17-07-2021, 07:09 PM
(This post was last modified: 19-07-2021, 02:28 PM by usaiha2. Edited 4 times in total. Edited 4 times in total.)
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बस अगले ही दिन मेरा और अल्का का विवाह था।
अल्का ने पारंपिरक कासवसत्तु साड़ी पहनी हुई थी, जो स्वयं मेरी अम्मा ने वर्षों पहले अपने विवाह में पहनी थी। चूँकि अम्मा के मुकाबले अल्का के स्तन अधिक परिपक्व हो गए थे, इसलिए अम्मा की मैचिंग ब्लाउज़ उसको नहीं आने वाली थी। इसलिए, अम्मा के ही कहने पर अल्का ने इस समय ब्लाउज़ नहीं, अपितु रेशम का लाल रंग का एक पट्टा अस्थाई ब्लाउज़ (कंचुकी) के रूप में पहना हुआ था, जिसको पीठ के पीछे गाँठ से बाँध दिया गया था। उसके बाल की चोटी कर के वेणी से सजाया गया था। स्वर्ण आभूषण जो भी उसको नानी ने दिया और अम्मा ने दिया, उसने वही पहना हुआ था।
अम्मा, अम्मम्मा और चिन्नम्मा आज पूरे मनोविनोद के भाव में थीं। ख़ास तौर पर अम्मा का बदला हुआ, विनोदपूर्ण भाव देख कर मैं बहुत चकित हुआ। विनोद के साथ साथ वो अल्का के साथ चुहल भी कर रहीं थीं।
“शंखपुष्पम… कन्नेलतुम्पळ… शकुन्तले… निन्ने …ओरर्म वरम…” अल्का श्रृंगार करते करते एक प्रसिद्ध गीत गुनगुना रही थी।
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शंखपुष्प (मलयालम) - अपराजिता, कोयाला (हिंदी) - योनिपुष्प, कोकिला (संस्कृत) - गोकर्णी (मराठी) .... यह पुष्प देखिए, और समझ जाइए
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“कौन सा शंखपुष्प खोलने वाली हो मेरी मोले? हा हा हा!”
“चेची!” अम्मा की द्विअर्थी बात को सुन कर अल्का शरमा कर अपनी हथेलियों से अपना चेहरा छुपा लेती है।
“अरे शरमा क्यों रही है! आज तो तेरे शंखपुष्प में से मधु टपक रहा होगा!” अम्मा ने उसको और छेड़ा!
“अम्मा! देखो न चेची को!” अल्का ने ठुनकते हुए अम्मम्मा से शिकायत करी।
“बड़े भाग्य वाला है अपना अर्चित,” चिन्नम्मा ने अल्का की खिंचाई जारी रखी, “मोलूट्टी के शंखपुष्प का सारा मधु उसको पीने को मिलेगा! हा हा!”
“हट्ट! अम्मा!” अल्का लज्जा से दोहरी हुई जा रही थी। लेकिन अम्मम्मा उसके बचाव में अभी तक नहीं आई थीं।
“सही कहा लक्ष्मी अम्मा। मेरा बेटा बड़े भाग्य वाला है। मेरी अनियत्ति ऐसे वैसे को थोड़े ही न मिलने वाली थी! साक्षात लक्ष्मी है मेरी अल्का! घर की लक्ष्मी घर में ही रह गई! अब देखना सभी - हमारी समृद्धि में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि होगी!”
“चेची!” अपनी बढ़ाई सुन कर अल्का मुस्कुरा दी।
“सच में, तेरे भाग्य से मेरे बेटे का भाग्य भी चमक गया है। नहीं तो वो किस लायक है? तूने राह में पड़े पत्थर को उठाया, उसके गुणों को पहचाना, उसको माथे से लगाया, उसको प्रेम दिया, उसको राह दिखाई। अब देखना - तेरे प्रेम से उस पत्थर का आकार कितना बड़ा होता है।”
“ऐसा कुछ नहीं है चेची! वो तो हमेशा से ही ऐसे ही हैं। मैंने तो बस उनको अपने मन का करने के लिए एक निर्गम दिया। बस, और कुछ नहीं।”
“वही तो मैं भी कह रही हूँ मेरी मोले। हम - उसके माँ बाप हो कर उसके गुणों को नहीं पहचान सके। लेकिन तूने सब देखा, पहचाना और प्रोत्साहन दिया। तुझको बहू के रूप में पा कर मैं धन्य हो गई।”
“चेची!” कह कर अल्का अम्मा के आलिंगन में बंध गई। अम्मा भी प्रेम में अपनी होने वाली बहू को चूमने लगीं। भावनाओं के कारण अम्मा और अल्का दोनों के ही आँखों से आँसू निकल गए।
“अरे! ऐसे नहीं रोते बच्चे! देखो न - काजल सब तेरे गाल पर फ़ैल गया। चिन्नम्मा, ज़रा एक गीला कपड़ा तो देना। मेरी बिटिया का मेकअप ठीक कर दूँ।”
कुछ देर में अल्का वापस पहले जैसी सुन्दर सी हो गई। अम्मा ने संतुष्ट हो कर अपनी होने वाली बहू को मन भर देखा।
“खूब सुन्दर!”
