Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
posting and pasting
#37
जोगिंग पार्क में जमकर चुदाई
मेरी शादी हुए दो साल हो चुके हैं, शादी के बाद मैंने अपनी चुदाई की इच्छा को सबसे पहले पूरी की। सभी तरीके से चुदाया… जी हाँ… मेरे पिछाड़ी की भी बहुत पिटाई हुई। मेरी गांड को भी चोद-चोद कर जैसे कोई गेट बना दिया हो। सुनील मुझे बहुत प्यार करता था। वो मेरी हर एक अदा पर न्यौछावर रहता था। अभी वो कनाडा छः माह के लिये अपने किसी काम से गया हुआ था। मैं कुछ दिन तक तो ठीक-ठाक रही, पर फिर मुझ पर मेरी वासनाएँ हावी होने लगी।
मैं वैसे तो पतिव्रता हूँ पर चुदाई के मामले में नहीं… उस पर मेरा जोर नहीं चलता ! अब शादी का मतलब तो यह नहीं है ना कि किसी से बंध कर रह जाओ? या बस पति ही अब चोदेगा। क्यूँ जी? हमारी अपनी तो जैसे कोई इच्छा ही नहीं है?

मेरे प्यारे पाठको ! शादी का एक और मतलब होता है… चुदाई का लाईसेंस !! अब ना तो कन्डोम की आवश्यकता, ना प्रेगनेन्सी का डर… बस पिल्स का सेवन करिये और अपने को नियोजित रखिये। जी हाँ, अब मौका मिलते ही दोस्तों से भी अपनी टांगें उठवा कर खूब लण्ड खाइये और खुशनुमा माहौल में रहिये।
इसे धोखा देना नहीं कहते बल्कि आनन्द लेना कहते हैं। ये खुशनुमा पल जब हम अकेले होते हैं, तन्हा होते हैं… तो हमें गुदगुदाते हैं… चुदाई के मस्त पलों को याद करके फिर से चूत में पानी उतर आता है…। फिर पति तो पति होता है वो तो हमें अपनी जान से भी अधिक प्यारा होता है।
“अरे नेहा जी… गुड मॉर्निंग…!” मेरे पीछे से विजय जोगिंग करता हुआ आया। मेरी तन्द्रा जैसे टूटी।
“हाय… कैसे हो विजय?” मैंने भी जोगिंग करते हुये उसे हाथ हिलाया।
“आप कहें… कैसी हैं ? थक गई हो तो चलो… वहाँ बैठें?” सामने नर्म हरी घास थी।
मैंने विजय को देखा, काली बनियान और चुस्त स्पोर्ट पजामे में वो बहुत स्मार्ट लग रहा था। मेरे समय में विजय कॉलेज में हॉकी का एक अच्छा खिलाड़ी था। अभी भी उसका शरीर कसा हुआ और गठीला था। बाजुओं और जांघों की मछलियाँ उभरी हुई थी। चिकना बदन… खुश मिज़ाज, हमेशा मुस्कराते रहना उसकी विशेषता थी और अब भी है।
हम हरी नर्म घास पर बैठे हुये थे… विजय ने योगासन करना शुरू कर दिया। मैं बैठी-बैठी उसे ही निहार रही थी। तरह तरह के आसन वो कर रहा था।
उसकी मांसपेशियाँ एक एक करके उभर कर उसकी शक्ति का अहसास करा रही थी। अचानक ही मैं उसके लण्ड के बारे में सोचने लगी। कैसा होगा भला ? मोटा, लम्बा तगडा… मोटा फ़ूला हुआ लाल सुपाड़ा। मैं मुस्करा उठी। सुपर जवान, मस्त शरीर का मालिक, खूबसूरत, कुंवारा लडका… यानी मुझे मुफ़्त में ही माल मिल गया… और मैं… जाने किस किस के सपने देख रही थी, जाने किन लड़कों के बारे में सोच रही थी… इसे पटाना तो मेरे बायें हाथ का खेल था… कॉलेज के समय में वो मेरा दोस्त भी था और आशिक भी … लाईन मारा करता था मुझ पर ! पर उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई थी मुझे प्रोपोज करने की। कॉलेज की गिनी-चुनी सुन्दर लड़कियों में से मैं भी एक थी।
बस मैंने ठान ली, बच के जाने नहीं दूंगी इसे ! पर कैसे ? उसके योगासन पूरा करते ही मैंने उस पर बिजली गिरा दी… मेरे टाईट्स और कसी हुई बनियान में अपने बदन के उभारों के जलवे उसके सामने बिखेर दिये। वो मेरे चूतड़ों का आकार देखता ही रह ही गया। मैंने अनजान बनते हुये उसकी ओर एक बार फिर से अपने गोल-गोल नर्म चूतड़ों को उसके चेहरे के सामने फिर से घुमा दिया। बस इतने में ही उसका पजामा सामने से तम्बू बन गया और उसके लण्ड का उभार स्पष्ट नजर आने लगा। इतना जादू तो मुझे आता ही था।
नेहा जी, सवेरे आप कितनी बजे जोगिंग के लिये आती हैं?”
