01-07-2021, 06:05 PM
ननद,
ननद के भैया
दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।
लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।
पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,
" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "
गुड्डी की सिसकियाँ तो पहले ही रुक गयी थीं , अब वो कम्मो भौजी की रसीली गारियाँ सुन के हलके हलके मुस्कराने लगी थी, ... और इन्होने भी हलके हलके अपना खूंटा थोड़ा सा बाहर बहुत धीरे धीरे खींचने लगे ,
कभी स्टिल कभी वीडियो खींचते मैं समझ रही थी क्या होने वाला है , असली भरतपुर पर तो हमला अब होगा,
और वही हुआ , आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल के एक बार फिर उन्होंने कस के अपनी छुटकी बहिनिया की कटीली पतली कमरिया कस के पकड़ी और पूरी ताकत से ,
और अबकी धक्के पर धक्के , एक के बाद ,
ननद रानी चीखते चीखते थक गयी थीं बस अब रुक रुक कर सुबक रही थीं ,
लेकिन अब कम्मो ने अपना रोल बदला और उसके दोनों हाथ दोनों छोटे छोटे जोबन पर , जिस जोबना पर सारे मोहल्ले के लौंडे दीवाने थे
भौजी का एक हाथ जोबन को सहला रहा था , दबा मसल रहा था और दूसरा हल्का हल्का निप्स को कभी पुल करता कभी पिंच, ...
कुछ देर में ही ननद का कहरना मस्ती भरी सिसकियों में बदल गया ,
कम्मो अब झुक के कभी ननद के होंठों को चूम लेती तो कभी उसकी चूँची चूस लेती , ननद भी भौजाई के चुम्मे का जवाब दे रही थी
उसकी पूरी देह से लग रहा था उसे मजा आ रहा है , पर कुछ देर के बाद उन्होंने एक बार अपने खूंटे को हल्का सा पीछे कर के , इतनी कस के
मैं होती तो मेरी भी चीख निकल जाती , इतना जोरदार धक्का था
गुड्डी जोर से चीख पड़ी ,
पर ये रुके नहीं ,
वो चीखती रही ये चोदते रहे , और मुझे आँख पर विश्वास नहीं हुआ कैसे उसकी चीख सिसकियों में बदली, उसकी देह हलके हलके काँप रही थी , वो कगार पर थी ,
और इन्होने एक जोरदार धक्का , पक्का अबकी सीधे बच्चेदानी पर लगा होगा ,
और गुड्डी एक बार फिर बिस्तर से उछल रही थी , मचल रही थी , दर्द से नहीं मजे से , वो तो कम्मो ने उसे कस के पकड़ रखा था
एक बार झड़ना बंद होता तो बस पल भर रुक के दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार,
उन्होंने पूरी ताकत से ८ इंच का खूंटा अपनी छोटी बहिनिया के अंदर जड़ तक ठेल रखा था, मोटा सुपाड़ा उस किशोरी के बच्चेदानी से चिपका
झड़ झड़ के मेरी ननद थेथर हो गयी, और थक कर एकदम रुक गयी , कुछ देर भाई बहिन दोनों ऐसे पड़े रहे , लेकिन कम्मो कहाँ मानने वाली,
भौजी ने अपने देवर को इशारा किया,
खूंटा अभी भी भौजी की ननद की चूत में जड़ तक धंसा था , जिस चूत में एक दिन पहले तक तर्जनी ऊँगली घुसाना मुश्किल लग रहा था वो अब आठ इंच लम्बा ढाई इंच मोटा मूसल जड़ तक घोंटे पड़ी थी,