अलका मुस्कुराई और शरमाते हुए बोली, “चेची, ये बहुत कसा हुआ है।”
अम्मा अल्का की कंचुकी का पट्टा थोड़ा ढीला कर के व्यवस्थित करते हुए बोलीं, “मेरी मोले! तेरे मूलाक्कल पर कसा हुआ पट्टू कितना चमक रहा है! थोड़ा कसा हुआ ठीक है। इससे थोड़ा हिस्सा अधखुला हो जाता है। ऐसे अधखुले मूलाक्कल देख कर मेरे अर्चित का मन डोल जाएगा!”
“डोलना ही चाहिए अम्मा,” चिन्नम्मा ने छेड़ा, “अपनी मोलूट्टी है ही इतनी सुन्दर! देखो न - इसका हर अंग रत्नों के जैसा चमक रहा है। चेहरे पर सिन्दूरी आभा चमक रही है। एकदम अलग दिख रही है तुम्हारी मोले!”
“सच में चिन्नम्मा! सच में! मेरा अर्चित अपने मन पर नियन्त्रण नहीं रख पाएगा!”
“नियंत्रण रखना भी क्यों है! हा हा हा!”
अम्मा की बात का एक गूढ़ अर्थ था कल की बारिश में मेरे सारे कपड़े भीग गए थे, और अभी तक सूखे नहीं थे.. बड़ी कठिनाई से खोज कर एक रेशमी मुंडू मिला था, और वही मैंने पहना हुआ था, और साथ में एक कमीज़ भी। दिक़्क़त यह थी कि मुंडू के नीछे कुछ भी नहीं था। इस कारण से लज्जाजनक स्थिति कभी भी उत्पन्न हो सकती थी। अगर विवाह के उपरान्त मेरे मन से मेरा नियन्त्रण खो जाए, तो फिर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के सामने मेरा मज़ाक बन जायेगा। खैर, केरल में विवाह अंत लघुअंतराल के होते हैं।
मतलब, जल्दी जल्दी हो जाते हैं तो स्थिति नियन्त्रण से हटने से पहले ही विवाह संपन्न हो सकता है।
वो पाठक जिनका विवाह अभी नहीं हुआ है, वो संज्ञान लें कि ऐसे भाग भाग कर विवाह करने के बहुत सारे नुकसान होते हैं।
बस अगले ही दिन मेरा और अल्का का विवाह था।
अल्का ने पारंपिरक कासवसत्तु साड़ी पहनी हुई थी, जो स्वयं मेरी अम्मा ने वर्षों पहले अपने विवाह में पहनी थी। चूँकि अम्मा के मुकाबले अल्का के स्तन अधिक परिपक्व हो गए थे, इसलिए अम्मा की मैचिंग ब्लाउज़ उसको नहीं आने वाली थी। इसलिए, अम्मा के ही कहने पर अल्का ने इस समय ब्लाउज़ नहीं, अपितु रेशम का लाल रंग का एक पट्टा अस्थाई ब्लाउज़ (कंचुकी) के रूप में पहना हुआ था, जिसको पीठ के पीछे गाँठ से बाँध दिया गया था। उसके बाल की चोटी कर के वेणी से सजाया गया था। स्वर्ण आभूषण जो भी उसको नानी ने दिया और अम्मा ने दिया, उसने वही पहना हुआ था।
अम्मा, अम्मम्मा और चिन्नम्मा आज पूरे मनोविनोद के भाव में थीं। ख़ास तौर पर अम्मा का बदला हुआ, विनोदपूर्ण भाव देख कर मैं बहुत चकित हुआ। विनोद के साथ साथ वो अल्का के साथ चुहल भी कर रहीं थीं।
“शंखपुष्पम… कन्नेलतुम्पळ… शकुन्तले… निन्ने …ओरर्म वरम…” अल्का श्रृंगार करते करते एक प्रसिद्ध गीत गुनगुना रही थी।
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शंखपुष्प (मलयालम) - अपराजिता, कोयाला (हिंदी) - योनिपुष्प, कोकिला (संस्कृत) - गोकर्णी (मराठी) .... यह पुष्प देखिए, और समझ जाइए
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“कौन सा शंखपुष्प खोलने वाली हो मेरी मोले? हा हा हा!”
“चेची!” अम्मा की द्विअर्थी बात को सुन कर अल्का शरमा कर अपनी हथेलियों से अपना चेहरा छुपा लेती है।
“अरे शरमा क्यों रही है! आज तो तेरे शंखपुष्प में से मधु टपक रहा होगा!” अम्मा ने उसको और छेड़ा!
