17-07-2021, 06:54 PM
यह बात न तो अल्का को मालूम थी, और न ही मुझे (बाद में अम्मम्मा और चिन्नम्मा ने हम दोनों को समझाई) कि अल्का की योनि संभवतः उसकी उम्र के हिसाब से कुछ छोटी थी! छोटी सी भी थी, और प्यारी सी भी। खैर, वो संज्ञान हमको बाद में होगा, फिलहाल तो मैंने एक उंगली उसकी योनि के भीतर डाली, तो वो पागल सी हो गई। मैंने धीरे से एक और, और एक और कर के उँगलियाँ भीतर डाल दी।
वो बोली, “ब्ब्ब्बस... अब मत करो!”
“क्या न करो?” मेरी आवाज़ कर्कश हो गई थी।
“उ उ उंगली..”
“तो फिर?”
“अ अ आप.. आप.. अंदर.. आह!”
इसी हरी झंडी की तो राह देख रहा था मैं कब से! मैंने खुद को अल्का के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करते हुए अपने हाथ से अपने लिंग को अल्का की इच्छुक योनि का मार्ग दिखलाया। अल्का की योनि की मुलायम पंखुड़ियों ने तुरंत ही मेरे पौरुष को अपनी पकड़ में ले लिया,
“आह... बहुत गरम है अल्का तुम्हारी चूत (मैंने जान-बूझ कर एक गंदे शब्द का प्रयोग किया)..”
“हम्म्म्फ़” अल्का अपनी आँखे बंद किए हुए, और अपने होंठों को भींच कर बोली।
मैंने उससे पूछा, “मज़ा आ रहा है?”
उसने कुछ नहीं कहा।
इस बार मैं अल्का को जी भर कर भोगना चाहता था - पिछली बार से कहीं अधिक समय तक! मैं अल्का को शरीर और आत्मा का वो सुख देना चाहता था, जिससे वो अभी तक वंचित थी। मैं इस काम में कोई विशेषज्ञ तो नहीं था, लेकिन इतना तो मुझे मालूम था कि सम्भोग इतनी देर तक तो चलना ही चाहिए जिससे स्त्री की सभी इन्द्रियाँ पूरी तरह से उद्दीप्त हो जाएँ। मैंने अल्का के गोल गोल नितम्बों को अपने हाथों में पकड़ा, और सम्भोग की चिरंतन काल से चली आ रही लयबद्ध गति पकड़ ली। शारीरिक बल और पौरुष तो मेरे अंदर कूट कूट कर भरा हुआ था, साथ ही साथ अल्का को परम सुख देने की बलवती इच्छा भी थी। लिहाज़ा, मेरी कमर के प्रबल धक्कों के साथ मेरा लिंग अल्का की योनि में प्रबलता से अंदर बाहर होने लगा।
“ओह अल्का! मेरी मोलू! मैं केवल तुम्हारा हूँ और तुम मेरी। मैं अपने वीर्य से तुम्हारी योनि भर देना चाहता हूँ। ओह्ह्ह्ह! आह्ह्ह्ह!”
मैं उच्च स्वर में अल्का पर अपने अधिकार की सीमा बढ़ा रहा था। जाहिर सी बात है, यह बात न केवल अम्मम्मा और चिन्नम्मा ने सुनी, बल्कि अगर कोई हमारे घर के पास से निकला होगा तो उसने भी सुनी होगी। संभव है कि अल्का ने सोचा होगा कि पिछली बार के जैसे ही मैं इस बार भी जल्दी ही स्खलित हो जाऊँगा - लेकिन पिछली और इस बार के रति संयोग में बड़ा अंतर था। पिछली बार डर था, इस बार पूरी निर्भीकता थी! पिछली बार मैं शुद्ध नौसिखिया था, लेकिन इस बार मुझे अनुभव था। पिछली बार मैं एक प्रेमी था, जो चोरी छुपे अपनी प्रेमिका से सम्भोग कर रहा था, लेकिन इस बार मैं एक पति था, जो अपनी पत्नी को उसके विवाहित जीवन का सुख दे रहा था!
वैसे भी कुछ ही देर पहले मेरा वीर्य निकल चुका था, इसलिए इस बार वापस निकलने में अधिक समय तो लगना निश्चित ही था। कारण जो भी रहा हो, अल्का का भोग काफ़ी समय तक जारी रहा। हमको (या यह कह लीजिए कि मुझे) सम्भोग की किसी अन्य मुद्रा का ज्ञान नहीं था, इसलिए हम उसी मुद्रा में हम एक दूसरे को बदस्तूर भोग रहे थे। अल्का के मुँह से आनंद की दबी-घुटी आवाजें निकल रही थी। अल्का के लिए यह सम्भोग के आनंद की परम सीमा थी। अल्का को समझ में नहीं आया कि उसके साथ क्या हो गया है! आँखें बंद किए हुए, खुले हुए मुख से वो अपने जीवन के पहले चरम सुख का आनंद लेने लगी। मैंने उसके शरीर की कँपकँपी को महसूस किया, लेकिन समझ नहीं पाया कि अचानक से ही उसको क्या हो गया।
लेकिन चूँकि अल्का के चेहरे पर आनंद के भाव थे, इसलिए मेरा धक्के लगाने का सिलसिला कायम रहा। मेरा जघन क्षेत्र किसी स्वचालित यंत्र के भाँति अल्का की योनि में कार्यरत था। मेरे हर धक्के के साथ अल्का के स्तन, पेट, सर, या यह कह लीजिए कि उसका पूरा शरीर, उसका मस्तिष्क भी झटकों की ताल में हिल रहे थे। जल्दी ही मैंने भी अपने चरम सुख को प्राप्त कर लिया।
वो बोली, “ब्ब्ब्बस... अब मत करो!”
