17-07-2021, 07:04 PM
आज एक बहुत बड़ा दिन था हमारे लिए।
गाँव के बड़े बुज़ुर्गों के सामने हमारे सम्बन्ध की चर्चा होनी थी। उनका निर्णय ही अंतिम होता और हमारे प्रतिकूल भी हो सकता था। यह सोच सोच कर ही हमारा ह्रदय बैठा जा रहा था। स्थिति का सामना करने के लिए जितनी भी ख़ुशियाँ मिल सकतीं, हम बटोर लेना चाहते थे। इसलिए यह कहने की आवश्यकता नहीं कि हमने माँ की आज्ञा का पालन करना उनके जाते ही शुरू दिया। मैंने अल्का का हाथ पकड़ कर उसको अहाते में खड़ा कर दिया। बारिश पड़ रही थी... अल्का के नग्न शरीर पर बारिश की बूँदें पड़ीं तो जैसे तपते तवे पर पानी की बूँदें पड़ीं हों। उसके शरीर पर बूँद पड़ी, और मानो कामाग्नि की तपिश से वो बूँद वाष्प बन कर उड़ गई। अल्का के स्तन उत्तेजना से कठोर हो गए थे; उसके दोनों चूचक, जो पहले से ही पिए जाने से दुःख रहे थे, अब बेचारे उत्तेजना से तने रह कर उनमें और दर्द हो रहा होगा। ऐसे में भी अल्का ने एक मादक अंगड़ाई ली और उसी लय में उसने अपने बाल भी खोल दिए। अल्का उस समय साक्षात् तिलोत्तमा का अवतार लग रही थी - उसको देख कर क्या स्त्री, क्या पुरुष - सभी पागल हो जाते! मैं भी हो गया - मेरा लिंग तुरंत ही अल्का को भोगनेके लिए तत्पर हो गया।
मैं एक डग भर कर उसके सम्मुख आ गया, और घुटने के बल बैठ कर मैंने उसके नग्न नितम्बों को दबोच लिया। ऐसे दबोचने से अल्का की श्रोणि थोड़ा आगे की तरफ निकल आई, और उसके साथ ही उसके योनि के दोनों होंठ भी। मैंने तुरंत ही उसके उन होंठों को अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसकी योनि में अंदर बाहर करने लगा।
“मेरी मोल्लू... मैं तुमको हमेशा ही जी भर के प्यार करुँगा... तुमको हमेशा खुश रखूँगा... और तुम्हारा साथ कभी
नहीं छोडूंगा!”
अल्का की योनि का आस्वादन करते करते बीच बीच में मैं उससे यह जीवन पर्यन्त का वचन दे रहा था। कुछ देर में अल्का वहीं फ़र्श पर लेट गई, और अपनी जाँघें खोल कर लेट गई। शरीर का स्नान तो हो गया था, अब प्रेम स्नान की बारी थी। मैंने धीरे से अल्का की एक टाँग को उठा कर अपने कंधे पर रख दिया और दूसरी को थोड़ा पीछे।
यह एक बढ़िया आसन था... मैंने दोनो हाथों से अपनी होने वाली पत्नी के नितम्बों को थामा और एक ही धक्के में अपना लिंग उसकी योनि में उतार दिया। जैसे अल्का का शरीर वर्षा की बूँदों से तर था, वैसे ही उसकी योनि भी अंदर से तर थी - कुछ उसके काम रसायन, और कुछ मेरे वीर्य के कारण! अल्का ने अपने दोनों हाथों को मेरे पीछे ले जाकर मुझे भी पुट्ठों पर पकड़ा, और मुझे अपने करीब खींचा। इतने समय में हम दोनों को एक दूसरे के संकेत, एक दूसरे की मंशा - सब समझ में आने लग गई थी। मैंने भी अल्का का संकेत समझा, और वही पुरातन शारीरिक गति पकड़ने लगा। कुछ देर के सम्भोग के बाद मैंने पुनः अल्का की योनि में वीर्यपात कर दिया। उसके बाद अल्का को दो तीन बार चूम कर मैंने उसको और स्वयं को पोंछा, और वापस अपने बिस्तर पर ले आया।
अपर्याप्त भोजन, बारिश में भीगने, और इतनी जल्दी जल्दी सम्भोग करने के कारण हम दोनों बहुत ही अधिक थक गए थे। लेटते ही गहन निद्रा आ गई और हम दोनो सवेरे बहुत देर तक सोते रहे।
हम दोनों को ही आज होने वाली गतिविधियों में भाग न लेने का आदेश हुआ था। यह एक सामाजिक बहस-बाज़ी थी, जिसमें हमारी भागीदारी महत्वपूर्ण नहीं थी। वो अलग बात थी कि इस बहस के केंद्र में अल्का और मैं ही थे। इस बहस में गाँव के बड़े बुज़ुर्गों, पंचों, अम्मा - अच्चन और अम्मम्मा की ही भागीदारी तय हुई थी। लेकिन हमसे रहा न गया और हम दोनों भी सभा में भाग लेने पहुँच गए। गाँव में अल्का का स्वयं का एक सामाजिक स्थान था, और कुछ ही दिनों में मैंने भी अपनी एक पहचान बना ली थी। और यहाँ प्रश्न हमारे पूरे जीवन का, हमारी संतति का था। इसलिए हमको वहाँ होना ही था।
