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Badlte Rishte with photos
#1
Hello guys 

This is my first story to xsoipp. As I have been silent readers since long time but today going to post a very sensuous relationship between family. Also I'll be update with image to get your more clarity and deeply imagination with your deepest desire .

Shy Shy
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Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2

बेला तुझे कितनी बार कहीं हूं कि सारा काम छोड़कर सबसे पहले तू गायों को चारा खिला दिया कर देख नहीं रही कैसे भूख से बिलख बिलख करचिल्ला रही है..( सुगंधा की तेज आवाज सुनकर बेला हड़बड़ाती हुई सारे काम छोड़ कर लगभग दौड़ती हुई सुगंधा के पास पहुंची और बोली.)

मालकिन आज मुझसे देरी हो गई है क्या करूं घर के सारे काम निपटा कर आने मै समय लग जाता है।और आप तो अच्छी तरह से जानती है कि मेरा आदमी एक नंबर का शराबी और जुआरी है। सुबह उठते ही मुझसे झगड़ा करने लगता है और इसी में यहां आने में मुझे देरी हो जाती है।

बस बस रहने दे मुझे रोज की अपनी कहानी सुनाने को जल्दी से जाकर जो कहीं उसे पूरा कर ।

जी मालकिन......( इतना कहकर बेला जाने को हुई कि तभी)

और हां गायों को चारा देकर जल्दी से नाश्ता तैयार कर दे आज खेतों की तरफ जाना है वहां पर जाकर देखें की खेतों में कितना काम हुआ है ...( इतना कहते हुए सुगंधा नहाने के लिए घर में बने बाथरूम की तरफ जाने लगी। सुगंधा की उम्र लगभग 40 या बेतालीस के करीब थी। और इस उम्र में भी 
वह बहुत खूबसूरत थी।अभी भी उसके गदराए बदन मे सेजवानी की मांदक सुगंधकिसी के भी तन बदन को उत्तेजित कर देती थी। सुगंधा शादी करके इस घर में आई थी तो फूलों सी कोमल औरअपनी चंचलता पूरे घर में बिखेर कर देखते ही देखते वह घर के सभी सदस्य की चहेती बन गई सुगंधा की सांस सुगंधा को बहुत प्यार और दुलार देती थी। इसका भी एक कारण था सुगंधा की सास अच्छी तरह से जानती थी कि उनका बेटा उनकी जमीदारी को नहीं संभाल पाएगा और वह घर की सारी जिम्मेदारी और जमीदारी सभालने का हुनर अपनी बहु सुगंधा में देखती आ रही थी....


Sungadha 

[Image: 5d11001d0cabb.jpg]
is car insurance cheaper for older cars
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#3
सुगंधा के साथ अच्छी तरह से जानती थी कि उनका बेटा गलत संगत में आ चुका है और वह भी हमेशा शराब और जुआ मैं अपनी जिंदगी और पैसे दोनों उड़ा रहा था लाख समझाने के बावजूद भी उसने किसी भी प्रकार का सुधार नहीं आया और देखते ही देखते हैं सुगंधा के साथ गुजर गई लेकिन मरने से पहले ही उन्होंने सुगंधाको अपने घर की सारी जिम्मेदारी और जमीदारी का कार्य सौंप दी थी और बोली थी कि अब से इस घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है और उन्हें अपने बेटे पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है सुगंधा भी अपने साथ की बात मानते हुए उनको यकीन दिलाई थी कि वह घर की सारी जिम्मेदारी को अपना उत्तरदायित्व समझकर बखूबी निभाएंगी। और तब से लेकर आज तक सुगंधा अपना फर्ज अच्छे तरीके से निभा रही थी।
तेज कदमों से चलती हुई सुगंधा जल्दी से बाथरूम में प्रवेश कर गई उसे इस बात की जल्दबाजी थी की आज खेतों में काम देखने जाना था और वह पहले से ही लेट हो चुकी थी, और ज्यादा लेट नहीं होना चाहती थी। इसलिए बाथरूम में घुसते ही वह अपने बदन से पीले रंग की साड़ी को उतारने लगी,,,, सुगंधा का गोरा बदन पीले रंग की साड़ी में खिल रहा था,,, बला की खूबसूरत सुगंधा धीरे-धीरे करके अपने बदन पर से अपनी साड़ी को दूर कर रही थी,,,, अगले ही पल उसने अपने बदन पर से अपनी गाड़ी को उतारकर नीचे फर्श पर गिरा दी उसके बदन पर अब केवल पीले रंग का ब्लाउज और पेटीकोट था और इन वस्त्रों में खूबसूरत सुगंधा कामदेवी लग रही थी वह कुछ पल के लिए अपनी नजर को अपने पैरों से होते हुए अपनी ब्लाउज के बीच से झांक रही चूचियों के बीच की गहरी दरार को देखने लगी,,, ना जाने क्या सोचकर उसके होठों पर मुस्कुराहट फैल गई और वहां अपने दोनों हाथों को ऊपर लाकर, अपनी नाजुक नाजुक उंगलियों से अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी,,,, यह नजारा बेहद कामुक और मादक था। हालांकि इस बेहद कामोत्तेजक नजारे को देखने वाला इसमें कोई भी नहीं था परंतु एक औरत के द्वारा अपने हाथों से अपने कपड़े उतारने की कल्पना ही मर्दों की उत्तेजना में बढ़ोतरी कर देती है। और जब बात सुगंधा की हो तो सुगंधा तो स्वर्ग से उतरी हुई किसी अप्सरा की तरह ही बेहद खूबसूरत थी, उसके बदन की बनावट उसका भरा हुआ बदन और जगह जगह पर बदन पर बने कामुक कटाव मर्दों को पूरी तरह से चुदवासा बना देते थे।,,,,

धीरे-धीरे करके सुगंधा आपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी ब्लाउज के बटन खोलते हैं लाल रंग की ब्रा नजर आने लगी और साथ ही सुगंधा की जवानी के दोनों कटोरे जो कि मधुर रस ं से भरे हुए थे। और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी भी समय वह छलक जाएंगे क्योंकि सुगंधा कि दोनों चूचियां कुछ ज्यादा ही बड़ी और गोल थी,,, और वह दोनों जवानी की केंद्रीय बिंदु सुगंधा की लाल रंग की ब्रा में समा नहीं पा रहे थे।,,, अगले ही पल सुगंधा अपने बदन पर से ब्लाउज भी उतार फेंकी,, बाथरूम में सुगंधा धीरे-धीरे अपने ही हाथों से अपने आप को वस्त्र विहीन करती जा रही थी इस समय ऊसके बदन पर मात्र पेटीकोट और लाल रंग की ब्रा ही थी।

सुगंधा बाथरूम में मात्र ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी लेकिन उसका रूप लावण्य किसी काम देवी की तरह ही लग रहा था जब वस्त्रों में सुगंधा इतनी कामुक लगती हो तो संपूर्ण नग्ना अवस्था में तो कहर ढाती होगी,,,,। सुगंधा अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर पेटीकोट की डोरी को अपनी नाजुक उंगलियों का सहारा देकर खोलने लगी,,,, और देखते ही देखते उसकी पेटीकोट उसके कदमों में जा गिरी,, इस समय का यह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो सावन अपनी बाहें फैलाए प्रकृति को अपने अंदर समेट रहा हो,,, सुगंधा के गोरे गोरे बदन पर लाल रंग की ब्रा और लाल रंग की पैंटी उसके कामुक बदन को और भी ज्यादा मादक बना रहे थे। 40 वर्ष की आयु में भी सुगंधा का बदन और खूबसूरती अल्हड़ जवानी की महक बिखेर रही थी। वैसे तो अधिकतर औरतें वस्त्र पहनकर ही स्नान करती हैं लेकिन जब इस तरह का एकांत बाथरूम में मिलता हो तो वह भी अपने सारे कपड़े, उतार कर नंगी होकर नहाने का लुत्फ उठाती है। और सुगंधा तो पहले से ही इस तरह के एकांत कि आदी हो चुकी थी।

इसलिए सुगंधा आदत अनुसार अपनी ब्रा के ऊपर खोलने के लिए अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी ब्रा के हुक को खोलने लगी इस तरह की हरकत की वजह से उसकी खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चूचियां सीना ताने और ज्यादा ऊभरकर सामने आ गई । और जैसे ही ब्रा का हुक खुला सुगंधा की दोनों की योजना आजाद परिंदे की तरह हवा में पंख फड़फड़ाने लगे,
अगर कोई अपनी आंखों से सुगंधा की नंगी चूचियां देख ले तो उसे यकीन ही ना हो कि यह एक 42 वर्षीय औरत की चूचीया है।,, क्योंकि अक्सर और ज्यादातर इस उमर में आकर औरतों की चुचियों का आकार भले ही बड़ा हो वह झूल जाती हैं,,, लेकिन सुगंधा के पक्ष में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था इस उम्र में भी उसकी चूचियां जवा ताजा और खरबूजे की तरह गोल गोल और बड़ी बड़ी थी और और देखने और आश्चर्य करने वाली बात यह थी कि,,, बड़ी-बड़ी और गोल होने के बावजूद भी उसमे लटकन बिल्कुल भी नहीं थी कहीं से भी ऐसा नहीं लगता था कि झूल गई हो,,, चॉकलेटी रंगी की निप्पल किसी कैडबरी की चॉकलेट की तरह लग रही थी जिसे किसी का भी मन मुंह में लेकर चूसने को हो जाए।
सुगंधा अपनी ब्रा को भी अपनी बाहों से निकाल कर नीचे जमीन पर फेंक दी थी एक औरत होने के बावजूद भी सुगंधा अपनी चुचियों को स्पर्स करने का लालच रोक नहीं पाई और उत्सुकता बस वह अपने दोनों हाथों से अपने दोनों खरबूजे को पकड़कर हल्के से दबाने लगी और दबाते दबाते कुछ सोचने लगी वह अपने पति के बारे में ही सोच रही थी जो कि उसकी जवानी को,

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#4
(03-08-2019, 03:08 AM)Kumba Wrote: सुगंधा के साथ अच्छी तरह से जानती थी कि उनका बेटा गलत संगत में आ चुका है और वह भी हमेशा शराब और जुआ मैं अपनी जिंदगी और पैसे दोनों उड़ा रहा था लाख समझाने के बावजूद भी उसने किसी भी प्रकार का सुधार नहीं आया और देखते ही देखते हैं सुगंधा के साथ गुजर गई लेकिन मरने से पहले ही उन्होंने सुगंधाको अपने घर की सारी जिम्मेदारी और जमीदारी का कार्य सौंप दी थी और बोली थी कि अब से इस घर की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है और उन्हें अपने बेटे पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है सुगंधा भी अपने साथ की बात मानते हुए उनको यकीन दिलाई थी कि वह घर की सारी जिम्मेदारी को अपना उत्तरदायित्व समझकर बखूबी निभाएंगी। और तब से लेकर आज तक सुगंधा अपना फर्ज अच्छे तरीके से निभा रही थी।
तेज कदमों से चलती हुई सुगंधा जल्दी से बाथरूम में प्रवेश कर गई उसे इस बात की जल्दबाजी थी की आज खेतों में काम देखने जाना था और वह पहले से ही लेट हो चुकी थी, और ज्यादा लेट नहीं होना चाहती थी। इसलिए बाथरूम में घुसते ही वह अपने बदन से पीले रंग की साड़ी को उतारने लगी,,,, सुगंधा का गोरा बदन पीले रंग की साड़ी में खिल रहा था,,, बला की खूबसूरत सुगंधा धीरे-धीरे करके अपने बदन पर से अपनी साड़ी को दूर कर रही थी,,,, अगले ही पल उसने अपने बदन पर से अपनी गाड़ी को उतारकर नीचे फर्श पर गिरा दी उसके बदन पर अब केवल पीले रंग का ब्लाउज और पेटीकोट था और इन वस्त्रों में खूबसूरत सुगंधा कामदेवी लग रही थी वह कुछ पल के लिए अपनी नजर को अपने पैरों से होते हुए अपनी ब्लाउज के बीच से झांक रही चूचियों के बीच की गहरी दरार को देखने लगी,,, ना जाने क्या सोचकर उसके होठों पर मुस्कुराहट फैल गई और वहां अपने दोनों हाथों को ऊपर लाकर, अपनी नाजुक नाजुक उंगलियों से अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी,,,, यह नजारा बेहद कामुक और मादक था। हालांकि इस बेहद कामोत्तेजक नजारे को देखने वाला इसमें कोई भी नहीं था परंतु एक औरत के द्वारा अपने हाथों से अपने कपड़े उतारने की कल्पना ही मर्दों की उत्तेजना में बढ़ोतरी कर देती है। और जब बात सुगंधा की हो तो सुगंधा तो स्वर्ग से उतरी हुई किसी अप्सरा की तरह ही बेहद खूबसूरत थी, उसके बदन की बनावट उसका भरा हुआ बदन और जगह जगह पर बदन पर बने कामुक कटाव मर्दों को पूरी तरह से चुदवासा बना देते थे।,,,,