आह्ह्ह्… तीर निशाने पर लगा। उसकी नजर तो मेरी उन्नत छातियों पर थी। मुझे अब अफ़सोस हो रहा था कि मैंने लो-कट बनियान क्यों नहीं पहना। पर फिलहाल तो मेरे चूतड़ों ने अपना कमाल दिखा ही दिया था।
“तुम तो वहाँ कोने वाले मकान में रहते हो ना…? मैं सवेरे वहीं आ जाऊँगी, फिर साथ ही जोगिंग करेंगे।” मैंने अपनी तिरछी नजर से एक तीर और मारा…
वो विचलित हो उठा। हम दोनों अब जूस पी रहे थे। हमारी आँखें एक खामोश इशारा कर रही थी। दिल को दिल से राह होती है, शायद हमारी नजरों ने कुछ भांप लिया था। मैंने अपनी स्कूटी उठाई और घर आ गई।
हमारा अब यह रोज का कार्यक्रम हो गया। कुछ ही दिनों में हम घुलमिल गये थे। मेरे सेक्सी जलवे हमेशा ही नये होते थे। उसका तो यह हाल हो गया था कि शायद मुझसे मिले बिना अब चैन ही नहीं आता था। उसका लण्ड मेरे कसे हुये चूतड़ों और चिकनी चूचियों को देख कर फ़डफ़डा कर रह जाता था… बेचारा… !
उसे पागल करने में मैंने कोई गलती नहीं की थी। आज भी लो-कट टाईट बनियान और ऊंचा सा स्कर्ट पहन कर ऊपर से शॉल डाल लिया। सवेरे छः बजे मैं उसके घर पहुँच गई।
उसका कमरा हमेशा की तरह खुला हुआ था। वो अभी तक सो रहा था। सोते हुये वो बहुत ही मासूम लग लग रहा था। उसका गोरा बलिष्ठ शरीर किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता था। मैंने अपना शॉल एक तरफ़ डाल दिया। मेरे स्तन जैसे बाहर उबले से पड़ रहे थे। मुझे स्वयं ही लज्जा आ गई। वो मुझे देख बिस्तर छोड़ देता था और फ़्रेश होने चला जाता था। आज भी वो मेरे वक्ष को घूरता हुआ उठा और बाथरूम की ओर चला गया। पर उसके कड़कते लण्ड का उभार मुझसे छिपा नहीं रहा।
‘नेहा, एक बात कहना चाहता हूँ !” उसने जैसे ही कहा मेरा दिल धड़क उठा।
उसके हाव भाव से लग रहा था कि वो मुझे प्रोपोज करने वाला है… और वैसा ही हुआ।
“कहो… क्या बात है…?” मैंने जैसे दिल की जान ली थी, नजरें अपने आप झुक गई थी।
“आप बहुत अच्छी हैं… मेरा मतलब है आप मुझे अच्छी लगती हैं।” उसने झिझकते हुये मुझे अपने दिल की बात कह दी।
“अरे तो इसमें कौन सी नई बात है… अच्छे तो मुझे आप भी लगते हैं… ” मैंने उसे मासूमियत से कहा… मेरा दिल धड़क उठा।
“नहीं मेरा मतलब है कि मैं आपको चाहने लगा हूँ।” इतना कहने पर उसके चेहरे पर पसीना छलक उठा और मेरा दिल धाड़-धाड़ करने लगा। यानि वो पल आ गया था जिसका मुझे बेसब्री से इन्तज़ार था। मैंने शर्माने का नाटक किया, बल्कि शरमा ही गई थी।
“क्या कहते हो विजय, मैं तो शादी-शुदा हूँ… !” मैंने अपनी भारी पलकें ऊपर उठाई और उसे समझाया। दिल में प्यास सी जग गई थी।
“तो क्या हुआ ? मुझे तो बस आपका प्यार चाहिये… बस दो पल का प्यार… ” उसने हकलाते हुये कहा।
“पर मैं तो पराई…?… विजय !” मैंने नीचे देखते हुये कहा।
उसने मेरी बांह पकड ली, उसका जिस्म कांप रहा था। मैं भी सिमटने लगी थी।
पर मेरे भारी स्तन को देख कर उसके तन में वासना उठने लगी। उसने अपनी बांह मेरी कमर में कस ली।
“नेहा, पाप-पुण्य छोड़ो… सच तो यह है… जिस्म प्यार चाहता है… आपका जिस्म तो बस… आग है … मुझे जल जाने दो !”
“छोड़ो ना मुझे, कोई देख लेगा… हाय मैं मर जाऊंगी।” मैंने अपने आपको छुड़ाने की असफ़ल कोशिश की। वास्तव में तो मेरा दिल खुशी के मारे खिल उठा था। मेरे स्तन कड़े होने लगे थे। अन्दर ही अन्दर मुझमें उत्तेजना भरने लगी। उसने मेरी चूचियों को भरपूर नजरों से देखा।
“बहुत लाजवाब हैं… !”
