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Thriller भुत-प्रेत / तंत्र-मंत्र-यन्त्र / रहस्य - रोमांच
#1
Tongue 
 भुत-प्रेत  / तंत्र - मंत्र - यन्त्र / रहस्य - रोमांच 

banana
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#2
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#3
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#4
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#5
Heart 
हस्य रोमांच
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नाग-मणी
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#6
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सुबह के छै बजे जब जेल का घंटा बजा तो सारे कैदी अपनेअपने बैरको से बाहर निकल कर लाइन आकर खडे होने लगने शुरू हो गये  


कैदियो की गिनती के समय जब कमलसिंह दिखाई में नहीं दिया तो जेल पहरी रामदीन को बडी चिंता होने लगी उसने कमलसिंह को आवाज लगाई लेकिन अपने बिस्तर में सोया कमलसिंह जब बारबार उसे पुकारे जाने पर भी जब नहीं आया तो पहरी गिनती अधुरी छोड कर कमलसिंह के बैरक में जा पहुंचा उसने वहां पर देखा कि अपने बिस्तर में गहरी नींद में सोया हुआ था

जेल पहरी रामदीन ने कमलसिंह को जब हिलायाडुलाया तब भी वह नहीं उठा तो वह घबराहट के मारे सीधे बैरक नम्बर 16 से जेलर साहब के बंगले पर जा पहुंचा पसीने से लथपथ रामदीन ने जेलर शैतान सिंह के दरवाजे की कुण्डी को दोतीन खटखटाया तो नींद से अलसाये जेलर शैतान सिंह ने सुबहसुबह पहरी रामदीन के अचानक आने का कारण पुछा


जेल पहरी ने जब पूरी घटना जेलर शैतान सिंह को सुनाई तो उनके पांव के नीचे की जमीन खसक गई क्योकि जिस कमलसिंह से वे अपने कमरे में रात के दो बजे तक उसकी कहानी को सुन रहे थे वह अचानक मर कैसे गया
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#7
वे अपनी नाइट ड्रेस में ही जेल के अंदर 16 नम्बर के बैरक में जा पहुंचे जेलर शैतान सिंह के आते ही जेल में होने वाली कानफुसी बंद हो गई और लोगो को जैसे सांप सुंघ गया


इस बीच जेल कैम्पस से डाक्टर जौहर साहब भी अपने पूरे साजोसामान के साथ चुके थे हाथो की नब्ज टटोलने के बाद डाक्टर जौहरी ने कमलसिंह की मौत की खबर सुनाकर सभी को स्तब्ध कर दिया था।

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पिछले चौदह सालो से जिला जेल में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कमलसिंह के अच्छे चालचलन की वजह से इस बार सरकार ने उसे आजादी की वर्षगांठ पर रिहा करने का कल ही फरमान सुनाया था जेलर साहब स्वंय उसके बैरक में आकर उसकी बाकी की सजा की माफी की जानकारी उसे दे चुके थे। अपनी सजा की माफी की जानकारी मिलने के बाद से ही जब कमलसिंह उदास रहने लगा तो उसके संगी-साथियो को बडा ही आश्चर्य हुआ
 
किसी तरह यह बात उडतेउडते जेलर शैतान सिंह के कानो तक पहुंची तो वे एक बार स्वंय शाम के ढलने से पहले कमलसिंह से मिलने गये थे ताकि वे उसके नातेरिश्तेदारो की सहीसही जानकारी प्राप्त कर उन्हे कमलसिंह की रिहाई की जानकारी दे सके चार महिने पहले ही शैतान सिंह रीवा से ट्रांसफर होकर बदनुर जेल आये थे।  
 