धीरे-धीरे करके सुगंधा आपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी ब्लाउज के बटन खोलते हैं लाल रंग की ब्रा नजर आने लगी और साथ ही सुगंधा की जवानी के दोनों कटोरे जो कि मधुर रस ं से भरे हुए थे। और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी भी समय वह छलक जाएंगे क्योंकि सुगंधा कि दोनों चूचियां कुछ ज्यादा ही बड़ी और गोल थी,,, और वह दोनों जवानी की केंद्रीय बिंदु सुगंधा की लाल रंग की ब्रा में समा नहीं पा रहे थे।,,, अगले ही पल सुगंधा अपने बदन पर से ब्लाउज भी उतार फेंकी,, बाथरूम में सुगंधा धीरे-धीरे अपने ही हाथों से अपने आप को वस्त्र विहीन करती जा रही थी इस समय ऊसके बदन पर मात्र पेटीकोट और लाल रंग की ब्रा ही थी।

सुगंधा बाथरूम में मात्र ब्रा और पेटीकोट में खड़ी थी लेकिन उसका रूप लावण्य किसी काम देवी की तरह ही लग रहा था जब वस्त्रों में सुगंधा इतनी कामुक लगती हो तो संपूर्ण नग्ना अवस्था में तो कहर ढाती होगी,,,,। सुगंधा अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर पेटीकोट की डोरी को अपनी नाजुक उंगलियों का सहारा देकर खोलने लगी,,,, और देखते ही देखते उसकी पेटीकोट उसके कदमों में जा गिरी,, इस समय का यह दृश्य ऐसा लग रहा था मानो सावन अपनी बाहें फैलाए प्रकृति को अपने अंदर समेट रहा हो,,, सुगंधा के गोरे गोरे बदन पर लाल रंग की ब्रा और लाल रंग की पैंटी उसके कामुक बदन को और भी ज्यादा मादक बना रहे थे। 40 वर्ष की आयु में भी सुगंधा का बदन और खूबसूरती अल्हड़ जवानी की महक बिखेर रही थी। वैसे तो अधिकतर औरतें वस्त्र पहनकर ही स्नान करती हैं लेकिन जब इस तरह का एकांत बाथरूम में मिलता हो तो वह भी अपने सारे कपड़े, उतार कर नंगी होकर नहाने का लुत्फ उठाती है। और सुगंधा तो पहले से ही इस तरह के एकांत कि आदी हो चुकी थी।

इसलिए सुगंधा आदत अनुसार अपनी ब्रा के ऊपर खोलने के लिए अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी ब्रा के हुक को खोलने लगी इस तरह की हरकत की वजह से उसकी खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चूचियां सीना ताने और ज्यादा ऊभरकर सामने आ गई । और जैसे ही ब्रा का हुक खुला सुगंधा की दोनों की योजना आजाद परिंदे की तरह हवा में पंख फड़फड़ाने लगे,
अगर कोई अपनी आंखों से सुगंधा की नंगी चूचियां देख ले तो उसे यकीन ही ना हो कि यह एक 42 वर्षीय औरत की चूचीया है।,, क्योंकि अक्सर और ज्यादातर इस उमर में आकर औरतों की चुचियों का आकार भले ही बड़ा हो वह झूल जाती हैं,,, लेकिन सुगंधा के पक्ष में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था इस उम्र में भी उसकी चूचियां जवा ताजा और खरबूजे की तरह गोल गोल और बड़ी बड़ी थी और और देखने और आश्चर्य करने वाली बात यह थी कि,,, बड़ी-बड़ी और गोल होने के बावजूद भी उसमे लटकन बिल्कुल भी नहीं थी कहीं से भी ऐसा नहीं लगता था कि झूल गई हो,,, चॉकलेटी रंगी की निप्पल किसी कैडबरी की चॉकलेट की तरह लग रही थी जिसे किसी का भी मन मुंह में लेकर चूसने को हो जाए।
सुगंधा अपनी ब्रा को भी अपनी बाहों से निकाल कर नीचे जमीन पर फेंक दी थी एक औरत होने के बावजूद भी सुगंधा अपनी चुचियों को स्पर्स करने का लालच रोक नहीं पाई और उत्सुकता बस वह अपने दोनों हाथों से अपने दोनों खरबूजे को पकड़कर हल्के से दबाने लगी और दबाते दबाते कुछ सोचने लगी वह अपने पति के बारे में ही सोच रही थी जो कि उसकी जवानी को,

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Bhai kahani me pic kese dalte h koi idea h to bato mughe nhi ata h
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#5
Bhai dasi bees band ho gai update aage ke kaha se doge
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#6
(03-08-2019, 11:32 AM)Boob420 Wrote: Bhai dasi bees band ho gai update aage ke kaha  se doge

Exactly thats what I am thinking unless u r our own mr rohan64.
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#7
महसूस करने का सुख डॉग नहीं पाया था और ना ही सुगंधाको ही,,, अद्भुत सुख का एहसास करा पाया था,,,, सुगंधा को इस बात का दुख अब तक अखर रहा था कि ना तो वह कुछ कर पाया और ना ही उसे कुछ करने दिया यही बात सोचते हुए वह अपने दोनों खरबूजो पर हथेली का स्पर्श कराकर हटा ली और अपना मन भटकने ना देकर तुरंत अपनी पेंटी को दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ सरकाते हुए अपनी दुधिया चिकनी लंबी लंबी टांगों से होते हुए नीचे की तरफ लाई है और अगले ही पल अपनी पेंटी को भी ें उतार फेंकी,,,, अब सुगंधा बाथरूम में संपूर्ण नग्नवस्था में थी,,, इस समय सुगंधा स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी,,,। इस पल का नजारा किसी के भी लंड से पानी फेंक देने के लिए काफी था। गोरा गोरा बदन कामुकता से भरा हुआ, लंबे काले काले घने बाल जो कि उसकी कमर के नीचे भराव दार उन्नत नितंबों को स्पर्श करते थे, गोल चेहरा भरा हुआ किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं था जवानी से भरे हुए बदन पर सुगंधा की तनी हुई दोनों चूचियां कुदरत के द्वारा दी हुई संपूर्ण जवानी को पुरस्कृत करते हुए मैडल की तरह लग रही थी। 
पेट पर चर्बी का नामोनिशान नहीं था हालांकि सुगंधा किसी भी प्रकार का योग व्यायाम नहीं करती थी लेकिन जिस तरह से सारा दिन हुआ इधर उधर दौड़ती फिरती हुई काम करती और करवाती थी,,, इस कारण से उसका बदन इस उम्र में भी पूरी तरह से कसा हुआ था। मोटी मोटी चिकनी जांघें केले के तने के समान नजर आती थी,, जिसे हाथों से सहैलाना और चूमना हर मर्द की ख्वाहिश थी।,,,
जिस तरह की खूबसूरती से भरी हुई सुगंधा थी उसी तरह से बेहद खूबसूरत उसकी बेशकीमती बुर थी। जिसका आकार केवल एक हल्की सी दरार के रूप में नजर आ रही थी। हल्की सी उपसी हुई,,, या युं कहलो की गरम रोटी की तरह फुली हुई थी जिस पर हल्के हल्के सुनहरी रंग की झांटों का झुरमुट बेहद हसीन लग रहा था।,,,,। यह औरत के बदन का वह बेशकीमती हिस्सा था,,, जिसे पाने के लिए दुनिया का हर मर्द कुछ भी कर जाने को तैयार रहता है। और यह तो सुगंधा की बुर थी, जिसके बारे में सोच कर ही ना जाने रोज कितने लोग अपना पानी निकाल देते थे। 

सुगंधा का कसा हुआ बदन और उसकी पतली दरार रुपी बुर को देखकर यह अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था कि वह एक बेटे की मां है। 

https://ibb.co/y41c7Jk

समय धीरे धीरे काफी बीत चुका था इसलिए सुगंधा जल्दी जल्दी स्नान करके तैयार हो गई,,,, हल्की गुलाबी रंग की साड़ी में सुगंधा बला की खूबसूरत लग रही थी। बेला जल्दी से नाश्ता तैयार कर दी थी और सुगंधा के लिए नाश्ता परोस कर बाकी के काम में जुट गई थी।
सुगंधा नाश्ता खत्म करके खेतों की तरफ जाने के लिए तैयार हो गई थी और घर से बाहर निकलते निकलते वह बेला को,, आवाज लगाते हुए बोली।

बेला औ बेला कहां रह गई,,,,,,,?


जी आई मालकिन. ( बेला भी रसोईघर से लगभग भागते हुए सुगंधा के पास आई)

रोहन उठा कि नहीं,,,,,

जी नहीं मालकिन रोहन बाबू अभी तक सो रहे हैं,,,

अरे तो जाओ उसे जगाओ कब तक सोता रहेगा,,,,


जी मालकिन अभी जा रही हूं ( और इतना कह कर बेला रोहन को जगाने के लिए जाने लगी और सुगंधा खेतों की तरफ निकल गई)

बेला इसी तरह से दिन भर अपनी मालकिन के हुक्म पर बिना थके लगी रहती थी। इसी वजह से सुगंधा भी बेला को अधिक मानती थी सुगंधा खेतों की तरफ चली गई थी और बेला रोहन को जगाने के लिए उसके कमरे की तरफ जा रही थी, रोहन सुगंधा का बेटा था ज्योति हाई स्कूल पास कर चुका था लेकिन पढ़ाई में उसका बिल्कुल भी मन नहीं लगता था गांव के आवारा छोकरो के साथ थोड़ी बहुत उसकी संगत हो चुकी थी। सुगंधा इसलिए उसके साथ बेहद शख्ती से काम करती थी उसे इस बात का डर था कि कहीं वह भी उसके बाप की तरह निकम्मा ना हो जाए,,,, 
बेला रोहन के कमरे के करीब पहुंची तोे देखी की दरवाजा हल्का सा खुला हुआ है,,,,,

यह रोहन बाबू भी ना,,, ना जाने कब समझेंगे,,,,, बिल्कुल भी समझ नहीं है कि दरवाजा बंद करके रखें,,,,, ( बेला मन ही मन में बड़बड़ाते हुए कमरे के अंदर प्रवेश की,,,)

रोहन बाबू औ रोहन बाबू यह देखो (जमीन पर गिरी हुई तकिए को उठाते हुए ) कौन सी चीज कहां गिरी पड़ी है इसका इन्हें भान ही नहीं है,,,, (तकिए को उठा कर बिस्तर पर रखते हुए)
अरे उठ जाइए रोहन बाबू वरना मालकिन गुस्सा करेंगी,,,,

