17-07-2021, 06:53 PM
एक असहज भय और लज्जा से उसने पुनः अपनी आँखें मूँद लीं। मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने अंग पर रख दिया।
“इसको मन भर कर महसूस करो.. आज से यह तुम्हारा है! केवल तुम्हारा!”
अल्का ने अपनी हथेली मेरे लिंग पर लिपटा ली। उसकी पकड़ छोटी पड़ गई। उसके हाथ थर थर कांप रहे थे।
“क्या हुआ मोलू?”
“हे भगवान्! कितना बड़ा है यह!” अल्का एकदम मंत्रमुग्ध हो कर मेरे लिंग को स्पर्श कर रही थी...
“तुमको पसंद है?” अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“फिर क्या! इसको ठीक से देखो और महसूस करो... आँखें खोलो... ये देखो..” कह कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग की पूरी लम्बाई पर फिराया।
“इसको ठीक से महसूस करो...। दबाओ इसे.. हाँ, ऐसे... मुँह में लो.. गालों से लगाओ.. सीने पर फिराओ! आनंद लो!”
अल्का के चेहरे पर घबराहट और संकोच के भाव साफ़ दिख रहे थे, लेकिन इस समय वह उत्सुकता से वशीभूत थी। उसने उँगलियों से पहले मेरे लिंग को हलके से छुआ और फिर दबाया,
“कितना कड़ा है, लेकिन फिर भी कितना कोमल! और कितना गरम भी”
मैंने प्यार से अल्का के सीने पर हाथ फिराया। मेरी इस हरकत पर अल्का की आँख फिर से बंद हो गई... मैंने उसकी बंद आँखों को फिर से चूम लिया, और फिर उसके गालों पर.. अल्का पूरी तरह से तैयार थी, इतना तो मुझे मालूम था। अभी से नहीं, बल्कि जब से हमने अपनी ‘सुहागरात’ की पहली क्रिया शुरू करी थी, तब से। लेकिन मैंने खुद पर संयम बनाए रखा हुआ था। लिंग पर हाथ फिराने से उसका मुंड वापस छुप गया था, इसलिए मैंने लिंग की त्वचा को पीछे की तरफ सरका कर उसको फिर से अनावृत कर दिया, और शिश्नमुंड को अल्का के योनि पर पर छेड़तेहुए चलाने लगा। अल्का कामुक उत्तेजना से छटपटा रही थी। वासना की प्यास अब उसको कष्ट देने लगी थी। उसने आँखें खोल कर मुझे देखा.. और मैं, बस मुस्कुराया। फिर आगे जो हुआ वो बहुत अप्रत्याशित था! उसने दोनों हाथों से मुझे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।
“बोलो... क्या चाहती हो?” मैंने अल्का को छेड़ा। कामोद्दीपन के चरम पर पहँचु कर अल्का बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसका पूरा शरीर वासना के अधीन हो कर काँप रहा था।
“बताओ मोलू... क्या चाहती हो?”
अल्का अभी भी कुछ नहीं कह रही थी। बस अपने सर को धीरे धीरे दाएँ बाएँ हिला रही थी।
“देर सही नहीं जा रही है क्या?”
मैंने अल्का को कुछ और छेड़ा। इस पूरी छेड़खानी के दौरान मैं उसकी योनि को छेड़ता रहा। कैसे कह दे अल्का मुझे कि देर नहीं सही जा रही है! यह सब कहना तो सीखा ही नहीं। प्रेम की अभिव्यक्ति कर दी, विवाह की पेशकश कर दी.. अब वो क्या यह भी बोल दे? लड़कियाँ यह सब कैसे कह दें ! लज्जा की चादर ने उसको पूरी तरह से ढँक लिया था।
वो देख रही थी..
मेरी आँखों में उसके लिए प्यास! मेरे होंठों पर उसके लिए प्यास!
उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने उसको छेड़ना जारी रखा। मैंने उसकी नाभि को जीभ की नोक से चाटना और फिर चूसना शुरू किया। कुछ देर ऐसे ही करने के बाद मैंने उसके नितम्बों को अपने हाथों में ले कर दबाना, और उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया।
“इसको मन भर कर महसूस करो.. आज से यह तुम्हारा है! केवल तुम्हारा!”
