29-04-2024, 03:24 PM
अपडेट -7, Day -3
टाइम 3.30pm
"बड़े बाबू है क्या?"
"जज्ज.... जी... कय्यूम दादा आप यहाँ, हाँ है ना?" बैंक के गेट पे खड़ा गार्ड तंवर घबरा के उठ खड़ा हुआ.
"हाँ तो हट सामने से जाने दे "
"जज.... जी कय्यूम दादा "
कय्यूम बैंक मे दाखिल हो गया था, चेहरे पे मुस्कान थी.
बाहर गॉर्ड तंवर सोच मे था, "इतने साल बाद बैंक क्यों आये है दादा?, बड़े बाबू की तो किस्मत ही ख़राब है "
गॉर्ड वही बैठ गया.
"सर अंदर आ जाये क्या?" एक भारी भरकम आवाज़ ने उस केबिन को हिला दिया जिसमे रोहित फ़ाइल मे डूबा पड़ा था.
बैंक के सभी कर्मचारी हैरान थे, सन्नाटा सा पसर गया था.
गड़ब.... रोहित ने सर उठा देखा सामने कय्यूम खड़ा था, दिल बैठ सा गया
"ये क्यों आया है, कही कल का बदला तो.... नहीं.... मै ऑफिसर हूँ यहाँ का, कोई ऐसे क्या कर लेगा " रोहित ने खुद के धड़कते दिल को संभाला.
"ओहम्म.. कय्यूम भाई आइये, बताये क्या सेवा करे?" रोहित को दादा कहना स्वीकार नहीं था, इसलिए भाई बोल के थोड़ा इत्मीनान से काम लिया, शायद मकसूद के ज्ञान का असर था.
"ये लीजिये लोन की पहली किश्त " कय्यूम ने बिना किसी भूमिका के सामने टेबल पे 5लाख के नोटों की गड्डी पटक दी.
"ये क्या है?" रोहित ने नाटकीय अंदाज़ मे कहाँ
"बैंक का पैसा पहली किश्त 5 लाख रूपए"
"तो ऐसे देते है, फॉर्म भरो पहले, वहा कैश काउंटर पर जमा करो, ये क्या होता है " रोहित ने ऑफिसरगिरी फिर झाड़ दी.
"बड़े बाबू मै अनपढ़ ठहरा, 2 जमात भी ना पढ़ सका, फॉर्म कैसे भरु?, मुझे तो बस लेना और देना आता है."
"सुमित.... सुमित....." जवाब मे रोहित बे सुमित को आवाज़ दी
सुमित हाजिर " नमस्ते कय्यूम दादा " बुलाया रोहित ने था लेकिन जी हजुरी कय्यूम की थी वहा.
"सर का फॉर्म भरो और पैसे उठाओ, अकाउंट अपडेट करो"
रोहित के हुकुम का पालन हुआ.
"साब आप थोड़ा कड़क आदमी जान पड़ते है, अब तो आपको यहाँ हमारे साथ रहना है, फिर भी ऐसा बर्ताव " ना जाने क्यों कय्यूम के शब्दों मे इतनी मिठास थी.
"वो... वो.... काम ही ऐसा है ना भाई " रोहित भी कय्यूम की मीठी आवाज़ से थोड़ा नरम हुआ,
कय्यूम वैसा नहीं था जैसा सब बोलते थे.
"ये अचानक पैसे देने की क्या सूझी " रोहित ने आश्चर्य से पूछा.
"बड़े बाबू पैसे तो देने ही थे, तो समझो आज दे दिए, अच्छा व्यपारी वही है जो बड़े मुनाफे जे सामने छोटा मुनाफा छोड़ दे " कय्यूम सामने कुर्सी पर बैठे ना जाने किस शून्य मे खोया बोले जा रह था.
"मतलब " रोहित के समझ से पपरे था.
