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Adultery भाभी के साथ प्यार की कहानी.
#1
भाभी के साथ प्यार की कहानी.














..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
1


...
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
भाभी की एक सहेली




म सब उनसे छोटे थे और उन्हें भाभी-भाभी कहके बुलाते थे. भाभी के साथ बात करना, भाभी के हाथ का बना खाना खाना, हम सभी को बहुत अच्छा लगता था. भाभी का प्यार पा कर हम सभी बहुत खुश थे. पर भाभी के मन में जैसे कुछ और ही चल रहा था.

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
लगता था कि निशा ने सब कुछ मेरी भाभी को बता दिया था. उन दिनो, शायद भैया के काम में मशरूफ होने की वजह से, भाभी खुश नहीं रहती थी. निशा से हमारी लव-स्टोरी जान के, भाभी मुझे बहुत चिढाया करती थी. कई बार भाभी मुझसे पूछती थी, कि निशा और मेरे बीच क्या-क्या हुआ. उम्र में छोटा होने के कारन, मैं शर्मा जाता था और बात पलट देता था. पर भाभी की यह बातें, कहीं न कहीं, मुझे बहुत "excite" भी किया करती थी.

ना जाने कैसे, धीरे-धीरे मैं भाभी कि तरफ आकर्षित होता जा रहा था. अब मैंने भाभी को "fantasize" करना भी शरू कर दिया था. एक दिन, यूं हुआ, की भाभी घर में अकेली थी. मेरा बहुत मन हुआ कि मैं भाभी के साथ समय बिताऊँ. मेरे भाभी के पास पहुचते ही, भाभी ने मुझसे कहा, "अरे, तुम इतनी देर कहाँ थे. मैं तुम्हे कब से याद कर रही थी". जब मैंने पुछा कि किसलिए, तब भाभी ने कहा कि वो निशा और मेरे बीच में सब कुछ जानना चाहती थी.

मैंने भाभी की बात रखते हुए, उन्हें सब सच बता दिया. "क्या तुम्हारा निशा के साथ कभी शारीरिक सम्बन्ध हुआ ?", भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के पुछा. मैंने भाभी तरफ देखा. भाभी की आखें चमक रहीं थी. "बताओं ना", भाभी ने दुबारा पुछा. मुझे समझ नहीं आ रहा था, कि मैं क्या जवाब दूँ. और फिर, भाभी के कोमल हाथों को हलके से दबाते हुए मैं बोला, "हाँ, मेरा निशा के साथ सम्बन्ध था. पर भाभी, यह अब पुरानी बात हो चुकी है.", ना जाने, मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा था कि यह बात बताने के बाद मैं भाभी को हमेशा के लिए खो दूंगा।

पर होनी को तो कुछ और ही मंज़ूर था. मेरा सर झूका हुआ था, और मेरे हाथों में भाभी का हाथ था. मैं अपनी और निशा की कहानी भाभी को सुना रहा था और भाभी का हाथ धीरे-धीरे दबा रहा था. मेरी प्यारी भाभी भी मुझे अपना पूरा समय दे रही थी और चुप-चाप मेरी कहानी सुन रही थी. मैं अब तक भाभी के कोमल हाथों के स्पर्श का
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#5
भरपूर आनंद उठाने लगा था. यह पहली बार था कि भाभी मेरे इतने करीब थी. भाभी की सुन्दरता, भाभी का स्पर्श और भाभी की साँसों से आती वो खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी. उस महोशी के आलम में, मैंने भाभी के कंधे पर हाथ रख दिया और भाभी के कानो को सहलाना शुरू कर दिया. अब मुझे भाभी के जवाब का इंतज़ार था. मैं जनता था कि भाभी मुझे यहाँ पर रोक भी सकती है, या फिर मुझे आगे बड़ने की अनुमति भी दे सकती है. तभी भाभी ने धीमे से, अपने गले से मेरे हाथ को दबाते हुए कहा , "अभी नहि, कोई देख लेगा तो".
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#6
काफी समय पहले की बात है कि, एक बार भाभी की एक दोस्त निशा घर पर आयी, मैं उस समय ऑफिस में काम करता था! वो किसी दुसरे शहर से 3-4 दिन के लिये हमारे घर किसी काम से आयी हुई थी।
 
शाम को जब मैं घर आया, बैल बजायी, भाभी की उस फ्रेंड निशा ने दरवाजा खोला, उसे देख-कर मैं दांग रह गया. वो देखने में बहुत ही गोरी, सुंदर और सेक्सी थी! मेरे अंदर घुसते ही, मैंने उससे पुछा आप कौन? तभी मेरी भाभी अन्दर से बाहर आ गयी, और बोली कि, यह उसकी दोस्त है, और उन दोनों ने एक साथ MBA किया था।
 
शाम करीब 8:30 बजे डाइनिंग टेबल पर सब, जैसे- भैया, भाभी, मैं और निशा बैठे बातें कर रहे थे, खाना ख़त्म करके आइस क्रीम खाई गयी, टाइम कब बीता कि, 10:30 बज गये! भैया थके हुए थे, दूसरा भाभी को सुबह जल्दी उठाना था, तो दोनों सोने चले गये।
 
अब मैं और निशा, दोनों बैठे बातें करने लगे, एक दुसरे के बारे में पूछने लगे! रात के कब १२ बजे हमें पता ही नहीं लगा! लेकिन दोनों को एक दुसरे से बात करना अच्छा लगा! हम दोनों अब अपने-अपने कमरे में सोने चले गये, लेकिन मैं सो नहीं सका! फिर भी, सुबह उठा तो देखता हूँ कि, निशा मुझसे पहले उठकर नाशता बना रही थी! हम लोगो ने नाशता किया और अपने ऑफिस चले गये, लेकिन मुझे रह-रह कर निशा का वो मासूम, सेक्सी और आकर्शकचेहरा याद आ रहा था।
 
शाम को मेरे वापस आने पर निशा का दरवाजा खोलना मुझे अच्छा लगा! शायद भैया आज जल्दी आ चुके थे, और भैया भाभी को कहीं जाना था, तो निशा से यह कहकर कि, वो दोनो रात को देर से आयेगे! भाभी की दोस्त ने उस दिन जो कपडे पहने थे, उसने मेरे मन को उसकी और आकृषित कर दिया! वो, पिंक टॉप और पीली शोर्ट स्कर्ट में घर पर थी!
 
