17-07-2021, 06:19 PM
“कुट्टन मेरे, किस सोच में डूब गए तुम?”
अल्का ने मुझे इतनी देर से चुप और गहराई से सोचते हुए देख कर कहा।
मैंने ‘न’ में सर हिलाया और कहा, “कुछ नहीं मोलू!”
“चिन्नू, मैं तुमको मना नहीं करूंगी - तुम खेलो मेरे शरीर से! तुमको मेरी इजाज़त है! मुझे मालूम है कि तुम्हारा मन होता होगा स्त्री का संसर्ग पाने का। मैं तुमको उस सुख से वंचित नहीं करूँगी। लेकिन तुम मेरे मन के मालिक तभी बनोगे, जब तुमको भी मुझसे प्रेम हो जाएगा!”
“मोलू, तनिक एक पल ठहरो। तुमने इतनी सारी बातें कहीं हैं, अब मेरी भी एक दो बातें सुन लो। मुझे घुमा-फिरा कर कहना तो नहीं आता, लेकिन फिर भी मेरी एक दो बातें सुन लो।” अल्का चुप हो कर मेरी तरफ देखने लगी कि मुझे क्या कहना है।
“घर में सबसे छोटा होने का नुकसान भी है। कोई सीरियसली ही नहीं लेता। कितने ही साल हो गए जब मैंने पहली बार अम्मा से कहा कि मुझे तुम पसंद हो। अम्मा ने पूछा था मुझसे कि तुमको अल्का क्यों पसंद है। तब मैंने उनको कहा कि तुम अकेली हो, लड़की हो, और फिर भी खेती जैसा कठिन काम करती हो। और बखूबी करती हो। अम्मम्मा की पूरी देखभाल करती हो। सब काम सिर्फ अपने दम पर करती हो। किसी से कुछ नहीं माँगती। बस, देती रहती हो। इस समाज के सभी लोग तुमको आदर की नज़र से देखते हैं। मैं ख़ुद तुम्हारा बहुत आदर करता हूँ। तब अम्मा ने मेरी बात को बचपना समझ कर हँसी में उड़ा दिया। बोलीं, कि होने वाली पत्नी का आदर, वो भी अभी से! जैसे कि पत्नी का आदर नहीं करना चाहिए!”
अल्का अवाक् सी हो कर मेरी बात सुन रही थी। पता नहीं उसको मेरी बातों का यकीन भी हो रहा था या नहीं।
“तुम्हारे सब गुण मैंने किसी भी लड़की में नहीं देखे। अम्मा में भी नहीं। तुम कर्मठ हो। लेकिन मृदुभाषी भी हो। अम्मा और अच्चन के जैसे चिड़चिड़ी नहीं हो। तुमने मुझे एक व्यक्ति के रूप में देखा है, और चाहा है। तुमने मुझे अपने तरह से आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है। बाकियों ने बस अपनी मर्ज़ी थोपी है मुझ पर। मुझे तुम्हारे गुण आकर्षित करते हैं। मुझे इन कारणों से लगता है कि तुम मेरे लिए परफेक्ट हो! मैं भले ही तुम्हारे गुणों के सामने नहीं टिकता, लेकिन प्यार तो तुमको बहुत करता हूँ।”
मैं जितनी गंभीरता और सच्चाई से यह बात कर सकता था, वो मैंने कहा।
“बचपन से ही तुम मेरी सबसे ख़ास दोस्त रही हो! मेरी फेवरेट! पूरे घर में किसी से भी ज्यादा ‘तुमको’ मेरे बारे में मालूम है। मुझे दुनिया में तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार है। मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मुझे तुम्हारे शरीर में आसक्ति नहीं है। बिलकुल है, और बहुत है। लेकिन उससे अधिक मेरे मन में तुम्हारे लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह है। मुझे तुम चाहिए, बस तुम।”
“क्या सच, चिन्नू?” अल्का वाकई मेरी इस बात पर आश्चर्यचकित हो गई। उसकी आँखें नम हो चलीं थीं, “तुमको मालूम है? तुम्हारी इस एक बात ने मुझ पर क्या असर किया है?”
मुझे तो बस यही उम्मीद थी, कि उसको मेरी बात और उसके लिए मेरे मन में प्यार का अनुमान और भरोसा हो सके! उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में ले कर बहुत देर तक मुझे यूँ ही देखा, और फिर कहना जारी रखा,
“कुट्टन मेरे, मैं तुमको यह अधिकार देती हूँ कि तुम मेरे कपड़े उतार सको! .... तुम मुझे नंगा देख सकते हो!”
“नहीं मोलू, अब उसकी ज़रुरत नहीं है!”
अल्का मुस्कुराई, “कुट्टन मेरे, ज़रुरत है। तुमको मेरी चाह है, तो मुझको भी तो तुम्हारी चाह है! है न!”
“क्या?” मेरे गले से आवाज़ निकलनी बंद हो गई।
उसने मुस्कुराते हुए बस ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैं काफी देर तक जड़वत खड़ा रहा, कुछ कहते या करते नहीं बना!