"कुछ चीज़े पैसे से बढकर होती है बड़े बाबू, आपको यहाँ से जाने थोड़ी ना देंगे "
"क्या मतलब?" रोहित हैरान था कय्यूम की बाते उसके ऊपर से निकल जा रही थी.
"कुछ नहीं बड़े बाबू, चलता हूँ मै, कोई सेवा हो मेरे लायक, कोई मुसीबत आ जाये तो याद करना आपने बड़े भाई को, जान हाजिर है "
कय्यूम बाहर को चल पड़ा, लगता था जैसे उसका बदन आज हल्का हो गया है, उड़ता हुआ अपनी कार मे जा बैठा.
पीछे रोहित ठगा सा, सर खुजाये बैठा रहा, कय्यूम अभी क्या कह गया कुछ नहीं पता," पागल लगता है साला" रोहित ने समय देखा 5 बज गए थे.
"साब चले " मकसूद आ चूका था.
रात 9pm
डिनर करने मे बाद काया और रोहित आपने बिस्तर पे थे.
काया के दिमाग़ मे उथल पुथल सी मची थी, आज उसका कय्यूम से मिलना और कय्यूम का पैसे चूका देना.
कोई संयोग की बात तो नहीं.
कार मे हुए दृश्य उसकी आँखों के सामने दौड़ गए,
कैसे वो झटके से कय्यूम से जा चिपकी थी, एक मर्दाना कैसेली गंध ने उसके जिस्म को भर दिया था..
"क्या सोच रही हो जान " रोहित काया के नजदीक आ चूका था
काया जो की कुरता लेगी पहनी हुई थी जो की उसके जिस्म पर बिलकुल टाइट चिपके हुए थे.
"कक्क.... कुछ भी नहीं " काया ने फीके मन से जबाब दे दिया
"तो फिर.... " रोहित काया के जिस्म से जा लिपटा
काया का कोई मन नहीं था लेकिन पतीव्रता नारी की तरह उसने भी अपने जिस्म को हल्का छोड़ दिया.
रोहित ने बिना किसी देरी के अपने होंठ काया के होंठ पे जमा दिए, रोहित हमेशा ही उतावला रहता था..
"हहहम्म्म.... रोहित क्या कर रहे है आप?" काया कसमसाई
रोहित कहाँ सुनने वाला था उसके चुम्बन बढ़ते चले गए,
अब काया भी क्या करती, उसने भी अपने होंठो को खोल दिया.
दोनों की जबान आपस मे भीड़ गई.
काया का जिस्म आज दिन से ही गरम था तुरंत पिघलने लगा,
लेकिंन रोहित मे वो गंध नहीं थी, वो मर्दाना अहसास नहीं था जब कय्यूम से टकराते वक़्त उसे फील हुआ था.
रोहित ने किश करते हुए, काया की लेगी को अलग करना चाहा, जिसके सहमति काया बे स्वम दी.
पल भर मे काया के जिस्म से लेगी और उसकी ब्लैक महँगी पैंटी अलग हो चुकी थी.
"थोड़ा रुको ना रोहित " काया अभी इतनी जल्दी ये नहीं चाहती थी
उसके जिस्म मे एक गुदगुदी सी हो रही थी, वो चाहती थी उसके जिस्म. को रोहित गुदगुड़ाए, रगड़े, नोचे
लेकिन नहीं रोहित का हमेशा का वही, ढाक के तीन पात रोहित आ बैठा काया के दोनों पैरो के बीच,
काया के दोनों पैर अलग अलग दिशा मे झूल रहे थे.
तभी रोहित ने जेब से एक पैकेट निकाल लिया.
"रोहित इसे रहने दो ना "
"कैसे बात करती ही काया हमें अभी बच्चा नहीं चाहिए" रोहित ने पैकेट फाड़ कंडोम अपने छोटे ज़े लंड पर चढ़ा लिया.
और बुना समय गवाए... धह्ह्ह्ह..... धच..... आआहहहह.... अपने लंड को काया की सुखी चुत मे ठेल दिया.
काया दर्द के अहसास से बिलबिला उठी.
