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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
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" क्षमा कीजिये महाराज, पुष्पनगरी के राजा नंदवर्मन के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार देववर्मन आपके दर्शनाभिलाशी हैं... ". मरूराज्य नरेश हर्षपाल के शयनकक्ष में प्रवेश करते ही एक सैनिक ने कहा. " उन्होंने कहा है ये बहुत... ".

हर्षपाल अपने सैनिक कि बात बीच में ही काटकर ज़ोर से चिल्लायें.

" मूर्ख... बातें मत कर, उन्हें तत्काल आदरपूर्वक अंदर ले आ !!! ".

सैनिक डरते डरते सिर झुकाकर बाहर चला गया. एक पल के बाद ही कक्ष में देववर्मन ने प्रवेश किया, परन्तु अंदर सामने का दृश्य देखते ही वो ठिठक कर रुक गएँ, और सिर नीचे करके कहा.

" क्षमाप्रार्थी हूँ राजा हर्षपाल... मुझे ज्ञात ना था कि आप अपनी पत्नियों के संग हैं, वर्ना मैं किसी और समय पधारता ! ".

सामने एक विशालकाय सैया पर हर्षपाल पूरी तरह से निर्वस्त्र लेटे हुये थें, एक नग्न स्त्री उनकी फैली हुई टांगों के मध्य अपना मुँह घुसाये अपना चेहरा ऊपर नीचे कर रही थी. उसका चेहरा उसके काले लंबे केश से पूर्णत: ढंका हुआ था, सो कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था, परन्तु उसकी हरकते देखकर कोई भी अनुमान लगा ही लेता कि वो मुखमैथून में लिप्त है. एक दूसरी स्त्री हर्षपाल के समीप नंगी लेटी उनका बालों से भरा सीना सहला रही थी !

" पत्नि ??? ". हर्षपाल ठहाका मारकर हँस पड़े, और बोलें. " अरे नहीं नहीं... ये तो हमारी नर्तकी हैं. जब हमें ज्ञात हुआ की ये दोनों सुंदर नर्तकीयां नृत्य के अलावा और भी कई सारी कलाओ में निपुण हैं, तो हमने तुरंत ही इन्हे नृत्यालय से निकालकर अपने शयनकक्ष की सेविका बना लिया ! ".

देववर्मन अंदर ही अंदर क्रोधित होते हुये चुपचाप खड़े हर्षपाल की बकवास सुनते रहें.

" चार दिनों से हम अपने कक्ष से बाहर नहीं निकले हैं राजकुमार देववर्मन, अपनी पत्नियों से भी नहीं मिलें. अब तो लगता है की आपकी बहन राजकुमारी अवंतिका से विवाहोपरांत ही हमारा इन सुंदरीयों से साथ छूटेगा ! ".

देववर्मन कुछ ना बोलें.

" परन्तु आप चिंता ना करें राजकुमार... आपकी बहन के हमारे राजभवन में वधु बनकर आते ही हमारी ये सारी आदतें अपने आप छूट जाएंगी ! ".

" अवश्य राजा हर्षपाल... आप राजा हैं, आपको हर कुछ शोभा देता हैं ! ". देववर्मन ने हर्षपाल को चुप कराने के उदेश्य से खींझ कर कहा. फिर बोलें. " मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी ! ".

" अवश्य... अवश्य ! तभी तो आप इतनी दूर की यात्रा करके हमारे राज्य में पधारें हैं, आपका स्वागत है ! ".

" मेरा मतलब था, मुझे आपसे एकांत में बात करनी है... ".

" एकांत में ??? ". हर्षपाल ने वापस से प्रश्न किया, फिर कुछ सोचा, और फिर जो नर्तकी उनका लण्ड चूस रही थी, उससे कहा. " जल्दी करो रोहिणी... मेहमान को प्रतीक्षा कराना घोर पाप है ! ".

