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Misc. Erotica वन चंपा
#1
Heart  वन चंपा Heart































Heart Heart Heart Heart Heart  
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
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Heart Heart Heart
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
[Image: 5_-Windswept-Waves.jpg]























1

सुबह सुबह जब सूर्य भी नही निकला था ,अजय अपनी आदत के मुताबिक दौड़ाने निकल पड़ा उसे सुबह का माहौल बहुत पसंद था साथ ही उसे पसंद थी सुबह की हवा ,और पसीने में तर होता हुआ शरीर ..
अभी 4 ही बजे होंगे,जगह नई थी लेकिन सुहानी थी ,जंगलों और पहाड़ो से घिरा हुआ जगह था,दूर दूर तक कोई बस्ती नही ,वो दौड़ाता हुआ जंगल में बने पगडंडियों में आगे निकल आया था ,थककर एक जगह रुक गया जहां पानी की कलरव ध्वनि सुनाई दे रही थी ,लगा जैसे पास ही कोई झरना होगा,वो अपनी सांसों को काबू में करता हुआ था आगे जाने लगा,
उसे किसी लड़की की मधुर आवाज सुनाई देने लगी …
झाड़ियों के कारण उसे कुछ दिखाई तो नही दे रहा था लेकिन वो उस ओर बढ़ता गया,सूरज अभी अभी अपनी लालिमा फैला रहा था,उसे घर से निकले 1-1.30 घण्टे तो हो ही गए होंगे …
मौसम में ठंड अभी भी थी ,लेकिन वो पसीने से भीग चुका था ,उसे इस जंगल के सुहाने मौसम में पता ही नही लगा की वो कितना आगे आ गया है ,
सामने के दृश्य को देखकर अजय का युवा मन आनंदित हो उठा ,वो कौतूहल से सामने देखे जा रहा था ..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
2

एक परी सी हसीन लड़की साड़ी में लिपटी हुई छोटे से झरने के पास खड़ी थी ,वो उससे अभी दूर ही थी लेकिन अजय की नजर उसपर जम गई ,
साड़ी उसके शरीर से चिपकी हुई थी और गोरा रंग खिलकर दिख रहा था.पूरी तरह भीगी हुई अपने धुन में गाने गा रही थी,वो मस्त थी और उसकी मस्ती को देखकर अजय भी मस्त हुए जा रहा था …
दूर से ही उसे लड़की के स्तनों का आभास हुआ ,उसने कोई भी अंतःवस्त्र नही पहने थे ,अजय का दिल धक कर रह गया …
लेकिन उसे अचानक ख्याल आया की वो क्या कर रहा है ,एक स्त्री के रूप से ऐसा मोहित होकर उसे इस तरह छुप कर देखना क्या सही होगा ,उसके अंदर की नैतिकता अचानक से जाग गई और वो मुडकर तुरंत ही जाने लगा…
झाड़ियों में हुए शोर से जैसे लड़की का ध्यान उधर गया ,और उसका गाना बंद हो गया ,
अजय जैसे ठिठक गया और मुड़ा..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
3
ड़की उसे डरकर घूरे जा रही थी साथ ही उसने अपने हाथो से अपने स्तनों को भी छुपा लिया था जैसे उसे अंदेशा हो की हो ना हो वो उसे ही घूर रहा था …
ऐसे उसके जिस्म का हर अंग घूरने के लायक था,उसके पुष्ट पिछवाड़े भी निकल कर सामने आ रहे थे,और पेट में नाभि की गहराई भी खिल रही थी ,लेकिन अजय को बस उसकी आंखे दिखी ..
बड़ी बड़ी आँखे जैसे अजय को सम्मोहित ही कर जाएगी ..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
4

और उसमे लिपटा हुआ डर देखकर अजय को अपने स्थिति का बोध हुआ ..
वो वही से चिल्लाया
“डरो नही मैं गलती से यंहा आ गया था,मुझे माफ करो “
ये बोलता हुआ अजय वँहा से चला गया लेकिन लड़की के होठो में मुकुरहट फैल गई ….
अजय को पास ही एक छोटा सा मंदिर दिखा,छोटे से चबूतरे में एक पत्थर रखा हुआ था,जिसपर लोगो ने तिलक लगा दिया था,वो जगह साफ सुथरी थी जिससे ये अनुमान लग रहा था की यंहा लोग अक्सर आते होंगे,आस पास किसी बस्ती का नामोनिशान नही था बस वो झरना था और दूर तक बस जंगल का फैलाव …
अजय पास ही एक पत्थर में जा बैठा ..