रोहित काया को बिना उत्तेजित किये ही लंड डाल देता था.
धच.... धच.... फच.... फच..... काया अभी कुछ समझती की रोहिती के धक्के भी शुरू हो गए.
"आअह्ह्ह... रोहित दर्द होता है ऐसे, धीरे ना....."
लेकिन नहीं रोहित कहाँ सुनने वाला था उसे तो काया के दर्द मे अपनी मर्दानगी दिखती थी.
धच.... धच.... पच... पच.... फच.... रोहित लंड को अंदर बाहर मारने लगा.
1 मिनट मे काया की चुत मे कुछ पानी आया ही था की आअह्ह्हह्म..... काया फचक... पच.... करता रोहित झड़ने लगा, उसके लंड ने दम तोड़ दिया था.
ये सम्भोग शुरू होते ही दम तोड़ चूका था.
रोहित कंडोम निकाल, साइड मे पलट गया.
उसके लिए यही सम्भोग था, माया वैसे ही टांग फैलाये लेटी रही, आँखों मे शून्य था जिस्म मे गर्माहट जो अभी शुरू ही हुई थी.
काया ने एक बुझ चुकी आग मे अपने हाथ को ले जा के देखा अभी भी गर्माहट थी और तबियत से जल रही थी.
ये ठीक वैसा थी था जैसे किसी ने पानी उबालने को रखा हो और 1मिनट मे ही गैस बंद कर दे, पानी अभी उबलना शुरू ही हुआ था की गर्माहट बंद.
उउउफ्फ्फ्फ़..... भारतीय नारी.
स्त्री का जिस्म पानी जैसा ही होता है देर से गर्म होता है और देर से ठंडा, काया वही पानी थी शुद्ध पानी.
खर्रा.... खररररररर..... रोहित खरर्राट्टे.... भरने लगा.
काया के जिस्म की गर्मी उसे परेशान कर रही थी, वो ऐसे ही नीचे से पूर्ण नंगी उठ खड़ी हुई, घड़ी मे नजर डाली 10 बज गए थे.
उसकी आँखों मे ना जाने कैसे एक चमक सी आ गई.
बेड पे बड़ी ब्लैक पैंटी से उसकी नजर टकरा गई, और चेहरे पे एक शरारती मुश्कान ने जगह ले ली.
काया पल भर मे ही बालकनी की था ठंडी हवा खा रही थी, हवा से उसकी कुर्ती उड़ उड़ जाती तो एक कामुक मादक मदमस्त गांड के दर्शन करा जाती.
काया के हाथो मे कुछ था जिसे वो एक पल देखती तो कभी नीचे बने कमरे को, ना जाने किस बात का इंतज़ार था उसे....
लगभग 5 मिनिट बाद एक बार फिर उसके हाथ से पैंटी सरक गई, या फिर जानबूझ के छोड़ दी गई ये काया ही जाने.
पैंटी उस अँधेरे मे उड़ती... अपनी कामुक गंध बिखेरती जमीन पे धाराशाई हो गई.
काया की आँखों मे अब इंतज़ार था.... काया ने बालकनी मे जलती रौशनी को बंद कर दिया, चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा पसरा हुआ था सिर्फ काया की आँखों मे चमक थी और इस चमक का स्त्रोत नीचे कमरे के बाहर जलते बल्ब की रौशनी थी.2मिनिट बाद ही नीचे कमरे का दरवाजा खुल गया,
शायद इसी का इंतज़ार था...
बाबू अपने पाजामे का अगला हिस्सा खुजाता बाहर चला आ रहा था.
काया का दिल बजने लगा, जिस्म पर चीटिया रेंगने लगी.
आँखों की चमक दुंगनी हो गई.
पक्का उसे बाबू का ही इंतज़ार था, बाबू भी समय का पक्का निकला.
