08-04-2020, 10:13 AM
गुड्डी
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , ...
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न
तो बस रेनू और लीला थी न उसकी दोनों सहेलियां अब एकदम मेरी ओर हो गयी थीं , बस एक उसकी दोनों टाँगे पकड़ती और दूसरी दोनों हाथ ,
फिर तो मैं आराम से धीरे धीरे , शलवार , स्कर्ट कुछ भी ,...
फिर ब्रा पैंटी भी ,...
बिना किसी जल्दी के , चाहे वो जितना छुटपटाये ,
और एक बार उसकी सहेली खुल गयी तो फिर तो ननद की चिड़िया बिना उड़ाए ,...
और एक दो के बार बाद तो मैं उसी को फ़ोर्स करती , चल ऊँगली कर ,
वरना लम्बी मोटी मोमबत्ती डालूंगी अभी , भले झिल्ली फट जाये ,
असल में झिल्ली ही तो मैं नहीं फाड़ना चाहती थी उसकी , मैं ने चेक कर लिया था ,
पूरा खोल के , झिल्ली अभी एकदम इनटेक्ट थी ,
एकदम कच्ची थी वो ,
कभी ठीक से ऊँगली भी नहीं की थी उसने , ... और झिल्ली भी एकदम इन्टैक्ट ,...
फाड़ने का काम तो बस उसे ही करना था जिसने मेरी फाड़ी थी , ...
उसके भैया और मेरे सैंया को ,
और हचक के फाड़नी थी ,
और अब ये बात उसकी दोनों सहेलियों को भी मालुम हो गयी ,
और मैं समझ रही था थोड़ा थोड़ा मेरी ननद को भी अब अंदाज लग गया था , ...
हाँ बस मैं उसकी दोनों सहेलियों के साथ मिल के बस उसका डर हिचक कम कर रही थी और उसके मन में आग लगा रही थी ,
और हर बार वो आती थी तो उसकी दो चार फोटुएं , ...लेकिन इन एक्शन ,...
कभी अपनी हथेली से रगड़ती मसलती ,
तो कभी एक ऊँगली का एक पोर अंदर डालने की कोशिश करती ,
और मैं जानती थी इन पिक्स का उसके भाई और उसे बढ़ कर उस के खूंटे पर क्या असर पडेगा , ...
वही हुआ ,...
अपनी ननदिया को मैंने ' होम वर्क ' भी दे रखा था , रोज रात को सोने के पहले कम से कम पांच मिनट अपनी चड्ढी खोल के , अपनी गुलाबो हथेली से रगड़े और ये सोचे की उसके भइया , अपने हाथ से रगड़ रहे हैं , अपनी जीभ से चूस रहे हैं और चाट रहे हैं , हाँ जब एक हाथ उसकी कच्ची चूत पर रहे तो दूसरा हाथ उसकी कच्ची अमिया , उसे हलके हलके दबाये सहलाये ,
सोचे उसके भैया मीज रहे हैं , मसल रहे हैं ,
और यही काम , सुबह उठने पर ,
दिन में एक बार स्कूल में और के बार घर में भी कोई सामने हो तो भी , पढ़ते समय , बस अपनी पैंटी सरका के एक ऊँगली ; वहां रख के ' सोचे की भैया का ' खूंटा है और उसे हलके हलके रगड़े , ...
" होम वर्क ' करने के बाद मुझे व्हाट्सऐप भी करना होता था , बस मैं चाहती थी , उस शर्मीली लजीली किशोरी के मन में खुद इतनी आग लगे , उसकी देह में इतनी खुजली मचे
और ये सब हो पाया रेनू की मदद से , ....
लेकिन रेनू भी , वो और उससे ज्यादा अनुज ,
भाभी , बस एक बार किसी तरह थोड़ी देर के लिए ,... करवा दो न जुगाड़
वो एक बार कभी नहीं होता , ... जितनी बार रेनू अनुज से मिलती , दो बार से कम नहीं ,...
और चुसवाता भी वो जरूर ,...
और हफ्ते में दो बार तो होना ही था , कभी तीन बार भी ,..
. एकाध बार तो कोई जुगाड़ नहीं लगा तो मेरे कमरे में , मैं उन दोनों को अपने कमरे में कर के ,... खुद छत पर खड़ी होकर , ...
और जब अनुज चला जाता था तो जाकर , अपनी ननद का , गुड्डी की सहेली , रेनू का हाल चाल चेक करती , और सोचती भी
अगर रेनू न होती तो गुड्डी अभी भी वैसे ही बात बात पर उचकनेवाली , हाथ न धरने वाली ही बनी रहती , ...
पर अब सच्च में उनकी मलाई से गीली ब्रा उसने सात दिन पूरी तरह पहनी ,
और जब वो आये न , जिस दिन आने वाले थे , गुड्डी पहले से , ...