तभी उसे पायलों की आवाज सुनाई दी ,झम झम की आवज से अजय जैसे मोहित ही हो गया ,उसने देखा वही लड़की थी ,और वही साड़ी पहने आ रही थी ,वो साड़ी अब भी गीली थी थी और उसके बदन से चिपकी हुई भी थी लेकिन लड़की के चहरे में अजय को देखकर भी डर नही था बल्कि एक मुसकान थी ,उसके हाथो में एक छोटा सा पात्र था ,वो आकर पहले तो उस छोटे पत्थर पर जल चढ़ाती है ,और फिर थोड़ी देर हाथ जोड़े जैसे भाव मग्न हो जाती है …
अजय उसके उस सौदर्य को बाद देखता ही रह गया ,गोरा कसा हुआ बदन लेकिन बेहद ही मासूम सा और आकर्षक चहरा था उसका ,चहरे के नीचे ठोड़ी में गोदना था,जो की हल्के नीले रंग में कुछ बिंदियों की तरह दिख रहा था ,नाक में छोटी सी नथनी उसके सौदर्य को और भी बढ़ा रही थी ,हाथ पाव भरे हुए थे लेकिन कही से भी चर्बी की अधिकता नही थी ,लग रही थी जैसे जंगल में जंगल की देवी उतर आयी हो ,पाव में पायल था और छोटी सी एक साड़ी उसके शरीर का एक मात्रा कपड़ा था,वो भी गीला ही था और उसके शरीर से चीपक कर उसके एक एक अंग को निखार कर सामने ला रहा था …
सबसे आकर्षक थे उसकी आंखे ,तेज आंखे,बड़ी बड़ी और बिल्कुल काली पुतलियां,अजय के जेहन में अभी भी वो आंखे घूम रही थी जो उसने झरने में देखी थी …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
सुबह के इंतजार में अजय रात भर बेचैन रहा उसे चम्पा से मिलने की बहुत इच्छा हो रही थी ,बार बार उसका वो रूप उसकी आंखों के सामने आ रहा था वही मोंगरा का भी अहसास हो जाता,उसे बार बार याद आ जाता था की मोंगरा भी चम्पा की तरह ही दिखती है …

आज वो 4 बजे से पहले ही घर से निकल गया ,और दौड़ाता हुआ उसी जगह पहुच गया जंहा झरना था,उसने झड़ियो के ओट से देखा तो चम्पा अभी अभी आयी मालूम हुई ,उसका शरीर अभी पानी से भीगा नही था,थोड़ी सी आहट और पता नही क्या जो चम्पा को अजय के होने का अहसास दिला गया …
वो उसकी ओर मुड़ी तो अजय डर के कारण तुरंत ही पलट कर छुपने लगा ,लेकिन उसे चम्पा की जोरो की हँसी सुनाई दी ..




हा हा हा बाबु बाहर आ जाइये ये क्या शहरी लोगो की तरह छुप छुप कर देख रहे हो देखना है तो सामने से ही देख लो ,जंगल में आये हो तो जंगल के कानून से रहो...
मैं कोई शहर की लड़की नही जंगल की लड़की हु और ये जंगल ही मेरा घर है ,तो फिक्र मत करो इस एकांत में भी एक मर्द को देखकर मैं डरूँगी नही …”
वो फिर खिलखिलाई लेकिन अजय को लगा जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो ,वो बाहर आया ,
“यंहा आओ “
वो उसके पास जाकर रेत में बैठ गया और वो पानी में जाने लगी,मौसम में अभी भी ठंड थी लेकिन उसके पानी में जाने से अजय के माथे पर पसीना आने लगा,सिर्फ एक छोटी सी साड़ी का टुकड़ा उनके शरीर में था,सिर्फ साड़ी और कुछ भी नही ,उसने औरत को कभी इतना निर्भीक नही देखा था,लेकिन ये जंगल था ,और चम्पा के शरीर में भी कोई अंतःवस्त्र या पेटीकोट जैसी चीज नही थी,मात्रा एक साड़ी थी जो भीगने के साथ साथ उसके शरीर से चीपक गई और उसकी जवान भरी हुई देह की एक एक करवट अजय के आंखों के सामने आ गई ,साड़ी छातियों से ऐसे चिपके जैसे उसके शरीर का ही कोई अंग हो ,उसके उन्नत स्तनों की गोलाई का पूरा आभास होने लगा था ,सही कहा था पंडित जी ने चम्पा थोड़ी मोटी थी लेकिन उसे मोटा नही गदराया कहा जाता है,
भरा पूरा देशी शरीर ,और हर एक अंग से मादकता का झलकना,अजय के लिए तो खुद को सम्हालना भी मुश्किल हो रहा था,अजय उसके देह के जादू में फंस रहा था लेकिन उसकी नैतिकता ने ही उसे आगे बढ़ने से रोके रखा था ..

वो बिना किसी भी परवाह के बड़े ही चैन से नहा रही थी,अपने हर अंग को अपने हाथो से रगड़ती हुई,अजय के चहरे में पसीने की एक धार आ गई ..