मैं जल्दी से शॉल खींच कर अपनी चूचियाँ छिपाने लगी और शरमा गई। मैं तो जैसे शर्म के मारे जमीन में गड़ी जा रही थी, पर मेरा मन… उसके तन को भोगना भी चाह रहा था।
“हटा दो नेहा… यहाँ कौन है जो देखेगा… !” मेरा शॉल उसने एक तरफ़ रख दिया।
मेरे अर्धनग्न स्तन बाहर छलक पड़े।
“चुप ! हाय राम… मैं तो लाज से मरी जा रही हूँ और अ… अ… आप हैं कि… … ” मेरी जैसे उसे स्वीकृति मिल गई थी।
“आप और हम बस चुपके से प्यार कर लेंगे और किसी को पता भी ना चलेगा… आपका सुन्दर तन मुझे मिल जायेगा।” उसकी सांसें चढ़ी हुई थी।
मैं बस सर झुका कर मुस्करा भर दी। अरे… रे… रे… मैंने उसे धक्का दे कर दूर कर दिया,”देखो, दूर रहो, मेरा मन डोल जायेगा… फिर मत मुझे दोष देना !”
विजय मेरे तन को भोगना चाह रहा था।
“हाय विजय तुम क्या चाहते हो… क्या तुम्हें मेरा चिकना बदन … ” मैं जैसे शरमा कर जमीन कुरेदने लग गई। उसने मुझे अपनी बाहों में लेकर चूम लिया।
“तुम क्या जानो कि तुम क्या हो… तुम्हारा एक एक अंग जैसे शहद से भरा हुआ … उफ़्फ़्फ़्फ़… बस एक बार मजे लेने दो !”
“विजय… देखो मेरी इज्जत अब तुम्हारे हाथ में है… देखो बदनाम ना हो जाऊँ !” मेरी प्रार्थना सुन कर जैसे वो झूम उठा।
“नेहा… जान दे दूंगा पर तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगा… ” उसने मेरा स्कर्ट उतारने की कोशिश करने लगा। मैंने स्वयं अपनी स्कर्ट धीरे से उतार दी और वहीं रख दी। वो मुझे ऊपर से नीचे तक आंखें फ़ाड फ़ाड कर देख रहा था।
उसे जैसे यह सब सपना लग रहा था। वो वासना के नशे में बेशर्मी का व्यवहार करने लगा था। मेरी लाल चड्डी के अन्दर तक उसकी नजरें घुसी जा रही थी। मेरी चूत का पानी रिसने लगा था। मुझे तीव्र उत्तेजना होने लगी थी। उसका लण्ड मेरे सामने फ़डकने लगा था। मैंने शरमाते हुये एक अंगुली से अपनी चड्डी की इलास्टिक नीचे खींच दी। मेरी चूत की झलक पाकर उसका लण्ड खुशी के मारे
उछलने लगा था। उसने मेरी बाहें पकड़ कर अपने से सटा लिया। मैंने उसका लण्ड अपने हाथों से सहला दिया। हमारे चेहरे निकट आने लगे और फिर से चुम्बनों का आदान-प्रदान होने लगा। मैंने उसका लण्ड थाम लिया और उसकी चमड़ी ऊपर-नीचे करने लगी। उसने भी मेरी चूत दबा कर अपनी एक अंगुली उसमें समा दी। उत्तेजना का यह आलम था कि उसका वीर्य निकल पड़ा और साथ ही साथ अति उत्तेजना में मेरी चूत ने भी अपना पानी छोड़ दिया।
“यह क्या हो गया नेहा… ” उसका वीर्य मेरे हाथों में निकला देख कर शरमा गया वो।
“छीः… मेरा भी हो गया… ” दोनो ने एक दूसरे को देखा और मैं शरम के मारे जैसे जमीन में गड़ गई।
“ये तो नेहा, हम दोनों की बेकरारी थी… ” हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गये थे। मैंने अपने कपड़े समेटे और शॉल फिर से ओढ़ लिया। मेरा सर शर्म से झुका हुआ था।
उसने तौलिया लपेटा और अन्दर से दो गिलास में दूध ले आया। मैंने दूध पिया और चल पडी…
“कल आऊँगी… अब चलती हूँ !”
“मत जाओ प्लीज… थोड़ा रुक जाओ ना !” वह जैसे लपकता हुआ मेरे पास आ गया।
“मत रोको विजय… अगर कुछ हो गया तो… ?”
“होने दो आज… तुम्हें मेरी और मुझे तुम्हारी जरूरत है… प्लीज?” उसने मुझे बाहों में भरते हुये कहा।
मैं एक बार फिर पिघल उठी… उसकी बाहों में झूल गई। मेरे स्तन उसके हाथों में मचल उठे। उसका तौलिया खुल कर गिर गया।
मेरा शॉल भी जाने कहाँ ढलक गया था। मेरी बनियान के अन्दर उसका हाथ घुस चुका था। स्कर्ट खुल चुका था। मेरी बनियान ऊपर खिंच कर निकल चुकी थी। बस एक लाल चड्डी ही रह गई थी।
मैं उससे छिटक के दूर हो गई और…
मैं हिम्मत करके उसके लण्ड का स्वाद लेने के लिये बैठ गई और उसे पास बुला लिया।
उसका सुन्दर सा लण्ड का सुपारा बड़ा ही मनमोहक था। पहले तो शरम के मारे मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने उसे सहलाते हुये अपने मुख में ले लिया।
“नेहा.. छीः यह गन्दा है मत करो !”