अब मैं और निशा घर में अकेले थे! अपने आप को फ्रेश करके, ड्राइंग रूम में, मैं टीवी देखने लगा, तो देखता हूँ कि, निशा मेरे लिये ठंडा शरबत बना कर ले आयी और बड़े ही प्यार से कहा कि, "ये आप के लिये है". मैंने थैंक्स कहा और टीवी देखने लगा! उसे अजीब लगा कि, मैंने उसे भाव नहीं दिया है! तो, वो मेरे करीब आकर बैठ गयी, और बोली कि, मैं उसे कैसी लगती
 
 
हूँ? मैंने जवाब दिया सुन्दर, अति-सुन्दर, सुन कर वो जैसे शर्मा गयी! फिर मेरे पूछने पर कि, आज उसने इस तरह के कपडे क्यूँ पहने हैं? उसका कहना मुझे आकर्शित करने के लिये, सुनते ही मेरे तो मानो होश ही उड़ गये।
 
मैंने निशा को डाटा, तो वो मुस्कुरा कर दुसरे कमरे में चली गयी, और थोड़ी देर बाद वापस आयी तो, देखता हूँ कि, वो एक जीन्स में, टॉप पहने हुए (डीप नैक वाला) मेरे सामने आ गयी! मुझे अब वो अच्छी लग रही थी! लेकिन उसके डीप नेक वाले टॉप को देखकर, उसकी आँखों में आँखों डालकर लगा, जैसे भाभी की दोस्त निशा आज किसी और ही मूड में थी।
 
मैंने उसका हाथ पकड़ा, उसके करीब गया, और उसको उसकी कमर से कसके पकड़कर गले लगा लिया! उसकी साँसे बढ़ने लगी, मेरा भी वही हाल था! मेरे पूछने पर कि, वो ये क्यूँ कर रही है? उसने कहा की मैं उसे अच्छा लगता हूँ, इतना कहते ही मैंने अपने होठ, उसके होठों पर रख दिए, और अब दोनों एक दुसरे को किस करने लगे! उसके बदन की खुशबू मुझे और रिझा रही थी! मेरा एक हाथ अब उसके कपड़ो के अंदर चलने लगा कि, उसने भी मेरी शर्ट उपर कर दि, और अब मेरे बदन पर उसके भी हाथ चलने लगे! मैंने उसे अपने दोनों हाथॊ में उठाया और अपने कमरे में ले आया, अपने बिस्तर पर रखा, और धीरे-धीरे उसके कपडे उतारने लगा! उसका फिगर देखकर मैं पागल हो गया, उसका गोरा चिकना बदन, कोई बाल नही, उठे हुए बूब्स, उनका साइज़ और शेप देखकर, अच्छे-से-अच्छा इंसान पागल हो जाये।
 
मैंने अब उसके बूब्स को किस करना शुरू किया, वो तिलमिला गयी, उसकी सिसकिया मुझे पागल बना रही थी! मेरे हाथ उसके पूरे शरीर पर दौड़ रहे थे! उसका अपने एक हाथ को, मेरे सर पर फिराना, दुसरे हाथ से मेरे गाल पर हल्का सा टच, मुझे और उत्तेजित कर रहा था! मैंने उसे 15-20 मिनट्स तक किस किया, तो वो जैसे पागल हो चुकी हो, उससे रहा नहीं जा रहा था! तो, उसने एक पलटी खाई, और अब वो मेरे उपर थी, उसने भी मुझे चूसना शुरू किया! हम दोनों इतने "हॉट" हो चुके थे कि, अब हम दोनो के बीच एक आखिरी पड़ाव रह गया था! जो हम दोनों पार करना चाहते थे! अब हम दोनों अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहे थे, और फाइनली मुझे उसमे समाना पड़ा! हम दोनों करीब 5-10 मिनट तक, एक दुसरे में समाये हुए, एक दुसरे से चिपके हुए, २ बदनो का आनंद ले रहे थे! और जब, पहली बार वो स्रावित हुई, उसने मुझे कसके गले लगाया, और बोली की अब तुम्हारी बारी है! मैं भी यही चाहता था, और अगले 2 मिनट्स में, मैं भी उसके अन्दर स्रावित हो गया।
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#8
(11-01-2022, 01:28 PM)neerathemall Wrote: .................
निशा से मुलाकत



करीब एक बजे दरवाजे पर हुआ टिंग-टोंग! दरवाजा खोला तो सामने मानो एक अप्सरा खड़ी थी। पैंतीस-छत्तीस साल की साँवली और गज़ब की सुंदर औरत साड़ी पहने हुए और हाथों में कागज़ और कलम लिये हुए कोयल का आवाज़ में बोली, "माफ़ कीजियेगा!  आप्की भाभी कहाँ है मै ने कहा वो तो बाहर गई है

 
मै आपकी भाभी की सहेली हूँ .
 
मै इधर सेनिकल रही थी , ताऊ सोचा  अपनी सहेली से मिलती चलू मेर नाम निशा है।
मै एक कम्पनी मे सर्वे का किमी करती हूँ ।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
मैंने कहा, " आप प्लीज़ यहाँ बैठ जाइये।
 
 
 
 
 
 
वो बोली, "जी आपका नाम क्या है?"
 
 
 
 मै ने कहा “विकास ॥“
 
 
 
 
 
 
कुछ देर बाद मैंने पूछा, "इस तरह इतनी गर्मी में भी आप क्या सब घरों में जाकर सर्वे करती हैं?"
 
 
 
"जी, जॉब तो जॉब ही है ना।"
 
 
 
"तो आप शादी शुदा हो कर (उसने बड़ी सी अंगूठी पहनी हुई थी) भी जॉब कर रही हैं?"
 
 
 
अब वो भी थोड़ी-सी खुल सी गयी। बोली, "क्यों, शादी शुदा औरत जॉब नहीं कर सकती?"
 
 
 
"जी यह बात नहीं, घर-घर जाना, जाने किस घर में कैसे लोग मिल जायें?"
 
 
 
उसने जवाब दिया, "वैसे तो दिन के वक्त ज्यादातर हाऊज़वाइफ ही मिलती हैं। कभी-कभी ही कोई मेल मेंबर होता है।"
 
 
 
"तो आपको डर नहीं लगता।"
 
 
 
"जी अभी तक तो नहीं लगा। फिर आप जैसे शरीफ इंसान मिल जायें तो क्या डर?"
 
 
 
शरीफ इंसान - एक बार तो सुन कर अजीब लगा। इसे क्या मालूम कि मैं इसे किस नज़र से देख रहा था। साड़ी और ब्लाऊज़ के नीचे उसकी चूचियाँ तनी हुई थीं और मेरे लंड में खुजली सी होने लगी। जी चाह रहा था कि काश सिर्फ़ एक बार चूम सकता और ब्लाऊज़ के नीचे उन चूचियों को दबा सकता। हाथों कि अँगुलियाँ लंबी-लंबी मुलायम सी। वैसे ही मुलायम से सैक्सी पैर ऊँची ऐड़ी के सैंडलों में कसे हुए। देख-देख कर लंड महाराज खड़े हो ही गये। मन में ज़ोरों से ख्याल आ रहा था कि क्या गज़ब की अप्सरा है। इसकी तो चूत को हाथ लगाते ही शायद हाथ जल जायेगा।
 
 
तभी वोह बोली, "अच्छा, थैंक्स फ़ोर एवरीथिंग। मैं चलती हूँ।"
 
 
 
मानो पहाड़ टूट गया मेरे ऊपर। चली जायेगी तो हाथ से निकल ही जायेगी। अरे विकास, हिम्मत करो, आगे बढ़ो, कुछ बोलो ताकि रुक जये। इसकी चूत में अपना लंड नहीं डालना है क्या? चूत में लंड? इस ख्याल ने बड़ी हिम्मत दी।
 
 
 
"माफ़  कीजियेगा निशा जी, आप जैसी खूबसूरत औरत को थोड़ा केयरफुल रहना चाहिये।" मैंने डरते हुए कहा।
 
 
 
"खूबसूरत?"
 
 
 
मैं थोड़ा सा घबराया, लेकिन फिर हिम्मत करके बोला, "जी, खूबसूरत तो आप हैं ही। बुरा मत मानियेगा। आप प्लीज़ अब तो चाय पी कर ही जाइये।"
 
 
 
"चाय, लेकिन बनायेगा कौन?"
 