अल्का ने अपनी हथेली मेरे लिंग पर लिपटा ली। उसकी पकड़ छोटी पड़ गई। उसके हाथ थर थर कांप रहे थे।
“क्या हुआ मोलू?”
“हे भगवान्! कितना बड़ा है यह!” अल्का एकदम मंत्रमुग्ध हो कर मेरे लिंग को स्पर्श कर रही थी...
“तुमको पसंद है?” अल्का ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“फिर क्या! इसको ठीक से देखो और महसूस करो... आँखें खोलो... ये देखो..” कह कर मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग की पूरी लम्बाई पर फिराया।
“इसको ठीक से महसूस करो...। दबाओ इसे.. हाँ, ऐसे... मुँह में लो.. गालों से लगाओ.. सीने पर फिराओ! आनंद लो!”
अल्का के चेहरे पर घबराहट और संकोच के भाव साफ़ दिख रहे थे, लेकिन इस समय वह उत्सुकता से वशीभूत थी। उसने उँगलियों से पहले मेरे लिंग को हलके से छुआ और फिर दबाया,
“कितना कड़ा है, लेकिन फिर भी कितना कोमल! और कितना गरम भी”
मैंने प्यार से अल्का के सीने पर हाथ फिराया। मेरी इस हरकत पर अल्का की आँख फिर से बंद हो गई... मैंने उसकी बंद आँखों को फिर से चूम लिया, और फिर उसके गालों पर.. अल्का पूरी तरह से तैयार थी, इतना तो मुझे मालूम था। अभी से नहीं, बल्कि जब से हमने अपनी ‘सुहागरात’ की पहली क्रिया शुरू करी थी, तब से। लेकिन मैंने खुद पर संयम बनाए रखा हुआ था। लिंग पर हाथ फिराने से उसका मुंड वापस छुप गया था, इसलिए मैंने लिंग की त्वचा को पीछे की तरफ सरका कर उसको फिर से अनावृत कर दिया, और शिश्नमुंड को अल्का के योनि पर पर छेड़तेहुए चलाने लगा। अल्का कामुक उत्तेजना से छटपटा रही थी। वासना की प्यास अब उसको कष्ट देने लगी थी। उसने आँखें खोल कर मुझे देखा.. और मैं, बस मुस्कुराया। फिर आगे जो हुआ वो बहुत अप्रत्याशित था! उसने दोनों हाथों से मुझे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।
“बोलो... क्या चाहती हो?” मैंने अल्का को छेड़ा। कामोद्दीपन के चरम पर पहँचु कर अल्का बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसका पूरा शरीर वासना के अधीन हो कर काँप रहा था।
“बताओ मोलू... क्या चाहती हो?”
अल्का अभी भी कुछ नहीं कह रही थी। बस अपने सर को धीरे धीरे दाएँ बाएँ हिला रही थी।
“देर सही नहीं जा रही है क्या?”
मैंने अल्का को कुछ और छेड़ा। इस पूरी छेड़खानी के दौरान मैं उसकी योनि को छेड़ता रहा। कैसे कह दे अल्का मुझे कि देर नहीं सही जा रही है! यह सब कहना तो सीखा ही नहीं। प्रेम की अभिव्यक्ति कर दी, विवाह की पेशकश कर दी.. अब वो क्या यह भी बोल दे? लड़कियाँ यह सब कैसे कह दें ! लज्जा की चादर ने उसको पूरी तरह से ढँक लिया था।
वो देख रही थी..
मेरी आँखों में उसके लिए प्यास! मेरे होंठों पर उसके लिए प्यास!
उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने उसको छेड़ना जारी रखा। मैंने उसकी नाभि को जीभ की नोक से चाटना और फिर चूसना शुरू किया। कुछ देर ऐसे ही करने के बाद मैंने उसके नितम्बों को अपने हाथों में ले कर दबाना, और उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया।