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Adultery यादों के झरोखे से
#28
Heart 
“ओ... अम्म्म...मी... मार डाला...., बहुत दर्द ... हो रहा है... लगता है... फट गई...ओ सग़ीर... मेरे... भाई.... निकाल ले बाहर... मुझे... नहीं... चुदवाना अपनी चूत को..." -दीदी की आँखों से आँसू बहने लगे, वो पूरी ताक़त से मुझे पीछे धकेल रहीं थीं।

मैने अपने आधे लॅंड को दीदी की चूत में वहीं फँसा रहने दिया क्योंकि इस समय का निकाला गया लॅंड दोबारा चूत में नहीं जाता।

"यह सिर्फ पहली बार होता है दीदी, उसके बाद तुम्हे भी मामी की तरह भरपूर मज़ा आयेगा, बस सिर्फ कुछ धक्के बर्दाश्त कर लो मेरी प्यारी दीदी, फिर तुम देखना कितना मज़ा आता है" -मै दीदी को सांत्वना देता हुआ बोला,

इसी के साथ मैने उनकी चूचियों को बारी बारी मुँह में लेकर चुभलाना शुरू कर दिया, एक दो मिनट इसी तरह करने के बाद दीदी के मुँह से सिसकारी निकलने लगीं "आहह... सग़ीर... मेरे भाई... हाँ ... ऐसे ही... और चूसो..." साथ ही उन्होने नीचे से कमर भी हिलाना शुरू कर दिया।

मैं समझ गया था कि अब ट्रिक से काम लेना होगा, मैने सुपाड़े तक लॅंड को बाहर खींचा और फिर उतना ही चूत में पेल दिया, पाँच छ: शॉट आधे लॅंड से धीरे धीरे लगा कर फिर मैने थोड़ा थोड़ा लॅंड बढ़ाना शुरू कर दिया क्योंकि चूत भी रसीली हो चुकी थी। दीदी अब पूरे जोश में आ चुकीं थीं।

मज़ा मुझे भी बहुत आ रहा था। दीदी की चूत बहुत ही टाइट थी अगर दीदी की चूत मेरे हलब्बी लॅंड से फट रही थी तो मेरे लॅंड में भी जलन होने लगी थी परंतु दीदी जैसी हसीन और ताज़ातरीन मस्त चूत के आगे मैं अपनी जलन भूल गया था, उसी मज़े मज़े में अचानक मैने कस कर शॉट मारते हुए अपना लॅंड दीदी की चूत में  पूरा पेल दिया। 

मेरा पूरा लंड दीदी की चूत में चरचराता हुआ जड़ तक पहुँच गया था। मेरे लॅंड ने सीधा दीदी की झिल्ली फाड़ते हुए बच्चेदानी पर जाकर ठोकर मार दी थी। हर ठोकर के साथ दीदी की चूत से ख़ून निकल कर उनकी गाँड़ के छेद को तर करता हुआ बेडशीट में जज़्ब हो रहा था।

"हाय अल्ला, मर... गई... मर... गई... ओ... अम्मी... पूरी चूत... फाड़ दी... अपने इस मूसल लॅंड से... कुछ तो रहम कर... आख़िर मैं तेरी बहन हूँ कमीने... कितनी बेदर्दी से तू चोद रहा है... मुझे नहीं चुदवाना... बाहर निकाल अपने इस लॅंड को... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." -दीदी ने गिडगिडाते हुए कहा- "पता नहीं अम्मी कैसे अब्बू से मज़े ले ले के चुदवाती हैं"

दीदी बुरी तरह छटपटाते हुए चीख रहीं थीं, मुझे किसी और का तो नहीं पर रज़िया का ज़रूर डर था सो मैंने कस कर दीदी का मुंह बंद करते हुए रुकना मुनासिब नहीं समझा और सटासट उनकी चूत में अपने लॅंड को ठोंकना शुरू कर दिया।

दीदी पूरी ताक़त लगा कर अपने मुँह से मेरा हाथ हटाना चाह रहीं थीं पर शाम से सब्र करते करते अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं पूरी ताक़त से उन्हें चोद रहा था।

दीदी के मुँह से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी, उन्होने अपनी टाँगें उठा कर पूरी तौर से फैला लीं थीं जिससे मेरा लॅंड उनकी चूत में जड़ तक जाकर ठोकर मार रहा था।

अब मुझे लगा कि शायद दीदी चिल्लाएँगीं नहीं तो मैने उनके मुँह से हाथ हटाते हुए पूछा, "अब कैसा लग रहा है दीदी " मेरा लंड बराबर उनकी चूत को चोदे जा रहा था।

"अब तो कुछ ठीक है… पर उस वक़्त तो ऐसा लगा कि… जान ही निकल गयी… , आ s s s s ह मेरे भैय्या… और चोदो… सही में अब तो बड़ा मज़ा आ रहा है…" -दीदी सिसकारियां लेते हुए बोली।

"चिंता मत करो दीदी, आज मै तुम्हारी चूत की सारी की सारी खुजली मिटा दूंगा" -ये कहते हुए मैंने चोदने की स्पीड और बढा दी।