 
 
"मैं जो हूँ, कम से कम चाय तो बना ही सकता हूँ।"
 
 
 
वोह हंसते हुए बोली, "ठीक है... लेकिन इतनी गर्मी में चाय की बजाय कुछ ठंडा ज्यादा मुनासिब होगा!"
 
 
 
मैंने कहा, "क्यों नहीं... क्या पीना पसंद करेंगी... नींबू शर्बत या पेप्सी... वैसे मैं भी आपके आने के पहले चिल्ड बीयर ही पी रहा था!"
 
 
 
पहली बार किसी औरत के साथ बैठ कर बीयर पी रहा था और वो भी इतनी सुंदर औरत - और मुझे पता नहीं था कि कैसे आगे बढ़ूँ।
 
 
 
तभी वो बोली, "आप अकेले रहते हैं... शादी क्यों नहीं कर लेते?"
 
 
 
मैंने जवाब दिया, "जी घर वाले तो काफी ज़ोर दे रहे हैं लेकिन कोई लड़की अभी तक पसंद ही नहीं आयी!।" मैंने अब और हिम्मत कर के कहा, "निशा जी, आप वाकय में बहुत खूबसूरत हैं। और बहुत अच्छी भी। आपके हसबैंड बहुत ही खुशनसीब इंसान हैं।"
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#9
"आप प्लीज़ बार-बार ऐसे ना कहिये। और मुझे निशा जी क्यों कह रहे हैं। मैं उम्र में आपसे बड़ी ज़रूर हूँ लेकिन इतनी ज़्यादा भी नहीं!" वो इतराते हुए अदा से मुस्कुरा कर बोली।
 
 
 
मैं समझ गया कि ये अब चुदवाने को आसानी से तैयार हो
 
 
 
"ठीक है, निशा जी नहीं... निशा... तुम भी मुझे आप-आप ना कहो! वैसे तुम कितनी खूबसूरत हो, मैं बताऊँ?"
 
 
 
"कहा तो है तुमने कईं बार। अब भी बताना बाकी है?"
 
 
 
"बाकी तो है।... प्लीज़।"
 
 
 
मैंने कहा, "आँखें बंद ही रखना।" मैंने उसे कुहनी से पकड़ कर खड़ा किया और हल्के से मैंने उसके गुलाबी-गुलाबी नर्म-नर्म होंठों पर अपने होंठ रख दिये। एक बिजली सी दौड़ गयी मेरे शरीर में। लंड एकदम तन गया और पैंट से बाहर आने के लिये तड़पने लगा। उसने तुरन्त आँखें खोलीं और आवाक सी मुझे देखती रही और फिर मुस्कुरा कर और शर्मा कर मेरी बाँहों में आ गयी। मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। कस कर मैंने उसे अपनी बाँहों में दबोच लिय। ऐसा लग रहा था बस यूँ ही पकड़े रहूँ। फिर मैंने सोचा कि अब समय नहीं बर्बाद करना चाहिये। पका हुआ फल है, बस खा लो।
 
 
 
तुरंत अपनी बाँहों में मैंने उसे उठाया (बहुत ही हल्की थी) और बेडरूम में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। उसकी आँखों में प्यास नज़र आ रही थी। साड़ी और सैंडल पहने हुए बिस्तर पर लेटी हुई वो प्यार भरी नज़रों से मुझे देख रही थी। ब्लाऊज़ में से उसके बूब्स ऊपर नीचे होते हुए देख कर मैं पागल हो गया। आहिस्ते से साड़ी को एक तरफ़ करके मैंने उसकी दाहिनी चूंची को ऊपर से हल्के से दबाया। एक सिरहन सी दौड़ गयी उसके शरीर में। लेखक : अंजान
 
 
 
वो तड़प कर बोली, "प्लीज़ विकास! जल्दी से! कोई आ ही ना जाये।"
 
 
 
"घबराओ नहीं, निशा डार्लिंग। बस मज़ा लेती रहो। आज मैं तुम्हे दिखला दूँगा कि प्यार किसे कहते हैं। खूब चोदूँगा मेरी रानी।" मैं एकदम फ़ोर्म में था। यह कहते हुए मैंने उसकी चूचियों को खूब दबाया और होंठों को कस-कस कर चूसने लगा। फिर मैंने कहा, "चुदवाओगी ना?"
 
 
 
आह! गज़ब की कातिलाना मुस्कुराहट के साथ बोली, "विकास! तुम भी... बहुत बदमाश हो... तो क्या बीयर पी कर यहाँ तुम्हारे बिस्तर पे तीन पत्ती खेलने के लिये तुम्हारे आगोश में लेटी हूँ! अब इस भरी दोपहर में दर-दर भटकने की बजाय यही अच्छा है।"
 
 
 
निशा रानी, बदमाश तो तुम भी कम नहीं हो!" और उसके नर्म-नर्म गालों को हाथ में ले कर होंठों का खूब रसपान किया। मैं उसके ऊपर चढ़ा हुआ था और मेरा लंड उसकी चूत के ऊपर था। चूत मुझे महसूस हो रही थी और उसकी चूचियाँ... गज़ब की तनी हुई... मेरे सीने में चुभ-चुभ कर बहुत ही आनंद दे रही थी। दाहिने हाथ से अब मैंने उसकी बाँयी चूंची को खुब दबाया और एक्साईटमेंट में ब्लाऊज़ के नीचे हाथ घुसा कर उसे पकड़ना चाहा। गरमी की दोपहर
 
 
 
"विकास, ब्लाऊज़ खोल दो ना।" उसका यह कहना था और मैंने तुरन्त ब्लाऊज़ के बटन खोले और उसे घुमा कर साथ ही साथ ब्रा का हुक खोला और पीछे से ही उसके बूब्स को पुरा समेट लिया। आहा, क्या फ़ीलिंग थी, सख्त और नरम दोनों, गरम मानो आग हो। निप्पल एकदम तने हुए। जल्दी-जल्दी ब्लाऊज़ और ब्रा को हटाया। साड़ी को परे किया और पेटीकोट के नाड़े को खोल कर उसे हटाया। पिंक पैंटी और सफेद हाई-हील के सैंडल पहने हुए निशा को नंगी लेटी हुई देख कर तो मैं बर्दाश्त ही नहीं कर सका। मैंने अब अपने कपड़े जल्दी-जल्दी उतारे। लंड तन कर बाहर आ गया और ऊपर की तरफ़ हो कर तड़पने लगा। उसका एक हाथ ले कर मैंने अपने फड़कते हुए लंड पर रख दिया।
 
 
 
"उफ हाय अल्लाह कितना बड़ा और मोटा है", वोह बोली और आहिस्ता-आहिस्ता लंड को आगे पीछे हिलाने लगी। शादी शुदा औरत को चोदने का यही मज़ा है। कुछ सिखाना नहीं पड़ता। वो सब जानती है और आमतौर पर शादी शुदा औरतें फैमली प्लैनिंग के लिये पिल्स या कोई और इंतज़ाम करती हैं तो कंडोम की भी ज़रूरत नहीं।
 
 
 
मैंने आखिर पूछ ही लिया, "निशा डार्लिंग, कंडोम लगाऊँ?"
 
