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Adultery यादों के झरोखे से
#48
Heart 
स्टेशन पहुँच कर मैंने इन्क्वायरी पर देखा तो पता चला कि ट्रेन राइट टाइम है यानी के पंद्रह मिनट बाद ट्रेन आ रही थी। मैं वहीं स्टेशन पर पंजाबिन लड़कियों की फूली फूली गांड और मस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर टाइम पास करने लगा। 

थोड़ी देर में प्लेटफार्म पर गाडी आ गयी। मैं जल्दी से S 5 की तरफ बढ़ा जिसमे मामी और सायरा का रिजर्वेशन था। डिब्बे के सामने पहुँच कर मैं उन लोगों को ढूँढने लगा, तभी किसी ने पीछे से मेरे कंधे पे हाथ रख कर कहा, "सग़ीर भैय्या ! कहाँ देख रहे हो? हम लोग उतर कर इधर खड़े हैं"

मैंने देखा कि एक बड़ी मस्त तकरीबन 5 फुट 7 इंच हाईट वाली लड़की मेरे पीछे खड़ी थी व उसके साथ एक औरत बुर्के में एक एयर बैग व एक स्काई बैग लिए खड़ी थी। 

मेरे चेहरे पे असमंजस के भाव देख कर वह फिर बोली, "क्या सग़ीर भैय्या! पहचाना नहीं? अरे मैं सायरा ... और ये अम्मी"

"ओहो! कैसे पहचानूं? मामी बुरके में है और तू इत्ती बड़ी हो गयी है, पिछली बार जब मिली थी तो फ्राक पहना करती थी" -मैंने उसकी शर्ट से झांकतीं बड़ी बड़ी चूचियों को घूरते हुए कहा

"आय हाय आय! जैसे पिछली बार ज़नाब ऐसे ही छः फुटा थे, सिर्फ तीन साल ही मुझसे बड़े हो" -सायरा मेरे सीने पे मुक्का मारती बोली

"अरे तुम दोनों यहीं लड़ते ही रहोगे या अब चलोगे भी" -मामी ने कहा

“हाँ हाँ चलो" कह कर मैंने कुली को बुला कर उसे सामान थमा दिया और हम लोग स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिए। मेरी निगाह सायरा की फूली हुई गांड और उसकी खरबूजे जैसी चूचियों से हट नहीं रही थी। 

मुझे ऐसे देखते सायरा बोली, "किधर ध्यान है ज़नाब का"

"कहीं नहीं,तुझी से तो बात कर रहा हूँ"

"हाँ, ज़नाब बात तो मुझ से कर रहे है लेकिन नज़रें कहीं और भटक रहीं है"

"अरे नज़र तो नज़र है, जहां अच्छी चीज़ दिखाई देगी वहीं तो टिकेगी"

मैं उसकी बोल्डनेस से भली भांति परिचित था और उसकी यही आदत मुझे बचपन से पसंद भी थी।

"ओहो, परन्तु इसका मतलब ?"

"मतलब क्या ये तुम्हारी बात का ज़बाब था"

"आपकी गोल मोल बात करने की आदत गयी नहीं, अरे यार क्यू लड़कियों जैसा शरमाते हो। खुल के कहो ना कि सायरा तू मुझे अच्छी लग रही है"

"वाह वाह अपने मुंह ही अपनी तारीफ़, कभी आईना देखा है, बिलकुल बंदरिया लगती है"

"अच्छा जी! मैं बंदरिया लगती हूँ। शायद तभी मेरे शरीर को इतनी देर से घूर रहे हो जैसे नज़रों से ही घोल के पी जाओगे"

इसी तरह नोक झोंक करते हम स्टेशन के बाहर आ गए। मामी थोडा धीरे चल रहीं थी सो बाहर आकर मैंने कुली को पैसे दिए और मामी का इंतजार करने लगे।

मामी के आते ही मैंने उनसे कहा, "आप दोनों के लिए मैं ऑटो किये दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास बाइक है"

"नहीं मैं तो आपके साथ ही बाइक से चलूंगी" -सायरा बच्चों सी जिद करती बोली

"ऐसा करते है सग़ीर! इसे तू बाइक पर ही बिठा ले और हम लोग पहले हॉस्पिटल ही चलते है, दीदी को देखे बिना मुझे सुकून नहीं मिलेगा"

"ठीक है, ऐसा ही करते है" -मैंने ज़बाब दिया मामी को ऑटो में बिठा कर मैंने स्टैंड से बाइक निकाल कर स्टार्ट की और सायरा को साथ लेकर हम अस्पताल के लिए चल दिए। 

सायरा ने पीछे से मुझे पकड़ कर अपनी ठुड्डी मेरे कंधे पर और अपने दोनों हाथ मेरी जाँघों पर रख लिए। इस पोजीशन में उसकी चूचियां मेरी पीठ में धंसी जा रहीं थीं।