बारबार अपने नातेरिश्तेदारो के नामपते पुछने के बाद भी जब कमलसिंह कुछ बताने को तैयार नहीं हुआ तो जेलर साहब को बडा ही अटपटा सा लगा अपनी सजा माफी के बाद से हर समय हसंताखिलखिलाता बुढा हो चुका कमलसिंह को इस तरह उदास देखकर जेलर शैतान सिंह को काफी हैरानी हुई   
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#8
कमलसिंह से मिलने के बाद जेलर शैतान सिंह अपने जेल रिकार्ड में पडे उन पुराने रिकाडो के पन्नो से कमलसिंह के उस अपराध की तह में जाने का प्रयास किया जिसकी वह पिछले चौदह सालो से जेल में सजा काट रहा था जेल रिकार्ड में कमलसिंह के गुनाहो की तह में जाने के बाद जेलर शैतान सिंह को पता चला कि कमलसिंह ने अपनी उस जान से प्यारी पत्नी और साले को ही मार डाला था। 

दो जघन्य हत्याओं के आरोपी कमलसिंह को चौदह साल पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अपनी पत्नी और साले की हत्या के कारणो के पीछे की सच्चाई को जानने के लिए एक बार फिर जेलर शैतान सिंह ने देर रात को कमलसिंह को अपने कमरे में बुलावा भेजा

 
कमलसिंह आया तो जरूर पर वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं था। काफी कुदरने के बाद कमलसिंह ने जो हत्या की कहानी बताई उसको सुनने के बाद जेलर शैतान सिंह को यकीन नहीं हो रहा था। कमलसिंह की बताई कहानी सही भी है या काल्पनिक


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#9
banana

महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश की सीमा से लगे आदिवासी बाहुल्य बदनूर जिला मुख्यालय की जिला जेल में आजीवन कारावास की सजा काटने वाला कमलसिंह दरअसल में नागपुरभोपाल रेल एवं सडक मार्ग पर स्थित ढोढरा-मोहर रेल्वे स्टेशन से बीसबाइस कोस दूर पंक्षीटोकरा नामक गांव का रहने वाला था। पंक्षी और टोकरा दो टोलो की मिलीजुली बस्ती में रहने वाले अधिकांश परिवारो में आदिवासी लोगो की संख्या सबसे अधिक थी।

सौ सवा सौ घरो के इस वनग्राम पंक्षीटोकरा में गरीब आदीवासी कमलसिंह की आजीविका जंगलो से निकलने वाली वनो उपज पर आश्रीत थी। वह दिन भर जंगलो से जडीबुटी एकत्र करता रहता था। उसे जंगलीजुडी बुटियो का अच्छाखासा ज्ञान था। उसके पास से लाइलाज बीमारियों के उपयोग मे आने वाली जडीबुटियो को औनपौने दामो में खरीदने के लिए महिने में एक दो बार हरदा और हरसुद के वैद्यहकीम आया करते थे  


महिने में सौसवा सौ रूपये कमा लेने वाले कमलसिंह के पास अपने पुरखो की सवा एकड जमीन थी। जिसमें महुआ के पड लगे थे। बंजर पडी जमीन में किसी तरह अपने हाडमास को तोड कर बरसाती फसल निकाल पाता था।
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#10
वैसे तो कमलसिंह का टोकरा टोले का रहने वाला था इस बिरली आदिवासी बस्ती के एक छोर पर स्थित मिटट्ी का बना पुश्तैनी मकान में कमलसिंह अपने परिवार के साथ रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी सुगरती के अलावा उसकी बुढी मां सीतम्मा भी थी। 


कमलसिंह के मकान के पिछवाडे में उसका छोटा सा पुश्तैनी बाडा उस बाडे में बरसात के समय मक्का और ज्वार लगा लेने से वह अपने परिवार के लिए साल भर की रोटी का बंदोबस्त तो कर लेता था लेकिन कई बार तो फसल के धोखा देने पर उसे यहांवहां मजदूरी करने के लिए भी जाना पडता था  

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कमलसिंह के बाडे में कई साल पुराना पीपल का पेड था। इस पेड के नीचे उसके पुश्तैनी कुल देवो की गादी बनाई हुई थी कई पीढी से कमलसिंह और उसके पुरखे उस गादी की पूजा करते चले रहे थे।

चालीस साल की आयु पार कर चुके कमलसिंह निःसंतान था अपने मातापिता की एक मात्र संतान के घर में जब किलकारी नहीं गुंजी तो उसकी मां ने उससे बहुंत कहा कि वह दुसरी शादी कर ले लेकिन अपनी घरवाली सुगरती से बेहद प्यार करने वाले कमलसिंह ने किसी एक भी बात नहीं मानी यहां तक की उसकी पत्नी सुगरती तक ने उससे कई बार कहा कि वह उसकी छोटी साली कमलती को ही घरवाली बना ले, लेकिन वह नहीं माना।
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#11
एक रोज जब अपने बिस्तर से बाहर जाने को उठी सुगरती ने अपने बाडे में किसी ऊजाले को देखा तो वह दंग रह गई। वह सरपट वापस दौडी आई और उसने अपने पति को सोते से जगा कर उसे वह बात बताई तो कमलसिंह के होश उड गये। 

अब कमलसिंह को पुरा यकीन हो गया था कि उसकी मां सीतम्मा ने जो उसे अपने बाडे में नागमणी वाले नाग की जो बाते बताया करती थी दर असल में कहानी होकर हकीकत थी


लोगो का ऐसा मानना था कि जिस नाग की आयु सौ पार कर जाती है उसके शरीर में एक ऐसा मणी आकार रूप ले लेता है जिसका प्रकाश में वह बुढा नाग काली अमावस्य स्हाय रात में विचरण कर सकता है कमलसिंह ने जब अपने बाडे में नागमणी के ऊंजाले को देखा तो वह समझ चुका था कि उसके बाडे में ही नागमणी वाला नाग कहीं रह रहा है  

कमलसिंह ने हर महिने को आने वाली काली अमावस्या के अंधकार में स्हाय अंधेरी रात को अपने बाडे में दिखने नागमणी के प्रकाश वाली आंखो देखी घटना पर चुप्पी साध ली तथा उसने अपनी पत्नी सुगरती को भी यह कह कर चुप करा दिया कि यदि वह किसी को यह बात बता देगी तो उसके घर परिवार में अनर्थ हो जायेगा।
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#12
उसके नींद की झपकी बस आने वाली थी कि उसे पेड के नीचे उसी ऊंजाले ने चौका दिया। कमलसिंह को लगा कि अपने बिल से निकलने के बाद नागमणी वाले नाग ने अपने शरीर से मणी को निकाल कर रख दिया है और वे उसके प्रकाश में विचरण करने लगा  

अपने मणी से कुछ दुरी पर नाग के पहुंचते ही कमलसिंह ने दरातियों की तेजधार से बंधे उस पिंजरे को ठीक उस स्थान पर ऊपर नीचें की ओर गिरा दिया , जहां से प्रकाश रहा था। अचानक अंधकार होता देख गुस्से से तमतमाये उस नागमणी वाले नाग ने उस पिंजरे पर अपनी फन से जैसे ही वार किया उसकी फन कट कर दूर जा गिरी

 
सब कुछ देखने के बाद जब कमलसिंह को इस बात का पूरा यकीन हो गया कि नाग मर चुका है तो वह धीरेधीरे पेड से नीचे उतर कर पिंजरे के पास आया और उसने उस मणी को अपने पास रख कर वह चुपचाप पिंजरे को लेकर चला गया सुबह होते ही कमलसिंह ने उस नाग को जमीन में गडडा खोद कर उसे दबा दिया।

