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मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam
#77
अल्का भी संभवतः कुछ समय हुए घटनाक्रम से कुछ घबराई हुई थी। वो भी इधर उधर देखते हुए ही बात कर रही थी। इसलिए उसको अभी तक मालूम नहीं पड़ा था कि मेरी दृष्टि किस तरफ थी। वो कुछ कुछ कह रही थी, और मैं बसअह’, ‘हाँ’, औरहम्ममें ही जवाब दे रहा था। कुछ समय बाद, वो अचानक उठी, और बोली कि देर हो रही है, और हमको चलना चाहिए। ऐसा करते समय उसने मेरी तरफ देखा, और तुरंत समझ गई कि मैं किधर देख रहा था। एक बार तो उसके चेहरे से जैसे सारा रक्त निचुड़ गया!

उई माँ! चिन्नू, तुम बहुत खराब हो! देखो, तुम्हारी बातों में आने का अंजाम! मेरी ऐसी हालत है कि कुछ पहनने या पहनने का कोई मतलब ही नहीं रह गया! हट्ट!”


कह कर वो अपने गोल गोल नितम्ब मटकाती हुई अपने कपड़ो की तरफ चल दी। हमने चुप रह कर जैसे तैसे अपने कपड़े बदले। अल्का और मैंने अपने गीले अधोवस्त्र उतार दिए थे। और वापस अपने घर की तरफ चल दिए।

उस रात को जब हम सोने के लिए बिस्तर पर आए, तो अल्का ने कहा,

चिन्नू, तुमने मुझे आज ऐसे देख ही लिया है। तो...”

अल्का, मैंने प्रॉमिस किया है कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा!” मैंने कहा।

नहीं.. वो बात नहीं...सोते समय अगर मैं भी कपड़े उतार कर लेटूँ तो?”

तुम्हारा घर है, अल्का! जैसा तुमको अच्छा लगे?”

ओये होए! कैसा भोला बन रहा है मेरा चिन्नू!!” अल्का ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी अच्छी किस्मत नहीं है तुम्हारी! हा हा हा! लेकिन एक बात याद रखना! जो भी कुछ हुआ, वो किसी को बताना!”


अल्का की बात से मैं हकलाने लगा, “नननननहीं! मैं कुछ नहीं कहूँगा!”

गुड नाईट चिन्नू!”

 
निरंतर उत्तेजित रहना मेरे लिए मानिए जैसे आम बात थी। उस समय भी कुछ अलग नहीं था। उत्तेजना के कारण मुझे नींद नहीं पा रही थी। मेरा लिंग उत्तेजना से स्पंदन कर रहा था। दिमाग में अल्का का नग्न शरीर घूम रहा था! ऊपर से उसकी अभी अभी की गई छेड़खानी से मेरा सोना और भी कठिन हो गया था। नींद आँखों से कोसों दूर थी। ऐसे ही सोने की कोशिश करते करते एक घंटे से ऊपर हो गया। मैं अभी भी नहीं सो पा रहा था। रात की गहराई में झींगुरों का गान। बचपन में झींगुरों की आवाज़ से डर लगता था। बड़े होने पर पता चला कि नर झींगुर, मादा झींगुरों को आकर्षित करने के लिए अपने पंखों को रगड़ कर ऐसी आवाज़ पैदा करते हैं। मतलब यह एक प्रेम गीत है। यह सोच कर मैं मुस्कुरा दिया। बात वही थी - लेकिन नज़रिया बदल गया। आज उन तमाम झींगुरों के जैसे ही मेरे दिल का हाल भी अपनी प्रेमिका के लिए आतुर हो रहा था। अल्का की साँसे अब गहरी गहरी चल रहीं थीं, इसका मतलब वो अब सो चुकी थी। जाने क्यों, उसको ऐसा सोते देख कर बड़ा सुकून सा महसूस हुआ। सोते सोते ही अचानक ही उसने करवट बदली, और उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रख दिया। वो स्पर्श! ओह! जाने क्यों, अल्का की छुवन से मुझे बहुत राहत सी मिली। सतत स्तम्भन के दर्द को अपने लिंग में महसूस करने के बाद भी मैं सोने में सफल हो गया।

बड़े सुन्दर सपने! भले ही जागने पर याद रहें या रहें, लेकिन सपने मनुष्य को जीने की ताकत देते हैं। कितने ही लोग हैं जिन्होंने बताया है कि अपनी समस्याओं का समाधान उनको सपनों में मिला। कई सारे जटिल, वैज्ञानिक प्रश्न, सपनों में ही हल किए गए हैं। मेरे जीवन में कोई समस्या थोड़े ही थी। एक कोरा कैनवास था, जिस पर अचानक से ही अल्का अपने प्रेम की कूंची से नए नए रंग भरने लगी थी। मुझे तो लगता है कि प्रत्येक मनुष्य के मन में यह इच्छा तो अवश्य ही होती होगी कि कोई उसको प्यार से देखे। आँखें आँखों से कुछ ऐसे मिलें, कि सब कुछ ठहर जाए। कोई ऐसा प्रेमी हो जो उसको प्रेम से छुए, चुंबन देदेह के रोम रोम पर चुम्बन दे! उसके प्रेम में इतनी उष्णता हो कि उसका सान्निध्य मिलते ही तन और मन सिहर जाए। कोई ऐसा, अपना हो, जो देर तक उसके साथ हो...! किसके मन में नहीं होती प्रेम की यह पागल इच्छा? अचानक से ही यह इच्छा मेरे मन में भी अंकुर लेने लगीं थीं। और इन इच्छाओं के मध्य में थी अल्का!

लेकिन यह सब क्या आसान है? हमारे अपने लोग, और फिर उनसे इतर जो समाज के लोग हैं क्या वो अल्का और मेरा संग सहन कर पाएँगे? अम्मा और अम्माई - दोनों शब्द एक समान हैं। समाज में संभव है कि दोनों को एक दर्जा दिया हुआ है। इसीलिए तो ऐसे शब्दों का आविष्कार हुआ है। तो क्या अम्माई सिर्फ अम्मा के ही किरदार में रह सकती है? प्रेमिका के नहीं? पत्नी के नहीं? अगर मैं अपने मन की बात किसी से कहूँ, तो वो क्या समझ सकेगा कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? मुझे चरित्रहीन तो नहीं कहने लगेंगे? समाज से मेरा बहिष्कार तो नहीं कर देंगे? सामाजिक बंधन भला इतने कठोर क्यों हैं?

फिर अचानक ही ऐसे विवशता भरे नकारात्मक विचार लुप्त हो जाते हैं। सपनों के पटल पर नया दृश्य उभर आता है। अल्का! एक मधुर... मादक सा अहसास उठ जाता है। लगा कि जैसे मीठे संगीत की ध्वनि-लहरियाँ कानों में बजने लगीं हों। ओह! उसका भीगा हुआ रूप! कितना रोमांचित कर देने वाला दृश्य और अहसास! सपने में लगा कि जैसे मेरे होंठ अल्का के होंठ ढूंढ रहे हैं। मन में अल्का की देह को अपने में भींच लेने तीव्र अकुलाहट होने लगी। रोम-रोम में जाने कैसी मीठी मीठी तरंगें निकलने लगीं। इतनी सुन्दर इच्छा! लेकिन कैसी विवशता!
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RE: मनमोहक गंदी कहानियाँ... RoccoSam - by usaiha2 - 17-07-2021, 06:11 PM



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