28-11-2021, 06:03 PM
वो हल्की सी मुस्कान के साथ मेरी पैंट में बने हुए तंबू को देख रही थी। मैं अब चाची के करीब आकर उनके ब्लाउज की डोर बांधने लगा, लेकिन मेरी पैंट में बना हुआ तंबू अब और ज्यादा बड़ा हो गया था और अब मैंने जानबूझकर अपनी कमर को आगे करके चाची की मोटी गांड़ पर अपनी पैंट रगड़ने लगा, मैं कोशिश कर रहा था की मैं ज्यादा जोर से ना रगडू पर अब धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ रही थी और मैं अब चाची की और करीब आकर उनकी गांड़ पर अपना लन्ड रगड़ने लगा। निर्मला चाची को भी इस वक्त बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था, वो अपनी सांसों पर काबू करते हुए राजा को आयने से देखने लगती है। मेरा पूरा ध्यान अपनी पैंट पर था और मैं ऊपर नीचे होते हुए चाची की गांड़ पर अपनी पैंट रगड़ रहा था। मैने अब अनजाने अपने दोनो हाथ चाची के कंधो पर रख दिये और ये देख निर्मला चाची थोड़ी सी सहम सी गई। मेरे मन में हवस का गुब्बारा फुल रहा था की तभी निर्मला चाची मुझ से दूर हो गई और मेरा हवस का गुब्बारा एकदम से फूट गया और मैं होश में आ गया।
"थैंक यू राजा, मेरी वजह से तुझे तकलीफ हुई", निर्मला चाची आयने में देखते हुई बोली और मैं अपनी पैंट पर हाथ रख कर शरमाते हुए उनकी रूम से बाहर आ गया। मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था, आज मैने जो किया था वो मैने सिर्फ सपने में ही देखा था। मैं अपने लन्ड को जोरो से दबाकर शांत करने लगा, निर्मला के रुम में भी वही माहोल था, वो टेबल पर हाथ रख कर सांस भर रही थी, अपना एक हाथ अपनी गांड़ पर रखकर अपने भतीजे के लन्ड को महसूस करने की कोशिश कर रही थी। निर्मला को समझ आता है की अब उसको क्या करना है, वो मुस्कुराते हुए अब अपनी साड़ी पहनकर बाहर आती है और देखती है की राजा अपनी पैंट पर हाथ रख कर कुछ दबा रहा था। वो हंसती है और आगे बढ़ते हुए उसके सर पर हाथ रखती है। चाची के छूने से मैं एकदम हड़बड़ा गया और अपनी पैंट पर हाथ रखते हुए चाची को देखने लगा।
"चलो अब। क्या कर रहे हो? टूट जायेगा इतना दबाओगे तो", चाची अपने होंठ काटते हुए कहती है और आगे चली जाती है। मेरे कानो में वो शब्द घूमने से लगे, "क्या कह रही थी चाची?", मैं यही सोचते हुए बाइक पर बैठ गया और चाची भी मेरे पीछे बैठ गई। मैं सब से पहले चाची को लेकर खेत में गया क्योंकि चाचा को बताना था की मैं चाची को लेकर शहर जा रहा हु। चाचा ने भी हंसते हुए जाने को कहा और आते वक्त मुझे शहर से "दवाई" लाने के के लिए कुछ पैसे भी दिए। चाची को मालूम था की वो कोनसी दवाई की बात कर रहे थे, लेकिन वो अनदेखा कर देती है। गांव से बाहर आते ही चाची ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। मेरे पूरे शरीर में से बिजली सी दौड़ गई, मुझे लगा जैसे मैं अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर कही दूर जा रहा हु। शहर में आती ही चाची की नज़रे बड़ी बड़ी दुकानें, गाड़ियों पर जा रही थी, वो शादी के बाद बहुत ही कम बार शहर आई थी और आज वो खुल कर शहर देखना चाहती थी। मैने अब चाची को एक अच्छे से कपड़े के दुकान में लेकर गया और उनके लिए अच्छी सी साड़ी खरीदी।
"राजा, ये बहुत महंगी है, मुझे ये नही चाहिए", चाची बोली। " चाची, आप पैसे की चिंता मत करिए, ये तो मेरे स्कॉलरशिप से बचे हुए पैसे है", मैने हंसते हुए उनको कहा।