उनसे मिल के ही गयी और अगले दिन भी ,
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , ...
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न
तो बस रेनू और लीला थी न उसकी दोनों सहेलियां अब एकदम मेरी ओर हो गयी थीं , बस एक उसकी दोनों टाँगे पकड़ती और दूसरी दोनों हाथ ,
फिर तो मैं आराम से धीरे धीरे , शलवार , स्कर्ट कुछ भी ,...
फिर ब्रा पैंटी भी ,...
बिना किसी जल्दी के , चाहे वो जितना छुटपटाये ,
और एक बार उसकी सहेली खुल गयी तो फिर तो ननद की चिड़िया बिना उड़ाए ,...
और एक दो के बार बाद तो मैं उसी को फ़ोर्स करती , चल ऊँगली कर ,
वरना लम्बी मोटी मोमबत्ती डालूंगी अभी , भले झिल्ली फट जाये ,
असल में झिल्ली ही तो मैं नहीं फाड़ना चाहती थी उसकी , मैं ने चेक कर लिया था ,
पूरा खोल के , झिल्ली अभी एकदम इनटेक्ट थी ,
एकदम कच्ची थी वो ,
कभी ठीक से ऊँगली भी नहीं की थी उसने , ... और झिल्ली भी एकदम इन्टैक्ट ,...
फाड़ने का काम तो बस उसे ही करना था जिसने मेरी फाड़ी थी , ...
उसके भैया और मेरे सैंया को ,
और हचक के फाड़नी थी ,
और अब ये बात उसकी दोनों सहेलियों को भी मालुम हो गयी ,
और मैं समझ रही था थोड़ा थोड़ा मेरी ननद को भी अब अंदाज लग गया था , ...
हाँ बस मैं उसकी दोनों सहेलियों के साथ मिल के बस उसका डर हिचक कम कर रही थी और उसके मन में आग लगा रही थी ,
और हर बार वो आती थी तो उसकी दो चार फोटुएं , ...लेकिन इन एक्शन ,...
कभी अपनी हथेली से रगड़ती मसलती ,
तो कभी एक ऊँगली का एक पोर अंदर डालने की कोशिश करती ,
और मैं जानती थी इन पिक्स का उसके भाई और उसे बढ़ कर उस के खूंटे पर क्या असर पडेगा , ...
वही हुआ ,...
अपनी ननदिया को मैंने ' होम वर्क ' भी दे रखा था , रोज रात को सोने के पहले कम से कम पांच मिनट अपनी चड्ढी खोल के , अपनी गुलाबो हथेली से रगड़े और ये सोचे की उसके भइया , अपने हाथ से रगड़ रहे हैं , अपनी जीभ से चूस रहे हैं और चाट रहे हैं , हाँ जब एक हाथ उसकी कच्ची चूत पर रहे तो दूसरा हाथ उसकी कच्ची अमिया , उसे हलके हलके दबाये सहलाये ,
सोचे उसके भैया मीज रहे हैं , मसल रहे हैं ,
और यही काम , सुबह उठने पर ,
दिन में एक बार स्कूल में और के बार घर में भी कोई सामने हो तो भी , पढ़ते समय , बस अपनी पैंटी सरका के एक ऊँगली ; वहां रख के ' सोचे की भैया का ' खूंटा है और उसे हलके हलके रगड़े , ...
" होम वर्क ' करने के बाद मुझे व्हाट्सऐप भी करना होता था , बस मैं चाहती थी , उस शर्मीली लजीली किशोरी के मन में खुद इतनी आग लगे , उसकी देह में इतनी खुजली मचे
और ये सब हो पाया रेनू की मदद से , ....
लेकिन रेनू भी , वो और उससे ज्यादा अनुज ,
भाभी , बस एक बार किसी तरह थोड़ी देर के लिए ,... करवा दो न जुगाड़
वो एक बार कभी नहीं होता , ... जितनी बार रेनू अनुज से मिलती , दो बार से कम नहीं ,...
और चुसवाता भी वो जरूर ,...
और हफ्ते में दो बार तो होना ही था , कभी तीन बार भी ,..
. एकाध बार तो कोई जुगाड़ नहीं लगा तो मेरे कमरे में , मैं उन दोनों को अपने कमरे में कर के ,... खुद छत पर खड़ी होकर , ...
और जब अनुज चला जाता था तो जाकर , अपनी ननद का , गुड्डी की सहेली , रेनू का हाल चाल चेक करती , और सोचती भी
अगर रेनू न होती तो गुड्डी अभी भी वैसे ही बात बात पर उचकनेवाली , हाथ न धरने वाली ही बनी रहती , ...
पर अब सच्च में उनकी मलाई से गीली ब्रा उसने सात दिन पूरी तरह पहनी ,
और जब वो आये न , जिस दिन आने वाले थे , गुड्डी पहले से , ...
उनसे मिल के ही गयी और अगले दिन भी ,