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Adultery यादों के झरोखे से
#44
Heart 
दोस्तों एक बात आप ज़रूर नोट करना कि जो स्त्रियाँ अपने जीवन में भरपूर सम्पूर्ण सेक्स का आनंद लेतीं है अर्थात अपनी चूत को पूरी तरह संतुष्ट होने तक चुदवातीं है उनके चहरे पर एक अलग तरह का नूर होता है व जो इस सुख को नहीं भोग पातीं है या जिनकी चूत प्यासी रह जाती है उनके चहरे की चमक धीरे धीरे चली जाती है। कुल मिला कर उनका चेहरा ही उनकी सेक्स लाइफ का आईना होता है।

कुछ इसी तरह की चमक मुझे रज़िया के चेहरे पर नज़र आ रही थी। मैंने पीछे से जाकर उसकी चूचियों को धीरे से मसलते हुए नाज़ुक गालों को चूम लिया।

"क्यूं अभी भी दिल नहीं भरा क्या? अभी कुछ मत करो भाईजान, दीदी किचिन में हैं... उन्हें पता चल गया तो मुझे कच्चा चबा जायेंगीं, सोचेंगीं मेरे माल पर हाथ साफ कर रही है" -रज़िया ने बड़े प्यार से मेरे हाथों को अपनी चूचियो से हटाते हुए कहा और एक गाढा सा मीठा चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया।

चूंकि मैंने इस चुदाई के चक्कर में सुबह से कुछ खाया भी नहीं था सो इस वक़्त मेरे पेट में बड़े बड़े चूहे उछ्ल कूद कर रहे थे।मैंने रज़िया से पुछा, "कुछ खाने को है क्या, बहुत तेज़ भूख लगी है"

"हाँ दीदी ने नमकीन सेवइयां बनाई है क्योंकि अब खाने का वक़्त तो रहा नहीं , पूरा खाना शाम को बना लेंगे। वो आपको जगाने जाने ही वालीं थीं , अभी हम लोगों ने भी नहीं खाया है" -रज़िया ने हमेशा की तरह बड़ी शालीनता से ज़बाब दिया

"तो चल जल्दी से सबका खाना लगवा ले, अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही है" -मैंने बड़ी बेसब्री से कहा

तभी दीदी हाथ में सेवइयों की प्लेट लिए किचिन से आ गयीं और मुस्कराते हुए बोलीं, "मुझे मालूम था की तू उठते ही भूख भूख चिल्लाएगा"

उन्होंने व्हाइट कलर का वी गले का टॉप और नीले रंग का पेटीकोट पहन रखा था। पेटीकोट का नाडा कमर पर साइड में करके बांधा था जिससे उसके कट से उनकी नंगी कमर का गोरा गोरा थोडा सा हिस्सा नुमाया हो रहा था क्योंकि अन्दर उन्होंने पेन्टी नहीं पहनी थी। 

यही अगर नार्मल तरीके से बंधा होता तो शायद कमर की जगह उनकी छोटी छोटी झांटे दिखाई दे रहीं होती। कुल मिला कर इस अजीब पहनावे में भी वह गज़ब की सेक्सी लग रहीं थीं , उनकी चाल और बातचीत के अंदाज़ से लग रहा था कि उनकी चूत व गांड में दवा से ज़बरदस्त आराम हुआ है और सबसे बड़ी बात दो में से कोई भी चुदने के बाद भी मुझसे नाराज़ नहीं थीं। 

सो मैंने अब पूरी तरह से निश्चिन्त होकर उनके हाथ से प्लेट लेकर सेवइयां खानी शुरू कर दीं।

तभी दरवाजे की घंटी बजी तो दीदी ने रज़िया से कहा, "देख तो कौन है"

रज़िया ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाज़ू की दुकान का नौकर था. उसने बताया कि अस्पताल से मामू का फ़ोन है, वो किसी सग़ीर से बात करना चाहते हैं.

मैने बताया ‘मैं ही सग़ीर हूँ’ फिर मैं टीशर्ट पहन कर उसके साथ चला गया.

लौट कर सारी बात दीदी और रज़िया को बताते हुए बोला,"दीदी! मामू का फोन था, कह रहे थे कि अम्बाला से मामी की छोटी बहन और उनकी बेटी रात की ट्रेन से लुधियाना पहुँच रहे हैं, दूसरी बात यह कि मामी की हालत में बहुत आराम है जिससे डॉक्टर का कहना है कि अगर हम चाहें तो मामी को आज ही घर ले जा सकते है। अब आप अपनी राय दीजिये कि मामी को आज ही ले आयें या कल ही लाया जाए, वैसे मेरी राय में अगर हम कल लेकर आयें तो वही ज्यादा उचित रहेगा , कहीं कुछ उल्टा सीधा न हो जाये "

चूंकि मैं आज रात दोनों बहनों को खुल कर ढंग से चोदने का मज़ा लेना चाह रहा था जो शायद अम्मी और मामू के आने से संभव न हो पाता और फिर कबाब में हड्डी बनने वैसे भी मामू की साली और उनकी बेटी जो दोनों ही बड़ी चिपकू थीं, आ ही रहीं थीं सो मुझे अपनी रात का मज़ा खटाई में पड़ता दीख रहा था। यही कारण था कि मैं आज मामी को घर नहीं लाना चाह रहा था।

"तू ठीक कह रहा है, अम्मी अगर आज रात वहीँ अस्पताल में ही रहें तो ज्यादा सही रहेगा क्योंकि उनका घाव बहुत ही गहरा था" -दीदी ने चिंतित होते हुए कहा