बिना एक सूत भी बाहर निकाले ही उन्होने लंड के बेस से अपनी छोटी बहिनिया की क्लिट पर रगड़ना शुरू किया, पहले थोड़ी देर बहुत धीमे धीमे, फिर तेजी से ,
लगता था कोई बड़ा बाँध टूट पड़ा , मेरी ननद एक बार फिर से कांपने लगी , सिसकने लगी , उसकी पूरी देह मुड़ तुड़ रही थी ,
जैसे तेज तूफ़ान, तेज बारिश रुकने के बाद बहुत देर तक पत्तों से , घरों की छत से पानी की बूँदें धीरे टपकती रहती हैं , हवा हलकी हलकी चलती है बस उसी तरह
अबकी जब ननद रुकी तो ये भी , फिर इनके खूंटे के अलावा हर इनके अंग,
उँगलियाँ होंठ जीभ
गाल हलके हलके सहलाते हुए चूम कर पहले उन्होंने दर्द से डूबी आँखों को बंद किया अपने होंठों से , और होंठ कभी मेरी ननद के रसीले होंठों पर
कभी नए नए आ रहे थे जोबन पर , थोड़ी देर में एक उभार इनके हाथों के बीच और दूसरा इनके होंठों के बीच
मुझसे कोई पूछे इनकी उँगलियों और होंठों का जादू ,
थोड़ी देर में मेरी ननद पिघल रही थी मचल रही थी चुम्मे का जवाब चुम्मे से दे रही थी खुद अपने छोटे छोटे उभार इनकी छाती से रगड़ रही थी
और जब वो अपने छोटे छोटे चूतड़ खुद उछालने लगी तो ये समझ गए , धक्के फिर शुरू हो गए लेकिन हलके हलके
दो चार धक्के ये मारते तो एक दो बार वो नीचे से अपने चूतड़ उछालती और ये मस्ती में उसके मटर के नए आये दाने के बराबर निप्स चूसने लगते और वो खुद इन्हे खींच कर इशारे करती और धक्कों का जोर बढ़ जाता,
थोड़ी देर बाद वो फिर झड़ने लगी ,
ननद के भैया
दो खारे आंसू टपक कर ननद के नमकीन गालों पर आ गए और कम्मो ने झुक के उन्हें चाट लिया और हलके से गाल भी काट लिया।
लेकिन ये ठेलते जा रहे थे , धकेलते जा रहे थे करीब चार साढ़े चार इंच धंस गया तब वो रुके आधा करीब अभी भी बाहर था।
पर कम्मो ने गारियों की बारिश शुरू कर दी ,
" स्साले ये बाकी किस भोंसड़ी वाले के लिए , स्साले ससुराल में तेरी ये कोरी कुँवारी गाँड़ तेरी सास और सलहज होली में मार मार कर, लेकिन उसके पहले मैं ही कोहनी तक पेलकर, ... "
गुड्डी की सिसकियाँ तो पहले ही रुक गयी थीं , अब वो कम्मो भौजी की रसीली गारियाँ सुन के हलके हलके मुस्कराने लगी थी, ... और इन्होने भी हलके हलके अपना खूंटा थोड़ा सा बाहर बहुत धीरे धीरे खींचने लगे ,
कभी स्टिल कभी वीडियो खींचते मैं समझ रही थी क्या होने वाला है , असली भरतपुर पर तो हमला अब होगा,
और वही हुआ , आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाल के एक बार फिर उन्होंने कस के अपनी छुटकी बहिनिया की कटीली पतली कमरिया कस के पकड़ी और पूरी ताकत से ,
और अबकी धक्के पर धक्के , एक के बाद ,
ननद रानी चीखते चीखते थक गयी थीं बस अब रुक रुक कर सुबक रही थीं ,
लेकिन अब कम्मो ने अपना रोल बदला और उसके दोनों हाथ दोनों छोटे छोटे जोबन पर , जिस जोबना पर सारे मोहल्ले के लौंडे दीवाने थे
भौजी का एक हाथ जोबन को सहला रहा था , दबा मसल रहा था और दूसरा हल्का हल्का निप्स को कभी पुल करता कभी पिंच, ...