हर्षपाल की बात समझकर दूसरी नर्तकी उनके पास से उठी, और पहली नर्तकी के मुँह में घुसे उनके लण्ड के अंडकोष को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबाने लगी. हर्षपाल के चरमोत्कर्ष की अवधी को कम करने की उसकी ये तरकीब काम आई, जल्द ही वो छटपटाने लगें, उनके पैर अकड़ गएँ, और वो पहली नर्तकी के मुँह में अपना वीर्य भरने लगें.

देववर्मन चुपचाप खड़े इस नाटक को ना चाहते हुये भी देखते रहें.

पहली नर्तकी ने हर्षपाल के जाँघों के बीच से अपना चेहरा उठाया तो उनका झड़ा हुआ लण्ड उसके मुँह से फिसल कर बाहर निकल आया और ज़ोर ज़ोर से फड़कने लगा. स्पष्ट था की पहली नर्तकी उनका सारा का सारा वीर्य निगल चुकी थी ! दूसरी नर्तकी खिलखिलाकर हँसने लगी, फिर दोनों ने एक साथ हर्षपाल के लण्ड को चूमा. फूलते हुये साँस के साथ हर्षपाल उठें और दोनों नर्तकीयों के चूतड़ों पर एक साथ हल्के से थप्पड़ मारा, तो इशारा समझकर दोनों नर्तकीयां बिस्तर से उतरकर दौड़ते हुये कक्ष से बाहर भाग गईं.

हर्षपाल के चेहरे पर चरमसुख का संतोष साफ झलक रहा था. उन्होंने पास पड़े चादर से अपना ढीला पड़ रहा लण्ड ढंक लिया, परन्तु बिस्तर पर से उठें नहीं, और बोलें.

" आसन ग्रहण कीजिये राजकुमार... ".

देववर्मन बिस्तर के समीप रखे एक सिंहासन पर विराजमान हो गएँ.

" पहले जल ग्रहण कीजिये, भोजन कीजिये, थोड़ी मदिरा लीजिये... ".

" इन सबका समय नहीं है राजन !!! ".

" समय नहीं है ??? किसके पास समय नहीं है, आपके या हमारे ??? ". हर्षपाल ने आश्चर्य से पूछा.

" मैं आपको सारी बात बता देता हूँ राजन, फिर आप ही तय करें की इस परिस्थिति में समय का अधिक मूल्य किसके लिए है...आपके या मेरे ! ".

" ऐसी क्या बात हो गई ??? महाराज ठीक तो हैं ना... और अवंतिका ? ".

" अगर पिताश्री को पता चल गया की मैं आपसे मिलने आया हूँ तो उनके गुप्तचर मेरे प्राण हर लेंगे ! ".

" आपको यहाँ किसी का भय नहीं राजकुमार. परन्तु महाराजा नंदवर्मन आपके प्राण क्यूँ लेना चाहेंगे ??? पहेलियाँ ना बुझाईये... बताईये ! ".

" आपके साथ धोखा हुआ है राजा हर्षपाल !!! ".

" धोखा ??? कैसा धोखा ? ".

देववर्मन ने ऐसा नाटक किया मानो भय से उनकी साँस अटक रही हो, फिर बताने लगें.

" ध्यान से सुनिए राजन ! आपको तो ज्ञात ही है की मेरी बहन अवंतिका का आपके साथ विवाह होने से पहले उसके दोषनिवारण हेतु उसका विवाह सत्ताईस दिनों के लिए मेरे छोटे भाई विजयवर्मन से कर दिया गया था... ".

" हाँ राजकुमार... और मुझे इस पवित्र दोषनिवारण पूजा पाठ विधि से कोई आपत्ति नहीं थी... ".