“बाबुजी लगता है आपको बहुत गर्मी लग रही है आप भी आ जाइये पानी बहुत ठंडा है “
वो कुछ नही कह पाया लेकिन और उसे शांत देख वो बाहर आ गई ,अजय उसके हुस्न को बस एकटक देखता ही रह गया ,वो अजय के पास आयी और उसके हाथो को पकड़ कर पानी में खिंचने लगी,उसे आज समझ आया की जंगल की लड़की की ताकत क्या है ,वो सच में बलशाली थी अजय जैसा जवान और गठीला मर्द भी मानो उसके सामने बच्चा ही लग रहा था,लेकिन अजय के मन के किसी कोने में उठाने वाले अहसासों ने उसे और भी कमजोर बना दिया था क्योकि वो खुद भी तो उसके साथ जाना चहता था ,ऊपर से तो ऐसे ही दिखा रहा था की उसे नही जाना है लेकिन अंदर से मन के किसी कोने से वो जाने को बेताब ही था…
उसके पैर चम्पा के थोड़े ही प्रयास से चलाने लगे और वो अपने स्पोर्ट शूज़ तथा कपड़ो की फिक्र किये बिना ही पानी में चला गया ..
चम्पा ने सही कहा था की पानी ठंडा था,लेकिन चम्पा के पास होने के अहसास से उसके शरीर में थोड़ी गर्मी तो आ ही गई थी ,उसका दिल उतना धड़क रहा था जितना तो उसने कभी दौड़ाते हुए भी महसूस नही किया था …
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#9
अजय का शरीर ठंडे पानी में भी आग की तरह जलने लगा था,बचपन से वो एक शर्मिला लड़का था और ये उसके लिए किसी लड़की का प्रथम स्पर्श था ,वो भी ऐसे मौसम में वो भी इतनी हसीन लड़की का वो भी ऐसी जगह जंहा दूर दूर तक कोई ना हो ,और वो भी उस अप्सरा की इस अवस्था में जबकि अजय खुद ही उसपर मोहित हुए बिना नही रह पाया था…

चम्पा का पूरा बदन पानी से गीला था और उसने अजय के हाथो को अपने कमर पर टिका दिया अजय की दशा देखकर वो खिलखिलाई ,उसके दांतो की पंक्ति ने अजय को और भी मोहित कर दिया था ,वही अजय उसके गीले कमर को अपने जलते हुए हाथो से महसूस कर पा रहा था ,उसने एक चांदी की पतली करधन पहनी थी जो की उसके नाभि के नीचे लटक रही थी ,चम्पा को जैसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा हो वो अजय से थोड़ा अगल हुई और अजय के ऊपर पानी फेकने लगी ,वो किसी बच्चे की तरह व्यहार कर रही थी ,उसकी मासूमियत ने अजय के दिल में प्यार का एक झोंका सा चला दिया ,जिस्म की हवस कुछ पलो के लिए ही सही लेकिन प्यार की मिठास में बदल गई थी ,अजय बड़े ही धयन से उसे देख रहा था और उसके होठो में एक मुस्कान आ गई ,वो प्यार की छोटी सी मिठास भी बड़ी ही काम की थी क्योकि उसने अजय को चम्पा के रूप को देखने का एक नया ढंग दे दिया था ,वो अब उसके चहरे की मासूमियत उसकी अल्हड़ अदाओं में खो रहा था ,चम्पा के द्वारा फेके गए पानी से वो पूरी तरह से गीला हो गया था और अब वो भी अपने शर्म को हटाकर उसके साथ खेलना चाहता था ,उसने भी पानी को चम्पा की तरफ फेकना शुरू कर दिया दोनो ही खिलखिला रहे थे और उस सन्नाटे से भरे हुए जंगल में दोनो की अठखेलियों से उठाने वाली हँसी की आवाजे गूंज रही थी …

चम्पा और अजय एक दूसरे को जायद से ज्यादा भिगाने की कोशिस कर रहे थे जबकि दोनो ही भीग चुके थे और इसी कोशिस में अजय चम्पा के पास आ चुका था और अचानक ही वो चम्पा के ऊपर गिर पड़ा ,पानी अभी उनके कमर तक ही था ,लेकिन अजय के यू गिर जाने से चम्पा उसे और खुद को सम्हालने में लग गई यही हाल अजय का भी था ,और उसने अपने हाथो से चम्पा की कमर को जोरो से जकड़ लिया दोनो ही जिस्म एक साथ एक दूसरे से लिपट कर पानी में जा गिरे और इसी दौरान चम्पा के वक्षो को ढका हुआ साड़ी का पल्लू जो की ऐसे भी बहुत छोटा ही था सरक गया और चम्पा के गुम्बदों से उन्नत और गोल लेकिन मुलायम वक्ष अजय के सीने में गड़ गए..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
जैसे एक करेंट अजय के शरीर पर चल गया था ,वो ये सोचकर ही घबरा गया की एक लड़की की नंगी छतिया उसके सीने में धंसी जा रही है ,वो उन वक्षो के मुलायम अहसास को महसूस कर पा रहा था,चम्पा भी अब थोड़ी शांत हो गई शायद उसे भी ये अहसास हो गया था की आखिर उनके जिस्म अब जवान हो चुके थे और वो किसी मर्द की बांहों में इस स्तिथि में है …
