17-07-2021, 06:23 PM
मैंने उसका स्तन-मर्दन और योनि-भेदन जारी रखा। वो खुद भी मेरे लिंग को दुह रही थी। उसमें से वीर्य की कुछ बूँदें रिसने लगीं थीं। मुझे आनंद आ रहा था - अल्का की हरकतों से भी, और उसके शरीर की कोमलता / कठोरता और नमी सभी से! वो बहुत उत्तेजित हो गई थी - उसकी योनि रस से सराबोर हो गई थी। मेरी उंगली अभी तक उसकी योनि में प्रविष्ट नहीं हुई थी - लेकिन वहां बढ़ती चिकनाई के कारण एक बार अचानक ही मेरी उंगली उसके प्रेम-कूप में प्रविष्ट हो गई! मेरा लिंग नहीं - कोई बात नहीं - कम से कम मेरी उंगली तो उसके भीतर पहुंची! उंगली भीतर जाने के साथ ही मेरे अंगूठे ने उसके भगनासे को छेड़ना आरम्भ कर दिया। अल्का आनंद से अपने चूतड़ हिलाने लगी - छोटे छोटे वृत्तों में, और कुछ इस प्रकार कि मेरा अंगूठा और उंगली अधिक से अधिक उसकी योनि से छेड़खानी कर सकें! उसका भगनासा आनंद में सूज गया।
अपने हाथ से हस्त-मैथुन करना, और अल्का के हाथ से हस्त-मैथुन होने में काफी अंतर था। यह वो अनुभव था, जैसा न मैंने कभी महसूस किया, और ना ही जिसकी कभी कल्पना करी! मुझे मालूम था की जल्दी ही सपने के जैसे ही अल्का का हाथ भी मेरे वीर्य से भीगने वाला था। मेरे अंदर दबाव बढ़ता जा रहा था। उधर, अल्का ने भी अपने चूतड़ों के घूर्णन की गति बढ़ा दी थी। वो अब कराहने भी लगी थी, और मेरे हाथ में धक्के भी लगाने लगी थी।
अचानक ही उसको न जाने क्या हुआ, उसने मेरा सर अपनी तरफ खींच कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। ऐसा अप्रत्याशित चुम्बन! और उधर मेरे लिंग का दोहन जारी था। ऐसा आनंद, ऐसा सुख मैंने कभी नहीं पाया था! मुझे उसी क्षण यह ज्ञात हो गया की अब मेरी नियति और अल्का की नियति साथ आ चुकी है। मेरे अंदर बढ़ते दबाव को रोकने वाला बाँध अचानक ही टूट गया! मैंने पहली बार अपने चूतड़ों को अल्का के हाथ में धकेला - और उसी समय वीर्य की एक मोटी धार हवा में छूट निकली। यह पहला विस्फोट अल्का के पेट पर जा कर गिरा, और उसके बाद के छोटे छोटे विस्फोटों ने उसके हाथ को पूरी तरह से भिगो दिया।
मुझसे रहा न गया - आनंदातिरेक से मैं कराह उठा। उधर अल्का भी अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई थी।
“हाय अम्मा!” की पुकार के साथ ही उसकी जाँघों ने मेरे हाथ को जकड़ लिया। हम दोनों वहीं पड़े हुए अपने शरीर में उठने वाले अनगिनत कामुक कम्पनों का आनंद लेते रहे। बहुत देर तक हमने कुछ न कहा, और न ही अपनी जगह से हिले। अंत में अल्का ने पूछा,
“सपने में ऐसा ही हुआ था?”
“हा हा! हाँ, कुछ कुछ! लेकिन, सपना याद थोड़े ही रहता है। अभी जो हुआ, वो कहीं ज्यादा बेहतर था! ...और तुम्हारे सपने में?”
“ऐसा ही! लेकिन सच में, वास्तविकता में यह बहुत मज़ेदार है!”