गाँव के बड़े बुज़ुर्गों के सामने हमारे सम्बन्ध की चर्चा होनी थी। उनका निर्णय ही अंतिम होता और हमारे प्रतिकूल भी हो सकता था। यह सोच सोच कर ही हमारा ह्रदय बैठा जा रहा था। स्थिति का सामना करने के लिए जितनी भी ख़ुशियाँ मिल सकतीं, हम बटोर लेना चाहते थे। इसलिए यह कहने की आवश्यकता नहीं कि हमने माँ की आज्ञा का पालन करना उनके जाते ही शुरू दिया। मैंने अल्का का हाथ पकड़ कर उसको अहाते में खड़ा कर दिया। बारिश पड़ रही थी... अल्का के नग्न शरीर पर बारिश की बूँदें पड़ीं तो जैसे तपते तवे पर पानी की बूँदें पड़ीं हों। उसके शरीर पर बूँद पड़ी, और मानो कामाग्नि की तपिश से वो बूँद वाष्प बन कर उड़ गई। अल्का के स्तन उत्तेजना से कठोर हो गए थे; उसके दोनों चूचक, जो पहले से ही पिए जाने से दुःख रहे थे, अब बेचारे उत्तेजना से तने रह कर उनमें और दर्द हो रहा होगा। ऐसे में भी अल्का ने एक मादक अंगड़ाई ली और उसी लय में उसने अपने बाल भी खोल दिए। अल्का उस समय साक्षात् तिलोत्तमा का अवतार लग रही थी - उसको देख कर क्या स्त्री, क्या पुरुष - सभी पागल हो जाते! मैं भी हो गया - मेरा लिंग तुरंत ही अल्का को भोगनेके लिए तत्पर हो गया।
मैं एक डग भर कर उसके सम्मुख आ गया, और घुटने के बल बैठ कर मैंने उसके नग्न नितम्बों को दबोच लिया। ऐसे दबोचने से अल्का की श्रोणि थोड़ा आगे की तरफ निकल आई, और उसके साथ ही उसके योनि के दोनों होंठ भी। मैंने तुरंत ही उसके उन होंठों को अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ को उसकी योनि में अंदर बाहर करने लगा।
“मेरी मोल्लू... मैं तुमको हमेशा ही जी भर के प्यार करुँगा... तुमको हमेशा खुश रखूँगा... और तुम्हारा साथ कभी
नहीं छोडूंगा!”
अल्का की योनि का आस्वादन करते करते बीच बीच में मैं उससे यह जीवन पर्यन्त का वचन दे रहा था। कुछ देर में अल्का वहीं फ़र्श पर लेट गई, और अपनी जाँघें खोल कर लेट गई। शरीर का स्नान तो हो गया था, अब प्रेम स्नान की बारी थी। मैंने धीरे से अल्का की एक टाँग को उठा कर अपने कंधे पर रख दिया और दूसरी को थोड़ा पीछे।
यह एक बढ़िया आसन था... मैंने दोनो हाथों से अपनी होने वाली पत्नी के नितम्बों को थामा और एक ही धक्के में अपना लिंग उसकी योनि में उतार दिया। जैसे अल्का का शरीर वर्षा की बूँदों से तर था, वैसे ही उसकी योनि भी अंदर से तर थी - कुछ उसके काम रसायन, और कुछ मेरे वीर्य के कारण! अल्का ने अपने दोनों हाथों को मेरे पीछे ले जाकर मुझे भी पुट्ठों पर पकड़ा, और मुझे अपने करीब खींचा। इतने समय में हम दोनों को एक दूसरे के संकेत, एक दूसरे की मंशा - सब समझ में आने लग गई थी। मैंने भी अल्का का संकेत समझा, और वही पुरातन शारीरिक गति पकड़ने लगा। कुछ देर के सम्भोग के बाद मैंने पुनः अल्का की योनि में वीर्यपात कर दिया। उसके बाद अल्का को दो तीन बार चूम कर मैंने उसको और स्वयं को पोंछा, और वापस अपने बिस्तर पर ले आया।
अपर्याप्त भोजन, बारिश में भीगने, और इतनी जल्दी जल्दी सम्भोग करने के कारण हम दोनों बहुत ही अधिक थक गए थे। लेटते ही गहन निद्रा आ गई और हम दोनो सवेरे बहुत देर तक सोते रहे।
हम दोनों को ही आज होने वाली गतिविधियों में भाग न लेने का आदेश हुआ था। यह एक सामाजिक बहस-बाज़ी थी, जिसमें हमारी भागीदारी महत्वपूर्ण नहीं थी। वो अलग बात थी कि इस बहस के केंद्र में अल्का और मैं ही थे। इस बहस में गाँव के बड़े बुज़ुर्गों, पंचों, अम्मा - अच्चन और अम्मम्मा की ही भागीदारी तय हुई थी। लेकिन हमसे रहा न गया और हम दोनों भी सभा में भाग लेने पहुँच गए। गाँव में अल्का का स्वयं का एक सामाजिक स्थान था, और कुछ ही दिनों में मैंने भी अपनी एक पहचान बना ली थी। और यहाँ प्रश्न हमारे पूरे जीवन का, हमारी संतति का था। इसलिए हमको वहाँ होना ही था।