“अम्मा! देखो न चेची को!” अल्का ने ठुनकते हुए अम्मम्मा से शिकायत करी।
“बड़े भाग्य वाला है अपना अर्चित,” चिन्नम्मा ने अल्का की खिंचाई जारी रखी, “मोलूट्टी के शंखपुष्प का सारा मधु उसको पीने को मिलेगा! हा हा!”
“हट्ट! अम्मा!” अल्का लज्जा से दोहरी हुई जा रही थी। लेकिन अम्मम्मा उसके बचाव में अभी तक नहीं आई थीं।
“सही कहा लक्ष्मी अम्मा। मेरा बेटा बड़े भाग्य वाला है। मेरी अनियत्ति ऐसे वैसे को थोड़े ही न मिलने वाली थी! साक्षात लक्ष्मी है मेरी अल्का! घर की लक्ष्मी घर में ही रह गई! अब देखना सभी - हमारी समृद्धि में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि होगी!”
“चेची!” अपनी बढ़ाई सुन कर अल्का मुस्कुरा दी।
“सच में, तेरे भाग्य से मेरे बेटे का भाग्य भी चमक गया है। नहीं तो वो किस लायक है? तूने राह में पड़े पत्थर को उठाया, उसके गुणों को पहचाना, उसको माथे से लगाया, उसको प्रेम दिया, उसको राह दिखाई। अब देखना - तेरे प्रेम से उस पत्थर का आकार कितना बड़ा होता है।”
“ऐसा कुछ नहीं है चेची! वो तो हमेशा से ही ऐसे ही हैं। मैंने तो बस उनको अपने मन का करने के लिए एक निर्गम दिया। बस, और कुछ नहीं।”
“वही तो मैं भी कह रही हूँ मेरी मोले। हम - उसके माँ बाप हो कर उसके गुणों को नहीं पहचान सके। लेकिन तूने सब देखा, पहचाना और प्रोत्साहन दिया। तुझको बहू के रूप में पा कर मैं धन्य हो गई।”
“चेची!” कह कर अल्का अम्मा के आलिंगन में बंध गई। अम्मा भी प्रेम में अपनी होने वाली बहू को चूमने लगीं। भावनाओं के कारण अम्मा और अल्का दोनों के ही आँखों से आँसू निकल गए।
“अरे! ऐसे नहीं रोते बच्चे! देखो न - काजल सब तेरे गाल पर फ़ैल गया। चिन्नम्मा, ज़रा एक गीला कपड़ा तो देना। मेरी बिटिया का मेकअप ठीक कर दूँ।”
कुछ देर में अल्का वापस पहले जैसी सुन्दर सी हो गई। अम्मा ने संतुष्ट हो कर अपनी होने वाली बहू को मन भर देखा।
“खूब सुन्दर!”
अलका मुस्कुराई और शरमाते हुए बोली, “चेची, ये बहुत कसा हुआ है।”
अम्मा अल्का की कंचुकी का पट्टा थोड़ा ढीला कर के व्यवस्थित करते हुए बोलीं, “मेरी मोले! तेरे मूलाक्कल पर कसा हुआ पट्टू कितना चमक रहा है! थोड़ा कसा हुआ ठीक है। इससे थोड़ा हिस्सा अधखुला हो जाता है। ऐसे अधखुले मूलाक्कल देख कर मेरे अर्चित का मन डोल जाएगा!”
“डोलना ही चाहिए अम्मा,” चिन्नम्मा ने छेड़ा, “अपनी मोलूट्टी है ही इतनी सुन्दर! देखो न - इसका हर अंग रत्नों के जैसा चमक रहा है। चेहरे पर सिन्दूरी आभा चमक रही है। एकदम अलग दिख रही है तुम्हारी मोले!”
“सच में चिन्नम्मा! सच में! मेरा अर्चित अपने मन पर नियन्त्रण नहीं रख पाएगा!”
“नियंत्रण रखना भी क्यों है! हा हा हा!”
अम्मा की बात का एक गूढ़ अर्थ था कल की बारिश में मेरे सारे कपड़े भीग गए थे, और अभी तक सूखे नहीं थे.. बड़ी कठिनाई से खोज कर एक रेशमी मुंडू मिला था, और वही मैंने पहना हुआ था, और साथ में एक कमीज़ भी। दिक़्क़त यह थी कि मुंडू के नीछे कुछ भी नहीं था। इस कारण से लज्जाजनक स्थिति कभी भी उत्पन्न हो सकती थी। अगर विवाह के उपरान्त मेरे मन से मेरा नियन्त्रण खो जाए, तो फिर वहाँ उपस्थित सभी लोगों के सामने मेरा मज़ाक बन जायेगा। खैर, केरल में विवाह अंत लघुअंतराल के होते हैं।
मतलब, जल्दी जल्दी हो जाते हैं तो स्थिति नियन्त्रण से हटने से पहले ही विवाह संपन्न हो सकता है।
वो पाठक जिनका विवाह अभी नहीं हुआ है, वो संज्ञान लें कि ऐसे भाग भाग कर विवाह करने के बहुत सारे नुकसान होते हैं।