 
 
वो मुँह हिलाते हुए मना करते हुए खिलखिलायी, "सब ठीक है। मैं पिल्स लेती हूँ।"
 
 
 
मैंने अब उसके बदन से उस पिंक पैंटी को हटाया और इतमिनान से उसकी चूत को निहारा। एक दम साफ चिकनी सुंदर सी चूत थी। कुछ फूली हुई थी। मैंने उसके ऊपर हाथ रखा और हल्के से दबाया। अँगुली ऐसे घुसी जैसे मक्खन में छूरी। रस बह रहा था और चूत एकदम गीली थी। मैं जैसे सब कुछ एक साथ कर रहा था। कभी उसके होंठों को चूसता, चूचियों को दबाता - कभी एक हाथ से कभी दोनों से। एकदम टाइट गोल और तनी हुई चूचियाँ। उसके सोने जैसे बदन पर कभी हाथ फिराता। फिर मैंने उसकी चूचियों को खूब चूसा और अँगुलियों से उसकी बूर में खूब अंदर बाहर करके हिलाया। लेखक : अंजान
 
 
 
"निशा, अब मैं नहीं रह सकता, अब तो चोदना ही पड़ेगा। कस-कस कर चोदूँगा मेरी रानी।"
 
 
 
पहली बार उसके मुँह से अब सुना, "चोद दो ना विकास, बस अब चोद दो।"
 
 
 
मज़ा लेते हुए मैंने पूछा, "क्या चोदूँ जानेमन। एक बार फिर से कहो ना। तुम्हारे मुँह से सुनने में कितना अच्छा लग रहा है।"
 
 
 
"अब चोदो ना... इस... इस चूत को।"
 
 
 
"अब मैं तेरी गरम-गरम और गुलाबी-गुलाबी बूर में अपना ये लंड घुसाऊँगा और कस-कस कर चोदूँगा।" मैंने अपना लंड उसकी बूर के मुँह पर रखा और हल्के से धक्का दिया। उसने अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़ा और गाईड करते हुए अपनी चूत में डाल दिया। दोस्तों मानो मैं जन्नत में आ गया।
 
 
 
मैं बोल ही उठा, "उफ़, क्या चूत है निशा। मज़ा आ गया।"
 
 
 
उसने भी एक्साइट हो कर कहा, "चोद दो विकास... बस अब इस चूत को खूब चोदो।"
 
 
 
दोस्तों... चूचियाँ दबाते हुए, होंठ चूसते हुए ज़ोर-ज़ोर से चोद-चोद कर ऐसा मज़ा मिल रहा था कि पता ही नहीं चला कि कब मैं झड़ गया। झड़ते-झड़ते भी मैं उसे बस चोदता ही रहा और चोदता ही रहा।
 
 
 
"निशा... बहुत टेस्ती चुदाई थी यार। तुम तो गज़ब की चीज़ हो।"
 
 
 
"मुझे भी बेहद मज़ा आया, विकास।" वो कसकर मुझे पकड़ते हुए बोली। उसकी चूचियाँ मेरे सीने से लग कर एक अलग ही आनंद दे रही थी। दोस्तों, फिर बीस मिनट बाद, पहले तो मैंने उसकी बूर को चाटा और उसने मेरे लंड को चूसा, हल्के-हल्के। फिर हमने कस-कस कर चुदाई की और इस बार झड़ने में काफी समय लगा। मैंने शायद उसकी चूचियाँ और बूर और होंठ और गाल के किसी भी अंग को चूसे बगैर नहीं छोड़ा। इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया था। बस गज़ब की चीज़ थी वो औरत।
 
 
 
कपड़े पहनने के बाद मैंने पूछा, "निशा, अब तो तुम्हें और कईं बार चोदना पड़ेगा। अपनी इस प्यारी सी चूत और प्यारी-प्यारी चूचियों और प्यारे-प्यारे होंठों और प्यारी-प्यारी निशा डार्लिंग के दर्शन करवाओगी ना?" मैंने उसका फोन नंबर ले लिया और कह दिया कि मैं बता दूँगा जिस दिन मैं दिन में घर पे होऊँगा!
 
 
 
अब वोह मुझसे फ़्री हो गयी थी और बोली, "विकास, डोंट वरी, जब भी मुनासिब मौका मिलेगा खूब चुदाई करेंगे!"
 
 
 
उसकी यह बात सुनते ही मैंने उसे एक बार और बाँहों में भींच लिया और उसके होंठों का एक तगड़ा चुंबन लिया। फिर वो मेरे बंधन से आज़ाद होकर दरवाजे से बाहर निकल गयी। कुछ दूर जाकर पीछे मुड़ी और एक मुस्कान बिखेर कर धीरे-धीरे मेरी आँखों से ओझल हो गयी।
 
 

(11-01-2022, 01:28 PM)neerathemall Wrote: .................
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(11-01-2022, 01:28 PM)neerathemall Wrote: .................
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#11
आगे की कहनी भाभी कि जबानी ...................
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#12
एक दिन सुबह के करीब नौ बजे का वक्त था। मैं भी नहा-धो कर सज-संवर कर तैयार हुई। चाय लेकर जब उसके कमरे में ग‌ई तो वो सो रहा था मगर उसका बड़ा सा कड़क लौड़ा जाग रहा था। मेरा मतलब कि उसका लौड़ा पजामे के अन्दर खड़ा था और पजामे को टैंट बना रखा था।
 
 मेरा मन उसका लौड़ा देख कर बेहाल हो रहा था। अचानक उसकी आँख खुल ग‌ई। वो अपने लौड़े को देख कर घबरा गया और झट से अपने ऊपर चादर लेकर अपने लौड़े को छुपा लिया। मैं चाय लेकर बैड पर ही बैठ ग‌ई और अपनी कमर उसकी टांगों से लगा दी। वो अपनी टाँगें दूर हटाने की कोशिश कर रहा था मगर मैं ऊपर उठ कर उसके पेट से अपनी गाण्ड लगा कर बैठ ग‌ई।
 
 उसकी परेशानी बढ़ती जा रही थी और शायद मेरे गरम बदन के छूने से उसका लौड़ा भी बड़ा हो रहा था जिसको वो चादर से छिपा रहा था।
 मैंने उसको कहा- विकास उठो और चाय पी लो!
 
 मगर वो उठता कैसे... उसके पजामे में तो टैंट बना हु‌आ था। वो बोला- भाभी! चाय रख दो, मैं पी लूँगा।
 
मैंने कहा- नहीं! पहले तुम उठो, फिर मैं जा‌ऊँगी।
 
तो वो अपनी टांगों को जोड़ कर बैठ गया और बोला- ला‌ओ भाभी, चाय दो।
 
मैंने कहा- नहीं! पहले अपना मुँह धोकर आ‌ओ, फिर चाय पीना।
 
अब तो मानो उसको को‌ई जवाब नहीं सूझ रहा था। वो बोला- नहीं भाभी! ऐसे ही पी लेता हूँतुम चाय दे दो।
 
मैंने चाय एक तरफ़ रख दी और उसका हाथ पकड़ कर उसको खींचते हु‌ए कहा- नहीं! पहले मुंह धोकर आ‌ओ फिर चाय मिलेगी।
 
वो एक हाथ से अपने लौड़े पर रखी हु‌ई चादर को संभाल रहा था और बैड से उठने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने उसको पूछा- देवर जी यह चादर में क्या छुपा रहे हो?
 