इतना कहते हुए बिना की नजर चादर के उठे हुए भाग पर पड़ी तो वह एकदम से दंग रह गई,,, और बेला का दंग हो जाना लाजिमी था क्योंकि वह चादर रोहन की टांगों के बीचो-बीच उठा हुआ था जैसे कि छोटा सा तंबू हो,, और खेली खाई बेला को समझते देर नहीं लगी कि यह चादर किस वजह से उठी हुई है,,, वह एक तक उस उठे हुए भाग को देख रही थी वह रोहन को जगाना भूल गई उसके मन में अजीब से ख्याल आने लगे,,,, बेला यह तो अच्छी तरह से समझ गई थी कि चादर का यह हिस्सा रोहन के लंड की वजह से ही उठा हुआ है,,, लेकिन बेला के लिए हैरान करने वाली बात यह थी कि रोहन की उम्र के मुताबिक चादर का उठा हुआ आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा और तगड़ा लग रहा था। एक पल के लिए तो लंड के आकार के बारे में सोच कर ही बेला के तन बदन में झुनझुनी सी फैल गई,,,,, और उसकी मांसल जांघों के बीच कसमसाहट भरी लहर दौड़ने लगी,,,,,,, 
बेला आई तो थी रोहन को जगाने लेकिन रोहन के लंड की वजह से बने तंबू को देख कर रोहन को जलाना भूल गई अब उसके मन में अजीब अजीब से ख्याल घूम रहे थे,,, अब उसके मन में ऐसा आ रहा था, की वो चादर हटा कर देखें रोहन का हथियार कैसा है क्योंकि औरत का मन होने के नाते उसके मन में रोहन के लंड को देखने की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी। 
बेला अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पा रही थी उसके हाथ खुद ब खुद आगे बढ़ते जा रहे थे,,। वह चादर को अपने हाथ में पकड़ ली थी,,,,
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#8
(03-08-2019, 12:08 PM)Raja156 Wrote: Exactly thats what I am thinking unless u r our own mr rohan64.

Rest assured about update. Enjoy
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#9
(03-08-2019, 12:18 PM)Kumba Wrote: महसूस करने का सुख डॉग नहीं पाया था और ना ही सुगंधाको ही,,, अद्भुत सुख का एहसास करा पाया था,,,, सुगंधा को इस बात का दुख अब तक अखर रहा था कि ना तो वह कुछ कर पाया और ना ही उसे कुछ करने दिया यही बात सोचते हुए वह अपने दोनों खरबूजो पर हथेली का स्पर्श कराकर हटा ली और अपना मन भटकने ना देकर तुरंत अपनी पेंटी को दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ सरकाते हुए अपनी दुधिया चिकनी लंबी लंबी टांगों से होते हुए नीचे की तरफ लाई है और अगले ही पल अपनी पेंटी को भी ें उतार फेंकी,,,, अब सुगंधा बाथरूम में संपूर्ण नग्नवस्था में थी,,, इस समय सुगंधा स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी,,,। इस पल का नजारा किसी के भी लंड से पानी फेंक देने के लिए काफी था। गोरा गोरा बदन कामुकता से भरा हुआ, लंबे काले काले घने बाल जो कि उसकी कमर के नीचे भराव दार उन्नत नितंबों को स्पर्श करते थे, गोल चेहरा भरा हुआ किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं था जवानी से भरे हुए बदन पर सुगंधा की तनी हुई दोनों चूचियां कुदरत के द्वारा दी हुई संपूर्ण जवानी को पुरस्कृत करते हुए मैडल की तरह लग रही थी। 
पेट पर चर्बी का नामोनिशान नहीं था हालांकि सुगंधा किसी भी प्रकार का योग व्यायाम नहीं करती थी लेकिन जिस तरह से सारा दिन हुआ इधर उधर दौड़ती फिरती हुई काम करती और करवाती थी,,, इस कारण से उसका बदन इस उम्र में भी पूरी तरह से कसा हुआ था। मोटी मोटी चिकनी जांघें केले के तने के समान नजर आती थी,, जिसे हाथों से सहैलाना और चूमना हर मर्द की ख्वाहिश थी।,,,
जिस तरह की खूबसूरती से भरी हुई सुगंधा थी उसी तरह से बेहद खूबसूरत उसकी बेशकीमती बुर थी। जिसका आकार केवल एक हल्की सी दरार के रूप में नजर आ रही थी। हल्की सी उपसी हुई,,, या युं कहलो की गरम रोटी की तरह फुली हुई थी जिस पर हल्के हल्के सुनहरी रंग की झांटों का झुरमुट बेहद हसीन लग रहा था।,,,,। यह औरत के बदन का वह बेशकीमती हिस्सा था,,, जिसे पाने के लिए दुनिया का हर मर्द कुछ भी कर जाने को तैयार रहता है। और यह तो सुगंधा की बुर थी, जिसके बारे में सोच कर ही ना जाने रोज कितने लोग अपना पानी निकाल देते थे। 

सुगंधा का कसा हुआ बदन और उसकी पतली दरार रुपी बुर को देखकर यह अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था कि वह एक बेटे की मां है। 
Sungdha
https://ibb.co/y41c7Jk

समय धीरे धीरे काफी बीत चुका था इसलिए सुगंधा जल्दी जल्दी स्नान करके तैयार हो गई,,,, हल्की गुलाबी रंग की साड़ी में सुगंधा बला की खूबसूरत लग रही थी। बेला जल्दी से नाश्ता तैयार कर दी थी और सुगंधा के लिए नाश्ता परोस कर बाकी के काम में जुट गई थी।
सुगंधा नाश्ता खत्म करके खेतों की तरफ जाने के लिए तैयार हो गई थी और घर से बाहर निकलते निकलते वह बेला को,, आवाज लगाते हुए बोली।

बेला औ बेला कहां रह गई,,,,,,,?


जी आई मालकिन. ( बेला भी रसोईघर से लगभग भागते हुए सुगंधा के पास आई)

रोहन उठा कि नहीं,,,,,

जी नहीं मालकिन रोहन बाबू अभी तक सो रहे हैं,,,

अरे तो जाओ उसे जगाओ कब तक सोता रहेगा,,,,


जी मालकिन अभी जा रही हूं ( और इतना कह कर बेला रोहन को जगाने के लिए जाने लगी और सुगंधा खेतों की तरफ निकल गई)

बेला इसी तरह से दिन भर अपनी मालकिन के हुक्म पर बिना थके लगी रहती थी। इसी वजह से सुगंधा भी बेला को अधिक मानती थी सुगंधा खेतों की तरफ चली गई थी और बेला रोहन को जगाने के लिए उसके कमरे की तरफ जा रही थी, रोहन सुगंधा का बेटा था ज्योति हाई स्कूल पास कर चुका था लेकिन पढ़ाई में उसका बिल्कुल भी मन नहीं लगता था गांव के आवारा छोकरो के साथ थोड़ी बहुत उसकी संगत हो चुकी थी। सुगंधा इसलिए उसके साथ बेहद शख्ती से काम करती थी उसे इस बात का डर था कि कहीं वह भी उसके बाप की तरह निकम्मा ना हो जाए,,,, 

Bela

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बेला रोहन के कमरे के करीब पहुंची तोे देखी की दरवाजा हल्का सा खुला हुआ है,,,,,

यह रोहन बाबू भी ना,,, ना जाने कब समझेंगे,,,,, बिल्कुल भी समझ नहीं है कि दरवाजा बंद करके रखें,,,,, ( बेला मन ही मन में बड़बड़ाते हुए कमरे के अंदर प्रवेश की,,,)

रोहन बाबू औ रोहन बाबू यह देखो (जमीन पर गिरी हुई तकिए को उठाते हुए ) कौन सी चीज कहां गिरी पड़ी है इसका इन्हें भान ही नहीं है,,,, (तकिए को उठा कर बिस्तर पर रखते हुए)
अरे उठ जाइए रोहन बाबू वरना मालकिन गुस्सा करेंगी,,,,

इतना कहते हुए बिना की नजर चादर के उठे हुए भाग पर पड़ी तो वह एकदम से दंग रह गई,,, और बेला का दंग हो जाना लाजिमी था क्योंकि वह चादर रोहन की टांगों के बीचो-बीच उठा हुआ था जैसे कि छोटा सा तंबू हो,, और खेली खाई बेला को समझते देर नहीं लगी कि यह चादर किस वजह से उठी हुई है,,, वह एक तक उस उठे हुए भाग को देख रही थी वह रोहन को जगाना भूल गई उसके मन में अजीब से ख्याल आने लगे,,,, बेला यह तो अच्छी तरह से समझ गई थी कि चादर का यह हिस्सा रोहन के लंड की वजह से ही उठा हुआ है,,, लेकिन बेला के लिए हैरान करने वाली बात यह थी कि रोहन की उम्र के मुताबिक चादर का उठा हुआ आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा और तगड़ा लग रहा था। एक पल के लिए तो लंड के आकार के बारे में सोच कर ही बेला के तन बदन में झुनझुनी सी फैल गई,,,,, और उसकी मांसल जांघों के बीच कसमसाहट भरी लहर दौड़ने लगी,,,,,,, 
बेला आई तो थी रोहन को जगाने लेकिन रोहन के लंड की वजह से बने तंबू को देख कर रोहन को जलाना भूल गई अब उसके मन में अजीब अजीब से ख्याल घूम रहे थे,,, अब उसके मन में ऐसा आ रहा था, की वो चादर हटा कर देखें रोहन का हथियार कैसा है क्योंकि औरत का मन होने के नाते उसके मन में रोहन के लंड को देखने की उत्सुकता कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी। 
बेला अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पा रही थी उसके हाथ खुद ब खुद आगे बढ़ते जा रहे थे,,। वह चादर को अपने हाथ में पकड़ ली थी,,,,
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#10
बेला अपनी उत्सुकता को रोक
नहीं पा रही
थी उसके हाथ खुद ब खुद आगे
बढ़ते जा रहे थे,,। वह चादर को अपने हाथ
में पकड़ ली थी,,,,
अजीब से असमंजस में फंसी हुई थी बेला,,, उसे डर भी लग रहा था और उत्सुकता भी बढ़ती जा रही थी उसे इस बात का डर था कि कहीं चादर हटाने पर रोहन की नींद ना खुल जाए और अगर नींद खुल गई तो वह उसके बारे में क्या सोचेगा हो सकता है वह अपनी मां से बता भी दे क्योंकि रोहन अभी भले ही जवान हो रहा था लेकिन वह नादान था।,,, लेकिन औरत का मन और वह भी एक प्यासी औरत का नाम मर्दों को लेकर उनके अंगों को लेकर हमेशा उत्सुक्ता से भरा होता है,,, । वह चाहे जितना भी मर्दों के अंग अंग से अवगत हों लेकिन किसी गैर मर्द के अंगों को जानने की उत्सुकता और प्यास हमेशा उनमें बराबर बनी रहती है। और यही हाल इस समय बेला का भी हो रहा था। लंड को देखने की प्यास उसके मन में बढ़ती जा रही थी बेला वैसे भी एक प्यासी और चुदक्कड़ औरत थी,,, जो कि अपनी शराबी पति से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हो पाती थी और इसके लिए अपने नौकर साथी और खेतों में काम कर रहे मजदूरों के साथ संबंध बनाने में बिल्कुल भी नहीं हीचकीचाती थी।,,, 
रोहन का तंबू चादर सहित अभी भी उसी स्थिति में तना हुआ था,,, बेला का दिल जोरों से धड़क रहा था वह कभी रोहन के मासूम चेहरे की तरफ तो कभी उठे हुए तंबू की तरफ देख ले रही थी।,,,, 
वह अपना मन पक्का करके धीरे धीरे चादर को नीचे की तरफ खींचने लगी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी। उसकी जी मैं तो आ रहा था कि वह चादर के ऊपर से ही रोहन के लंड को पकड़ ले,,,, लेकिन एक अनजाना डर रोहन की तरफ से उसके मन में बना हुआ था।,,,, धड़कते दिल के साथ बेला रोहन की चादर नीचे की तरफ खींच रही थी,,,, लेकिन इसके पहले की बेला चादर के नीचे तने हुए तंबू को अपनी आंखों से देख पाती इससे पहले ही रोहन के बदन में कसमसाहट होने लगी,, बेला एकदम से घबरा गई वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही रोहन की आंख खुल गई,,,, बेला के पास अपने आप को संभाल पाने का बिल्कुल भी समय नहीं था,,,, वह जिस स्थिति में थी,,, उसी स्थिति में मूर्ति वंत बनी रही,, रोहन भी अपनी आंखें खोल कर एक टक उसे देखे जा रहा था,,,, बेला झुकी हुई थी और रोहन के चेहरे से 1 फीट की ही दूरी पर उसका चेहरा था,,,, बेला एकदम से घबरा गई थी उसके हाथों में अभी भी चादर थी। लेकिन डर के मारे चादर पर से वह अपने हाथ नहीं हटा पाई थी।,,, इस स्थिति में रोहन से क्या कहे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था आई तो थी वह उसे जगाने लेकिन कमरे की स्थिति रोहन की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल चुकी थी,,,, लेकिन घबराते हुए उसके मुंह से बस इतना ही निकला।

