20-07-2021, 12:29 PM
(This post was last modified: 22-07-2021, 10:45 AM by usaiha2. Edited 5 times in total. Edited 5 times in total.)
नेट पर सर्फ़िग करते समय मुझे कविता के रूप में कुछ रचनाये मिली जिनका शीर्षक था..."उस रात की बात न पूछ सखी जब साजन ने खोली अंगिया".
मुल रचनाओं के अनाम अज्ञात रचनाकार को कोटिशः धन्यवाद...
प्रथम रात्रि प्रणय कि एवं उसके पश्चात संभोग कि गाथा कैसे एक नवविवाहिता स्त्री अपनी सखी को बता रही है इसी पर यह कवितायें इतने खुलेपन से लिखी गई थी क्या कहूं...उन्हें पढ कर लगा कि यही बात इससे व्यवस्थित और साफ़ सुथरे ढंग से नहीं कही जा सकती...
आप भी आनंद लें...
प्रथम रात्रि
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
दरवाज़े खुले फिर बंद हुए, कुण्डी उन पर सरकाई गई
मैं जान – बूझकर सुन री सखी, निद्रा-मुद्रा में लेट गई
साजन की सुगंध को मैंने तो, हर साँस में था महसूस किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पहले हम हँसे फिर नैन हँसे, फिर नैनन बीच हँसा कजरा
पहले तो निहारा उसने मुझे फिर मुस्कान होठों पर खेल गई
ऊँगली से ठुड्डी उठा मेरी, होठों को मेरे सखी चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
दबा-दबा के बक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया,
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया
उभरे अंगों को साजन ने , दांतों के बीच दबाय लिया
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा
होठों को लेकर होठों में, सब रस होठों का चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढती गई
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए
सखी गालों पर गहन चुम्बन लेकर,
अंगिया की डोर को खींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई
ऊँगली से ठुड्डी उठा मेरी, होठों को मेरे सखी चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
मेरे स्तन बारी बारी उसने वस्त्र सहित ही चूम लिए
अंगिया का आवरण दूर किया और चुम्बन से उन पर दबाय दिया
हर कोने में स्तनों को री सखी, हाथों से उभार कर चूम लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
दबा-दबा के बक्षों को, उसने मुझको मदहोश किया
फिर चूम लिया और चाट लिया, फिर तरह-तरह से चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अंगन से रगड़त थे अंगन को, सब अंगन पे जीभ फिरात रहे
सर्वांग मेरे बेहाल हुए, मुझे मोम की भांति पिघलाय दिया,
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
आगे चूमा पीछे चूमा, मोहे चूम-चूम निढाल किया
उभरे अंगों को साजन ने , दांतों के बीच दबाय लिया
मैं कैसे कहूँ तुझसे ऐ सखी, अंग-अंग पे निशानी छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
माथे को उसने चूम लिया, फिर आँखों को उसने चूमा
होठों को लेकर होठों में, सब रस होठों का चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
चुम्बन की बारिश सुन री सखी, ऊपर से नीचे बढती गई
मैं सिसकारी लेती ही गई, वह अमृत रस पीता ही गया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
साजन ने बैठकर बिस्तर पर, मेरे कंधे सहलाए
सखी गालों पर गहन चुम्बन लेकर,
अंगिया की डोर को खींच दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
नग्न पीठ पर साजन ने, ऊँगली से रेखा खींच दई
बिजली जैसे मुझमे उतरी, सारे शरीर में दौड़ गई
निस्वास लेकर फिर मैंने तो,अपनी करवट को बदल लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ
मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एक हाथ से उसने सुन ओ सखी,
स्तन दबाये और भीच लिया
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया
दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन का दस अंगुल का अंग,
सखी मेरी तरफ था देख रहा
उसकी बेताबी समझ सखी, मैंनेउसको अधरस्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई
वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया
बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था
अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय दिया
दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया
करवट तो मात्र बहाना था, बैचेन बदन को चैन कहाँ
मुझे साजन की खुसबू ने सखी, अंग लगने को मजबूर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
एक हाथ से उसने सुन ओ सखी,
स्तन दबाये और भीच लिया
मैंने गर्दन को ऊपर कर, उसके हाथों को चूम लिया
दोनों बाँहों से भीच मुझे, साजन ने करीब और खींच लिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने जोर लगा करके, मोहे अपने ऊपर लिटा लिया