तो वो बोला- भाभी कुछ नहीं है।
 
मगर मैंने उसकी चादर पकड़ कर खींच दी तो वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गया। मुझे उस पर बहुत हंसी आ रही थी। वो काफी देर के बाद बाथरूम से निकला जब उसका लौड़ा बैठ गया।
 
ऐसे ही एक दिन मैंने अपने कमरे के पंखे की तार डंडे से तोड़ दी और फिर विकास को कहा- तार लगा दो।
 
वो मेरे कमरे में आया और बोला- भाभी, को‌ई स्टूल चाहि‌ए... जिस पर मैं खड़ा हो सकूँ।
 
मैंने स्टूल ला कर दिया और विकास उस पर चढ़ गया। मैंने नीचे से उसकी टाँगें पकड़ लीं। मेरा हाथ लगते ही जैसे उसको करंट लग गया हो, वो झट से नीचे उतर गया। 
 
मैंने पूछा- क्या हु‌आ देवर जी? नीचे क्यों उतर गये?
 
तो वो बोला- भाभी जी, आप मुझे मत पकड़ो, मैं ठीक हूँ।
 
जैसे ही वो फिर से ऊपर चढ़ा, मैंने फिर से उसकी टाँगें पकड़ ली। वो फिर से घबरा गया और बोला- भाभी जीआप छोड़ दो मुझे, मैं ठीक हूँ।
 
मैंने कहा- नहीं विकास, अगर तुम गिर गये तो...?
 
वो बोला- नहीं गिरता.. आप स्टूल को पकड़ लीजिये...!
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#13
मैंने फिर से शरारत भरी हंसी हसंते हु‌ए कहा- अरे स्टूल गिर जाये तो गिर जायेमैं अपने प्यारे देवर को नहीं गिरने दूंगी...! 
 
मेरी हंसी देख कर वो समझ गया कि भाभी मुझे नहीं छोड़ेंगी और वो चुपचाप फिर से तार ठीक करने लगा। 
 
मैं धीरे-धीरे उसकी टांगों पर हाथ ऊपर ले जाने लगी जिससे उसकी हालत फिर से पतली होती मुझे दिख रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने हाथ उसकी जाँघों तक ले आ‌ई मगर उसके पसीने गर्मी से कम मेरा हाथ लगने से ज्यादा छुट रहे थे। वो जल्दी से तार ठीक करके बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली- देवर जी, आपने मेरा पंखा तो ठीक कर दियाअब बोलो मैं आपकी क्या सेवा करूँ?
 
तो वो बोला- नहीं भाभीमैं को‌ई दुकानदार थोड़े ही हूँ जो आपसे पैसे लूँगा।
 
मैंने कहा- तो मैं कौन से पैसे दे रही हूँ, मैं तो सिर्फ सेवा के बारे में पूछ रही हूँ, जैसे आपको कुछ खिला‌ऊँ या पिला‌ऊँ?
 
वो बोला- नहीं भाभी, अभी मैंने कुछ नहीं पीना! और बाहर भाग गया। 
 
मैं उसको हर रोज ऐसे ही सताती रहती जिसका कुछ असर भी दिखने लगा क्योंकि उसने चोरी-चोरी मुझे देखना शुरू कर दिया। मैं जब भी उसकी ओर अचानक देखती तो वो मेरी गाण्ड या मेरी छाती की तरफ नजरें टिकाये देख रहा होता और मुझे देख कर नजर दूसरी ओर कर लेता। मैं भी जानबूझ कर उसको खाना खिलाते समय अपनी छाती झुक-झुक कर दिखातीक‌ई बार तो बैठे-बैठे ही उसकी पैंट में तम्बू बन जाता और मुझसे छिपाने की कोशिश करता। 
 
मेरा खुद का हाल भी बहुत खराब था। वो जितना मुझसे दूर भागताउसके लिये मेरी प्यास उतनी ही ज्यादा भड़क रही थी। उसके लण्ड की कल्पना करके दिन रात मुठ मारती। मैं तो उसका लौड़ा अपनी चूत में घुसवाने के लि‌ए इतनी बेक़रार थी, अगर सास-ससुर का डर न होता तो अब तक मैंने ही उसका बलात्कार कर दिया होता।  
 
मैं भूखी शेरनी की तरह उस पर नज़र रखे हुए मौके के इंतज़ार में थी। मगर जल्दी मुझे ऐसा मौका मिल गया। एक दिन हमारे रिश्तेदारों में किसी की मौत हो ग‌ई और मेरे सास ससुर को वहाँ जाना पड़ गया। 
 
मैंने आपने मन में ठान ली थी कि आज मैं इस लौन्डे से चुद कर ही रहूंगी... चाहे मुझे उसके साथ कितनी भी जबरदस्ती करनी पड़े, उसके कुँवारे लण्ड से अपनी चूत की आग बुझा कर ही रहुँगी। जो होगा बाद में देखा जायेगा। 
 
सास-ससुर के जाते ही विकास भी मुझसे बचने के लि‌ए बहाने की तलाश में था। पहले तो वो काफी देर तक घर से बाहर रहा। एक घंटे बाद जब मैंने उसके मोबा‌इल पर फोन किया और खाना खाने के लि‌ए घर बुलाया तब जाकर वो घर आया। 
 
उसके आने के पहले ही मैं फटाफट तैयार हुई। उसे रिझाने के लिये मैंने नेट का बहुत ही झीना और कसा हुआ सलवार-कमीज़ पहन लिया। मेरी कमीज़ का गला कुछ ज्यादा ही गहरा था उर उसके नीचे मेरी ब्रा की झलक बिल्कुल साफ नज़र आ रही थी। अपनी टांगों और गाण्ड की खूबसूरती बढ़ाने के लिये ऊँची ऐड़ी की सैंडल भी पहन ली और थोड़ा मेक-अप भी किया। फिर मूड बनाने के लिये शराब का पैग भी मार लिया।
 
जब वो आया तो मैं अपना और उसका खाना अपने कमरे में ही ले ग‌ई और उसको अपने कमरे में बुला लिया। मगर वो अपना खाना उठा कर अपने कमरे की ओर चल दिया। मेरे लाख कहने के बाद भी वो नहीं रुका तब मैं भी अपना खाना उसके कमरे में ले ग‌ई और बिस्तर पर उसके साथ बैठ ग‌ई। 
 
वो फिर भी मुझसे शरमा रहा था। मैंने अपना दुपट्टा भी अपनी छाती से हटा लिया मगर वो आज मुझसे बहुत शरमा रहा था। उसको भी पता था कि आज मैं उसको ज्यादा परेशान करूँगी। 
 
मैंने उससे पूछा- विकास.. मैं तुम को अच्छी नहीं लगती क्या...?
 
तो वो बोला- नहीं भाभीआप तो बहुत अच्छी हैं...!
 
मैंने कहा- तो फिर तुम मुझसे हमेशा भागते क्यों रहते हो...?
 
वो बोला- भाभीमैं कहाँ आपसे भागता हूँ?
 
मैंने कहा- फिर अभी क्यों मेरे कमरे से भाग आये थेशायद मैं तुम को अच्छी नहीं लगतीतभी तो तुम मुझसे ठीक तरह से बात भी नहीं करते! 
 
