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Adultery जिस्म की भूख
#86
(07-03-2024, 09:51 AM)KHANSAGEER Wrote: [Image: 21269105_061_cdd1.jpg]
आपी की चूत की दीवारों से रिसता उनका जूस मेरे मुँह में आने लगा और मैंने उसे क़तरा-क़तरा ही अपने हलक़ में उड़ेल लिया। कुछ देर इसी तरह आपी की चूत को चूसने के बाद मैंने उनकी चूत के दाने को चूसते हुए अपनी ऊँगलियों से आपी की चूत के दोनों पर्दों को खोला और एक ऊँगली चूत की लकीर में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फेरना शुरू कर दी।
[Image: 83808154_033_a31c.jpg]
आपी की हालत अब बहुत खराब हो चुकी थी। उन्हें दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रही थी, उनकी चूत और गाण्ड का सुराख उनके दोनों सगे भाईयों के मुँह में थे।

आप अंदाज़ा कर ही सकते हैं। ज़रा सोचें कि आपकी सग़ी बहन ऐसे लेटी हो और उसकी गाण्ड और चूत का सुराख उसके सगे भाइयों के मुँह में हो तो क्या हालत होगी आपकी बहन की। बस कुछ ऐसी ही हालत आपी की भी थी।

आपी की चूत बहुत गीली हो चुकी थी। मैंने आपी की चूत के दाने को अपने मुँह से निकाला और अपनी ऊँगली पर लगा हुआ आपी का जूस चाट कर अपनी ऊँगली चूस ली। फिर अपनी उंगली को आपी की चूत के सुराख पर रखा और हल्का सा दबाव दिया तो मेरी उंगली क़रीब एक इंच तक अन्दर दाखिल हो गई।
उसी वक़्त आपी ने तड़फ कर आँखें खोलीं जैसे कि होश में आई हों।

वे बोलीं- “नहीं सगीर प्लीज़... अन्दर नहीं डालो… जो भी करना है... बस बाहर-बाहर से ही करो ना”

“कुछ नहीं होता आपी... मैं ज्यादा अन्दर नहीं डालूंगा... अगर ज्यादा अन्दर डालूं... तो आप उठ जाना... प्रॉमिस कुछ नहीं होगा”

मैंने यह कह कर फिर से आपी की चूत के दाने को अपने मुँह में ले लिया और अपनी फिंगर को आहिस्ता-आहिस्ता अन्दर-बाहर करने लगा।

लेकिन मैं इस बात का ख्याल रख रहा था कि उंगली ज्यादा अन्दर ना जाए। आपी ने कुछ देर तक आँखें खुली रखीं और अलर्ट रहीं कि अगर उंगली ज्यादा अन्दर जाने लगे तो वो उठ जाएँ। लेकिन आपी ने यह देखा कि मैं ज्यादा अन्दर नहीं कर रहा हूँ तो फिर से अपना सिर बेड पर टिका दिया और फिर खुद बा खुद ही उनकी आँखें भी बंद हो गईं।

मैं आपी की चूत का दाना चूसते हुए अपनी ऊँगली को चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था। आपी की चूत किसी तंदूर की तरह गरम थी।

मैंने काफ़ी सुना और पढ़ा था कि चूत बहुत गरम होती है लेकिन मैं यह ही समझता था कि गरम से मुराद सेक्स की तलब से है लेकिन आज अपनी बहन की चूत को अन्दर से महसूस करके मुझे पहली बार पता चला था कि चूत हक़ीक़त में ही ऐसी गर्म होती है कि बाकायदा उंगली पर जलन होने लगी थी।

आपी की चूत अन्दर से बहुत ज्यादा नरम भी थी जैसे कोई मखमली चीज़ हो। मैं अपनी बहन की चूत में उंगली अन्दर-बाहर करता हुआ सोचने लगा कि जब मेरा लण्ड यहाँ जाएगा तो कैसा महसूस होगा। पता नहीं मेरा लण्ड ये गर्मी बर्दाश्त कर पाएगा या नहीं।

आपी भी अब बहुत एग्ज़ाइटेड हो चुकी थीं और उनका हाथ मेरे लण्ड पर बहुत तेजी से हरकत करने लगा था, कभी वो अपनी मुट्ठी मेरे लण्ड पर आगे-पीछे करने लगती थीं तो कभी लण्ड को भींच-भींच कर दबाने लगतीं। कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि अब मैं डिसचार्ज होने लगा हूँ तो मैंने एक झटके से आपी का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड से हटा दिया क्योंकि मैं अभी डिसचार्ज नहीं होना चाहता था।

फरहान अभी भी आपी की गाण्ड के सुराख पर ही बिजी था। मैंने उसके सिर पर एक चपत लगाई और उससे ऊपर आने का इशारा किया और खुद उठ कर बैठ गया। फरहान मेरी जगह पर आ कर बैठा तो मैंने साइड पर होते हो आपी का हाथ पकड़ कर फरहान के लण्ड पर रखा और खुद उठ कर आपी की टाँगों के बीच में आ बैठा।