लेकिन दोनो ही पानी में पड़े हुए थे और अब भी खुद को सम्हालने में लगे हुए थे ,अजय ने खुद को सम्हाल लिया और चम्पा को भी सहारा देकर खड़ा कर लिया ,अब भी दोनो के जिस्म मिले हुए ही थे लेकिन अजय को इतनी हिम्मत ना हुई की वो चम्पा के वक्षो को निहार सके ,वो उन्हें देखना चाहता था लेकिन नही देख पाया ,वो बस चम्पा के चहरे को ही देख रहा था जो की ऐसे शर्मा रही थी और उससे अलग भी नही हो पा रही थी,अजय ने भी चम्पा को पहले बार ऐसे शर्माते हुए पाया था ,वो उससे अलग होने को मचली ही थी की उसे अहसास हुआ की अजय ने उसे कसकर जकड़ लिया है ,अजय का हाथ अभी भी चम्पा के कमर पर कसे हुए था,और वो एकटक उसकी ओर देखे जा रहा था इससे चम्पा की शर्म और भी बढ़ गया थी ,अजय और चम्पा की सांसे एक दूसरे में टकरा रही थी और दोनो ही मूर्तियों की तरह वही जम चुके थे …
चम्पा का हाथ भी अभी तक अजय के गले में पड़ा हुआ था उसने अपना सर नीचे कर लिया और उसका चहरा लगभग अजय के गले से नीचे और सीने से थोड़ा उपर तक था,अजय को अपना सर हल्का सा नीचे करके उसे देखना पड़ रहा था ,अजय ने उसके बालो में ही चूम लिया ,अजय की इस हरकत से चम्पा ने सर उठाया और अजय को आश्चर्य से देखने लगी,अजय ने फिर से उसके माथे को चूम लिया ,जिससे चम्पा के होठो में एक हल्की शर्म से भरी हुई मुस्कान खिल गई ..
“क्या इरादा है बाबू जीवन भर ऐसे ही रहना है की छोड़ोगे भी”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#11
चम्पा ने अपना हाथ उसके गले से हटाया और उसकी बात से अजय भी हड़बड़ाया और उसने तुरंत ही चम्पा के कमर को छोड़ दिया ,चम्पा ने तुरंत ही अपने साड़ी का पल्लू उठाकर अपने खुले हुए वक्षो को ढंक लिया लेकिन इस 1-2 सेकेंड में ही अजय के सामने चम्पा की जवानी का भरपूर खिला हुआ सबूत उसके गोल और बड़े वक्ष आ गए ,जो कुछ ही पलो के लिए उसके सामने रहे लेकिन अजय की नजर में ऐसे बस गए की उसके पूरे शरीर में झुनझुनी सी छूट गई …
अजय भी शर्म से भर गया और खुद ही नजर घुमा लिया और पानी से बाहर जाने लगा,उसकी इस हरकत से चम्पा के होठो में एक मुस्कान आ गई ना जाने को अजय का इस प्रकार उससे शर्माना उसे बहुत भा गया था ..
अजय ने नजर तो घुमा ली थी लेकिन उसके आंखों में अब भी चम्पा के वक्ष नाच रहे थे ,वो अपना सर झटकता लेकिन वो फिर के आ जाते ,और उसके लिंग में भी एक अजीब सी झुरझुरी का अहसास उसे हो रहा था ,वो अपने गुदाद्वार को ऊपर खिंच कर अपनी झुरझुरी पर काबू पाने की कोशिस कर रहा था जिसे उसे स्कूल में एक योग के शिक्षक ने सिखाया था जिसे मूलबन्ध कहा जाता है...लेकिन ना जाने क्यो आज अजय अपनी इस हल्की सी वासना को दूर भागना नही चाहता था जबकि वो उसके साथ हो जाना चाहता था…
वो जाकर उस चबूतरे के पास जा बैठा जिसपर पत्थर के रूप में जंगल की देवी विराजमान थी ,थोड़ी देर में चम्पा भी आ गई और चम्पा वँहा आ गई और फिर से फूल चढ़ा कर उस जगह को साफ करने लगी …………
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
अजय बस उसे एकटक देखता रहा और चम्पा अपने काम में व्यस्त रही ,लेकिन कहने को ही वो काम कर रही थी असल में उसका पूरा ध्यान ही अजय की ओर था उसे पता था कि वो उसे घूर रहा है,लेकिन जैसे ही वो पलटती थी अजय अपनी नजरे फेर लेता था ,वो मंद मंद मुस्कुराती लेकिन कुछ नही कहती थी ,
आखिर में वो अजय के पास आकर बैठी ,
और उसे देखने लगी,अजय थोडा असहज हो गया ...और इधर उधर देखने लगा
“क्यो बाबुजी ऐसा क्या खास है मुझमें जो आपकी नजर मुझसे हट ही नही रही “
अजय बुरी तरह से झेंपा
“नही नही तो …”
चम्पा मुस्कुराई ,,,वो पहले की तरह खिलखिलाकर हँसी नही,उसकी मुस्कान में एक दर्द की झलक अजय को साफ दिख रही थी…
“क्या हुआ तुम उदास हो “
“नही बाबू बस सोच रही हु की मर्द कैसे जिस्म से आकर्षित हो जाते है और उसे ही प्यार समझने लगते है ,चाहे तुम जैसा अच्छा मर्द ही क्यो ना हो…”
अजय को ऐसा लगा मानो किसी ने उसे आईना दिखा दिया हो ..