नहीं भाभीअभी तो मैं बस यूँ ही अपने कमरे में आ गया था.. आप तो बहुत अच्छी हैं
 
मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा- झूठ मत बोलो! मैं तुम को अच्छी नहीं लगतीतभी तो मेरे पास भी नहीं बैठते। अभी भी देखो कैसे दूर होकर बैठे हो? अगर मैं सच में तुम को अच्छी लगती हूँ तो मेरे पास आकर बैठो....!
 
मेरी बात सुन कर वो थोड़ा सा मेरी ओर सरक गया। 
 
यह देख कर मैं बिलकुल उसके साथ जुड़ कर बैठ ग‌ई जिससे मेरी गाण्ड उसकी जांघ को और मेरी छाती के उभार उसकी बाजू को छूने लगे।
 
मैंने कहा- ऐसे बैठते हैं देवर भाभियों के पास.... अब बोलो ऐसे ही बैठो करोगे या दूर दूर...?
 
वो बोला- भाभीऐसे ही बैठूँगा मगर मौसी मुझसे गुस्सा तो नहीं होगी? क्योंकि लड़कियों के साथ ऐसे को‌ई नहीं बैठता।
 
मैंने कहा- अच्छा अगर तुम अपनी मौसी से डरते हो तो उनके सामने मत बैठना। मगर आज वो घर पर नहीं है इसलि‌ए आज जो मैं तुम को कहूँगी वैसा ही करना।
 
उसने भी शरमाते हु‌ए हाँ में सर हिला दिया।
 
अब हम खाना खा चुके थे, मैंने उसे कहा- अब मेरे कमरे में आ जा‌ओ...  वहाँ एयर-कन्डिशनर है!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
वो बोला- भाभीआप जा‌ओ, मैं आता हूँ।
 
उसकी बात सुन कर जब मैंने उसकी पैंट की ओर देखा तो मैं समझ ग‌ई कि यह अब उठने की हालत में नहीं है। 
 
मैंने बर्तन उठाये और रसो‌ई में छोड़ कर अपने सैंडल टकटकाती अपने कमरे में आ ग‌ई। थोड़ी देर बाद ही विकास भी मेरे कमरे में आ गया और बिस्तर के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।  
मैंने टीवी चालू किया और बिस्तर पर टाँगें लंबी करके बैठ ग‌ई और विकास को भी बिस्तर पर आने के लि‌ए कहा।
 
वो बोला- नहीं भाभी, मैं यहाँ ठीक हूँ।
 
मैंने कहा- अच्छा तो अपना वादा भूल गये कि तुम मेरे पास बैठोगे...?
 
यह सुन कर उसको बिस्तर पर आना ही पड़ा! मगर फिर भी वो मुझसे दूर ही बैठा। मैंने उसको और नजदीक आने के लि‌ए कहावो थोड़ा सा और पास आ गया। मैंने फिर कहा तो थोड़ा ओर वो मेरे पास आ गयाबाकी जो थोड़ी बहुत कसर रहती थी वो मैंने खुद उसके साथ जुड़ कर निकाल दी। 
 
वो नज़रें झुकाये बस मेरे पैरों को ही ताक रहा था। मैंने अपनी एक टाँग थोड़ी उठा कर लचकाते हुए अपना सैंडल पहना हुआ पैर हवा में उसकी नज़रों के सामने मरोड़ा और बोली- क्यो विकास! सैक्सी हैं ना?
 
ये शब्द सुनकर वो सकपक गया! क.... क... कौन... भाभी!
 
मुझे हंसी आ गयी और मैं बोली- सैंडल! अपने सैंडलों के बारे में पूछ रही हूँ मेरे भोले देवर...! बताओ इनमें मेरे पैर सैक्सी लग रहे हैं कि नहीं?
 
जी..जी भाभी! बहुत सुंदर हैं...! 
 
इसी तरह मैं बीच-बीच में उसे उकसाने के लिये छेड़ रही थी लेकिन वो ऐसे ही छोटे-छोटे जवाब दे कर चुप हो जाता। मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था।  मैं समझ गयी कि अब तो मुझे इसके साथ जबरदस्ती करनी ही पड़ेगी... पता नहीं फिर मौका मिले या ना मिले। अगर मैं बिल्कुल नंगी भी इसके सामने कड़ी हो जाऊँ तो भी ये चूतिया ऐसे ही नज़रें झुकाये बैठ रहेगा। 
 
टीवी में भी जब भी को‌ई गर्म नजारा आता तो वो अपना ध्यान दूसरी ओर कर लेता... मगर उसके लौड़े पर मेरा और उन नजारों का असर हो रहा था, जिसको वो बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों में छिपा रहा था। 
 
मैंने अपना सर उसके कंधे पर रख दिया और बोली- विकास आज तो बहुत गर्मी है... 
 
उसने बस सिर हिला हाँ में जवाब दे दिया। वैसे तो कमरे में ए-सी चल रहा था और गर्मी तो बस मेरे बदन में ही थी। 
 
फिर मैंने अपना दुप्पटा अपने गले से निकाल दियाजिससे मेरे मम्मे उसके सामने आ गयेवो कभी-कभी मेरे मम्मों की ओर देखता और फिर टीवी देखने लगता। ए-सी में भी उसके पसीने छुटने शुरू हो गये थे। 
 
मैंने कहा- विकासतुमको तो बहुत पसीना आ रहा हैतुम अपनी टी-शर्ट उतार लो।
 
यह सुनकर तो उसके और छक्के छुट गये, बोला- नहीं भाभी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ।
 
मैंने उसकी टी-शर्ट में हाथ घुसा कर उसकी छाती पर हाथ रगड़ कर कहा- कैसे ठीक हो, यह देखो, कितना पसीना है? और अपने हाथ से उसकी टी-शर्ट ऊपर उठाने लगी... 
 
वो अपनी टी-शर्ट उतारने को नहीं मान रहा था, तो मैंने उसकी टी-शर्ट अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा दी। वो टी-शर्ट को नीचे खींच रहा था और मैं ऊपर.. इसी बीच मैं अपने मम्मे कभी उसकी बाजू पर लगाती और कभी उसकी पीठ पर... और कभी उसके सर से लगाती... 
 
जब वो नहीं माना तो मैंने उसे जबरदस्ती बिस्तर पर गिरा दिया और... खुद उसके ऊपर लेट ग‌ई जिससे अब मेरे मम्मे उसकी छाती पर टकरा रहे थे और मैं लगातार उसकी टी-शर्ट ऊपर खींच रही थी। उसके गिरने के कारण उसका लौड़ा भी पैंट में उछल रहा था, जो मेरे पेट से कभी-कभी रगड़ जातामगर विकास अपनी कमर को दूसरी ओर घुमा रहा था ताकि उसका लौड़ा मेरे बदन के साथ न लग सके...।   लेखिका : कोमलप्रीत कौर
 
आखिर में उसने हर मान ली और मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी। 
 
अब उसकी छाती जिस पर छोटे-छोटे बाल थे मेरे मम्मों के नीचे थी.. मगर मैंने अभी उसको और गर्म करना चाहा ताकि मुझे उसका बलात्कार ना करना पड़े और वो खुद मुझे चोदने के लि‌ए मान जाये। 
 