मेरे तपते होठों को उसने, अपने होठों में कैद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने भींचा मेरा निचला होंठ, मैंने ऊपर का भींच लिया दोनों के होंठ यूँ जुड़े सखी, जिह्वाओं ने मिलन का लुत्फ़ लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने उठाकर मुझे सखी, पलंग के नीचे फिर खड़ा किया
खुद बैठा पलंग किनारे पर, मेरा एक-एक वस्त्र उतार दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मुझे पास खींचकर फिर उसने, स्तनों के चुम्बन गहन लिया दोनों हाथों से नितम्ब मेरे, सख्ती से दबाकर भींच लिया
कई तरह से उनको सहलाया, कई तरह से दबाकर छोड़ दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
स्तन मुट्ठी में जकड सखी, उसने उनको था उभार लिया उभरे स्तन को साजन ने, अपने मुंह माहि उतार लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
बोंडियों को जीभ से उकसाया, होठों से पकड़ उन्हें खींच लिया
रस चूसा सखी उनसे जी भर, मेरी काम- क्षुधा भड़काय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन का दस अंगुल का अंग,
सखी मेरी तरफ था देख रहा
उसकी बेताबी समझ सखी, मैंनेउसको अधरस्थ किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पलंग के कोर बैठा साजन, मैं नीचे थी सखी बैठ गई
साजन के अंग पर जिह्वा से, मैंने तो चलीं कई चाल नई
वह ओह-ओह कर चहुंक उठा, मैंने अंग को ऐसा दुलार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
अब सब कुछ था बिपरीत सखी, साजन नीचे मैं पलंग कोर जिस तरह से उसने चूसे स्तन, उसी तरह से अंग को चूस लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसने अपनी जिह्वा से सखी, अंग को चहूँ ओर से चाट लिया
बहके अंग के हर हिस्से को, जिह्वा- रस से लिपटाय दिया रस में डूबे मेरे अंग में, अन्दर तक जिह्वा उतार दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैं पलंग किनारा पकड़ सखी, अंग को उभार कर खड़ी हुई साजन ने मेरे नितम्बों पर, दांतों से सिक्के छाप दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
उसके बिपरीत मुख करके सखी, घुटनों के बल मैं बैठ गई कंधे तो पलंग पर रहे झुके, नितम्बों को पूर्ण उठाय दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने झुककर पीछे से, अंग ऊपर से नीचे चाट लिया खुले-उभरे अंग में उसने, जिह्वा को अंग बनाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अपने अंग से सखी, मेरे अंग को जी भरके रगडा अंग से स्रावित रस में अंग को, सखी पूर्णतया लिपटाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
कठोर -सख्त अंग से री सखी, रस टपक-टपक कर गिरता था
अपना अंग लेकर वह री सखी, मेरे अंग के मध्य समाय दिया
दस अंगुल की चिकनी सख्ती, मेरे अंग के मध्य घुसाय दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोरता पर मधुर छुहन अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरारोम-रोम आह्लाद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अब जिह्वा रस की, एकधारा नितम्ब मध्य टपकाई
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरेअंगों ने सोख लई
चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जैसे-जैसे बढे स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बढा
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा
साजन की आह ओह के संग, मैंनेआनंदमय सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
बारिश होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया
अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
साजन के अंग ने मेरे अंग को,सखी अद्भुत यह उपहार दिया
आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी
मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया
स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनंद-अगन का काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता
श
छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढती गई
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई ,
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लोहार कोई चोट करे,
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथोड़े सा
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता
साजन के अंग से चिपुड- चिपुड, मेरे अंग को और भी मदमाता
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था,
कम्मर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अब इतनी क्रियाएं एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी ,
मुंह में जिह्वा, होठों में होठ, अंगों का परस्पर परिचालन
