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Adultery जिस्म की भूख
मेरा लण्ड जब बाहर निकालता तो आपी अपने जिस्म को ज़रा ढील देतीं और जब मैं वापस लण्ड अन्दर पेलता तो उनके जिस्म में मामूली सा तनाव पैदा होता, आपी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती उनका मुँह थोड़ा सा खुलता और एक लज्जत भरी नरम सी ‘आह...’ खारिज करते हुए वो मेरी कमर को सहला देतीं।

मैं हर बार इसी तरह नर्मी से लण्ड आपी की चूत में अन्दर-बाहर करता और हर बार आपी लज़्ज़त भरी ‘आह..’ खारिज करतीं।

मैंने 12-13 बार लण्ड अन्दर-बाहर किया और फिर पूरा लण्ड अन्दर जड़ तक उतार कर रुक गया और अपने चेहरे पर शरारती सी मुस्कान सजाए नजरें आपी के चेहरे पर जमा दीं। आपी कुछ देर तक इसी रिदम में लण्ड अन्दर-बाहर होने का इन्तजार करती रहीं और कोई हरकत ना होने पर उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं।

आपी की पहली नज़र ही मेरे शरारती चेहरे पर पड़ी और सिचुयेशन की नज़ाकत का अंदाज़ा होते ही बेसाख्ता उनके चेहरा हया की लाली से सुर्ख पड़ गया और उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी नज़रें मेरी नजरों से हटा लीं और चेहरा दूसरी तरफ करके दोबारा आँखें बंद कर लीं।

आपी की इस अदा को देख कर मैं शरारत से बा-आवाज़ हंस दिया तो आपी ने आँखें खोले बिना ही मासनोई गुस्से और शर्म से पूर लहजे में कहा- “क्या है कमीने, अपना काम करो ना, मेरी तरफ क्या देख रहे हो”

मैं आपी की बात सुन कर एक बार फिर हँसा और कहा- “अच्छा मेरी तरफ देखो तो सही ना, अब क्यों शर्मा रही हो? अब तो...”

मैंने अपना जुमला अधूरा ही छोड़ दिया। आपी की हालत में कोई तब्दीली नहीं हुई।

मैंने कुछ देर इन्तजार किया और फिर शरारत और संजीदगी के दरमियान के लहजे में कहा- “क्या हुआ आपी? अगर अच्छा नहीं लग रहा तो निकाल लूँ बाहर?”

आपी ने अपनी टाँगों को मज़ीद ऊपर उठाया और मेरे कूल्हों से थोड़ा ऊपर कमर पर अपने पाँव क्रॉस करके मेरी कमर को जकड़ लिया और अपने दोनों बाजुओं को मेरी गर्दन में डाल कर मुझे नीचे अपने चेहरे की तरफ खींचा और अपना चेहरा मेरी तरफ घुमाते हुए बोलीं- “अब निकाल कर तो देखो ज़रा, मैं तुम्हारी बोटी-बोटी नहीं नोंच लूँगी”

अपनी बात कहते ही आपी ने मेरे होंठों को अपने होंठों में ले लिया और मेरा निचला होंठ चूसने लगीं। मेरी बर्दाश्त भी अब जवाब देती जा रही थी। आपी ने होंठ चूसना शुरू किए तो मैंने अपने हाथों से उनके चेहरे को नर्मी से थामा और आहिस्ता आहिस्ता अपना लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

यह मेरी ज़िंदगी में पहला मौका था कि मैं किसी चूत की नर्मी व गर्मी को अपने लण्ड पर महसूस कर रहा था। अजीब सी लज़्ज़त थी, अजीब सा सुरूर था।

पता नहीं हर चूत में ही ये सुरूर, ये लज़्ज़त छुपी होती है या इसका सुरूर इसलिए बहुत ज्यादा था कि ये कोई आम चूत नहीं बल्कि मेरी सग़ी बहन की चूत थी और बहन भी ऐसी कि जो इंतहाई हसीन थी, जिसे देख कर लड़कियाँ भी रश्क से ‘वाह...’ कह उठें।