उठ जाइए रोहन बाबू काफी देर हो चुकी है मालकिन गुस्सा करेंगी,,,,
( बेला इतने शब्द घबराते हुए कही थी,,, लेकिन रोहन पर जैसे बेला के बातों का बिल्कुल भी असर नहीं हो रहा था वह तो एक टक बेला को ही देखे जा रहा था।,,,, कुछ देर तक खामोशी छाई रही देना अभी भी अपनी हालत को व्यवस्थित नहीं कर पाई थी, रोहन किस तरह से उसकी तरफ देख रहा था बेला को बेहद असहज महसूस हो रहा था,,,, उसे लग रहा था कि शायद नींद से उठने की वजह से रोहन इस तरह से देख रहा है लेकिन जब बेला रोहन की नजरों के सीधान की तरफ ध्यान दीे तो,,, वह एकदम से दंग रह गई,,, क्योंकि वह उसके चेहरे की तरफ नहीं बल्कि उसकी चुचियों की तरफ देख रहा था,,,, बेला की स्थिति इससे भी खराब तब हो गई जब वह अपनी छातियों की तरफ नजर घुमााई।,,,, ब्लाउज के ऊपर का एक बटन खुला हुआ था, जिसकी वजह से बेला की बड़ी-बड़ी गोल चुचियां बाहर की तरफ झांक रही थी,,,, साथ ही चॉकलेटी रंग की तनी हुई निप्पल साफ साफ नजर आ रही थी।
और यही सब रोहन प्यासी नजरों से एकटक देख रहा था। बेला एक पल के लिए तो झेंप सी गई,,,
लेकिन अगले ही पल उसके चालाक दिमाग में ढेर सारी युक्तियां घूमने लगी,,, खेली खाई बेला रोहन की प्यासी नजरों को भाप गई,,, रोहन की जवान हो रही उम्र के मुताबिक रोहन का औरतों के बदन में और उनके अंगों में रुचि रखना स्वाभाविक था इसलिए बिना उसकी रुचि का पूरी तरह से फायदा उठाने की युक्ति अपने मन में बना ली थी। अब बेला को शर्मिंदगी का एहसास बिल्कुल भी नहीं हो रहा था। जानबूझकर अब झुकी हुई थी,,, या यूं कह लो कि अब वह जानबूझकर रोहन को अपनी चुचियों के दर्शन करा रही थी। रोहन की हालत खराब हो रही थी जिस तरह से वह नजरे गड़ाए,

बेला की ब्लाउज में से झांक रही ऊसकी नंगी चूचियों को देख रहा था उसमें उसका बिलकुल भी दोष नहीं था,,, सारा कसूर उसकी उम्र का था और बचा कुछा कसर उसके दोस्तों ने पुरा कर दिया था,,, क्योंकि पढ़ाई में उसका मन बिल्कुल नहीं लगता था और,,, गलत संगत में पड़कर औरतों को गंदी नजरों से देखना शुरू कर दिया था और यह सब उसी का नतीजा था कि इस समय वह अपनी घर की नौकरानी जिसे नौकरानी तो बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता था क्योंकि वह एक तरह से इस घर की सदस्य हो चुकी थी और रोहन ज्यादा तर बेला की निगरानी में रहता था क्योंकि वही उसका देखभाल भी करती थी। क्योंकि अधिकांश समय रोहन की मां जमीदारी संभालने में ही व्यतीत कर देती थी।

Bela ki chuchiya aise thi


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#11
You could post fast and long updates as it was in desibees.
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#12
yaar yeh toh rohan64 ki story hai ...
 
 
.................... Heart .......................

Sabhi ka khoon hai shamil yaha ki mitti mai ..
Kisi ke baap ka hindostan thodi hai ...

.....................  :s .......................
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#13
बेला के साथ साथ रोहन की भी सांसे तीव्र गति से चल रही थी।,,, रोहन को अपनी चूचियां दिखाकर उसको तड़पता हुआ देखकर बेला को मजा आ रहा था।,,, बेला चुटकी लेते हुए अंजान बनती हुई बोली।,, 

ऐसे क्या देख रहे हैं रोहन बाबू,,,( इतना कहते हुए बेला अपनी छातियों की तरफ नजर दौड़ाई और,,,
ब्लाउज में से झांक रही अपनी चूचियों को देखकर अनजान बनते हुए बोली,,,,।)


ओहहहहहहह,,, तो यहां टकटकीे लगाए देख रहे हैं रोहन बाबू,,,,,(बेला मुस्कुराकर खड़ी हुई और शरारती अंदाज में मुस्कुराते हुए बोलीो।)

बड़े शरारती हो गए हो रोहन बाबू और अब तो लगता है बड़े भी हो रहे हो,,, ( इतना कहते हुए रोहन की उत्तेजना में वृद्धि करने के उद्देश्य से जानबूझकर अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से अपने दोनों चुचियों को हल्के से दबाकर मानो की ब्लाउज में दोनों कबूतरों को एडजेस्ट कर रही हो इस तरह से अपने होठों को हल्के से दांत गड़ा कर बिना शर्माए रोहन की आंखों के सामने ही अपनी ब्लाउज के उपरी बटन को बंद करने लगी,, 

बेला की बातों को सुनकर रोहन घबरा सा गया,,, वह शर्म के मारे अपनी नजरों को इधर-उधर घुमाने लगा लेकिन बेला की की कातिल अदाओं से अपनी नजरों को ज्यादा देर तक हटा पाना उसके बस में नहीं था। इसलिए गहरी गहरी सांसों के साथ वह बेला की मादक अदाओं को देखता रहा। रोहन की हालत को देखकर बेला समझ गई थी कि उसका निशाना ठीक जगह पर जाकर लगा है।,,, बेला नजाकत भरी चाल चलते हुए रोहन की तरफ कदम बढ़ाते हुए उसके करीब पहुंच गई इस बार वह रोहन के बिल्कुल करीब थी,,, और माद क भरे स्वर में धीरे से उसके कान में बॉली,,,,।


रोहन बाबू उठ जाइए सुबह हो गई है,,,।
( और इतना कहते हुए जब वह उठ रही थी तो जानबूझकर अपना एक हाथ चादर के अंदर तने हुए तंबू पर रखकर हल्के से दबाते हुए जानबूझकर चौकते हुए बोली,,,।)

दैया रे दैया यह क्या था । ( इतना कहकर वह उसके तने हुए तंबू की तरफ देख कर मुस्कुरा दी और चुटकी लेते हुए बोली।


रोहन बाबू अब तो तुम बड़े हो गए हो और तुम्हारा वो भी,,,
( इतना कहकर बेला हंसते हुए अपनी गांड मटका कर कमरे से बाहर चली गई,,, रोहन उसे जाता हुआ देखता रहा उसका चेहरा उत्तेजना से लाल हो चुका था।)


सुगंधा तैयार होकर खेतों की तरफ जा रही थी, भरावदार बदन पर सुगंधा की नई साड़ी खूब जँच रही थी,, ऊंची नीची पगडंडियों से जाते हुए सुगंधा के पैर इधर-उधर पड़ रहे थे जिसकी वजह से,, सुगंधा की गोलाकार नितंब दाएं बाएं ऊपर नीचे की तरफ लचक जा रही थी और नितंबों में आ रही है लचकन,, तबले पर किसी थिऱकन की तरह पड़ रही थी,,,। यह नजारा बेहद कामोत्तेजना से भरा हुआ था,,, सुगंधा की कमर बलखा जाने की वजह से जिस तरह से उसकी गांड ऊपर नीचे हिल रही थी,,, देखने वालों की हालत खराब हुई जा रही थी,,,, इस तरह से सुगंधा का गांड मटका के चले जाना किसी के भी लंड में से पानी छोड़ देने के लिए काफी था।,, वैसे भी सुगंधा के बदन का नई नई साड़ी इस तरह से चिपकी हुई थी कि उसके भरावदार बदन का हर एक कटाव हर एक अंग अपना आकार लिए हुए स्पष्ट रूप से नजर आ रहा था।
सुगंधा अपनी मस्ती में खेतों की तरफ चली जा रही थी गांव के सभी मर्द बूढ़े हो या जवान सभी नजरें चुराकर सुगंधा की तरफ देखकर गरम आए भर रहे थे,,, गांव में ऐसा कोई भी शख्स नहीं था जो कि सुगंधा को आंख उठाकर नजर से नजर मिला कर देख सके,, क्योंकि सुगंधा का रुतबा इस तरह का था गांव के सभी लोगों की जमीन के साथ-साथ कुछ ना कुछ सुगंधा के पास गिरवी रखा हुआ था और,,,, गांव की सारे मजदूर सुगंधा के खेतों में मजदूरी करके ही अपना जीवन बसर कर रहे थे,,,, लेकिन इस बात का जरा भी घमंड सुगंधाको नहीं था बल्कि वह तो हमेशा ही गांव वालों की जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थी इसलिए गांव भर में सुगंधा की साख और इज्जत बहुत ज्यादा थी।,,,
लेकिन कुदरत ने सुगंधा को कुछ ज्यादा ही खूबसूरती बक्स दी थी,,, जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी गांव घर के मर्दों की नजर सुगंधा के मद भरे जवान बदन पर पड़ी ही जाती थी,,,,

सुगंधा उबड़ खाबड़ रास्तों को पार करते हुए खेतों की तरफ चली जा रही थी गांव भर के लोग जहां भी मिलते थे उसे जी मालकिन नमस्ते मालकिन करके उसकी इज्जत में इजाफा कर रहे थे और वह भी मुस्कुरा कर सबका अभिवादन स्वीकार कर रही थी।

थोड़ी ही दूर पर गांव की औरतें इकट्ठा होकर दो औरतों के झगड़े का आनंद लूट रही थी दोनों खूब एक दूसरे को गाली गलौज करते हुए लड़ रहे थे तभी एक औरत की नजर सामने से आ रही सुगंधा पर पड़ी,,,। सुगंधा पर नजर पड़ते ही वह जोर से बोली,,,


वह देखो मालकिन आ रही है,,,,।
( इतना सुनते ही गांव की सभी औरतें सुगंधा की तरफ देखने लगी क्योंकि वह लोग जानती थी कि सुगंधा झगड़े को सुलझा देगी,,,, सुगंधा भी गांव की औरतों को इस तरह से इकट्ठा हुआ देखकर उनके पास जाकर बोली,,,।)

तुम लोग इतनी भीड़ क्यों लगा रखे हो क्या हो रहा है इधर,,,,

( तभी उनमें से एक औरत ने सुगंधाको सारा मामला बता दी और सुगंधा उसकी बात सुनकर थोड़ा नाराजगी भरे स्वर में उन दोनों औरताें से बोली,,,)

यह तुम लोग क्या लगा रखी हो इतनी बड़े हो गई हो लेकिन फिर भी बच्चों की तरह झगड़ती हो, इतराती गाली गलौज करके एक दूसरे से लड़ो गे तो यह सब असर तुम्हारे बच्चों पर भी जाएगा अरे अपनी तो जैसे-तैसे गुजार ले रहे हो अपने बच्चों के बारे में तो सोचो,,,, तुम लोगों में जरा भी अक्ल नहीं हैं।,,,
( सुगंधा दोनों औरतों को नाराजगी भरे स्वर में डांट रही थी,,, और वह दोनों नजरे नीचे झुकाए सुगंधा की बात सुन रही थी,,, सुगंधा उन दोनों के झगड़े को सुलझा दी थी और जाते-जाते बोली,,,।)

आइंदा अगर मैंने तुम दोनों कोई तरह से लड़ते झगड़ते पाई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा और इतना कहकर वह खेतों की तरफ जाने लगी,,,
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#14
दोनों का झगड़ा शांत हो चुका था,,, और उन दोनों के साथ साथ गांव की सभी औरतें,,, सुगंधा को जाते हुए देख रही थी,,, एक औरत होने के बावजूद भी उन औरतों की नजर सुगंधा की मटकती हुई लाजवाब भराव दार,,, गांड पर ही टिकी हुई थी,,, गांव की औरतों का इस तरह से सुगंधा की खूबसूरती को नींहारना हीै इस बात की शाबीती देता था कि, सुगंधा की खूबसूरती को लेकर औरतों में भी किस तरह का आकर्षण था। जब औरतों का यह हाल था तो मर्दों का क्या हाल होता होगा,,, सुगंधा की खूबसूरती और उसकी मटकी हुई गांड को देखकर उनमें से एक औरत गर्म आहह भरते हुए बोली,,,
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काश भगवान ने मुझको भी मालकिन जैसी खूबसूरत बनाए होते तो मजा आ जाता,,,

हां तब तो तेरा आदमी तेरी बुर में दिन-रात लंड डालकर पड़ा रहता है,,,,।( तभी उनमें से एक औरत टहाके लगा कर बोली ,, )

वह तो अब भी मेरी बुर में लंड डालकर पड़ा रहता है लेकिन साला वह भी मालकिन का ही दीवाना है,,,।

क्यों क्या हुआ? 

वह जब भी मुझे चोदता है तो चोदते चोदते बोलता है कि,, मालकिन कितनी खूबसूरत है मालकिन की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी हैं मालकिन की गांड कितनी मस्त है,,, मालकिन की बुर कितनी मस्त होगी उस में लंड डालकर चोदने में कितना मजा आएगा


बाप रे यह सब कहता है तब तू क्या करती है?

मैं एक लात मारकर उसे खटिया पर से नीचे गिरा देती हूं और बोलती हूं कि जा जाकर मालकिन को ही चोद ले,,,

( उसके इतना कहते ही सभी औरतें हंसने लगी और अपने काम में लग गई।)

सुगंधा अपनी मस्ती में उबड़ खाबड़ रास्तों से खेतों की तरफ चली जा रही थी,,,, सुगंधा की भराव दार मटकती हुई गांड मर्दों पर अपना असर दिखा रही थी,,,, इस उम्र में भी सुगंधा की जवानी का जलवा बरकरार था। अपनी सास के द्वारा दी गई जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही थी और इसी बीच वह अपने पति द्वारा संतुष्टि नहीं पा रही थी लेकिन फिर भी सुगंधा अजीब मिट्टी की बनी हुई थी कि अपने सारे भी जरूरत पूरी ना होने के बावजूद भी वह तनिक भर भी विचलित नहीं हुई थी ना तो उसके कदम ही कहीं भटके थे और ना ही उसे अपने पति से किसी भी प्रकार का ग्लानी ही था,,,, वह तो बहुत खुश थी।,,, ऐसा नहीं था कि उसे अपनी शारीरिक अपेक्षाओं की उपेक्षा के बारे में ज्ञात नहीं था लेकिन वह शायद अपने मन से अपनी इस परिस्थिति के बारे में समझौता कर ली थी और उसे यह भी ज्ञात था कि उसके खूबसूरत बदन को ना जाने कितनी नजरें घुरती रहती हैं।
लेकिन इस बात से उसे बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता था वह अपनी मस्ती में ही कहीं भी आती जाती थी,,, क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि गांव में ऐसा कोई भी शख्स नहीं है जो कि उसके साथ गलत हरकत कर सके याद उसके मुंह पर उसे अश्लील बातें कह सकें,,,
इसलिए तो सुगंधा ज्यादातर खेतों की तरफ या गाँव मे अकेले ही घूमा करती थी ।,,,, 

कुछ देर बाद सुगंधा खेतों में पहुंच चुकी थी जहां पर गेहूं की कटाई चल रही थी मजदूर अपना अपना काम बखूबी कर रहे थे क्योंकि वह लोग भी जानते थे कि वैसे तो उनकी मालकिन नरम दिल की है लेकिन अगर दिए गए काम में किसी भी प्रकार की लापरवाही बरती जाती थी तो वह बेहद शख्ति से काम लेती थी और उसे मजदूरी से हटा भी देती थी।,,,,, इसलिए तो सारे मजदूर अपना अपना काम बड़ी इमानदारी से कर रहे थे,,,

सुगंधा खेत के किनारे खड़ी होकर मुआयना कर रही थी चारों तरफ गेहूं लहलहा रहे थे जहां तक नजर जा रही थी वहां तक सुगंधा की ही जमीन थी,,, मजदूर लगे हुए थे काम बराबर हो रहा था यह सब देख कर सुगंधा खुश हो रही थी। खेतों में काम करा रहे लाला जोकि सुगंधा का लेखा-जोखा वही संभालता था और यह बहुत ही पुराना नौकर था जो कि अभी भी बड़ी इमानदारी से अपना काम कर रहा था। 60 वर्षीय लाला की नजर जैसे ही सुगंधा पर पड़ी वह खेतों में से जल्दी जल्दी सुगंधा की तरफ चला आ रहा था। जल्दबाजी और हड़बड़ाहट में उसके पैर लड़खड़ा जा रहे थे जिसे देख कर,,, सुगंधा बोली,,

संभाल कर लाला जी कहीं गिर मत जाइएगा,,,,
( सुगंधा लाला जी की बहुत इज्जत करती थी क्योंकि वह उसके पिता के समान था और लाला जी भी सुगंधा को अपनी बेटी ही मानता था और सुगंधा की बात सुनकर जल्दी-जल्दी वह सुगंधा के पास पहुंच गया और बोला,,,।)

अरे बिटिया का ज़रूरत थी तुम्हें इधर आने की,,,
हम सब कुछ संभाल लेते,,,,। 

हम जानते हैं चाचा जी की आप सब कुछ संभाल लेते और अब तक सब कुछ संभालते तो आ ही रहे हैं,,, वह तो मेरा मन किया सौ मैं आ गई,,,,।

कोई बात नहीं बिटिया आ गई तो अच्छा ही हुआ,,, रामू को कुछ पैसों की जरूरत थी,,, उसे अस्पताल जाना था , ।

हां हां क्यों नहीं बुलाओ रामू को कहां है?

अभी बुलाए देते हैं मालकिन,,, रामु ओ रामु,,, जल्दी आ,,, मालकिन तुझे बुला रही है।
( खेतों में काम कर रहा रामू जैसे ही लाला की आवाज सुना सारे काम तुरंत छोड़ कर लाला के पास भागता हुआ आया और आते ही,,, सुगंधाको नमस्कार करते हुए बोला)

राम-राम मालकिन( इतना कहते हुए वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।)

कितने रुपयो की जरूरत है तुम्हें अस्पताल जाने के लिए,,,

तीन चार सौ मिल जाते तो मालकिन काम हो जाता,,,
( इतना सुनते ही सुगंधा अपने पर्स में से 500 500 के दो नोट निकालकर रामू को थामाते हुए बोली।)

अच्छे से इलाज करवाना और पैसों की जरूरत हो तो बेझिझक मांग लेना,,,
( सुगंधा के दिए हुए पैसे और सुगंधा की बात सुनकर रामु बहुत खुश हो गया,,, और सुगंधा की जय बोल कर वह ावापस खेतो मे जाकर काम करने लगा।,,,)
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#15
रामू के चले जाने के बाद सुगंधा और लाला दोनों,,, खेत के किनारे ऊंची पगडंडी पर खड़े थे तभी लाला बोला,,,।


मालकिन यहां धूप ज्यादा है आइए पेड़ के नीचे चलते हैं,,,। 
( लाला की बात सुनकर सुगंधा पेड़ के नीचे छांव में एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई,,, लाला सुगंधा के पास ही खड़ा हो गया और उसे फसल की कटाई की सारी बातें बताने लगा जिस तरह से काम चल रहा था उसे देखते हुए सुगंधा काफी खुश थी,,, और इस बार गेहूं की फसल कुछ ज्यादा ही हुई थी,,,।,,, )


मालकिन पिछले साल से ज्यादा इस साल गेहूं की फसल ज्यादा हुई है।,,, और अभी भी अपने गोदाम में ढेर सारा गेहूं भरा पड़ा है मैं तो कहता हूं मालकिन कि सारा का सारा गेहूं मार्केट में बेच दो,, आपकी तिजोरी धन से छलक उठेगी,,,,।

लालाजी आप मुझे मालकिन मालकिन ना कहा करीए,,, मैं आपकी बेटी के समान हूं आप सीधे मेरा नाम ले सकते हैं या तो बिटिया बुला सकते हैं,,,,।

जानता हूं बिटिया लेकिन क्या करूं शुरु से आदत जो पड़ चुकी है,,,,,,। ( और इतना कहने के साथ ही वह जमीन पर बैठने चला कि तभी उसे सुगंधा रोकते हुए बोली,,, ।)

अरे अरे यह आप क्या कर रहे हैं,,, इस तरह से नीचे क्यों बैठ रहे हैं।,,,,,,, मैं आपसे कितनी बार कहीं हूं कि आप मेरे पिता के समान हैं और इस तरह से व्यवहार कर के मुझे लज्जित ना करें,,,,।
( इतना कहते हुए सुगंधा खड़ी हो गई और लाला का हाथ पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन लाला प्यार से हाथ छुड़ाते हुए बोला,,,।)

मैं जानता हूं लेकिन क्या करूं आदत से मजबूर हूं मैं तुम्हारे बराबर नहीं देख सकता आखिरकार मालिक और नौकर में कुछ तो फर्क होता है,,,,,।


आपसे कोई बातों में नहीं जीत पाएगा,, (इतना कहते हुए सुगंधा फिर से बैठ गई,,, दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी छाई रही उसके बाद लाला खामोशी को तोड़ते हुए बोला,,,।)

