 साल और कम कर ली थी. उसकी चूचियां और नितंब बेहद आकर्षक लगने लगे. गोरी चिट्टी कजरी खुद को पूरा नहीं देख पा रही थी. उसने आज तक आदम कद आईना नहीं देखा था. आज उसके मन में खुद को देखने की इच्छा हुई पर यह संभव न था। वह सरयू सिंह का इंतजार करने लगी उसने अपने बाकी कपड़े पहनने की जरूरत न समझी और यह उचित ही था।
कुछ ही देर में सरयू सिंह कजरी की कोठरी में प्रवेश कर गये। कजरी दरवाजे के पीछे छुपी हुई थी। सरयू सिंह ने अंदर देखा कजरी को न पाकर वह बाहर निकलने लगे उसी समय कजरी साक्षात उनके सामने आ गई। अपनी भौजी को ब्रा और पेंटी में देखकर शरीर सिंह की खुशी की सीमा न रही। उन्होंने यह कल्पना नहीं की थी कि ब्रा और पेंटी में कजरी भौजी उन्हें दिखाई पड़ जाएंगी। वह तो उस ब्रा और पेंटी में सुगना को ही अपनी कल्पना में संजोये हुए थे जिसकी अद्भुत काया के दर्शन में आज नहीं तो कल होना ही था जिस तरह वह और सुगना नजदीक आ रहे थे उन्हें पता था वह दिन दूर न था।
वह अपनी तरफ से उत्सुकता न दिखा रहे थे अन्यथा ऐसा हो ही नहीं सकता की उन्हें याद कर यदि किसी सुंदर स्त्री की बुर ने अपने होंठों पर मदन रस लाया हो और सरयू सिंह का लंड वहां पहुंचना न गया हो। उन्हें पता था सुगना की मासूम बुर भी उनका इंतजार कर रही थी और वह स्वयं सुगना का इंतजार।
उन्होंने कजरी को अपने आलिंगन में ले लिया और लगभग उठा सा लिया। कजरी का पेट सरयू सिंह के पेट से चिपक गया सरयू सिंह के हाथ उसकी पीठ पर अपना मजबूत घेरा बनाए हुए थे। कजरी के पैर अब हवा में आ चुके थे उसने अपने पैर मोड लिए। सरयू सिंह उसे लिए लिए चारपाई पर आ गए। उन्होंने कजरी को चारपाई पर लिटा दिया।
यह विधि का विधान था की कजरी जैसी सुंदर युवती आज यहां चारपाई पर लेटी थी अन्यथा यदि वह किसी धनाढ्य घर में पैदा हुई होती तो एक सुंदर बिस्तर की खूबसूरती को बढ़ा रही होती। चारपाई पर हीरा बिछा हुआ था। सरयू सिंह उस खूबसूरती में खो गए। वह कजरी की बुर देखना चाहते थे जिसे न जाने उन्होंने कितनी बार चूसा था और चोदा था पर आज उन्हें उसकी पेंटी हटाने का मन नहीं कर रहा था।
कभी-कभी वस्त्रों का आवरण नग्नता से ज्यादा अच्छा लगता है यही स्थिति सरयू सिंह की थी। कजरी ने उनकी मनोदशा को पढ़ लिया वह चारपाई पर उठ कर बैठ गई।
उसने अपने कुंवर जी से कहा
"दिया बुता दीं"
सरयू सिंह यह बात जानते थे कि उनकी प्यारी बहू सुगना निश्चय ही झरोखे पर उनका प्रेमालाप देख रही होगी। वह उसे निराश नहीं करना चाहते थे अपितु उसकी कामुकता को और बढ़ाना चाहते थे। जितना ही सुगना उत्तेजित होती उतनी ही जल्दी उनकी बाहों में होती।
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उन्होंने कजरी से कहा
" इतना सुंदर लागा तारू, जरे द दिया, मन भर देख देख त लीं तहर नया रूप. एक दम सिनेमा के हीरोइन लागतारु"
कजरी सरयू सिंह की बातों से प्रसन्न हो गई वैसे भी उसे इस बात का इल्म न था की सुगना झरोखे पर खड़ी होकर उस की चुदाई देखा करती है।
कजरी ने एक ही झटके में उनकी धोती खोल दी। सरयू सिंह का लंड उछल कर बाहर आ गया। कजरी के हाथ स्वतः ही उसकी तरफ बढ़ चले। कजरी चारपाई से उठकर नीचे आ गई और पैर के पंजों के बल बैठ गयी।
सरयू सिंह का लंड कजरी के चेहरे से सटने लगा। कजरी ने अपने हाथों से लंड को अपने होंठों तक पहुँचा दिया और वह उनके अंडकोशों को सहलाने लगी। कजरी के होंठ अपना करतब दिखाने लगे।
उधर सुगना अपने झरोखे पर आ चुकी थी।
अब वह चुदाई देखना नहीं अपितु स्वयं चुदना चाहती थी। उसकी बुर अब पूरी तरह बेचैन हो चली थी। आज जब वह ब्रा और पेंटी पहन कर कजरी के आलिंगन में आई थी तब से ही वह उससे अपने मन की बात कजरी से कहना चाहती थी। वह कजरी से धीरे-धीरे खुल रही थी। उसके मन के किसी कोने में यह बात अवश्य थी कि वह अपनी सास कजरी से अपनी व्यथा जरूर कहेगी आखिर कब तक वह विरह का दुख झेलेगी।
अपने बाबूजी का लंड अपनी सास कजरी के मुंह में देखकर उसकी जीभ में पानी आ गया। उसने पहली बार अपने बाबूजी के लंड को कजरी के मुंह में देखा था। कितना जादुई है या लंड हर जगह सुख देता है जांघों के बीच भी और होठों के बीच भी। सुगना की बुर पनिया रही थी उसके होठों पर लार आ चुकी थी।
आज सुगना अपने होंठ गोल किए अपनी आंखों से व दृश्य देख रही थी। जिस तरह दर्शक क्रिकेट मैच देखते हुए अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर खिलाड़ी को अपने मन में ही सलाह देते हैं उसी प्रकार सुगना भी मन ही मन कजरी को लंड चूसने का तरीका समझा रही थी। वह अपने होठों को कभी गोल करती कभी अपनी जीभ को बाहर निकालती और मन ही मन उस सुपारे को छूने की सोचती।
सुगना बेचैन थी यदि सरयू सिंह उस झरोखे से अपना लंड सुगना की तरफ कर देते तो सुगना बिना किसी शर्म हया के अपनी तमन्ना पूरी कर लेती। आज कजरी द्वारा दिया जा रहा मुखमैथुन सुगना के लिए बिल्कुल नया था परंतु उसे यह बिल्कुल भी अटपटा ना लग रहा था। सुगना में वासना और कामुकता कूट-कूट कर भरी थी जिसका रूप अब दिखाई पड़ने लगा था।
सुगना अपने बुर को अपनी उंगलियों से सहला रही थी और अपने मुंह में आई लार को गटक रही थी। उसके मुह में लार अवश्य थी पर उसका गला सूख गया था। सुगना अपनी लार को निगल रही थी।
उधर कजरी के होठों की रफ्तार बढ़ गयी। सरयू सिंह उसके सर को पकड़कर अपने लंड की तरफ खींच रहे थे। जब लंड गर्दन तक जाता कजरी गू ...गू... गू ..करने लगती.
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सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी को कभी कष्ट नहीं देना चाहते थे वह तुरंत अपना लंड पीछे खींच लेते। कजरी उन्हें अपनी आंख उठा कर देखती और सरयू सिंह शर्म से पानी पानी हो जाते। कजरी के छोटे से मुख में उतना बड़ा लंड जा पाना असंभव था पर सरयू सिंह का मन मतवाला था। उनका बस चलता तो वह एंडोस्कोपी के पाइप की तरह अपना लंड उसके अंदर तक प्रवेश करा देते।
कल्पना तो कल्पना है वह सरयू सिंह ने भी की और हम आप ने भी।
लंड स्खलन के लिए तैयार हो चुका था। कुँवर जी अपने आनंद में डूबे हुए थे अचानक उन्हें झरोखे का ध्यान आया उन्होंने। अपना लंड कजरी के मुंह से निकाल लिया। लंड उछल रहा था। कजरी की लार लंड से टपक रही थी जिसमें उनका वीर्य भी मिला हुआ था। सुगना उस चमकते हुए लंड को देखकर भावविभोर हो गयी। वह झरोखे से अपने कोमल हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लेना चाहती थी।
सरयू सिंह ने कजरी को इशारे से डॉगी स्टाइल में आने के लिए इशारा किया। कजरी ने बांस की चारपाई पर खुद को डॉगी स्टाइल में व्यवस्थित कर लिया। उसके गोल और भरे हुए चूतड़ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आ गए। सुगना के नितंबों की सुंदर गोलियों को देखकर वह अत्यधिक उत्तेजित हो गए। कितनी सुंदर थी कजरी के नितंब! काले रंग की पेंटी में दो चांद नुमा नितंब कैद थे। काले रंग की पेंटी ने चंद्रमा को आधा ढक रखा था। गोरे नितंबों पर पैन्टी ने चतुर्थी का चांद बना दिया था जो बेहद बखूबसूरत लग रहा था।
दो चांदो के बीच छुपी कजरी की बुर पनिया चुकी थी। वह बुर् के बालों को पूरी तरह भीगोने के बाद ह पेंटी के कपड़े को भी चिपचिपा कर चुकी थी। सरयू सिंह ने अपनी प्यारी बुर् के ऊपर पड़ा पेंटी का आवरण थोड़ा खिसका दिया। बालो का गुच्छा फैल गया और बालों के पीछे छुपी रसीली बुर ने अपने होंठ फैला दिए।
सरयू सिंह के लंड को उनकी भौजी के बुर में गजब का चुंबकीय आकर्षण था। लंड मुलायम मक्खन में गर्म रोड के जैसा प्रवेश कर गया पर कजरी की बुर ने अपना प्रतिरोध दिखाते हुए लंड को और भी खुश कर दिया। इतना चिपचिपा और उत्तेजित होने के बावजूद कजरी की बुर अपने कुँवर जी के लंड को अपने आगोश में लेते समय पूरा प्रतिरोध करती थी उसे हारना पसंद था पर संघर्ष करके।
सरयू सिंह अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करते हुए चोदने लगे।
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वह बीच बीच मे झरोखें की तरफ देखकर अपनी बहू को अपनी क्षमता का एहसास कराते।
कजरी की बूर में सिहरन बढ़ रही थी। सरयू सिंह ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और कजरी की गोल-गोल चुचियों को मीसने लगे। सरयू सिंह के हाथों को कजरी की ब्रा का आवरण पसंद ना आया उन्होंने उस ब्रा को ऊपर कर दिया और चूचियों को आजाद कर दिया। हथेलियों को चूँचियों का मुलायम स्पर्श मिल गया कजरी के निप्पल सरयू सिंह की उंगलियों के बीच खेलने लगे। कभी उंगलियां उसे प्यार से सहला देती कभी मसल देतीं।
कजरी स्वयं भी अपने चूतड़ों को तेजी से आगे पीछे करने लगी। वह सरयू सिंह के लंड को पूरी तरह अपने अंदर समाहित कर लेना चाहती थी। पर सरयू सिंह का लंड जितना उसके अंदर जाता उतना ही फूलता और उसका आकार बढ़ जाता।
लंड कजरी की नाभि को छूने लगा पर कजरी की बुर को अंडकोशों का स्पर्श अब तक नहीं मिल रहा था। अंततः सरयू सिंह ने अपना लंड कजरी की बूर में जड़ तक ठाँस दिया। कजरी चिहुक उठी। सुगना ने कजरी का चेहरा देखा दर्द और तृप्ति कजरी के चेहरे पर एक साथ दिखाई दे रहा था। सुगना की सांसे रोक गयी पर बुर को मसल रहीं उसकी उंगलियां न रूकीं।
सरयू सिंह के अंडकोष कजरी की बुर की भगनासा से टकराने लगे। कजरी को तृप्ति का एहसास होने लगा। सरयू सिंह की उंगलियां कभी कजरी की पेंटी को नीचे खींचती कभी वापस ऊपर चढ़ा देती। सरयू सिंह अपने जादुई मुसल से अपनी भौजी की बुर को चोद रहे थे पर मन में सुगना छाई हुई थी। वह सुगना की तरफ देख रहे थे सुगना भी कभी उनके चेहरे को देखते कभी उनके लंड को।
सरयू सिंह का उन्माद बढ़ रहा था। वह कजरी को दोहरी उत्तेजना से चोद रहे थे। कजरी के मुख से आवाज आई
"कुंवर जी ...तनी धीरे से ……..दुखाता"
कजरी हाफ रही थी. उसकी बूर फूल और पिचक रही थी। सरयू सिंह को यह बेहद पसंद था। उन्होंने अपनी कजरी भाभी की मांग को पूरा न किया। उन्हें पता था कजरी के दिमाग और बूर में विरोधाभास था। बूर लंड का तेज आवागमन पसंद करती थी। सरयू सिंह ने अपनी रफ्तार बढ़ाई और अपनी पिचकारी से कजरी के बूर में रंग भरने लगे।
कजरी हाफ रही थी और झड़ रही थी।पूरी तरह स्खलित हो जाने के बाद सरयू सिंह ने अपना लंड खींच लिया कजरी की बूर से चिपचिपा वीर्य निकलकर कजरी की जांघों पर बहने लगा।
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सुगना की बुर भी स्खलित हो रही थी परंतु उसकी बूर वीरान थी।
सरयू सिंह के वीर्य का एक भी कतरा उसे नसीब ना हुआ और यहां कजरी की बूर उस अद्भुत वीर्य को दुत्कार रही थी। नियति का खेल निराला था सुगना को अपने बाबूजी का वह गाढ़ा वीर्य पसंद आ गया था। उसने अपने गर्भधारण के लिए मन ही मन अपने बाबूजी को पसंद कर लिया था।

