17-07-2021, 06:43 PM
अम्मम्मा के प्रश्न के उत्तर में अल्का बस सर झुकाए बैठी रही। कुछ बोल न सकी।
“अरे बोल न, मेरी प्यारी बच्ची! अगर मैं बुढ़िया तुझे किसी भी प्रकार का सुख दे सकी तो मुझे मंज़ूर है सब कुछ! सब मंज़ूर है। तूने मेरी सेवा के लिए कैसा कठिन व्रत ले लिया है। मैं कब तक तुझ पर ऐसे बोझ बनी बैठी रहूंगी।”
“ऐसे न कहो अम्मा। माँ बाप क्या हम पर बोझ हैं? उन्ही के आशीर्वाद से तो हम होते हैं। तुम मेरे लिए कब से बोझ हो गई अम्मा?”
“अगर ऐसी बात है तो बोल मुझे। अगर तेरी यही मंशा है, तो मैं तेरी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर दूँगी!”
अम्मम्मा की बात पर अल्का शर्म से मुस्कुरा दी।
“क्या सच में अम्मा?”
“हाँ मेरी बच्ची! तू बोल न?”
“अम्मा, मेरी प्यारी अम्मा... मैंने... मैंने अर्चित को ही अपना भगवान मान लिया है..”
“क्या?” नानी अवाक् सी देखती रह गई।
“हाँ अम्मा! आपके आने से पहले मैं उन्ही की पूजा कर रही थी । मैंने... अपना सब कुछ उनको ही सौंप दिया है... अब मैं... अब मैं कन्यका नहीं रही अम्मा..”
“यह सब क्या कह रही है तू? तेरा दिमाग तो ठीक है?” अम्मम्मा, जो बहुत ही खुश-मिज़ाज थीं, स्वाभाविक रूप से क्रोधित दिख रही थीं।
“हाँ अम्मा, मेरा दिमाग भी ठीक है और जो मैंने अभी अभी आपको बताया है वह भी सच है। मैंने अपना सर्वस्व अर्चित को सौंप दिया है, और उनको मन से अपना पति मान लिया है। अब आप भी अपना आशीर्वाद दे दीजिए।”
नानी बहुत देर तक सोचती रही और फिर बोली, “किधर है वो ?”
“कुट्टन...” अल्का ने मुझे आवाज़ लगाई, “चेट्टा...”
मन में तो था कि बाहर न निकलूँ, लेकिन जब अल्का एक लड़की हो कर इतनी हिम्मत से अपनी माँ के सामने इतनी बड़ी बात कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं, सोच कर मैं अपने अपने छुपे हुए स्थान से बाहर निकल आया। था तो मैं पूरा नंगा ही.. मुझे देखते ही अम्मम्मा की हँसी निकल गई। माँ की ममता में क्रोध का स्थान किंचित मात्र भी नहीं होता है।
“इधर आ दुष्ट!” उन्होंने हँसते हुए कहा, “सारे संसार में तुझे बस एक तेरी अम्माई ही मिली थी प्रेम करने के लिए?”
मैं लगभग दौड़ते अम्मम्मा के पास आया, और उनके पैर पकड़ लिए, “अम्मम्मा, मेरी प्यारी अम्मम्मा.. मैं अल्का को बहुत प्यार करता हूँ.. और उसको अपना मानता हूँ। आपका आशीर्वाद हो, तो मैं उससे परिणय करना चाहता हूँ।”
“अरे बोल न, मेरी प्यारी बच्ची! अगर मैं बुढ़िया तुझे किसी भी प्रकार का सुख दे सकी तो मुझे मंज़ूर है सब कुछ! सब मंज़ूर है। तूने मेरी सेवा के लिए कैसा कठिन व्रत ले लिया है। मैं कब तक तुझ पर ऐसे बोझ बनी बैठी रहूंगी।”
“ऐसे न कहो अम्मा। माँ बाप क्या हम पर बोझ हैं? उन्ही के आशीर्वाद से तो हम होते हैं। तुम मेरे लिए कब से बोझ हो गई अम्मा?”
“अगर ऐसी बात है तो बोल मुझे। अगर तेरी यही मंशा है, तो मैं तेरी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर दूँगी!”
अम्मम्मा की बात पर अल्का शर्म से मुस्कुरा दी।
“क्या सच में अम्मा?”
“हाँ मेरी बच्ची! तू बोल न?”
“अम्मा, मेरी प्यारी अम्मा... मैंने... मैंने अर्चित को ही अपना भगवान मान लिया है..”
“क्या?” नानी अवाक् सी देखती रह गई।
“हाँ अम्मा! आपके आने से पहले मैं उन्ही की पूजा कर रही थी । मैंने... अपना सब कुछ उनको ही सौंप दिया है... अब मैं... अब मैं कन्यका नहीं रही अम्मा..”
“यह सब क्या कह रही है तू? तेरा दिमाग तो ठीक है?” अम्मम्मा, जो बहुत ही खुश-मिज़ाज थीं, स्वाभाविक रूप से क्रोधित दिख रही थीं।
“हाँ अम्मा, मेरा दिमाग भी ठीक है और जो मैंने अभी अभी आपको बताया है वह भी सच है। मैंने अपना सर्वस्व अर्चित को सौंप दिया है, और उनको मन से अपना पति मान लिया है। अब आप भी अपना आशीर्वाद दे दीजिए।”
नानी बहुत देर तक सोचती रही और फिर बोली, “किधर है वो ?”
“कुट्टन...” अल्का ने मुझे आवाज़ लगाई, “चेट्टा...”
मन में तो था कि बाहर न निकलूँ, लेकिन जब अल्का एक लड़की हो कर इतनी हिम्मत से अपनी माँ के सामने इतनी बड़ी बात कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं, सोच कर मैं अपने अपने छुपे हुए स्थान से बाहर निकल आया। था तो मैं पूरा नंगा ही.. मुझे देखते ही अम्मम्मा की हँसी निकल गई। माँ की ममता में क्रोध का स्थान किंचित मात्र भी नहीं होता है।
“इधर आ दुष्ट!” उन्होंने हँसते हुए कहा, “सारे संसार में तुझे बस एक तेरी अम्माई ही मिली थी प्रेम करने के लिए?”
मैं लगभग दौड़ते अम्मम्मा के पास आया, और उनके पैर पकड़ लिए, “अम्मम्मा, मेरी प्यारी अम्मम्मा.. मैं अल्का को बहुत प्यार करता हूँ.. और उसको अपना मानता हूँ। आपका आशीर्वाद हो, तो मैं उससे परिणय करना चाहता हूँ।”