"अगर आप ही मामू को चल कर समझायें तो ज्यादा सही रहेगा" -मैंने दीदी को कहा

"ठीक है, अभी पौने छह बजे है, मैं पंद्रह मिनट में तैयार हो जाती हूँ पर ये बता सायरा की ट्रेन कितने बजे की है"

"सात बजे की"

"ओ हो फिर तो वक़्त नहीं बचा है तू मुझे अस्पताल छोड़ कर स्टेशन चले जाना और सायरा व खाला को लेकर वहीं अस्पताल आ जाना। तब तक मैं अम्मी की कंडीशन देख कर डॉक्टर से भी बात कर लेती हूँ"

"ये ठीक रहेगा दीदी" -मैंने दीदी से कहा

दीदी अपने पेटीकोट का नाडा खोलते हुए अन्दर वाले कमरे की तरफ कपडे बदलने चलीं गयीं। मैंने घूम कर रज़िया की तरफ देखा, वो मेरी तरफ देख के धीमे धीमे मुस्करा रही थी। मैंने आगे बढ़ कर उसे अपने से कस कर चिपका लिया, उसने भी मेरे गले में अपनी बांहे डाल के बंद आँखों के साथ अपने होंठ मेरी तरफ बढ़ा दिये। 

मैंने भी उसकी भावनाओ को समझते हुए उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसते हुए उसके चूतडों को मसलना शुरू कर दिया। मेरा लंड मेरी जींस में खडा होकर उसकी नाभि से रगड़ता हुआ मुझे दिक्कत दे रहा था। 

"आज तो दोबारा शायद संभव नहीं होगा भैय्या, आपने उस बेचारी की बहुत बुरी हालत कर दी है। ज़रा सा जोर लगते ही M C की तरह ब्लीडिंग होने लगती है। सूज के कुप्पा हो गयी है बेचारी, इतना दर्द हो रहा है कि पेंटी भी नहीं पहनी जा रही है।" -रज़िया मेरे सीने से चिपक कर बोली।

मैंने अब तक की ज़िन्दगी में कई लौंडियों को चोदा था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे रज़िया को चोदने के बाद उससे बड़ा लगाव हो गया था। मैंने मन ही मन कुछ निश्चय कर लिया और उसके टॉप में अन्दर हाथ डाल कर ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को मसलते हुए उसके मुंह में अपनी जीभ घुसा दी। 

तभी पीछे से दीदी के खांसने की आवाज़ आयी तो वह मुझ से छिटक कर अलग हो गयी। दोस्तों दोनों को ही यह अच्छी तरह पता था कि मैं उनको ढंग से चोद चुका हूँ परन्तु शायद शर्म या रिश्तों की उस दीवार के कारण वो एक दूसरे के सामने अनजान शो कर रहीं थीं लेकिन मैंने भी इस दीवार को गिराने की ठान ली थी।

"दीदी, वो जो दवा मैं सुबह ले कर आया था वो अभी बची होगी , उसमे से ज़रा एक खुराक दे दो" -मैंने दीदी से खुल कर पूछा

"वो वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखी है" -दीदी ने नज़रें चुराते ज़बाब दिया

"लो, ये खा लो, दो तीन घंटे में आराम मिल जायेगा" -मैंने दवा की एक खुराक ला कर रज़िया को देते हुए कहा- "दीदी, जल्दी चलो लेट हो रहे है"

"चल ना, मैं तो कब से तैयार हो चुकी हूँ" -दीदी ने कहा। 

दीदी ने इस समय डार्क ब्लू जींस और स्काई ब्लू कलर का मैचिंग टॉप पहन रखा था। इस ड्रेस में वो बड़ी धांसू आइटम लग रहीं थीं। 

मैंने आगे बढ़ कर उनके दोनों होठ चूमते हुये कहा, "हाय हाय, कहीं नज़र न लग जाये"

"चल हट" -दीदी का चेहरा लाल हो गया जबकि रज़िया की हँसी निकल गयी। उसको हंसते देख मुझे अन्दर ही अन्दर बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं दीदी को लेकर अस्पताल की तरफ लेकर चल दिया।

दीदी के साथ हुई बेरहमी वैसे शायद नहीं होती परन्तु मेरे दिमाग में एक बात घर किये थी कि ऊपर वाले ने बड़ी मुश्किल से ये मौका दिया है और अगर यह निकल गया तो फिर यह मौका दोबारा कब आएगा पता नहीं। सिर्फ यही वजह थी जो मैं बिलकुल भी ठंडा करके न खा सका ।

और रज़िया का तो मुझे सपने में भी गुमान नहीं था कि उसकी चूत मुझे ऐसे वो खुद परोस कर दे देगी। कुल मिलाकर मुझे आपी को चोद कर भी वो मज़ा नहीं आया था जो दीदी और उसके बाद रज़िया को चोद कर मिला।

आपी के साथ बंदिशें बहुत थीं। ऐसे लण्ड नहीं डालना है वैसे डालो, ऐसे नहीं चोदना है वैसे चोदो वगैरह वगैरह। यहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ, दूसरी तो चुपचाप सारा दर्द खुद ही पीकर मुझे हर तरह से खुश करने में लगी थी।

लुधियाना आकर मुझे ये दोनों ही तरह के अनुभव बहुत मस्त लगे। कुल मिलाकर आपी और हनी की चूत की रत्ती भर भी कमी महसूस नहीं हो रही थी। यही सब सोचता हुआ कब हॉस्पिटल आ गया पता ही नहीं चला। मैं दीदी को गेट पर ही उतार कर सीधा रेलवे स्टेशन को चला गया।

contd....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 14-05-2024, 04:40 PM



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