अब मै अपने लंड को दीदी की चूत में फुल स्पीड से अन्दर बाहर कर रहा था। दीदी भी पूरी मस्ती के साथ अपनी चूत उठा उठा के मेरे लंड से चुदाई का भरपूर मज़ा ले रही थी। अचानक दीदी का शरीर थोडा तन के ढीला पड़ गया और मुझे अपने लंड पर गरम गरम महसूस होने लगा, मै समझ गया कि दीदी झड गयी।

मैं अब अपनी दीदी की चूत में जोर जोर से लण्ड पेल रहा था दीदी भी सिसकारियां भरती जोर जोर से अपने चूतड़ उछाले जा रही थी, दोनों जवान जिस्म एक दूसरे में समाते जा रहे थे, दोनों भाई बहिन आग उगलती सांसो के साथ एक दूसरे के शरीर को भोगे जा रहे थे, दोनों के मुँह से कामुक सिसकारियां निकल रही थी। 

चुदाई की थापो और फच्च... फच्च की आवाज़ से पूरा कमरा गूंज रहा था, दोनों बदन पसीना पसीना हो रहे थे, मैं दीदी की चूचियों को मसलता हुआ जोर जोर से चोदे जा रहा था।

मेरी रेलगाड़ी भी अब प्लेटफार्म पर लगने वाली थी। मैं अब उन्हें पूरी ताक़त से चोद रहा था।

अचानक मैंने एक करारा झटका मार कर अपना पूरा लण्ड दीदी की चूत में ठांस कर रोक दिया। मेरा सुपाड़ा दीदी की बच्चेदानी पर टिक गया था और एक के बाद दूसरी लंबी पिचकारी से दीदी की जवान बच्चेदानी का घड़ा उनके छोटे भाई की सफेद मलाई से भरने लगा।

जब मेरा पूरा रस दीदी की बच्चेदानी में समा गया तब जाकर मैंने उनके गरम जिस्म को अपनी गिरफ्त से आज़ाद किया। मैं खुद दीदी के ऊपर लेट गया और अपनी सांसें संभालने लगा।

मेरा लम्बा मोटा लंड जो कुछ देर पहले शेर की तरह दहाड़ रहा था, अब मुर्दा सा होकर, सिकुड़ कर दीदी की चूत से बाहर आ गया। हम दोनों ही एक दूसरे की बांहों में हांफते हुए लाइट जलती हुई छोड़ कर नंगे ही कब सो गए हमें पता ही नहीं चला।

अचानक कमरे के दरवाजे पर खटका सा हुआ…

चूँकि मै निश्चिंत होकर सो रहा था क्योंकि घर में कोई था ही नहीं सिर्फ रज़िया को छोड़ कर, वह भी ऊपर पढाई कर रही थी सो मैंने आँखों में हल्की सी झिर्री बना कर दरवाजे की तरफ देखा तो मेरी तो गांड ही फट गयी क्योंकि दरवाजे में रज़िया खड़ी हम लोगों को इस अवस्था में देख रही थी। 

हम दोनों ही पूरी तरह नंगे एक दूसरे से चिपके लेटे थे , दीदी ने एक हाथ से मेरा लंड थामा हुआ था और मेरे एक बाजू पर सर रख कर आराम से सो रही थीं और मेरा एक हाथ उनकी मस्त दूधिया चूचियों पर था। ऐसी हालत में रज़िया हम लोगों को दरवाजे में खडी देख रही थी। 

मै सोच रहा था कि अब यह सबको बता देगी कि रात में जब यह ऊपर पढाई कर रही थी तो नीचे मैंने दीदी को किस तरह से चोदा। मेरी अम्मी और अब्बू को ज़ब यह पता चलेगा तो वह बिना थूक लगाये ही मेरी गांड मार लेंगे।

इन सारी बातों से बचने का सिर्फ एक ही रास्ता था कि मै रज़िया की कुंवारी चूत में भी अपना लंड पेल के उसको भी दीदी की तरह चोद देता लेकिन रज़िया को पटाना बहुत ही मुश्किल लग रहा था हालाँकि उसकी चूत पूरी तरह से चुदने के लायक हो चुकी थी परन्तु उसकी किसी भी हरकत से ऐसा नहीं लग रहा था कि वह अपनी चूत को चुदवाने की इच्छा रखती है।

तभी रज़िया दरवाजे से हटकर किचिन में चली गयी और थोड़ी देर बाद उसके सीढियों से ऊपर जाने की आवाज़ आयी। मेरी आँखों से नींद कोसों दूर जा चुकी थी व कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय। आखिर में मैंने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया कि दीदी को तो मै चोद ही चुका हूँ अब ‘जो कुछ भी होगा देखा जाएगा’

तभी दीदी ने सोते में मेरे लंड को अपनी मुठ्ठी में दो तीन बार ऊपर नीचे करके बडबडाया ,"ओ सग़ीर! ज़रा कस के चोदो ना , फाड़ के रख दो अपनी दीदी की चूत को , पता नहीं कब से ये तुम्हारे जैसे लंड के लिए तरस रही थी" यह कह कर दीदी ने अपनी एक टांग उठा कर मेरी टांग पर रख ली और दो तीन बार मेरी जांघ से अपनी चूत को रगड़ दिया। दीदी शायद सोते में भी अपनी चुदाई का सपना देख रहीं थीं।

CONTD....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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RE: यादों के झरोखे से - by KHANSAGEER - 08-05-2024, 12:37 PM



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