" वही तो राजन, अवंतिका का दोष, उसका विवाह, ये सारा कुछ एक षड़यंत्र था ! सब मिथ्या था ! ये सारा का सारा नाट्य विजयवर्मन का रचा हुआ था. असल में मेरे छोटे भाई का... ". कहते कहते देववर्मन जानबूझकर रुकें, ये दर्शाने के लिए की वो आगे की बात बताने में हिचक रहें हैं, फिर बोलें. " मेरे छोटे भाई का हमारी बहन अवंतिका से अवैध सम्बन्ध था. ये बात हमारे परिवार में किसी को भी ज्ञात ना था. दोनों भाई बहन ने अपनी कामाग्नि जीवन भर के लिए मिटाने हेतु पुरोहित जी के साथ मिलकर ये स्वांग रचा. पुरोहित जी ने झूठमूठ अवंतिका का कोई अदभुत दोष बताकर दोनों भाई बहन के सत्ताईस दिन के लिए विवाह बंधन में बंधने का उपाय बताया. विजयवर्मन को पता था की अगर एक बार उसका अपनी बहन से विवाह हो जाये तो फिर दोनों को कोई भी अलग नहीं कर सकता. ".

हर्षपाल जड़ होकर देववर्मन की बात सुनते रहें.

" ये सत्ताईस दिन पूरे होने के बाद स्वयं विजयवर्मन ने ये बात हम सबों को बताई. परन्तु सबसे दुख और लज्जा की बात ये है की अब सारी बात जानने के बाद पिताश्री और माताश्री ने भी इस घृणित सम्बन्ध को स्वीकृती दे दी है, ये कहकर की अब जब दोनों का विवाह हो ही गया है तो फिर और किया भी क्या जा सकता है. जब मैंने इस बात का विरोध किया और कहा की हमें महाराज हर्षपाल को इस भांति अंधकार में रखकर उनके साथ छल नहीं करना चाहिए, तो पिताश्री ने ये कहकर मुझे सदैव के लिए चुप रहने का आदेश दिया, की राजपरिवार के मान सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए हमें ये बात राजा हर्षपाल से किसी भी हालत में छुपानी पड़ेगी. वे लोग एक दो दिन में अवंतिका और विजयवर्मन को राज्य से बाहर दक्षिण में हमारे मामाश्री के साम्राज्य में भेंज देंगे. उनकी योजनानुसार कहें तो उसके कुछ दिन बाद आपको ये सन्देश दे दिया जायेगा की पुरोहित जी ने कहा है की अवंतिका का दोषनिवारण असफल रहा, और अब वो कभी भी किसी से विवाह नहीं कर सकती, क्यूंकि विवाहोपरांत उसके पति की मृत्यु तय है. इस बात को सुनकर आप खुद ही भय से पीछे हट जायेंगे और... ".

" तनिक रुकिए राजकुमार... ". बड़ी बड़ी आँखे किये हुये हर्षपाल ने चादर अपने कमर से बांधा और नंगे बदन ही सैया से उठकर नीचे उतर आएं, देववर्मन के विपरीत दिशा में थोड़ी दूर तक टहल कर गएँ, फिर रुकें, और पीछे मुड़कर बोलें. " तो आप ये कह रहें हैं राजकुमार, की आपकी छोटी बहन और छोटे भाई में अनैतिक सम्बन्ध है, वही छोटी बहन जिससे हमारा विवाह तय हुआ था, और अब दोनों पति पत्नि हैं, और इस घिनौने बंधन को स्वीकार कर राजा नंदवर्मन अब हमें ही मूर्ख बना कर मुझे अपमानित कर रहें हैं, वो भी हमें पूरी सच्चाई से अवगत कराये बिना ??? ".

नाटकिय तरीके से देववर्मन ने अपना सिर झुका लिया, मानो हर्षपाल की बात का उत्तर देने का साहस उनमें ना हो !

" अगर आपका कथन सत्य है तो फिर आप ही हमें एक कारण बताईये राजकुमार, की क्यूँ ना हम अभी यहीं आपका वध करके अपने अपमान का प्रतिशोध ले लें ??? ".

" अगर ऐसा करने से आपका प्रतिशोध पूर्ण होता है राजन, तो आप अवश्य ही ऐसा करें ! ".

" चिंता ना करें राजकुमार, सिर्फ आपके प्राण लेकर हमारी प्रतिशोध की अग्नि शांत ना होगी. आपके बाद आपके पिताश्री, आपकी छोटी बहन और आपके छोटे भाई कि भी यही स्थिति होगी ! ".