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#13
इस घटना को बीते दो साल हो जाने के बाद एक दिन कमलसिंह ने अपनी पत्नी सुगरती को वह मणी वाली घटना बता दी सुगरती को भरोसा दिलाने के लिए कमलसिंह ने एक रात उसे वह मणी भी दिखा दिया। कमलसिंह ने सुगरती को बारबार चेताया था कि वह यह बात किसी को बताये लेकिन नारी के स्वभाव के बारे में क्या कहा जाये कुछ कम है। सुगरती ने नागमणी वाली बात अपने छोटे भाई मकालू को बता दी

 
एक दिन अपने बहनोई के घर धमके मकालू ने कमलसिंह को उस मणी को दिखाने की जिद कर दी तो कमलसिंह भौचक्का रह गया। अब कमलसिंह को मणी की और स्वंय की चिंता सताने लगी। उसे लगा कि कहीं उसकी पत्नी नागमणी के चक्कर में कही उसके भाई के साथ मिल कर उसे मार डाले इस डर से डरासहमा कमलसिंह ने पूरे दिन किसी से बातचीत नहीं उस रात शराब के नशे मे धुत कमलसिंह ने अपनी कुल्हाडी से अपनी पत्नी और साले मकालू की जान ले ली
 
कमलसिंह को जब होश आया तब तक सब कुछ अनर्थ हो चुका था। गांव में दो हत्या होने की भनक मिलते ही पुलिस भी चुकी थी। कमलसिंह ने अपने अपराध को तो स्वीकार कर लिया पर उसने वह नागमणी वाली बात किसी को नहीं बताई कमलसिंह के जेल जाते ही उसकी बुढी मां उस सदमे को बर्दास्त नहीं कर सकी और वह भी मर गई

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#14
banana

अपनी रिहाई की खबर सुनाने आये जेलर शैतान सिंह को जब कमलसिंह अपनी आपबीती व्यथा सुना रहा था तो शैतानसिंह जैसे कुख्यात जालिम जेलर की भी आंखे पथरा गई। कमलसिंह कहने लगा कि साहब जिस मणी के चक्कर मंे उसने अपनी जान से प्यारी पत्नि को ही अपना सबसे बडा दुश्मन समझ कर मार डाला तब वह जेल से रिहा होने के बाद बाहर जाकर क्या करेगा जेलर के बारबार पुछने के बाद भी कमलसिंह ने उसे वह मणी के कहां छुपा कर रखने की बात नहीं बताई।

 
आज जब कमलसिंह मर चुका था तब बारबार जेलर शैतानसिंह को उसकी मौत पर और नागमणी के होने पर विश्वास नहीं हो रहा था जेलर शैतान सिंह ने स्वंय आगे रह कर कमलसिंह का पोस्टमार्टम करवाने के बाद उसकी लाश को लेकर उसके गांव गया जहां पर गांव के अधिकांश लोग कमलसिंह और सुगरती को भूल चुके थे। एक खण्डहर हो चुके मिटट्ी के मकान के पीछे पुराने पीपल के पेड के पास जेलर शैतान सिंह ने गांव वालो की मदद से एक गडडा खुदवा कर वहीं कमलसिंह को दफन कर दिया।
 
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#15
आज भी उसी पेड के नीचे काली अमावस्या की रात को गांव के लोगो को ऐसा लगता है कि कोई व्यक्ति अपने हाथो में ऊंजाले लिए उस बाडे में घुमता रहता है जिसजिस भी व्यक्ति को इस नागमणी के होने की खबर मिलती वही व्यक्ति उस काली अमावस्या की रात को उसे पाने के लिए कमलसिंह के बाडे में मौजूद पीपल के पेड की डाली पर पूरी रात बैठा रहता है ताकि वह उस मणी को पा सके  

गांव के लोगो के लोगो की बातो पर यकीन करे तो पता चलता है कि हर अमावस्या की काली रात किसी ने किसी नागमणी को पाने वाले इंसान की बलि ले लेती है। ऐसा पिछले कई दशको से चला रहा है। गांव के लोगो को आज भी काली अमावस्या की रात को होने वाले हादसे की आहट स्तब्ध कर देती है