"कैसे बैठी हो, सब देख रहे है... हम घर के अन्दर नहीं है सायरा, सड़क पर है। ऐसा लग रहा है कि तुम मेरी बहन नहीं कोई गर्ल फ्रेंड हो" -मैंने सायरा से फुल मज़ा लेते हुए कहा

"ओ हो तो ज़नाब अगर घर के अन्दर हो तो मुझे ऐसे चिपका कर रक्खेंगे" -सायरा मेरी पीठ से और लिपटते बोली

"घर में अगर तुम यूं लिपटना चाहो तो कम से कम दूसरे मज़ा लेने वाले तो नहीं होंगे, यहां सड़क पर सब मज़ा ले रहे है"

"वाह सिर्फ चिपक के बैठने से ही दूसरों को मज़ा आ जाता है? और फिर जब मज़ा आने वाला काम करेंगे तो फिर उनका क्या हाल होगा" -सायरा हंसती हुई बेबाकी से बोली

तभी अस्पताल आ गया और मैंने सायरा को उतार कर बाइक स्टैंड पर लगा दी। हम सब अन्दर जा कर मामी के रूम में पहुँच गए। वहां मामी को डॉक्टर ने ड्रेसिंग करके तैयार कर दिया था लेकिन दीदी ने घाव को देख कर आज रात और यहीं हॉस्पिटल में रुकने की कह दी थी। 

हालांकि मामी घर जाने की बहुत जिद कर रहीं थीं लेकिन हम लोगों के समझाने पर एक रात और रुकने को मान गयीं थीं। छोटी मामी ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह तो हॉस्पिटल में ही रुकेंगी और कल सबके साथ ही घर जाएँगी। 

अंत में यह तय हुआ कि मैं दीदी और सायरा को लेकर घर चला जाऊं बाकी वो तीनो लोग वहीं मामी के साथ हॉस्पिटल में रुकेंगे। चूंकि सायरा का सामान भी था और लोग भी तीन थे अतः मैंने ऑटो करना ही मुनासिब समझा। बाइक वहीं हॉस्पिटल में मामू के पास छोड़ कर हम तीनों ऑटो से घर चल दिए।

ऑटो में सायरा बीच में बैठी थी और मेरी बाजू से उसकी लेफ्ट चूची दब रही थी , उसने भी अपना एक हाथ मेरी जांघ पर बेफिक्री से रक्खा हुआ था। जब भी कोई हल्का सा झटका लगता तो मैं जानबूझ कर अपनी बाजू से उसकी चूची मसल देता था लेकिन वह इन सब बातों से अनजान मस्त बैठी थी।

घर पहुँच कर मैंने ऑटो का पेमेंट करके सामान अन्दर रखवा दिया। सायरा रज़िया के गले लग के खूब मस्ती से बतिया रही थी। अन्दर आ कर मैंने घडी देखी तो टाइम साढ़े नौ से ऊपर ही हो रहा था।

"दीदी, साढे नौ बज चुके है, बड़ी भूख लगी है। आप लोग फ़टाफ़ट खाना लगाओ तब तक मैं चेंज करके आता हूँ" -कह कर मैं अन्दर कमरे में चला गया। 

अन्दर जाकर मैंने अपने कपडे उतार दिए। मैं सिर्फ अंडरवियर व बनियान में था कि तभी सायरा और रज़िया अन्दर आ गयीं। उन्हें देख कर मैं झेंप कर अपनी लुंगी तलाशने लगा क्योंकि जैसा कि आप सभी जानते ही है की इन रेडीमेड अंडरवियर में लंड गांड सब क्लियर पता चलती है।

"चल चल सायरा, तू भी फ़टाफ़ट फ्रेश होकर चेंज कर ले फिर हम सब खाना खाते हैं, मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है" -मैंने सायरा को बोला।

वो लोग कमरे से बाहर चले गए और मैं भी बाहर किचिन के पास लाबी में पड़ी डाइनिंग टेबल पर बैठ गया जिस पर दीदी खाना लगा रहीं थीं। दीदी ने अपनी वही ड्रेस यानी पेटीकोट और टॉप पहन रखा था। 

तभी रज़िया और सायरा भी चेंज करके डाइनिंग टेबल पर आ गये। सायरा ने एक ढीला ढाला गाउन पहन रखा था जिसमे उसकी चुचियों की तनी हुई घुन्डियाँ साफ़ साफ़ उठी हुई नज़र आ रहीं थी।

"ये क्या पहन रखा है, इस ड्रेस में तेरा सब कुछ दिखाई दे रहा है" -दीदी ने धीरे से सायरा को टोका

"अरे दीदी, सारा दिन बॉडी कसी रहती है इसलिए रात में इसे बिलकुल फ्री करके हमें सोना चाहिए" -सायरा बेझिझक बोली

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 15-05-2024, 01:33 PM



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