18-01-2021, 09:14 AM
दो भाभी
तीन देवर
सफ़ेद रंग वाली होली हुयी , जबरदस्त हुयी , लेकिन कहानी की मजबूरी उसे काल क्रमानुसार बढ़ना पड़ता है न , जैसे जैसे मैंने ससुराल में पहली पहली बार फागुन का रस लूटा , देवर ननदों के साथ
सब बताउंगी , कुछ भी सेंसर वेंसर नहीं , सच्ची , जो मैंने रगड़ाई की के साथ साथ , जो मेरी रगड़ाई मेरे देवरों ने की वो भी ,
जी , देवरों ने , एक साथ तीन तीन
लेकिन शुरू से , वरना मैं भूल जाती हूँ तो चलिए ,... शुरू करती हूँ , बात न किस्सा न कहानी , एकदम सच , देवर तीन , भाभी दो
असल में गलती उन तीनो की नहीं थी , मैं ही कुछ ज्यादा मस्ती में थी , फगुआहट कुछ जोर से चढ़ी थी , दो दिन से ये नहीं थे , जेठानी और सास भी नहीं थीं और सिर्फ मैं और कम्मो
और मैंने खूब रगड़ाई की , हाँ उस समय अकेले थी मैंने , ..
अनुज ने जब दरवाजा खुलवाया तो मैं पहले तो , लेकिन जब उसके साथ बंटू और मंटू को देखा ,
एक पल के लिए तो मैं सहमी , वो तीन , कहीं आज मेरी कस के , ... और वो कम्मो भी न , अभी पंद्रह मिनट पहले चली गयी थी , मैंने रोका भी तो बोली बस आधे पौन घण्टे में आती हूँ ,
लेकिन मैं सम्हल गयी ,आखिर देवर हैं , फागुन है , और अनुज भी है , बहुत हुआ तो थोड़ा बहुत रंग , ...और वो भी अगर मैंने उकसाया तो
मैंने उकसाना उनके घर में घुसने के पहले ही शुरू कर दिया , दोनों को बंटू मंटू को जोर से हड़काया ,
फागुन में भी भूल गए , एक नयी नयी भाभी आयी हैं , ... अरे हर साल तो अपनी बहनों से होली खेलते ही हो , ...
अनुज ने कुछ बहाना बनाने की कोशिश की , बंटू ने भी , कोचिंग , एक्जाम
पर मंटू थोड़ा तेज था , बोला
" भाभी देखिये हम आ गए है , आप ही का दरवाजा बंद था , ... "
" और तुम ने एक बार कहा और मैंने खोल दिया , ... है न , मैं उन भाभियों में नहीं हु जो देवर के लिए दरवाजा बंद रखती हैं , देखो झट से खोल दिया , ... "
मैं हँसते हुए बोली , ,
मैं सच में उन भाभियों में नहीं थी जो डबल मीनिंग डायलॉग में देवर से पीछे रह जाएँ ,
और मंटू की देखा देखी अब बंटू भी , हिम्मत उसकी बढ़ गयी , हँसते हुए बोला ,
" भाभी आपने खोल दिया है तो देखिये हम बिना डाले जाएंगे नहीं , ... "
" अच्छा एक तो इतने दिन बाद दरसन दिया है , ऊपर से आते ही डालने डलवाने की बात करने लगे , ... वो तो अभी देखती हूँ , ... कौन डालता है कौन डलवाता है , ... "
मेरी निगाह मंटू के पैंट पर थी , तम्बू थोड़ा खड़ा था और जो दिख रहा था वो जबरदस्त था , ... मोटा भी कड़ा भी और मुझे वहां देखते हुए बंटू और मंटू ने देख लिया
पर मेरे ऊपर कुछ फरक नहीं पड़ रहा था , मैं चिढ़ाते हुए बोली
" क्या डालोगे , अरे पिचकारी में कुछ रंग वंग भी है किस सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो , ... "
" अरे भाभी , आप ने अभी हमारी पिचकारी देखी कहाँ है , ... "
मंटू बोला ,
मैं स्टोर की ओर मुड़ रही थी , लेकिन रुक गयी , उसकी ओर आँख नचा के देखा और छेड़ा ,
" किस किस को दिखाया है , मेरी कोई ननद बची है की नहींऔर , और सिर्फ दिखाया है की पकड़ाया भी है , ... "
और बजाय स्टोर के घर के बाहरी दरवाजे की ओर मुड़ी , फिर अनुज से बोला ,
"अभी घर में कोई है नहीं तुम्हारी बुआ बड़ी भाभी शाम को आएँगी , और तेरे भइया तो दो दिन से , ... ज़रा बाहर का दरवाजा चेक कर लूँ , अभी कम्मो भी नहीं है ,... "
असल में वहीँ पर मैंने कुछ रंग गुलाल रख रखा था , और वो पुड़िया उठा के लौटते हुए सीधे बंटू और मंटू के मांग में , एकदम सिन्दूर की तरह ,
तीन देवर
सफ़ेद रंग वाली होली हुयी , जबरदस्त हुयी , लेकिन कहानी की मजबूरी उसे काल क्रमानुसार बढ़ना पड़ता है न , जैसे जैसे मैंने ससुराल में पहली पहली बार फागुन का रस लूटा , देवर ननदों के साथ
सब बताउंगी , कुछ भी सेंसर वेंसर नहीं , सच्ची , जो मैंने रगड़ाई की के साथ साथ , जो मेरी रगड़ाई मेरे देवरों ने की वो भी ,
जी , देवरों ने , एक साथ तीन तीन
लेकिन शुरू से , वरना मैं भूल जाती हूँ तो चलिए ,... शुरू करती हूँ , बात न किस्सा न कहानी , एकदम सच , देवर तीन , भाभी दो
असल में गलती उन तीनो की नहीं थी , मैं ही कुछ ज्यादा मस्ती में थी , फगुआहट कुछ जोर से चढ़ी थी , दो दिन से ये नहीं थे , जेठानी और सास भी नहीं थीं और सिर्फ मैं और कम्मो
और मैंने खूब रगड़ाई की , हाँ उस समय अकेले थी मैंने , ..