वो बिल्कुल ही चुप हो गया ,उसके मन में एक ग्लानि का भाव उभरा और उसकी नजर झुक गई …
चम्पा ने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा ..
“बाबू तुम बहुत ही अच्छे हो इसलिए नही चाहती की तूम किसी दलदल में फंस जाओ ,जिस्म के आकर्षण को प्यार मत समझ बैठना,यंहा बहुत से शहरी लोग आते है जो यंहा की औरतो के जिस्म से मोहित हो जाते है ,कुछ तो उनसे प्यार की बाते करते है और भोली भाली लड़कियों को बहला कर उनके जिस्म से खेलकर वापस चले जाते है,कुछ को लगता है की वो प्यार में पड़ गए है लेकिन वो बस हवस में होते है…
तुम इन दोनो में से कोई नही हो तुम अच्छे हो ,तुम्हारा दिल साफ है ,इसलिए तुम जिसे अपना मानोगे उसे कभी धोखा नही दोगे ,इसलिए समझा रही हु ,प्यार और जिस्म के आकर्षण में पहले फर्क करना सिख लो फिर आगे जाने की सोचना ….”
अजय ने कभी सोचा ना होगा की ये जंगल की सीधी साधी सी लगने वाली लड़की इतने ज्ञान की बाते करेगी ,लेकिन वो खुस था की चम्पा ने सब कुछ क्लियर कर दिया था उसके मन में भी उठाने वाले अंतर्द्वंद जैसे खत्म से हो गए थे उसे थोड़ा हल्का महसूस हुआ …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#13
वो चम्पा के दमकते हुए चहरे को देखने लगा ,चम्पा के चहरे में अब भी मुस्कान थी लेकिन वो उदास नही थी जैसे की वो अपने दिल की बात कहकर बोझ से मुक्त हो गई हो …
अजय ने हा में सर हिलाया
“हा लेकिन इन सबका मतलब ये नही है की तुम यंहा आ नही सकते असल में तुम्हारे आने से मुझे बहुत अच्छा लगता है वरना मैं तो बोर ही हो जाती हु ,पूरा जीवन मानो अकेलेपन में ही निकल रही है “
“तूम अपने को अकेला मत समझो चम्पा मैं हु ना ,और तुमने बिल्कुल सही कहा मुझे इस बात की खुसी है की तुमने मुझे फंसने से बचा लिया ,ये मेरे जीवन में पहली बार हुआ है की मैं किसी से आकर्षित महसूस कर रहा हु,और मुझमें तो इतनी हिम्मत भी नही थी की मैं तुमसे कुछ कह पाऊ,शायद मैं इसे ही प्यार समझ लेता लेकिन तुम तो मुझसे बहुत ही ज्यादा समझदार निकल गई तुमने मुझे सोचने का मौका दिया की ये क्या था,......मैं तुम्हारा हमेशा इस बात के लिए आभारी रहूंगा चम्पा “
इस बार चम्पा खिलखिलाकर हँस पड़ी
“क्या अजीबोगरीब बाते करते हो बाबू आप भी ,संचमे आप बहुत ही शरीफ हो ,पता नही इंस्पेक्टर कैसे बन गए “
उसकी हँसी देखकर अजय भी मुस्कुरा उठा,
“पता नही कैसे बन गया बस गलती से एग्जाम निकल गया था “
इस बार दोनो ही जोरो से हँस पड़े …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
तुम मेरे साथ बाहर घुमने चलोगी”
अजय ने हल्के से कहा
“नही बाबा ,
“अरे मैं तो हु ना तुम्हारे साथ कुछ नही होगा “
चम्पा सोच में पड़ गई ..
बहुत देर तक ऐसी ही शांति छाई रही
“क्या हुआ “
“मेरे पास सिर्फ दो साड़ी है “
अजय को उसकी बात समझ आ गई थी ,
“कोई बात नही ...मैं तुम्हे कपड़े ला दूंगा “
चम्पा मानो खुसी से झूम गई
“सच में “
और अजय के गले से लग गई ,फिर एक बार दोनो के जिस्म मिल गए और अजय को अपने सीने में मुलायम लेकिन बड़े स्तनों का आभस हुआ ,चम्पा ने खुद को काबू में किया ,जब वो अलग हुई तो उसके चहरे में शर्म फैली हुई थी …
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#15
****************
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#16
दिन भर अजय के होठो में एक मुस्कान रही और शाम होते ही वो अपने कस्बे से कुछ दूर एक छोटे शहर की दुकान में पहुच गया और लड़कियों के कुछ कपड़े खरीदने लगा,उसने एक दो सलवार सूट और 2 साड़ियां ली ,लेकिन उसे याद आया की वो ब्लाउज तो लिया ही नही ,और चम्पा तो अंडरगारमेंट भी नही पहनती,ये सोचकर ही अजय के होठो में मुस्कान आ गई जिसे हम लोग समाज में गलत मानते है और अंगप्रदर्शन कहते है वो उस जंगल की लड़की के लिए बिल्कूल प्राकृतिक और नैसर्गिक है..