“विजय, कुछ मत कहो … तुम क्या जानो, मेरा पानी निकालने वाला तो यही है ना… प्यार कर रही हूँ !”
वो छटपटाता रहा और मैं उसके लण्ड को मसल मसल कर चूसती रही। उसका मोटा लम्बा लण्ड मुझे बहुत भाया।
“नेहा… आओ बिस्तर पर चलें, वहीं प्यार करेंगे… ” लगता था कि उससे अब और नहीं सहा जा रहा था।
हम दोनों अब बिस्तर में थे, एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे, अधरपान कर रहे थे। वो मेरी चूचियाँ और चुचूक मसल रहा था। मैं उसका लण्ड हाथ में लेकर सहला रही थी और हौले हौले मुठ मार रही थी।
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरी चूत गरम हो चुकी थी। चूत बेचारी मुँह फ़ाडे लण्ड का इन्तज़ार कर रही थी। जीवन में नंगे होकर इस प्रकार मस्ती मैं पहली बार कर रही थी थी।
मैंने नंगापन छिपाने के लिये पास पड़ी चादर दोनों के ऊपर डाल ली। कुछ ही देर में विजय का लण्ड मेरी गीली और चिकनी चूत में दबाव डाल रहा था। उसके सुपारे की मोटाई अधिक होने से पहले तो चूत के द्वार में ही अटक गया। मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। दोनों जिस्मो का संयुक्त जोर लगा तो लण्ड फ़ंसता हुआ घुस गया।
हाय इतना मोटा…
फिर तो विजय का बलिष्ठ शरीर मेरे पर जोर डालता ही गया। मेरी चूत की दीवारें जैसे लण्ड को रगड़ते हुये लीलने लगी।
अभी अभी तो लण्ड घुसा ही था … पर मेरी धड़कन तेज हो उठी। अचानक उसने अपना बाहर खींच कर फिर से अन्दर तक उतार दिया। मैंने आनन्द के मारे विजय को जकड़ लिया। चुदी तो मैं खूब थी… पर ऐसे कड़क लण्ड की चुदाई पहली बार ही महसूस की थी। धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ने लगी। ऐसा मधुर अहसास मुझे पहले कभी नहीं हुआ था। मैंने अपने हाथ और अपनी टांगें पूरी पसार दी थी। इण्डिया गेट पूरा खुला था। ओढ़ी हुई चादर जाने कहां खो गई थी। मेरी चूचियों की शामत आई हुई थी। विजत उन्हें दबा कर मसल रहा था, घुण्डियों को खींच-खींच कर मुझे उत्तेजना की सीढ़ियों पर चढ़ा दिया था। मैं नीचे दबी बुरी तरह चुद रही थी। विजय का बलिष्ठ शरीर मुझे चोदने में अपने पूरे योगाभ्यास के करतब काम में ले रहा था। दोनों ही जवानी की तरावट में तैर रहे थे। उसके लण्ड की साथ साथ मेरी चूत भी ठुमके लगा रही थी।
अचानक मेरे अंग कठोर होने लगे…
मैंने विजय को अपनी ओर भींच लिया।
“विजय… आह्ह्ह्ह विजय… ” मेरा तन जैसे टूटने को था, लगा कि मेरा पानी अब निकल पड़ेगा।
“मेरी नेहाऽऽऽऽऽऽऽ… … मैं भी गया… ” उसका लण्ड जैसे भीतर फ़ूल उठा।
“मेरे राजा… ये आह्ह्ह … हाय बस कर… विजय… ” मेरी चूत पहले तो कस गई, फिर एक तेज मीठी सी उत्तेजना के साथ मेरा पानी छूट पडा। मेरी चूत में मीठी-मीठी लहरें चल पड़ी। मैं झड़ रही थी। उसके मोटे लण्ड ने भी एक फ़ुफ़कार सी भरी और चूत के बाहर आ गया। विजय ने अपने हाथो से लण्ड को बेदर्दी से हाथ से दबा डाला और उसमें से एक मधुर पिचकारी उछाल मारती हुई निकल पड़ी… कई शॉट्स में लण्ड अपना वीर्य मेरे पर निछावर करता रहा। मैंने वीर्य को अपनी चूचियों पर व नाभि पर मल लिया। कुछ ही देर में वीर्य ने मेरे जिस्म पर एक सूख कर एक पर्त बना ली। यह मेरी चिकनी और नर्म चूचियों के लिये एक फ़ेस पेक की तरह था।
मेरा दिल अब विजय से बहुत लग चुका था। शायद मैं उसे प्यार करने लगी थी। हम लगभग रोज ही मिलते थे और बिस्तर में घुस कर खूब प्यार करते थे, चुम्मा-चाटी करते थे। दोनों के शरीर गरम भी हो जाते थे। फिर मन करता तो अपने शरीर एक दूसरे में समा भी लेते थे। मैं मस्ती से चुद लेती थी।