मालकिन मैं तमाम उम्र इस घर का वफादार रहा हूं काफी अरसा गुजर गया मुझे एक घर के लिए नौकरी करते हुए लेकिन जिस तरह से आप सारा काम धंधा संभाल लेगा इस तरह से किसी ने भी आज तक नहीं संभाला था मुझे तो मालिक की हालत देखते हुए लगता ही नहीं था कि जमीदारी ज्यादा दिन तक टिक पाएगी लेकिन जिस तरह से बड़ी मालकीन ने आपको सारा कारोबार जमीदारी की जिम्मेदारी सोच कर गई है उनकी उम्मीद से कई गुना ज्यादा बेहतरीन तरीके से अपने सारा जमीदारी का काम संभाल ली है,,,,।
( लाला जी की बातें सुनकर सुगंधा कुछ बोल नहीं रही थी बल्कि चारों तरफ अपनी नजरें दौड़ाकर खेतों को ही देख रही थी क्योंकि वह जानती थी कि इस बारे में बहस करने से कोई फायदा नहीं खा रही बात बड़े मालिक की तो अब सुगंधा को भी अपने पति से बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। शादी करके जब वह घर में आई थी तो उसे इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि 1 दिन ऐसा आएगा कि उसे ही सब कुछ संभालना होगा,,,,,,, 
सुगंधा को खामोश देखकर लाला को लगा कि सुगंधा के पति का जिक्र छेड़ कर, उसने गलत कर दिया इसलिए वह बात को बदलते हुए गेहूं की फसल और आम के बगीचे के बारे में बातें करने लगा,,,,। जहां नजरे जा रही थी वहां तक सुगंधा के हीं खेत और बगीचे नजर आ रहे थे,,, कुछ देर तक लाला वही बैठा रहा और इसके बाद,,, उठते हुए बोला,,,।

आप यहीं बैठे रहिए मालकिन मैं काम देख कर आता हूं वरना गेहूं की कटाई आज पूरी नहीं हो पाएगी,,,, ( इतना कहकर लाला वहां से खेतों में चला गया सुगंधा चारों तरफ नजरे दौड़ाते हुए अपने बारे में सोच रही थी,,,की उसे जिंदगी में,,,
क्या मिला कुछ भी नहीं,,,, धन-धान्य से परिपूर्ण होते हुए भी उसकी जिंदगी में कुछ अधूरा था, वह मन ही मन में सोच रही थी कि,,, जिसने हैं प्यार अपनापन पाने के लिए शादी के लिए वह सपना देख रही थी,,, और यही स्नेह दुलार पाने के लिए उसने शादी भी की थी लेकिन उसे ना तो अपने पति की तरफ से अपनापन ही मिला और ना ही स्नेह प्यार की उष्मा ही प्राप्त हुई,,, पति होते हुए भी ना के बराबर ही था। सुगंधाको अपने पति से केवल स्नेह और प्यार की ही अपेक्षा थी वह सारीरीक तौर पर किसी भी प्रकार की सुख की अपेक्षा नहीं रखती थी। वह तन सुख की प्यासी नहीं थी बल्कि मनका सूख चाहती थी सुगंधा पेड़ के छांव के नीचे बैठे बैठे अपने आप को सबसे गरीब औरत और गरीब पत्नी समझ रही थी क्योंकि जमीदारी के सुख और रुआब के सिवा उसकी झोली में कुछ भी नहीं था।,,,,,, कुछ देर तक वहीं बैठे बैठे अपने मन से मनो मंथन करती रही,,,,।
दिन चढ़ चुका था गर्मी का मौसम था। ऐसे तेज धूप में हवाएं भी गर्म चल रही थी,,,,। धीरे धीरे सुगंधा के माथे पर पसीने की बूंदे उपसने लगी प्यास से उसका गला सूखने लगा,,,, उसे प्यास लगी थी इधर उधर नजर दौड़ाई तो कुछ ही दूरी पर ट्यूबवेल मैसे पानी निकल रहा था जो कि खेतों में जा रहा था,,,। ट्यूबवेल के पाइप में से निकल रहे हैं पानी को देख कर सुगंधा की प्यास और ज्यादा भड़कने लगी,,, वह अपनी जगह से उठी और ट्यूबेल की तरफ जाने लगी,, तेज धूप होने के कारण सुगंधा,,, पल्लू को हल्के से दोनों हाथों से ऊपर की तरफ उठा कर जाने लगी,,, दोनों हाथ को ऊपर की तरह हल्कै से उठाकर जाने की वजह से सुगंधा कीचाल और ज्यादा मादक हो चुकी थी,,, हालांकि समय सुगंधा पर किसी की नजर नहीं पड़ी थी लेकिन इस समय किसी की भी नजर उस पर पड़ जाती तो उसे स्वर्ग से उतरी हुई अ्प्सरा देखने को मिल जाती,,, बेहद ही कामोत्तेजना से भरपुर नजारा था। इस तरह से चलने की वजह से सुगंधा की मद मस्त गोलाई लिए हुए नितंब कुछ ज्यादा ही उभरी हुई नजर आ रही थी,,, कुछ ही देर में सुगंधा ट्यूबवेल के पास पहुंच गई और दोनों हाथ आगे की तरफ करके पानी पीने लगी,,, शीतल जल को ग्रहण करने से उसकी तष्णा शांत हो गई,,,। पानी पीने के बाद वहां मन ही मन में सोच रही थी कि काश जिंदगी भी ऐसी होती कि कुछ भी चाहती तो हाथ आगे बढ़ा कर पूरी कर लेती लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं था।,,,,,,, 
सुगंधा कुछ देर वहीं रुक कर अपने चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मार कर अपने आप को तरोताजा करने का प्रयास करने लगी,,,,। 
ट्यूबवेल के पास ही,,, झोपड़ी नुमा कच्चा मकान बना हुआ था जहां से खुसर फुसर की आवाज आ रही थी,,,। सुगंधाको कुछ अजीब सा लगा वह 
मन ही मन में सोच रही थी कि इतनी दोपहर में और इस टूटे हुए कच्चे मकान में कौन हो सकता है।,,, सुगंधा धीरे-धीरे अपने पांव अागेे बढ़ा रही थी।,,,,

सुगंधा धीरे धीरे पैर रखते हुए टूटे हुए मकान की तरफ बढ़ रही थी जैसे जैसे वह टूटे हुए मकान की तरफ आगे बढ़ रही थी वैसे-वैसे अंदर से आ रही कसूर कसूर की आवाज तेज हो रही थी लेकिन क्या बात हो रही है यह उसके समझ से परे थी। लेकिन उसे इतना तो समझ पड़ गया था कि,,, टूटी हुई झोपड़ी में 2 लोग थे क्योंकि रह रह कर हंसने की भी आवाज आ रही थी और हंसने की आवाज से उसे ज्ञात हो चुका था कि टूटी हुई छोकरी ने एक औरत और एक आदमी थे,,
सुगंधा धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सोच रही थी कि इस तरह से देखना अच्छी बात नहीं है क्योंकि हो सकता है कि उसके ही मजदूर ऊस टूटी हुई झोपड़ी में आराम कर रहे हो यह सोचकर वह कुछ देर ऐसे ही खड़ी रही,,,, लेकिन औरतों का मन हमेशा उत्सुकता से भरा ही रहता है वह जानना चाहती थी कि इतनी खड़ी दोपहरी में,,, खेतों का काम छोड़ कर इस टूटी हुई झोपड़ी में क्या करें यही जाने के लिए वह फिर से अपने कदमों को आगे बढ़ाने लगी,, जैसे-जैसे झोपड़ी के करीब जा रही थी वैसे वैसे अंदर से हंसने और खुशर फुसर की आवाज तेज होती जा रही थी,,,
जिस तरह से अंदर से औरत की हंसने की आवाज आ रही थी एक औरत होने के नाते सुगंधाको इसका एहसास हो चुका था कि, टूटी हुई झोपड़ी के अंदर एक मर्द और औरत के बीच कुछ हो रहा था जिसे देखना तो नहीं चाहिए था लेकिन सुगंधा की उत्सुकता उसे अंदर झांकने के लिए विवश कर रही थी।
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#16
खेती की जमीन होने की वजह से जमीन पर सूखे हुए पत्ते का ढेर लगा हुआ था जिसकी वजह से सुगंधा आहिस्ता आहिस्ता अपने पैरों को उस पर रखते हुए आगे बढ़ रही थी ताकि आवाज ना हो,,,, वैसे भी ट्यूबवेल चलने की वजह से आवाज आना संभव नहीं था फिर भी सुगंधा पूरी तरह से एहतियात बरत रही थी धीरे धीरे कर के पास टूटे हुए मकान के करीब पहुंच गई मकान के करीब पहुंचते ही अंतिम से आ रही आवाज साफ सुनाई देने लगी,,,,

वह कितने बड़े बड़े हैं रे तेरे,,,, इसे तो मैं दबा दबाकर पीऊंगा।,,,,, 
( सुगंधा मर्दाना आवाज में इतनी सी बात सुनते ही सन्न रह गई,, उसी समझते देर नहीं लगी कि अंदर क्या हो रहा है। सुगंधा का उत्सुक मन अंदर झांकने के लिए व्याकुल होने लगा और वह इधर-उधर नजरे थोड़ा कर ऐसी जगह ढूंढने लगे कि जहां से अंदर का दृश्य देखा जा सके टूटी फूटी झोपड़ी होने की वजह से जगह-जगह से ईंटे निकल चुकी थी,,, सुगंधा अपने आप को कच्ची दीवार में से निकली हुई ईद की दरार में से अंदर झांकने से रोक नहीं पाई और उसने अपने चारों तरफ नजरे जुड़ा कर इस बात की तसल्ली कर ली थी कोई उसे देख तो नहीं रहा है और तसल्ली करने के बाद अपनी कारी कजरारी आंखों को टूटी हुई ईंट की दरार से सटा दी,,,,,, 
सुगंधा इस समय उस बच्चे की तरह व्याकुल और ऊत्सुक हुए जा रही थी जिस तरह से,,, एक बच्चा बाइस्कोप के पिटारे में से ढक्कन हटाकर अंदर की फिल्म देखने के लिए होता है।
उसी तरह से बाइस्कोप के पिटारे का ढक्कन खुल चुका था और सुगंधा का व्याकुल मन इधर उधर ना होकर केवल टूटी हुई झोपड़ीी के अंदर स्थिर हो चुका था।,,,
निकली हुई ईंट की दरार में से,, अंदर का दृश्य देखते ही सुगंधा पूरी तरह से सन्न हो गई,,, अंदर एक गांव का ही 35 वर्षीय आदमी जोकि एकदम हट्टा कट्टा लेकिन सांवले रंग का था वह गांव की है एक औरत की बड़ी-बड़ी चुचियों को दोनों हाथों से दबाते हुए पी रहा था,,, यह नजारा सुगंधा के लिए बेहद कामोत्तेजना से भरा हुआ था। पल भर में ही सुगंधा की सांसे तीव्र गति से चलने लगी,,,,, एक बार अंदर का नजारा देखने पर सुगंधा की नजरें हद नहीं रही थी वह व्याकुल मन से अंदर का नजारा देखने लगी वह आदमी जोर जोर से उस औरत की दोनों चुचियों को दबा दबा कर जितना हो सकता था उतना मुंह में भरकर पी रहा था। और वह औरत अपनी स्तन चुसाई का भरपूर आनंद लूटते हुए बोल रही थी।

आहहहहहहहह,,,,, और जोर जोर से पी मेरे राजा बहुत मजा आ रहा है,,,,,।

( उस औरत की बेशर्मी भरी बातें सुनकर सुगंधा थोड़ी सी विचलित हो रही थी,,, कि एक औरत भला इस तरह की गंदी बातें कैसे बोल सकती है क्योंकि आज तक सुगंधा में इस तरह की बातें अपने पति के साथ कभी नहीं की थी,,,, फिर भी ना जाने की सुगंधाको उस औरत की बातें सुनकर अंदर ही अंदर आनंद की अनुभूति हो रही थी सुगंधा बार बार अपने चारों तरफ नजरें दौड़ा ले रही थी कि कोई से इस स्थिति में ना देख ले,,,,।


मेरी रानी आज बहुत दिनों बाद तु मिली है मुझे आज तो तुझे जी भर कर चोदुंगा,,,,


इसीलिए तो मैं आई हूं मेरे राजा,,, जब तक तेरा लंड मेरी बुर में नहीं जाता तब तक चुदाई का मजा ही नहीं आता,,,,