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई- कई धाराएँ छोड़ दिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
जांघों के सहारे उठे नितम्ब, अब स्पंदन का सुख भोग रहे स्पंदन की झकझोर से फिर, स्तन दोलन से डोल रहे सीत्कार, सिसकी, उई, आह, ओह, सब वातावरण में घोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
ऐसे स्पंदन सखी मैंने, कभी सोचे न महसूस किये
पूरा अंग बाहर किया सखी, फिर अन्तस्थल तक ठेल दिया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मैंने अंग में महसूस करी, अंग की कठोरता पर मधुर छुहन अंग की रसमय मधुशाला में, अंग ने अंग को मदहोश किया उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
पहले तो थे धीरे-धीरे, अब स्पंदन क्रमशः तेज हुए
अंग ने अब अंग के अन्दर ही, सुख के थे कई-कई छोर छुए तगड़े गहरे स्पंदन से, मेरारोम-रोम आह्लाद किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
साजन ने अब जिह्वा रस की, एकधारा नितम्ब मध्य टपकाई
उसकी सारी चिकनाई सखी, हमरेअंगों ने सोख लई
चप-चप, लप-लप की ध्वनियों से, सुख के द्वारों को खोल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
जैसे-जैसे बढे स्पंदन, वैसे-वैसे आनंद बढा
हर स्पंदन के साथ सखी, सुख घनघोर घटा सा उमड़ पड़ा
साजन की आह ओह के संग, मैंनेआनंदमय सीत्कार किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
बारिश होने के पहले ही, सखी मेरा बांध था टूट गया
मेरी जांघों ने जैसे की, नितम्बों का साथ था छोड़ दिया
अंग का महल ढह गया सखी, दीर्घ आह ने सुख अभिव्यक्त किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मेरे नितम्बों के आँगन पर, साजन ने मोती बिखेर दिया
साजन के अंग ने मेरे अंग को,सखी अद्भुत यह उपहार दिया
आह्लादित साजन ने नितम्बों का, मोती के रस से लेप किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
मोती रस से मेरी काम अगन, मोती सी शीतल हुई सखी
मन की अतृप्त इस धरती पर, घटा उमड़-उमड़ कर के बरसी
मैंने साजन का सिर खीच सखी, अपने बक्षों में छुपाय लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया
फिर स्पंदन का दौर चला, तन 'मंथन योग' में डूब गया
स्पंदन क्रमशः तेज हुए, मैंने भी नितम्ब उठाय दिए
मैं लेती गई वह देता गया, अब सीत्कार उल्लास हुआ
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
खटिया की ‘चूँ-चूँ’ की धुन थी, और स्पंदन की थाप सखी
उसकी सांसों की हुन्कन ने, आनंद-अगन का काम किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अंग उसका सखी मेरे अंग में, अन्दर जाता बाहर आता
श
छूकर मेरे अन्तस्थल को, वह सखी और भी इतराता
मेरे अंग ने तो सरस होकर, सखी उसको और कठोर किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
हर स्पंदन के साथ सखी, मेरी मदहोशी बढती गई
मैं सिसकारी के साथ साथ, उई आह ओह भी करती गई ,
अंगों के रसमय इस प्याले में, उत्तेजना ने अति उफान लिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
उसके नितम्ब यूँ उठे-गिरे, जैसे लोहार कोई चोट करे,
तपता लोहा मेरा अंग बना उसका था सख्त हथोड़े सा
उसके मुख से हुन्कन के स्वर, मैंने आह ओह सीत्कार किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
स्पंदन रत उसके नितम्बों पर, मैंने सखी उँगलियाँ फेर दईं
मैंने तो अपनी टांगों को सखी उसकी कमर में लपेट दईं
मैंने हाथों से देकर दबाव, नितम्बों को गतिमय और किया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
हर स्पंदन से रस बनता, अंग के प्याले में गिर जाता
साजन के अंग से चिपुड- चिपुड, मेरे अंग को और भी मदमाता
साजन ने रसमय अंग लेकर, स्पंदन कई विशेष किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
पूरा का पूरा अंग उसका, सखी मेरे अंग के अन्दर था,
कम्मर के पार से हाथ लिए, नितम्बों को उसने पकड़ा था
अंग लम्बाई तक उठ नितम्बों ने, अंग उतना ही अन्दर ठेल दिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
अब इतनी क्रियाएं एक साथ, मेरे तन में सखी होती थी ,
मुंह में जिह्वा, होठों में होठ, अंगों का परस्पर परिचालन
साजन ने अपने हाथों से, स्तनों का मर्दन खूब किया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं अब सब कुछ सखी भूल गई, मैंने कुछ भी न याद किया
अंग की गहराई में साजन ने, सुख तरल बना के घोल दिया
मेरे अंग में उसने परम सुख की कई- कई धाराएँ छोड़ दिया
उसरात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.
मैं संतुष्ट हुई वह संतुष्ट हुआ, उसका तकिया मेरा बक्ष हुआ
गहरी सांसों के तूफानों ने, क्रमशः बयार का रूप लिया
उस रात की बात न पूँछ सखी, जब साजन ने खोली अँगिया.