17-07-2021, 07:06 PM
“यदि हमारे बच्चे अपनी मर्ज़ी से शादी विवाह कर लें, तो इसमें क्या दोष हो गया?”
कोई एक और जन कहने लगे, “अरे! फिर वही बात... रीति रिवाज़, नीति शास्त्र, परंपरा, विश्वास, नैतिकता.. क्या यह सब कुछ नहीं है? बस प्रेम ही सब कुछ है?”
अम्मा ने पूछा, “क्या? प्रेम होना कुछ कम है? प्रेम होना क्या छोटी बात है? दोनों मनुष्य हैं.. दोनों प्राणी हैं.. दोनों में प्रेम होना क्या गलत है?”
वे बोले, “अरे हाँ भई, इन दोनों के मनुष्य होने में क्या संदेह है? और दोनों के प्रेम में भी कोई संदेह नहीं है!”
अम्मा नेकहा, “तो कम-से-कम इन दोनों की मनुष्य जाती में तो शादी होगी! कैसा अंधविश्वास है कि किसी अनिष्ट की आशंका से लोग अपने बच्चों का विवाह पशुओं से, और वनस्पतियों से कर देते हैं! हम कम से कम यह पाप तो नहीं कर रहे! और आपको भीमसेन याद हैं? उन्होंने तो अपनी जाति से बाहर जा कर विवाह किया था... हिडिम्बा राक्षसी से! याद है न?”
“अरे आप तो बात का बतंगड़ बनाने लगी!”
“बतंगड़ कैसा? दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं.. अगर इनका विवाह किसी और से कर दें, तो एक साथ चार मनुष्यों का जीवन नष्ट नहीं हो जाएगा? क्या आप ऐसी पत्नी चाहेंगे जो मन ही मन किसी अन्य पुरुष का ध्यान करती हो? किसी अन्य पुरुष के लिए आसक्ति रखती हो?”
यह बात वहाँ उपस्थित लोगों के ह्रदय में चुभ गई,
“आपकी भावनाओं को मैं जानती हूँ.. समझती हूँ। हमारे विश्वास, हमारी परम्पराओं के टूटने में बड़ा कष्ट होना स्वाभाविक ही है। अब यह विश्वास चाहे झूठा ही हो, फिर भी बल देता है। उस झूठे विश्वास के टूटने पर भी केवल दुःख ही होता है.. कष्ट ही होता है।”
अम्मा ने कहना जारी रखा,
“आज हमारे पास यह अवसर है कि अपने भविष्य के लिए एक उचित आदर्श प्रस्तुत करें... एक उचित परंपरा की नींव डालें.. भगवान् राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं... लेकिन उन्होंने भी जब सीता माता को पहली बार पुष्प वाटिका में देखा, जब उनके पायल की मधुर ध्वनि सुनी, तो उन्होंने उसी समय उनको अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था.. उनको शिव-धनुष तोड़ने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी.. धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाना बस एक रस्म मात्र बन कर रह गई थी उनके लिए.. उस रस्म के पहले आया प्रेम। उनके मन में एकल भाव का धनुष तो वहीं पुष्प वाटिका में ही टूट गया था.. और उनको सीता माता से प्रेम हो गया... अच्छी बात यह कि उन दोनों का विवाह भी हो गया।”
कहते कहते अम्मा की आँखों से आँसू गिरने लग गए... मुझे उनकी ऐसी दशा देखी न गई.. लेकिन वहाँ उपस्थित लोगों से झगड़ना उचित नहीं लग रहा था.. मुझे लग रहा था कि अम्मा जीत रही हैं। अल्का से उनकी हालत न देखी गई। वो अम्मा के पास जा कर उनके आँसू पोंछने लगी।
“प्रेम न तो सामाजिक मूल्य को देखता है, और न ही उसकी वर्जनाओं को! प्रेम जाति नहीं देखता.. प्रेम कुछ नहीं देखता.. बस प्रेम को ही देखता है।”
“अरे तो फिर माता और पुत्र का भी मिलन करवा दीजिए!” किसी ने कुतर्क किया।
“छी छी!” एक ने यह बात सुन कर अपने गालो को थप्पड़ लगाया और कान पकड़े।
अम्मा इस ओछी बात पर तिलमिला उठीं, “पिता और पुत्री जैसे सम्बन्ध के लिए तो आपने ऐसी टिप्पणी नहीं करी, छी छी नहीं कहा! मामा और भांजी - इनका क्या नाता है?”
“अरे.. मामा के वीर्य से थोड़े न जनी है भाँजी?”
“तो क्या मौसी की कोख से जना है भाँजा?” अम्मा ने चीखते हुए कहा,
“यह नाता भी उतना ही निकट, और उतना ही दूर है जितना की मामा और भाँजी का! परम्पराओं की दुहाई न दीजिए.. यह सब स्थाई नहीं होता.. आज जो परंपरा है, वो कल न रहेगी.. मानव जाति ने ऐसे ही तरक्की करी है.. हर व्यवस्था में बदलाव होना ही है। हाँ, अगर कुछ स्थाई है तो केवल मानव की मूर्खता। वो अमर है। केवल वो ही स्थाई है।”
“अरे अम्मा, आप तो बेकार ही नाराज़ हो रही हैं। हम सभी यह बात मानते हैं कि अल्का और अर्चित को एक दूसरे से बहुत प्रेम है। लेकिन आप ही सोचिए - अम्माई तो अम्मा समान ही होती है न। कह दीजिए कि अल्का ने माँ समान ही अर्चित का लालन पालन नहीं किया? और अब युवा होने पर ... मतलब सोच कर कुछ अजीब सा नहीं लगता?”