फ़िर एक दिन मैं जब सवेरे विजय के यहाँ गई तो वहाँ उसका एक दोस्त और था। मैं उसे नहीं जानती थी… पर वो मुझे जानता था। उसने अपना नाम प्रफ़ुल्ल बताया था, पर लोग उसे लाला कहते थे। मुझे वहाँ रोज आता देख कर वो भी विजय के यहाँ आने लगा था। शायद वो मेरे कारण ही आता था। धीरे धीरे वो भी मेरे दिल को छूने लगा था लेकिन लाला के कारण हमारा खेल खराब हो चला था।
एक दिन शाम को विजय मेरे घर आ गया…
मेरे घर में एकांत देख कर उसने राय दी कि यहाँ मिलना अच्छा रहेगा। पर हमें जगह तो बदलनी ही थी, उसके घर के आस पास वाले अब हम दोनों के बारे में बातें बनाने लग गये थे।
अब हम दोनों मेरे ही घर पर मिलने लगे थे। पर मुझे लाला की कमी अखरने लग गई थी तो उसे मैंने पार्क में ही मिलने को कह दिया था। अब हम तीनों ही पार्क में जॉगिंग किया करते थे। मैं लाला से भी चुदना चाहती थी… मेरी दिली इच्छा थी कि दोनों मिल कर मुझे एक साथ चोदें।
यहाँ से अब लाला की कहानी भी शुरू होती है। मेरी फ़ुद्दी रह रह कर उसके नाम के टसुए बहा रही थी। वैसे भी जिसके साथ भी मेरी दोस्ती हो जाती थी, वो मुझे भाने लगता था और स्वयमेव ही चुदाने की इच्छा बलवती होने लगती थी।
मैं विजय की गोदी में बैठी हुई थी, एक दूसरे के अधरों को रह रह कर चूम रहे थे। विजय का लण्ड मेरी चूतड़ों की दरार में फ़ंसा हुआ था। मैं लाला को पटाने का माहौल बना रही थी। मैंने उसी को आधार बना कर वार्ता आरम्भ की।
“विजय कभी तुम्हारी इच्छा होती है कि दो दो लड़कियों को एक साथ बजाओ?” मैंने बड़े ही चालू तरीके से पूछा।
“सच बताऊँ, बुरा तो नहीं मानोगी… ? इच्छा किसकी नहीं होती एक साथ दो लड़कियों को चोदने की, मुझे भी लगता है दो दो लड़कियाँ मेरा लण्ड मसलें और मुझे निचोड़ कर रख दें… मेरा जम कर पानी निकाल दें…”
“आ… आ… बस बस… सच कहते हो… मेरी सहेली पूजा को पटाऊँ क्या? साली की चूत का भोंसड़ा बना देना !” उसे लालच देती हुई बोली।
“यह पूजा कौन है? उसे भी जोगिंग के लिये ले कर आओ… फिर तो पटा ही लेंगे दोनों मिल कर… फिर देखो कैसे उसकी पूजा करते हैं !”
“कितना मजा आयेगा, हम दोनों मिल कर तुमसे प्यार करेंगे और फिर तुम्हारा माल निकालेंगे… फिर देखो मुझे चूतिया बना कर गोल मत कर देना?”
“अच्छा ! तुम बताओ… तुम्हें अगर दो दो मस्त लण्ड मिल जायें तो… बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती हो…”
“हटो, मेरी ऐसी किस्मत कहाँ है… एक तो तुम ही बड़ी मुश्किल से मिले हो… दूसरा लौड़ा कहाँ से लाऊँ?” मैंने बड़ी मायूसी से कहा।
मैं तो लाला की बात कर रहा हूँ… उसकी नजर तो तुम पर है ही ! हो गये ना हम दो… ” यह सुन कर मेरा मन खुशी से भर गया।
“अरे नहीं रे… मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहती हूँ…।” मैंने विजय को चूमते हुये उसे अपनी बातो में ले लिया और उसका लण्ड पकड़ कर हिलाने लगी।
“नेहा, तुम कोई मेरी बीवी तो हो नहीं, अगर तुम साथ में लाला से भी मजे ले लो तो मेरा क्या जाता है… बल्कि तुम्हें तो दो दो लौड़ों का मजा ही आयेगा ना?” वो मुझे समझाने लगा।
“सच विजय, यू आर सो लवली, सो स्वीट… मैं भी पूजा को ले आऊँगी… तुम उससे मजे लोगे तो सच में मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा।” पूजा मेरी नौकरानी थी, मैंने सोचा उसे जीन्स पहना कर कॉलेज गर्ल बना कर विजय से चुदवा दूंगी।
अब हम दोनों प्यार करते जा रहे थे और लाला को पटाने की योजना बनाने लगे।
सोच समझ कर हमने आखिर एक योजना बना ही डाली। इसमे विजय भी मेरी मदद करेगा। मेरा दिल खुशी के मारे उछलने लगा। लाला और विजय का लण्ड अब मुझे एक साथ मेरे जिस्म में घुसते हुये महसूस हुए। मैंने जोश में उसका लण्ड अपनी गाण्ड में घुसा लिया। उस दिन मैंने अपनी गाण्ड खोल कर विजय से मन से चुदाया।
