17-07-2021, 07:12 PM
कुछ देर बाद अल्का ‘आऊ… आऊ…’ करती हुई जोर जोर से चिल्लाने लगी। उसी लय ताल में वो अपनी कमर ऊपर उठाने लगी। ऐसे तो वो पहले कभी भी नहीं भोगी गई थी! अच्चन ने कल ही मुझे स्त्रियों के सबसे संवेदनशील अंग - उनके भगनासे के बारे में बताया था, और यह भी कि उसको छेड़ कर अपनी पत्नी को कैसे आनंद देना है। उनकी सीख तो मैं इस समय आज़मा रहा था - मेरी जीभ अल्का के भगनासे से खेल रही थी। कभी मैं उसको अपने दाँत से पकड़ लेता, कभी जीभ से चाट लेता, तो कभी होंठों से पकड़ कर ऊपर की तरफ खींच लेता। कामोत्तेजना से अल्का पागल हो रही थी।
“ब्ब्ब्बस बस... ऊऊऊ... बस ओह! चेट्टन अब बस! अब कु कुन्ना डाल दो... नही तो मैं मर जाउंगी!” उसने कहा।
मैं खुद भी अब अल्का को भोगने को पूरी तरह से तैयार था। मैंने लिंग को अल्का की योनि पर सटाया और जोर से धक्का मारा। बिना रोक टोक के मेरा लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया। सुहागरात का सम्भोग बस आरम्भ हो गया था। अल्का ने अपने दोनों पैर उठा लिए थे, और आनंद लेकर सम्भोग का आनंद उठा रही थी। मैं इतनी जोर जोर से धक्के लगा रहा था कि पलंग भी आगे पीछे होने लगा था, और कमरे में से हमारी आहों, सिसकियों के साथ साथ लकड़ी के पाए के लयबद्ध घर्षण की ध्वनि भी आने लगी थी। हमारी सुहागरात के सम्भोग का यह मीठा कामुक शोर था। बाद में अल्का ने बताया कि उत्तेजना के कारण मेरे लिंग की मोटाई थोड़ी बढ़ गई थी, इसलिए अल्का को अपनी ही योनि में कसावट का अनुभव हो रहा था।
“उई उई उहह… ओह…” जैसी पागलपन वाली आवाजें निकालते हुए अल्का स्खलित हो गई। थोड़ी ही देर बाद मैं खुद भी अल्का के भीतर ही स्खलित हो गया। न तो मैंने ही साफ़ सफाई की परवाह करी, और न ही लिंग को उसकी योनि से बाहर निकालने की। बस अल्का को अपने आलिंगन में भर कर सुस्ताने लगा। कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
“चेची?” मैं अल्का की आवाज़ सुन कर जगा।
“चेची नहीं.. अम्माईयम!” अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यूँ रे चिन्नू.. सब गर्मी निकल गई या कुछ बची हुई है? क्या क्या कर रहा था विवाह के समय नालायक?” अम्मा ने हँसते हुए कहा।
“क्या करता अम्मा! मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था!”
“वो तो मैं समझ ही सकती हूँ! मेरी मरुमकल इतनी सुन्दर, इतनी अच्छी, इतनी प्यारी और इतनी कामुक जो है! तेरे बड़े भाग्य हैं लड़के कि तुझको ऐसी पत्नी मिली!”
“चेची!” अल्का अपनी बढ़ाई सुन कर शरमा गई।
“चेची नहीं! मुझे अब अम्माईयम कहने की आदत डाल लो!”
यह सुन कर अल्का फिर सेशरमा गई तो अम्मा ने पहले की ही भाँति कहा, “मेरे सामने नंगी रहती है, तो तुझको शरम नहीं आती! लेकिन मुझे अम्मा या अम्माईयम कहने में लजा जाती है! और सुन, अपने अलिएं (ससुर) के सामने ऐसी हालत में न जाना.. नहीं तो वो भूल जाएगा कि तू अब उसकी नातूं (साली) नहीं, मरुमकल (बहू) है! हा हा!”
“अम्मा..” अल्का और लजाते हुए अम्मा के आलिंगन में सिमट गई।
“और तुम दोनों अधिक शोर मत मचाओ.. पड़ोसी कह रहे हैं कि इतना ‘भीषण’ सम्भोग पूरे गॉंव में कभी किसी ने नहीं किया!” अम्मा लगभग हँसते हुए बोली।
“अरे! किसने देख लिया?” अल्का फिर से शरमा कर सिमट गई।
“इतना बड़ा सा जालगम है! कोई भी देख सकता है.. और वातिल भी तो बंद नहीं होता! इसलिए सम्हाल कर! हा हा!”