शॉपिंग के बाद मैं चाची को लेकर मॉल में गया एक अच्छी सी फिल्म देखने के लिए। चाची ने आज पहली बार मूवी थिएटर में कदम रखा था लेकिन वो फिल्म काफी मादक तरह की थी उसमे काफी ज्यादा किसिंग सीन्स थे लेकिन चाची को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। फिल्म खत्म के मैं चाची को लेकर हमारे (माता पिता) के घर आया। दोपहर में खाना खाने के बाद चाची ने मम्मी से ढेर सारी बाते की और फिर शाम को मैं चाची के साथ वापिस गांव आने लगा। अब चाची काफी खुश थी, वो अब मेरे कंधे पर हाथ रख कर शाम की ठंडी हवाएं महसूस कर रही थी। लेकिन तभी मुझे चाचा की "दवाई" के बारे में याद आया और मैने गाड़ी एक जगह पर रोक दी। चाची वही बाइक के पास खड़ी होकर मेरा इंतज़ार करने लगी। मैंने तुरंत २ बोतल दारू एक थैली में डालकर वापिस आ गया
"ले ली चाचा की दवाई", निर्मला चाची मुझे घुरते हुए बोली। मैने बस मुस्कुरा दिया और वो थैली चाची के हाथ में दे दी। घर जाते वक्त चाची अपना दिल खोलकर मुझ से बाते करने लगी
" आज २०-२२ साल बाद मैने शहर देखा, राजा। मेरा भी सपना था की मैं शहर में रहु तुम्हारी मां की तरह, गाड़ी में घुमु, गहने पहनू, लेकिन कभी तुम्हारे चाचा ने एक बार मुझसे कभी मेरे सपनो के बारे में नहीं पूछा, फिर सोचा की अगर मेरा बच्चा होगा तो वो मेरे सपने पूरा करेगा, लेकिन भगवान को ये भी मंजूर नही था, लोगो ने न जाने कैसे कैसे ताने मारे, लेकिन मैने सोचा कि आगे जाकर अच्छा होगा, आज देखो, तुमने मेरा एक सपना पूरा कर दिया", चाची की आंखो से बहते आसू मुझे महसूस हो रहे थे।
"चाची, तुम चिंता मत करो,में हु ना। मै तुम्हारे सारे सपने पूरे करूंगा, शहर में रहने का, गाड़ी में घूमने का,गहने पहनने का और बच्चे का भी..",
मेरे मुंह से अचानक से ये बात निकल गई, लेकिन ये बात सुनकर चाची अपनी हसीं नही रोक पाई। वो हंसते हुए मेरी पीठ पर मारने लगी, मुझे लगा की चाची ने मेरी बात मजाक में होगी, पर असल में निर्मला के मन में मेरी बातो से वो सपना फिर से खड़ा हो गया था
"तुम मुझे सच में बच्चा दोगे, राजा?", निर्मला चाची ने मेरे कानो के पास आकर बड़े ही कामुक अंदाज में ये बात कही और अपने दोनो हाथ उसने मेरे कमर में डाल दिए। उसके ऐसे करने से एक पल के लिए मेरा बैलेंस बिगड़ गया पर वो अब मेरी जांघो पर से हाथ फेरने लगी।
"च, चा,चाची वो वो मैं मेरे मुंह से वो गलती से निकल गया", चाची की हरकतों से में अब थोड़ा हड़बड़ा गया था।
"गलत को सही करना मुझे आता है राजा, तुम बस हा कह दो, ये गलती मैं सही कर दूंगी", चाची ने अब अपनी जुबान मेरी कान पर से हल्के से घुमाई और मैने एकदम से बाइक रोक दी।
उस सुनसान सड़क पर अब मुझे अपने गर्दन पर चाची की गर्म सांसे मेहसूस हो रही थी वो जांघो पर घूम रहे उसके हाथो से मेरे पैंट में मेरा लन्ड पूरा खड़ा हो चुका था। मैं बस तेज़ सास ले रहा था और पीछे बैठकर निर्मला चाची मेरी गर्दन पर अब हल्के से चूम लेती है। उसका ऐसा करना से मुझे अब अपने आप को रोकना मुश्किल हो गया और मैने तुरंत बाइक को रोड से उतार कर खेतो की तरफ ले जाने लगा
"राजा, ये कहा जा रहे हो?", चाची ने मुझ से पूछा , लेकिन मैं अब जवाब देने के मूड में नहीं था। मैने बाइक सीधे अपने खेत (चाचाजी) की तरफ चलाना शुरू कर दिया। चाची समझ गई कि मैं बाइक चाचा के खेत में लेकर जा रहा हु, खेत में पहुंचते पहुंचते रात हो चुकी थी और अब वहां कोई भीं नहीं था।
