Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Gay/Lesb - LGBT जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा// By: हिमांशु बजाज
#1
Rainbow 
जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा



हरियाणा जितना अपनी इज्जत और आबरू की रक्षा के लिए जाना जाता है उतना ही वहाँ पर होने वाले चोरी छिपे होने वाले सेक्स कांडों के लिए। वहाँ पर लड़की अगर किसी लड़के के साथ खुलकर अपने मन की इच्छा से उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना चाहे और गलती से वहाँ के समाज को उसकी भनक लग जाए तो लड़का और लड़की दोनों को मौत के घाट उतार दिया जाता है।

मैंने हरियाणा का नाम इसलिए लिया क्योंकि इज्जत का जितना ढिंढ़ोरा वहाँ पर पीटा जाता है चोरी-छिपे उतने ही सेक्स कांड वहाँ पर होते रहते हैं। मुझे पता है कि हर जगह की यही कहानी है लेकिन सवाल यहाँ पर यह पैदा होता है कि अगर पेट की भूख मिटाने के लिए मन-पसंद खाना खाने की आजादी ही न हो तो बेमन से खाए गए खाने में स्वाद कहाँ से आएगा. यही बात शारीरिक सम्बन्धों पर भी लागू होती है। यदि कोई अपनी मर्ज़ी से अपने मन-माने पार्टनर के साथ संभोग का आनन्द लेने के लिए तैयार है तो समाज को उसमें अडंगा डालने की क्या जरूरत है?
कहानी लड़की की है इसलिए नाम बताने के विषय में तो प्रश्न ही नहीं उठता। उस पर भी हरियाणा की पृष्ठभूमि तो मामले को और संगीन बना देती है।

लेकिन आजकल फिल्में और कहानियाँ समाज का आइना बन चुकी हैं इसलिए कहानी तो बतानी पड़ेगी, मगर गुमनामी में। शायद इस कोशिश से आने वाले समय में किसी की जान बच जाए। बात दिल्ली से सटे सोनीपत जिले के एक गांव की है।

उन दिनों मैं बाहरवीं में पढ़ती थी। उम्र नादान थी और दिल बच्चा। लेकिन 18 तो पार कर ही गयी थी। सही गलत की पहचान कहाँ होती है उन दिनों में। स्कूल में देवेन्द्र नाम का एक लड़का पढ़ता था, मैं उसको पसंद करती थी। कहीं कोई कमी नहीं थी उसमें। शरीर का चौड़ा, उम्र में मुझसे एक दो साल बड़ा मगर भरपूर जवान और थोड़ा सा शर्मीला। जब हंसता था तो हल्की दाढ़ी लिए उसके गोरे गाल लाल उठते थे। सुर्ख लाल होंठ और आंखें थोड़ी भूरी मगर काली। मन ही मन उसको चाहने लगी थी।

लेकिन लड़की थी तो मन की इच्छाओं को अंदर ही दबाकर रखती थी, चाहती थी कि शुरूआत वो करे तो ठीक रहेगा। सालभर उसकी तरफ से पहल की आस में ऐसे ही निकाल दिया मैंने। चोरी छिपे उसे देखती तो थी लेकिन जब सामने आता तो नज़र नहीं मिला पाती थी। गलती से एक दो बार उसने मेरी चोरी पकड़ भी ली थी मगर बात हल्की सी मुस्कान से आगे कभी बढ़ ही नहीं पाई।

बाहरवीं के फाइनल एग्ज़ाम जब खत्म हुए तो उसके साथ उसको पाने की उम्मीद भी मैंने छोड़ दी। स्कूल के बाद अब कॉलेज ढूढने की तैयारी में थी। आज के समय में लड़की का पढ़ा-लिखा होना बहुत जरूरी है यह बात मैं भी जानती थी और मेरे घर वाले भी। रिजल्ट आने के बाद मैंने बी.ए. का फॉर्म भर दिया। सोनीपत शहर के एक नामी कॉलेज में मुझे एडमिशन मिल गया। महीने भर बाद कॉलेज की फीस भरते ही क्लास भी शुरू हो गई। मेरे पिता जी मुझ कॉलेज छोड़ने जाते और छुट्टी के वक्त लेने आते थे।

शायद अक्टूबर का महीना था और सुबह शाम हल्की-हल्की ठंड पड़ना शुरू हो चुकी थी। स्टॉल के नीचे किताबें और किताबों के नीचे दबते-दबते मेरे स्तन कब बड़े हो गए इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने नहाते हुए बाथरूम के शीशे में उनको गौर से देखा। चूत अभी नई नवेली थी जैसे किसी आड़ू (फल) के बीच हल्की सी दरार हो। लेकिन उस पर उगने वाले रोम अब बाल बनने लगे थे। जो नहाने के बाद गीले होकर जैसे शरमा जाते थे।
कॉलेज जाते हुए तीन महीने हो चुके थे। मेरी 2-3 करीबी सहेलियाँ भी बन गई थीं लेकिन अभी इतनी करीबी नहीं थी कि उनसे लड़कों के बारे में बातें की जा सकें। पीरीयड्स और चूत की देख-रेख को लेकर तो बहुत बातें होती थीं लेकिन चूत चुदवाने के बारे में कभी किसी से खुलकर बात नहीं हुई थी।