“अरे कोई देखे तो देखे! अपनी पत्नी को भी कोई न भोगे?” मैंने ढिठाई से कहा।
“बिलकुल ठीक! मैंने भी यही कहा.. हा हा.. चलो.. अब कुछ खा लो”
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“ब्ब्ब्बस बस... ऊऊऊ... बस ओह! चेट्टन अब बस! अब कु कुन्ना डाल दो... नही तो मैं मर जाउंगी!” उसने कहा।
मैं खुद भी अब अल्का को भोगने को पूरी तरह से तैयार था। मैंने लिंग को अल्का की योनि पर सटाया और जोर से धक्का मारा। बिना रोक टोक के मेरा लिंग उसकी योनि में प्रवेश कर गया। सुहागरात का सम्भोग बस आरम्भ हो गया था। अल्का ने अपने दोनों पैर उठा लिए थे, और आनंद लेकर सम्भोग का आनंद उठा रही थी। मैं इतनी जोर जोर से धक्के लगा रहा था कि पलंग भी आगे पीछे होने लगा था, और कमरे में से हमारी आहों, सिसकियों के साथ साथ लकड़ी के पाए के लयबद्ध घर्षण की ध्वनि भी आने लगी थी। हमारी सुहागरात के सम्भोग का यह मीठा कामुक शोर था। बाद में अल्का ने बताया कि उत्तेजना के कारण मेरे लिंग की मोटाई थोड़ी बढ़ गई थी, इसलिए अल्का को अपनी ही योनि में कसावट का अनुभव हो रहा था।
“उई उई उहह… ओह…” जैसी पागलपन वाली आवाजें निकालते हुए अल्का स्खलित हो गई। थोड़ी ही देर बाद मैं खुद भी अल्का के भीतर ही स्खलित हो गया। न तो मैंने ही साफ़ सफाई की परवाह करी, और न ही लिंग को उसकी योनि से बाहर निकालने की। बस अल्का को अपने आलिंगन में भर कर सुस्ताने लगा। कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
“चेची?” मैं अल्का की आवाज़ सुन कर जगा।
“चेची नहीं.. अम्माईयम!” अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्यूँ रे चिन्नू.. सब गर्मी निकल गई या कुछ बची हुई है? क्या क्या कर रहा था विवाह के समय नालायक?” अम्मा ने हँसते हुए कहा।
“क्या करता अम्मा! मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था!”
“वो तो मैं समझ ही सकती हूँ! मेरी मरुमकल इतनी सुन्दर, इतनी अच्छी, इतनी प्यारी और इतनी कामुक जो है! तेरे बड़े भाग्य हैं लड़के कि तुझको ऐसी पत्नी मिली!”
“चेची!” अल्का अपनी बढ़ाई सुन कर शरमा गई।
“चेची नहीं! मुझे अब अम्माईयम कहने की आदत डाल लो!”
यह सुन कर अल्का फिर सेशरमा गई तो अम्मा ने पहले की ही भाँति कहा, “मेरे सामने नंगी रहती है, तो तुझको शरम नहीं आती! लेकिन मुझे अम्मा या अम्माईयम कहने में लजा जाती है! और सुन, अपने अलिएं (ससुर) के सामने ऐसी हालत में न जाना.. नहीं तो वो भूल जाएगा कि तू अब उसकी नातूं (साली) नहीं, मरुमकल (बहू) है! हा हा!”
“अम्मा..” अल्का और लजाते हुए अम्मा के आलिंगन में सिमट गई।
“और तुम दोनों अधिक शोर मत मचाओ.. पड़ोसी कह रहे हैं कि इतना ‘भीषण’ सम्भोग पूरे गॉंव में कभी किसी ने नहीं किया!” अम्मा लगभग हँसते हुए बोली।
“अरे! किसने देख लिया?” अल्का फिर से शरमा कर सिमट गई।
“इतना बड़ा सा जालगम है! कोई भी देख सकता है.. और वातिल भी तो बंद नहीं होता! इसलिए सम्हाल कर! हा हा!”
“अरे कोई देखे तो देखे! अपनी पत्नी को भी कोई न भोगे?” मैंने ढिठाई से कहा।
“बिलकुल ठीक! मैंने भी यही कहा.. हा हा.. चलो.. अब कुछ खा लो”
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