बस उसे हिम्मत जुटाकर अपनी बात अपनी सासू मां( जो अब धीरे-धीरे उसकी सहेली बन रही थी) से कहनी थी। बात जितनी छोटी थी उतनी ही कठिन। वह किस मुंह से अपने बाबू जी से चुदने की बात कह सकती थी। उत्तेजना के आवेश में वह यह सब बातें सोच तो लेती पर हकीकत में अपने होठों पर वह बात लाना भी पाप समान था। वह नवयौवना थी व्यभिचार उसके मन मे था दिमाग मे नहीं।

काश कजरी से वह यह बात कह पाती। क्या उसके मन की इच्छा सासू मां नहीं पढ़ सकती? सुगना अपने बुर को सह लाते हुए यही सब बातें सोच रही थी अपने बाबुजी के जादुई लंड को याद करते हुए और अपने मालपुए को सहलाते हुए उसे नींद आ गई।
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#17
Heart 
भाग-16


दरवाजे पर खड़ी सुगना की बछिया इन दो चार महीनों में और बड़ी हो गई थी। सरयू सिंह जब उसकी बछिया को नहलाते तो सुगना आज भी सिहर उठती थी विशेषकर जब सरयुसिंह उसके पेट और चूचियों पर हाथ लगाते।

बछिया रंभा रही थी सरयू सिंह अपने खेतों पर काम करने गए हुए थे। सुगना अपनी बछिया की आवाज सुनकर बाहर आ गई। वह उसके पास जाकर उसे सहला रही थी पर बछिया बार-बार आवाज किए जा रही थी। कजरी आंगन में बर्तन धो रही थी। सुगना ने कहा

"मां बछिया काहे बोल तिया"

कजरी ने कहा

छोड़ द असहिं बोलत होइ"

सुगना ने कजरी को फिर बुला लिया. कजरी आखिरकार बाहर आ गई

कजरी ने बछिया की योनि से बहती हुई लार देख ली। उसे बछिया के रंभाने का कारण पता चल चुका था। सुगना की निगाह अब तक उस पर नहीं पड़ी थी। उसने कजरी से फिर पूछा

" माँ बछिया काहे बोल तिया" कजरी ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर बछिया के पीछे ले आयी। उसने कुछ कहा नहीं पर बछिया की योनि की तरफ इशारा कर दिया। उसकी योनि से बहती हुई लार अब सुगना ने देख ली थी। कहने समझने को कुछ ना रहा। सास और बहू दोनों ने बछिया का मर्म समझ लिया। कुछ ही देर में सरयू सिंह आते हुए दिखाई दिए। सुगना को आभास हो चुका था कि आगे क्या होने वाला है। वह अपने बाबू जी से नजरें मिलाने में असमर्थ थी। वह आंगन में चली गई।

आज उसकी बछिया चुदने वाली थी। सुगना की जांघों के बीच स्वता ही गीलापन आ चुका था। आज उसकी सहेली भी चुदने जा रही थी। सुगना कान लगाकर कजरी और सरयू सिंह के बीच हो रही बात सुन रही थी। अंततः भूवरा अपना सांड लेकर शाम को दरवाजे पर आ चुका था। सरयू सिंह की गाय भी उस सांड को देख रही थी। पर आज उसे वह सुख नहीं मिलना था।

आज का दिन बछिया का था। बछिया चुपचाप शांत खड़ी थी। सांड ने बछिया की योनि से बहता हुआ द्रव्य देख लिया वह उसे सुंघने लगा। कुछ ही देर में वह बछिया पर चढ़ गया।

सुगना वह दृश्य देख रही थी उसकी जांघें गीली हो चली थी आज उसकी सबसे प्रिय सहेली भी चुद रही थी। वह रूवासी हो चली थी। उसका इंतजार अब कठिन हो रहा था। उसने मन ही मन कजरी से बात करने की ठान ली। आखिर यह उसका हक भी था और उसके युवा शरीर की जरूरत भी.

वह यह बात अपनी सास कजरी से कैसे कहेगी यह प्रश्न उसके लिए अभी यक्ष प्रश्न जैसा था। क्या कोई बहू अपनी सास से अपनी चुदने की इच्छा को इस तरह खुलकर व्यक्त कर पाएगी और तो और सुगना के मन में उसके बाबूजी बसे हुए थे वह किस मुंह से अपने बाबू जी से संभोग करने के लिए कहेगी। सुगना अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर नियति सुगना की मासूमियत पर मुस्कुरा रही थी। नियति ने सुगना के लिए जो सोच रखा था वह समय के साथ होना तयः था सुगना की अधीरता कुछ ही दिनों में शांत होने वाली थी वह भी पूरी धूमधाम से।

रात में सास और बहू के बीच में उस बछिया को लेकर ढेर सारी बातें हुई पर सुगना अपनी बात कहने की हिम्मत न जुटा पाई

2 दिनों बाद हरिया की लड़की लाली गांव आई वह गर्भवती हो चुकी थी। वह अपने मायके आई हुई थी। वह अपना फूला हुआ पेट लेकर सुगना के पास आती और अपनी गर्भावस्था के अनुभव सुनाती। सुगना अपने मन में दुख भरे हुए उसके अनुभव सुनती जो उसे बिल्कुल बेमानी लगते। उस सुंदरी की कोमल बुर पर आज तक किसी पुरुष का हाथ तक नहीं लगा था वह गर्भावस्था के अनुभव सुनकर क्या करती। फिर भी उसे यह बात सोच कर ही खुशी मिलती की लाली के जीवन में उसका एक और करीबी आ जाएगा जो समय के साथ बड़ा होगा और उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। सुगना के मन में भी मां बनने की इच्छा प्रबल हो उठी।

इतना तो तय था की वह बिना चुदे हुए मां नहीं बन सकती थी। जब उसका पति उसे हाथ लगाने को तैयार ही नहीं था तो यह कैसे संभव होगा? क्या बाबू जी उसके साथ …... करेंगे? उसने खुद से ही प्रश्न किया और उसके उत्तर में शर्म से पानी पानी हो गई. पर जितना वह इस बारे में सोचती उतना ही उसे उसे सुकून मिलता.

उसने अंततः अपने मन की बात कजरी से बता दी. उसने कजरी से यह तो नहीं कहा कि वह अपने बाबू जी से चुदना चाहती है पर इतना जरूर कहीं कि उसकी मां बनने की इच्छा अवश्य है। सुगना ने मां बनने की इच्छा जाहिर कर बिना कहे संभोग की इच्छा जाहिर कर दी थी यह उसका हक भी था और उसके शरीर की मांग भी जिसको कजरी और सरयू सिंह कई महीनों से नजरअंदाज किए हुए थे।

कजरी रुवासी हो गई। अपनी बहू की वेदना उससे सहन ना हुई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कामुकता पनप रही थी उसका आभास कजरी को बिल्कुल भी नहीं था। कजरी के जहन में भी कभी सरयू सिंह का ख्याल नहीं आ सकता था।

कजरी ने उस दिन के बाद से इस बारे में सोचना शुरू कर दिया। कजरी ने सुन रखा था की कई गांव में जब पति बच्चा पैदा करने में अक्षम हो तो स्त्रियां अपने जेठ या देवर से संभोग कर बच्चे को जन्म देती हैं। और यह यह एक गलत कार्य नहीं माना जाता पर यह सुगना का दुर्भाग्य ही था कि दूर दूर तक देखने पर ऐसा कोई देवर या जेठ नहीं दिखाई पड़ रहा था जिससे सुगना संभोग कर गर्भवती हो सके।

कजरी ने मन ही मन रतन से मिन्नतें करने करने को सोची। उसने प्रण कर लिया कि इस बार जब रतन घर आएगा तो वह उससे सुगना से संभोग करने के लिए अनुरोध करेगी और उसे गर्भवती कराने का प्रयास करेगी। सुगना को आए 6 महीना भी चुका था।

इस बार रतन दशहरा के अवसर पर आया. वह सभी के लिए उपहार भी लाया था। सुगना के लिए कजरी के मन में उम्मीद जाग उठी थी पर सुगना का मन रतन से खट्टा हो चुका था जिस पुरुष ने उससे सुहाग की सेज पर संभोग करने से इंकार कर दिया था वह उस से दोबारा मिलना नहीं चाहती थी। हालांकि यह बात उसने कजरी को नहीं बताई पर उसके व्यवहार से यह स्पष्ट था। उधर कजरी ने रतन से बात की लाख मिन्नतें करने के बाद भी वह रतन को तैयार न कर सकी। कुछ दिन रह कर रतन वापस चला गया

इसी दौरान एक बार कजरी की मुलाकात पदमा से हो गयी। वह दोनों किसी विशेष पूजा के लिए एक मंदिर में गए हुए थे दोनों एक दूसरे को पहचानती थी वह आपस में हिल मिलकर बातें करने लगी सुगना की बात करते-करते कजरी ने सुगना की इच्छा को पदमा से खुलकर बता दिया। दोनों इस गंभीर विषय पर बात करने लगीं। बातों ही बातों में सरयू सिंह का नाम पदमा की जुबान पर आ गया उसने कहा एक बार अपने देवर जी से बात करके देखिए।

कजरी सन्न रह गई उसने कहा

"सुगना उनका के बाबूजी बोले ले"

पद्मा ने कहा

" हां ठीक बा बाबू जी बोले ले पर बाबूजी हवे ना नु"

पद्मा ने अपना सुझाव सोच समझ कर ही दिया था। वैसे भी वह एक हष्ट पुष्ट मर्द थे यदि वह तैयार हो जाते हैं तो सुगना को एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होगी वैसे भी यह कुछ मुलाकातों की बात थी। पदमा को कजरी और सरयु सिंह के बीच हुए चल रहे संबंधों की भनक थी।

कजरी सोच में पड़ गई वह पदमा से कुछ बोल नहीं पा रही थी पर मन ही मन उसके दिमाग में यह बातें घूमने लगी क्या यह संभव है क्या सरयू सिंह सुगना के साथ संभोग कर पाएंगे वह उसे अपनी पुत्री समान मानते हैं। पर जब बात निकल ही गई थी तो कजरी ने मन ही मन इस बात की संभावना को तलाशने की जिम्मेदारी ले ली।

उसे सुगना और उसके बाबू जी दोनों को तैयार करना था। वह अब उसी नियति की प्रतिनिधि बन चुकी थी जिसे सुगना और सरयू सिंह को करीब लाना था। सुगना का इंतजार खत्म होने वाला था कजरी मन ही मन मुस्कुरा रही थी और आने वाली घटनाक्रम का ताना-बाना बुन रही थी।

रतन को गए 1 हफ्ते भी चुके थे कुछ ही दिनों बाद दिवाली आ रही थी कजरी की बहू सुगना की यह पहली दीपावली थी दीपावली का त्यौहार सभी के लिए खुशियां लेकर आता है। कजरे ने भी अपनी बहू सुगना को खुश करने की ठान ली। सुगना की मां पदमा ने जो उपाय सुझाया था अब वह उससे संतुष्ट हो गई थी और उस दिशा में सोचने भी लगी थी। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि सरयू सिंह और सुगना पहले ही काफी नजदीक आ चुके है। इन दोनों का मिलन नियत ने पहले ही सुनियोजित कर रखा था कजरी को सिर्फ उस मिलन का भागीदार बनना था।

कजरी ने एक बात और महसूस की थी कि पिछले कुछ महीनों में सरयू सिंह की कामुकता और उत्तेजना में एक नयापन था उसे लगता जैसे शरीर सिंह कोई दवाई खा रहे हो जिससे वह इतने उत्तेजित रहते थे और उसकी बुर चोदते समय कुछ ज्यादा ही उत्साह में रहते थे।

आखिर एक दिन कजरी ने हिम्मत जुटा ली। कजरी ने जी भरकर अपने कुंवर जी का लंड चूसा और उनके लंड पर बैठ कर धीरे धीरे उन्हें चोद रही थी। सरयू सिंह सुगना के मालपुए में डूबे हुए थे। तभी कजरी ने कहा

"हमनी के जवान जइसन सुख भोगतानी जा लेकिन सुगना बहू के बारे में कुछ सोच ले बानी"

सरयू सिंह को एक पल के लिए सुगना की चूचियां और उसकी कोमल बुर नजर आ गई

"काहे का भइल"

"ओकर बछियो माँ बने जा तिया और सहेली लाली भी, बेटी सुगना के करम फुटल बा. रतनवा अबकी हाली भी ओकरा संगे ना सुतल हा। बेचारी काल रोवत रहे. बेचारी मां बन जाइत तो कम से कम ओकर जीवन कट जाइत।"

"उ त ठीक बा बाकी लेकिन ई होइ कइसे?"

सरयू सिंह खुद अपना नाम नही सुझा सकते थे। वो विचार मुद्रा में आ गए पर लंड अपनी जगह न सिर्फ तना रहा अपितु उछल रहा था।

कजरी ने कहा..

"हम भी ढेर सोचनी पर केहू विश्वाशी आदमी दिखाई नइखे देत"

सरयू सिंह गंभीर थे वह कजरी के मुह से अपना नाम सुनना चाहते थे पर कजरी उनकी मनोदशा से अनभिज्ञ उनका नाम लेने में डर रही थी।

कजरी ने चाल चली. ..