( दोनों की गंदी बातें सुगंधा के तन बदन में आग लगा रही थी एक तो बरसों बाद उसने इस तरह का नजारा देखी थी क्योंकि बरसो गुजर गए थे उसे शारीरिक संबंध बनाए,,,, इसलिए आज अपनी आंखों से इस तरह का नजारा देख कर उसके तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी।,,, सुगंधा का मन इधर-उधर हो रहा था गांव में उसकी बहुत इज्जत है अगर किसी की भी नजर इस तरह से पड़ जाती तो उसके बारे में क्या सोचेगा इसलिए वह वहां से जाना चाहती थी वह वहां से नजर हटाने ही वाली थी कि,,, उस औरत ने उसकी पजामे की डोरी खोल कर ऊसके ख ड़े लंड को पकड़कर हिलाना शुरू कर दी,,, उस औरत की हरकत को देखकर सुगंधा का धैर्य जवाब देने लगा,,,, उसके कदम फिर से वही ठिठक गए और वह ध्यान से उस नजारे को देखने लगी,,, उस औरत ने जिस लंड को अपनी हथेली में पकड़ कर हिला रही थी वह पूरी तरह से एकदम काला था। उस आदमी का इतना कड़क लंड देखकर सुगंधा अंदर ही अंदर सिहर उठी,,,, 
दोनों पूरी तरह से उत्तेजित हो चुके थे टूटी हुई झोपड़ी में जिस तरह का खेल चल रहा है उसे देखकर सुगंधा भी धीरे-धीरे उत्तेजना की तरफ बढ़ रही थी उसकी जांघों के बीच अजीब सी हलचल होने लगी थी सुगंधा अभी कुछ समझ पाती इससे पहले ही उस आदमी ने उस औरत को घुमाया और जैसे औरत भी सब कुछ समझ गई हो वह खुद-ब-खुद अपनी पेटीकोट को पकड़कर कमर तक उठा दी और झुक गई सुगंधा देखकर उत्तेजित होने लगी उसका चेहरा सुर्ख लाल होने लगा,, क्योंकि वह जानती थी कि इससे आगे क्या होने वाला है।,,
गहरी सांसे लेते हुए सुगंधा अंदर का नजारा देखती रही और वह आदमी उस औरत को चोदना शुरू कर दिया,,, उस औरत की चीख और गर्म पिचकारी की आवाज सुनकर सुगंधा को समझते देर नहीं लगी की वह औरत,,, मजे ले लेकर उस आदमी से चुड़वा रही थी। और वह आदमी भी उसकी कमर थामे उस औरत को चोद रहा था। सुगंधा का वहां खड़ा रहना उसके बस में नहीं था क्योंकि उसे अपने बदन में हो रही हलचल असामान्य लग रही थी ।वह वहां से सीधे घर की तरफ चल दी
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#17
सुगंधा खेतो पर से अपने घर पर लौट चुकी थी,,।
रास्ते भर वह टूटे हुए मकान के अंदर के दृश्य के बारे में सोचती रही ना जाने क्यों उसका नाम आज उस दृश्य से हट नहीं रहा था यकीन नहीं हो रहा कि जो उसने देखी वह सच है।,, उस आदमी का खड़ा लंड अभी भी ऊसकी आंखों के सामने घूम रहा था।,,
टूटी हुई झोपड़ी के उस कामोत्तेजक नजारे ने सुगंधा के तन बदन में अजीब सी हलचल मचा रखी थी।
जांघो के बीच की सुरसुराहट ऊसे साफ महसूस हो रही थी। बरसों बाद उसने इस तरह की हलचल को अपने अंदर महसूस की थी,,,, बार बार दोनों के बीच की गर्म वार्तालाप उसके कानों में अथड़ा रहे थे।
उसे सोच कर अजीब लग रहा था कि औरत एक मर्द से इस तरह की अश्लील बातें कैसे कर सकती है। लेकिन यह एक सच था अगर किसी दूसरे ने उसे यह बात कही होती तो शायद उसे यकीन नहीं होता लेकिन यह तो वह अपनी आंखों से देख रही थी अपने कानों से सुन रही थी इसलिए इसे झुठलाना भी उसके लिए मुमकिन नहीं था।,,,
वह घर पर पहुंच चुकी थी जानू के बीच हो रहे गुदगुदी को अपने अंदर महसूस करके अनायास ही उसके हाथ साड़ी के ऊपर से ही बुर वाले स्थान पर चले गए जिससे उसे साफ आभास हुआ कि उस स्थान पर गीलेपन का संचार हो रहा था जोंकि उसका काम रस ही था। पहली बार सुगंधा की बुर गीली हुई थी,,, इस गीलेपन के एहसास से उसे घ्रणा भी हो रही थी तो अदृश्य कामोन्माद से आनंद की अनुभूति भी हो रही थी।,,, सुगंधा की पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली महसूस हो रही थी जिसकी वजह से वह असहज महसूस कर रही थी,,,। इसलिए वह अपनी पैंटी को बदलने के लिए कमरे में दाखिल होने जा रही थी कि तभी पीछे से आवाज आई।

मम्मी कहां चली गई थी तुम मैं कब से तुम्हें ढूंढ रहा हूं।


जरा खेतों पर चली गई थी बेटा वहां का काम देखना था।,,,, अब तुम तो ना जाने कब अपनी जिम्मेदारी समझोगे इसलिए मुझे ही सारा काम करना पड़ता है अगर तुम खेतों का काम देख लेते तो मैं घर पर ही रहती।,,, 

मम्मी ने अभी इस लायक नहीं हूं कि सारा काम संभाल सको अभी तो मेरे खेलने कूदने के दिन है।
( इतना कहते हुए रोहन आगे बढ़कर सुगंधा के गले लग गया,,, , सुगंधा भी स्नेह बरसाते हुए रोहन को गले से लगा ली लेकिन गले लगते ही,, शुभम को अपने छातियों पर नरम गरम एहसास होने लगा जोकि अच्छी तरह से जानता था कि यह एहसास उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोलाईयो का था,,, पल भर में ही उसे इस एहसास ने कामोत्तेजना से भर दिया,,,, रोहन को सुबह वाला दृश्य आंखों के सामने नजर आने लगा,,, जब बेला उसे जगाने आई थी और उसकी ब्लाउज से झांकते हुए उसकी बड़ी बड़ी चूचियां वह प्यासी आंखों से घूर रहा था उस पल को याद करते ही रोहन का लंड खड़ा हो गया क्योंकि इस समय बेला से भी बेहद खूबसूरत स्तनों की गोलाईयां उसके छातियों से रगड़ खा रही थी,,,,। रोहन तो अपनी मां को अपनी बाहों से अलग नहीं होने दे रहा था वह कुछ देर तक ऐसे ही खड़ा रहा सुगंधा भी कुछ पल तक ऐसे ही अपनी बाहों में भरे हुए अपने बेटे को दुलारती रही,,,,,
लेकिन बुर से बह रहे कामरस की वजह से उसकी पैंटी कुछ ज्यादा ही गीली हो चुकी थी जिसकी वजह से वह अपने आप को असहज महसूस कर रही थी।
इसलिए बार रोहन को अपने आप से अलग करते हुए बोली तुम यहीं रुको में आती हूं,,, इतना कहकर सुगंधा कमरे के अंदर चली गई और रोहन उसे जाता हुआ देखता रहा लेकिन आज पहली बार उसका नजरिया बदला था जिसकी वजह बेलाही थी आज पहली बार उसका ध्यान सुगंधा को जाते हुए देख कर उसकी मदद की हुई गांड पर पड़ी थी और रोहन अपनी मां की भारी-भरकम सुडोल गांड को देखकर एक अजीब से आकर्षण में बँधता चला जा रहा था। हालांकि रोहन कि मैं तेरे से पहले भी अपनी मां की खूबसूरत बदन पर पड़ी हो चुकी थी लेकिन जिस तरह के नजरिए से आज वह अपनी मां को देख रहा था उस तरह से उसने कभी नहीं देखा था। 
दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर जैसे उसकी तंद्रा भंग हुई और वह अपनी इस नजरिए को लेकर अपने आप को ही कोसने लगा,,,, क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि जिस नजरिए से वह अपनी मां को देख रहा था वह गलत है इसलिए वह अपना ध्यान हटाने के लिए इधर-उधर चहल कदमी करने लगा लेकिन सुबह का नजारा और अभी अभी जो उसके सीने पर उसकी मां की नरम नरम गोल गोल चुचियों का स्पर्श हुआ था,,,, उसके चलते उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी और तो और अपनी मां को जाते हुए उसके नितंबों को देख कर और उन नितंबो का साड़ी के अंदर से ही दाएं बाएं मटकना देख कर उसका मन मस्तिष्क अजीब सी हलचल मैं धँशा चला जा रहा था।,,,,,, ना चाहते हुए भी उसका ध्यान उसी और आकर्षित हो रहा था और वह बार बार मुड़ मुड़कर बंद दरवाजे की तरफ देख रहा था तभी उसे अपने बदन में एक हरकत के बारे में पता चला,,,, तो उसकी सांसे भारी हो चली उसकी नजर अपनी पेंट की तरफ पड़ी तो उसका हाल बेहाल होने लगा उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था और पेंट में तंबू बनाए हुए था।
अपनी हालत पर उसे गुस्सा आने लगा की आखिरकार अपनी ही मां को देखकर उसका लंड क्यो खड़ा हो गया,,,,
अब रोहन का दिमाग दोनों तरफ घूमने लगा था एक मन कह रहा था कि यह सब बिल्कुल गलत है पैसा उसे सोचना ही नहीं चाहिए लेकिन दूसरी तरफ उसका मन अपनी जवान हो रही है उम्र को देखते हुए शारीरिक आकर्षण की तरफ झुकता चला जा रहा था उसका यह मन उसे बिल्कुल भी दोषी नहीं मान रहा था बल्कि उसे और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था बार बार रोहन की आंखों के सामने भी अपनी मां की मटकती हुई गांड तो बेला की ब्लाउज में से झांकती हुई चुची नजर आ रही थी।,,,, लंड का कठोर पन बिल्कुल भी कम नहीं हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी युद्ध पर जाने के लिए एक योद्धा अपना हथियार तैयार कर रहा हो लेकिन यहां किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं था।ना तो यहा मैदान मे होने वाले युद्ध की गुंजाइश थी और ना ही पलंग पर यहां पर युद्ध हो रहा था तो अपने मन से ही,,, रोहन अपने मन से लड़ रहा था किसकी सुने उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था दोनों तरफ मन थे और एक तरफ वह था। एक तरफ मन की बात सुनकर वह अपने आप को शांत तो जरूर कर लेता,,, लेकिन थोड़ी देर के लिए,, इसके बाद फिर दूसरा मन ऊस पर भारी पड़ जाता,,,, अपने आपको लाख समझाने की कोशिश करने के बावजूद भी उसका मन नहीं माना,,, और वह विवश हो गया,,, अपनी मां के कमरे के अंदर झांकने के लिए,,,,
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#18
अंदर कमरे में सुगंधा अपनी हालत को देखकर शर्म सार हुए जा रही थी,, कमरे में आते ही वह दरवाजे को बंद करके अपनी साड़ी कमर तक उठा दी थी और,,,
[Image: 5d42e15517bd5.jpg]