बाबू कमरे से आगे आ, पाजामे को नीचे सरका दिया, लम्बा गोरा लंड बाहर को आ धमका.... ससससस..... Sssss..... इस्स्स. स.... एक सफ़ेद पेशाब की धार उसके लंड से छूट पड़ी.
"ईईस्स्स्स..... काया के मुँह से एक सिसकारी सी फुट पड़ी, धार बाबू के लंड से निकली थी, लेकिन काया को ऐसा लगा जैसे ये धार उसकी चुत से टकराई हो.
बाबू की नजर नजर सामने जा पड़ी, आज भी वहा कुछ गिरा हुआ था, बाबू तुरंत बिना पजामा ऊपर किये आगे बढ़ गया,
पल भर मे वी चीज उसके हाथ मे थी, अच्छी तरह समझ परख कर बाबू ने इधर उधर देखा फिर ऊपर देखा, आज बाबू ने पहली बार ऊपर देखा था ना जाने किस उम्मीद मे, लेकिन ऊपर अंधेरा था, घुप अंधेरा.
बाबू बेफिक्र था, काया की काली कच्छी बाबू की नाक के पास पहुंच गई ससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस बाबू ने खिंच ली.
ऊपर बालकनी के अँधेरे मे काया की सांस टंग गई " हमारे यहाँ तो औरतों की कच्छी को सूंघते है " बाबू के कहे शब्द काया के दिमाग़ मे दौड़ने लगे.
"आआआहहहह...... ना जाने कैसे काया का हाथ अपनी जांघो के बीच जा लगा, एक मीठी सी सरसरहत नाभि से निकल जांघो तक उठने लगी.
उसकी नजर नीचे बाबू पे जा टिकी.
बाबू कुछ और भी कर रहा था,, काया ने धयान दिया तो पाया बाबू अब पेशाब नहीं कर रहा था, एक हाथ से पैंटी पकडे सूंघ रहा था और दूसरा हाथ जोर जोर से हिल रहा था.
काया को अँधेरे मे समझ नहीं आया की क्या हो रहा है.
काया का जिस्म एक गरम ज्वालामुखी के मुहने पे खड़ा था, बस कोई चाहिए था जो उसे इस ज्वालामुखी मे धक्का दे दे.
लेकिन हाय री किस्मत जिसको इज़ाज़त थी वो अंदर बिस्तर पे सोया पड़ा था.
काया की उंगकिया लगातार अपनी जांघो के बीच बने उभार को छेड़ रही थी, कभी उस पतली दरार मे रेंग जाती तो कभी उस उभरे पहाड़ को सहलाने लगती,.
ये क्यों और कैसे हो रहा था पता नहीं,
नीचे बाबू ने दूसरे हाथ को नीचे ले जाते हुए काया की पैंटी को अपने लंड पर कस के बांध लिया, उसके दोनों हाथ व्यस्त थे,
बाबू ने तुरंत पजामा ऊपर किया और पलट के चल दिया.
ऊपर काया हैरान थी ये क्या हुआ? बाबू ने पैंटी कहाँ रख ली, अभी तो सूंघ रह था.
काया का जलते जिस्म पर धामममममम..... से बाबू ने दरवाजा पटक दिया.
बाबू अपने कमरे मे समा चूका था, बाहर की लाइट भी बंद हो गई थी.
बचा क्या..... कुछ नहीं सिर्फ काया और ये अंधेरा, और इस अँधेरे मे खड़ी सुलगती जलती काया.
और उसकी अधूरी काम इच्छाएं., जिसे वो अब समझ रही थी.
वो समझ रही थी रोहित जो करता है वो सम्भोग नहीं है,
वो सिर्फ उसके लिए है, मेरे लिए क्या है?
आज काया के जहन मे सवाल था खुद से सवाल था.
काया सुलगते जिस्म और सवालों के साथ, थके पैरो से बिस्तर मे समा गई.
तो क्या अब काया खुद को तलाश करेंगी?
उसकी इच्छाओ का क्या? कैसा रहेगा कल का दिन?
बने रहिये जवाब यही है.