"एक बात कहीं खिसियाईब मत "

" बोल……"

"हरिया से बतियायीं ना आपके दोस्त भी ह उ केहू के ना बताई और सुगना के काम भी हो जायीं"

सरयू सिंह गुस्सा हो गए

"उ साला हमार सुगना के हांथ लगाई"

"त आपे हाँथ लगा दी। घर के बात घरे में रह जायीं"

सरयू सिंह प्रसन्न हो गए। खुशी में क्रोध का प्रदर्शन कठिन था फिर भी वो नाराज होते हुए बोले…

"का कह तारू, बहु बेटी नियन होले हमारा से ई कइसे होई"

सरयू सिंह की बात में प्रतिरोध तो था पर मनाही नही थी।

कजरी ने पद्मा की बात दोहरा दी।

" उ त हमार पतोह ह नु, उ ना आपके पतोह ह ना बेटी"

दोनो एक दूसरे से बात करते रहे। जब दोनों पक्षों में आम सहमति हो तो तर्क वितर्क ज्यादा देर तक नहीं चलता कुछ ही देर में कजरी ने शरीर सिंह को मना लिया सरयू सिंह ने कहा

"तू सुगना से पूछ ले रहलु हा।"

कजरी ने कहा

"पहिले रउआ से तब पूछ ली तब ता ओकरा से बतियायीं"

सरयू सिंह को पूरी उम्मीद थी सुगना कजरी का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लेगी। अब तक जितनी भी पहल हुई थी वह सुगना ने स्वयं की थी। वह तो उसकी प्रेम धारा में बहते बहते इस स्थिति तक आ पहुचे थे।

कजरी की कमर की रफ्तार बढ़ती गई। सरयू सिंह कजरी के बदन में सुगना खोजते रहे। उन्होंने आंखें बंद कर ली और अपनी प्यारी बहू सुगना को याद करते लगे। उनकी कमर हिलने लगी ।

कजरी आनंद में डूब रही थी।उसे दोहरा आनंद प्राप्त हो रहा था। उसने सुगना की समस्या दूर कर दी थी और सरयू सिंह का फुला हुआ लंड उसकी बुर की मसाज कर रहा था। वह सरयू सिंह को चूमती हुई स्खलित होने लगी।

सरयू सिंह उसके नितंबों को सहलाते हुए अपनी सुनना को याद कर रहे थे और उसके बुर में अपना वीर्य भरने को तैयार थे। सब्र का बांध टूट गया। कजरी की बुर एक बार फिर सरयू सिंह के वीर्य से सिंचित हो रही थी। कजरी सरयू सिंह को चूम रही थी। उन्होंने उसकी जिंदगी तो सवार ही दी थी और अब वह उसकी बहू की जिंदगी संवारने वाले थे। वह उनके प्रति कृतज्ञ थी।

सरयू सिंह की रजामंदी मिलने के बाद अगले दिन दोपहर में कजरी ने सुगना से बात की।

"सुगना बेटी एक आदमी तैयार भईल बा लेकिन तुम मना मत करिह, हमरा और केहू विश्वासी आदमी ना मिलल हा. दो-चार दिन अपना मान मर्यादा के ताक पर रखकर एक बार गर्भवती हो जा, औरो कोई उपाय नइखे"

सुगना ने कहा

"मां रउवा जउन सोचले होखब उ ठीके होइ लेकिन उ के ह?"

सुगना ने अपने इष्ट देव को याद कर कजरी के मुख से अपने बाबूजी का नाम सुनने के लिए प्रार्थना करने लगी। वह उनके अलावा किसी और को अपना शरीर नहीं छूने देना चाहती थी। वह अपनी आंखें बंद किए मन ही मन प्रार्थना रात हो गई।

कजरी अपने मन में हिम्मत जुटा रही थी पर यह बोल पाने की उसकी हिम्मत नहीं थी। परंतु जो नियति ने लिखा था वह होना तय था। कजरी ने अपनी लड़खड़ाती जीभ को नियंत्रण में किया और बोली

" सुगना बेटा , हमार कुंवर जी"

वह इससे आगे सुगना से बात करने की हिम्मत न जुटा पाई और उठकर आगन में आ गयी। जाते जाते उसने सुगना से कहा "सुगना बेटा सब आगे पीछे सोच लिहा हमरा पास और कोनो उपाय नइखे। लेकिन तू जइसन चहबू उहे होइ"

सुगना ने उन कुछ पलों में खुद को अपने बाबूजी के साथ नग्न अवस्था में देख लिया। वह आनंद से अभिभूत हो रही थी। उसकी दिली इच्छा पूरी होने वाली थी। वह भी उसकी सास कजरी की रजामंदी से। वह अपने इष्ट देव को तहे दिल से धन्यवाद कर रही थी। उधर सुगना की कोमल बुर मुस्कुरा रही थी उसके होठों पर प्रेम रस छलक रहा था।

कुछ देर बाद सुगना रसोई में आई कजरी ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। सुगना ने कहां

" मां बाबुजी मनिहें?"

सुगना की रजामंदी ने कजरी को खुश कर दिया। उसने कहा

" अपना सुगना बाबू के खतिर हम उनका के मना लेब"

कजरी ने समस्या का अद्भुत निदान निकाल लिया था। वह खुशी खुशी खाना बनाने लगी। उसने सुगना से कहा

"जा हमरा कुंवर जी के खाना खिला द और अब उनका के बाबुजी मत बोलीह" कजरी मुस्कुरा रही थी।

सुगना ने भी सिर झुकाए हुए खाना थाली में निकाला और अपने बाबुजी माफ कीजिएगा कुँवर जी के पास खाना लेकर चली गई।


शेष अगले भाग में
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#18
Heart 
भाग -17



अंततः सरयू सिंह और सुगना के मिलन का दिन निर्धारित हो गया. सुगना के रजस्वला होने के दिनों के को ध्यान में रखते हुए कजरी ने अपने अनुभव से सुगना को गर्भवती करने के लिए चुना था वह संयोग से दिवाली का दिन था।

सरयू सिंह और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए उनके मिलन की सारी बाधाएं दूर हो चुकी थी। कजरी स्वयं उनके मिलन का दिन निर्धारित कर चुकी थी। आज से ठीक 7 दिनों बाद सुगना का स्वप्न पूरा होने वाला था।

सरयू सिंह और सुगना ने बड़ी ही मासूमियत से अपने बीच पनपी कामुकता को कजरी से छुपा लिया था। कजरी ने अपनी बहू सुगना की खुशी के लिए अपने कुंवर जी को सुगना से संभोग करने के लिए तैयार कर लिया था। वह कुंवर जी के प्रति कृतज्ञ थी जिन्होंने अपनी बहू जिसे वह सुगना बेटा बुलाया करते थे के साथ संभोग कर उसे गर्भवती करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।

कजरी को सिर्फ और सिर्फ एक चिंता खाए जा रही थी वह सुगना की कोमलता। सुगना का प्रथम संभोग उस अद्भुत लंड के साथ होना था। वह सुकुमारी सरयू सिंह का वेग कैसे झेल पाएगी यह बात सोच सोच कर कजरी परेशान हो जाती।

पर उसे एक बात की तसल्ली थी की सरयू सिंह किसी भी स्थिति में सुगना को दुख नहीं पहुंचाएंगे। वह उनकी प्यारी बेटी समान बहु थी । वह निश्चय ही उसके प्रथम संभोग पर उसका ख्याल रखेंगे। कजरी ने अपने मन के डर को हटा लिया। वैसे सुगना स्वयम भी इस सम्भोग के लिए तैयार थी।

सुगना और सरयू सिंह अब तक बेहद करीब आ चुके थे। सरयू सिंह ने अबतक सुगना के सारे अंग प्रत्यंग देख लिए थे। सिर्फ सुगना का वह अपवित्र द्वार (गांड)उनकी निगाहों से अछूता था। परन्तु वह वासना का अतिरेक था जिसे सिर्फ सरयू सिंह जानते थे सुगना उससे बिल्कुल अनजान और अनभिज्ञ थी।

आज दोपहर में जब सुगना खाना लेकर आई और पंखा जलते हुए अपने बाबू जी को खाना खिलाने लगी उसने अब अपनी चूचियां पूरी तरह ढक ली थी। अब जब मिलन का दिन निर्धारित हो ही चुका था इन छोटी मोटी उत्तेजनाओं का कोई औचित्य न था। खाना खाते खाते सरयू सिंह ने कहा "अब खुश बाड़ू नु। दिवाली पर तोहार इच्छा पूरा हो जायी"

"एकर मतलब खाली हमारे इच्छा बा"

सरयू सिंह मुस्कुराने लगे. सुगना उनसे बच्चों की तरह लड़ रही थी। उन्होंने फिर कहा "हम त बूढ़ा गईनी. तू ही नया बाड़ू. तहरे मन ज्यादा होइ"

बात सच थी सुगना कुछ उत्तर न दे पायी। उसने अपने बाबू जी को एक रोटी और दिया और मुस्कुराने हुए बोली

"अच्छा अब खाना खायीं"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उनकी नई प्रेमिका उनके सामने बैठी हुई पंखा झल रही उसकी सेवा का फल उसे दिवाली के दिन मिलना तय हो चुका था। लंगोट के अंदर उनका लंड झांक झांक कर अपनी होने वाली नयी नवेली बुर की मालकिन को देख रहा था।

कजरी हरिया की पत्नी के साथ दीपावली का सामान खरीदने के लिए बाजार चली गई। दीपावली को लेकर वह बेहद उत्साहित थी। जाते-जाते वह सुनना को कमरे में रखी मक्खन की हांडी रसोई घर तक पहुंचाने और उसे गर्म कर घी बनाने की हिदायत दे डाली।

सुगना ने घर के बाकी काम निपटाये और नहा धोकर वहीं लहंगा चुन्नी पहन लिया जिसे पहन कर उसने अपने बाबू जी की मदद से अमरूद तोड़ा था और अपने बाबूजी को पहली बार अपनी बुर की खुशबू सुंघाई थी।

वह अपने कमरे में गई और मक्खन की हांडी उतारने लगी तभी एक चूहा तेजी से भागता हुआ उसके पैरों से टकरा गया सुगना घबरा गई और वह हांडी उसके शरीर पर गिर पड़ी हांडी का मक्खन कुछ उसके शरीर पर और कुछ जमीन पर गिर पड़ा हांडी फूड चुकी थी। सुगना घबरा गई उधर दालान में आराम कर रहे सरयू सिंह इस आवाज को सुनकर सुगना के कमरे में आ गए।

सुगना परेशान थी वह मक्खन से सराबोर थी। वह अपनी चोली उतार रही थी जो उसके शरीर से बाहर आकर उसके हाथों में आ गई थी। सरयू सिंह को अपने करीब देखकर वह सिहर गई उसकी चोली उसका साथ छोड़ चुकी थी और उसकी चूचियां सरयू सिंह के ठीक सामने थीं। गर्दन और कंधों पर गिरा हुआ मक्खन सरकता हुआ उसकी चुचियों पर आ चुका था।

सरयू सिंह से और बर्दाश्त ना हुआ उन्होंने अपने हाथ उस मक्खन को पोछने के लिए बढ़ाएं पर वह उसी मक्खन को सुगना की चूँचियों पर मलने लगे। वह सुगना की मक्खन जैसी मुलायम त्वचा वाली कठोर चुचियों पर मक्खन लगाने लगे।

मक्खन से सराबोर अपनी मजबूत हथेलियों से अपनी बहू सुगना की कोमल चूँचियों को सहलाते हुए सरयू सिंह भाव विभोर हो गए। जिन चूँचियों को देखकर और अपने मन में कल्पना कर सरयू सिंह ने होटल में अपना हस्तमैथुन किया था वह आज उनकी हथेलियों में थीं।

अपनी बहू की चूँचियों का पहला स्पर्श उनके लिए यादगार बन रहा था। सुगना अपने बाबू जी से सटती चली जा रही थी।
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वह उनसे नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए उसने अपनी पीठ अपने बाबूजी की तरफ की हुयी थी।

सरयू सिंह की हथेलियों को उसकी चुचियों को और भी अच्छे से पकड़ने का मौका मिल गया। उनके दोनों हाथ अब दोनों चुचियों पर बराबरी से घूमने लगे। सुगना आनंद में डुबने लगी। उसे मक्खन की सुध बुध न रही उसकी कोमल बुर से प्रेम रस बहना शुरू हो गया था। सरयू सिंह ने अपनी एक हथेली को नीचे की तरफ बढ़ाया। मक्खन लगे सरयू सिंह के हाथ सुगना की नाभि तक जा पहुंचे।

वह नाभि के छेद में थोड़ी देर अपनी उंगलियां घुमाते रहे सुगना मन ही मन अपने बाबू जी से कहती रही

"बाबूजी अउरु नीचे"

वह मदहोश हो रही थी। एक बार उसके मन मे आया कि वह उनकी हथेलियों को अपनी बुर तक पहुंचा दे। उसके बाबूजी इस कला के माहिर खिलाड़ी थे और यह भी तय था कि वह उससे बहुत प्यार करते थे उसने अपनी अधीरता को रोक लिया। सुगना अपनी जाँघे सिकोड रही थी। जब सरयू सिंह सुगना की चुचीं को तेजी से दबाते वह आगे की तरफ झुक जाती।

यही वह अवसर होता जब वह अनजाने में ही अपने कोमल नितंब अपने बाबूजी के लंड से सटा देती। उस मजबूत लंड को अपने नितंबों के बीच महसूस कर सुगना की उत्तेजना चरम पर जा पहुंची। वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी उसने अपना लहंगा नीचे सरकते हुए महसूस हुआ।

जब तक वह उसे पकड़ने के लिए अपने हाथ नीचे लाती लहंगा घुटनों को सहलाता हुआ जमीन पर आ गया। सुगना सिर्फ बाबूजी….कह पाई और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह ने उसके गाल चुम लिये। सरयू सिंह के हाथ अब नीचे बढ़ रहे थे। सुगना की धड़कने तेज हो रही थी। उसे पता था आगे क्या होने वाला है। आज उसकी कोमल बुर पर किसी मर्द का हाथ लगने वाला था। सरयू सिंह उसकी जांघों के जोड़ तक पहुंचने ही वाले थे तभी उन्होंने सुगना को अपने शरीर से थोड़ा दूर कर दिया सुगना को यह अप्रत्याशित सा लगा।

सुगना अभी भी अपने बाबूजी की तरफ पीठ करके खड़ी थी। उसने अपनी गर्दन घुमाई और बाबूजी को देखा जो अब अपनी धोती खोल चुके थे और लंगोट से लंड बाहर आ रहा था। लंड लगभग तन चुका था। सुगना सिहर उठी उसने अपनी आंखें बंद कर ली। क्या आज ही उसकी बुर की दीवाली मन जाएगी?
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वह सिहर उठी। उसका रोम रोम कांपने लगा। वह एक खरगोश की भांति अपने अंगों को सिकोड़े खड़ी रही। सरयू सिंह ने अपने हाथों में गिरा हुआ ढेर सारा मक्खन ले लिया और वापस सुगना के पास आ गए। उन्होंने मक्खन सुगना की जांघों के जोड़ पर रख दिया और उस मक्खन से सुगना की जांघों को छूने लगे।

इनकी मोटी उंगलियां सुगना की जांघों के अंदरूनी भाग पर घूमने लगी सुगना की बूर से रिस रही लार उस मक्खन से मिल रही थी। सरयू सिंह को उस लार का लिसलिसापन तुरंत ही समझ में आ जाता था। वह जान चुके थे कि सुगना आनंद ले रही है। उनकी उंगलियां सुगना की जांघों के बीच से होते हुए उसके अपवित्र द्वार( गांड) तक पहुंच रही थीं। सुगना के नितंब अभी भी मक्खन की कोमलता से बचे हुए थे.

सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा अपनी तरफ कर लिया. वह सुगना के माथे को चूम रहे थे। सुगना उत्तेजना के अधीन थी उसने अपनी गर्दन ऊपर उठाई कुछ ही देर में उसके होंठ उसके बाबूजी के होंठों के करीब आ गए। उन सुंदर गुलाबी होठों को अपने बेहद नजदीक पाकर सरयू सिंह मदहोश हो गए।

सुगना आगे बढ़ी या सरयू सिंह यह कहना मुश्किल था। पर चारों होंठ एक दूसरे में खो गए। एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक कमसिन युवती के होंठ चूस रहा था। जब तक सरयू सिंह सुगना के होंठ चूस रहे थे उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को मक्खन से सराबोर कर दिया। सुगना को इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके बाबूजी की उंगलियों ने सुगना की कोमल गांड को सहला दिया।

सुगना एक बार फिर थरथरा उठी। उसे वह एहसास अद्भुत लगा था। उसने अपनी कोमल गांड को सिकोड़ लिया और अपने बाबूजी की उंगलियों को अपने कोमल नितंबों के बीच दबा लेने का प्रयास किया। पर मक्खन की फिसलन बेहद ज्यादा थी। सरयू सिंह की उंगलियां फिसल कर उसकी जांघों पर आ गयीं।

सरयू सिंह के लिए तो सुगना के शरीर का हर अंग ही अद्भुत था कितना कसाव था सुगना के शरीर में। उन्होंने मन ही मन सुगना और कजरी के शरीर की तुलना कर डाली एक अध पके केले और पके हुए केले में जो अंतर होता है वही सुगना और कजरी के शरीर में था। सरयू सिंह ने अपने कदम थोड़े पीछे लिए और वह पास पड़ी चौकी पर बैठ गए। सुगना भी उन से सटी हुई पीछे आती गई।

सरयू सिंह ने उसे अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया।
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सुगना के नितंब सरयू सिंह की बाई जांघ पर टिक गए उसके कोमल पैर सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच से होते हुए जमीन पर छू रहे थे। मक्खन की फिसलन से बचने के लिए सुगना अपने दाहिने हाथ से बाबूजी की पीठ को पकड़ी हुई थी। सरयू सिंह ने भी अपनी प्यारी बहू को सहारा देने के लिए अपना बाया उसकी पीठ से होते हुए उसके सीने तक ले आए और उसकी दाहिनी चूची को पकड़ लिया।

सुगना का चेहरा उनके चेहरे के ठीक सामने था। वह उसके गालों को चूमने लगे सुगना ने अपना चेहरा अपने बाबू जी की तरफ कर लिया और उनके होठों को चूमने लगी। ससुर बहु का यह प्यार नियत देख रही थी वह मुस्कुरा रही थी।

इधर सुगना अपने बाबूजी के होंठ चूसने में व्यस्त थी उधर सरयू सिंह की उंगलियां उसकी जांघों के बीच घूमने लगीं। वह बीच-बीच में सुगना की पनियायी बुर को छू रहीं थीं।
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जब जब उसकी उनकी उंगलियां सुगना की बुर को छूतीं सुगना सिहर उठती। वह अपने बाबूजी के होठों को और तेजी से चूसने लगती। सरयू सिंह अद्भुत आनंद में थे। एक तो उनके हाथ पहले ही मक्खन से सराबोर थे ऊपर से सुगना की कुवारी बुर से बह रहा प्रेम रस उनके हाथों को और भी ज्यादा चिपचिपा बना रहा था। उनकी उंगलियां बेहद आसानी से जांघों के बीच फिसल रही थीं। सुगना भी अपनी जांघों का दबाव अपनी इच्छानुसार घटा और बढ़ा रही थी।

धीरे धीरे सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की बुर् की फांकों के बीच घूमने लगी। सुगना कांप गयी। बुर् के अंदरूनी भाग पर सरयू सिंह की उंगलियां अजीब किस्म की सनसनी पैदा कर रही थीं। सुगना के लिए यह आनंद अनूठा था उसका रोम रोम आनद में था। सरयू सिंह ने थोड़ा झुक कर और मक्खन अपने हाथों में लिया जिस का आधा भाग उन्होंने सुगना के हाथ में दिया और आधा फिर से उसकी जांघों के बीच रख दिया। सुगना ने पूछा

"बाबूजी इकरा के का करीं?"

"जउन अंग तहरा सबसे प्यारा लागे ओकरे पर लगा द"

सुगना अपने बाबूजी का इशारा समझ चुकी थी। उसने वह मक्खन अपने पसंदीदा अंग अपने बाबू जी के तने हुए लंड के सुपारे पर लगा दिया। अपनी बहू की कोमल हथेलियों का स्पर्श पाकर सरयू सिंह का लंड अभिभूत हो गया। उसने उछल कर अपनी नई मलिका का स्वागत किया और सुगना के हाथों में खेलने लगा। सुगना का हाथ ज्यादा मुलायम था या वह मक्खन यह कहना कठिन था। लंड के लिए वह दोनों ही बेहतरीन थे। वह उनके साथ मगन होकर खेलने लगा।

एक बार बाबुजी की उंगलियां उसकी कोमल बुर पर घूमने लगीं। कभी-कभी वह अपनी उंगलियों को सुगना के उस अपवित्र द्वार तक भी ले जाते और उसे गुदगुदा देते। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। वह आंखें बंद किए अपने कभी अपने बाबूजी के होठों को चूसती कभी उन्हें गालों पर चुंबन लेती। ससुर बहु का यह प्यार दर्शनीय था पर उसे देखने वाला कोई नहीं था सिर्फ और सिर्फ नियति थी जिसने उन्हें इतना करीब लाया था।

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अब तक शरीर सिंह की उंगलियों ने यह भांप लिया था की सुगना अक्षत यौवना थी। उसकी कौमार्य झिल्ली सुरक्षित थी। उन्हें इस बात का आभास था कि जब सुगना की कौमार्य झिल्ली टूटेगी उसे निश्चय ही दर्द होगा। शायद यह दर्द और भी ज्यादा होगा जब उनका विशाल और मजबूत लंड उस छोटी सी कोमल बुर में प्रवेश करेंगा।

वह दीपावली की रात की कल्पना कर उत्तेजित हो गए पर अपनी बहू सुगना के लिए चिंतित भी। एक पल के लिए उन्हें लगा वह अपनी बहू सुगना की दीपावली खराब कर देंगे। दर्द में कराहती हुई सुनना को वह कैसे चोद पाएंगे?

यह उन्हें कतई पसंद नहीं आएगा। वह उसका आनंद तो लेगी या नहीं यह बात बाद में ही समझ में आती पर यह तय था कि उस मोटे लंड से उसकी झिल्ली टूटने पर उसे दर्द होता। सरयू सिंह यह भी सोच रहे थे की सुगना का कौमार्य भंगअपने अपवित्र लंड से न करें।

उनके मन में दीपावली की रात को लेकर कई तरह की भावनाएं आ रही थी उन्हें उस दिन सुगना को पहली बार चोदना था पर वह सुगना की रात नहीं खराब करना चाहते थे. उस खुशी के मौके पर अपनी प्यारी बहू को वह दर्द से कराहता नहीं देखना चाहते थे। अंततः उन्होंने मन ही मन फैसला कर लिया। उन्होंने सुगना के होठों को जोर से चुम्मा और अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ा दिया। उनकी मध्यमा उंगली बुर् की कोमल होंठो के बीच से मांसल भाग पर छूने लगीं। सुगना उत्तेजना से कांप रही थी। बुर् के कोमल मुख पर दबाव बढ़ते हैं उसे तेज दर्द की अनुभूति हुई। सुगना ने कहा…

"बाबू जी तनी धीरे से……. दुखाता"

शरीर सिंह को पता था दर्द तो होना है उन्होंने अपनी उंगलियों का दबाव थोड़ा कम किया और एक बार फिर उतना ही दबाव दिया. सुगना फिर चिहुँक उठी।

सरयू सिंह ने सुगना के कान में कहा सुगना "सुगना बाबू अबकी दुखाई त हमार होंठ काट लीह हम रुक जाइब"

सुगना खुश हो गई. कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना के बुर् अंदरूनी भाग को एक बार फिर छेड़ने लगे। जैसे ही वह दबाव ज्यादा बढ़ाते सुगना अपने दांत उनके होठों पर गड़ाकर उन्हें रोक लेती। सरयू सिंह की दूसरी हथेली सुगना की चूँची और निप्पलों को लगातार सहला रही थी।

उनका लंड सुगना के कोमल हाथों में खेलते खेलते अब स्खलन के लिए तैयार था। सुगना स्वयं भी कांप रही थी वह भी झड़ने के लिए पूरी तरह तैयार थी। अपनी बाबूजी की उंगलियों को अपनी पनियायी बुर पर अब ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पा रही थी। शरीर सिंह बुर् के कंपन को अच्छे से पहचानते थे।

जिस समय सुगना की बुर के कंपन चरम पर थे उसी समय उन्होंने अपनी मध्यमा उंगली को उसको बुर में तेजी से उसे अंदर घुसा दिया। सुगना दर्द से तड़प उठी उसने अपनी हथेलियो से सरयू सिंह के लंड को तेजी से दबा दिया। उसके कोमल हाथों में इतनी ताकत जाने कहां से आई। उसी दौरान उन्होंने अपने बाबूजी के होठों को काट लिया। वह अपनी झिल्ली टूटने के दर्द से तड़प उठी थी। इसके बावजूद दर्द और स्खलन की खुशी में खुशी का पलड़ा भारी था।

सरयू सिंह की उंगली उसकी बुर के अंदर तेजी से आगे पीछे हो रही थी। उनका अंगूठा सुगना की भग्नासा को सहलाकर सांत्वना दे रहा था। सुनना उनकी हथेली में अपना प्रेम रस छोड़ रही थी। कुछ देर अपनी उंगली से सुगना के अंदरूनी भागों को सहलाने के पश्चात उन्होंने सुगना के शरीर की हलचल को शांत होते हुए महसूस किया। सुगना तृप्त हो चुकी थी।

उधर सुगना की हथेली के तेज दबाव के कारण सरयू सिंह भी स्खलित हो रहे थे वीर्य की तेज धार सुगना के पेट और चूचियों पर पढ़ रही थी। सुगना को उस उत्तेजना में कुछ भी समझ ना आ रहा था। वह लंड को पकड़े हुए थी। वीर्य वर्षा ससुर और बहू दोनों को बराबरी से भीगो रही थी।

सुगना ने अनजाने में ही अपने ससुर के होंठ काट लिए थे। पर अब वह उसे सहला रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा रखा था। कुछ ही देर में सुगना उनसे अलग हुई। सरयू सिंह अपनी बहू को देख रहे थे जो उनके वीर्य और उस मक्खन से सराबोर थी। उसकी जांघों पर रक्त आया हुआ था।

उधर सर्विसिंग के होठों पर भी रक्त के निशान आ गए थे। सुगना ने सचमुच में जोर से काटा था। सुगना एक बार फिर पास आई और अपने हाथों से अपने बाबूजी के होठों का रक्त पोछने लगी। शरीर सिंह के हाथ भी एक बार फिर उसकी जांघों पर चले गए। सुगना की बुर अब संवेदनशील हो चली थी। वह अपनी कमर पीछे कर रही थी।

शरीर सिंह ने उठ कर उसे अपने सीने से लगा लिया। और उसके माथे को चूमते हुए बोले

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"सुनना बाबू जायेदा अब दिवाली अच्छा से मनी" सुगना में उन्हें चुम लिया पर वह शर्म से पानी पानी हो गयी। उसके प्यारे बाबुजी दीपावली के दिन उसकी बुर में दीवाली मनाएंगे यह सोच कर वह मदमस्त जो गयी।

एक बार खुशी में वह उनके चरण छूने के लिए झुकी। उसके कोमल नितंब सरयू सिंह कि निगाहों में आ गए। सुगना सच में बेहद खूबसूरत थी। भगवान ने उसे कामुकता का अद्भुत खजाना दिया था उसका हर अंग सांचे में ढला हुआ था। सरयू सिंह ने अपना सर ऊपर उठाया और नियति को इस अवसर के लिए धन्यवाद प्रेषित किया। उनके आने वाले दिन बेहद उत्तेजक और खुशियों भरे होने वाले थे.