अल्का ही सबसे पहले उठी।
“मेरे चिन्नू बाबू, नहाया धोया सब बेकार गया! चलो जल्दी से नहा लेते है, और घर चलते हैं! बहुत देर हो गई।”
हमने जल्दी से पानी में डुबकी मारी, और अपने कपड़े पहने। न तो अल्का ने, और न ही मैंने अपने अधोवस्त्र पहने। गीले शरीर पर कसी हुई जीन्स और शर्ट पहनने में अल्का को बहुत दिक्कत हुई। एक तरह से कपड़ा उसके शरीर पर चिपक सा गया था। और चलने पर ऐसा लगता जैसे उसके चूतड़, इस कैसे हुआ कपड़े में छटपटा रहे हों!
“अल्का, इसको क्या कहते हैं?” मैंने उसके नितम्ब देखते हुआ पूछा।
“कुण्डी!” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा। मेरा लिंग पुनः तन गया।
अपने हाथ से हस्त-मैथुन करना, और अल्का के हाथ से हस्त-मैथुन होने में काफी अंतर था। यह वो अनुभव था, जैसा न मैंने कभी महसूस किया, और ना ही जिसकी कभी कल्पना करी! मुझे मालूम था की जल्दी ही सपने के जैसे ही अल्का का हाथ भी मेरे वीर्य से भीगने वाला था। मेरे अंदर दबाव बढ़ता जा रहा था। उधर, अल्का ने भी अपने चूतड़ों के घूर्णन की गति बढ़ा दी थी। वो अब कराहने भी लगी थी, और मेरे हाथ में धक्के भी लगाने लगी थी।
अचानक ही उसको न जाने क्या हुआ, उसने मेरा सर अपनी तरफ खींच कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। ऐसा अप्रत्याशित चुम्बन! और उधर मेरे लिंग का दोहन जारी था। ऐसा आनंद, ऐसा सुख मैंने कभी नहीं पाया था! मुझे उसी क्षण यह ज्ञात हो गया की अब मेरी नियति और अल्का की नियति साथ आ चुकी है। मेरे अंदर बढ़ते दबाव को रोकने वाला बाँध अचानक ही टूट गया! मैंने पहली बार अपने चूतड़ों को अल्का के हाथ में धकेला - और उसी समय वीर्य की एक मोटी धार हवा में छूट निकली। यह पहला विस्फोट अल्का के पेट पर जा कर गिरा, और उसके बाद के छोटे छोटे विस्फोटों ने उसके हाथ को पूरी तरह से भिगो दिया।
मुझसे रहा न गया - आनंदातिरेक से मैं कराह उठा। उधर अल्का भी अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँच गई थी।
“हाय अम्मा!” की पुकार के साथ ही उसकी जाँघों ने मेरे हाथ को जकड़ लिया। हम दोनों वहीं पड़े हुए अपने शरीर में उठने वाले अनगिनत कामुक कम्पनों का आनंद लेते रहे। बहुत देर तक हमने कुछ न कहा, और न ही अपनी जगह से हिले। अंत में अल्का ने पूछा,
“सपने में ऐसा ही हुआ था?”
“हा हा! हाँ, कुछ कुछ! लेकिन, सपना याद थोड़े ही रहता है। अभी जो हुआ, वो कहीं ज्यादा बेहतर था! ...और तुम्हारे सपने में?”
“ऐसा ही! लेकिन सच में, वास्तविकता में यह बहुत मज़ेदार है!”
अल्का ही सबसे पहले उठी।
“मेरे चिन्नू बाबू, नहाया धोया सब बेकार गया! चलो जल्दी से नहा लेते है, और घर चलते हैं! बहुत देर हो गई।”
हमने जल्दी से पानी में डुबकी मारी, और अपने कपड़े पहने। न तो अल्का ने, और न ही मैंने अपने अधोवस्त्र पहने। गीले शरीर पर कसी हुई जीन्स और शर्ट पहनने में अल्का को बहुत दिक्कत हुई। एक तरह से कपड़ा उसके शरीर पर चिपक सा गया था। और चलने पर ऐसा लगता जैसे उसके चूतड़, इस कैसे हुआ कपड़े में छटपटा रहे हों!
“अल्का, इसको क्या कहते हैं?” मैंने उसके नितम्ब देखते हुआ पूछा।
“कुण्डी!” अल्का ने मुस्कुराते हुए कहा। मेरा लिंग पुनः तन गया।