17-07-2021, 05:11 PM
“क्या अम्माई!” मैंने झेंप गया, लेकिन मैंने भी उनकी खिंचाई करी, “वैसे, तुम भी कुछ कम नहीं लग रही हो।”
“हा हा! हाँ, यहाँ की धूप, धूल-मिट्टी, और गर्मी मुझे बहुत रास आ रही है! चल अंदर आ!”
मौसी अपने साँवले रंग की तरफ इशारा कर रही थीं, लेकिन मेरा इशारा उनकी गढ़न की तरफ था। कम से कम उनके सीने पहले से अधिक विकसित हो गए थे। जब आखिरी बार उनको देखा था, तो वो पतली दुबली, सुकुड़ी सी लड़की थीं। लेकिन शायद उम्र के एक पड़ाव के बाद स्त्रियों का शरीर भरने लगता है। मौसी में यह परिवर्तन देर से ही सही, लेकिन हो रहे थे। जब मैं बहुत छोटा था, तब तो मौसी भी छोटी ही थीं। उस समय मुझे हम दोनों को हमारी उम्र में वाकई कोई अंतर नहीं लगता था। क्योंकि वो मुझसे मौसी के जैसे कम और दोस्त के जैसे अधिक बर्ताव करती थीं। छुटपन में हमारे लिए एक दूसरे के सामने यूँ ही नंगे घूमना, और वैसे ही साथ में खेलना एक आम बात थी। लेकिन धीरे धीरे हमारे शरीरों में परिवर्तन होने लगे। छोटा लड़का होने के नाते मेरे शरीर में परिवर्तन धीरे हो रहा था, लेकिन मेरी हर केरल यात्रा के दौरान मैं अलका मौसी के शरीर में जो अंतर देखता था, वो मुझे बहुत रोचक जान पड़ता।
लेकिन पिछले तीन चार वर्षों में उनका जैसे कायाकल्प हो गया था! यौवन ने जैसे जीवन के स्त्रोत से रस सोख लिया था। मौसी का रूप हर बार मुझे और निखरा हुआ लगता था... मुझे ही नहीं, बल्कि हम सभी को! उनका चेहरा कई मायनों में बदल गया था... ऐसे नहीं की उनकी शक्ल ही बदल गई हो, बस वो छोटे छोटे, लगभग अपरिभाष्य तरीके से आते हैं, वो! उनके चेहरे पर से धीरे-धीरे बालपन की सुंदरता की जगह, यौवन के लावण्य ने ले ली थी। उनके होंठ अब और अधिक रसीले हो गए थे, उनकी मुस्कान पहले से भी प्यारी और आकर्षक हो गई थी। मौसी जब छोटी थीं, तो साफ रंग की थीं, लेकिन खेत पर काम के कारण अब उनके रंग में सांवलापन बैठ गया था। लेकिन मैंने एक बात ध्यान दी कि वो काफी सुन्दर लगती हैं। अगर कैराली मर्द रंग के पर्दे के परे देख सकते तो समझते!
मेरे सामने वो बहुत पहले से ही नग्न होना बंद कर चुकी थी - लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने मुझे अपने नवोदित स्तनों को छूने या महसूस करने से रोका हो। हमारी हर केरल यात्रा में किसी न किसी बहाने से मैं उनके स्तनों को छूता या टटोलता ज़रूर था, और उनको यह बात भली भांति मालूम भी थी। और सबसे अच्छी बात यह, कि वो मुझे रोकती भी नहीं थीं। वो अलग बात है कि पिछले दो बार से मैंने ऐसी कोई चेष्टा नहीं करी। लेकिन मैं हर बार उनके आकार बदलते स्तनों को एक नया नाम देता - कभी चेरुनारेंगा (नींबू), तो कभी सातुकुड़ी (संतरा)! वो भी मेरे मज़ाक का बुरा नहीं मानती थीं - बल्कि मेरे साथ खुद भी इस बात पर हंसती थीं।
घर में आ कर मैंने नानी के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। हमारी बहुत पुरानी वित्तुवेल्लक्कारी (आया... नौकरानी नहीं) चिन्नम्मा भी थीं। मैंने उनके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिए। चिन्नम्मा अब इस घर का अभिन्न हिस्सा थीं। उनके बिना घर का काम आगे नहीं बढ़ सकता था। हाँलाकि उनका घर लगभग दस मिनट की दूरी पर था, लेकिन दिन का ज्यादातर समय उनका नानी की और घर की देखभाल में बीतता था। सभी से हाल चाल लेने के बाद, स्नान कर के मैं भोजन करने को बैठा। मौसी मेरे स्वागत के लिए उस दिन, और अगले पूरे दिन घर पर ही रहीं। उनसे पूरे तीन साल बाद मिला था। वो जम कर मेरी आवभगत करना चाहती थीं। आज करीमीन पोळीचट्टु, एराची उल्लरथीयद्दु, अप्पम, चावल, और पायसम पकाया गया था। वैसे भी उत्तर भारत में इस प्रकार के व्यंजन उपलब्ध नहीं हो पाते। तो मैंने डट कर खाया। वैसे भी रास्ते भर ठीक से खाना नहीं हो सका। गाँव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए दिन जल्दी ही समाप्त हो जाते थे उन दिनों।