अनुज ने जब दरवाजा खुलवाया तो मैं पहले तो , लेकिन जब उसके साथ बंटू और मंटू को देखा ,
एक पल के लिए तो मैं सहमी , वो तीन , कहीं आज मेरी कस के , ... और वो कम्मो भी न , अभी पंद्रह मिनट पहले चली गयी थी , मैंने रोका भी तो बोली बस आधे पौन घण्टे में आती हूँ ,
लेकिन मैं सम्हल गयी ,आखिर देवर हैं , फागुन है , और अनुज भी है , बहुत हुआ तो थोड़ा बहुत रंग , ...और वो भी अगर मैंने उकसाया तो
मैंने उकसाना उनके घर में घुसने के पहले ही शुरू कर दिया , दोनों को बंटू मंटू को जोर से हड़काया ,
फागुन में भी भूल गए , एक नयी नयी भाभी आयी हैं , ... अरे हर साल तो अपनी बहनों से होली खेलते ही हो , ...
अनुज ने कुछ बहाना बनाने की कोशिश की , बंटू ने भी , कोचिंग , एक्जाम
पर मंटू थोड़ा तेज था , बोला
" भाभी देखिये हम आ गए है , आप ही का दरवाजा बंद था , ... "
" और तुम ने एक बार कहा और मैंने खोल दिया , ... है न , मैं उन भाभियों में नहीं हु जो देवर के लिए दरवाजा बंद रखती हैं , देखो झट से खोल दिया , ... "
मैं हँसते हुए बोली , ,
मैं सच में उन भाभियों में नहीं थी जो डबल मीनिंग डायलॉग में देवर से पीछे रह जाएँ ,
और मंटू की देखा देखी अब बंटू भी , हिम्मत उसकी बढ़ गयी , हँसते हुए बोला ,
" भाभी आपने खोल दिया है तो देखिये हम बिना डाले जाएंगे नहीं , ... "
" अच्छा एक तो इतने दिन बाद दरसन दिया है , ऊपर से आते ही डालने डलवाने की बात करने लगे , ... वो तो अभी देखती हूँ , ... कौन डालता है कौन डलवाता है , ... "
मेरी निगाह मंटू के पैंट पर थी , तम्बू थोड़ा खड़ा था और जो दिख रहा था वो जबरदस्त था , ... मोटा भी कड़ा भी और मुझे वहां देखते हुए बंटू और मंटू ने देख लिया
पर मेरे ऊपर कुछ फरक नहीं पड़ रहा था , मैं चिढ़ाते हुए बोली
" क्या डालोगे , अरे पिचकारी में कुछ रंग वंग भी है किस सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो , ... "
" अरे भाभी , आप ने अभी हमारी पिचकारी देखी कहाँ है , ... "
मंटू बोला ,
मैं स्टोर की ओर मुड़ रही थी , लेकिन रुक गयी , उसकी ओर आँख नचा के देखा और छेड़ा ,
" किस किस को दिखाया है , मेरी कोई ननद बची है की नहींऔर , और सिर्फ दिखाया है की पकड़ाया भी है , ... "
और बजाय स्टोर के घर के बाहरी दरवाजे की ओर मुड़ी , फिर अनुज से बोला ,
"अभी घर में कोई है नहीं तुम्हारी बुआ बड़ी भाभी शाम को आएँगी , और तेरे भइया तो दो दिन से , ... ज़रा बाहर का दरवाजा चेक कर लूँ , अभी कम्मो भी नहीं है ,... "
असल में वहीँ पर मैंने कुछ रंग गुलाल रख रखा था , और वो पुड़िया उठा के लौटते हुए सीधे बंटू और मंटू के मांग में , एकदम सिन्दूर की तरह ,