"राजा, ये ये यहां पर क्यों रोक दी गाड़ी?" , चाची थोड़ी सी डरी हुई आवाज में बोलती है
"चाची, आप ने ही तो कहा था ना की आपको मेरी गलती को सही करना है, तो मैं चाहता हु की आप यहा पर मेरी गलती को सुधारे", मैने अब चाची को बाइक पर से उतारा और मैने अब बाइक बंद कर दी। एकदम से पूरे खेत में अंधेरा छा गया। पास में ही चाचा ने छोटा सा लकड़ी का मकान बनाया था बारिश के मौसम के लिए। मैने चाची का हाथ पकड़ कर उनको वहा लेकर गया और दरवाजा बंद कर दिया।
"रा राजा, ये क्या कर रहे हो?", चाची मुझे दरवाजा बंद करते हुए देखते हुए बोली। "चाची, मैं नहीं चाहता की की हम दोनो गलती सुधारे और कोई हमे देख ले गलती सुधारते हुए", मैं चाची के पास आते हुए बोला। चाची को मेरी बातो का मतलब समझ आ रहा था, पर उनको यकीन नही हो रहा था की उनका शर्मिला sa भतीजा एकदम से इतना दबंग कैसे बन गया। वो अब मेरी बाते सुनते हुए पीछे जाने लगती है और आखिर में दीवार से सटक के खड़ी हो जाती है
"चाची, गाड़ी पर तो आप मेरे साथ बड़ा मजाक कर रही थी, अब क्या हुआ?", मैने अपने दोनो हाथ दीवार पर रख कर चाची के तरफ देखते हुए कहा। चाची मेरी गर्म सांसे महसूस कर रही थी , हम दोनो को एक दूसरे की धड़कने सुनाई दे रही थी। निर्मला, जो पिछले २० सालो से हवस मिटाने के लिए पागल हो जा रही थी, और दूसरी और राजा (मैं), जो पिछले कुछ सालों से अपनी ही चाची से शारीरिक संबंध रखनें के सपने देख रहा था, आज दोनो के अधूरे अरमान पूरे होने के कगार पर थे। मैं अब अपनी निर्मला चाची के थरथराते होंठो को उस रूम की टिमटिमाती बल्ब की लाइट में देख रहा था, वो खुद होकर मुझे चूम नही पा रही थी और उनकी इस मजबूरी को अब मुझे तोड़ना था। में अब धीरे से नीचे झुककर उनके होंठो पर अपने होंठ रखने जाने वाला था। मेरी इस हरकत को देख निर्मला चाची ने अपनी आंखे बंद कर दी और वो इंतजार करने लगी अपने होंठो से मेरे होंठो के छूने के लिए। एक एक पल उनको सदियों जैसा महसूस हो रहा था, मेरे सामने मेरे सपनो की परी थी जिसको चूमने के लिए मैने कई साल राह देखी थी। आखिरकार मेरे होंठ मेरी चाची के मुलायम होंठो पर पड़े और दोनो के अंदर की हवस अब पूरी तरह से बाहर निकलने लगी।
"थैंक यू राजा, मेरी वजह से तुझे तकलीफ हुई", निर्मला चाची आयने में देखते हुई बोली और मैं अपनी पैंट पर हाथ रख कर शरमाते हुए उनकी रूम से बाहर आ गया। मेरा दिल जोरो से धड़क रहा था, आज मैने जो किया था वो मैने सिर्फ सपने में ही देखा था। मैं अपने लन्ड को जोरो से दबाकर शांत करने लगा, निर्मला के रुम में भी वही माहोल था, वो टेबल पर हाथ रख कर सांस भर रही थी, अपना एक हाथ अपनी गांड़ पर रखकर अपने भतीजे के लन्ड को महसूस करने की कोशिश कर रही थी। निर्मला को समझ आता है की अब उसको क्या करना है, वो मुस्कुराते हुए अब अपनी साड़ी पहनकर बाहर आती है और देखती है की राजा अपनी पैंट पर हाथ रख कर कुछ दबा रहा था। वो हंसती है और आगे बढ़ते हुए उसके सर पर हाथ रखती है। चाची के छूने से मैं एकदम हड़बड़ा गया और अपनी पैंट पर हाथ रखते हुए चाची को देखने लगा।