" मैं यहाँ निहत्था ही आया हूँ राजन... हमारे परिवार ने आपके साथ जो कुछ भी किया है उसके बाद आपका विरोध करने का साहस मुझमें तो नहीं रहा ! ".

हर्षपाल ने धीरे से अपना सिर हिलाया, मानो सब कुछ समझने कि चेष्टा कर रहें हों, और पूछ बैठे.

" आपको हमसे क्या चाहिए राजकुमार, अपने परिवार के विरुद्ध जाकर आपने हमें ये सब क्यूँ बताया ? ".

" इसके तीन प्रमुख कारण हैं राजन... ". देववर्मन समझ चुके थें कि उनका तीर निशाने पर लग गया है, तो अब वो हर्षपाल को समझाते हुये बोलें. " प्रथमत: मेरी छोटी बहन और छोटे भाई ने भाई बहन के पवित्र रिश्ते का अपमान किया है, द्वितीय, आपने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है, सो आपको धोखा देना मुझे स्वीकार नहीं, और तृतीय कारण ये है राजन, कि मैं स्वयं भी पूर्ण रूप से स्वार्थ से परे नहीं हूँ !!! ".

" तो फिर आपका स्वार्थ क्या है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने देववर्मन के समीप आकर धीरे से पूछा.

" मुझे राजसिंहासन चाहिए, मैं चाहता हूँ कि आप इसमें मेरी सहायता करें ! ".

" भला वो कैसे ? ".

" हमारे राज्य पर आक्रमण करके... ".

" वो तो हम यूँ भी कर ही सकते हैं... परन्तु आपकी सहायता करके हमें क्या लाभ होगा ? ".

" आपके अपमान का प्रतिशोध पूर्ण होगा ! ".

" फिर आपको हम राजा घोषित क्यूँ करें राजकुमार, आपका राज्य स्वयं ना हड़प लें ? ". हर्षपाल ने ब्यंग से मुस्कुराते हुये पूछा.

" मेरी सहायता के बिना आप कभी भी हमारे राज्य को पराजित नहीं कर पाएंगे राजन ! ". देववर्मन ने दृढ़ स्वर में कहा.

" और इसका कारण ? ".

" हमारे राजमहल कि बनावट ही ऐसी है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी आप प्रवेशद्वार के फाटक तक भी नहीं पहुँच पाएंगे, फिर या तो आपके सारे सैनिक मार गिराए जायेंगे, या फिर आपको पराजय स्वीकार करके वापस लौट जाना पड़ेगा... ".

हर्षपाल ध्यानपूर्वक देववर्मन कि बात सुनते रहें.

" सिर्फ मुझे राजमहल का एक गुप्त द्वार ज्ञात है, जो कि मैं आपके लिए खोल सकता हूँ, ताकि आप और आपकी सेना अंदर प्रवेश कर सके. जो युद्ध आप तीन दिन तक लगातार लड़ कर भी हार जायेंगे, वही युद्ध आप मेरी सहायता से कुछेक क्षणो में ही जीत सकतें हैं राजन ! ".

हर्षपाल के चेहरे पर अभी भी शंका के बादल मंडराते देख देववर्मन समझ गएँ कि शायद उन्हें हमले के लिए मनाना इतना आसान नहीं होगा, तो वो उठ खड़े हुये, और अपना अंतिम दाँव फेंका.

" ठीक है राजन, मुझे कुछ नहीं चाहिए. आप मुझे सिंहासन सौंप दें, फिर मैं अपने राज्य को आपके अधीन घोषित कर दूंगा, यानि हमारा राज्य आपके राज्य का ही हिस्सा हुआ समझिये, केवल नाममात्र का राजा बने रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं !!! "

हर्षपाल कुछ नहीं बोलें, पीछे मुड़कर टहलते हुये कुछ सोचने लगें, कुछ देर बाद वापस देववर्मन के पास आएं, और अपना चेहरा देववर्मन के चेहरे के एकदम समीप लेजाकर उनकी आँखों में आँखे डालकर अपनी आँखे बड़ी बड़ी करते हुये बोलें.