कोई एक और जन कहने लगे, “अरे! फिर वही बात... रीति रिवाज़, नीति शास्त्र, परंपरा, विश्वास, नैतिकता.. क्या यह सब कुछ नहीं है? बस प्रेम ही सब कुछ है?”
अम्मा ने पूछा, “क्या? प्रेम होना कुछ कम है? प्रेम होना क्या छोटी बात है? दोनों मनुष्य हैं.. दोनों प्राणी हैं.. दोनों में प्रेम होना क्या गलत है?”
वे बोले, “अरे हाँ भई, इन दोनों के मनुष्य होने में क्या संदेह है? और दोनों के प्रेम में भी कोई संदेह नहीं है!”
अम्मा नेकहा, “तो कम-से-कम इन दोनों की मनुष्य जाती में तो शादी होगी! कैसा अंधविश्वास है कि किसी अनिष्ट की आशंका से लोग अपने बच्चों का विवाह पशुओं से, और वनस्पतियों से कर देते हैं! हम कम से कम यह पाप तो नहीं कर रहे! और आपको भीमसेन याद हैं? उन्होंने तो अपनी जाति से बाहर जा कर विवाह किया था... हिडिम्बा राक्षसी से! याद है न?”
“अरे आप तो बात का बतंगड़ बनाने लगी!”
“बतंगड़ कैसा? दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं.. अगर इनका विवाह किसी और से कर दें, तो एक साथ चार मनुष्यों का जीवन नष्ट नहीं हो जाएगा? क्या आप ऐसी पत्नी चाहेंगे जो मन ही मन किसी अन्य पुरुष का ध्यान करती हो? किसी अन्य पुरुष के लिए आसक्ति रखती हो?”
यह बात वहाँ उपस्थित लोगों के ह्रदय में चुभ गई,
“आपकी भावनाओं को मैं जानती हूँ.. समझती हूँ। हमारे विश्वास, हमारी परम्पराओं के टूटने में बड़ा कष्ट होना स्वाभाविक ही है। अब यह विश्वास चाहे झूठा ही हो, फिर भी बल देता है। उस झूठे विश्वास के टूटने पर भी केवल दुःख ही होता है.. कष्ट ही होता है।”
अम्मा ने कहना जारी रखा,
“आज हमारे पास यह अवसर है कि अपने भविष्य के लिए एक उचित आदर्श प्रस्तुत करें... एक उचित परंपरा की नींव डालें.. भगवान् राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं... लेकिन उन्होंने भी जब सीता माता को पहली बार पुष्प वाटिका में देखा, जब उनके पायल की मधुर ध्वनि सुनी, तो उन्होंने उसी समय उनको अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था.. उनको शिव-धनुष तोड़ने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी.. धनुष पर प्रत्यञ्चा चढ़ाना बस एक रस्म मात्र बन कर रह गई थी उनके लिए.. उस रस्म के पहले आया प्रेम। उनके मन में एकल भाव का धनुष तो वहीं पुष्प वाटिका में ही टूट गया था.. और उनको सीता माता से प्रेम हो गया... अच्छी बात यह कि उन दोनों का विवाह भी हो गया।”
कहते कहते अम्मा की आँखों से आँसू गिरने लग गए... मुझे उनकी ऐसी दशा देखी न गई.. लेकिन वहाँ उपस्थित लोगों से झगड़ना उचित नहीं लग रहा था.. मुझे लग रहा था कि अम्मा जीत रही हैं। अल्का से उनकी हालत न देखी गई। वो अम्मा के पास जा कर उनके आँसू पोंछने लगी।
“प्रेम न तो सामाजिक मूल्य को देखता है, और न ही उसकी वर्जनाओं को! प्रेम जाति नहीं देखता.. प्रेम कुछ नहीं देखता.. बस प्रेम को ही देखता है।”
“अरे तो फिर माता और पुत्र का भी मिलन करवा दीजिए!” किसी ने कुतर्क किया।
“छी छी!” एक ने यह बात सुन कर अपने गालो को थप्पड़ लगाया और कान पकड़े।
अम्मा इस ओछी बात पर तिलमिला उठीं, “पिता और पुत्री जैसे सम्बन्ध के लिए तो आपने ऐसी टिप्पणी नहीं करी, छी छी नहीं कहा! मामा और भांजी - इनका क्या नाता है?”
“अरे.. मामा के वीर्य से थोड़े न जनी है भाँजी?”
“तो क्या मौसी की कोख से जना है भाँजा?” अम्मा ने चीखते हुए कहा,
“यह नाता भी उतना ही निकट, और उतना ही दूर है जितना की मामा और भाँजी का! परम्पराओं की दुहाई न दीजिए.. यह सब स्थाई नहीं होता.. आज जो परंपरा है, वो कल न रहेगी.. मानव जाति ने ऐसे ही तरक्की करी है.. हर व्यवस्था में बदलाव होना ही है। हाँ, अगर कुछ स्थाई है तो केवल मानव की मूर्खता। वो अमर है। केवल वो ही स्थाई है।”
“अरे अम्मा, आप तो बेकार ही नाराज़ हो रही हैं। हम सभी यह बात मानते हैं कि अल्का और अर्चित को एक दूसरे से बहुत प्रेम है। लेकिन आप ही सोचिए - अम्माई तो अम्मा समान ही होती है न। कह दीजिए कि अल्का ने माँ समान ही अर्चित का लालन पालन नहीं किया? और अब युवा होने पर ... मतलब सोच कर कुछ अजीब सा नहीं लगता?”