"चलो अब। क्या कर रहे हो? टूट जायेगा इतना दबाओगे तो", चाची अपने होंठ काटते हुए कहती है और आगे चली जाती है। मेरे कानो में वो शब्द घूमने से लगे, "क्या कह रही थी चाची?", मैं यही सोचते हुए बाइक पर बैठ गया और चाची भी मेरे पीछे बैठ गई। मैं सब से पहले चाची को लेकर खेत में गया क्योंकि चाचा को बताना था की मैं चाची को लेकर शहर जा रहा हु। चाचा ने भी हंसते हुए जाने को कहा और आते वक्त मुझे शहर से "दवाई" लाने के के लिए कुछ पैसे भी दिए। चाची को मालूम था की वो कोनसी दवाई की बात कर रहे थे, लेकिन वो अनदेखा कर देती है। गांव से बाहर आते ही चाची ने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। मेरे पूरे शरीर में से बिजली सी दौड़ गई, मुझे लगा जैसे मैं अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर कही दूर जा रहा हु। शहर में आती ही चाची की नज़रे बड़ी बड़ी दुकानें, गाड़ियों पर जा रही थी, वो शादी के बाद बहुत ही कम बार शहर आई थी और आज वो खुल कर शहर देखना चाहती थी। मैने अब चाची को एक अच्छे से कपड़े के दुकान में लेकर गया और उनके लिए अच्छी सी साड़ी खरीदी।
"राजा, ये बहुत महंगी है, मुझे ये नही चाहिए", चाची बोली। " चाची, आप पैसे की चिंता मत करिए, ये तो मेरे स्कॉलरशिप से बचे हुए पैसे है", मैने हंसते हुए उनको कहा।
शॉपिंग के बाद मैं चाची को लेकर मॉल में गया एक अच्छी सी फिल्म देखने के लिए। चाची ने आज पहली बार मूवी थिएटर में कदम रखा था लेकिन वो फिल्म काफी मादक तरह की थी उसमे काफी ज्यादा किसिंग सीन्स थे लेकिन चाची को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी। फिल्म खत्म के मैं चाची को लेकर हमारे (माता पिता) के घर आया। दोपहर में खाना खाने के बाद चाची ने मम्मी से ढेर सारी बाते की और फिर शाम को मैं चाची के साथ वापिस गांव आने लगा। अब चाची काफी खुश थी, वो अब मेरे कंधे पर हाथ रख कर शाम की ठंडी हवाएं महसूस कर रही थी। लेकिन तभी मुझे चाचा की "दवाई" के बारे में याद आया और मैने गाड़ी एक जगह पर रोक दी। चाची वही बाइक के पास खड़ी होकर मेरा इंतज़ार करने लगी। मैंने तुरंत २ बोतल दारू एक थैली में डालकर वापिस आ गया
"ले ली चाचा की दवाई", निर्मला चाची मुझे घुरते हुए बोली। मैने बस मुस्कुरा दिया और वो थैली चाची के हाथ में दे दी। घर जाते वक्त चाची अपना दिल खोलकर मुझ से बाते करने लगी
" आज २०-२२ साल बाद मैने शहर देखा, राजा। मेरा भी सपना था की मैं शहर में रहु तुम्हारी मां की तरह, गाड़ी में घुमु, गहने पहनू, लेकिन कभी तुम्हारे चाचा ने एक बार मुझसे कभी मेरे सपनो के बारे में नहीं पूछा, फिर सोचा की अगर मेरा बच्चा होगा तो वो मेरे सपने पूरा करेगा, लेकिन भगवान को ये भी मंजूर नही था, लोगो ने न जाने कैसे कैसे ताने मारे, लेकिन मैने सोचा कि आगे जाकर अच्छा होगा, आज देखो, तुमने मेरा एक सपना पूरा कर दिया", चाची की आंखो से बहते आसू मुझे महसूस हो रहे थे।
"चाची, तुम चिंता मत करो,में हु ना। मै तुम्हारे सारे सपने पूरे करूंगा, शहर में रहने का, गाड़ी में घूमने का,गहने पहनने का और बच्चे का भी..",
मेरे मुंह से अचानक से ये बात निकल गई, लेकिन ये बात सुनकर चाची अपनी हसीं नही रोक पाई। वो हंसते हुए मेरी पीठ पर मारने लगी, मुझे लगा की चाची ने मेरी बात मजाक में होगी, पर असल में निर्मला के मन में मेरी बातो से वो सपना फिर से खड़ा हो गया था
"तुम मुझे सच में बच्चा दोगे, राजा?", निर्मला चाची ने मेरे कानो के पास आकर बड़े ही कामुक अंदाज में ये बात कही और अपने दोनो हाथ उसने मेरे कमर में डाल दिए। उसके ऐसे करने से एक पल के लिए मेरा बैलेंस बिगड़ गया पर वो अब मेरी जांघो पर से हाथ फेरने लगी।