लेकिन अगर उसे बाहर अपने साथ घूमना था तो उसे कुछ समाज में प्रचलित कपड़े देने होंगे …
उसने कुछ अंडरगारमेंट्स भी ले लिए और एक दो ब्लाउज भी लेकिन उसे उसके शरीर के सही माप का अंदाज भी तो नही था,वो बस अपने अंदाजे से ही कपड़े ले रहा था ,लेकिन फिर भी वो संतुष्ट था ..
वो सारे कपड़े पकड़ कर घर आया दिन भर उसे बस चम्पा ही चम्पा याद आ रही थी और साथ ही उसके द्वारा कही गई बाते,वो काम तो कर रहा था लेकिन दिमाग कही और ही लगा हुआ था,वो उसकी बातो को याद करके कभी गंभीर हो जाता तो कभी हँस लेता ..
सुबह बस उसे चम्पा से मिलने का ही इंतजार था …….
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#18
जोरो की बारिश सुबह से ही हो रही थी और अजय चम्पा से मिलने को बेताब था,वो अपनी बाइक उठाकर सुबह ही चम्पा से मिलने चला गया ,वँहा जाकर देखा तो उसके दिल में खुसी की लहर दौड़ गई और साथ ही एक टीस भी उठी ,खुसी इसलिए क्योकि चम्पा एक पेड़ के नीचे दुबकी हुई खड़ी थी ,बारिश बहुत ही तेज थी ,जंगल की बारिश ऐसे भी बहुत ही डरावनी होती है वो भी तब जब अभी सूरज पूरी तरह से नही निकला हो ,और टिस उसके दिल में इसलिए उठी क्योकि उसे देख कर ही लग रहा था की वो सिर्फ इसलिए आयी थी क्योकि वो जानती थी की अजय भी यंहा आएगा ,उसके चहरे में हल्का गुस्सा था और वो झूठी नाराजगी का भाव जिसमें बहुत सा प्यार मिला हो ,नाराजगी इसलिए क्योकि अजय को आने में देर हो गई थी …
अजय मुस्कुराते हुए उसके पास पहुचा ,वो ठंड से कांप रही थी ,अजय ने तुरंत ही अपने बेग जो वो अपने साथ लाया था उसे खोलकर एक रेनकोट निकाला और उसे पहना दिया ,
“कितनी देर लगा दी ??”
चम्पा ने तुरंत ही कहा
“तुम्हे क्या जरूरत थी इतनी बारिश में इतनी सुबह यंहा आने की “
दोनो ने एक दूसरे को देखा
चम्पा के चहरे में हल्की सी मुस्कान आ गई
“क्योकि मुझे पता था की तुम यंहा जरूर आओगे ..”
चम्पा के आंखों से एक आंसू भी निकला था जो बारिश में धूल गया ,अब उसके होठो में बस एक मुस्कान थी ,अजय का मन किया की वो वही उसके होठो से अपने होठो को मिला दे लेकिन उसने अपने को काबू कर लिया था..
“तो अब तो पूरी ही भीग गई हो ,और ठंड से कांप भी रही हो चलो तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दु “
चम्पा जोरो से हँस पड़ी
“मेरे घर तक ये मोटर नही जाएगी साहेब …”
“तो मेरे घर चल ऐसे भी तेरे लिए बहुत से कपड़े लाया हु “
अजय की बात से चम्पा अपनी बड़ी बड़ी आंखों से अजय को देखने लगी ,
उसका रूप देखकर अजय हमेशा की तरह ही मोहित था ,बारिश की झमाझम के शोर में उस जंगल में दोनो ही एकांत में थे कोई और होता हो जरूर ही कोई फायदा उठाने की कोशिस करता,ऐसे अजय के लिंग ने भी विद्रोह कर दिया था वो भी अपने पूरी ताकत से खड़ा हुआ था ,और वही चम्पा की योनि ने भी पानी छोड़ा था ,जो की बारिश के पानी से भीगी उसकी साड़ी में कही गुम होकर रह गई थी ..
लेकिन दोनो ने ही अपने को काबू में रखा था ,पता नही कब और कौन सी एक चिंगारी उस ज्वालामुखी को फोड़ देती,
“तुम्हारे घर जाना क्या सही रहेगा .लोग क्या बोलेंगे “
चम्पा थोड़ी शर्मायी
“हम लोगो की फिक्र करेंगे तो लोग हमे जीने ही नही देगें ,जो बोलना है बोले ,मेरे सामने तो नही कह सकते ना,जब मैं सही हु तो मैं क्यो डरु”
अजय की बात सुनकर चम्पा का चहरा खिल गया ..