मैं उसके ऊपर से उठी और रसो‌ई में गयी। मेरी साँसें तेज़ चल रही थी और चेहरा उत्तेजना से तमतमया हुआ था। मैंने शराब का एक पैग बना कर जल्दी से पिया तो कुछ अच्छा लगा। मैंने सोचा कि एक बार फिर रिझाने की कोशिश करके देखती हूँ क्योंकि कुँवारा लौंडा है... कहीं जबरदस्ती करने जल्दी ना झड़ जाये... सब चौपट हो जायेगा।
 
फिर आ‌ईसक्रीम एक ही कप में ले आ‌ई। मेरे आने तक वह बैठ चुका था। मैं फिर से उसके साथ बैठ ग‌ई और खुद एक चम्मच खाकर कप उसके आगे कर दिया। उसने चम्मच उठाया और आ‌ईसक्रीम खाने लगा तो मैंने उसको अपना कंधा मारा जिससे उसकी आ‌ईस क्रीम उसके पेट पर गिर ग‌ई। मैंने झट से उसके पेट से ऊँगली के साथ आ‌ईस क्रीम उठा‌ई और उसी के मुँह की ओर कर दी। उसको समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ आज क्या हो रहा है। 
 
फिर उसने मेरी ऊँगली अपने मुँह में ली और चाट ली मगर मैं अपनी ऊँगली उसके मुँह से नहीं निकाल रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरी ऊँगली मुँह से बाहर निकाली। 
 
अब मैंने जानबूझ कर एक बार आ‌ईसक्रीम अपनी छाती पर गिरा दी जो मेरे बड़े से गोल उभार पर टिक ग‌ई। मैंने एक हाथ में कप पकड़ा था और दूसरे में चम्मच। 
 
मैंने विकास को कहा- विकास यह देखोआ‌ईसक्रीम गिर ग‌ई... इसे उठा कर मेरे मुँह में डाल दो।
 
यह देख कर तो विकास की हालत बहुत खराब हो गयी। उसका लौड़ा अब उससे भी नहीं संभल रहा था। उसने डरते हु‌ए मेरे हाथ से चम्मच लेने की कोशिश की मगर मैंने कहा- अरे विकासहाथ से डाल दो। चम्मच से तो खुद भी डाल सकती थी।
 
यह सुन कर तो वो और चौंक गया.. 
 
फिर उसका कांपता हु‌आ हाथ मेरे मम्मे की तरफ बढ़ा और एक ऊँगली से उसने आ‌ईसक्रीम उठा‌ई और फिर मेरे मुँह में डाल दी। मैंने उसकी ऊँगली अपने दांतों के नीचे दबा ली और अपनी जुबान से चाटने लगी। उसने खींच कर अपनी ऊँगली बाहर निकल ली तो मैंने कहा- क्यों देवर जी दर्द तो नहीं हु‌आ..?
 
उसने कहा- नहीं भाभी...!
 
मैंने कहा- फिर इतना डर क्यों रहे हो...?
 
उसने कांपते हु‌ए होंठों से कहा- नहीं भाभीडर कैसा...?
 
मैंने कहा- मुझे तो ऐसा ही लग रहा है...!
 
फिर मैंने चम्मच फेंक दी और अपनी ऊँगली से उसको आ‌ईसक्रीम चटाने लगी। वो डर भी रहा और शरमा भी रहा था और चुपचाप मेरी ऊँगली चाट रहा था।
 
मैंने कहा- अब मुझे भी खिला‌ओ....!
तो उसने भी ऊँगली से मुझे आ‌ईसक्रीम खिलानी शुरू कर दी। मैं हर बार उससे को‌ई ना को‌ई शरारत कर रही थी और वो और घबरा रहा था। आखिर आ‌ईसक्रीम ख़त्म हो ग‌ई और हम ठीक से बैठ गये। 
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#15
मैंने उसको कहा- विकासमैं तुम को कैसी लगती हूँ?
 
उसने कहा- बहुत अच्छी!
 
तो मैंने पूछा- कितनी अच्छी?
 
उसने फिर कहा- बहुत अच्छी! भाभी....!
 
फिर मैंने कहा- मेरी एक बात मानोगे..?
 
 उसने कहा- हाँ बोलो भाभी...?
 
मैंने कहा- तुम्हारे साथ घुलामस्ती करने से मेरी कमर में दर्द हो रहा है, तुम दबा दोगे...?
 
उसने कहा- ठीक है...
 
तो मैं उलटी होकर लेट ग‌ई... वो मेरी कमर दबाने लगा।
 
फिर मैंने कहा- वो क्रीम भी मेरी कमर पर लगा दो!
 
तो वो उठ कर क्रीम लेने गया तब मैंने अपनी कमीज़ उतार दी। अब तो मेरे मम्मे छोटी सी ब्रा में से साफ दिख रहे थे। यह देख कर विकास बुरी तरह से घबरा गया और बोला- भाभी, यह क्या कर रही हो?
 
 मैंने कहा- तुम क्रीम लगा‌ओगे तो कमीज उतारनी ही पड़ेगी... नहीं तो तुम क्रीम कैसे लगा‌ओगे?
 
 वो चुपचाप बैठ गया और मेरी कमर पर अपना हाथ चलाने लग। फिर मैं उसके सामने सीधी हो ग‌ई और कहा- विकास रहने दोआ‌ओ मेरे साथ ही लेट जा‌ओ। 
 
उसने कहा- नहीं भाभी! मैं आपके साथ कैसे सो सकता हूँ!
 
मैंने कहा- क्यों नहीं सो सकते...?
 
तो वो बोला- भाभी आप औरत हो और मैं आपके साथ नहीं सो सकता...!
 
मैंने उसकी बाजू पकड़ी और अपने ऊपर गिरा लिया और कस कर पकड़ लिया। मैंने कहा- विकास तुम्हारी को‌ई सहेली नहीं है क्या?
 
उसने कहा- नहीं भाभी....अब मुझे छोड़ो...!
 
मैंने कहा- नहीं विकासपहले मुझे अपनी पैंट में दिखा‌ओ कि क्या है जो तो मुझ से छिपा रहे हो...?
 
वो बोला- नहीं भाभी, कुछ नहीं है...!
 
मैंने कहा- नहीं मैं देख कर ही छोड़ूंगी.. मुझे दिखा‌ओ क्या है इसमें...!
 
वो बोला- भाभीइससे पेशाब करते है... आपने भैया का देखा होगा...!
 
मैंने फिर कहा- मुझे तुम्हारा भी देखना है...!और पैंट के ऊपर से ही उसको अपने हाथ में पकड़ लिया। हाथ में लेते ही मुझे उसकी गर्मी का एहसास हो गया।
 
विकास अपना लौड़ा छुड़ाने की कोशिश करने लगा मगर मेरे आगे उसकी एक ना चली! ना चाहते हुए भी उसने मुझे जबरदस्ती करने के लिये मजबूर कर दिया था।
 
फिर वो बोला-भाभी अगर किसी को पता चल गया कि मैंने आपको यह दिखाया है तो मुझे बहुत मार पड़ेगी।
 
मैंने कहा- विकासअगर किसी को पता चलेगा तो मार पड़ेगी... मगर हम किसी को नहीं बता‌येंगे।
 
फिर मैंने उसकी पैंट की हुक खोली और पैंट नीचे सरका दी। उसका कच्छा भी नीचे सरका दिया... और उसका बड़ा सा लौड़ा मेरे सामने था.... इतना बड़ा लौड़ा मैंने आज तक नहीं देखा था।
 
मैं बोली- विकासतुम मुझसे इसे छिपाने की कोशिश कर रहे थे मगर यह तो अपने आप ही बाहर भाग रहा है....
 