अब आपी की तक़लीफ़ तकरीबन ना होने के बराबर रह गई थी और वो मुकम्मल तौर पर इस लज़्ज़त में डूबी चुकी थीं। हर झटके पर आपी के मुँह से खारिज होती लज़्ज़त भरी सिसकी इसका सबूत था।

मैंने अपनी स्पीड को थोड़ा सा बढ़ाया जिससे मेरा मज़ा तो डबल हुआ ही लेकिन आपी भी माशूर हो उठीं, उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और खामोशी और नशे से भरी नजरों से मेरी आँखों में देखते हुए अपने हाथ से मेरा सीधा हाथ पकड़ा जो कि उनके गाल पर रखा हुआ था।

अपने उस हाथ को उठा कर अपने सीने के उभार पर रखते हुए बोलीं- “आह... सगीर... इन्हें भी दबाओ न… लेकिन नर्मी से…”

मैंने लण्ड को उनकी चूत में अन्दर-बाहर करना जारी रखा और आपी की आँखों में देखते हुए ही मुस्कुरा कर अपने हाथ से आपी के निप्पल को चुटकी में पकड़ते हुए कहा- “आपी मज़ा आ रहा है? अब तक़लीफ़ तो नहीं हो रही ना?”

आपी ने भी मुस्कुरा कर कहा- “बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा है सगीर, मेरा दिल चाह रहा है वक़्त बस यहाँ ही थम जाए और तुम हमेशा इसी तरह अपना लण्ड मेरी चूत में ऐसे ही अन्दर-बाहर करते रहो”

मैंने कहा- “फ़िक्र ना करो आपी, मैं हूँ ना अपनी बहना के लिए, जब भी कहोगी मैं हमेशा तुम्हारे लिए हाज़िर रहूँगा”

“सगीर मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा कुंवारापन खत्म करने वाला लण्ड, मेरी चूत की सैर करने वाला पहला हथियार मेरे भाई, मेरे अपने सगे भाई का होगा” -आपी ने यह बात कही लेकिन उनके लहजे में कोई पछतावा या शर्मिंदगी बिल्कुल नहीं थी।

मैंने आपी की बात सुन कर कहा- “आपी, मेरी तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश ही यह थी कि मेरा लण्ड जिस चूत में पहली दफ़ा जाए वो मेरी अपनी सग़ी बहन की चूत हो मेरी प्यारी सी आपी की चूत हो”

मेरे अपने मुँह से ये अल्फ़ाज़ अदा हुए तो मुझ पर इसका असर भी बड़ा शदीद ही हुआ और मैंने जैसे अपना होश खोकर बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिए।

मेरे इन तेज झटकों की वजह से आपी के मुँह से ज़रा तेज सिसकारियाँ निकलीं और वो अपने जिस्म को ज़रा अकड़ा कर घुटी-घुटी आवाज़ में बोलीं- “आह नहीं सगीर... प्लीज़ आहहीस... आहिस्ता... अफ दर्द होता है... आह… आहिस्ता करो प्लीज़…”

मैंने तेज-तेज 6-7 झटके ही मारे थे कि आपी की आवाज़ जैसे मुझे हवस में वापस ले आईं और मैं एकदम ठहर सा गया। मेरा सांस बहुत तेज चलने लगी थी।

मैं रुका तो आपी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ा और मेरे सिर के पीछे हाथ रख कर मेरे चेहरे को अपने सीने के उभारों पर दबा कर कहा- “सगीर इन्हें चूसो, इससे तक़लीफ़ का अहसास कम होता है”

मैंने आपी के एक उभार का निप्पल अपने मुँह में लिया और बेसाख्ता ही फिर से मेरे झटके शुरू हो गए और उस वक़्त मुझे ये पता चला कि जब आपका लण्ड किसी गरम चूत में हो तो कंट्रोल अपने हाथ में रखना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है।