“और अगर तुम अपने घर लेजाकर मेरे साथ कुछ ...यानी वो सब ..यानी कुछ करने की कोशिस करोगे तो “
चम्पा बुरी तरह से शर्मा रही थी और अजय बस उसकी अदाओं में खो गया था,दोनो ही बस चाह रहे थे की कोई तो शुरवात करे कोई भी पीछे नही हटता लेकिन शुरुवात करना ही तो सबसे बड़ी मुश्किल होती थी …
“अगर करना होता तो यही नही कर लेता …”
अजय ने हल्के से कहा और चम्पा और भी शर्मा गई ..
चम्पा की मौन स्वीकृति मिल चुकी थी ,अजय भीगता हुआ गया और अपनी बाइक स्टार्ट कर दी..
चम्पा भी उसके पीछे आकर बैठ गई…
ये पहला मौका था जब अजय को चम्पा पर शक हुआ ..
क्योकि चम्पा ऐसे बाइक में बैठी जैसे उसे बाइक में बैठना आता हो …

लेकिन उसे इतनी हिम्मत नही हो पा रही थी ..
दोनो ही आगे निकल गए और चम्पा ने अपना हाथ अजय के कमर में कस दिया ,उन जंगली उबड़ खाबड़ रास्तों में चलते हुए अजय की उत्तेजना का भाव कही गायब हो गया था वो चम्पा की हर एक मूवमेंट को बड़े ही ध्यान से नोटिस कर रहा था ,वही शायद चम्पा को भी उसके दिल की बात समझ में आ गई थी ..
“सालो के बाद किसी के साथ बैठी हु ..
लगा जैसे सभी सवालों का जवाब मिल गया हो …
दोनो ही अजय के सरकारी क्वाटर तक पहुचने तक शांत ही रहे ..
अजय ने जल्दी से घर को खोला
लगभग 5.30 हो चुका था लेकिन बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी दोनो ही पूरी तरह से भीग चुके थे साथ ही ठंड के मारे कांप रहे थे ..
अंदर आते ही अजय ने वो कपड़े चम्पा के सामने रख दिए जिसे उसने उसके लिए लाये थे ,उसे देखकर चम्पा के चहरे में मुस्कान आ गई लेकिन वो कुछ भी नही बोली
“तुम्हे जो पसंद है वो पहन लो ,और मैं चाय बनाता हु बहुत ठंड लगी है “
चम्पा हँस पड़ी
“क्या हुआ ???”
अजय ने बड़े ही सवालिया नजरो से उसे देखा
“सामने शराब की बोतल रखी है और तुम चाय के पीछे पड़े हो “
वो और भी जोरो से हँसी, अजय के कमरे के टेबल में एक आधी विस्की की बोतल रखी थी ,
“तुम पीती हो ??”
अजय ने सवालिया अंदाज में चम्पा से कहा
“बड़े अजीब मर्द हो तुम भी जवान लड़की सामने है और गर्मी लाने की लिए तुम चाय और विस्की की सोच रहे हो”
अजय दंग सा वही खड़ा रहा लेकिन चम्पा मुस्कुराते हुए चुपचाप एक साड़ी उठाकर एक कमरे के अंदर चली गई …
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
जवानी कितनी खूबसूरत हो सकती है अजय को आज ख्याल आया था,चम्पा बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और अजय बस उसे घूर रहा था ,वो हल्के गर्म पानी से नहा कर निकली थी ,और बदन में एक मात्र टॉवेल था,जो उसकी भरी हुई जवानी को सम्हालने में नाकाम लग रहा था,बालो अब थोड़े सूखे थे उन्हें भी अच्छे से पोछा गया था


उस हल्के सुरूर में ऐसा लगा की मानो उनका शरीर हल्का हो गया ,अजय भी पूरी तरह से भीग चुका था वो भी एक टॉवेल पकड़ कर अंदर चला गया और फिर अपने कपड़े उतार कर बस टॉवेल में ही बाहर आया,अब उसे चम्पा से वो शर्म नही आ रही थी ,जब वो बाहर आया तो चम्पा भी उसके गठीले बदन को वैसे ही देख रही थी जैसे अजय चम्पा को देख रहा था,असल में अजय के अदंर रहते चम्पा ने दो पैक और लगा दिए थे और उसकी आंखों में नशा साफ दिख रहा था ,अजय का गोरा गठीला शरीर और चौड़ी छातियों में उगी हुई बालो का गुच्छा चम्पा को आकर्षित कर रहा था ,चम्पा उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बैठा ली और उसके लिए एक पैक बनाकर उसके सामने की जिसे अजय फिर से एक ही सांस में अंदर कर गया ,दोनो की निगाहे अब बिना रोक टोक और शर्म के एक दूसरे के बदन को घूर रही थी ,
अचानक ही अजय का हाथ चम्पा के पहने टॉवेल पर चला गया और उसने उसकी गांठ खोल दी ,वो बिना किसी रुकावट के गिर गया और पहली बार चम्पा का पूरा बदन उसके सामने छलक पड़ा दोनो की आंखों में नशा था और साथ ही वासना भी ,दोनो की ही आंखे आधी बंद हो चुकी थी ,