इति,


नोट:- इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेनादेना नहीं है।
banana
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#16
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banana
Real Ghost Story - भूत प्रेत घटनाएँ


पहलवान का भोग




नमस्कार दोस्तों,


दोस्तों भूत प्रेत से सम्बंधित घटनाओं में ज्यादातर घटनाये रोंगटे खड़ी कर देती हैं। तो कुछ इतनी मार्मिक होती हैं के दिल भर आता है। लेकिन मेरे जीवन से जुड़ी एक घटना ऐसी भी है जिसे याद करके हंसी आ जाती है। जाने अनजाने में मेरी मम्मी के मामा जी के साथ ये घटना घटी थी। बस थोड़े से आलस की वजह से उनके पीछे ऐसी मुसीबत लगी जिससे उन्हें निजात पाने में सालों लग गए।



वो गाँव में रहा करते थे। उनका नाम तो अच्छा खासा है मगर गाँव में अक्सर चिढ़ाने के लिए जो नाम रख दिया जाता है वो नाम पूरी जिंदगी के लिए पीछे लग जाता है। इसी संक्षिप्तिकरण और मजाक में उनका नाम बचपन में ही लाल जी पड़ गया था। वो इसी नाम से पहचाने जाने लगे।



वो जिस गाँव में रहते थे वो अमेठी से करीब पेंतालिस किलोमीटर दूर पड़ता है। उनका घर गाँव में सबसे किनारे पर था। और उनके घर से करीब ढाई सौ मीटर की दूरी पर रेलवे लाइन थी। और रेलवे लाइन के पार एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था और चबूतरा बना था, उन्हें लोग पहलवान बाबा के अर्थान (पूजा का स्थान) के नाम से जानते थे। सबको उनपर बहुत श्रद्धा थी, जिसका परिणाम भी उन्हें अच्छे के रूप मिलता था। 

आस पास के गाँव वाले उनकी पूजा अर्चना करते थे और उनकी कृपा भी खूब देखते थे और आज भी ये सिलसिला वहां जारी है। खैर, वहां वास करने वाले बाबा कोई देवता नहीं थे, वो वही थे जिन्हें लोग शहरो में छलावा कहते हैं। लेकिन एक बहुत लम्बे अंतराल से वो वहां वास करते हैं इसलिए वो बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। उनकी पूजा जो करता है वो उस पेड पर लंगोट और दारु की एक बोतल चढ़ाता है। भूतप्रेत बाधा से ग्रस्त व्यक्ति वहां जाकर ठीक हो जाते हैं।



लाल जी भी उन्हें बहुत मानते थे, मगर वे थे थोड़े आलसी किस्म के। जब भी उनकी माता उन्हें उस अर्थान पर चढ़ावा चढाने को कहती तो वे अक्सर टालमटोल करते थे। 



वहीँ गाँव में एक पंडित जी भी रहते थे, हष्टपुष्ट शरीर वाले और अखाड़ों में उनका बहुत नाम था।
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#17
लोग उन्हें अक्सर पहेलवान पंडित कहते थे। हालाकि को थे तो पंडित मगर ये नाम उनके चरित्र को दूर दूर तक नहीं छूता था। पहलवान होने के कारण अक्सर वो मांस मदिरा का सेवन भी करते थे, लेकिन बहुत ही कम। उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनका एक दस साल का बेटा था बस। 

एक बार की बात है उनकी पत्नी बेटे को लेकर अपने मायके गयी हुयी थी और वापस आते समय जिस बस से वे वापस आ रही थी वो बस दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। उनके बेटे ने वहीँ दम तोड़ दिया और उनकी पत्नी ३ दिन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद चल बसी। पुरे गाँव में हफ्ते भर तक शोक का साया था, इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार उस गाँव में घटी थी। 