सुगना ने कोठरी में फैले हुए मक्खन को देखकर अपने बाबू जी से कहा

"सासू मां घीव बनावे के केहले रहली अब का होई"

सरयू सिंह सुगना की मासूमियत से द्रवित हो गए. उन्होंने नंगी सुगना को अपने सीने से सटाया और उसके माथे पर चूम लिया और कहां
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"जायेदा तू साफ सफाई कर ल हम घीव मंगवा दे तानी"

सुगना मुस्कुरा दी उसने अपनी एडियां उची की और बाबूजी के गालो को चूम लिया।

ससुर और बहू का यह प्रेम निराला था। नियति ने आज सुगना का कौमार्य हर कर उसे अद्भुत संभोग के लिए तैयार कर लिया था। दीपावली शुभ होने वाली थी। सुगना नीचे बैठकर मक्खन उठाने लगी उसकी सुंदर और गोल मटोल चूतड़ देखकर सरयू सिंह ललचा रहे थे वह एकटक उन्हें देखे जा रहे थे। आज उन्हें इतना कुछ एक साथ मिल चुका था पर उनका मन ही नहीं भर रहा था।

तभी सुगना ने पलट कर देखा और बोली "बाबूजी अब जायीं सब राउरे ह"

शरीर सिंह अपनी धोती बांधते हुए कोठरी से बाहर आ गए पर उनका दिल बल्लियों उछल रहा था। उनके खजाने में कोहिनूर हीरा आ चुका था।

सुगना ने मक्खन साफ कर लिया था अचानक उसका ध्यान अपने पेट और चुचियों पर गया जो मक्खन और शरीर सिंह के घी(वीर्य) से सने हुए थे। उसने एक बार अपने हाथों से अपनी चुचियों को सहला लिया अपने बापू जी का वीर्य हाथों में लिए अपनी चुचियों को मसलने के समय व बेहद खुश दिखाई पड़ रही थी उसका स्वप्न पूरा हो रहा था।

दीपवली का इंतजार सुगना को भारी पड़ रहा था….
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#19
Heart 
भाग -18



होली के विशेष अवसर पर स्पेशल अपडेट

सरयू सिंह के दिमाग में सुगना के साथ बिताई गई दिवाली की वह कामुक रात और उसके पहले के कुछ दिन अमिट छाप छोड़ गये थे । उसे याद करते वह अपना घंटों समय काट लेते.सुगना के साथ प्रथम मिलन में उन्होंने समाज की मर्यादाओं के खिलाफ अपनी बहू की खुशी के लिए उसे जी भर कर चोदा था और उसे स्त्री होने का एहसास दिलाया था। इस पवित्र पाप का न तो उन्हें अफसोस था न सुगना को और नहीं सुगना की सास उनकी कजरी भौजी को .

नियति जिसने सुगना और सरयू सिंह को करीब लाया था वह विजय प्राप्त कर चुकी थी. अगले दो-तीन वर्षों में सुगना और सरयू सिंह ने अपने कामुक जीवन को नया आयाम दिया जिस का विस्तृत विवरण उचित समय पर पाठकों को प्रस्तुत किया जाएगा।

फिलहाल आइए कहानी को अब वर्तमान में ले आते है। वैसे भी कल होली है...

सुगना का पुत्र सूरज छः महीने का हो गया था। वह बेहद ही सुंदर था और हो भी क्यों ना? सुगना जैसी अपूर्व सुंदरी और सरयू सिंह जैसे गठीले मर्द की औलाद को तो सुंदर होना ही था। सूरज ने चेहरे पर सुगना की मासूमियत ली हुई थी पर उसकी कद काठी पर सरयू सिंह का असर था। देखने में सूरज सात आठ माह का बच्चा लगता। कजरी हमेशा उसे तेल लगाते समय कहती उसकी नूनी को देखती और बोलती

"देखिह ई हो कुँवर जी जइसन बनी"

सुगना शर्मा जाती और इस बात को अपनी उत्तेजना से जोड़ लेती। क्या सूरज भी रिश्तो की मर्यादाओं को ताक पर रखकर स्त्रियों से संभोग करेगा?

नहीं नहीं वह ऐसा नहीं करेगा। सब की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती मेरा बालक एक आदर्श पुरुष बनेगा। हालांकि कजरी ने यह बात सूरज की कद काठी को देखकर कहीं पर सुगना ने अपने मन में आए विचारों से उस बात को नई दिशा दे दी थी।

वैसे अपने ससुर से संबंध बनाने के बाद सुगना की निगाहों में संबंधों की अहमियत निश्चय ही कुछ कम हो गई थी स्त्री और पुरुष के बीच बन रहे कामुक संबंध उसे अब स्वभाविक लगते थे।

दो-तीन दिनों बाद होली का त्यौहार आने वाला था।

हरिया की बेटी लाली अपने पति राजेश के साथ गांव आई हुई थी लाली का बेटा राजू अब 4 साल का हो चला था। राजेश ने एक बंगालन से अवैध संबंध बना रखे थे जिसने एक सुंदर पुत्री को जन्म दिया था उसका नाम रीमा रखा गया था। जब रीमा एक वर्ष की हुई तो उस बंगालन की अकारण मृत्यु हो गई। राजेश ने लाली को यह बात समझाई की रीमा अनाथ है। राजेश और लाली ने मिलकर रीमा को अपना लिया और अपने दोनों बच्चों के साथ हंसी-खुशी रहने लगे।

हरिया के घर में हलचल थी। लाली समय के साथ और खूबसूरत हो चली थी। वह अपने दोनों बच्चों को गांव की खेत और गांव की संस्कृति से परिचय करा रही थी।

राजेश एक कामुक व्यक्ति था उसने लाली और उस बंगालन से संबंध बनाकर अपनी काम पिपासा को हर प्रकार से शांत किया था। लाली की तुलना में वह बंगालन ज्यादा कामुक थी। बंगालन के जाने के बाद लाली ही राजेश का एकमात्र सहारा थी।

उधर मुंबई में बबीता की जवानी पर भी ग्रहण लग चुका था। बबीता की वासना बढ़ती जा रही थी उसके अपने होटल के मैनेजर से संबंध बन चुके इधर रतन के साथ संभोग करते समय वह रतन को अपना वीर्य अपने गर्भ में गिराने की इजाजत न देती परंतु उसका बॉस उसकी यह बात मानने को तैयार न था असावधानी वश बबीता गर्भवती हो गई। उसने न चाहते हुए भी दो पुत्रियों को जन्म दिया था जिनका नाम चिंकी और मिंकी था वह क्रमशः 3 वर्ष और 2 माह की थी।

मिंकी का जन्म तो अनायास ही हो गया था बबीता उसके लिए बिल्कुल तैयार न थी पर डॉक्टर ने गर्भपात के लिए साफ साफ मना कर दिया था। अनचाहे में पतली दुबली बबीता दो दो बच्चों को जनने के बाद अपनी अद्भुत सुंदरता को बैठी थी। वह धीरे-धीरे रतन और बबीता के रिश्ते में खटास बढ़ती गई। रतन को परिवार का सुख तो मिल रहा था पर पत्नी सुख कभी-कभी ही प्राप्त होता वह भी बिना मन के।

बबीता उसे प्यारी तो थी पर के व्यवहार में परिवर्तन आ चुका था। रतन की कामवासना और अपेक्षाओं पर बबीता खरीदना उतरती उसका मन उसके बॉस के साथ लग चुका था। रतन की कामुक निगाहें सुंदर औरतों को देखते ही उन पर ठहर जातीं। वह मन ही मन उन्हें अपने ख्वाबों में नग्न करता और उनके साथ संभोग की परिकल्पना कर अपने लंड को सह लाते हुए वीर्य स्खलन करता। यह एक आश्चर्य ही था की जिस सुगना को उसने सुहाग की सेज पर अकेला छोड़ दिया था अब वह उसी सुगना की परिकल्पना कर अपना हस्तमैथुन किया करता था।

सुगना उसकी पत्नी थी परंतु अब वह उसकी निगाहों में किसी अनजान व्यक्ति से संभोग के उपरांत मां बन चुकी थी। रतन सुगना के संपर्क में आना तो चाहता था पर किस मुंह से वह उससे बात करेगा? प्रश्न कठिन था. रतन का भविष्य नियति के हाथों में कैद था।

अगले दिन रतन भी गांव पर आ गया। वैसे भी अपने चाचा को दिए गए वचन के अनुसार उसे हर छः माह पर गांव आना ही था।

उधर सुगना की माँ जिसने तीन पुत्रियों और एक पुत्र को जन्म दिया था होली पर अपने मायके जाना चाहती थी। सबसे बड़ी सुगना थी उसके चार पांच वर्षों बाद पदमा का पुत्र सोनू हुआ था। पर फौजी महोदय यहां भी न रुके और जाते जाते पदमा के गर्भ में दो पुत्रियों को छोड़ गए थे जो अब लगभग 14 वर्ष की थीं। पद्मा ने उनका नाम सोनी और मोनी रखा था वह दोनों लगभग एक जैसी ही दिखाई पड़ती यदि उन्हें एक जैसे कपड़े पहना दिए जाएं तो पहचानना मुश्किल हो सकता था।

पद्मा की दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी ने उसके साथ जाने से मना कर दिया। वह दोनों अपनी सुगना दीदी के पास जाना चाहती थी। अंततः सुगना के भाई सोनू जो अब 18 वर्ष का हो चुका था ने अपनी दोनों छोटी बहनों को अपनी बड़ी बहन सुगना के पास छोड़ दिया और अपनी मां को मायके पहुंचा आया। उसका भी मन अपने नाना के यहां ना लगा और वह भी अपनी सुगना दीदी के घर आ गया।

नियति गांव के बाहर नीम के पेड़ पर बैठी सरयू सिंह और हरिया के घर को निहार रही थी जहां उसने पिछली पीढ़ी में सरयू सिंह और कजरी को अपना शिकार बनाया था तथा नई पीढ़ी में सुगना और राजेश को। लाली इससे अछूती थी और सुगना का भाई सोनू भी अब तक नियति के कामुक दंश से बचा हुआ था।

आने वाली पीढ़ी के कई हंसते खेलते बच्चे भी निष्ठुर नियत की निगाहों में थे। बबीता की पुत्री चिंकी मिंकी गांव नहीं आई थी पर नियति ने उन्हें भी अपने दायरे में ले लिया था। नियति आने वाले समय की पटकथा लिख रही थी।
होली का दिन शुरू हो चुका था। सबसे पहले कजरी उठी थी उसके मन में शरारत सूझी और उसने अटारी पर से रखा आलता उतारा और दालान में जाकर सरयू सिंह के गालों और माथे पर रंग लगाने लगी। वह कुंवर जी का ख्याल रखती थी और रखे भी क्यों न वह उसके इकलौते मर्द थे जो पति की भी भूमिका निभाते और दोस्त की भी। और तो और उन्होंने उसकी बहू का भी जीवन सवार दिया था। कजरी उनके प्रति कृतज्ञ थी।

चेहरे पर रंग लगाने के बावजूद कजरी का जी ना भरा। उसने अपने हाथों में रंग लपेटा और सरयू सिंह की धोती के अंदर ले जाकर प्यारे लंड को पकड़ लिया। सरयू सिंह का नाग सोया हुआ था पर कजरी के हाथ लगते ही वह जागने लगा। सरयू सिंह की आंख खुल गई। उन्हें कजरी की बदमाशी समझ आ चुकी थी।

कजरी लगभग हर वर्ष उनसे पहले उठती और इसी प्रकार की हरकत कर सबसे पहले उन्हें रंग लगाती। उन्होंने कजरी को अपनी चारपाई पर खींच लिया और उसे अपने आगोश में ले कर सहलाने लगे। दो जिस्म एक दूसरे में समा जाने को बेकरार थे तभी सुगना के पायलों की छम छम आंगन में सुनाई पड़ी। कजरी सचेत हो गई। वैसे भी इस समय घर में कई लोग थे सरयू सिंह और कजरी का मिलन संभव न था।

कजरी अपनी पनियायी बुर लेकर सरयू सिंह से दूर हो गई और आंगन में सुगना के पास आ गई। कजरी के हाथों में रंग देखकर सुगना सारी बात समझ गई। दोनों सास बहू एक दूसरे के गले लग गयी। अब सुगना की चुची अपनी सास कजरी से बड़ी हो चली थी।

कजरी की चूचियां उम्र बढ़ने के साथ सूख रही थी और इधर सुगना की सूचियों में दूध भर रहा था। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी पर हावी हो रही थी। कजरी ने सुगना के कान में कहा

"जा... अपना बाबूजी के गोड लाग ल" इतना कहकर कजरी ने सुगना के नितंबों को दबा दिया। सुगना सरयू सिंह की कोठरी की तरफ आ गयी। उसने अपने बाबू जी के चरण छुए और अपने कामसुख के प्रिय अंग उनके ल** को अपनी हथेलियों में ले लिया। कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग अभी सुखा न था। उसने कजरी के हाथों को रंग दिया। सुगना वह रंग देख कर मुस्कुराने लगी उसे अपनी सास कजरी की हरकत समझ आ चुकी थी।

सरयू सिंह ने अपनी बहू सुगना को निराश ना किया। उन्होंने उन्ही होठों से सुगना को चूम लिया जिनसे कुछ समय पहले ही उन्होंने कजरी को चूमा था। वह दोनों उनकी दो पटरानियां थी। सुगना वर्तमान थी और कजरी धीरे-धीरे पुरानी हो रही थी।

सरयू सिंह के मन में दोनों के प्रति प्यार उतना ही था पर कामुकता पर अब सुगना का कब्जा हो चला रहा था।

वापस आने पर कजरी ने सुगना के हाथों में लगा लाल रंग देख लिया और मुस्कुराने लगी। दोनों एक दूसरे की भाषा समझ चुकी थी। उन्होंने सरयू सिंह के सबसे प्यारे अंग से होली खेल ली थी और सरयू सिंह की पिचकारी में श्वेत रंग भर दिया था।

धीरे धीरे सूरज आसमान में चढ़ने लगा सारे बच्चे और जवान होली खेलने की तैयारी में घर के अहाते में आ गए हरिया का परिवार भी सरयू सिंह के दरवाजे के सामने आ गया सरयू सिंह का अहाता हरिया के अहाते से ठीक सटा हुआ था।