अजय का शर्मिलापन और चम्पा की चंचलता दोनो ही वासना और शराब के सुरूर में काफूर हो गई थी ,
अजय ने चम्पा को थोड़ा धक्का दिया और वो बिस्तर में गिरती चली गई ,वही अजय भी उसके ऊपर आ चुका था,ना जाने कब अजय ने अपने टॉवेल को भी निकाल फेका ,दोनो ठंडे बदन एक दूसरे से सट चुके थे और दोनो के शरीर गर्म होने लगे थे,अजय और चम्पा नंगे ही एक दूसरे से लिपटे सोए थे लेकिन एक चुम्बन भी दोनो के बीच नही हुआ था,चम्पा ने अजय के गले में हाथ डाला हुआ था और अजय भी अपनी भुजाओं से चम्पा का आलिंगन कर चुका था,लेकिन दोनो बस उसी अहसास में डूबे हुए थे ,
अजय का लिंग चम्पा की बालो से भरी हुई योनि से टकराता जरूर था लेकिन फिसल कर चम्पा के जांघो के बीच चला जाता ,दोनो में से किसी ने इतनी जहमत नही की कि अजय के लिंग को उसकी सह जगह में ले जाया जाय ,
इधर चम्पा के योनि से भी रिसाव बढ़ने लगा था और वो भी मस्त हो रही थी ,लेकिन किसी को तो पहल करनी ही थी ,आखिर अजय को अपने लिंग के फटने जैसा अहसास हुआ,वो पूरी तरह से तना हुआ था और खून का वेग उसके लिंग के नशों में तेजी से दौड़ रहा था ,साथ ही दिल भी बेहद जोरो से धड़कने लगा था मानो अब उससे बर्दास्त नही होगा,लेकिन अजय के साथ ये पहली बार हुआ था वो थोड़ा डरा भी की ये क्या हो रहा है,
अजय से जब सहा ही नही गया तो उसने अपने लिंग को बस हाथो से सही जगह सताया थोड़ा चम्पा की योनि में रगड़ने के बाद ही उसके लिंग का शिरा गीला होगा,एक बार फिर उसने हाथो के माध्यम से ही अपने लिंग को चम्पा की फूली हुई योनि के दोनो होठो के बीच चलाया,चम्पा की पकड़ और भी बढ़ गई थी और उसके मुह से सिसकारियां निकल रही थी ,अजय की कमर थोड़ी हिली और उसे ऐसा लगा जैसे उसके लिंग की चमड़ी फ़टी जा रही है,वो दर्द से कहारा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी ,योनि के दोनो होठ खुल चूके थे और उसके लिंग का आगे का भाग चम्पा की योनि के द्वार पर घुस चुका था,साथ ही चम्पा की एक बड़ी ही आह भी उसके कानो में पड़ी जैसे वो भी कराह रही हो,
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#20
अजय को लगा की उसके लिंग को उन दो नरम और गीली चमड़ी ने इतने जोरो से जकड़ा हुआ है की वो थोड़ा भी नही हिल पायेगा लेकिन ये अजय का वहम बस था,योनि से रिसने वाले गीले और चिपचिपे पानी में भीगते ही फिर से उसके लिंग को मानो जगह मिल गई और वो थोड़ा और अंदर चला गया,फिर से एक कहार दोनो के होठो से निकल गई …
लेकिन इस बार अजय ने अपने दांत चम्पा के वक्षो पर गड़ा दिए थे,वो उनसे अभी तक खेला ही नही था और फुर्सत ही किसे थी ..
इस बार चम्पा भी उसकी इस हरकत से तेज आह के साथ उसके बालो को अपने ओर और भी जोर से खिंचा और फिर कुछ ही सेकंड में उसका सर उठाकर उसके होठो को अपने होठो में भीच लिया ..
दोनो के होठ भी एक दूसरे में घुलने लगे थे ,और अजय ने फिर से थोड़ी ताकत लगाई इस बार अजय की ताकत ज्यादा ही लग गई थी और उसका लिंग पूरे का पूरा ही चम्पा की योनि में धंस गया …
“आआहह “चम्पा के मुह से जोर की आह निकली और उसने उसे रोकने के एवज में अजय के होठो के निचले हिस्से में अपन दांत ही गड़ा दिया ..
दोनो ने ही थोड़ी देर सांस लेने में बेहतरी समझी और एक दूसरे की आंखों में देखा,दोनो को ऐसा लगा जैसे जन्म जन्म से बस इसी की तलाश में थे ,मानो दोनो ही खुसी से पागल हो गए और एक दूसरे को बेतहासा चूमने चाटने लगे ,और इसके साथ ही अजय के कमर की रफ्तार भी बढ़ गई और दोनो की सिसकियों की भी ..
कमरे में फच फच और आह ओह की आवाजे ही गूंज रही थी ,दोनो ही जंहा दांत लगता गड़ा देते थे और दोनो ही अपनी आंखे बंद किये इस सुख की दुनिया में मस्त हो गए थे …………..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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