पहलवान जी के घर लोगो का ताँता लगा रहता, वो अपने होश हवास से खो बैठे थे। आस पास के जानकार और मित्र आकार उन्हें खाना पानी देते, वरना वो खुद खाना पानी भी नहीं लेते थे। हफ्ते भर बाद धीरे धीरे गाँव के लोग अपनी अपनी दिनचर्या में वापस लौटने लगे और उधर पहलवान जी ने जब खुद को संभाला तो शराब और नशे में डूबे रहने लगे और अपने मित्रो और रिश्तेदारों को भी उन्होंने जाने के लिए कह दिया और अकेले रहा करते थे। पुरे दिन पूरी रात वो नशे में डूबे रहते थे।

धीरे धीरे उनका पहलवान वाला शरीर सूखने लगा और एक महीने के अन्दर वो किसी सामान्य व्यक्ति जेसे दिखाई देने लगे मगर किसी का भी कहा नहीं मानते थे और बस अपनी उसी शराब और परिवार की तस्वीर के साथ घंटो बातें करते थे। करीब एक महीने के बाद अचानक सुबह खेत जाते समय एक व्यक्ति ने खबर दी की पहलवान जी ने रेलवे लाइन पर आत्महत्या कर ली। उनका शरीर दो हिस्सों में वहां पड़ा था। 


गाँव के सारे मर्दों ने उन्हें वही से उठाया और ले जाकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। और सारे गाँव वालो ने थोडा बहुत मिला जुला कर उनकी अंतिम क्रिया भी करवा दी। बहुत बुरा हुआ था मगर सबने ये सोच लिया की ये तो होना ही था आज नहीं तो कल। या तो वो शराब से बिस्तर पर पड़े पड़े मर जाते या फिर जो हुआ वही होना था।

खैर जो हुआ उसे ईश्वर की मर्जी मान कर सबने उनकी संपत्ति पंचायत को गाँव के भले में लगाने के लिए दे दी।


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#18
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एक दिन की बात है पास के गाँव में एक आदमी को प्रेत बाधा हुयी। उसके घर वाले बहुत परेशान थे और वो आदमी पहलवानी कर कर के हर किसी को खुद से दूर रहने की बात कर रहा था। जांघो पर ताल ठोंक ठोंक कर बात कर रहा था। कुछ आदमियों में मिलकर उसे पकड़ने की कोशिश की मगर उसकी पहलवानी के आगे कोई टिक नहीं पा रहा था। किसी तरह गाँव के कई सारे आदमी मिलकर उसके अपने आप शांत होने पर उठा कर उसे पहलवान बाबा के अर्थान पर ले गए। वहां उसे चबूतरे पर बैठाया गया, धीरे धीरे उसने उस पर जैसे दबाव सा बनने लगा और वो वहां मौजूद लोगों ने उससे पूछा की वे कौन है?
 
उसने बताया की वो वहां रेल की पटरी पर रहता है। ये आदमी वहां पर गन्दगी कर रहा था इसलिए उसे पकड़ा है।
 
लोगों में में से एक ने पूछा के "माफ़ करदो इसे और जाने का क्या लोगे ये बता दो?"
 
उसने कहा "दारु। दारु पिला दो छोड़ दूंगा।"
 
वहां मौजूद लोग तुरंत दारु लेकर आये और उसे दिया। मगर उसने पीने से मना कर दिया। और कहा "ऐसे नहीं, जो मुझे हमेशा देता है बस उससे ही लूँगा।"
 
जिज्ञासा वश सबने पूछा की वो भोग किस्से लेना चाहेगा। तो उसने बताया की "फलाने गाँव में लाल जी नाम का आदमी है। वो मुझे हमेशा दारु देता है वो देगा तो में तुरंत चला जाऊंगा।"
 