गांव के कुछ लोग भी सरयू सिंह के अहाते में आकर फगुआ गाने लगे। उन्होंने रतन और राजेश को भी बैठा लिया। हरिया भी होली गीत गाने में मगन हो गया घर के सारे वयस्क पुरुष इसका आनंद लेने लगे पर सुगना का भाई सोनू उस बिरादरी से दूर लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

सुगना की छोटी बहनें सोनी और मोनी ढोल मृदंग की आवाज से मस्त हो गई थी और गांव के लोगों द्वारा गाया जा रहा फगुआ देख रही थी उन्हें यह दृश्य बिल्कुल नया लग रहा था।

हरिया की पत्नी और कजरी ने छोटे बच्चों को अपने सानिध्य में ले लिया था। लाली सुगना के साथ आंगन में होली खेल रही थी।

दोनों सहेलियां एक दूसरे को रंग से सराबोर कर रही थी। शरीर का कोई अंग न छूटने पाए यह बात दोनों के जहन में भरी हुई थी। लाली ने सुगना की बड़ी-बड़ी चुचियों पर रंग लगाते समय उसे दबा दिया।

दूध की धार फूट पड़ी सुगना चिल्लाई

"अरे लाली तनी धीरे से ...दुधवा गिरता" लाली ने कहा

"बुलाई रतन भैया के पिया दीह"

उस बेचारी को क्या पता था कि सुगना की चूचियों में दूध रतन ने नहीं उसके बाबूजी सरयू सिंह ने भरा था।

लाली को फिर शरारत सूझी उसने सुगना से कहा "कह त तोर जीजा जी के बुला दी उहो तोर चुचीं के चक्कर में ढेर रहेले"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई निश्चय ही सुगना की कामुक चूचियों का जिक्र राजेश ने अपनी पत्नी लाली से किया हुआ था।

सोनू दोनो सहेलियों की छेड़खानी देख रहा था। लाली आंगन में सुगना से बच कर भाग रही थी तभी सोनू आंगन में आ गया। लाली सोनू से टकरा गयी। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ लाली के हमरा के बहुत रंग लगावले बिया"

सोनू उम्र में लाली और सुगना से तीन चार बरस छोटा था परंतु कद काठी उसकी मर्दों वाली थी कद 5 फुट 11 इंच भरा पूरा शरीर लाली और सुगना के लिए एक मर्द के जैसा था सोनू। सोनू ने लाली देवी को अपने सीने से सटा लिया। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसके सीने से सट गयीं।

सुगना द्वारा लाली की चुचियों पर लगाया गया रंग सोनू के सीने पर लग गया। लाली को यह अवस्था ज्यादा आपत्तिजनक लगी वह उसके सीने से दूर होने का प्रयास करने लगी। जब तक वह अपने प्रयास में सफल होती सुगना हाथों में रंग लिए आ चुकी थी।

वाह लाली की पीठ और कमर पर रंग लगा रही थी। जाने कब सुगना के हाथ लाली के नितंबों तक चले गए बीच-बीच में सोनू के हाथ लाली की पीठ को सहला लेते और सोनू अपनी काम पिपासा को कुछ हद तक शांत कर लेता।

लाली को सोनू के लंड की चुभन पेट पर महसूस होने लगी। सोनू उत्तेजित हो चला था और वह भी क्यों ना लाली जैसी भरी पूरी गदरायी जवानी को उसने अपने आलिंगन में लिया हुआ था।

कुछ देर की की छीना झपटी में लाली ने अपने आपको सोनू के आलिंगन से छुड़ा लिया और घर के पिछवाड़े की तरफ भागी। सोनू भी उसे पकड़ने के लिए भागा। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ ओकरा के आज एकरा के पूरा रंग लगाईब"

सुगना उत्साह में थी. वह और रंग तैयार करने के लिए कोठरी में रंग लेने चली गई। इधर राजेश का मन फाग फगुआ में ना लग रहा था। उसे सुगना के साथ होली खेलने का मन था। रतन ने भी अपना मन बनाया हुआ था पर उस उत्साह से नहीं।

वह सुगना के साथ जी भर कर होली खेलना चाहता था पर वह सुगना से दूर था।

राजेश ने हिम्मत जुटा ली उठ कर सुगना के आंगन में आ गया। जैसे ही सुगना रंग लेकर अपनी कोठरी से बाहर आयी राजेश ने अपनी जेब से ढेर सारा अबीर निकाला और सुगना के शरीर पर दोनों हाथों से उड़ेल दिया। लाल और पीले रंग ने सुगना की आंखों के सामने एक धुंध जैसी तस्वीर बना दी। सुगना के शरीर पर अबीर के छीटें गिर रहे थे।

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सुगना को कुछ दिखाई ना दे रहा था इसी बीच राजेश ने उसे पीछे से आकर आलिंगन में ले लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियां राजेश के हाथों में आ गयीं जिसे राजेश ने मसल दिया। सुगना ने कहा

"जीजा जी, तनी धीरे से….दुखाता"

राजेश स्त्रियों की कामुक भाषा को बखूबी समझता था उसने चूचियों पर तो अपना दबाव हटाया पर अपनी कमर का दबाव सुगना के नितंबों पर बढ़ा दिया। राजेश ने थोड़ा झुक कर अपने लंड का तनाव सुगना के नितंबों की दरार पर सटा दिया।

सुगना सिहर उठी राजेश सुगना को छोड़ने के विचार में बिल्कुल नहीं था। वह अपनी हथेलियों से उसके पेट पर रंग लगाने लगा। इसी बीच रतन भी आगन में आ गया अपनी पत्नी सुगना को राजेश की बाहों में मचलते हुए देखकर रतन ने सूरज के जन्म और सुगना के गर्भवती होने की कहानी सोच ली।

निश्चय ही सुगना का पुत्र सुरज राजेश और सुगना के प्यार की परिणिति था। नियति ने रतन को वही दिखाया जो देखना उसके लिए उचित था। रतन उल्टे पैर वापस आ गया। वह अब फगुआ सुनने की स्थिति में नहीं था। वह चुपचाप अपने इक्का-दुक्का दोस्तों से मिलने चल पड़ा।

उधर लाली जब आगन से पिछवाड़े की तरफ भाग रही थी उसका लहंगा एक कील में फस गया और लहंगे का नाडा टूट गया। लाली ने बड़ी मुश्किल से अपना लहंगा पकड़ा और जब तक वह उसे संभालती तब तक सोनू ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया।

सरयू सिंह के आंगन में सुगना राजेश की बाहों में होली का सुख ले रही थी और घर के पिछवाड़े में लाली सोनू अपनी बाहों में अपनी लाली दीदी को लिए एक नए किस्म का अनुभव कर रहा था। लाली का किसी अन्य मर्द के साथ यह पहला अनुभव था। और तो और वह मर्द भी और कोई नहीं बल्कि सुगना का भाई सोनू था।

सोनू ने एकांत पाकर लाली की चुचियों को अपने दोनों हथेलियों में पकड़ लिया लाली चाह कर भी उसे न रोक पायी। उत्तेजना ने उसके हाथों से ताकत से ताकत छीन ली थी।

उसके दोनों हाथ लहंगे के नाडे को पकड़ ने में व्यस्त थे। धीरे धीरे लाली उत्तेजित हो चली थी सोनू के लंड का स्पर्श उसे अपनी पीठ पर महसूस हो रहा था। सोनू अपने लंड को लाली की पीठ पर धीरे-धीरे रगड़ रहा था। सोनू का चेहरा लाली के कान से सटा हुआ था। सोनू की गर्म सांसे लाली को अभिभूत कर रही थी।

इधर जब तक राजेश सुगना की नंगी चूचियों को छूने का प्रयास करता सोनी और मोनी आगन में आ गयीं। राजेश ने सुनना को छोड़ दिया और सुगना का मीठा एहसास लेकर मन मसोसकर आगन से बाहर आ गया। सोनी ने सुगना से गुझिया मांगा सुनना खुशी-खुशी रसोई से जाकर अपनी बहनों के लिए गुजिया ले आई और वह दोनों गुझिया लेकर फिर एक बार ढोल मृदंग की थाप सुनने बाहर दालान में आ गयीं।उनके लिए वह गीत संगीत ज्यादा प्रिय लग रहा था होली का क्या था वह तो वो बाद में भी खेल सकती थीं।

सुगना को लाली का ध्यान आया वह हाथों में रंग लिए पिछवाड़े की तरफ गई जो दृश्य सुगना ने देखा वह सिहर उठी। सोनू का यह मर्दाना रूप उसने पहली बार देखा था सोनू ने लाली की चुचियों को चोली से लगभग आजाद कर लिया था। लाली की चोली ऊपर उठी हुई थी उसके बड़ी-बड़ी चूचियां लाल रंग से भीगी हुई सोनू की हथेलियों में खेल रही थी। लाली की आंखें बंद थी वह सोनू की हथेलियों का स्पर्श महसूस कर आनंद में डूबी हुई थी। लाली ने एक हाथ से लहंगे का नाडा पकड़ा हुआ था। लाली का दूसरा हाँथ सोनू के पजामे में तने हुए लंड को सहला रहा था। सोनू और लाली को इस अवस्था में देखकर सुगना की बुर रिसने लगी। सुगना तो राजेश का स्पर्श पाकर पहले ही उत्तेजित थी और अब यह कामुक दृश्य देखकर उसकी बुर प्रेम रस छोड़ने लगी।

उसका छोटा भाई पूरी तरह जवान हो चुका था और उसकी सहेली लाली की गदराई जवानी को अपने हाथों से मसल रहा था।
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उसकी सहेली लाली भी आनंद में डूबी हुई सोनू के मर्दाना यौवन का सुख ले रही थी।

सुगना पर निगाह पड़ते ही सोनू ने लाली की चुचियों को चोली के अंदर कर दिया और अपने लंड को पीछे किया। लाली ने सोनू की पकड़ से आजाद होने की कोशिश की पर सोनू ने कहा

"दीदी तब से पकड़ ले बानी तू कहां रह गईलु हा"

सुगना ने करीब आकर लाली को रंग लगाना शुरू कर दिया. लहंगे का नाडा पहले ही टूटा था सुगना के मन में उत्तेजना ने घर बना रखा था ।उसने अपनी हथेलियों में लगाया हुआ रंग अपनी सहेली के दोनों जांघो के बीच लगा दिया। जब सुगना की हथेली लाली की बुर से टकरायी लाली की बुर ने सुगना के हाथों को अपने प्रेम रस से भीगा दिया।

लाली की बुर सोनू के स्पर्श से चिपचिपी हो चली थी उसके होठों पर ढेर सारा मदन रस रिस आया था। सुगना ने लाली की तरफ देखा लाली मुस्कुरा दी। लाली की उत्तेजना को उसकी सहेली सुगना ने बखूबी पढ़ लिया था। सुगना स्वयं एक कामुक युवती थी उसने लाली की बुर से चुराया हुआ प्रेम रस अपने हाथों पर मल लिया। हाथों पर लगा रंग लाली की बुर से निकले हुए प्रेम रस से चमकने लगा।

सुगना ने कहा

"सब केहू के रंग लागल बा तेही बाचल बाड़े"

सुगना ने अपने हाथों में लगा चमकता रंग सोनू के गाल पर लगा दिया। सोनू ने अपनी लाली दीदी के बुर में जो उत्तेजना पैदा की थी उससे रिस आया प्रेम रस अब उसके गालों पर लग चुका था। लाली सुगना की यह हरकत देख चुकी थी वह शरमा गई।

तभी लाली ने कहा

"हमरा के त रंग लगा लेल अपना दिदिया के ना लगाईबा"

सोनू के मन में सुगना के प्रति कामुकता न थी वह उसकी बड़ी बहन थी वह उसकी पूरी इज्जत करता था. उसने अपने हाथ का अबीर अपनी सुगना दीदी के गानों पर लगाया और वहां से हटकर आंगन में आ गया.

सोनू के जाते ही सुगना ने कहा

"ते ओकरा के बिगाड़ देबे"

"जाए दे तनि रस लेली त ओकरो होली ठीक हो जायीं।"

"सोनू अब लइका नइखे ओकर सामान थार जीजाजी से बीसे बा"

वह दोनों हंसने लगी. सुगना भी सिहर उठी राजेश के नाम से उसकी बुर जाने क्यों सचेत हो हो जाती थी।

लाली ने सुगना की चूचियों पर लगा अबीर देख लिया था। उसे पता था यह राजेश ने ही लगाया था। लाली ने सुगना को छेड़ा

" अच्छा हमारा के इंतजार करा कर अपना जीजा जी से चूँची मिसवावतालु हा"

सुगना की चोरी पकड़ी गई थी

"हट पगली"

दोनों सहेलियां अपनी जांघों के बीच एक नई उत्तेजना लिए आंगन में आ रही थीं।

नियति अपनी साजिश बन रही थी। एक तरफ तो उसने रतन को यह एहसास करा दिया था की सूरज का संभावित पिता राजेश ही था। यह गर्भधारण परिस्थितिजन्य संभोग के कारण हो सकता था या सुनियोजित।

रतन के मन में सुगना के प्रति प्यार और बढ़ गया। उसे पता था राजेश शहर में रहता है उसका अपनी ससुराल आना कभी कभी ही होता होगा। सुगना के राजेश से मिलन को रतन ने अपनी स्वीकार्यता दे दी। उसके मन में आए सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे।

उधर लाली और सुगना का भाई सोनू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति ने उन्हें मिलाने की ठान ली थी। लाली जिसने आज तक अपने पति के अलावा अन्य पुरुष को अपने करीब न फटकने दिया था वह एक वयस्क किशोर के प्रेम में आसक्त हो रही थी।

दालान में लगा फगुआ का रास रंग खत्म हो रहा था। कुछ ही देर में हरिया का परिवार और सरयू सिंह का परिवार जी भर कर होली खेलने लगा। सभी होली का आनंद उठा रहे थे। सरयू सिंह अपनी सुगना को प्यार से देख रहे थे।