नाना का घर बड़ा था, लेकिन आज कल घर का ज्यादातर हिस्सा एक तरह का गोदाम बन गया था। उपज अधिक होने के कारण बाकी सारे कमरों को कोठरी के जैसे ही इस्तेमाल किया जा रहा था। इसलिए अब सिर्फ दो ही कमरे खुले हुए थे। एक कमरे में तो नानी रहती थीं, दूसरे में मौसी। इसलिए अब मेरे पास बस दो ही विकल्प थे - एक तो घर के बाहर सोना या रहना या फिर मौसी के साथ! लेकिन बाहर सोने की आदत अब ख़त्म हो गई थी। मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़ों का डर भी था। जब तक अभ्यस्थ न हो जाएँ नए परिवेश में, तब तक बार सोने का जोखिम लेना मूर्खतापूर्ण काम था। इतने वर्षों तक अकेले सोने के बाद मेरी किसी के संग सोने की आदत नहीं थी। खासतौर पर किसी लड़की के साथ! सतही तौर पर मैंने थोड़ी बहुत शिकायत तो करी, लेकिन फिर भी मौसी जैसी सुन्दर लड़की के साथ ‘सोने’ के अवसर पर मेरा मन प्रफुल्लित भी था। भई, अब मैं भी जवान हो गया था, और इस उम्र में लड़की का साथ बुरा तो नहीं लगता। वो अलग बात थी कि नानी की दृष्टि में मैं अभी भी छोटा बच्चा ही था।
“हा हा! हाँ, यहाँ की धूप, धूल-मिट्टी, और गर्मी मुझे बहुत रास आ रही है! चल अंदर आ!”
मौसी अपने साँवले रंग की तरफ इशारा कर रही थीं, लेकिन मेरा इशारा उनकी गढ़न की तरफ था। कम से कम उनके सीने पहले से अधिक विकसित हो गए थे। जब आखिरी बार उनको देखा था, तो वो पतली दुबली, सुकुड़ी सी लड़की थीं। लेकिन शायद उम्र के एक पड़ाव के बाद स्त्रियों का शरीर भरने लगता है। मौसी में यह परिवर्तन देर से ही सही, लेकिन हो रहे थे। जब मैं बहुत छोटा था, तब तो मौसी भी छोटी ही थीं। उस समय मुझे हम दोनों को हमारी उम्र में वाकई कोई अंतर नहीं लगता था। क्योंकि वो मुझसे मौसी के जैसे कम और दोस्त के जैसे अधिक बर्ताव करती थीं। छुटपन में हमारे लिए एक दूसरे के सामने यूँ ही नंगे घूमना, और वैसे ही साथ में खेलना एक आम बात थी। लेकिन धीरे धीरे हमारे शरीरों में परिवर्तन होने लगे। छोटा लड़का होने के नाते मेरे शरीर में परिवर्तन धीरे हो रहा था, लेकिन मेरी हर केरल यात्रा के दौरान मैं अलका मौसी के शरीर में जो अंतर देखता था, वो मुझे बहुत रोचक जान पड़ता।
लेकिन पिछले तीन चार वर्षों में उनका जैसे कायाकल्प हो गया था! यौवन ने जैसे जीवन के स्त्रोत से रस सोख लिया था। मौसी का रूप हर बार मुझे और निखरा हुआ लगता था... मुझे ही नहीं, बल्कि हम सभी को! उनका चेहरा कई मायनों में बदल गया था... ऐसे नहीं की उनकी शक्ल ही बदल गई हो, बस वो छोटे छोटे, लगभग अपरिभाष्य तरीके से आते हैं, वो! उनके चेहरे पर से धीरे-धीरे बालपन की सुंदरता की जगह, यौवन के लावण्य ने ले ली थी। उनके होंठ अब और अधिक रसीले हो गए थे, उनकी मुस्कान पहले से भी प्यारी और आकर्षक हो गई थी। मौसी जब छोटी थीं, तो साफ रंग की थीं, लेकिन खेत पर काम के कारण अब उनके रंग में सांवलापन बैठ गया था। लेकिन मैंने एक बात ध्यान दी कि वो काफी सुन्दर लगती हैं। अगर कैराली मर्द रंग के पर्दे के परे देख सकते तो समझते!