" आपका परिवार हमें पहले ही अत्यंत अपमानित कर चुका है, धोखा किया है हमारे साथ, ऐसी परिस्थिति में आपके परिवार के किसी भी व्यक्ति पर भरोसा करना अब मेरे प्रति संभव नहीं रहा. फिर भी हमें आपकी बात पर भरोसा करने का मन कर रहा है . परन्तु एक बात स्मरण रखिये राजकुमार, अगर आपने हमारे साथ किसी प्रकार का छल कपट करने का दुस्साहस किया, तो आपका राज्य भले ही हम ना जीत पाएं, आपके प्राण लेने से हमें स्वयं यमराज भी नहीं रोक पाएंगे !!! ".

हर्षपाल कि कठोर धमकी से एक क्षण के लिए देववर्मन भी सहम से गएँ, फिर हल्का सा मुस्कुरायें, और बोलें.

" मेरा वध करने का विकल्प आपके पास हमेशा रहेगा राजन ! ".

" हम्म्म्म... मेरी भी एक शर्त है राजकुमार देववर्मन... ".

" अवश्य राजन... ".

" अवंतिका और विजयवर्मन का वध मैं स्वयं अपने हाथों से करूँगा !!! ".

" अगर वो दोनों मेरे हाथों मृत्यु को प्राप्त होने से बच गएँ, तो अवश्य ही राजन !!! ". देववर्मन ने दाँत पीसते हुये कहा.

" और मैंने सुना है कि आपकी पत्नि चित्रांगदा भी रूप सौंदर्य में कुछ कम नहीं !!! ". हर्षपाल ने घृणित तरीके से मुस्कुराते हुये कहा.

देववर्मन ने अपनी आँखे नीचे कर ली, एक क्षण को रुकें, कुछ सोचा, और फिर आँखे ऊपर करके मुस्कुराते हुये उत्तर दिया.

" मेरी बहन अवंतिका जैसी सुंदर तो नहीं, जिसमें आपकी पत्नि बनने के गुण हों, परन्तु युद्ध के उपरांत अगर आप उसे अपनी दासी भी बना लें तो अवश्य ही ये उसका सौभाग्य होगा, जिसके लिए वो आजीवन आपकी ऋणी रहेगी ! ".

हर्षपाल ने मुस्कुराकर देववर्मन को दोनों कंधो से पकड़ कर मित्रता का अस्वासन दिया.

" परन्तु आपको एक दो दिन के अंदर ही आक्रमण करना होगा, अवंतिका और विजयवर्मन राज्य छोड़कर भागने कि तैयारी में हैं ! ". देववर्मन ने कहा.

" हमारी सेना सर्वदा तैयार रहती है राजकुमार... बस आप अपनी सहायता वाली बात पर अडिग रहें ! ".

" जी राजन... ". देववर्मन ने कहा, फिर थोड़ा मुस्कुराकर विषय बदलते हुये बोलें. " अब तनिक मदिरा मंगवाईये राजन, आपके भय से मेरा गला सूख गया है ! ".

इतना सुनते ही हर्षपाल ज़ोर से अट्टहास करते हुये हँस पड़ें, और द्वार की ओर देखकर ताली बजाई, तो एक दासी तुरंत कक्ष के अंदर आई, और सिर झुकाकर खड़ी हो गई.

" मूर्ख स्त्री... देख क्या रही हो, मदिरा लाओ... मदिरा !!! ". हर्षपाल ज़ोर से चिल्लायें.

दासी के बाहर जाते ही देववर्मन ने हर्षपाल से कहा.

" वैसे आपके राजमहल में और भी सुंदर नर्तकीयां हैं क्या ??? ".

हर्षपाल एक बार पुनः ठहाका मारकर हँस पड़ें, और बोलें.

" अवश्य राजकुमार...अवश्य, अभी उपस्थित करता हूँ !!! ".
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 24-07-2021, 06:38 PM



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