विकास ने जल्दी से अपने हाथ से उसको छुपा लिया और पैंट पहनने लगा मगर मैंने खींच कर उसकी पैंट उतार दी और कच्छा भी उतार दिया। अब मैं और सब्र नहीं कर सकती थी और यह मौका हाथ से नहीं जाने दिया और उसका लौड़ा झट से मुँह में ले लिया और जोर-जोर से चूसने लगी।
 
पहले तो वो मेरे सर को पकड़ कर मुझे दूर करने लगा मगर थोड़ी देर में ही वो शान्त हो गया क्योंकि मेरी जुबान ने अपना जादू दिखा दिया था। अब वो अपना लौड़ा चुसवाने का मजा ले रहा था। मैं उसके लौड़े को जोर-जोर से चूस रही थी और विकास बिस्तर पर बेहाल हो रहा था... उसे भी अपने लौड़ा चुसवाने में मजा आ रहा था। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। फिर उसके लौड़े ने अपना सारा माल मेरे मुँह में उगल दिया और मेरा मुँह उसके माल से भर गया। मैंने सारा माल पी लिया।   लेखिका : कोमलप्रीत कौर
 
मैं अपने हाथों को चाटती हु‌ई उठी और बोली- विकास अब तुमको कुछ देखना है तो बता‌ओमैं दिखाती हूँ!
 
उसने मेरे मम्मों की ओर देखा और बोला- भाभीआपके ये तो मैंने देख लि‌ए...!
 
मैंने कहा- कुछ और भी देखोगे...?
 
उसने कहा- क्या...?
 
मैंने उसको कहा- मेरी कमर से ब्रा की हुक खोलो!
 
तो उसने पीछे आकर मेरी ब्रा खोल दी। मेरे दोनों कबूतर आजाद हो गये। फिर मैं उसकी ओर घूमी और उसको कहा- अच्छी तरह से देखो हाथ में पकड़ कर...!
 
उसने हाथ लगाया और फिर मुझसे बोला- भाभीमुझे बहुत डर लग रहा है...!
 
मैंने कहा- किसी से मत डरो! किसी को पता नहीं चलेगा! और जैसे मैं कहती हूँ तुम वैसे ही करोदेखना तुम को कितना मजा आता है...!
 
फिर मैंने उसका सर अपनी छाती से दबा लिया और अपने मम्मे उसके मुँह पर रगड़ने लगी।
 
वो भी अब शर्म छोड़ कर मेरे मम्मों का मजा ले रहा था। लेखिका : कोमलप्रीत कौर
 
मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोलते हुए उसको कहा- मेरी सलवार उतार दो!
 
तो उसने मेरी सलवार उतार दी और मुझे नंगी कर दिया। मेरी ट्राउज़र सलवार की चौड़ी मोहरी की वजह से मेरी सैंडल भी उसमें नहीं अटकी। मैंने पैंटी तो पहनी ही नहीं थी।  अब हम दोनों नंगे थे। मैंने उसको अपनी बाहों में लिया और अपने साथ लिटा लिया। फिर मैंने उसके होंठ चूसे और फिर मेरी तरह वो भी मेरे होंठ चूसने लगा। अब उसका डर कम हो चुका था और शर्म भी... 
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#16
अब मैं उसके मुँह के ऊपर अपनी चूत रख कर बैठ ग‌ई और कहा- जैसे मैंने तुम्हारे लौड़े को चूसा है तुम भी मेरी चूत को चाटो और अपनी जुबान मेरी चूत के अन्दर घुसा‌ओ।
 
वो मेरी चूत चाटने लगा। उसको अभी तक चूत चाटना नहीं आता था मगर फिर भी वो पूरा मजा दे रहा था। मेरी चूत से पानी निकल रहा था जिसको वो चाटता जा रहा था और कभी-कभी तो मेरी चूत के होंठो को अपने दांतों से काट भी देता था जो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। उसका लौड़ा फिर से तन चुका था। 
 
अब मैं उठी और अपनी चूत को उसके लौड़े के ऊपर सैट करके बैठ ग‌ईमेरी गीली चूत में उसका लौड़ा आराम से घुस गया पर उसका लौड़ा बहुत बड़ा था। थोड़ा ही अन्दर जाने के बाद मुझे लगने लगा कि यह तो मेरी चूत को फाड़ डालेगा।
 
शायद उसको भी तकलीफ हो रही थीवो बोला- भाभीमेरा लौड़ा आपकी चूत से दब रहा है।
 
मैंने कहा- बस थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा... पहली बार में सबको तकलीफ होती है।
मैंने थोड़ी देर आराम से लौड़ा अन्दर-बाहर किया। फिर जब वो भी नीचे से अपने लौड़े को अन्दर धकेलने लगा तो मैं भी अपनी गाण्ड उठा-उठा कर उसके लौड़े का मजा लेने लगी। अब तक वो भी पूरा गर्म हो चुका था, उसने मुझे अपने नीचे आने के लि‌ए कहा तो मैं वैसे ही लौड़े अन्दर लि‌ए ही एक तरफ़ से होकर उसके नीचे आ ग‌ई और वो ऊपर आ गया।
 
वो मुझे जोर-जोर से धक्के मारना चाहता था। उसका लौड़ा बाहर ना निकल सके इसलिये मैंने अपनी टांगों को उसकी कमर में घुमा लिया कैंची की तरह कस लीं। फिर वो आगे-पीछे होकर धक्के मारने लगा। मैं भी नीचे से उसका साथ दे रही थीअपनी गाण्ड को हिला-हिला कर। उसके हर धक्के के साथ मेरी सैंडलों की ऊँची ऐड़ियाँ उसके चूतड़ों में गड़ जाती थीं।
 
काफी देर तक हमारी चुदा‌ई चलती रही और फिर हम दोनों झड़ गये और वैसे ही लेट रहे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
(11-01-2022, 01:33 PM)neerathemall Wrote: Angry
अब मैं उठी और अपनी चूत को उसके लौड़े के ऊपर सैट करके बैठ ग‌ईमेरी गीली चूत में उसका लौड़ा आराम से घुस गया पर उसका लौड़ा बहुत बड़ा था। थोड़ा ही अन्दर जाने के बाद मुझे लगने लगा कि यह तो मेरी चूत को फाड़ डालेगा।
 
शायद उसको भी तकलीफ हो रही थीवो बोला- भाभीमेरा लौड़ा आपकी चूत से दब रहा है।
 
मैंने कहा- बस थोड़ी देर में ठीक हो जायेगा... पहली बार में सबको तकलीफ होती है।
मैंने थोड़ी देर आराम से लौड़ा अन्दर-बाहर किया। फिर जब वो भी नीचे से अपने लौड़े को अन्दर धकेलने लगा तो मैं भी अपनी गाण्ड उठा-उठा कर उसके लौड़े का मजा लेने लगी। अब तक वो भी पूरा गर्म हो चुका था, उसने मुझे अपने नीचे आने के लि‌ए कहा तो मैं वैसे ही लौड़े अन्दर लि‌ए ही एक तरफ़ से होकर उसके नीचे आ ग‌ई और वो ऊपर आ गया।
 
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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