उसकी नजर अपनी पैंटी की तरफ गई तो वह पूरी तरह से गीली हो चुकी थी ऐसा लग रहा था जैसे उस पर पानी के छींटे पड़े हो और ऊतना भाग पूरी तरह से गिला हो चुका था,,, सुगंधा अपनी हालत पर गौर करते हुए शर्मिंदगी का एहसास कर रही थी उसे इस बात को लेकर ज्यादा शर्म आ रही थी कि वह किस तरह से चोरी चोरी टूटी हुई झोपड़ी में अंदर झांक रही थी,,,
और वह भी क्या झांक रही थी,,, एक औरत को 1 आदमी से चुदवाते हुए देख रही थी,,, वह तो उसे इस बात से राहत की कोई नहीं उसे इस हालत में देख नहीं लिया वरना अगर कोई यह देख लेता कि गांव की जमीदारीन,,, चोरी चोरी टुटी हुई झोपड़ी के पास खड़ी होकर तेज धूप में भी झोपड़ी के अंदर चुदाई कर रहे औरत और आदमी को देख रही थी तो,,, क्या होता सारे गांव में उसकी थु थु होती बदनामी हो जाती,,,,
सब ऊसे गंदी औरत के नजरिए से देखने लगते ऊसकी इज्जत माटी में मिल जाती,,,, सुगंधा मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा करने लगी थी अच्छा हुआ किसी ने उसे उस हालत में देखा नहीं,,,,
क्या सोचते हुए सुगंधा अपनी शाड़ी को एक हाथ से थामे हुए दूसरे हाथ से पेंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,,,

और बाहर रोहन व्याकुल हुए जा रहा था। हालांकि रोहन अभी तक कुछ भी ज्यादा देखा नहीं था बस बेला के अधखुले नारंगिया और अपनी मां के गोलाइयों का स्पर्श अपनी छातियों पर महसूस किया था,,,, बस इतने मात्र से ही रोहन बेहाल हुए जा रहा था इसलिए वह कमरे के अंदर झांकने के लिए विवश हो रहा था।।

सुगंधा अपनी
शाड़ी को एक हाथ से थामे हुए
दूसरे हाथ से पेंटी को
नीचे की तरफ
सरकाने लगी,,,,,,
और बाहर रोहन व्याकुल हुए जा रहा था।
हालांकि रोहन अभी तक कुछ
भी ज्यादा देखा नहीं
था बस बेला के अधखुले नारंगिया और
अपनी मां के गोलाइयों का स्पर्श
अपनी छातियों पर महसूस किया
था,,,, बस इतने मात्र से ही
रोहन बेहाल हुए जा रहा था इसलिए वह
कमरे के अंदर झांकने के लिए विवश हो रहा
था।,,,,,

[Image: 5d31d06fb0889.jpg]


सुगंधाको जहां तक याद था उसकी बुर पहली बार अत्यधिक गिली हुई थी,,,, और ऐसा होना भी लाजमी था बरसों से जिस औरत ने शारीरिक सुख को महसूस ना किया हो,,,, नाही इस तरह के संभोग वाले दृश्य देखी हो तो ऐसी औरतों के सामने अगर इस तरह का गरमा गरम नेत्री से पेश हो जाए तो उसका भी वही हाल होगा जो इस समय सुगंधा का हो रहा था,,,,,
सुगंधा धड़कते दिल के साथ अपनी पैंटी को नीचेकी तरफ सरका ते हुए,,,, उसे घुटनों से नीचे कर दी अब वह आराम से अपनी पूरी हुई बुर को देखने लगी सुगंधा काफी दिनों बाद अपनी खूबसूरत बुरको निहार रही थी,,,, सुगंधा के चेहरे पर मासूमियत फेली हुई थी,,, ठीक वैसी ही मासूमियत देसी मासूमियत एक मां अपने छोटे से बच्चे को देखते हुए महसूस करती है। अपनी खूबसूरत गरम रोटी की तरह फुली हुई बुर को देखकर वह मन ही मन सोचने लगी कि,,,,,

Roti ki trh fuli Hui choot

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कुछ भी तो नहीं बदला आज भी वैसी ही दिखती है जैसे कि जब वह कुंवारी थी तब दिखती थी बस हल्के हल्के बालों का झुरमुट सा बन गया है और वह भी साफ कर दे तो आज भी 18 साल की सुगंधा ही लगेगी,,, सुगंधा से रहा नहीं गया और वह हल्के से अपना हाथ नीचे की तरफ बढ़ा कर हथेलियों से अपनी बुर को सहलाने लगी,,, ऐसा करने पर सुगंधा को आनंद की अनुभूति हो रही थी वह हल्के हल्के अपनी फुली हुई बुर पर झांटों के झुरमुटों के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दी,,,,, सुगंधा अपनी ही हरकत की वजह से कुछ ही पल में उत्तेजित होने लगी उसकी सांसे तेज चलने लगी,,,, हथेली का दबाव बुर के ऊपरी सतह पर बढ़ने लगा लेकिन अपनी बढ़ती हुई और तेज दौड़ती हुई सांसो पर गौर करते ही वह अपने आप को संभाल ली जैसे कि अब तक अपने आप को संभालती अा रही थी।,,,, वह अपनी स्थिति पर काबू ना पानी की कमजोरी को अच्छी तरह से जानती थी वह जानती थी कि अगर वह कमजोर हो गई तो आगे बढ़ती ही जाएगी और फिर बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलने वाला है क्योंकि अपने पति से तो उसे अब किसी भी प्रकार की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी और अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने का मतलब था किसी गैर मर्द का सहारा लेना और ऐसा करने पर पूरे खानदान की बदनामी और जमीदारी का रूआब भी जाने का डर बना हुआ था।,,,,
इसलिए सुगंधा पल भर में ही अपने आप पर काबू पाकर घुटनों के नीचे फंसी हुई पेंटी को पैरों का सहारा लेकर अपने लंबे गोरे पैराे से बाहर निकाल दी,,,,
यह नजारा बेहद कामुक लग रहा था एक हाथ से सुगंधा अपनी सारी को संभाले हुई थी और कमर के नीचे का भाग पूरी तरह से संपूर्ण नग्नावस्था में था।
भरावदार सुडोल खुली हुई गांड का गोरापन दूध की मलाई की तरह लग रहा था,,, साथ ही मोटी चिकनी जांगे केले के तने की समान चमक रही थी।,,,, सुगंधा वैसे ही हालत में एक हाथ से अपनी साड़ी को पकड़े हुए अलमारी की तरफ बढ़ी अपने कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ाने की वजह से उसकी भारी भरकम नितंबों का लचक पन बेहद ही मादक लग रहा था। इस स्थिति में अगर कोई भी सुगंधा के दर्शन कर ले तो उसका जन्म सफल हो जाएं।,,,
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#19
हालांकि रोहन कमरे के बाहर बेचैन हो रहा था अंदर जाने के लिए लेकिन उसे यह नहीं पता था कि वास्तव में उसकी मां कमर के नीचे से पूरी तरह से नंगी होकर कमरे में घूम रही है। अगर इस बात का उसे पता चल जाता तो शायद उसका लंड पानी छोड़ देता क्योंकि जिस इसलिए मैं उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और वह भी अपनी मां के ही चलते तो जाहिर सी बात थी कि अगर ऐसी अवस्था में वह अपनी मां को संपूर्ण व्यवस्था की हालत में दर्शन करने का तो उसके लंड से पानी छुट ही जाता। वह अंदर देखने का जुगाड़ बना रहा था लेकिन कोई भी जुगाड़ उसका सफल नहीं हो पा रहा था,,,,। अभी भी उसके पेंट में पूरी तरह से तंबू बना हुआ था।,,,,,

और कमरे के अंदर सुगंधा अलमारी खोलकर अपनी पैंटी ढूंढ रही थी।,,,,, और आलमारी का ड्राइवर खोल कर वह अपनी गुलाबी रंग की पैंटी बाहर निकाल ली और वापस अलमारी को बंद कर दी,,,,, सुगंधा बिस्तर के करीब आकर फर्श पर गिरी हुई पेंटिं को उठा कर बिस्तर के नीचे छुपा दी,,,, और अपनी गुलाबी रंग की पैंटी को इधर उधर घुमा कर देखने सकी गुलाबी रंग की पैंटी सुगंधा को बेहद पसंद थी और अलमारी में गुलाबी रंग की ढेर सारी पैंटी रखी हुई थी हालांकि अब यह शौक उसे ज्यादा पसंद नहीं था क्योंकि अपने अंतर्वस्त्र,,,, दिखाने का शोक अपने पति के बेरुखेपन की वजह से खत्म हो चुका था।,, लेकिन आज अपनी फुली हुई बुर को देखकर ना जाने कि उसका मन गुलाबी रंग की पैंटी पहनने को हो गया था।
इसलिए वह नीचे की तरफ झुक कर अपने एक पैर को पेंटी के एक छेद में डाल दी और अगला पैर उठा कर दूसरे छेद में डाल दी,,,, रोहन का जुगाड़ सफल होता नजर आने लगा। उसे कमरे की खिड़की के बारे में याद आ गया क्योंकि हमेशा हल्की सी खुली हुई रहती थी और वह मन में प्रार्थना करके उस खिड़की की तरफ आगे बढ़ा कि आज भी वह हल्की सी खुली हुई हो,,, ओ खिड़की के पास पहुंचते ही वह खुशी से झूम उठा जैसे कि सच में उसकी प्रार्थना स्वीकार कर दी गई हो,,,, खिड़की आज भी हल्की सी खुली हुई थी रोहन तुरंत खुली हुई खिड़की के पल्ले की ओट से अंदर की तरफ झांकने लगा,,,,, पहले तो वो अंदर इधर उधर नजर दौड़ा या उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था अंदर ट्यूबलाइट की रोशनी फैली हुई थी कुछ ना नजर आने पर उसे निराशा महसूस होने लगी लेकिन तभी बात नहीं टूटा बदलकर देखने की कोशिश करने लगा तो बिस्तर के पास उसकी मां खड़ी नजर आ गई
सुगंधा की पीठ रोहन की तरफ थी रोहन की नजरें अपनी मां की पेट की तरह की गई और जब उसकी नजरें उसकी मां के हाथों की हरकत की तरफ पहुंची तब तक देर हो चुकी थी,,, पेंटी पहनकर वाह अपनी साड़ी को नीचे गिरा चुकी थी,,,, रोहन को बस उसकी मां की गोरी गोरी हल्किसी पिंडलिया ही नजर आई,,,
लेकिन इसका आभास उसे हो गया था कि उसकी मां ने साड़ी को नीचे की तरफ छोडी थी,,,, जिससे उसे समझ में आने लगा कि उसकी मां ने कुछ तो जरूर कर रही थी हो सकता है कि वह नंगी हुई हो या कुछ और भी करती हो लेकिन नंगी होने का आभास होते ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,
रोहन की नजर एक बार फिर से साड़ी के ऊपर से ही अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर पहुंच गई और उस अंग को कल्पना करके लगना वस्था में देखने की कोशिश करने लगा लेकिन रोहन अभी भी साड़ी के अंदर के अंग के नग्न वास्तविकता से अनजान था वह नहीं जानता था कि औरत नंगी होने पर कैसी दिखती है उसके अंग कीस इस तरह के नजर आते हैं,,,,,
रोहन अपनी मां को देखते हुए कुछ और कल्पना कर पाता इससे पहले ही उसकी मां दरवाजे की तरफ आगे बढ़ने लगी और रोहन तुरंत भाग कर कमरे से दूर चला गया इसके बाद सुगंधा खुद ही अपने लिए और अपने बेटे के लिए खाना निकाल कर लेकर आई और दोनों बिना बात किए भोजन करने लगे सुगंधा इस वजह से खामोश होकर खाना खा रही थी कि उसके जेहन में अभी भी टूटी हुई झोपड़ी के अंदर के संभोगनिक दृश्य घूम रहे थे,,,,
और रोहन शांत होकर इसलिए खाना खा रहा था कि आज सुबह-सुबह बेला की झूलती हुई चुचीयो को देखकर,,, कामोत्तेजना वश अपनी मां को देखने का नजरिया बदल गया था।
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#20
[Image: 5d2ded4594666.jpg]

Sungadha
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