कुछ देर में ही ननद का कहरना मस्ती भरी सिसकियों में बदल गया ,
कम्मो अब झुक के कभी ननद के होंठों को चूम लेती तो कभी उसकी चूँची चूस लेती , ननद भी भौजाई के चुम्मे का जवाब दे रही थी
उसकी पूरी देह से लग रहा था उसे मजा आ रहा है , पर कुछ देर के बाद उन्होंने एक बार अपने खूंटे को हल्का सा पीछे कर के , इतनी कस के
मैं होती तो मेरी भी चीख निकल जाती , इतना जोरदार धक्का था
गुड्डी जोर से चीख पड़ी ,
पर ये रुके नहीं ,
वो चीखती रही ये चोदते रहे , और मुझे आँख पर विश्वास नहीं हुआ कैसे उसकी चीख सिसकियों में बदली, उसकी देह हलके हलके काँप रही थी , वो कगार पर थी ,
और इन्होने एक जोरदार धक्का , पक्का अबकी सीधे बच्चेदानी पर लगा होगा ,
और गुड्डी एक बार फिर बिस्तर से उछल रही थी , मचल रही थी , दर्द से नहीं मजे से , वो तो कम्मो ने उसे कस के पकड़ रखा था
एक बार झड़ना बंद होता तो बस पल भर रुक के दूसरी बार, तीसरी बार, चौथी बार,
उन्होंने पूरी ताकत से ८ इंच का खूंटा अपनी छोटी बहिनिया के अंदर जड़ तक ठेल रखा था, मोटा सुपाड़ा उस किशोरी के बच्चेदानी से चिपका
झड़ झड़ के मेरी ननद थेथर हो गयी, और थक कर एकदम रुक गयी , कुछ देर भाई बहिन दोनों ऐसे पड़े रहे , लेकिन कम्मो कहाँ मानने वाली,
भौजी ने अपने देवर को इशारा किया,
खूंटा अभी भी भौजी की ननद की चूत में जड़ तक धंसा था , जिस चूत में एक दिन पहले तक तर्जनी ऊँगली घुसाना मुश्किल लग रहा था वो अब आठ इंच लम्बा ढाई इंच मोटा मूसल जड़ तक घोंटे पड़ी थी,
बिना एक सूत भी बाहर निकाले ही उन्होने लंड के बेस से अपनी छोटी बहिनिया की क्लिट पर रगड़ना शुरू किया, पहले थोड़ी देर बहुत धीमे धीमे, फिर तेजी से ,
लगता था कोई बड़ा बाँध टूट पड़ा , मेरी ननद एक बार फिर से कांपने लगी , सिसकने लगी , उसकी पूरी देह मुड़ तुड़ रही थी ,
जैसे तेज तूफ़ान, तेज बारिश रुकने के बाद बहुत देर तक पत्तों से , घरों की छत से पानी की बूँदें धीरे टपकती रहती हैं , हवा हलकी हलकी चलती है बस उसी तरह
अबकी जब ननद रुकी तो ये भी , फिर इनके खूंटे के अलावा हर इनके अंग,
उँगलियाँ होंठ जीभ
गाल हलके हलके सहलाते हुए चूम कर पहले उन्होंने दर्द से डूबी आँखों को बंद किया अपने होंठों से , और होंठ कभी मेरी ननद के रसीले होंठों पर
कभी नए नए आ रहे थे जोबन पर , थोड़ी देर में एक उभार इनके हाथों के बीच और दूसरा इनके होंठों के बीच
मुझसे कोई पूछे इनकी उँगलियों और होंठों का जादू ,
थोड़ी देर में मेरी ननद पिघल रही थी मचल रही थी चुम्मे का जवाब चुम्मे से दे रही थी खुद अपने छोटे छोटे उभार इनकी छाती से रगड़ रही थी
और जब वो अपने छोटे छोटे चूतड़ खुद उछालने लगी तो ये समझ गए , धक्के फिर शुरू हो गए लेकिन हलके हलके
दो चार धक्के ये मारते तो एक दो बार वो नीचे से अपने चूतड़ उछालती और ये मस्ती में उसके मटर के नए आये दाने के बराबर निप्स चूसने लगते और वो खुद इन्हे खींच कर इशारे करती और धक्कों का जोर बढ़ जाता,
थोड़ी देर बाद वो फिर झड़ने लगी ,