"च, चा,चाची वो वो मैं मेरे मुंह से वो गलती से निकल गया", चाची की हरकतों से में अब थोड़ा हड़बड़ा गया था।
"गलत को सही करना मुझे आता है राजा, तुम बस हा कह दो, ये गलती मैं सही कर दूंगी", चाची ने अब अपनी जुबान मेरी कान पर से हल्के से घुमाई और मैने एकदम से बाइक रोक दी।
उस सुनसान सड़क पर अब मुझे अपने गर्दन पर चाची की गर्म सांसे मेहसूस हो रही थी वो जांघो पर घूम रहे उसके हाथो से मेरे पैंट में मेरा लन्ड पूरा खड़ा हो चुका था। मैं बस तेज़ सास ले रहा था और पीछे बैठकर निर्मला चाची मेरी गर्दन पर अब हल्के से चूम लेती है। उसका ऐसा करना से मुझे अब अपने आप को रोकना मुश्किल हो गया और मैने तुरंत बाइक को रोड से उतार कर खेतो की तरफ ले जाने लगा
"राजा, ये कहा जा रहे हो?", चाची ने मुझ से पूछा , लेकिन मैं अब जवाब देने के मूड में नहीं था। मैने बाइक सीधे अपने खेत (चाचाजी) की तरफ चलाना शुरू कर दिया। चाची समझ गई कि मैं बाइक चाचा के खेत में लेकर जा रहा हु, खेत में पहुंचते पहुंचते रात हो चुकी थी और अब वहां कोई भीं नहीं था।
"राजा, ये ये यहां पर क्यों रोक दी गाड़ी?" , चाची थोड़ी सी डरी हुई आवाज में बोलती है
"चाची, आप ने ही तो कहा था ना की आपको मेरी गलती को सही करना है, तो मैं चाहता हु की आप यहा पर मेरी गलती को सुधारे", मैने अब चाची को बाइक पर से उतारा और मैने अब बाइक बंद कर दी। एकदम से पूरे खेत में अंधेरा छा गया। पास में ही चाचा ने छोटा सा लकड़ी का मकान बनाया था बारिश के मौसम के लिए। मैने चाची का हाथ पकड़ कर उनको वहा लेकर गया और दरवाजा बंद कर दिया।
"रा राजा, ये क्या कर रहे हो?", चाची मुझे दरवाजा बंद करते हुए देखते हुए बोली। "चाची, मैं नहीं चाहता की की हम दोनो गलती सुधारे और कोई हमे देख ले गलती सुधारते हुए", मैं चाची के पास आते हुए बोला। चाची को मेरी बातो का मतलब समझ आ रहा था, पर उनको यकीन नही हो रहा था की उनका शर्मिला sa भतीजा एकदम से इतना दबंग कैसे बन गया। वो अब मेरी बाते सुनते हुए पीछे जाने लगती है और आखिर में दीवार से सटक के खड़ी हो जाती है
"चाची, गाड़ी पर तो आप मेरे साथ बड़ा मजाक कर रही थी, अब क्या हुआ?", मैने अपने दोनो हाथ दीवार पर रख कर चाची के तरफ देखते हुए कहा। चाची मेरी गर्म सांसे महसूस कर रही थी , हम दोनो को एक दूसरे की धड़कने सुनाई दे रही थी। निर्मला, जो पिछले २० सालो से हवस मिटाने के लिए पागल हो जा रही थी, और दूसरी और राजा (मैं), जो पिछले कुछ सालों से अपनी ही चाची से शारीरिक संबंध रखनें के सपने देख रहा था, आज दोनो के अधूरे अरमान पूरे होने के कगार पर थे। मैं अब अपनी निर्मला चाची के थरथराते होंठो को उस रूम की टिमटिमाती बल्ब की लाइट में देख रहा था, वो खुद होकर मुझे चूम नही पा रही थी और उनकी इस मजबूरी को अब मुझे तोड़ना था। में अब धीरे से नीचे झुककर उनके होंठो पर अपने होंठ रखने जाने वाला था। मेरी इस हरकत को देख निर्मला चाची ने अपनी आंखे बंद कर दी और वो इंतजार करने लगी अपने होंठो से मेरे होंठो के छूने के लिए। एक एक पल उनको सदियों जैसा महसूस हो रहा था, मेरे सामने मेरे सपनो की परी थी जिसको चूमने के लिए मैने कई साल राह देखी थी। आखिरकार मेरे होंठ मेरी चाची के मुलायम होंठो पर पड़े और दोनो के अंदर की हवस अब पूरी तरह से बाहर निकलने लगी।