मुझे चोद कर विजय चला गया। शाम को पूजा को मैंने विजय की बात बताई। पूजा बेचारी रोज छुप छुप कर मुझे चुदते देखती थी, वो सुन कर खुश हो गई। मैंने विजय को मोबाईल पर फ़ोन करके शाम को बुला लिया और उसे पूजा से मिलवा दिया।
“विजय यह मेरी खास सहेली है… इसे जरा मस्ती से चोदना… बेचारी बहुत दिनों से नहीं चुदी है…देखो, कहीं यह बदनाम ना हो जाये…”
“नेहा… यह मेरी भी खास बन कर ही रहेगी… पूजा आओ, बन्दा आपको आपको सिर्फ़ आनन्द ही आनन्द देगा।”
मैं उन दोनों को अपने बेडरूम में ले गई और कमरा बाहर से बन्द कर दिया। कुछ ही देर में अन्दर से सिसकियाँ और आहें भरने की उत्तेजनापूर्ण आवाजें आने लगी। मैंने अपनी चूत दबा ली और रस को अपने रूमाल से पोंछने लगी।
करीब आधे घण्टे के बाद उन्होंने बाहर आने के लिये दरवाजा खटखटाया। मैंने दरवाजा खोल दिया। पूजा की आँखें वासना से लाल थी, जुल्फ़ें उलझी हुई थी, जीन्स भी बेतरतीब सी थी, टॉप चूचियों पर से मसला हुआ साफ़ नजर आ रहा था, साफ़ लग रहा था कि उसकी मस्त चुदाई हुई है।
विजय भी मुस्कराता हुआ बाहर आया जैसे कि किसी कि कोई मैदान मार लिया हो। मैंने पूजा को चूम लिया।
“बेबी… मस्ती से चुदी है ना… तेरा चेहरा बता रहा है कि मजा आया है… अब तू जा… जब मन करे चुदने का तो विजय को बुला लेना !”
एक तीर से दो काम करने थे मुझे। विजय यूँ तो मुझे चोदता ही… मेरे पति के आने पर पूजा को मेरी जगह चोदता… तब मैं सुरक्षित रहती।
आज तो दिन को ही लाला विजय के यहाँ आ गया था। उसे पता था कि वो थोड़ी देर में मेरे घर जायेगा। मुझ तक पहुँचने के लिये उसे विजय की चमचागिरी तो करनी ही थी ना।
“लाला, भोसड़ी के ! एक बात बता… तुझे यह नेहा कैसी लगती है?” विजय अपनी लड़कों वाली भाषा का प्रयोग कर रहा था।
“जवानी की जलती हुई मिसाल है… मुझे तो बहुत प्यारी लगती है… चालू माल है क्या?”
“एक बात है यार… मुझे भी वो मस्त माल लगती है… तू कहे तो उसे पटायें…”
“कह तो ऐसे रहा है जैसे कोई लड्डू है जो खा जायेगा… दोस्त है, दोस्त ही रहने दे… कहीं दोस्ती भी हाथ से ना निकल जाये?”
“कब तक यार उसे देख देख कर मुठ मारेंगें … कोशिश तो करें… अगर पट गई तो दोनों मिल कर साली को चोदेंगें।”
“चल मन्जूर है, देख अपन साथ ही चोदेंगे… देख विजय … मुझे धोखा ना देना…यार देख मेरा तो लण्ड अभी से जोर मार रहा है।”
मुझे विजय का फोन आया कि लाला मुझे चोदने के लिये तड़प रहा है। मुझे अब लाला से चुदने की तैयारी करनी थी। मैंने पलंग को एक कोने में कर दिया और जमीन पर मोटा गद्दा डाल दिया। जमीन पर बिस्तर पर खुल कर चुदा जा सकता था।
जैसे ही बाहर दो मोटर साईकल रुकी, मेरा दिल धड़क उठा। मैंने बाहर झांक कर बाहर देखा। विजय और लाला ही थे। दोनों आपस में कुछ बाते कर रहे थे। तभी मेरे मोबाईल पर विजय का मिसकॉल आया। यह विजय का इशारा था। मेरा दिल अब जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे पसीना आने लगा था।
दोनों अन्दर आए तो मैं लाला को देख कर बोली- अरे तुम कैसे आ गए?
विजय बोला- मैं ले आया इसे अपने साथ ! तुझे चोदना चाहता है !
लाला कभी विजय को तो कभी मुझे देख रहा था हैरानी से कि विजय कैसे खुल्लमखुल्ला बोल रहा है।
लाला को इस तरह अपनी ओर देखते हुए विजय बोला- क्या देख रहा है बे? मैं तो इसे कई बार चोद चुका हूँ। और इसी साली ने तो मुझे कहा था कि दो लण्ड एक साथ लेना चाहती है तो मैं तुझे पट कर ले आया। तेरी नजर भी तो थी ही ना इस पर !
मैं शरमाते हुए बोली- विजय, क्या बकवास कर रहे हो?
