02-04-2024, 05:13 PM
यह इस पूरे टाइम में पहली बार थी कि आपी के मुँह से कोई अल्फ़ाज़ निकले हों। इस बात ने मुझ पर यह भी वज़या कर दिया कि ऐसे कूल्हे चीरे जाने से आपी को वाकयी ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है। मैंने अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की तो आपी का निचला दर ऊपर को उठा और उसके साथ ही उनकी चूत के नीचे दबा मेरा लण्ड भी आपी की चूत से रगड़ ख़ाता हुआ सीधा हो गया।
मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के ठीक एंट्रेन्स पर एक पल को रुकी और मैंने अपने हाथों से आपी के कूल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हें मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर उतर गई।
जैसे ही मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर घुसी तो उससे महसूस करते ही आपी के मुँह से एक तेज लज़्ज़त भरी ‘आअहह…’ निकली और उन्होंने आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पीछे को ढलका दी। उसके साथ ही जैसे सुकून सा छा गया, तूफ़ान जैसे थम सा गया हो, हर चीज़ कुछ लम्हों के लिए ठहर सी गई।
मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से आपी के कूल्हों की खूबसूरत गोलाइयों को छोड़ा और हाथ उनके जिस्म से चिपकाए हुए ही धीरे से आपी की कमर पर ले आया। आपी ने भी एक बेखुदी के आलम में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए।
अब पोजीशन ये थी कि मैं सीधा चित्त कमर ज़मीन पर टिकाए लेटा हुआ था। मैंने आपी की कमर को दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था। मेरी कमर की दोनों तरफ में आपी के घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे और वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखे गर्दन पीछे को ढुलकाए हुए लंबी-लंबी साँसें ले रही थीं।
चंद लम्हें ऐसे ही बीत गए फिर आपी ने अपनी गर्दन को साइड से घुमाते हुए सीधा किया और आँखें बंद रखते हुए ही धीमी आवाज़ में बोलीं- “सगीर मुझे लिटा दो नीचे…”
यह कहते ही आपी अपनी लेफ्ट और मेरी राईट साइड पर थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीन पर टिका कर सीधी होने लगीं। आपी के साइड को झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और आपी की चूत में अपने लण्ड का मामूली सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूमने लगा।
मैंने लण्ड के दबाव का इतना ख़याल रखा था कि लण्ड मज़ीद अन्दर भी ना जा सके और चूत से निकलने भी ना पाए।
थोड़ा टाइम लगा लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लण्ड आपी की चूत के अन्दर रखने में ही कामयाब हो गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए। अब आपी अपनी आँखें बंद किए ज़मीन पर कमर के बल सीधी लेटी थीं, उनके घुटने मुड़े हुए थे लेकिन पाँव ज़मीन पर ही रखे हुए थे।
मैं अब आपी के ऊपर आ चुका था और उनकी टाँगों के दरमियान में लेटा हुआ सा था। मेरी टाँगें पीछे की जानिब सीधी थीं और मेरा पूरा वज़न मेरे हाथों पर था और हाथ आपी की बगल के पास ज़मीन पर टिके हुए थे।
लेकिन मैं इस पोजीशन में बहुत अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था। मैं अपने घुटने मोड़ कर आगे लाने की कोशिश करता तो मुझे पता था कि मेरा लण्ड आपी की चूत से बाहर निकल आएगा और मैं ये नहीं चाहता था, मैंने आपी को पुकारा- “आपीयईई…”
उन्होंने आँखें खोले बगैर ही कहा- “हूँम्म...”
“आपी थोड़ी टाँगें और खोलो और पाँव ज़मीन से उठा लो”
मैंने ये कहा तो आपी ने अपने पाँव हवा में उठा लिए और घुटनों को मज़ीद मोड़ते हुए जितनी टाँगें खोल सकती थीं, खोल दीं। मैं बारी-बारी से अपने दोनों घुटनों को मोड़ते हुआ आगे लाया और आपी की रानों के नीचे से गुजार कर आगे कर लिए।
अब मेरे हाथों से वज़न खत्म हो गया था मैंने अपने दोनों हाथ उठाए और आपी के सीने के उभारों पर रख दिए और आहिस्तगी से उन्हें दबाते हुए मसलने लगा।
कुछ देर बाद आपी ने आँखें खोलीं, उनकी आँखें लज्जत और शहवात के नशे से बोझिल सी हो रही थीं। मैंने आपी की आँखों में देखते-देखते ही अपने लण्ड को थोड़ा आगे की तरफ दबाया तो आपी के मुँह से एक सिसकी निकल गई और उनके चेहरे पर हल्की सी तक़लीफ़ के आसार नज़र आने लगे।