टाइम 3.30pm
"बड़े बाबू है क्या?"
"जज्ज.... जी... कय्यूम दादा आप यहाँ, हाँ है ना?" बैंक के गेट पे खड़ा गार्ड तंवर घबरा के उठ खड़ा हुआ.
"हाँ तो हट सामने से जाने दे "
"जज.... जी कय्यूम दादा "
कय्यूम बैंक मे दाखिल हो गया था, चेहरे पे मुस्कान थी.
बाहर गॉर्ड तंवर सोच मे था, "इतने साल बाद बैंक क्यों आये है दादा?, बड़े बाबू की तो किस्मत ही ख़राब है "
गॉर्ड वही बैठ गया.
"सर अंदर आ जाये क्या?" एक भारी भरकम आवाज़ ने उस केबिन को हिला दिया जिसमे रोहित फ़ाइल मे डूबा पड़ा था.
बैंक के सभी कर्मचारी हैरान थे, सन्नाटा सा पसर गया था.
गड़ब.... रोहित ने सर उठा देखा सामने कय्यूम खड़ा था, दिल बैठ सा गया
"ये क्यों आया है, कही कल का बदला तो.... नहीं.... मै ऑफिसर हूँ यहाँ का, कोई ऐसे क्या कर लेगा " रोहित ने खुद के धड़कते दिल को संभाला.
"ओहम्म.. कय्यूम भाई आइये, बताये क्या सेवा करे?" रोहित को दादा कहना स्वीकार नहीं था, इसलिए भाई बोल के थोड़ा इत्मीनान से काम लिया, शायद मकसूद के ज्ञान का असर था.
"ये लीजिये लोन की पहली किश्त " कय्यूम ने बिना किसी भूमिका के सामने टेबल पे 5लाख के नोटों की गड्डी पटक दी.
"ये क्या है?" रोहित ने नाटकीय अंदाज़ मे कहाँ
"बैंक का पैसा पहली किश्त 5 लाख रूपए"
"तो ऐसे देते है, फॉर्म भरो पहले, वहा कैश काउंटर पर जमा करो, ये क्या होता है " रोहित ने ऑफिसरगिरी फिर झाड़ दी.
"बड़े बाबू मै अनपढ़ ठहरा, 2 जमात भी ना पढ़ सका, फॉर्म कैसे भरु?, मुझे तो बस लेना और देना आता है."
"सुमित.... सुमित....." जवाब मे रोहित बे सुमित को आवाज़ दी
सुमित हाजिर " नमस्ते कय्यूम दादा " बुलाया रोहित ने था लेकिन जी हजुरी कय्यूम की थी वहा.
"सर का फॉर्म भरो और पैसे उठाओ, अकाउंट अपडेट करो"
रोहित के हुकुम का पालन हुआ.
"साब आप थोड़ा कड़क आदमी जान पड़ते है, अब तो आपको यहाँ हमारे साथ रहना है, फिर भी ऐसा बर्ताव " ना जाने क्यों कय्यूम के शब्दों मे इतनी मिठास थी.
"वो... वो.... काम ही ऐसा है ना भाई " रोहित भी कय्यूम की मीठी आवाज़ से थोड़ा नरम हुआ,
कय्यूम वैसा नहीं था जैसा सब बोलते थे.
"ये अचानक पैसे देने की क्या सूझी " रोहित ने आश्चर्य से पूछा.
"बड़े बाबू पैसे तो देने ही थे, तो समझो आज दे दिए, अच्छा व्यपारी वही है जो बड़े मुनाफे जे सामने छोटा मुनाफा छोड़ दे " कय्यूम सामने कुर्सी पर बैठे ना जाने किस शून्य मे खोया बोले जा रह था.
"मतलब " रोहित के समझ से पपरे था.
"कुछ चीज़े पैसे से बढकर होती है बड़े बाबू, आपको यहाँ से जाने थोड़ी ना देंगे "
"क्या मतलब?" रोहित हैरान था कय्यूम की बाते उसके ऊपर से निकल जा रही थी.
