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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
जब साजन ने खोली मोरी अंगिया


स्नानगृह में

स्नानगृह में जैसे ही नहाने को मैं निर्वस्त्र हुई 
मेरे कानों को लगा सखी, दरवाज़े पे कोई दस्तक हुई 
धक्-धक् करते दिल से मैंने दरवाज़ा सखी री, 
खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी, जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


आते ही साजन ने मुझको अपनी बाँहों में कैद किया 
होंठों को होंठों में लेकर उभारों को हाथों से मसल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


फिर साजन ने, सुन री ओ सखी, फव्वारा जल का खोल दिया 
भीगे यौवन के अंग-अंग को होंठों की तुला में तौल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


कंधे, स्तन, कमर, नितम्ब कई तरह से पकड़े, मसले और छोड़े गए 
गीले स्तन सख्त हाथों से आंटे की भांति गूंथे गए 
जल से भीगे नितम्बों को दांतों से काट-कचोट लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मैं विस्मित सी, सुन री ओ सखी, साजन की बाँहों में सिमटी रही 
साजन ने नख से शिख तक ही होंठों से अति मुझे प्यार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


चुम्बनों से मैं थी दहक गई, जल-क्रीड़ा से बहकी मैं सखी 
बरबस झुककर स्व मुख से मैंने साजन के अंग को दुलार किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


चूमत-चूमत, चाटत-चाटत साजन पंजे पर बैठ गए 
मैं खड़ी रही साजन ने होंठ नाभि के नीचे पहुँचाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मेरे गीले से उस अंग से उसने जी भर के रसपान किया 
मैंने कन्धों पे पाँव को रख रस के द्वार को खोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


मैं मस्ती में थी डूब गई क्या करती हूँ न होश रहा 
साजन के होंठों पर अंग को रख नितम्बों को चहुँ-ओर हिलौर दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 



साजन बहके-दहके-चहके मोहे जंघा पर ही बिठाय लिया 
मैंने भी उसकी कमर को अपनी जंघाओं में फँसाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


जल से भीगे और रस में तर अंगों ने मंजिल खुद खोजी 
उसके अंग ने मेरे अंग के अंतिम पड़ाव तक प्रवेश किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


ऊपर से जल कण गिरते थे नीचे दो तन दहक-दहक जाते 
चार नितम्ब एक दंड से जुड़े एक दूजे में धँस-धँस जाते 
मेरे अंग ने उसके अंग के एक-एक हिस्से को फांस लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


जैसे वृक्षों से लता, सखी, मैं साजन से लिपटी थी यों 
साजन ने गहन दबाव देकर अपने अंग से मुझे चिपकाय लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


नितम्बों को वह हाथों से पकड़े स्पंदन को गति देता था 
मेरे दबाव से मगर सखी वह खुद ही नहीं हिल पाता था 
मैंने तो हर स्पंदन पर दुगना था जोर लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


अब तो बस ऐसा लगता था साजन मुझमें ही समा जाएँ 
होठों में होंठ, सीने में वक्ष आवागमन अंगों ने खूब किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


कहते हैं कि जल से, री सखी, सारी गर्मी मिट जाती है 
जितना जल हम पर गिरता था उतनी ही गर्मी बढ़ाए दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


वह कंधे पीछे ले गया, सखी, सारा तन बाँहों पर उठा लिया 
मैंने उसकी देखा-देखी अपना तन पीछे खींच लिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


इससे साजन को छूट मिली साजन ने नितम्ब उठाय लिया 
अंग में उलझे मेरे अंग ने चुम्बक का जैसे काम किया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


हाथों से ऊपर उठे बदन नितम्बों से जा टकराते थे 
जल में भीगे उत्तेजक क्षण मृदंग की ध्वनि बजाते थे 
साजन के जोशीले अंग ने मेरे अंग में मस्ती घोल दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


खोदत-खोदत कामांगन को जल के सोते फूटे री सखी 
उसके अंग के फव्वारे ने मोहे अन्तस्थल तक सींच दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 


फव्वारों से निकले तरलों से तन-मन दोनों थे तृप्त हुए 
साजन के प्यार के उत्तेजक क्षण मेरे अंग-अंग में अभिव्यक्त हुए 
मैंने तृप्ति की एक मोहर साजन के होंठों पर लगाय दिया 
उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली मोरी अंगिया ! 
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 21-07-2021, 08:27 PM



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