फरहान ने आपी के हाथ को अपने लण्ड पर महसूस करते ही एक ‘आहह..’ भरी और बोला- “आअहह… आपी जी... आप का हाथ बहुत नर्म है”

यह कह कर आपी के होंठों को चूसने लगा मैंने फिर से अपनी उंगली को आपी की चूत में डाला और उनकी गाण्ड के सुराख को चाटते चूसते हुए अपनी उंगली को अन्दर-बाहर करने लगा।

कुछ देर बाद मैंने गैर महसूस तरीक़े से अपनी दूसरी उंगली भी पहली उंगली के साथ रखी और आहिस्ता-आहिस्ता उससे भी अन्दर दबाने लगा।

लेकिन मैं इस बात का ख़याल रख रहा था कि आपी को पता ना चले। आपी की चूत बहुत गीली और चिकनी हो रही थी। मैंने कुछ देर बाद थोड़ा सा ज़ोर लगाया तो मेरी दूसरी ऊँगली भी आपी की चूत में दाखिल हो गई।

उसी वक़्त आपी के मुँह से एक सिसकारी निकली और वो बोलीं- “उफ्फ़... सगीर… नहीं प्लीज़... बहुत दर्द हो रहा है... दूसरी उंगली निकाल लो… एक ही ऊँगली से करो न!”

मैंने चंद लम्हों के लिए अपनी ऊँगलियों को हरकत देना बंद कर दी और आपी से कहा- “बस आपी... अब तो अन्दर चली गई है... कुछ सेकेंड में दर्द खत्म हो जाएगा... अगर दर्द नहीं खत्म हुआ तो मैं बाहर निकाल लूँगा”

मेरी बात के जवाब में आपी ने कुछ नहीं कहा और बस सिसकारियाँ लेने लगीं।

आपी ने दर्द की वजह से फरहान के लंड से भी हाथ हटा लिया था मैंने अपनी उंगलियों को सख्त रखते हुए फरहान को इशारा किया कि वो आपी का हाथ अपने लण्ड पर रखवाए और उनके सीने के उभार चूसे।

और मैंने खुद आपी की चूत के दाने को मुँह में ले लिया ताकि उनके दर्द का अहसास खत्म हो जाए।

चंद ही लम्हों बाद आपी ने अपना हाथ फरहान के लण्ड पर चलाना शुरू कर दिया और अपनी गाण्ड को थोड़ा सा उठा कर अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबाने लगीं..

जिससे मैं समझ गया कि अब आपी के दर्द का अहसास कम हो गया है।

फिर मैंने भी अपनी उंगलियों को हरकत देना शुरू कर दी। कुछ ही देर में मेरी दोनों उंगलियाँ बहुत आराम से अन्दर-बाहर होने लगीं।

कुछ देर बाद मैंने अपनी उंगलियों को तेजी से अन्दर-बाहर करना शुरू किया जिसकी वजह से मैं ये कंट्रोल नहीं कर पा रहा था कि उंगली एक इंच से ज्यादा अन्दर ना जाए और हर 3-4 स्ट्रोक में उंगलियाँ थोड़ा सा और गहराई में चली जातीं। जिससे आपी के मुँह से तक़लीफ़ भरी ‘आह..’ खारिज हो जाती।

इसी तेजी-तेजी में मैंने एक बार ज़रा ताक़त से उंगलियों को थोड़ा और गहराई में दबाया तो आपी के मुँह से एक चीखनुमा सिसकी निकली- “आआईयई... ईईईईई... सगीर... कहा है ना... आराम-आराम से करो... लेकिन तुम लोग जंगली ही हो जाते हो... हम ये सब मज़ा लेने के लिए कर रहे हैं... लेकिन इससे मज़ा नहीं... तक़लीफ़ होती है नाआ”

“अच्छा अच्छा... अब आराम से करूँगा... कसम से बस... मैं अपनी बहन को तक़लीफ़ नहीं दे सकता… बस गलती से हो गया था... प्लीज़ सॉरी आपी”

मैंने फिर से उंगलियों की हरकत को कुछ देर रोकने के बाद आहिस्ता आहिस्ता हरकत देनी शुरू कर दी।

चूत भी अजीब ही चीज़ है। इसमें इतनी लचक होती है कि आज तक इस दुनिया के साइन्सदान इस दर्जे की लचक किसी चीज़ में नहीं पैदा कर सके हैं।

कुछ ही देर में आपी का जिस्म अकड़ना शुरू हो गया और आपी के हाथ की हरकत फरहान के लण्ड पर बहुत तेज हो गई। मुझे अंदाज़ा हो गया था कि आपी की चूत अपना रस बहाने को तैयार है। मैंने आपी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ा और उंगलियों को तेज-तेज अन्दर-बाहर करने लगा.. लेकिन इस बात का ख़याल रखा कि उंगलियाँ ज्यादा गहराई में ना जाने पाएं।