"कुछ नहीं बड़े बाबू, चलता हूँ मै, कोई सेवा हो मेरे लायक, कोई मुसीबत आ जाये तो याद करना आपने बड़े भाई को, जान हाजिर है "
कय्यूम बाहर को चल पड़ा, लगता था जैसे उसका बदन आज हल्का हो गया है, उड़ता हुआ अपनी कार मे जा बैठा.
पीछे रोहित ठगा सा, सर खुजाये बैठा रहा, कय्यूम अभी क्या कह गया कुछ नहीं पता," पागल लगता है साला" रोहित ने समय देखा 5 बज गए थे.
"साब चले " मकसूद आ चूका था.
रात 9pm
डिनर करने मे बाद काया और रोहित आपने बिस्तर पे थे.
काया के दिमाग़ मे उथल पुथल सी मची थी, आज उसका कय्यूम से मिलना और कय्यूम का पैसे चूका देना.
कोई संयोग की बात तो नहीं.
कार मे हुए दृश्य उसकी आँखों के सामने दौड़ गए,
कैसे वो झटके से कय्यूम से जा चिपकी थी, एक मर्दाना कैसेली गंध ने उसके जिस्म को भर दिया था..
"क्या सोच रही हो जान " रोहित काया के नजदीक आ चूका था
काया जो की कुरता लेगी पहनी हुई थी जो की उसके जिस्म पर बिलकुल टाइट चिपके हुए थे.
"कक्क.... कुछ भी नहीं " काया ने फीके मन से जबाब दे दिया
"तो फिर.... " रोहित काया के जिस्म से जा लिपटा
काया का कोई मन नहीं था लेकिन पतीव्रता नारी की तरह उसने भी अपने जिस्म को हल्का छोड़ दिया.
रोहित ने बिना किसी देरी के अपने होंठ काया के होंठ पे जमा दिए, रोहित हमेशा ही उतावला रहता था..
"हहहम्म्म.... रोहित क्या कर रहे है आप?" काया कसमसाई
रोहित कहाँ सुनने वाला था उसके चुम्बन बढ़ते चले गए,
अब काया भी क्या करती, उसने भी अपने होंठो को खोल दिया.
दोनों की जबान आपस मे भीड़ गई.
काया का जिस्म आज दिन से ही गरम था तुरंत पिघलने लगा,
लेकिंन रोहित मे वो गंध नहीं थी, वो मर्दाना अहसास नहीं था जब कय्यूम से टकराते वक़्त उसे फील हुआ था.
रोहित ने किश करते हुए, काया की लेगी को अलग करना चाहा, जिसके सहमति काया बे स्वम दी.
पल भर मे काया के जिस्म से लेगी और उसकी ब्लैक महँगी पैंटी अलग हो चुकी थी.
"थोड़ा रुको ना रोहित " काया अभी इतनी जल्दी ये नहीं चाहती थी
उसके जिस्म मे एक गुदगुदी सी हो रही थी, वो चाहती थी उसके जिस्म. को रोहित गुदगुड़ाए, रगड़े, नोचे
लेकिन नहीं रोहित का हमेशा का वही, ढाक के तीन पात रोहित आ बैठा काया के दोनों पैरो के बीच,
काया के दोनों पैर अलग अलग दिशा मे झूल रहे थे.
तभी रोहित ने जेब से एक पैकेट निकाल लिया.
"रोहित इसे रहने दो ना "
"कैसे बात करती ही काया हमें अभी बच्चा नहीं चाहिए" रोहित ने पैकेट फाड़ कंडोम अपने छोटे ज़े लंड पर चढ़ा लिया.
और बुना समय गवाए... धह्ह्ह्ह..... धच..... आआहहहह.... अपने लंड को काया की सुखी चुत मे ठेल दिया.
काया दर्द के अहसास से बिलबिला उठी.
रोहित काया को बिना उत्तेजित किये ही लंड डाल देता था.