मुझे महसूस होने लगा कि मैं अब ज्यादा देर तक जमा नहीं रह पाऊँगा। मेरे झटकों की रफ़्तार खुद बा खुद ही मज़ीद तेज होने लगी। अब आपी भी मेरे झटकों को फुल एंजाय कर रही थीं। शायद उनकी मामूली तक़लीफ़ पर चूत का मज़ा और निप्पल चूसे जाने का मज़ा ग़ालिब आ गया था।

या शायद वो मेरे मज़े के लिए अपनी तक़लीफ़ को बर्दाश्त कर रही थीं इसलिए वो अब मुझे तेज झटकों से मना भी नहीं कर रही थीं। लेकिन अब आपी ने मेरे झटकों के साथ-साथ अपने कूल्हों को भी हरकत देना शुरू कर दिया था। जब मेरा लण्ड जड़ तक आपी की चूत में दाखिल होता तो सामने से आपी भी अपनी चूत को मेरी तरफ दबातीं और मेरी कमर पर अपने पाँव की गिरफ्त को भी एक झटके से मज़बूत करके फिर लूज कर देतीं और उनके मुँह से ‘आह...’ निकल जाती।

मैं अब अपनी मंज़िल के बहुत क़रीब पहुँच चुका था, लम्हा बा लम्हा मेरे झटकों में बहुत तेजी आती जा रही थी लेकिन मैं अपनी बहन से पहले डिसचार्ज होना नहीं चाहता था मैंने बहुत ज्यादा मुश्किल से अपने जेहन को कंट्रोल करने की कोशिश की और बस एक सेकेंड के लिए मेरा जेहन मेरे कंट्रोल में आया और मैंने यकायक अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

आपी ने फ़ौरन झुंझला कर ज़रा तेज आवाज़ में कहा- “रुक क्यों गए हो? प्लीज़ सगीर अन्दर डालो ना वापस, मैं झड़ने वाली हूँ। डालोऊऊ नाआअ...”

आपी की बात सुनते ही मैंने दोबारा लण्ड अन्दर डाला और मेरे तीसरे झटके पर ही आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हुआ और मुझे साफ महसूस हुआ कि आपी की चूत ने अन्दर से मेरे लण्ड पर अपनी गिरफ्त मज़ीद मज़बूत कर ली है। जैसे चूत को डर हो कि कहीं लण्ड दोबारा भाग ना जाए।

TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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जिस्म की भूख - by KHANSAGEER - 05-02-2024, 06:40 PM
RE: जिस्म की भूख - by sri7869 - 11-02-2024, 08:26 PM
RE: जिस्म की भूख - by Aftab94 - 16-02-2024, 03:03 PM
RE: जिस्म की भूख - by Aftab94 - 16-02-2024, 10:06 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 17-02-2024, 07:45 PM
RE: जिस्म की भूख - by sananda - 17-02-2024, 09:34 PM
RE: जिस्म की भूख - by Aftab94 - 18-02-2024, 09:16 AM
RE: जिस्म की भूख - by Aftab94 - 18-02-2024, 04:29 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 25-02-2024, 05:28 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 27-02-2024, 10:09 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 02-03-2024, 11:06 PM
RE: जिस्म की भूख - by sri7869 - 05-03-2024, 12:36 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 10-03-2024, 02:26 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 12-03-2024, 07:43 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 12-03-2024, 05:30 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 14-03-2024, 02:36 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 18-03-2024, 09:07 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 19-03-2024, 06:24 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 28-03-2024, 02:09 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 28-03-2024, 10:16 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 30-03-2024, 02:28 PM
RE: जिस्म की भूख - by KHANSAGEER - 02-04-2024, 06:05 PM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 02-04-2024, 10:36 PM
RE: जिस्म की भूख - by saya - 10-04-2024, 05:17 PM
RE: जिस्म की भूख - by Chandan - 11-04-2024, 09:41 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 17-04-2024, 11:34 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 17-04-2024, 02:06 PM



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