वह सुबह से ही अपनी पिचकारी में रंग भर सुगना के साथ एकांत के पल खोज रहे थे। पर इस उत्सव के माहौल में यह कैसे संभव होगा यह तो नियति को ही निर्धारित करना था। एक बार फिर कजरी नियति की अग्रदूत बनी।

उसने सभी से कहा

"चला सब केहु ट्यूबवेल पर वह जा के नहा लोग ओहिजा पानी ढेर बा। उसने सुगना से कहा सुगना बेटी तू जा घर ही नहा ल और खाना के तैयारी कर"

सोनी और मोनी बेहद प्रसन्न हो गयीं। सोनू और रतन भी अपने अपने कपड़े लेकर ट्यूबवेल की तरफ निकल पड़े। निकलते समय कजरी सरयुसिंह के करीब आयी और बोली जाइं अपना सुगना बाबू संग होली खेल लीं।

सरयू सिंह उसे सबके सामने चुम तो नहीं सकते थे पर वह बेहद प्रसन्न हो गए कजरी सच में उनके लिए एक वरदान थी जो उनकी खुशियों को हमेशा कायम रखती थी।

घर का आंगन खाली हो चुका था। प्रेम का अखाड़ा तैयार था। जैसे ही कजरी और बाकी लोग घर से कुछ दूर हुए सरयू सिंह आंगन में आ गए। सुगना अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी वह अपने बाबू जी के साथ होली नहीं खेल पाई थी। वह घर में हुई भीड़ भाड़ की वजह से चिंतित थी कि वह अपने बाबूजी के साथ कैसे होली खेल पाएगी। उसे नहीं पता था उसकी प्यारी सहेली और सास ने इसकी व्यवस्था पहले ही कर दी है।

सुगना अपनी चुचियों पर लगा अबीर झाड़ रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे आकर पीछे से पकड़ लिया और उसे चूमने लगे।

सुगना खुश हो गई। जिस तरह से छोटा बच्चा गोद में आने के बाद खुश हो जाता है सुगना भी अपने बाबुजी की गोद में आकर मस्त हो गयी।

सरयुसिंह ने धीरे-धीरे सुनना को नग्न कर दिया पर सुगना की कुंदन काया पर कई जगह पर रंगों के निशान थे।
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सरयू सिंह भी अबीर से भीगे हुए थे उन्होंने भी अपना धोती और कुर्ता हटा दिया। घर के आंगन में ससुर और बहू पूरी तरह नग्न थे। आंगन का दरवाजा सरयू सिंह ने बंद कर दिया था। ब धूप की चमकती रोशनी में अपने बापू जी के लंड को देखकर सुगना सिहर उठी। तीन चार सालों तक लगातार चुदने के बावजूद सुगना की बुर अपने बाबुजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती थी।

सुगना ने लंड पर कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग देख लिया था जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। सुगना अपने बाबूजी के करीब आई और उस जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सुगना के होठों को चूमने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हैंड पंप के पास ले आए।

सरयू सिंह जब तक हैंडपंप से पानी निकालते रहें। सुगना उनके लंड से खेलती रही। ऐसा लग रहा था जैसे वह भी अपने छोटे हैण्डपम्प से पानी निकालने का प्रयास कर रही हो।
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सुगना के साथ इस तरह नग्न रहने का यह अनुभव बिल्कुल नया था। पानी भर जाने के पश्चात सरयू सिंह पालथी मारकर बैठ कर गए और अपनी प्यारी बहू सुगना को अपनी गोद में बिठा लिया। सुनना की चुचियां सरयू सिंह के सीने से सट गयीं और जैसे-जैसे सुगना अपनी कमर नीचे करती गई सरयू सिंह का मोटा लंड अपनी बहू की बुर में गुम होता गया।

सुगना का शरीर भरता चला गया। सुगना ने अब अपना पूरा वजन उनकी जांघों पर दे दिया था और उनके लंड को पूरी तरह अपने अंदर ले लिया था।

सुगना ने हाथ में साबुन लिया और अपने बाबूजी की पीठ पर लगाने लगी। सरयू सिंह भी सुगना की पीठ से रंग छुड़ाने लगे और जांघों के बीच अपनी पिचकारी को आगे पीछे करने लगे। सुगना दोहरे सुख में डूब रही थी। जांघों के बीच उसे होली का अद्भुत सुख मिल रहा था और उसके बाबूजी के हाथ उसके बदन से पराए मर्द द्वारा लगाया रंग छुड़ा रहे थे।

सुगना सरयुसिंह की ही थी यह दुर्भाग्य था की उम्र के इस विशाल अंतर की वजह से उसके जीवन मे दूसरे मर्द का आना निश्चित था। सरयू सिंह यह बात जानते थे कि वह सुगना का साथ ज्यादा दिन न दे पाएंगे। वैसे भी उनके माथे का दाग जो सुगना की बुर देखते समय कीड़े के काटने से मिला था बढ़ता जा रहा था।

साबुन की फिसलन उत्तेजना को बढ़ा रही थी। जैसे जैसे शरीर से रंग छूटता गया सरयुसिंह की पिचकारी तैयार होती गई। सुनना स्वयं बेसुध हो रही थी। वह आने बाबुजी को लगातार चूमे जा रही थी तथा उनकी पीठ पर उंगलियां और नाखून को गड़ाए हुए थी। इस अद्भुत चुदाई के समय कभी-कभी वह राजेश को भी याद कर रही थी जिसने अब से कुछ देर पहले उसकी खुशियों को जी भर कर मसला था।

सुगना अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी। स्खलन का समय आ रहा था। सरयू सिंह ने सुनना की कमर को पकड़ कर तेजी से नीचे खींच लिया और अपने ल** को उसकी नाभि तक ठाँस दिया। सुगना कराह उठी

" बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

सुगना कि इस उदगार ने उसे स्वयं ही झड़ने पर मजबूर कर दिया। वह स्खलित हो रही थी और अपने बाबूजी को लगातार चुमें जा रही थी। सरयू सिंह भी अपनी प्यारी बहू को एक छोटे बच्चे की भांति सहलाए जा रहे थे। उन्हें सखलित होती हुई सुनना को प्यार करना बेहद अच्छा लगता था।

सुगना का उत्साह ठंडा पढ़ते ही सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद से उतार दिया और स्वयं उठकर खड़े हो गए। उनका लंड अभी भी उछल रहा था। सुगना ने देर न कि उसने अपनी हथेलियां उस लंड पर लगा दी अपनी मुठ्ठीयों में भरकर लंड के सुपारी को सहलाने लगी।

सरयू सिंह ने बीर्य की धार छोड़ दी।
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आज सरयू सिंह ने अपनी पिचकारी अपने हाथों में ले ली और अपनी बहू सुगना को अपने श्वेत रंग से भिगोने लगे। सुगना अपने दोनों आंखों में अपनी खुशियों को पकड़े अपने बाबूजी के लंड से गिरते हुए प्रेम रंग को अपने शरीर पर आत्मसात कर रही थी।

सरयू सिंह के वीर्य ने सुगना के अंग प्रत्यंग को प्रेम रस से भिगो दिया यह रंग होली के सब रंगों पर भारी था। सुगना खुश हो गयी थी। वीर्य की अंतिम बूंद सुगना ने सर्विसिंग के लंड से स्वयं अपने होठों में ले ली।

ससुर और बहू दोनों तृप्त हो चले थे। होली का त्यौहार दोनों के लिए हमेशा की तरह पावन हो गया था।

सरयू सिंह के माथे का दाग बढ़ता ही जा रहा था। क्या यह किसी अनिष्ट का सूचक कजरी और सुगना उस दाग को लेकर अब चिंतित हो चली सरयू सिंह ने भी कई डॉक्टरों से उस दाग को दिखाया पर वह किसी की समझ में ना आ रहा था। जब जब वह सुगना के साथ कामुक होते दाग और बढ जाता…. नियति खेल खेल रही थी उसने रतन की दुविधा तो मिटा दीजिए पर दाद का रहस्य कायम रखा था..

सभी सदस्य ट्यूबबेल से नहा धोकर घर वापस आ चुके थे घर में खुशियां ही खुशियां थीं


सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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आप की विस्तृत प्रतिक्रियाओं और सुझावों की प्रतीक्षा में



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nospam
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#20
Heart 
भाग-19


नियति ने इस होली पर सोनू और लाली के बीच एक आग सुलगा दी थी। ऐसा नहीं था कि उस आग में सिर्फ लाली और सोनू ही झुलस रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजेश की भी थी वह सुगना के प्रति आसक्त हो चुका था। उधर रतन भी सुगना को अपनाने के लिए आतुर था।

त्यौहार खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घरों को लौट गए। सोनू 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण किया था उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेना था। सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उसका दाखिला शहर (बनारस) के एक अच्छे कालेज में करा दिया।

राजेश का पुश्तैनी घर लाली के गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। गांव में अक्सर वैवाहिक संबंध नजदीक के गांव में ही किये जाते हैं ताकि लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ दे सकें।

शहर में रहने की इच्छा गांव के लोगों में धीरे धीरे बलवती हो रही थी गांव के सभी लोग हर आवश्यक कार्य के लिए शहर (बनारस) का मुंह देखते थे चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाएं हो या पढ़ाई। कजरी और सुगना जैसी कुछ कामुक महिलाएं भी अपनी साज-सज्जा और अरमानों को पूरा करने के लिए उसी शहर पर आश्रित थी। गांव के लोगों का शहर आना जाना अब सामान्य हो रहा था।

राजेश वर्तमान में मेरठ में नौकरी करता था। राजेश रेलवे में टीटी था। उसका गांव मेरठ से काफी दूर पड़ता था और वह लगातार अपने ट्रांसफर के प्रयास में था ताकि वह अपने गांव के करीब पहुंच जाए।

राजेश के अथक प्रयासों और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। इस ट्रांसफर में सोनू की भी दुआएं शामिल वह बार-बार अपनी लाली दीदी की कल्पना करता और सोचता की काश लाली दीदी इसी शहर में रहतीं। नियति ने सुगना के भाई सोनू की प्रार्थना सुन ली। सोनू की लाली दीदी उसके शहर बनारस आ रही थी। नियति लाली और सोनू को करीब ला रही थी।

राजेश के ट्रांसफर की खबर जब सरयू सिंह ने कजरी को बताई सुगना भी वहां उपस्थित थी। उसके दिमाग में एक बार लाली और सोनू का चेहरा घूम गया। लाली के शहर आ जाने से हरिया और सरयू सिंह का परिवार खुश हो गया था अब वह लाली से आसानी से मिल सकते थे। और तो और शहर में उनका एक ठिकाना हो गया था।

सोनू को भी लाली के शहर में आने की खबर लग चुकी थी। सोनू की कद काठी लड़कियों को आकर्षित करने के लिए काफी थी पर उसका दिल अभी अपनी लाली दीदी पर अटक गया था। लाली को लेकर सोनू के लंड में हरकत कब से हो रही थी यह कहना तो मुश्किल है पर निश्चय ही वह कुछ दिनों की बात न थी। शायद सोनू ने जब से हस्तमैथुन प्रारंभ किया था उसके ख्वाबों की मलिका लाली ही थी।

राजेश स्वयं इस ट्रांसफर से बेहद प्रसन्न था वह सुगना के करीब आ रहा था और अब तो शहर में आने के पश्चात उसका गांव आना जाना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता था सुगना से उसके मिलन की संभावनाएं बढ़ रही थी इस बार सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात उसका साहस बढ़ गया था।

लाली को यह बात पता थी कि राजेश सुगना पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं पर अब लाली ने इसे स्वीकार कर लिया था तीन-चार वर्षों तक राजेश जैसे कामुक व्यक्ति के साथ रहते रहते लाली ने भी थोड़ी कामुकता उधार ले ली थी।

होली के दिन रात में जब राजेश में उसकी चुचियों को दीए की रोशनी में देखा तो चुचियों पर लगे हरे रंग को देखकर वह हैरान रह गया उसने लाली से पूछा

"तहरा चूची प हरियर रंग के लगा देलस हा"

लाली को सब याद था पर उसने अपनी आंखें शर्म से झुका ली और राजेश को अपनी तरफ खींचते हुए बोली

"अब होली में केहू रंग याद राखी"

राजेश ने लाली का सुंदर चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला

"ओह त अपना भाई सोनू से रंग लगववले बाड़ू"

लाली शर्म से पानी पानी हो गई। उसने कोई उत्तर न दिया। राजेश यह बात जानता था की हरा रंग सिर्फ और सिर्फ सोनू के पास था । वह सोनू को लाली के आगे पीछे घूमते कई बार देख चुका था।

क्योंकि राजेश स्वयं एक कामुक व्यक्ति था वह किशोर लड़कों की भावनाएं पूरी तरह समझता था उस अवस्था में वह भी अपनी करीबी महिलाओं की चुचियों पर ध्यान देता तथा उन्हें छूने और मसलने की फिराक में रहता था। राजेश जानता था कि सोनू के मन में लाली के प्रति कामुक भावनाएं आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लाली को वह दीदी जरूर बोलता था पर यह तो सामाजिक रिश्ते थे वरना लाली जैसी गदरायी माल और सोनू जैसे लड़के के बीच जो कामुकता होनी चाहिए वह स्वाभाविक रूप से अपना रंग दिखा रही थी। राजेश ने लाली को छेड़ना जारी रखा….