धच.... धच.... फच.... फच..... काया अभी कुछ समझती की रोहिती के धक्के भी शुरू हो गए.
"आअह्ह्ह... रोहित दर्द होता है ऐसे, धीरे ना....."
लेकिन नहीं रोहित कहाँ सुनने वाला था उसे तो काया के दर्द मे अपनी मर्दानगी दिखती थी.
धच.... धच.... पच... पच.... फच.... रोहित लंड को अंदर बाहर मारने लगा.
1 मिनट मे काया की चुत मे कुछ पानी आया ही था की आअह्ह्हह्म..... काया फचक... पच.... करता रोहित झड़ने लगा, उसके लंड ने दम तोड़ दिया था.
ये सम्भोग शुरू होते ही दम तोड़ चूका था.
रोहित कंडोम निकाल, साइड मे पलट गया.
उसके लिए यही सम्भोग था, माया वैसे ही टांग फैलाये लेटी रही, आँखों मे शून्य था जिस्म मे गर्माहट जो अभी शुरू ही हुई थी.
काया ने एक बुझ चुकी आग मे अपने हाथ को ले जा के देखा अभी भी गर्माहट थी और तबियत से जल रही थी.
ये ठीक वैसा थी था जैसे किसी ने पानी उबालने को रखा हो और 1मिनट मे ही गैस बंद कर दे, पानी अभी उबलना शुरू ही हुआ था की गर्माहट बंद.
उउउफ्फ्फ्फ़..... भारतीय नारी.
स्त्री का जिस्म पानी जैसा ही होता है देर से गर्म होता है और देर से ठंडा, काया वही पानी थी शुद्ध पानी.
खर्रा.... खररररररर..... रोहित खरर्राट्टे.... भरने लगा.
काया के जिस्म की गर्मी उसे परेशान कर रही थी, वो ऐसे ही नीचे से पूर्ण नंगी उठ खड़ी हुई, घड़ी मे नजर डाली 10 बज गए थे.
उसकी आँखों मे ना जाने कैसे एक चमक सी आ गई.
बेड पे बड़ी ब्लैक पैंटी से उसकी नजर टकरा गई, और चेहरे पे एक शरारती मुश्कान ने जगह ले ली.
काया पल भर मे ही बालकनी की था ठंडी हवा खा रही थी, हवा से उसकी कुर्ती उड़ उड़ जाती तो एक कामुक मादक मदमस्त गांड के दर्शन करा जाती.
काया के हाथो मे कुछ था जिसे वो एक पल देखती तो कभी नीचे बने कमरे को, ना जाने किस बात का इंतज़ार था उसे....
लगभग 5 मिनिट बाद एक बार फिर उसके हाथ से पैंटी सरक गई, या फिर जानबूझ के छोड़ दी गई ये काया ही जाने.
पैंटी उस अँधेरे मे उड़ती... अपनी कामुक गंध बिखेरती जमीन पे धाराशाई हो गई.
काया की आँखों मे अब इंतज़ार था.... काया ने बालकनी मे जलती रौशनी को बंद कर दिया, चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा पसरा हुआ था सिर्फ काया की आँखों मे चमक थी और इस चमक का स्त्रोत नीचे कमरे के बाहर जलते बल्ब की रौशनी थी.2मिनिट बाद ही नीचे कमरे का दरवाजा खुल गया,
शायद इसी का इंतज़ार था...
बाबू अपने पाजामे का अगला हिस्सा खुजाता बाहर चला आ रहा था.
काया का दिल बजने लगा, जिस्म पर चीटिया रेंगने लगी.
आँखों की चमक दुंगनी हो गई.
पक्का उसे बाबू का ही इंतज़ार था, बाबू भी समय का पक्का निकला.
बाबू कमरे से आगे आ, पाजामे को नीचे सरका दिया, लम्बा गोरा लंड बाहर को आ धमका.... ससससस..... Sssss..... इस्स्स. स.... एक सफ़ेद पेशाब की धार उसके लंड से छूट पड़ी.