मुझे नहीं पता था कि विजय इस तरह मेरी पोल खोल देगा।
लाला ने आगे बढ़ कर मुझे दबोच लिया।
“लाला… अरे… दूर हटो… क्या कर रह हो?” पर सच कहूँ तो मुझे स्वयं ही इसकी इच्छा हो रही थी।
“तेरी माँ दी फ़ुद्दी… ऐसी मस्त गाण्ड और चूत कहां मिलेगी !” लाला जैसे अपना आपा खो चुका था। उसके अंग अंग फ़ड़क उठे। मेरे स्तन उसने मसल दिये। उसने मुझे अपनी बाहो में उठा कर नीचे गद्दे पर पटक दिया, मेरे ऊपर आकर मुझे दबा लिया, उसके शरीर का दबाव मुझे बड़ा मोहक लगा।
“साली की मस्त चूत चोद डालूँगा !” वो बड़ी कुटिलता से मुस्करा कर अपनी पैन्ट खोल रहा था जैसे मैदान मार लिया हो।
इतने में विजय को पुकारते हुए मैं बेशरमी से बोली- विजय, मुझे बचा लो… देखा लाला मुझे चोदने पर तुला है…
लाला मेरी मैंने विजय को आँख मारी। विजय ने मेरी मैक्सी उठाते हुए मेरे गले से निकाल कर फ़ेंक दी। अन्दर मैंने कुछ पहना ही नहीं था तो मैं अब मादरजात नंगी हो गई थी।
“साली को छोड़ूंगा नहीं… मां कसम चिकनी है… चूत मारने में बहुत मजा आयेगा।”वो वासना में जैसे उबल रहा था।
मैं अभी भी नखरे दिखाने को मचल रही थी जैसे उससे छूटना चाह रही हूँ। तभी विजय ने मेरी टांगे पकड़ ली और दोनों ओर खींच कर मेरी चूत भी खोल दी। मैंने भी चूत अपनी फ़ाड़ कर खोलने में सहायता की।
“विजय तुम भी… हाय अब क्या करूँ… लगता है मेरी फ़ुद्दी की मां चोद देंगे।”
“विजय बोला- भोसड़ी की मस्त माल है , जरा जम के चोद डाल इसे… फिर मैं भी इसकी चोदूँगा।
“थेंक्स विजय… मेरे दोस्त… मुझे नेहा जैसा मस्त माल को चोदने में मेरी मदद की… भेन दी लण्ड !”
तभी लाला का फ़ौलादी लण्ड मेरी चूत में घुस पड़ा। मेरे मुख से आह्ह निकल गई। मैंने धीरे से विजय को आंख मार दी।
“लाला। मर गई … हाय राम… ये क्या किया तूने… अब तो छोड़ दे… घुसेड़ दिया रे !” और मैंने लाला की बाहे अब जकड़ लिया। मस्ती से मेरे दांत भिंच गये।
विजय ने भी अपने कपड़े उतार लिये और लण्ड मेरे मुख के समीप ले आया,”चल चूस ले मां की लौड़ी … जरा कस कर चूसना… निकाल दे मेरा माल …”
“दोनों साले हरामी हो… देखना भेन चोदो… तेरे लण्ड का भी पानी ना निकाल दूं तो कहना !” मेरे मुख से भी जोश में निकल पड़ा।
“यह बात हुई ना… मादर चोद … रण्डी… छिनाल साली… तेरी तो आज फ़ोड़ के रख देंगे।” उसकी गालियाँ मेरी उत्तेजना बढ़ा रही थी। मुझे किसी ने आज तक ऐसी मीठी मीठी… रसभरी गालियाँ देकर नहीं चोदा था। विजय का मस्त लण्ड मेरे मुखद्वार में प्रवेश कर चुका था। आज मेरे दिल की यह इच्छा भी पूरी हो रही थी- दो दो जवान चिकने लौंड़ो से लण्ड लेने की इच्छा…।
किसकी किस्मत में होता है भला दो दो लण्ड से एक साथ चुदाना। मुझे पता था कि अब मेरी आगे और पीछे से जोरदार चुदाई वाली है। लाला का लण्ड मेरी चूत को चीरता हुआ गहराई में बैठता जा रहा था। मेरी सिसकियाँ निकल रही थी। दुसरी और विजय का लण्ड मुख को चोदने जैसा चल रहा था। मैंने विजय को बेकरारी में आँख मारी… वो समझ गया।
“लाला, इस मां की लौड़ी को अपने ऊपर ले ले… मैं भी जरा प्यारी सी नेहा की गाण्ड बजा कर देखूँ !” मैं विजय की बात पर मुस्करा उठी। लाला ने मुझे दबा कर पलटी मार दी और मै उसके ऊपर आ गई… मैंने लाला के लण्ड पर जोर मार कर फिर से उसे चूत में पूरा घुसा लिया और अपने चूतड़ खोल दिये। मेरा शरीर सनसना उठा कि अब मेरी गाण्ड भी चूत के साथ साथ चुदने वाली है।
तभी मेरी चिकनी गाण्ड में विजय का लौड़ा टकराया। मैं लाला से लिपट पड़ी।
“लाला देख ना विजय ने अपना लौड़ा मेरी गाण्ड में लगा दिया है… क्या यह मेरी गाण्ड मारेगा?”