आपी का जिस्म अकड़ गया था और उन्होंने अपने कूल्हे बेड से उठा लिए और फरहान के लण्ड को पूरी ताक़त से अपनी तरफ खींच लिया।

उसी वक़्त फरहान के मुँह से ‘आहह..’ निकली और उसके लण्ड का जूस आपी के पेट पर गिरने लगा। बस 4-5 सेकेंड बाद ही आपी भी अपनी मंज़िल पर पहुँच गईं और उनकी चूत मेरी उंगलियों को भींचने लगीं।

अजीब ही हरकत थी चूत की, कभी मेरी उंगलियों को मज़बूती से भींच लेती थी तो अचानक ही चूत की ग्रिप लूज हो जाती और अगले ही लम्हें फिर भींचने लगती।

इस तरह 4-5 झटके खाने के बाद आपी भी पुरसुकून हो गईं और मैंने अपनी उंगलियाँ आपी की चूत से बाहर निकालीं और उनकी चूत को चाटने और चूसने के बाद खड़ा हो गया। मैंने आपी पर नज़र डाली तो उनका चेहरा बहुत पुरसुकून नज़र आया। जैसे कि वो पता नहीं कितनी लंबी मुसाफत तय करके मंज़िल तक पहुँची हों।

आपी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा कर उठ बैठीं और कहा- “ऊओ... मेरा शहज़ादे भाई का ‘वो’ तो अभी तक फुल जोश में ही है”

आपी ने एक नज़र मेरे सीधे खड़े लण्ड पर डाली और फिर फरहान की तरफ देख कर बोलीं- “फरहान उठो… सगीर का ‘वो’ चूसो... आज बहुत दिन हो गए हैं मैंने तुम लोगों को ये करते नहीं देखा”

मैंने आपी की बात सुनी तो वहीं खड़ा हो गया और मुस्कुरा कर आपी को देखते हुए कहा- “‘वो’ क्या आपी… नाम लेकर बोलो ना?”

आपी ने शर्मा कर मुझसे नज़र चुराईं और बोलीं- “ज्यादा बकवास नहीं करो... कह दिया मैंने... जो कहना था”

फिर उन्होंने फरहान को देख कर कहा- “उठो ना जाओ सगीर के पास”

फरहान आ कर मेरी टाँगों में बैठा तो मैंने उससे रोकते हुए आपी को देखा और बोला- “आपी प्लीज़ यार... बोलो ना... मज़ा आएगा ना सुन कर... अब बोलने में भी क्या शर्मा रही हो”

आपी कुछ देर रुकीं और फिर मुस्कुरा कर बोलीं- “अच्छा बाबा... फरहान चलो सगीर का लण्ड चूसो… अपने बड़े भाई का लण्ड चूसो”

और यह कह कर वे हँसने लगीं। यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं थी लेकिन पता नहीं क्यूँ आपी के मुँह से ‘लण्ड’ लफ्ज़ सुन कर बहुत मज़ा आया और लण्ड को एक झटका सा लगा। फरहान ने मेरे लण्ड को अपने दोनों हाथों में पकड़ा और एक बार ज़ुबान पूरे लण्ड पर फेरने के बाद उसे अपने मुँह में भर लिया लेकिन सच यह है कि अब फरहान के चूसने से इतना मज़ा भी नहीं आ रहा था कि जितना अपनी बहन के हाथ में पकड़ने से ही आ जाता था।

मैंने आपी की तरफ देखा वो बिस्तर पर बैठी थीं उन्होंने अपने दोनों घुटने मोड़ करके अपने सीने से लगाए हुए थे और अपने घुटनों से बाज़ू लपेट कर अपना चेहरा घुटनों पर टिका दिया था। आपी की दोनों टाँगों के दरमियान से उनकी क्यूट सी गुलाबी चूत नज़र आ रही थी।

आपी की नज़र मुझसे मिली तो मैंने आपी को आँख मारी और कहा- “आपी अगर फरहान की जगह आप का मुँह होता तो क्या ही बात थी”

आपी ने बुरा सा मुँह बनाया और हाथ से मक्खी उड़ाने के अंदाज़ में कहा- “हट.. चल गंदे.. मैं ऐसा कभी नहीं करने वाली”

TO BE CONTINUED ....
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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जिस्म की भूख - by KHANSAGEER - 05-02-2024, 06:40 PM
RE: जिस्म की भूख - by sri7869 - 11-02-2024, 08:26 PM
RE: जिस्म की भूख - by Aftab94 - 16-02-2024, 03:03 PM
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RE: जिस्म की भूख - by sananda - 17-02-2024, 09:34 PM
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RE: जिस्म की भूख - by sri7869 - 05-03-2024, 12:36 PM
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RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 12-03-2024, 07:43 AM
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RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 19-03-2024, 06:24 PM
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RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 02-04-2024, 10:36 PM
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RE: जिस्म की भूख - by Chandan - 11-04-2024, 09:41 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 17-04-2024, 11:34 AM
RE: जिस्म की भूख - by Vnice - 17-04-2024, 02:06 PM



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