आपी ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कार्पेट में गड़ा दिया और पूरी ताक़त से कार्पेट को जकड़ लिया।
मैंने आँखों ही आँखों में सवाल किया कि आपी क्या तुम तैयार हो? और आपी की आँखों ने ‘हाँ’ में जवाब दिया।
मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड का दबाव आपी की चूत पर बढ़ाना शुरू किया तो उनके चेहरे पर तक़लीफ़ का तवस्सुर बढ़ने लगा और चेहरे का गुलाबीपन तक़लीफ़ के अहसास से लाली में तब्दील होने लगा।
मैंने दबाव बढ़ाते ही अपने ऊपरी जिस्म को झुकाया और आपी की आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ आपी के होंठों के क़रीब ले गया। मेरे लण्ड की नोक पर अब आपी की चूत के पर्दे की सख्ती वज़या महसूस हो रही थी।
आपी की साँसें भी बहुत तेज हो चुकी थीं और दिल की धड़कन साफ सुनाई दे रही थी। आपी के जिस्म में हल्की सी लरज़ कायम थी।
मैंने अपने हाथ आपी के सीने के उभारों से उठा लिए और उनके चेहरे को मज़बूती से अपने हाथों में थाम कर आपी के होंठों को अपने होंठों में सख्ती से जकड़ा और उसी वक़्त अपने लण्ड को ज़रा ताक़त से झटका दिया और मेरा लण्ड आपी की चूत के पर्दे को फाड़ता हुआ अन्दर दाखिल हो गया।
आपी के जिस्म ने एक शदीद झटका खाया और बेसाख्ता ही उनके हाथ कार्पेट से उठे और मेरी कमर पर आए और आपी ने अपने नाख़ून मेरी कमर में गड़ा दिए।
आपी तक़लीफ़ को बर्दाश्त करने और अपनी चीख को रोकने में तो कामयाब हो गई थीं लेकिन तकलीफ़ की शिद्दत का अहसास उनके चेहरे से साफ ज़ाहिर था। उन्होंने अपनी आँखों को सख्ती से भींच रखा था, इसके बावजूद उनके गाल आंसुओं से तर हो गए थे।
मैंने आपी के होंठों से अपने होंठ उठा लिए और अपने जिस्म को सख्त रखते हुए आपी के चेहरे पर ही नजरें जमाई रखीं। मेरा लण्ड तकरीबन 4 इंच से थोड़ा ज्यादा ही आपी की चूत में उतर चुका था लेकिन अभी क़रीब 3 इंच बाक़ी था।
मैं थोड़ी देर आपी के चेहरे का जायज़ा लेता रहा और जब उनका चेहरा और आँखों का भींचना थोड़ा रिलैक्स हुआ तो मैंने एक झटका और मार कर अपना लण्ड आपी की चूत में जड़ तक उतार दिया।
मेरे पहले झटके के लिए तो आपी जहनी तौर पर तैयार थीं उन्होंने पर्दे के फटने की शदीद तक़लीफ़ को ज़रा मुश्किल से लेकिन सहन कर ही लिया था लेकिन मेरा ये झटका उनके लिए अचानक था।
इस झटके की तक़लीफ़ से बेसाख्ता उन्होंने अपना सिर ऊपर उठाया और मैंने अपना चेहरा उनसे बचाते हुए फ़ौरन ही साइड पर कर लिया।
आपी के मुँह से घुटी-घुटी आवाज़ निकली- “आआअ क्ककखह…”
उनका मुँह मेरे कंधे से टकराया और उन्होंने अपने दाँत मेरे कंधे में गड़ा दिए। आपी को तो जो तक़लीफ़ हो रही थी वो तो थी ही लेकिन उनके दाँत मेरे कंधे में गड़े थे और नाख़ून कमर में घुस से गए थे जिससे मुझे भी अज़ीयत तो बहुत हो रही थी लेकिन उस तक़लीफ़ पर लज़्ज़त का अहसास बहुत भारी था।
वो लज़्ज़त एक अजीब ही लज़्ज़त थी जिसे सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है ब्यान नहीं किया जा सकता।
आपी की चूत अन्दर से इतनी गर्म हो रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने किसी तंदूर में अपना लण्ड डाला हुआ हो। उनकी चूत ने मेरे लण्ड को हर तरफ से बहुत मज़बूती से जकड़ रखा था।
चंद लम्हें मज़ीद इसी तरह गुज़र गए अब आपी के दाँतों की गिरफ्त और नाख़ुनों की जकड़न दोनों ही ढीली पड़ गई थीं। मैंने आहिस्तगी से अपने लण्ड को क़रीब दो इंच पीछे की तरफ खींचा और इतनी ही आहिस्तगी से फिर अन्दर को ढकेल दिया।
मेरी आपी के मुँह से हल्की सी ‘आह...’ खारिज हुई लेकिन इस ‘आह...’ में तक़लीफ़ का तवस्सुर नहीं बल्कि मजे का अहसास था। उन्होंने आहिस्तगी से अपना सिर वापस ज़मीन पर टिका दिया। उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
मैंने अबकी बार फिर उसी तरह आहिस्तगी और नर्मी से लण्ड को क़रीब 3 इंच तक बाहर खींचा और फिर दोबारा अन्दर धकेल दिया और लगातार यही अमल करना जारी रखा लेकिन अपनी स्पीड को बढ़ने ना दिया।
TO BE CONTINUED .....
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
Love You All
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