पहले तो लोगों को शक हुआ की कहीं लाल जी नाम के आदमी ने ही तो नहीं भेजा है इसे तंत्र मंत्र करके। लेकिन इस बात की पुष्टि के लिए समस्या के समाधान के लिए सबने लाल जी से मिलने की ठान ली। कुछ व्यक्ति उस आदमी के घर के सदस्यों के साथ मिलकर जो गाँव उसने बताया था उस तरफ चल पड़े लाल जी से मिलने। जब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले ये आज़माया की कहीं इसी आदमी ने तो कोई तंत्र मंत्र नहीं किया। इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने आस पास के लोगो से पूछताछ की सबने बताया की वो तो जल्दी पूजा भी नहीं करता तंत्र मंत्र की तो बात ही दूर है।
 
इस बात ने सबको सकते में डाल दिया और अब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे। और उन्हें सारी घटना से अवगत करवाया। लाल जी पहले से ही भूत प्रेतों के नाम से भागा करते थे, जब उन्हें पता चला की कोई भूत प्रेत उन्हें बुला रहा है तो उन्हें पाँव के नीचे से जमीन सरक गयी। और उन्होंने जाने से साफ़ मना कर दिया। इस बात से वहां मौजूद लोगों को इस बात की तो तसल्ली हो गयी थी की ऐसा आदमी कोई तंत्र मंत्र नहीं कर सकता। फिर उन्होंने लाल जी से साथ चलने और उससे बात करने के लिए कहा। लाल जी किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रहे थे। आखिरकार जब उनके बड़े भाई और आस पास के कुछ बुजुर्गो ने उन्हें समझाया तो वो जाने के लिए राज़ी हुए मगर अकेले नहीं, साथ में लोगो को साथ ले गए।
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#19
वहां पहुँचने पर लाल जी के पसीने छूटने लगे थे। आखिरकर लाल जी और उसका सामना हो गया।

 
"कौन हो भाई और क्यों मेरे नाम का शोर करके कर रहे हो ?" लाल जी ने उससे पूछा।
 
"मुझे बस अपने हाथ हमेशा की तरह दारू पिला दो में चला जाऊंगा।" उस आदमी ने लाल जी के सामने हाथ जोड़ कर कहा। वहां मौजूद ऐसे द्रश्य को सब आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे। एक प्रेत कैसे बिना सिद्धि वाले आम आदमी के सामने हाथ जोड़ कर बात कर रहा है।
 
"हमेशा की तरह? अबे मैंने कब तुझे इससे पहले दारू पिलाया है?" लाल जी अब उससे बिना डरे बात करने लगे थे।
 
"लाल जी, मजाक करो। हर हफ्ते मुझे दारू का भोग देते हो उससे मेरी प्यास मिट जाती है। थोड़ी सी दारू देदो चला जाऊंगा।" वो फिर से विनती करने लगा।
 
अब लाल जी को झल्लाहट होने लगी और वो थोडा तेज़ आवाज़ में बोलने लगे। "अबे क्यों झूठ बोलता है, मैं तो जनता भी नहीं तू कौन है मैं तुझे क्यों दारू देने लगा?"
 
"हर हफ्ते तो मुझे दारू देते हो, अपने घर के पीछे आकर। और पूछते हो की कब दारू दी?" वो हस्ते हुए बोला। वो लाल जी हर बात ध्यान से सुनता और जवाब देता। और उनके झल्लाने पर हँसता। जेसे की कोई आम आदमी अपने किसी प्रियजन के साथ व्यव्हार करता है।
 
ये बात सुनकर लाल जी के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आयी। ये भोग तो पहलवान बाबा को देते थे, ये भोग इसे कैसे मिलने लगा?
"वो भोग तो ये अर्थान वाले पहलवान बाबा को देता था तू बीच में कहाँ से गया?" उन्होंने अपनी परेशानी का हल ढूंढते हुए ये प्रश्न किया।
 