"रंग खाली उपरे लगावाले बा के नीचहूँ"

लाली उत्तेजना से सिहर उठी राजेश ने तो यह बात सिर्फ कही थी पर लाली ने सोनू के मजबूत हथेलियों को अपनी बुर पर महसूस कर लिया वह मदहोश होने लगी राजेश की बातें उसे उत्तेजित कर रही थी राजेश चाह भी यही रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए स्वयं हमलावर हो गई

"रहुआ पगला गईल बानी दिनभर आलतू फालतू सोचत रहेनी। जाई हमरा के छोड़ी और अपन साली सुगना से मन लगाई। आजू ओकर खूब चुची मिसले बानी अब जाके ओकरा जाँघि में मुह दे दीं"

लाली ने अनजाने में ही राजेश की सोच पर सटीक हमला कर दिया था राजेश हमेशा से सुगना की कोमल बुर की कल्पना किया करता था और उसे चूमने तथा चूसने के लिए अपने दिमाग में योजना बनाया करता था और आज उसकी पत्नी लाली ने खुलकर उसे वह बात कह दी थी।

राजेश से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने लाली की साड़ी और साया (पेटीकोट) को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली की गोरी जांघें राजेश की निगाहों में आ गई. उसकी बुर पनिया चुकी थी। शहर में रहने के कारण लाली अब अपनी बुर को साफ रखने लगी थी। राजेश ने अपनी लाली की बुर को सुगना की बुर मानकर अपने होठों और जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया।

उधर लाली अपने सोनू के बारे में सोचने लगी। उसने सोनू के उस मजबूत लंड को याद करना शुरू कर दिया। उत्तेजना ने लाली को वाचाल बना दिया लाली राजेश को उकसा रही थी उसने कराहती आवाज में कहा

"जीजा जी….. तनी धीरे से …..हां हां असहिं अअअअअअअ ईईईई लाली स्खलित होने वाली थी। कुछ ही देर में लाली की बुर में उसके पति राजेश का ल** आ चुका था और राजेश की कमर हिलने लगी थी।

दोनों पति पत्नी अपने अपने मन में अपनी कामुकता को जीते हुए संभोग सुख का आनंद लेने लगे। राजेश की कमर की रफ्तार बढ़ती गई जब लाली का स्खलन प्रारंभ हो गया तब राजेश ने उसे चूमते हुए सोनू की आवाज में कहा

" दीदी ठीक लागल ह नु"

लाली उत्तेजित तो थी ही उसने राजेश के गाल पर चपत लगाई और बोली

"अपना दीदी से असहिं बात कइल जाला" इतना कहकर उसने राजेश को अपने आलिंगन में ले लिया। राजेश भी उत्तेजित हो गया उसने अपने लंड को लाली की बुर में अंदर तक ठान्स दिया और झड़ते हुए बोला

" ना अपना दीदी के अईसे ना बोलल जाला लेकिन असहिं चोदल जाला।"

वह लाली को चूम रहा था और झड़ रहा था।

आज लाली और राजेश ने अपनी उत्तेजना में एक नया अंश जोड़ लिया था। होली के दिन किया गया यह संभोग उसके लिए यादगार बन गया था। उस रात के बाद सुगना और सोनू के बारे में कामुक बातें करने में उन्हें कोई ग्लानि नहीं होती अपितु वह दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर एक-दूसरे से संभोग सुख लेने लगते। उनके जीवन में सेक्स को लेकर एक नया रोमांच पैदा हो गया था सोनू ने लाली के जीवन में एक नया रंग भर दिया था।

बनारस आकर लाली और राजेश बेहद खुश उन्हें रेलवे की तरफ से एक मध्यम दर्जे का मकान उपलब्ध करा दिया गया जो स्टेशन से बेहद करीब था यह एक संयोग ही था उनका घर सोनू के कालेज से भी ज्यादा दूर न था।

जब जब लाली और राजेश बिस्तर पर होते सुगना का जिक्र हो ना हो सोनू का जिक्र अवश्य होता। उत्तेजित स्त्री के साथ संभोग करने का सुख राजेश बखूबी जानता था। लाली को गर्म करने के लिए उसके हाथ में सोनू का ब्रह्मास्त्र आ चुका था। लाली को अपनी बाहों में लिए वह सोनू की बातें शुरू करता और लाली की जांघों के बीच मदन रस स्वयं ही बहने लगता।

लाली खुद भी यह न समझ पाती उसका आकर्षण दिन पर दिन सोनु के प्रति क्यों बढ़ता जा रहा था। अपने पति की शह पाकर उसकी कल्पना आसमान छूने लगी। वह वह मन ही मन अपनी कल्पनाओं में सोनू के साथ अठखेलियां करती। कभी वह अपनी चूचयों को उसके चेहरे से रगड़ती कभी उसके लंड को अपने हाथों में महसूस करती और कभी कभी अपनी जांघों…. आह…….इसके आगे वह स्वयं शर्म से पानी पानी हो जाती।

वह कैसे सोनू के सामने कैसे नंगी हो सकती है। नहीं नहीं यह संभव नहीं. वह अपने विचारों से स्वयं युद्ध लड़ती और उसकी उंगलियां उसकी उत्तेजना में डूबी बुर से। अंततः विजय उंगलियों की होती और उसकी बुर झड़ने लगती।

लाली और राजेश का वैवाहिक जीवन सोनू और सुगना की वजह से आनंदमय हो चला था।

महानगरी एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे में बैठा रतन अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था। क्यों वह अपना खुशहाल गांव छोड़कर मुंबई गया? जहां वह बबीता जैसी दुष्ट स्त्री के संपर्क में आया.

रतन गांव का एक सीधा साधा पर तेज दिमाग वाला युवक था जो जीवन में उन्नति और प्रगति करना चाहता था. इसी कारण वह साहस कर मुंबई आ गया था पर नियति ने उसे बबीता जैसी सुंदरी के मोह जाल में फंसा दिया और वह उसकी जांघों के बीच बनी अनुपम कलाकृति में खो गया।

शहर की चिकनी चुत ने रतन के जीवन में ऐसे रंग भर दिए जैसे इंद्रधनुष आकाश में भर देता है। इंद्रधनुष की यह सुंदरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। आकाश साफ होते ही इंद्रधनुष गायब हो गया और बबीता का असली चेहरा रतन की आंखों के सामने आ गया। अब उसे बबीता से रत्ती भर भी प्रेम न रहा था। उसे तो अब यह भी शक होता था कि कहीं चिंकी और मिंकी उसकी बेटियां थी या बबीता ने अपने गर्भ में किसी और का पाप पाल रखा था। चिंकी और मिंकी दोनों प्यारी बच्चियां थी जो रतन को पापा पापा बुलातीं। रतन इस बात को नजरअंदाज कर कि वो किस का बीज हैं उन बच्चियों से एक आदर्श पिता की भांति प्यार करता और उनके मोह में बबीता से संबंध बनाए हुए था। पर कब तक?

वैसे भी अब रतन की निगाहों में उसकी पत्नी सुगना आ चुकी थी। उसने मन ही मन सुगना को माफ कर दिया था। उसने यह जानते हुए कि सुगना का पुत्र सूरज लाली के पति राजेश के साथ हुए एक आकस्मिक संभोग की परिणिति थी उसने सूरज को भी अपना लिया था।

मन ही मन रतन ने यह निर्णय ले लिया कि वह सुगना को अपनी पत्नी और सूरज को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा। पर क्या वह बबीता के साथ आगे संबंध जारी रख पाएगा? या वह चिंकी और मिंकी को लेकर बबीता को बिना बताए वापस अपने गांव लौट आएगा?

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे ट्रेन पटरी पर सरपट दौड़ी जा रही थी. ट्रेन का लक्ष्य निर्धारित था। परंतु रतन के मन में हलचल मची हुई थी। वह जिस सुगना के करीब आना चाहता था यह ट्रेन उसे उससे दूर ले जा रही थी।

वह उसी जंजाल में जा रहा था जहां से वह निकलना चाहता था। जितना वह सुगना के करीब आ रहा था उतना ही बबीता से दूर हुआ चला जा रहा था। नियति ने अपनी पटकथा लिख रखी थी रतन एक कठपुतली की भाति उस पर अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

चाय …..चाय …...की कर्कश आवाज डिब्बे में गूंजने लगी. एक मैला कुचेला कपड़ा पहने आदमी एलुमिनियम की केतली में चाय लिए कंपार्टमेंट में आ चुका था। रतन ने अपने विचारों को विराम दिया और ₹5 का पुराना नोट देकर एक कुल्हड़ चाय खरीदी और खिड़की के बाहर तरह तरह के लोगों को देखते हुए चाय पीने लगा। उन लोगों में कुछ बबीता जैसी औरतें थी कुछ सुगना जैसी …..

उधर गांव में कजरी सरयू सिंह के दाग पर हल्दी और दूध लगा रही थी सुगना के साथ हैंड पम्प पर होली मनाने के बाद दाग कुछ और बढ़ गया था।

सरयू सिंह जब उस दाग के बारे में सोचते उन्हें वह दिन याद आ जाता जब उन्होंने पहली बार अपनी बेटी समान बहू की कोमल और कुवारी बुर को अपनी कामुक निगाहों से देखा था। वह अपने बालों से उस दाग को छुपाने का प्रयास करते पर अब उम्र की वजह से बाल भी कम हो रहे थे वह दाग आकार बड़ा चुका था और अब बालों द्वारा छुपाया न जा पा रहा हर व्यक्ति की निगाह उस दाग पर पड़ती और वह सरयू सिंह से उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहता सरयू सिंह न उस दाग के लगने का कारण बता पाते नहीं उसके बढ़ने का। नियति ने उन्हें यह दाग देकर निरुत्तर कर दिया इस दाग का उपाय न तो नीम हकीमों के पास था न डॉक्टर के पास।

जाने सरयू सिंह के भाग्य में क्या लिखा था। सुगना अपनी पायल छम छम बजाते हुए एक हाथ से अपने सूरज को अपनी कमर पर बैठाये हुए और दूसरे हाथ में दूध का गिलास पकड़े अपने बाबू जी के पास आ चुकी थी।उसमें सूरज को अपने बाबू जी की गोद में दिया और फिर दूध का गिलास पकड़ा दिया। सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की चूचियों को देखने लगे कितनी मादक थी सुगना। उनके लंड में फिर हरकत होने लगी उन्होंने अपना ध्यान भटकाया और अपने पुत्र सूरज को खिलाने लगे। बीच-बीच में वह गिलास से उसे दूध पिलाते और बचा हुआ दूध खुद भी पीते।।

उस गिलास और सुगना की चूँची में कोई विशेष अंतर न था आज भी सुगना की चूँची पर सरयू सिंह और सूरज का बराबर का अधिकार था यह अलग बात थी की सरयुसिंह सुगना की चूची से जितना दूध खींचते उससे ज्यादा वीर्य उसकी प्यासी बुर में भर देते और सुगना को तृप्त कर देते।

सिर्फ उस बढ़ते हुए दाग को छोड़कर सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी और सुगना बहू के साथ खुश थे…..

सुगना का जीवन भी बेहद खुशहाल हो चला था पिछले तीन-चार वर्षों से वह अपने बाबू जी से लगातार चुदवा रही थी उसने अपने बाबूजी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी से कामकला के ऐसे ऐसे अनोखे ढंग सीखें थे जो शायद उसे एक नौजवान से प्राप्त न हो पाते।

सुगना ने अपने गर्भवती होने से पहले काम कला का लगभग हर सुख प्राप्त किया था। इसमें जितना सरयू सिंह का योगदान था उतना ही कजरी का।

परंतु उसकी चिंता का एक ही कारण था वह था सरयू सिंह के माथे का दाग। पता नहीं जब भी वह उनसे संभोग करती वह दाग उसे परेशान करता। जब वह सरयू सिंह के साथ संभोग कर रही होती तब भी वह दाग उसका ध्यान आकर्षित करता और उसे सोचने पर मजबूर कर देता। यह भटकाव उसकी उत्तेजना में भी कमी कर देता।

यह एक विडंबना ही थी कि उस विलक्षण कीड़े को न सरयू सिंह देख पाए थे न सुगना। उस समय यदि वह कीड़े को देख लिए होते तो निश्चय ही उसके दंश का कुछ न कुछ उपाय अवश्य कर गए होते। पर उन्होंने उस समय उस दाग को नजरअंदाज कर दिया था। सुगना को भी इस दाग का कोई उपाय न समझ रहा था कभी वह दाग कुछ कम होता कभी बढ़ जाता।

अब कजरी धीरे धीरे अपनी कामुकता को विराम दे रही थी। उसने अपनी बहू को पूर्ण पारंगत कर दिया था और वह उसके कुंवर जी का भरपूर ख्याल रखती कजरी अब सूरज के लालन-पालन में व्यस्त हो चली थी। वह अधिक से अधिक समय सुगना और सरयू सिंह को देती ताकि वह दोनों एक दूसरे के साथ का जी भर कर आनंद ले सकें।

उसे सुगना की कामुकता का अंदाजा था सुगना अभी भरपूर जवान थी उसकी बुर की प्यास सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह बुझा सकते थे… कजरी को यह बात पता थी की सरयू सिंह आज भी सुगना की गोरी और गुदांज गांड के पीछे थे। सुगना उससे हर बात बताती थी। परंतु कजरी और सुगना दोनों यह बात जानती थी कि सरयू सिंह के विशाल लंड को अपनी गांड में लेना तो दूर यह सोच कर भी उन दोनों की रूह कांप जाती थी। आज भी सरयू सिंह का लंड सुगना की चूत में वैसे ही जाता जैसे एक बच्चे के मोजे में कोई युवा अपना पैर घुसा रहा हो।

सुगना बार-बार प्रकृति को धन्यवाद देती जिसने उसके बुर को असीम लचीलापन दिया था जो सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर उसी आत्मीयता और लगाव से पनाह देती थी जैसे उसकी पतली और मुलायम उंगलियों को।

सरजू सिंह की उस निराली इच्छा को पूरा करना अभी न कजरी के बस में था न सुगना के। कजरी ने तो उन्हें दिलासा देते देते अपना जीवन काट लिया था और अब पिछले दो-तीन वर्षों से सुगना उन्हें ललचाए जा रही थी। वह अपनी सुगना और कजरी से बेहद प्यार करते थे उन्होंने कभी उन दोनों पर अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं बनाया था उन्हें पता था यह एक अप्राकृतिक क्रिया थी । पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह का भी और हम आप पाठकों का भी…..

शेष अगले भाग में
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