“देखती जाओ, मेरी छम्मक छल्लो … हम दोनों मिल कर तेरी क्या क्या मारते हैं… भोसड़ी की… चूतिया समझ रखा है? क्या तू बच जायेगी… साली को फोड़ के नहीं रख देंगे।”
“अरे जा… बड़ा आया चोदने वाला… हरामी का लण्ड तो खड़ा होता नहीं है… बाते बड़ी बड़ी करता है।”
“विजय… गण्डमरी को छोड़ना नहीं… दे साली की गाण्ड में लौड़ा…” विजय तो जानता था कि मैं जोरदार चुदाई चाहती हूं, इसलिये मैं लाला को भड़का रही हूँ।
विजय का लण्ड भी मेरी गाण्ड में घुसता चला जा रहा था। आह्ह्ह्…… मस्त दो दो लण्ड… कैसा अद्भुत मजा दे रहे थे। मुझे आज पता चला कि चूत और गाण्ड के द्वार एकसाथ कैसे खुलते है और लण्ड झेलने में कितना मजा आता है। मेरी अन्तर्वासना की सखियो … मौका मिले तो जरूर से दो दो लण्डों का आनन्द लेना।
आह्ह्ह रे दोनों लण्ड का अहसास… मोटे मोटे अन्दर घुसते हुये … मां री … मेरा जिस्म आनन्द से भर गया। पूरे शरीर में मीठी सी लहर उठने लगी। मेरे कसे हुये और झूलते हुये स्तन विजय ने पीछे से थाम लिये और दबा लिये।
मेरी स्थिति यह थी कि मैं अपने चूतड़ दोनों ओर से दबे होने कारण उछाल नहीं पा रही थी। अन्ततः मैं शान्ति से लाला पर बिछ गई और बस दोनों ओर से लण्ड खाने का आनन्द लेने लगी। कैसा अनोखा समा था। दोनों के लण्ड टनटना रहे थे…फ़काफ़क चल रहे थे… मैं दोनों के मध्य असीम खुशी बटोर रही थी। मन कर रहा था कि ऐसी मस्त चुदाई रोज हो। हाय रे… मेरी चूत और गाण्ड दोनों ही चुद रही थी … ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि काश यह लम्हा कभी भी खत्म ना हो बस जिन्दगी भर चुदती ही रहूँ।
तभी विजय के मुख से कराह निकली और उसका वीर्य गाण्ड की कसावट के कारण रगड़ से निकल पड़ा। उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और बाकी बचा हुआ वीर्य लण्ड मसल मसल कर निकालने लगा। तभी दोनों ओर की चुदाई के कारण मैं अतिउत्तेजना का शिकार हो गई और मेरा रज भी छूट गया। मैं झड़ने लगी थी। कुछ ही पल में लाला भी झड़ गया। मेरी चूत के आस पास जैसे लसलसापन फ़ैल गया, नीचे गंगा जमुना बह निकली। मैं लाला के ऊपर पड़ी हुई थी। विजय उठ कर खड़ा हो गया था और मेरे चूतड़ों को थपथपा रहा था।
कुछ ही समय के बाद हम अपने कपड़े पहन कर सोफ़े पर बैठे हुये चाय पी रहे थे।
लाला आज बहुत खुश था कि आज उसे मुझे चोदा था। ये कार्यक्रम मेरा मस्ती से छः महीनो तक चलता रहा। पूजा अब लाला से भी चुदवाने लगी थी। तभी कनाडा से सूचना आई कि मेरे पति दो दिन बाद घर पहुंच रहे हैं।
मैंने विजय और लाला को इस बारे में बताया कि अब ये सब बन्द करते है और मौका मिलने पर फिर से ये रंग भरी महफ़िल जमायेंगे। पर हां जोगिन्ग पार्क मे हम नियम से रोज मिलेंगे। पूजा दोनों के लण्ड शान्त करती रहेगी। वो उदास तो जरूर हुये पर पूजा ही अब उनका एक सहारा था। पूजा भी बहुत खुश नजर आ रही थी कि अब उसकी चुदाई भरपूर होगी…अपनी लाल चड्डी भी उतार दी। विजय तो पहले ही नंगा था, उसका लण्ड तन्ना रहा था, चोदने को बेताब था…
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply


Messages In This Thread
posting and pasting - by neerathemall - 12-10-2021, 11:46 AM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 02:58 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:01 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:01 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:06 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:06 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:15 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:18 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:28 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:31 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:32 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 01-11-2021, 03:33 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 02:57 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 02:58 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 02:59 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 02:59 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:00 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:00 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:01 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:01 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:02 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:03 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:04 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:04 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:05 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:06 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:06 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:21 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:23 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:23 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:25 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:25 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:26 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:27 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:29 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:30 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:31 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:32 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:33 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:34 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 02-11-2021, 03:34 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 15-12-2021, 10:23 AM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 15-12-2021, 10:30 AM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 15-12-2021, 10:35 AM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 14-02-2022, 04:00 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 14-02-2022, 05:42 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 14-02-2022, 05:45 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 14-02-2022, 05:49 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 14-02-2022, 05:51 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 16-03-2022, 03:33 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 16-04-2022, 02:18 PM
RE: posting and pasting - by neerathemall - 16-04-2022, 05:28 PM
RE: poisting and pasting - by neerathemall - 12-10-2021, 12:00 PM
RE: poisting and pasting - by neerathemall - 12-10-2021, 12:15 PM
RE: poisting and pasting - by neerathemall - 12-10-2021, 12:23 PM



Users browsing this thread: 1 Guest(s)