"तुम्ही तो भोग देते हुए कहते थे पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो। अब उनके अर्थान से पहले वहां रेल की पटरी में मैं ही तो रहता हूँ और मैं भी पहलवान ही हूँ। मुझे आदत है तुमसे भोग लेने की।" उसने लाल जी ये सारी बात कही और फिर रोने लगा। और रोते रोते कहने लगा "जबसे वहां हूँ, कभी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया था, बस लाल जी तुमने ही मुझे दारू दिया और मेरी प्यास बुझाई। मैं तो बस तुम्हे ही जनता हूँ।"
 
ये बात सुनते ही लाल जी और वहां खड़े उनके बड़े भाई की पैरो से जैसे जमीं सरक गयी हो, उनका पहलवान बाबा को दिया जाने वाला भोग कोई पहलवान नाम का प्रेत ले रहा था।
 
"क्या! तू वो भोग ले रहा था। अर्थान वाले पहलवान बाबा ने तुझे कुछ नहीं कहा?" असमंजस में फंसे लाल जी अपने सरे प्रश्नों के उत्तर जानने में लग गए। उधर उस आदमी का परिवार चाह रहा था की जल्दी से जल्दी ये प्रेत उसका शरीर छोड़ दे और वो ठीक हो जाए।
 
"बाबा क्या कहेंगे? तुम भोग दे रहे थे मेरा नाम लेकर। और मैं ले रहा था। इसमें मेरी गलती तुम्हारी गलती तो बाबा क्यों कुछ कहेंगे? अब तुम जो कुछ भी दोगे वो सबसे आगे वाला ही लेगा , समंदर पार वाला तो नहीं।" उसने लाल जी के असमंजस के इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था वो भी सटीक।
 
मतलब वो दुसरे गाँव वाले व्यक्ति से भोग अर्थान वाले पहलवान बाबा इसलिए लेते थे क्योकि उनके बीच कोई और पहलवान नहीं था।
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#20
लाल जी का दिमाग एक दम से घूम गया, आखिर क्या करो और क्या हो जाता है।

 
"बाबा कहाँ हैं इस वक़्त इस अर्थान के?" लाल जी ने पूछा।
 
"यहीं तो हैं, उन्होंने ने मुझे पकड़ रखा है। वहां यहाँ किसकी मजाल के मुझे हरा दे। मुझे बस दारू देदो चला जाऊंगा।" उसने आस पास के लोगो को देखते हुए कहा।
 
तभी उन व्यक्तियों में से एक व्यक्ति आगे आये और लाल जी कहा की "बेटा, इसको दारु देदो और जाने दो वरना इस आदमी के शरीर को इसकी सवारी तोडती रहेगी और फिर ये महीने भर तक खड़ा भी नहीं हो पायेगा।" बात सत्य थी, किसी पहलवान और बलशाली आत्मा की आमद जब किसी के शरीर पर होती है तो उसके शरीर की शक्ति कम होती चली जाती है।
 
लाल जी ने अपने प्रश्नों पर विराम लगाया और फिर वहीँ पर पास पड़ी बोतल उठाई और एक ढक्कन दारू लेकर उसके मुंह में डाल दी। और वो व्यक्ति पीते ही नीचे गिरा और बेहोश हो गया। उसके जब होश आया था तो वो ठीक हो चुका था, पहलवान बाबा के अर्थान पर उसने दंडवत प्रणाम किया और धीरे धीरे सब वहां से चले गए और लाल जी भी अपने घर गए।
 
घर पहुँचते ही उनके बड़े भाई ने पहले पूरी घटना और जो कुछ वो करते थे लाल जी से पूछा। उसके बाद अच्छे से उनकी खबर ली, उनके आलस्य के कारण कितने ही वक़्त से पहलवान बाबा को भोग नहीं पहुंचा था और प्रेत तो रीझ गया सो और।
 
अगली बार से लाल जी की जगह उनके बड़े भाई ने अर्थान पर जाकर भोग देने की जिम्मेदारी ली और उसका निर्वाह करने लगे।
 
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