अल्का ने मुझे इतनी देर से चुप और गहराई से सोचते हुए देख कर कहा।
मैंने ‘न’ में सर हिलाया और कहा, “कुछ नहीं मोलू!”
“चिन्नू, मैं तुमको मना नहीं करूंगी - तुम खेलो मेरे शरीर से! तुमको मेरी इजाज़त है! मुझे मालूम है कि तुम्हारा मन होता होगा स्त्री का संसर्ग पाने का। मैं तुमको उस सुख से वंचित नहीं करूँगी। लेकिन तुम मेरे मन के मालिक तभी बनोगे, जब तुमको भी मुझसे प्रेम हो जाएगा!”
“मोलू, तनिक एक पल ठहरो। तुमने इतनी सारी बातें कहीं हैं, अब मेरी भी एक दो बातें सुन लो। मुझे घुमा-फिरा कर कहना तो नहीं आता, लेकिन फिर भी मेरी एक दो बातें सुन लो।” अल्का चुप हो कर मेरी तरफ देखने लगी कि मुझे क्या कहना है।
“घर में सबसे छोटा होने का नुकसान भी है। कोई सीरियसली ही नहीं लेता। कितने ही साल हो गए जब मैंने पहली बार अम्मा से कहा कि मुझे तुम पसंद हो। अम्मा ने पूछा था मुझसे कि तुमको अल्का क्यों पसंद है। तब मैंने उनको कहा कि तुम अकेली हो, लड़की हो, और फिर भी खेती जैसा कठिन काम करती हो। और बखूबी करती हो। अम्मम्मा की पूरी देखभाल करती हो। सब काम सिर्फ अपने दम पर करती हो। किसी से कुछ नहीं माँगती। बस, देती रहती हो। इस समाज के सभी लोग तुमको आदर की नज़र से देखते हैं। मैं ख़ुद तुम्हारा बहुत आदर करता हूँ। तब अम्मा ने मेरी बात को बचपना समझ कर हँसी में उड़ा दिया। बोलीं, कि होने वाली पत्नी का आदर, वो भी अभी से! जैसे कि पत्नी का आदर नहीं करना चाहिए!”
अल्का अवाक् सी हो कर मेरी बात सुन रही थी। पता नहीं उसको मेरी बातों का यकीन भी हो रहा था या नहीं।
“तुम्हारे सब गुण मैंने किसी भी लड़की में नहीं देखे। अम्मा में भी नहीं। तुम कर्मठ हो। लेकिन मृदुभाषी भी हो। अम्मा और अच्चन के जैसे चिड़चिड़ी नहीं हो। तुमने मुझे एक व्यक्ति के रूप में देखा है, और चाहा है। तुमने मुझे अपने तरह से आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया है। बाकियों ने बस अपनी मर्ज़ी थोपी है मुझ पर। मुझे तुम्हारे गुण आकर्षित करते हैं। मुझे इन कारणों से लगता है कि तुम मेरे लिए परफेक्ट हो! मैं भले ही तुम्हारे गुणों के सामने नहीं टिकता, लेकिन प्यार तो तुमको बहुत करता हूँ।”
मैं जितनी गंभीरता और सच्चाई से यह बात कर सकता था, वो मैंने कहा।
“बचपन से ही तुम मेरी सबसे ख़ास दोस्त रही हो! मेरी फेवरेट! पूरे घर में किसी से भी ज्यादा ‘तुमको’ मेरे बारे में मालूम है। मुझे दुनिया में तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार है। मैं यह तो नहीं कहूँगा कि मुझे तुम्हारे शरीर में आसक्ति नहीं है। बिलकुल है, और बहुत है। लेकिन उससे अधिक मेरे मन में तुम्हारे लिए एक प्रबल और स्मरणीय स्नेह है। मुझे तुम चाहिए, बस तुम।”
“क्या सच, चिन्नू?” अल्का वाकई मेरी इस बात पर आश्चर्यचकित हो गई। उसकी आँखें नम हो चलीं थीं, “तुमको मालूम है? तुम्हारी इस एक बात ने मुझ पर क्या असर किया है?”
मुझे तो बस यही उम्मीद थी, कि उसको मेरी बात और उसके लिए मेरे मन में प्यार का अनुमान और भरोसा हो सके! उसने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में ले कर बहुत देर तक मुझे यूँ ही देखा, और फिर कहना जारी रखा,
“कुट्टन मेरे, मैं तुमको यह अधिकार देती हूँ कि तुम मेरे कपड़े उतार सको! .... तुम मुझे नंगा देख सकते हो!”
“नहीं मोलू, अब उसकी ज़रुरत नहीं है!”
अल्का मुस्कुराई, “कुट्टन मेरे, ज़रुरत है। तुमको मेरी चाह है, तो मुझको भी तो तुम्हारी चाह है! है न!”
“क्या?” मेरे गले से आवाज़ निकलनी बंद हो गई।
उसने मुस्कुराते हुए बस ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैं काफी देर तक जड़वत खड़ा रहा, कुछ कहते या करते नहीं बना!