एक दिन पापा की तबीयत खराब हो गई तो मुझे कॉलेज से छुट्टी करनी पड़ी क्योंकि कोई और चारा नहीं था। घर वाले मुझे अकेले घर से बाहर नहीं भेजना चाहते थे। अकेली बेटी थी तो चिंता ज्यादा थी। अगले दिन भी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि उल्टियाँ भी शुरू हो गईं और चलते हुए उनको चक्कर आने लगे।
तीसरे दिन रक्त जाँच में पता चला कि उनको डेंगू बुखार हो गया है। ब्लड प्लेटलेट्स भी काफी घट चुकी थी इसलिए फौरन उनको अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। तब पता चला कि सरकारी अस्पतालों के बाहर लगे स्वास्थ्य सम्बन्धी बोर्ड और जानकारी हमारी जिंदगी में कितनी अहमियत रखते हैं। लेकिन हम उनको फालतू समझते हैं और उन पर लिखी सावधानियों को नज़रअंदाज़ करके निकल लेते हैं।

पापा के साथ हफ्ते भर तो माँ अस्पताल में रही और मैं घर का काम संभालती। रिश्तेदारों का आना-जाना भी लगा रहता था। जब प्लेटलेट्स बढ़ने लगे और डॉक्टर ने बताया कि अब पापा खतरे से बाहर हैं तो उनको अस्पताल से छुट्टी मिल गई लेकिन अभी भी सावधानी बरतने और इलाज जारी रखने की उतनी ही ज़रूरत थी।
10 दिन बीत गए तो उनकी तबीयत अब सुधरने लगी थी लेकिन बाहर घूमना-फिरना अभी बंद था। माँ ने सोचा कि ऐसे तो मेरी पढ़ाई का बहुत नुकसान हो जाएगा। माँ बोली- तेरी कोई सहेली नहीं है क्या जिसके साथ तू कॉलेज जा सके?

मैंने कहा- लेकिन मां अभी पापा

माँ ने मेरी बात काटते हुए कहा- तू पापा की चिंता मत कर, पढ़ाई पर ध्यान दे। ऐसे कब तक घर बैठी रहेगी इनके भरोसे? ऐसे तो तेरी पढ़ाई का बहुत नुकसान हो जाएगा। किसी सहेली के साथ चली जाया कर जब तक तेरे पापा ठीक नहीं हो जाते।

घर वाले बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते चले जाते हैं लेकिन बच्चे इस बात को तब समझ पाते हैं या तो जब वो खुद माँ-बाप बन चुके होते हैं या वक्त की हवाओं के थपेड़े उनको लग चुके होते हैं मगर तब तक काफी देर हो जाती है. फिर न बीता हुआ वक्त लौट कर आता है और न माँ-बाप।
सहेलियों में निशा (बदला हुआ नाम) मेरी सबसे करीबी थी। मैंने उसको घर बुलाया तो माँ ने उसको सारी समस्या बता दी।
वो बोली- आप चिंता मत करो आंटी, मैं अपने भाई से कह दूंगी कि वो गाड़ी आपके यहाँ से होते हुए ले आया करे!
अगले दिन से ही निशा अपने भाई के साथ मुझे गाड़ी में ले जाने लगी। सुबह तो निशा पहले से ही गाड़ी में बैठी होती थी लेकिन छुट्टी के वक्त उनका घर रास्ते में पहले आ जाता था और बाद में उसका भाई मुझे मेरे घर छोड़कर वापस चला जाता था।

हमें 3 दिन हो चुके थे, चौथे दिन जब छुट्टी के बाद निशा अपने घर के सामने उतर गई तो उसके भाई ने गाड़ी घुमाई और हम हमारे घर की तरफ चल पड़े। शहर से निकले और 15 मिनट बाद मेरा गांव भी आ गया। मैं बैग संभालते हुए गाड़ी से उतरने के लिए पिछला दरवाजा खोलने ही वाली थी कि तभी पीछे से एक बाइक आकर ड्राइवर वाले शीशे के पास आ रुकी। एक लड़के ने गाड़ी के शीशे पर नॉक किया तो निशा के भाई ने शीशा नीचे कर दिया। बाइक पर बैठे लड़के ने हेल्मेट पहन रखा था। शीशा उतारने के बाद जब उसने हेल्मेट उतारा तो मैं उसे देखती रह गई।
// सुनील पंडित // yourock
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.


Messages In This Thread
जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा// By: हिमांशु बजाज - by suneeellpandit - 27-03-2019, 11:43 AM



Users browsing this thread: 1 Guest(s)