मेरे सामने वो बहुत पहले से ही नग्न होना बंद कर चुकी थी - लेकिन ऐसा नहीं था कि उन्होंने मुझे अपने नवोदित स्तनों को छूने या महसूस करने से रोका हो। हमारी हर केरल यात्रा में किसी न किसी बहाने से मैं उनके स्तनों को छूता या टटोलता ज़रूर था, और उनको यह बात भली भांति मालूम भी थी। और सबसे अच्छी बात यह, कि वो मुझे रोकती भी नहीं थीं। वो अलग बात है कि पिछले दो बार से मैंने ऐसी कोई चेष्टा नहीं करी। लेकिन मैं हर बार उनके आकार बदलते स्तनों को एक नया नाम देता - कभी चेरुनारेंगा (नींबू), तो कभी सातुकुड़ी (संतरा)! वो भी मेरे मज़ाक का बुरा नहीं मानती थीं - बल्कि मेरे साथ खुद भी इस बात पर हंसती थीं।
घर में आ कर मैंने नानी के पैर छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। हमारी बहुत पुरानी वित्तुवेल्लक्कारी (आया... नौकरानी नहीं) चिन्नम्मा भी थीं। मैंने उनके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिए। चिन्नम्मा अब इस घर का अभिन्न हिस्सा थीं। उनके बिना घर का काम आगे नहीं बढ़ सकता था। हाँलाकि उनका घर लगभग दस मिनट की दूरी पर था, लेकिन दिन का ज्यादातर समय उनका नानी की और घर की देखभाल में बीतता था। सभी से हाल चाल लेने के बाद, स्नान कर के मैं भोजन करने को बैठा। मौसी मेरे स्वागत के लिए उस दिन, और अगले पूरे दिन घर पर ही रहीं। उनसे पूरे तीन साल बाद मिला था। वो जम कर मेरी आवभगत करना चाहती थीं। आज करीमीन पोळीचट्टु, एराची उल्लरथीयद्दु, अप्पम, चावल, और पायसम पकाया गया था। वैसे भी उत्तर भारत में इस प्रकार के व्यंजन उपलब्ध नहीं हो पाते। तो मैंने डट कर खाया। वैसे भी रास्ते भर ठीक से खाना नहीं हो सका। गाँव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए दिन जल्दी ही समाप्त हो जाते थे उन दिनों।
नाना का घर बड़ा था, लेकिन आज कल घर का ज्यादातर हिस्सा एक तरह का गोदाम बन गया था। उपज अधिक होने के कारण बाकी सारे कमरों को कोठरी के जैसे ही इस्तेमाल किया जा रहा था। इसलिए अब सिर्फ दो ही कमरे खुले हुए थे। एक कमरे में तो नानी रहती थीं, दूसरे में मौसी। इसलिए अब मेरे पास बस दो ही विकल्प थे - एक तो घर के बाहर सोना या रहना या फिर मौसी के साथ! लेकिन बाहर सोने की आदत अब ख़त्म हो गई थी। मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़ों का डर भी था। जब तक अभ्यस्थ न हो जाएँ नए परिवेश में, तब तक बार सोने का जोखिम लेना मूर्खतापूर्ण काम था। इतने वर्षों तक अकेले सोने के बाद मेरी किसी के संग सोने की आदत नहीं थी। खासतौर पर किसी लड़की के साथ! सतही तौर पर मैंने थोड़ी बहुत शिकायत तो करी, लेकिन फिर भी मौसी जैसी सुन्दर लड़की के साथ ‘सोने’ के अवसर पर मेरा मन प्रफुल्लित भी था। भई, अब मैं भी जवान हो गया था, और इस उम्र में लड़की का साथ बुरा तो नहीं लगता। वो अलग बात थी कि नानी की दृष्टि में मैं अभी भी छोटा बच्चा ही था।