“क्या न करो?” मेरी आवाज़ कर्कश हो गई थी।
“उ उ उंगली..”
“तो फिर?”
“अ अ आप.. आप.. अंदर.. आह!”
इसी हरी झंडी की तो राह देख रहा था मैं कब से! मैंने खुद को अल्का के ऊपर ठीक से व्यवस्थित करते हुए अपने हाथ से अपने लिंग को अल्का की इच्छुक योनि का मार्ग दिखलाया। अल्का की योनि की मुलायम पंखुड़ियों ने तुरंत ही मेरे पौरुष को अपनी पकड़ में ले लिया,
“आह... बहुत गरम है अल्का तुम्हारी चूत (मैंने जान-बूझ कर एक गंदे शब्द का प्रयोग किया)..”
“हम्म्म्फ़” अल्का अपनी आँखे बंद किए हुए, और अपने होंठों को भींच कर बोली।
मैंने उससे पूछा, “मज़ा आ रहा है?”
उसने कुछ नहीं कहा।
इस बार मैं अल्का को जी भर कर भोगना चाहता था - पिछली बार से कहीं अधिक समय तक! मैं अल्का को शरीर और आत्मा का वो सुख देना चाहता था, जिससे वो अभी तक वंचित थी। मैं इस काम में कोई विशेषज्ञ तो नहीं था, लेकिन इतना तो मुझे मालूम था कि सम्भोग इतनी देर तक तो चलना ही चाहिए जिससे स्त्री की सभी इन्द्रियाँ पूरी तरह से उद्दीप्त हो जाएँ। मैंने अल्का के गोल गोल नितम्बों को अपने हाथों में पकड़ा, और सम्भोग की चिरंतन काल से चली आ रही लयबद्ध गति पकड़ ली। शारीरिक बल और पौरुष तो मेरे अंदर कूट कूट कर भरा हुआ था, साथ ही साथ अल्का को परम सुख देने की बलवती इच्छा भी थी। लिहाज़ा, मेरी कमर के प्रबल धक्कों के साथ मेरा लिंग अल्का की योनि में प्रबलता से अंदर बाहर होने लगा।
“ओह अल्का! मेरी मोलू! मैं केवल तुम्हारा हूँ और तुम मेरी। मैं अपने वीर्य से तुम्हारी योनि भर देना चाहता हूँ। ओह्ह्ह्ह! आह्ह्ह्ह!”
मैं उच्च स्वर में अल्का पर अपने अधिकार की सीमा बढ़ा रहा था। जाहिर सी बात है, यह बात न केवल अम्मम्मा और चिन्नम्मा ने सुनी, बल्कि अगर कोई हमारे घर के पास से निकला होगा तो उसने भी सुनी होगी। संभव है कि अल्का ने सोचा होगा कि पिछली बार के जैसे ही मैं इस बार भी जल्दी ही स्खलित हो जाऊँगा - लेकिन पिछली और इस बार के रति संयोग में बड़ा अंतर था। पिछली बार डर था, इस बार पूरी निर्भीकता थी! पिछली बार मैं शुद्ध नौसिखिया था, लेकिन इस बार मुझे अनुभव था। पिछली बार मैं एक प्रेमी था, जो चोरी छुपे अपनी प्रेमिका से सम्भोग कर रहा था, लेकिन इस बार मैं एक पति था, जो अपनी पत्नी को उसके विवाहित जीवन का सुख दे रहा था!
वैसे भी कुछ ही देर पहले मेरा वीर्य निकल चुका था, इसलिए इस बार वापस निकलने में अधिक समय तो लगना निश्चित ही था। कारण जो भी रहा हो, अल्का का भोग काफ़ी समय तक जारी रहा। हमको (या यह कह लीजिए कि मुझे) सम्भोग की किसी अन्य मुद्रा का ज्ञान नहीं था, इसलिए हम उसी मुद्रा में हम एक दूसरे को बदस्तूर भोग रहे थे। अल्का के मुँह से आनंद की दबी-घुटी आवाजें निकल रही थी। अल्का के लिए यह सम्भोग के आनंद की परम सीमा थी। अल्का को समझ में नहीं आया कि उसके साथ क्या हो गया है! आँखें बंद किए हुए, खुले हुए मुख से वो अपने जीवन के पहले चरम सुख का आनंद लेने लगी। मैंने उसके शरीर की कँपकँपी को महसूस किया, लेकिन समझ नहीं पाया कि अचानक से ही उसको क्या हो गया।
लेकिन चूँकि अल्का के चेहरे पर आनंद के भाव थे, इसलिए मेरा धक्के लगाने का सिलसिला कायम रहा। मेरा जघन क्षेत्र किसी स्वचालित यंत्र के भाँति अल्का की योनि में कार्यरत था। मेरे हर धक्के के साथ अल्का के स्तन, पेट, सर, या यह कह लीजिए कि उसका पूरा शरीर, उसका मस्तिष्क भी झटकों की ताल में हिल रहे थे। जल्दी ही मैंने भी अपने चरम सुख को प्राप्त कर लिया।