"ईईस्स्स्स..... काया के मुँह से एक सिसकारी सी फुट पड़ी, धार बाबू के लंड से निकली थी, लेकिन काया को ऐसा लगा जैसे ये धार उसकी चुत से टकराई हो.
बाबू की नजर नजर सामने जा पड़ी, आज भी वहा कुछ गिरा हुआ था, बाबू तुरंत बिना पजामा ऊपर किये आगे बढ़ गया,
पल भर मे वी चीज उसके हाथ मे थी, अच्छी तरह समझ परख कर बाबू ने इधर उधर देखा फिर ऊपर देखा, आज बाबू ने पहली बार ऊपर देखा था ना जाने किस उम्मीद मे, लेकिन ऊपर अंधेरा था, घुप अंधेरा.
बाबू बेफिक्र था, काया की काली कच्छी बाबू की नाक के पास पहुंच गई ससससन्ननीफ्फफ्फ्फ़..... एक लम्बी सांस बाबू ने खिंच ली.
ऊपर बालकनी के अँधेरे मे काया की सांस टंग गई " हमारे यहाँ तो औरतों की कच्छी को सूंघते है " बाबू के कहे शब्द काया के दिमाग़ मे दौड़ने लगे.
"आआआहहहह...... ना जाने कैसे काया का हाथ अपनी जांघो के बीच जा लगा, एक मीठी सी सरसरहत नाभि से निकल जांघो तक उठने लगी.
उसकी नजर नीचे बाबू पे जा टिकी.
बाबू कुछ और भी कर रहा था,, काया ने धयान दिया तो पाया बाबू अब पेशाब नहीं कर रहा था, एक हाथ से पैंटी पकडे सूंघ रहा था और दूसरा हाथ जोर जोर से हिल रहा था.
काया को अँधेरे मे समझ नहीं आया की क्या हो रहा है.
काया का जिस्म एक गरम ज्वालामुखी के मुहने पे खड़ा था, बस कोई चाहिए था जो उसे इस ज्वालामुखी मे धक्का दे दे.
लेकिन हाय री किस्मत जिसको इज़ाज़त थी वो अंदर बिस्तर पे सोया पड़ा था.
काया की उंगकिया लगातार अपनी जांघो के बीच बने उभार को छेड़ रही थी, कभी उस पतली दरार मे रेंग जाती तो कभी उस उभरे पहाड़ को सहलाने लगती,.
ये क्यों और कैसे हो रहा था पता नहीं,
नीचे बाबू ने दूसरे हाथ को नीचे ले जाते हुए काया की पैंटी को अपने लंड पर कस के बांध लिया, उसके दोनों हाथ व्यस्त थे,
बाबू ने तुरंत पजामा ऊपर किया और पलट के चल दिया.
ऊपर काया हैरान थी ये क्या हुआ? बाबू ने पैंटी कहाँ रख ली, अभी तो सूंघ रह था.
काया का जलते जिस्म पर धामममममम..... से बाबू ने दरवाजा पटक दिया.
बाबू अपने कमरे मे समा चूका था, बाहर की लाइट भी बंद हो गई थी.
बचा क्या..... कुछ नहीं सिर्फ काया और ये अंधेरा, और इस अँधेरे मे खड़ी सुलगती जलती काया.
और उसकी अधूरी काम इच्छाएं., जिसे वो अब समझ रही थी.
वो समझ रही थी रोहित जो करता है वो सम्भोग नहीं है,
वो सिर्फ उसके लिए है, मेरे लिए क्या है?
आज काया के जहन मे सवाल था खुद से सवाल था.
काया सुलगते जिस्म और सवालों के साथ, थके पैरो से बिस्तर मे समा गई.
तो क्या अब काया खुद को तलाश करेंगी?
उसकी इच्छाओ का क्या? कैसा रहेगा कल का दिन?
बने रहिये जवाब यही है.